Saturday, December 5, 2020

मोबाइल में गाँव

 



     


ट्रेन का सफर-1


सुनयना को जैसे ही उसके ममा-पापा ने बताया कि इस बार क्रिसमस की छुट्टियों में उसके दादाजी के पास ट्रेन से गाँव जायेंगे, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा । जबसे स्कूल के एजुकेशन ट्रिप पर गाँव घूमकर आई उसके अपार्टमेंट में रहने वाली उसकी बेस्ट फ्रेंड श्रेया ने उसे गाँवों के बारे में बताया था  तबसे उसकी गाँव घूमने जाने की इच्छा थी । आखिर पापा ने उसकी गाँव जाने तथा ट्रेन में बैठने की इच्छा पूरी कर ही दी । 


उसके ममा-पापा जब भी कहीं जाते, समय बचाने के लिये हवाई जहाज से ही जाते थे किंतु इस बार सुनयना की इच्छा का मान रखते हुये उसके ममा-पापा ने दिल्ली जाने के लिये संपर्क क्रांति एक्सप्रेस ट्रेन से रिजर्वेशन करा लिया था । गाँव घूमने की खुशी के साथ ट्रेन की यात्रा तथा रोहन से मिलने की खुशी, उसके उत्साह को दुगणित कर रही थीं । पिछली बार जब वह गाँव गई थी तब रोहन छोटा था, ठीक से बोल भी नहीं पाता था । पिछले महीने वह छह वर्ष का हो गया है । इस बार वह उसके साथ बात भी करेगा और खेलेगा भी । 


पिछली बार जब वह गाँव गई थी तब छोटी थी, उसे ज्यादा कुछ याद नहीं है । इस बार ममा ने उसे उसके सामान के लिये एक अलग सूटकेस दिया है । अपना अलग सूटकेस पाकर सुनयना इतनी खुश हुई कि उसने अपनी पैकिंग भी स्वयं की । अपने बैक पैक में उसने ट्रेन में पढ़ने के लिये कहानी की कुछ किताबें, पेन, डायरी, फोटो खींचने का अपना शौक पूरा करने के लिये पापा का पुराना मोबाइल, बाइनोकुलर  तथा रोहन के लिये ढेर सारी चाकलेट भी रख लीं ।


                आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें चलना था । उनका टू टायर ए.सी. में रिजर्वेशन था । उन्हें ट्रेन में बिठाकर पापा पानी लेने के लिये ट्रेन से नीचे उतर गये । दरअसल मम्मी पानी की बोतल रखना भूल गई थीं । सुनयना ट्रेन के शीशे से स्टेशन की चहल-पहल देखने लगी...उनकी ट्रेन के सामने दूसरे प्लेटफार्म पर दूसरी ट्रेन खड़ी थी । ट्रेन के चलने के इंतजार में कुछ लोग खड़े थे । चाय, फल तथा मैगजीन के स्टाल लगे हुये थे । अपनी आवश्यकता की चीजें खरीदकर कोई ट्रेन में चढ़ रहा था तो कोई वहीं खड़े-खड़े खा रहा था । अभी वह प्लेटफार्म की चहल-पहल देख ही रही थी कि अचानक उसने कहा…              


 ‘ माँ हमारी ट्रेन चल दी है । पापा अभी तक नहीं आये ।’


    ‘ क्या...? ’ नलिनी ने चौंककर दूसरी ओर ट्रेन के शीशे से बाहर की ओर देखा ।


    ‘ बेटा, हमारी ट्रेन नहीं वरन् सामने वाली ट्रेन जा रही है । बाहर देखो सामने खड़ी ट्रेन चली गई है और हमारी ट्रेन रूकी हुई है ।’ सुनयना को परेशान देखकर नलिनी ने उसे समझाते हुए कहा ।


       सुनयना ने ममा के कहने पर बाहर देखा । सचमुच ट्रेन जाने के कारण प्लेटफार्म खाली था । आश्चर्य से उसने पूछा, ‘ ममा, फिर मुझे ऐसा क्यों लगा ? ’


