Sunday, December 22, 2024

अम्बेडकर सिर्फ अम्बेडकर

 संसद का पूरा सत्र ही हंगामे की भेंट चढ़ गया। जो संसद सार्थक बहस के लिए है, वह आज सिर्फ लोकतंत्र का मज़ाक बनाने के लिए राह गई है। आज न कोई सच्चाई कह सकता है न सुन सकता है। इन राजनीतिज्ञयों के लिए जनता तो मूर्ख है। वह न कुछ समझ सकती है, न गुन सकती है। इनके लिए गाँधी और अम्बेडकर एक ऐसे मोहरे हैं जिनके नाम लेने मात्र से इन्हें वोट मिल जायेंगे!

ज़ब तक कांग्रेस सत्ता में थी तब तक न संविधान खतरे में था न ही लोकतंत्र किन्तु 2014 के पश्चात् सब कुछ ख़तरे में पड़ गया क्योंकि वही भारत की एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने भारत को आजादी दिलवाई इसीलिए उसे ही देश पर शासन करने का अधिकार है। अधिकार भी सिर्फ एक परिवार को है, किसी अन्य को नहीं। 


इस एक परिवार ने अपने सिवा किसी को खड़ा ही नहीं होने दिया।

गाँधी और अम्बेडकर तो उसके लिए लॉलीपॉप हैं जिनका नाम लेकर वह दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को लुभाना चाहती है। अगर वास्तव में उसे दलितों के लिए कुछ करना ही होता तो वह आपने 50 -55 साल के शासन में नहीं करती क्योंकि आरक्षण का प्रविधान तो सिर्फ 10 वर्षों का था। बाद में इसे सिर्फ वोट प्राप्त करने का हथियार बनाया गया।


मुझे याद आ रहा है वह वाकया ज़ब प्रियंका गाँधी पहली बार चुनाव प्रचार में उतरी थीं तो पेपर में खबर छपी थी कि जिस झोंपड़ी से इंदिरा गाँधी ने चुनाव प्रचार शुरू किया था वहीं से प्रियंका गाँधी ने शुरू किया है। इस खबर के साथ झोपड़ी तथा प्रियंका गांधी की फोटो भी थी।


संविधान निर्माण की तीन समितियों के अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे, तो दो-दो समितियों के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे और केवल एक समिति के अध्यक्ष थे डॉ. भीमरॉव अम्बेडकर। फिर ऐसा क्यों है कि भारत की हर राजनीतिक पार्टी भारत के संविधान को बाबा साहेब अम्बेडकर का दिया हुआ संविधान कह कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है। क्या अन्य लोगों का संविधान के निर्माण में कोई योगदान नहीं था।


मेरे विचार से जितने महत्वपूर्ण संविधान सभा के अध्यक्ष एवं उससे जुड़े अन्य सदस्य थे उतने ही महत्वपूर्ण भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाने वाले चित्रकार नंदलाल बोस थे। नंदलाल बोस और उनके शिष्य राममनोहर सिन्हा ने मिलकर संविधान की मूल पांडुलिपि को सजाया था।नंदलाल बोस ने अपने छात्रों के साथ चार साल में संविधान को 22 चित्रों और बॉर्डर से सजाया था।



Wednesday, December 11, 2024

माता-पिता का बच्चों के प्रति दायित्व

 नींव के पत्थर हैं ये

तराशों इन्हें 

मुरझा न जायें  

सम्भालो इन्हें।


आज विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि बच्चों में संस्कारों की जड़ें माँ की कोख में ही पड़ने लगती हैं। बच्चों के साथ समय बिताने, उनके मासूम प्रश्नों का उत्तर देने, उन्हें नैतिक ज्ञान की शिक्षा देने का काम बच्चे की पहली शिक्षक माँ का है, उससे बच्चे आज वंचित हैं। आज के आपाधापी के युग में अधिकतर माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय ही नहीं है। 


