अनाम सी अंजान सी
वह मासूम कली,
मसली गई
दरिंदगी की हद तक...
मानवता सहमी,
जली,रोई सिसक-सिसककर,
भावनाओं,संवेदनाओं का
उमड़ा जनसेलाब,
अंधा कानून
आज फिर कटघरे में खड़ा है...
अनेकों शायद की तरह
एक शायद और...
क्या मिल पाएगा
पीड़िता को
या ऐसी ही
मसली जाती
अन्य अभागन
कलियों को न्याय...