    ‘ बेटा, ऐसा सापेक्ष गति ( relative velocity ) के कारण होता है ।’


       ‘ सापेक्ष गति...यह क्या होता है माँ ।’


     ‘ बेटा, हम अपनी जगह पर बैठे-बैठे अगर किसी चलती वस्तु को लगातार देखते रहें तो कुछ क्षण के लिये हमें लगेगा कि हम चल रहे हैं जबकि ऐसा नहीं होता । ऐसा हमें उस वस्तु के चलने के कारण लगता है ।’


      ‘ ऐसा क्यों ? ’


        ‘ यह भ्रम हमें सापेक्ष गति के सिद्धान्त के कारण होता है । जिसकी गति ज्यादा होगी वह हमसे आगे बढ़ती जायेगी और हम पीछे होते जायेंगे जिसके कारण हमें अपने चलने का आभास होगा ।’


        ‘ क्या हुआ ?’ अभय ने आकर पूछा ।


        ‘ पापा, माँ मुझे सापेक्ष गति के बारे में बता रही थीं जिसके कारण मुझे अपनी ट्रेन रूकी होने के बावजूद चलती नजर आ रही थी । ’


      ‘ ट्रेन में भी पढ़ाई...। ’ अभय ने नलिनी की ओर देखते हुये कहा ।


     ‘ मैं तो सुनयना के प्रश्न का उत्तर दे रही थी । अब यह हर चीज जानना और समझना चाहती है तो क्या उसे बताना गलत है ? ’ ममा ने खीजते हुये कहा ।


      ‘ अरे,  तुम तो नाराज हो गईं । वह तो मैंने ऐसे ही कह दिया है । बच्चों की हर जिज्ञासा को हल करना हमारा कर्तव्य है । वैसे भी सुनयना की यह विशेषता ही तो इसे अन्य बच्चों से विशेष बनाती है ।’ पापा ने कहा ।


     ‘ पापा, सामने प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन को चलते देखकर मुझे लगा कि हमारी ट्रेन चल पड़ी है । आप नहीं आये थे । मैं बहुत घबरा गई थी पापा । जब मम्मी को मैंने अपनी बात बताई तब माँ ने मुझे बताया मुझे ऐसा सापेक्ष गति के कारण महसूस हो रहा था ।’ पापा की बात समाप्त होते ही सुनयना ने कहा ।


      ‘ मेरी बेटी, मुझसे इतना प्यार करती है, मुझे पता ही नहीं था ।’


         ‘ आई लव यू टू मच पापा ।’


       ‘ आई लव यू टू बेटा ।’ कहते हुये पापा ने उसे कुछ बाल पत्रिकाओं  के साथ चाकलेट एवं ममा के लिये लाई कुछ मैगजीन उन्हें देते हुये कहा ।


     ‘ थैंक यू पापा ।’ चाकलेट और पत्रिकायें सुनयना ने अपने बैग में रखते हुये कहा ।

                

         ‘ लो अपनी ट्रेन भी चल दी ।’ ममा ने उन दोनों की ओर देखते हुये कहा । 


        ममा के कहने पर सुनयना ने खिड़की के बाहर देखा । इस बार उनकी ट्रेन सचमुच चल दी थी । सुनयना खिड़की के शीशे से बाहर देखने लगी । प्लेटफार्म पर खड़े लोग, मैगजीन, चाय, फल के स्टाल पीछे छूटते जा रहे थे । धीरे-धीरे ट्रेन प्लेटफार्म छोड़कर आगे बढने लगी । घर, हरे-हरे पेड़, सबको पीछे छोड़कर ट्रेन लगातार आगे बढ़ रही थी । वह विंडो सीट पर बैठी थी क्योंकि खिड़की से बाहर का दृश्य देखना उसे बेहद अच्छा लग रहा था । 


      ‘ चाय...।’