शिक्षा प्रणाली भी बच्चों को व्यावहारिक या नैतिक शिक्षा देने की बजाय किताबी शिक्षा ही देती है। एकल परिवार तथा एक ही बच्चे की अवधारणा ने पारिवारिक ढांचे को छिन्न-भिन्न कर दिया है। अकेला बच्चा अपनी बात कहे भी तो किससे कहे? बच्चों को अपने स्वप्न पूरा करने का माध्यम बनाने की बजाय उन्हें अपने स्वप्न स्वयं देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला दीजिए। 


बच्चों की सफलता-असफलता सिर्फ उसकी ही नहीं, पालकों की भी है। व्यर्थ दोषारोपण करने की बजाय उनके मानसिक स्तर पर उतर कर उनकी समस्याओं को समझ कर उनका मार्गदर्शन करें, उन्हें आपने ध्येय में सफलता प्राप्त करने के लिए कर्मठता का महत्व समझायें तभी वे बच्चों को शानदार जीवन के लिए तैयार करने के साथ जिम्मेदार नागरिक बना पाएंगे। 






Wednesday, December 4, 2024

यह कैसी प्रवृति

 आजकल sleep divorce और grey divorce की बहुत चर्चा हो रही है। Sleep divorce अर्थात एक ही घर में रहते हुए अच्छी नींद (किसी को डिस्टर्ब न हो ) लेने के लिए युगल अलग -अलग सोने लगते हैं जबकि ग्रे डिवोर्स का मतलब है, जब कोई दंपती 50 साल या उससे ज़्यादा उम्र में तलाक लेता है। इसे सिल्वर स्प्लिटर्स या डायमंड तलाक भी कहा जाता है। ग्रे डिवोर्स शब्द का इस्तेमाल बीते कुछ सालों में ही लोकप्रिय हुआ है. हालांकि, अब 15-20 साल की शादी के बाद अचानक रिश्ता टूटने के मामलों को भी ग्रे डिवोर्स कहा जाने लगा है।

आज के भौतिकता वादी परिवेश के कारण रिश्तों में आती संवेदनहीनता, बदलती परिस्थितियों में बदलती मानसिकता के ये by product हैं। सच तो यह है कि इंसान आज इतना आत्मकेंद्रित होता जा रहा है कि उसमें हम की जगह मैं का तत्व अधिक प्रभावशाली हो गया है। वह शायद यह नहीं जानता कि मनुष्य भले आज अकेला रह ले लेकिन एक समय ऐसा आता है ज़ब सारा रुपया पैसा धरा रह जाता है, व्यक्ति की आँखें अपनों को खोजती हैं। ज़ब कोई रिश्ता ही नहीं रहेगा तो अपना कोई कहाँ रहेगा?

आज लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि हमें किसी की आवश्यकता नहीं हैं। सीनियर सिटीजन के लिए बनाये जा रहे रिटायरमेंट होम में फ्लैट लेकर रह लेंगे या हम तो ज़ब तक चलेगा अलग ही रहेंगे क्योंकि वे समझौता नहीं करना चाहते लेकिन मैं कई ऐसे लोगों को जानती हूँ जिन्हें अंतिम समय में बच्चों के पास आना पड़ा, उनकी सहायता लेनी पड़ी।


भूत और भविष्य के दायरे से मुक्त वर्तमान में जीने वाले यही सोचते हैं कि उन्हें कभी किसी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी लेकिन वे भूल जाते हैं कि भले ही इंसान अकेला आता है, अकेला ही जाता है किन्तु परिपूर्ण जीवन का एहसास रिश्तों के बीच रहते हुए ही मिलता है। राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की कविता ‘मनुष्यता’ की पंक्तियाँ आज भी उतनी ही प्रेरक है जितनी कल थी…


यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।


🙏


Wednesday, October 9, 2024

नई राजनीति की शुरुआत

 

