Tuesday, January 1, 2013

श्रद्धांजली

अनाम सी अंजान सी वह मासूम कली, मसली गई दरिंदगी की हद तक... मानवता सहमी, जली,रोई सिसक-सिसककर, भावनाओं,संवेदनाओं का उमड़ा जनसेलाब, अंधा कानून आज फिर कटघरे में खड़ा है... अनेकों शायद की तरह एक शायद और... क्या मिल पाएगा पीड़िता को या ऐसी ही मसली जाती अन्य अभागन कलियों को न्याय...

औरत की ज़िंदगी

औरत की ज़िंदगी... कभी सुबह, कभी शाम है औरत की ज़िंदगी, नर्म रेशमी एहसास है औरत की ज़िंदगी...। रिश्तों के अजीब चक्रव्वुह में फंसी औरत की ज़िंदगी, फिर भी सदा अलग-थलग बेजार औरत की ज़िंदगी... । आदि से अंत तक पहेली रही औरत की ज़िंदगी, पली कहीं सजी कहीं, बेआवाज,बेजुबान औरत की ज़िंदगी...। जननी बनी नाम न दे पाई,बेनाम औरत की ज़िंदगी,