     चाय वाले की आवाज ने उसके विचारों को रोका । पापा ने दो चाय लीं । उनके साथ ही सामने वाले अंकल ने भी चाय ली । सब चाय पीने लगे । उसे माँ ने बैग से निकालकर फ्रूटी का पैकेट दे दिया तथा अपने लिये बिस्कुट का पैकेट निकाल लिया । चाय पीकर माँ-पापा ने चाय के कपों को बैग से निकाली एक थैली में रख दिया । सुनयना ने भी जूस पीकर खाली पैकेट को उसी थैली में डाल दिया । थोड़ी देर पश्चात् सुनयना ने देखा कि सामने वाले अंकल ने चाय पीकर चाय का खाली कप सीट के नीचे रख दिया । सुनयना से रहा न गया उसने उठकर उनके खाली कप को उठा लिया…


      ‘ अरे, क्या कर रही हो बेटी ?’ उसे ऐसा करते देखकर सामने बैठे अंकल ने कहा ।


      ‘ अंकल मैं इसे डस्टबिन में डालकर आती हूँ ।’ सुनयना ने कहा ।


          ‘ रहने दो बेटी, खाना खाने के बाद मैं सारा कचरा एक साथ डस्टबिन में डाल दूँगा ।’ अंकल ने उसे रोकते हुये कहा ।


        ‘ खाना खाने में तो अभी बहुत समय है अंकल, अगर कप गिर गया तो बची चाय हमारे कैबिन को गंदा कर देगी ।’ सुनयना ने उत्तर दिया ।


      ‘ आजकल बच्चे स्वच्छता के प्रति हमसे ज्यादा जागरूक हो गये हैं । बेटी, कप को इसमें डाल दे ।’ सहयात्री को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश करते हुये माँ ने अपना डस्टबिन वाला बैग आगे कर दिया ।


      बाहर अँधेरा होने लगा था किन्तु पूरे डिब्बे में चहल-पहल थी । वह ममा को कहकर फ्रेश होने के लिये जाने लगी । ममा ने कहा मैं चलूँ तो उसने मना कर दिया क्योंकि ट्रेन में चढ़ते समय ही उसने टायलेट लिखा देख लिया था । उसने गैलरी में खड़े होकर दोनों ओर देखा । प्रवेश द्वार के ऊपर एक तरफ दो रेड लाइट जल रही थीं वहीं एक तरफ एक रेड लाइट थी तो एक ग्रीन । इसका अर्थ है इस तरफ एक टायलेट खाली है वह उधर ही चल दी । उसका सोचना ठीक था वह फ्रेश होकर आई तो देखा कोई ताश खेल रहा है तो कोई पढ़ रहा है । कोई मोबाइल पर गेम खेल रहा है तो कोई अपने लैपटॉप में मूवी देख रहा है । तभी उसकी निगाह एक लड़की पर पड़ी । वह उसकी ही उम्र की थी वह आई पैड पर वीडियो देख रही थी । पता नहीं उसे क्या हुआ वह उसके पास खड़ी होकर उस वीडियो को देखने लगी । उस वीडियो में कागज के गुलाब के फूल बनाना सिखाया जा रहा था । उसे अच्छा लग रहा था, वह उसे वहीं खड़े-खड़े देखने लगी ।


         ‘ क्या नाम है तुम्हारा ?’ उसे वीडियो देखते देखकर उस लड़की के पास बैठी औरत ने पूछा ।


        ‘ जी, सुनयना ।’ उसने सकपकाकर कहा ।


       ‘ बैठकर देख लो बेटा । मनीषा इसे भी अपने पास बिठा लो ।’ मनीषा की ममा ने मनीषा से कहा ।


        ‘ थैंक यू आँटी...।’


       उसे लगा कि अब उसे डाँट पड़ेगी । शायद आँटी का उसका ऐसे खड़े होना पसंद नहीं है पर उन्होंने तो बड़े प्यार से उसे बैठने के लिये कहा । अपनी ममा की बात मानकर मनीषा ने भी थोड़ा खिसककर उसे बैठने की जगह दे दी । वह बैठकर वीडियो देखने लगी । वीडियो समाप्त होने पर सुनयना ने पूछा, ‘ क्या तुमने कभी कागज के फूल बनाये हैं ?’