वास्तव में केजरीवाल एक अजूबा ही है। नाम आम आदमी पार्टी और रुतबा चाहते हैं खास का। ये कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ते हुए नई तरह की राजनीति की शुरुआत करने आये थे किन्तु इन्होंने प्रारम्भ से ही मोदी सरकार के खिलाफ न केवल झंडा उठाया वरन उनके खिलाफ बनारस से उम्मीदवार भी बने। यह तो देश का सौभाग्य है कि लोगों ने इन्हें नहीं वरन मोदी को चुना। 
इनकी पार्टी सिर्फ देश विरोधियों के साथ मिलकर अराजकता फैलाना चाहती है। भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गये केजरीवाल ने संविधान कि आड़ लेकर पद त्याग भी नहीं किया। उससे भी बड़ी बात यह हुई कि सर्वोच्च न्यायालय से इन्हें अंतरिम जमानत भी मिल गई।
कोरोना काल में ऑक्सीजन को लेकर हाय तौबा से लेकर शराब कांड के बाद अब स्वाति मालीवाल के साथ घटना…और अब एक नया शिगुफा कि भारतीय जनता पार्टी उन पर हमला करवा सकती है। इसके तार इतने लम्बे जुड़े हैं कि अमेरिका और जर्मनी ने ने इसकी गिरफ्तारी के विरुद्ध आवाज़ उठाई। ख़ालिस्तानियों से जिसे फंड मिल रहा हो, C J I, के मित्र जिनके वकील हों, उन्हें भला अंतरिम बेल क्यों नहीं मिलती? 

वैसे भी क़ानून अंधा है। उन्हें जमानत देने से पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जजों ने E D के वकीलों कि दलीलों पर भी ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। आज तो सुप्रीम कोर्ट के पास V I P लोगों के केसेस सुनने के लिए समय है जबकि अन्य लोगों के लिए नहीं…।


मन में बहुत अफ़सोस होता है किन्तु विवश हैं। यह कैसे नियम हैं कि विधायिका, कार्य पालिका का विरोध कर सकते हैं किन्तु न्याय पालिका का नहीं चाहे वह किसी को भी दोषी बना दे या किसी को भी छोड़ दे। उस पर यह आग्रह कि आप सभी के निर्णय पर विश्लेषण का स्वागत है।


अगर ऐसी ही पार्टियां सत्ता में आईं तो न जाने देश की दशा और दिशा क्या होगी।

Monday, October 7, 2024

भारतीय राजनीति

  वंशवाद और परिवारवाद  भारतीय राजनीति का वह विद्रुप चेहरा है जिसे हम भारतीयों ने ही मान्यता दी है शायद व्यक्ति पूजा कुछ इंसानों की रग -रग में इतनी बस चुकी है कि अब राजा -महाराजाओं की जगह ये ही स्थापित हो गये हैं। सोनिया गाँधी को तो राजमाता की पदवी दे ही दी है, राहुल गाँधी का व्यवहार भी राजकुमार जैसा ही रहा है जिसे सिर्फ देश का प्रधानमंत्री ही बनना है। हो सकता है कि किसी ने उन्हें समझाया हो कि अपोजीशन लीडर का पद भी प्रधानमंत्री के बराबर होता है, इसीलिए उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया होगा।

यही स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर इत्यादि की है। दिल्ली में भी आतिषी ने जैसे C.M. की कुर्सी पर बैठने से मना किया, क्या वह व्यक्ति पूजा का उदाहरण नहीं है?

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एक कदम आगे बढ़ कर अपने पुत्र दयानिधि स्टालिन को राज्य का उप-मुख्यमंत्री ही बना दिया क्योंकि ये जो जनता है, उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता।


यह भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य है कि अभी भी हमें सच्चे और ईमानदार नेताओं की परख नहीं है न ही उन्हें देश की प्रगति की चिंता है। वे फ्री बिजली, पानी के लिए किसी को वोट दे सकते हैं तभी 7 दशकों बढ़ भी देश जहाँ खड़ा है, वहीं खड़ा रह गया। अब उम्मीद की कुछ किरण दिखाई देने लगी थी लेकिन लोगों को शायद ये भी रस नहीं आ रही। अखिलेश यादव की पार्टी का लोकसभा चुनाव में कुछ अधिक सीट जितना फिर उत्तर प्रदेश को पीछे न धकेल दे…कभी -कभी लगता है कि ये लोग नहीं चाहते कि देश तरक्की करे।


