Saturday, May 9, 2015

जीवन अनंत

अपनी बात जीवन अनंत है, निरंतरता ही जीवन है...जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आते है, कभी अपनों के द्वारा दिये दुख की पीड़ा हमें सोने नहीं देती तो कभी सुख के पल अपनों से दूर होने की वजह बनते जाते है...दूरी और क्षणिक दुख की पीड़ा तो इंसान सह भी ले पर जो पीड़ा जब-तब इंसान की किसी कमी की ओर इंगित करते हुए पैदा की गई हो,जिस पर इंसान का कोई वश न हो...मर्मांतक होती जाती है । इंसानी जीवन की सबसे बड़ी कमी है विकलांगता... इस कमी से पीड़ित व्यक्ति को न केवल अपने कार्यकलापों में अनेकों प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है वरन दुनिया की हीन दृष्टि से भी दो चार होना पड़ता है...अगर उसे अपने घर वालों का सहयोग मिलता है तो वह काफी हद तक सामान्य जीवन जीने का प्रयास करता हुआ जीवन में आगे बढ़ता जाता है वना उसका जीवन अबूझ ससर की अंधेरी सुरंगों में खोने लगता है...ऐसा व्यक्ति न केवल स्वयं के लिए वरन समाज के लिए भी बोझ बनने लगता है...समाज की दूषित सोच, यह सोच या समझ नहीं पाती कि अगर व्यक्ति की एक इंद्रिय कम नहीं करती तो उसकी अन्य इंद्रियाँ अधिक सक्रिय होती जाती है, अगर उसे उसकी सामर्थ्य के अनुसार कार्य करने का अवसर प्रदान किया जाये तो वह अद्भुत कार्य कर सकता है । यह तो हुई विकलांगता की बात पर अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति केवल रंगभेद, नस्लभेद या बलात्कार के कारण अपनों तथा समाज की दुर्भावना का शिकार होकर अपना आत्मविश्वास खोने लगे तो यह हमारी खोखली सोच को ही दर्शाता है...ऐसे इंसान को हेय या दया दृष्टि से देखना...उसे अपने परिवार का अंश मानने से इंकार करना एक एसी मानसिकता है जो मानव दर्शन और जीवन के सिद्धांतों के विपरीत है...मानव जीवन समानता के सिद्धांतों पर खड़ा है...व्यक्ति को समान अधिकार मिले, यह प्रत्येक इंसान का मौलिक अधिकार है फिर विरोधाभास क्यों ?