Thursday, October 17, 2013
पुष्प ( बारह वर्ष की उम्र में लिखी मेरी पहली कविता जिसे बाल कवि प्रतियोगिता में सांत्वना पुरुस्कार मिला था )
यवनिका की ओट में
एक पुष्प मुस्करा रहा
तभी झोंका
एक आया वायु का,
पुष्प की
पंखुड़ियाँ हो गई विलग,
अपनी इस दुर्दशा पर
होकर व्यथित
लगा सोचने...
हे ईश्वर!
न दे किसी को
ऐसा सौन्दर्य, घमंड
जो हो क्षणभंगुर... ।
Tuesday, October 15, 2013
अपेक्षा
अपेक्षाये बोलती है,अपेक्षाये कोसती है,
अपेक्षाओ पर बस नहीं,इनसे कोई मुक्त नहीं ।
अपेक्षाये नहीं तो कोई समस्या ही नहीं,
जीवन संबंधों में आए आमावस्या नहीं ।
अपेक्षाओ को हवा न दे दिल
मत छीन सुकून के पल दो पल ।
अपनी समस्याओ का हल स्वयं ढूँढ बंदे
अपेक्षाये न कर कल,आज या कल ।
अपने हो जायेंगे पराए,संबंधों मे लगेगी जंग
जीना है तो जी,जीत ही लेगा ज़िंदगी की जंग ।
Monday, October 14, 2013
जीवन
जुगनू सा कभी जलता कभी बुझता रहा जीवन,
तितली सा कभी हँसता कभी उड़ता रहा जीवन ।
तूफानों ने कभी रोका मार्ग,आंधियों ने कभी बिखरा दिया तन-मन,
चिड़िया सा चुन-चुनकर तिनका-तिनका सँवरता रहा जीवन ।
तरिणी की तपिश ने कभी तपाया,ज्योत्नेश की ज्योत्सना ने कभी सहलाया,
पग में कभी चुभे कांटे,लौह सा कुन्दन बन निखरता ही गया जीवन ।
फूल सा कभी महकता, कभी मुरझाता गया जीवन,
नदिया सा फिर भी निरंतर बहता ही गया जीवन ।
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