Wednesday, October 2, 2024

शर्मशार होती मानवता का गुनहगार कौन

 

आज इंसान सहअस्तित्व तथा वसुधैव कुटुंबकम के मूलमंत्र को भुलाकर आचरण या स्वभाव सभ्य नहीं रह गया है। जरा-जरा सी बातों पर क्रोधित होना, तलवारें खींच लेना…उसे मानव से दानव की श्रेणी में ला रहे हैं।

ज़ब यही दानवता दो देशों के मध्य होते युद्ध में दिखाई देती है तो मन कराह उठता है। जिसने युद्ध की विभीषिका को सहा है समझ सकता है कि बेघर होना, अपनों को खोना, मृत्यु से भी अधिक तकलीफ देह है पर ताकत तथा अहंकार के नशे में डूबे, ताकतवर देशों के राजप्रमुखों को युद्ध की विभीषिका झेल रहे मासूम लोगों की दुःख, तकलीफें, क्रन्दन दिखाई नहीं देता। सुरक्षा के घेरे में कैद इन महानुभावों की नजरों में मरने वाले कीड़े -मकोड़े हैं। ये देश अग्नि को बुझाने की बजाय उसमें घी डालने का काम कर रहे हैं।

 एक युद्ध समाप्त नहीं होता दूसरा शुरू हो जाता है। आज दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है पर किसी को चिंता नहीं है। वे यह भी नहीं सोचते कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं वरन पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ मानवीय समस्याओं को बढ़ाने, उलझाने वाला होता है।

 इंसान अपनी करनी से मानवता को तो शर्मसार कर ही रहा है, स्वयं के लिए भी खाई खोद रहा है। अगर इंसान अभी भी नहीं चेता तो अंततः उसके लिए भयावह होती स्थिति से निकलना असंभव ही होगा।




Monday, September 23, 2024

इजराइल और उसकी देशभक्ति

 विज्ञान ने जहाँ लोगों को सुविधाएं दी हैं, उससे भी अधिक लोगों की जिंदगी को अस्थिर किया है इसकी जीती जागती मिसाल है इजराइल का हिज़बुल्लाह जैसे आतंकी संगठन का पुरानी तकनीक के बने, ट्रेस न किये जा सकने वाले उपकरण पेजर में विस्फोटक लगाकर, आतंकियों का नाश करना… अब यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि यही कार्य मोबाइल और लैपटॉप जैसे आधुनिक उपकरणों में भी विस्फोटक लगाकर तो नहीं किया जायेगा । न जाने कब इंसान की सुविधा के लिए बनाये गये उपकरण उसकी मौत का कारण बन जाये।


यह सच है कि इजराइल से जैसे एक छोटे से देश ने अपने दुश्मनों को एक ऐसी तकनीक के जरिये धराशाह कर दिया जिससे पूरा विश्व हतप्रभ तो है ही, स्वयं की सुरक्षा के लिए भी चिंतित हो गया है होना भी चाहिए और इसकी काट भी खोजनी चाहिए।


वैसे भी हम भारतीयों को इजराइल जैसे छोटे से देश से देशभक्ति की भावना ग्रहण करनी चाहिए जहाँ देश का हर नागरिक देश पर हुए हमले को स्वयं पर हुआ हमला मानता है।


Sunday, September 22, 2024

एक देश एक चुनाव आज की आवश्यकता

 एक देश एक चुनाव आज की आवश्यकता 

 1951-52 से वर्ष 1967 तक लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचन अधिकांशतः साथ-साथ कराए गए थे और इसके पश्चात् यह चक्र टूटता गया। कभी बहुमत की कमी तो कभी राजनीतिक साजिश के तहत अनुच्छेद 356 की आड़ लेकर अब तक केंद्र सरकार द्वारा 100 से अधिक बार विधान सभायेँ भंग की गईं। 

