दर्द के सैलाब से गुजर कर मोती पाने की आकांक्षा की जिसने वही कहलाई माँ ।
रात भर जागकर, बाहों के झूले में झुलाकर, लोरी सुनकर ममत्व का अनिवर्चनीय आनंद पाया जिसने वही कहलाई माँ।
रोये तो रोई, हँसे तो हँसी, छोटी से छोटी सफलता पर हमारी बलैया लेते-लेते न थकी,वही कहलाई माँ।
न कोई चाहना, न कोई पावना गुजरता रहा हर पल जिसका साधना में, वही कहलाई माँ ।
हाथ देते रहे अभयदान आँचल उलीचता सदा आशीर्वाद, अनोखी रचना ईश्वर की वही कहलाई माँ ।