Wednesday, December 13, 2017

ख़ूबसूरत ज़िंदगी मिली, जी नहीं पाये पता नहीं क्यों ?

ख़ूबसूरत ज़िंदगी मिली जी नहीं पाये पता नहीं क्यों ? आँखों में अनेकों हसरतें पलती रहीं अधूरी रहीं, पता नहीं क्यों ? लबों पर शब्द अटके रहे कह नहीं पाये पता नहीं क्यों ? पाँव थिरकने को आतुर हुये थिरक नहीं पाये पता नहीं क्यों ? झिझक थी या मजबूरी रही अनबूझ पहेली पता नहीं क्यों ? उलझा रहा जीवन कर्तव्यों के जंगल में उबर नहीं पाये पता नहीं क्यों ? कल इतिहास बन जायेगी ज़िंदगी जी लूँ, मन में द्वन्द पता नहीं क्यों ?