 अब स्थिति यह हो गई है कि देश में हर वर्ष, कभी-कभी कुछ ही महीनों के अंतराल में किसी न किसी राज्य के चुनाव करवाये जाते हैं। देश के सदा चुनावी मोड में रहने के कारण चुनाव के समय नेताओं द्वारा एक दूसरे पर अनावश्यक टिप्पणियाँ करने से सामाजिक समरसता तो भंग होती ही है, समाज में अनावश्यक तनाव भी पैदा होता है। बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू की जाने के कारण सरकार कोई नीतिगत फैसले नहीं ले पाती। प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय तो प्रभावित होते ही हैं, देश के खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है। इसके साथ ही चुनाव ड्यूटी में लगाए गए निर्वाचन अधिकारियों तथा सुरक्षा बलों को लंबे समय तक अपने मूल कर्तव्यों से दूर रहना पड़ता है। वे अपने क्षेत्र में अपने कार्य का निर्वहन नहीं कर पाते।  

इस स्थिति से बचने के लिए भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधारार्थ अपनी 170 वीं रिपोर्ट में कहा है कि प्रत्येक वर्ष बार-बार चुनावों के इस चक्र का अंत किया जाना चाहिए। हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते थे। इसी के साथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के अगले 100 दिनों में नगर निकायों के चुनावों को भी करवाने की सिफारिश की है। 

 इस पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने एक देश-एक चुनाव पर अपनी रिपोर्ट पेश की जिसे केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा मंजूरी मिल गई है। अब इसे आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। जहां विभिन्न दल इस पर अपनी राय देंगे किन्तु इसको क्रियान्वित करना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं। यद्यपि कुछ पार्टियां समर्थन भी कर रही हैं लेकिन कुछ दलों का कहना है एक साथ चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा। इनका मानना है कि अगर एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे जिससे राज्यों का विकास प्रभावित होगा। 

 फिल्म अभिनेता कमल हासन जो जन न्याय केंद्र पार्टी के संस्थापक हैं, ने एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव को खतरनाक और त्रुटिपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के चुनाव कुछ देशों में समस्याएं पैदा कर चुके हैं। इसलिए भारत में इसकी आवश्यकता नहीं है और भविष्य में भी इसकी आवश्यकता नहीं होगी।

 इस संदर्भ में पक्ष-विपक्ष का जो भी मत हो लेकिन अगर देश के आर्थिक और सामाजिक विकास की गति को आगे बढ़ाना है तो देश में एक देश,एक चुनाव की योजना को लागू करना ही होगा।

Monday, September 16, 2024

मेरी नई पुस्तक

 नई किताब

भूल गए हम जिनको

सुधा आदेश

किताब वेबसाइट और अमेजन फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है!

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https://www.flipkart.com/bhul-gaye.../p/itm75448f65ec8cf...

https://indianetbooks.com/shop/bhul-gaye-ham-jinko/

स्त्रियों को सदा अबला कहा जाता है लेकिन अगर हम अपने देश के समृद्ध और गौरवशाली अतीत पर नजर डालें तो हमें हमारे देश में ऐसी वीरांगनाओं की कमी नहीं मिलेगी जिन्होंने अपने देश के लिए हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दिये। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे इतिहासकार उनके योगदान के बारे में मौन रहे हैं। इसका कारण शायद यह है कि हमारा देश पहले मुगलों का तथा बाद में अंग्रेजों के आधिपत्य में रहा जिन्होंने हमारी सभ्यता और संस्कृति को कुचलने के साथ हमारे मस्तिष्क को भी कुंद बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

 भारत को स्वतंत्र कराने जितना योगदान पुरुषों का रहा है उतना ही महिलाओं का भी, चाहे वह सन 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम रहा हो या बाद का। सन 1857 से पहले भी अनेक वीरांगनाओं ने अपने राज्य को दुश्मनों की नजर से बचाने के लिए हथियार उठाए थे। रानी झाँसी लक्ष्मी बाई का नाम तो हम सब जानते हैं। उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु उसी समय गोरखपुर के निकट तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी के त्याग और बलिदान के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।              

