Friday, August 28, 2015

माँ को श्रद्धांजली

आज से छह वर्ष पूर्व की 28-29 अगस्त की वह कालरात्रि जिसने मेरी माँ को मुझसे छीन लिया था...आज फिर से मेरे मनमस्तिष्क में उमड़-घुमड़ कर उस पल को जीवित कर रही है...परिस्थितियाँ कुछ ऐसी थी कि चाहकर भी में उनके अंतिम दर्शन के लिए नहीं पहुँच पाई थी पर उनका हँसता मुस्कराता चेहरा मेरे सम्मुख आकर मेरी मजबूरी को समझते हुये सदा अपना वरदहस्त मेरे सिर पर रखकर मुझे दिलासा देता प्रतीत होता है । माँ के लिए मेरे लिए ज्यादा कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा पर फिर भी माँ के लिए दिल से निकले दो शब्द... माँ का अंश हूँ में, माँ का वंश हूँ में । माँ की अनुकृति हूँ में, माँ का प्रतिबिम्ब हूँ में । पर माँ जैसी सहनशीलता, त्याग बलिदान की भावना क्यों नहीं ? माँ जैसी प्रतिबद्धता वचनबद्धता क्यों नहीं ? रिश्तों के प्रति समर्पण संतुष्टि क्यों नहीं ? भाग रही हूँ अनवरत क्यों और किसके लिए ? समझ पाती जीवन का फलसफा माँ जैसी सौम्य, सरल बन पाती ।

Monday, August 24, 2015

दिलों में बंद आक्रोश जब निकलेगा चिंगारी उड़ेगी ही तुम जलो या मैं फ़र्क़ क्या पड़ता है । फ़र्क़ क्या पड़ता है जब आदमी ही आदमी के ख़ून का हो जाये प्यासा ख़ून बन जाये पानी । ख़ून बन गया है पानी तभी दरिंदगी पर दहशतगर्दों की ख़ून नहीं खौलता । ख़ून खौले भी तो भला खौले कैसे जब हम आस-पास की दुनिया से बेख़बर अपनी ही दुनिया में रम गये हैं ...।