      ‘ दूसरे तो बनाये हैं पर ये वाला नहीं । अब घर जाकर बनाऊँगी ।’ मनीषा ने कहा ।


   ‘ और क्या-क्या बनाती हो ?’ सुनयना ने पूछा ।

       ‘ मैं पेंटिंग बनाती हूँ ।’ कहते हुये वह आई पैड की कैमरा गैलरी खोलकर उसे अपनी बनाई पेंटिंग दिखाने लगी ।


       ‘ वाह ! बहुत सुंदर ...तुमने किससे सीखीं ?’ सुनयना ने कृष्णजी, राधा कृष्ण तथा पेंसिल से बने अन्य स्केचों को देखकर कहा ।


   ‘ मैं गुगल में सर्च कर कोई भी अच्छी पेंटिंग ढूँढती हूँ फिर उसे बनाने की कोशिश करती हूँ । अगर मुझे कोई कठिनाई आती है तो ममा से हैल्प लेती हूँ...वह बहुत अच्छी पेंटिंग बनातीं हैं ।’ कहते हुये उसकी आँखों में चमक थी । 


    ‘ मेरी ममा भी कंप्यूटर इंजीनियर हैं । उनकी वजह से ही मेरे कंप्यूटर में अच्छे नंबर आते हैं । पर वह मुझे मोबाइल बहुत कम देतीं हैं । वह कहतीं हैं ज्यादा आई पैड या मोबाइल की जगह पढ़ने की आदत डालो...जितना तुम पढ़ोगी उतनी तुम्हारी भाषा अच्छी होगी । भाषा अच्छी होगी तो तुम हर विषय में अच्छा करोगी । अतः मैं मोबाइल कम यूज करती हूँ । ’ सुनयना ने कहा ।


       ‘ मनीषा कुछ सीखो, मैं भी तो यही कहतीं हूँ पर तुम सुनती ही नहीं हो ।’ मनीषा की ममा जो उनकी बात सुन रही थीं उन्होंने सुनयना की बात सुनकर कहा ।


       ‘ ममा मैं इसमें देखकर कुछ सीखती ही हूँ । सीखना तो बुरा नहीं है । वैसे भी आप दिन में सिर्फ एक या डेढ़ घंटे ही तो मुझे आई पैड या मोबाइल देतीं हैं ।’ मनीषा ने रूआंसे स्वर में कहा ।


        ‘ ओ.के...। बेटा तुम किस क्लास में पढ़ती हो ?’


      ‘ सिक्थ क्लास में...।’


     ‘ अरे वाह ! मैं भी सिक्थ क्लास में पढ़ती हूँ ।’ मनीषा ने उसकी ओर देखते हुये कहा 

     ‘ तुम्हारी क्या हॉबी है ?’ मनीषा की ममा ने पुनः पूछा ।


     ‘ आँटी, मुझे कहानी पढ़ना और सुनाना अच्छा लगता है । कभी-कभी स्टोरी वाले वीडियो भी इसलिये देखती हूँजिससे स्टोरी सुनाते हुये कभी अपना वीडियो बनाऊँ । एक दो बार ट्राइ किया पर उस जैसा नहीं बन पाया ।‘ आँटी इसके अलावा मुझे फोटो खींचने का भी बहुत शौक है । इसलिए पापा ने मुझे अपना पुराना मोबाइल भी दे दिया है । ‘ मायूस स्वर में सुनयना ने कहा ।


       ‘ बेटा, बहुत अच्छी हॉबी है । कोशिश करती रहो । एक दिन जैसा तुम चाहती हो वैसा हो जायेगा ।’