 कश्मीर की रानी दिद्दा हो या काकतीय राजवंश की रानी रुद्रमा देवी, मध्य प्रदेश की गोंड़ रानी दुर्गावती हों या कित्तूर की रानी चेन्नमा या फिर आम आदमी के संघर्ष का प्रतीक अजीजन बाई, उदा देवी, नीरा आर्या, सुशीला मोहन और कनकलता बरुआ। सबके मन में एक ही ज्वाला थी, देश भक्ति की ज्वाला। इस ज्वाला ने उन्हें देश के लिए सर्वस्य अर्पण करने का साहस दिया। 

 इन सब विभूतियों के बारे में जानने के लिए मैंने अखबारों, पुस्तकों यहाँ तक कि गुगुल को भी खंगाला। मुझे जानकार आश्चर्य हुआ कि जिस स्त्री को हम सुकुमारी, कोमलांगी समझते रहे हैं वह अदम्य साहस, वीरता और बुद्धिमत्ता का ऐसा संगम है जो पुरुषवादी मानसिकता के साथ उसके बुद्धिचातुर्य तथा बुद्धिबल को भी चुनौती देने में सक्षम है। इसके लिए उसे उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है। मुझे यह जानकार खुशी हुई कि राजकन्याओं को प्राचीन काल से ही, शिक्षा के साथ युद्ध कला का भी प्रशिक्षण दिया जाता था तभी आवश्यकता पड़ने पर वे दुर्गा का रूप लेने भी नहीं हिचकती थीं।     

   इस पुस्तक में मैंने सिर्फ स्त्री वीरांगनाओं की जीवनियों को ही सम्मिलित किया है जिससे कि हमारे समाज में स्त्रियों के बारे में फैली भ्रांत धारणा दूर हो सके। इतिहास के इन अनमोल नगीनों से प्रेरणा लेकर वे अपनी बेटियों को भी बल-बुद्धि में इतना ही समर्थ बनायेँ कि आवश्यकता पड़ने पर वे स्वयं की रक्षा करने में समर्थ हो सकें। 

 आजादी के अमृत महोत्सव से प्रेरणा लेते हुए इस संग्रह में मैंने उन 17 वीरांगनाओं की जीवनियों को संग्रहीत किया है जिनके बारे में हमने कम सुना या जाना है। इनमें से किसी का भी त्याग और बलिदान कम नहीं है। इसीलिए मैंने उन्हें नाम के आधार पर नहीं वरन उनके जन्म के आधार सूचीबद्ध किया है।  

 अंत में यही कहना चाहूंगी कि भारत का एक गौरवशाली अतीत रहा है। यह सच है कि कुछ इतिहासकारों ने अपनी विदेशी शिक्षा के प्रभाव कारण हमारे सुनहरे अतीत से छेड़छाड़ ही नहीं की वरन उसे झुठलाने का भी प्रयत्न किया है। विदेशी शिक्षा का ही प्रभाव है कि आज के युवा अपने देश की संस्कृति और परम्पराओं से दूर होते जा रहे हैं। देशप्रेम की जिस अग्नि ने हमें आजादी दिलवाई, उसका आज नितान्त अभाव हो गया है। आज देश को तोड़ने के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। आज लोग अपने स्वार्थ में इतना ड़ूबे हुए हैं कि उन्हें अपना देश नहीं वरन सिर्फ मैं, मेरा परिवार ही नजर आता है। न हम बच्चों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं न उन्हें उचित शिक्षा दे पा रहे है। विदेशी भाषा में ज्ञान देकर हम उन्हें निज देश की प्रगति के लिए नहीं वरन विदेश भेजने के लिए तैयार कर रहे हैं। देश को अटूट रखने के लिए व्यक्ति में, समाज में देशभक्ति की भावना को जाग्रत करना आवश्यक है। आज राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों को आत्मसात करने की आवश्यकता है...भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश से प्यार नहीं।      

 इन सब विरोधाभासों के बीच भी मोहम्मद इकबाल के निम्न शब्द दिल में आस की नन्ही किरण जगा जाते हैं... 

