Friday, February 21, 2014
कपास ( रुई )
आज मै पूजा कर रही थी तो रुई की बत्ती को जलते देख अनायास ही मेरा अवचेतन कह उठा...यह दिया तुमने भगवान के घर को प्रकाशित करने के लिए जलाया है या अपने मन के अंधकार को दूर करने के लिए...मुझे सोच मै पड़ा देखकर उसने पुनः कहा...अगर भगवान के घर को प्रकाशित करने के लिए जलाया है तो वहाँ तो प्रकाश ही प्रकाश है, सच्चाई का,ईमानदारी का,मानव मात्र की सेवा का...और अगर अपने मन को प्रकाशित करने के लिए जलाया है...तो क्या आज तक तुम ईर्ष्या,द्वेष, नफरत को त्याग कर मन को निर्मल कर पाई...दिया जलाना है तो जलाओ प्यार का वरना मुझ गरीब( रुई ) को मुक्ति दे दो...व्यर्थ दिखावे के लिए मुझे कष्ट मत दो...मै भगवान के मंदिर में जलने की अपेक्षा कपड़ों के रूप में स्वयं को ढाल कर किसी जरूरतमन्द के शरीर को ढ़क कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहती हूँ...मुझे अपने स्वाभाविक स्वरूप में ही रहने दो मुझे असमय ही विनष्ट मत करो ।
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