   ‘ ममा मैं भी फूल बनाते हुये वीडियो बनाने की कोशिश करूँगी । मेरी सहेली नमिता ने गाने का एक वीडियो यू टियूब में अपलोड किया है । उसे अब तक 540 लोग देख चुके हैं ।’


        ‘ अच्छा तुम यहाँ बैठी हो, मैं तो घबरा ही गई थी ।’ सुनयना की ममा ने उसे देखकर कहा ।


      ‘ बच्चों को भी अपनी कंपनी चाहिये, मनीषा को देखकर आपकी बेटी सुनयना भी यहीं बैठ गई ।’ मनीषा की मम्मी ने उसकी मम्मी से कहा ।


    ‘ आप ठीक कह रही हैं । मेरा नाम नलिनी है और आप ?’


     ‘ मैं केतकी...हम मुंबई में बांद्रा में रहते हैं और आप...।’


     ‘  हम भी बांद्रा में रहते हैं । छुट्टियों में अलीगढ़ सुनयना के दादा-दादी के पास जा रहे हैं ।’


       ‘ अलीगढ़...अलीगढ़ से मेरी बहुत यादें जुड़ी हुई हैं । मेरे नानाजी का अलीगढ़ में ताले का व्यवसाय था पर उनके जाने के बाद वहाँ से नाता ही टूट गया । ’ केतकी ने दुखी स्वर में कहा ।


        ‘ ताले का व्यवसाय...अलीगढ़ तो ताले के लिये ही प्रसिद्ध है ।’ नलिनी ने कहा ।


       ‘ आप ठीक कह रही हैं । अलीगढ़ जैसे मजबूत ताले आज भी कहीं नहीं मिलेंगे ।’ केतकी ने कहा ।


      ‘ आप कहाँ जा रही हैं ?’ नलिनी ने पूछा ।


    ‘ हम मेरठ जा रहे हैं । मनीषा के नाना-नानी के पास । एक यही समय मिलता है कहीं आने जाने के लिये जब मौसम अच्छा होता है वरना गर्मी में तो कहीं आना जाना ही संभव नहीं है ।’ केतकी ने उत्तर दिया ।


       ‘ अरे, मैं आई थी सुनयना को ढूँढने के लिये...किन्तु स्वयं भी यहीं बैठ गई । ये भी सोच रहे होंगे, माँ बेटी पता नहीं कहाँ चली गईं । सुनयना मैं चलती हूँ , तुम आ जाना । बाय केतकी...। ’


        ‘ जी ममा ।’ कहकर सुनयना मनीषा से बातें करने लग गई ।


       सुनयना और मनीषा ने स्कूल की पढ़ाई से लेकर, अपने दोस्तों के बारे में बातें की । कुछ देर अंताक्षरी खेली फिर आई पैड खोलकर उसमें सुडोको गेम खेलने लगीं । तभी कोच में खाना परोसा जाने लगा । यह देखकर सुनयना ने देखकर कहा,‘ अब चलती हूँ । ममा इंतजार कर रही होंगी । ’


         ‘ ओ.के...तुमसे मिलकर अच्छा लगा । अपना कान्टेक्ट नम्बर दे दो जिससे हम फिर कभी मन हो तो बात कर सकें ।’ 


       फोन नम्बरों के आदान प्रदान के पश्चात् सुनयना अपनी सीट पर लौट आई । ममा मैगजीन पढ़ रही थीं वहीं पापा चाचा से बात कर रहे थे । वह अपने बैग से ‘ पंचतंत्र की कहानी ’ निकालकर पढ़ने लगी । उसी समय टिकिट चेकर अंकल आकर टिकिट चैक करने लगे । 