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा,सब मिट गए जहाँ से।

अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।

सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।

Tuesday, September 10, 2024

मोहब्बत की दुकान

 मोहब्बत की दुकान खोलने वाले न जाने राहुल गाँधी देश से और देश के बहुसंख्यकों से इतनी नफरत क्यों करते हैं! 


हिंदू, मुस्लिम, सिखों के बीच सामाजिक समरसता को भंग कर देश में आग लगाने का स्वप्न देखते राहुल गाँधी क्या सचमुच देश का भला करना चाहते हैं?

नहीं... उन्हें किसी तरह सत्ता चाहिए। वह सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

अगर ऐसा न होता तो दूर देश में वह चीन की प्रशंसा न करते। बी. जे. पी. और आर. एस. एस. की बुराई करते हुए वह भूल जाते हैं। 78 वर्षो में बी. जे. पी. ने तो सिर्फ 15 वर्ष शासन किया जबकि शेष वर्षो में कांग्रेस या उसकी समर्थित सरकारों ने शासन किया तब देश में सुधार क्यों नहीं कर पाये। तब तो वे सिर्फ अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने में लगे रहे। अब ज़ब देश आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है तब ये तथा इनका इंडी अलान्स  राह में कीलें ठोकने का प्रयास रहे हैं।

काश! देश के लोग इनकी विभाजनकारी राजनीती को समझें तथा इनकी मोहब्बत की दुकान को बंद कर दें।

Thursday, August 22, 2024

संविधान की हत्या

 कांग्रेस के नेता और वकील के बाद अब तथाकथित किसान नेता राकेश टिकेत ने कहा है कि हत्या देश में तानाशाह नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए बांग्लादेश जैसे हालत पैदा करने होंगे।


समझ में नहीं आता कि लोग नरेंद्र मोदी का विरोध करते -करते देश के विरोध में क्यों आवाज़ उठाने लगते हैं? संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर भी बहुमत न पा सके तो क्या अब चुनी हुई सरकार को बल से गिराना लोकतंत्र है?


जहाँ तक तानाशाही का प्रश्न है, अगर मोदी तानाशाह होते तो क्या इन जैसे लोगों के मुँह से ऐसे शब्द निकल पाते? लोकतंत्र और संविधान की हत्या कौन कर रहा है, यह विचारणीय प्रश्न है।

Wednesday, August 14, 2024

याद करें कुर्बानी

 याद उन्हें भी कर लें 


आज विभाजन विभीषिका दिवस 

कल स्वतंत्रता दिवस 

स्वतंत्रता तो हमने पा ली 

कीमत भी बहुत चुकाई…


आजादी का जश्न मना 

सत्ता भी पाई

करोड़ों ने आहुति दी 

मौज कुछ की ही आई।


देश के दो टुकड़े हुए 

दिलों में दरार पड़ी

लाखों बेघर हुए 

खेली खून की होली। 



आज भी वे ढूंढ़ रहे हैं  पहचान निज की 

सुलग रही आज हर दिल में नफरतों की चिंगारी।


सत्ता के लिए देश के आमजन को धर्म,

बहुसंख्यक,अल्पसंख्यक, अनेक जाति प्रजातियों में  बांटा।

आरक्षण की बाजी चली।


नहीं दिए समान अधिकार

देश का गौरव मातृभाषा, 

स्वार्थो में लिप्त जन-जन 

लुप्त हुई भावना देशभक्ति की।


77 वर्ष कम नहीं होते 

सुधरें, सुधारें...

ईर्ष्या द्वेष को देकर तिलांजलि 

याद कर अनाम शहीदों को 

आज शपथ लें  

बढ़ायेंगे शान तिरंगे की।



© सुधा आदेश