मत छेड़ो तान धनश्याम बांसुरी की
आज नहीं है आकांछा किसी को
हँसने झूमने नाचने गाने की....।
सिसक रहा है शैशव आज बंद दरवाजो में ,
क्लब सामाजिक सेवा में व्यस्त ,
माँ को आज नहीं है लालसा ,
बांहों के झूले लोरी सुनने की....।
मत छेड़ो तान ....
भारी बोझ तले दबा बचपन ,
भूल गया घरोंदे बनाना,
नावे चलाना,हँसना रोना औ मचलना,
आज नहीं है अभिलाषा माखन चुराने की....।
मत छेड़ो तान....
अलबेला,मस्ताना,मदहोश योवन
भूलकर सावन के झूले ,
जूझ रहा जीवन संग्राम में निज पहचान बनाने की,
आज नहीं है उसे तृष्णा रास रचाने की....।
मत छेड़ो तान....
रिश्तों के नर्म नाजुक धागों को ,
सहेजने के प्रयास में रीत रहा बुढ़ापा ,
नहीं मिला अवकाश उसे ,
जीवन के बीहड़ जंगल से मुक्ति पाने का....।
मत छेड़ो तान धनश्याम बांसुरी की.....
आज नहीं है आकांछा किसी को
हँसने, झूमने , नाचने गाने की....।
आज नहीं है आकांछा किसी को
हँसने झूमने नाचने गाने की....।
सिसक रहा है शैशव आज बंद दरवाजो में ,
क्लब सामाजिक सेवा में व्यस्त ,
माँ को आज नहीं है लालसा ,
बांहों के झूले लोरी सुनने की....।
मत छेड़ो तान ....
भारी बोझ तले दबा बचपन ,
भूल गया घरोंदे बनाना,
नावे चलाना,हँसना रोना औ मचलना,
आज नहीं है अभिलाषा माखन चुराने की....।
मत छेड़ो तान....
अलबेला,मस्ताना,मदहोश योवन
भूलकर सावन के झूले ,
जूझ रहा जीवन संग्राम में निज पहचान बनाने की,
आज नहीं है उसे तृष्णा रास रचाने की....।
मत छेड़ो तान....
रिश्तों के नर्म नाजुक धागों को ,
सहेजने के प्रयास में रीत रहा बुढ़ापा ,
नहीं मिला अवकाश उसे ,
जीवन के बीहड़ जंगल से मुक्ति पाने का....।
मत छेड़ो तान धनश्याम बांसुरी की.....
आज नहीं है आकांछा किसी को
हँसने, झूमने , नाचने गाने की....।