टिकिट चेकर अंकल के जाने के बाद पापा और सामने वाले अंकल बातें करने लगे । दूसरे कैबिन से भी लोगों के बात करने की आवाजें आ रही थीं । धीरे-धीरे खाने का समय हो गया । ममा को खाना बैग से निकालते देखकर उसने पढ़ना बंद कर दिया । उसे खाने की प्लेट पकड़ाने से पहले ममा ने उसे सैनीटाइजर की शीशी देते हुये हाथ सैनीटाइज करने के लिये कहा । ममा ने उसे प्रारंभ से ही हाथ धोकर खाने की शिक्षा दी है । बाहर निकलने पर कहीं हाथ धोने की सुविधा मिलती है कहीं नहीं अतः ममा सैनीटाइजर की बोतल न केवल अपने बैग में रखतीं हैं वरन् उसके स्कूल बैग में भी रख देतीं हैं ।


       हाथ सैनीटाइज करवाने के पश्चात् ममा ने उसे तथा पापा को एक-एक पैकेट देने के साथ एक पेपर नैपकिन तथा सीट पर बिछाने के लिये एक पेपर भी दिया । पैकेट खोलते ही अपनी मनपसंद चिली पनीर के साथ पूरी देखकर वह खुशी से भर उठी ।


     वाउ, वेरी टेस्टी...।’ कहकर उसने अपनी खुशी जताई ।


       ‘ आराम से खाना, गिराना नहीं, नहीं तो सीट गंदी हो जायेगी । इसी पर हमें सोना भी है ।’ ममा ने सुनयना से कहा ।


       खाना खाकर माँ, पापा तथा उसने अपनी-अपनी प्लेट डस्टबिन वाले बैग में डाल दीं । ममा उसे उठाकर ट्रेन के डस्टबिन में डालने ही जा रही थीं कि दो आदमी एक बड़ा सा डस्टबिन बैग लेकर आ गये । ममा ने अपना डस्टबिन गैग उसमें डाल दिया ।


      ‘ अब ट्रेन में भी सफाई रहने लगी ।’ पापा ने ममा से कहा ।


      ‘ सचमुच, इतनी ही देर में एक बार झाड़ू भी लगा चुका है । बाथरूम भी पहले की अपेक्षा साफ हैं । टायलेट पेपर तथा हैंडवाश भी रखा है और तो और मग के साथ हैंड स्प्रे वाश का भी आप्शन है ।’


      ‘ ममा क्या पहले ट्रेन में सफाई नहीं होती थी ?’ सुनयना ने पूछा ।


       ‘ होती थी बेटा पर लोग खाकर, खाने के रैपर इधर-उधर फेंक देते थे । अब लोग भी जागरूक हो रहे हैं इसलिये ट्रेन भी साफ रहने लगी हैं ।’ नलिनी ने उसके प्रश्न का समाधान करते हुये कहा । 


        सामने वाले अंकल पहले ही खा चुके थे । सोने का समय हो ही रहा था अतः माँ-पापा ने मिलकर ट्रेन की सीट पर चादर बिछाई । ममा ने उसे पेस्ट लगाकर ब्रश दिया, ब्रश करके केबिन का पर्दा खींचकर वे अपनी-अपनी सीट पर लेट गये पर उसे नींद नहीं आ रही थी वह ऊपर की सीट पर लेटकर अपनी कहानी की किताब पढ़ने लगी ।

       सोने के पहले सुनयना को लगा कि उसे बाथरूम जाना है । वह नीचे उतरी तो देखा पूरी गैलरी सुनसान है  । सब सो रहे हैं । बल्ब तो जल रहा है किन्तु न जाने क्यों उसे डर लगने लगा । उसने ममा को जगाया । चलती ट्रेन की घड़घडा़हट, रात का अंधेरा...ममा का हाथ पकड़कर भी बाथरूम जाने में सुनयना को घबडाहट हो रही थी । जब वह लौट रही थी तो पर्दे पड़े होने के कारण उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनका कैबिन कौन सा है । उसने अपने मन की शंका ममा को बताई तो उन्होंने कहा हमारा कैबिन प्रवेश द्वार से चौथा है । ममा की बात सुनकर उसने चैन की सांस ली । उसे लग रहा था माँ को उठाकर उसने अच्छा किया वरना वह पता नहीं अपना कैबिन ढूँढ पाती या नहीं ।

.......


    सुबह चाय वाले की आवाज सुनकर सुनयना की आँख खुल गई । ममा की सीट की ओर देखा । वह अपनी सीट पर नहीं थीं...शायद वाशरूम गई होंगी, सुनयना ने सोचा ।


     ‘ जग गई हो तो तुम भी फ्रेश हो लो । अभी बाथरूम खाली है । ‘ वाशरूम से आकर ममा ने उसे पेस्ट लगाकर टूथब्रश पकड़ाते हुए कहा ।


       ‘ ममा दिल्ली कब आयेगा ?’ सुनयना ने ब्रश लेते हुये पूछा ।


       ‘ अभी तो बहुत समय है । लगभग दो बजे हम दिल्ली पहुँचेंगे ।’


        ‘ अभी कितना बजा है ।’


          ‘ सात...।’


           ‘ ओ.के. ।’ 


         सुनयना टॉवल लेकर वाशरूम चली गई । लौटकर आई तो देखा पापा अभी भी सो रहे हैं तथा ममा भी सोने की कोशिश कर रही हैं । वह भी अपनी सीट पर लेटकर सोने की कोशिश करने लगी ।  


         ‘ उठो सुनयना नाश्ता कर लो ।’ ममा ने उसे उठाते हुये कहा ।


       सुनयना नाश्ता कर ही रही थी कि मनीषा आ गई ।


        ‘ आओ बेटा, बैठो.. तुम भी नाश्ता कर लो । ’ ममा ने उसको नाश्ते का पैकेट देते हुये कहा ।


        ‘ थैंक यू आँटी मैं नाश्ता करके आई हूँ ।’ मनीषा ने नम्रता से कहा ।


       ममा के आग्रह करने पर मनीषा ने एक सेंडविच ले ही लिया । नाश्ता करके वे दोनों ऊपर की सीट पर चली गईं तथा बातें करने लगीं । थोड़ी देर अंताक्षरी खेलकर शहरों के नाम की अंताक्षरी खेलने लगीं । उससे मन भर गया तो सुनयना ने मैगजीन निकाली तथा उसमें पहेलियाँ हल करने लगीं इस बीच दोनों ने कई फोटो भी खींची । उन दोनों को शांति से खेलते देखकर नलिनी को बहुत अच्छा लग रहा था ।  


       ‘ मनीषा चलो खा लो, सुबह से तुमने कुछ नहीं खाया है ।’


       ‘ मनीषा तो कह रही थी कि मैंने नाश्ता कर लिया है ।’ नलिनी ने चौंककर कहा ।


       ‘ नलिनीजी, पता नहीं इसे भूख ही नहीं लगती है, ऐसे ही बहाने बनाती रहती है । बस दो पीस ब्रेड सैंडविच खाया था ।’

       

     ‘ ममा मैंने जूस भी तो पीया था...।’ मनीषा ने कहा ।


       मनीषा अपनी ममा के साथ चली गई जबकि उसका जाने का मन नहीं था । केतकी की बात सुनकर नलिनी सोच रही थी कि पता नहीं क्यों कुछ माँओं को सदा यही क्यों लगता रहता है कि उसके बच्चे ने कुछ नहीं खाया है । पूरे समय उसके खाने के पीछे पड़ी रहतीं हैं । अरे ! बच्चे को भूख लगेगी तो वह खायेगा ही...। बार-बार उससे कहने से कि तुम तो कुछ खाते ही नहीं हो, क्या उसे खाने से ही वितृष्णा नहीं होती जायेगी ?


       एक बजने वाला था । नलिनी ने खाना परोस दिया । खाना खाकर उन्होंने सामान की पैकिंग कर ली तथा सुनयना से भी अपना सामान ठीक से पैक करने के लिये कह दिया । उसने भी ऊपर की सीट पर जाकर अपना पूरा सामान पैक कर लिया ।


       लगभग दो बजकर पंद्रह मिनट पर उनकी ट्रेन दिल्ली पहुँची । जहाँ हमारा डिब्बा रूका, उसी के सामने अजय चाचा खड़े थे । ट्रेन रूकते ही चाचा अंदर आ गये ।  पापा और चाचा ने मिलकर सामान उतारा । उसने अपना बैग कंधे पर टाँग लिया । उसी समय मनीषा भी अपनी ममा-पापा के साथ उतरी । उन दोनों एक दूसरे को बाय कहा तथा अपना-अपना सामान समेटने लगे । पापा और चाचा सामान लेकर चलने लगे वहीं वह ममा का हाथ पकड़कर उनके पीछे-पीछे चल रही थी । बहुत लंबा प्लेटफार्म था । अंततः वे स्टेशन से बाहर निकलकर कार पार्किग एरिया में आये ।


2



                     गाँव की ओर -2


पापा चाचा ने मिलकर सामान अपनी गाड़ी में रखा । दिल्ली से अलीगढ़ तथा अलीगढ़ से कासिमपुर का रास्ता तय करने में लगभग चार घंटे का समय लगना था । गाड़ी चलाते ही चाचा ने पूछा,‘ हमारी नन्हीं गुड़िया को ट्रेन का सफर कैसा लगा ? बोर तो नहीं हुई ।


        ‘ नहीं चाचाजी, मुझे तो बहुत अच्छा लगा । प्लेन में पता ही नहीं लगता है कि हमने यात्रा की है । सबसे अच्छी बात तो यह रही चाचाजी कि ट्रेन में मुझे एक बहुत अच्छी सहेली मिल गई । पता है हमने एक दूसरे का नम्बर भी ले लिया है । जब मन होगा बात कर लिया करेंगे ।’


          ‘ यह तो बहुत अच्छा किया । रोहन भी अपनी दीदी का बहुत इंतजार कर रहा है । वह तुम्हें देखकर बहुत खुश होगा ।’


    ‘ मुझे भी रोहन से बहुत सारी बातें करनी हैं । ‘ चाचा जी की बात सुनकर सुनयना ने कहा ।  


       गाड़ी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती जा रही थी तभी एक इमारत को दिखाते हुये चाचाजी ने उससे कहा,‘ बेटी देखो यह लालकिला है ।’


        ‘ लालकिला...यहीं पर पंद्रह अगस्त पर हमारे प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं ।’

          ‘ हाँ बेटा...।’

    इसी तरह चाचा ने इंडिया गेट भी दिखाया तथा लौटते हुये दिल्ली घुमाने का वायदा किया । दिल्ली क्रास करते ही चाचा ने एक ढाबे के पास गाड़ी रोकी । चाचा ने तीन चाय का ऑर्डर किया तथा उसके लिये फ्रूटी लेकर आ गये । वे भी गाड़ी से उतरकर बाहर बैठी कुर्सियों पर बैठ गये । फ्रूटी के साथ चिप्स के पैकेट भी थे । उसने चिप्स का पैकेट खोलकर सबको दिया तथा फ्रूटी पीने लगी । तभी चाय भी आ गई । चाय नाश्ता करके वे पुनः चल दिये । खाते-पीते, बातें करते तथा इधर-उधर देखते सफर कट रहा था । शाम होने लगी थी । अचानक चाचा ने कहा कि अब हम अलीगढ़ पहुँच गये हैं । अब हमारी गाड़ी कासिमपुर की ओर मुड़ रही है...।


       ‘ चाचा घर पहुँचने में कितना समय लगेगा ?’


           ‘ लगता है थक गई है मेरी बिटिया । बस आधा घंटा में पहुँच जायेंगे...।’


         ‘ चाचाजी, यह धुआं कैसे निकल रहा है ?’ रास्ते में एक जगह उसने बड़ी सी इमारत तथा उसमें बनी चिमनी से धुंआ निकलता देखकर पूछा ।


         ‘ बेटा यह शुगर फैक्टरी है । आप और हम जो चीनी खाते हैं वह इस फैक्टरी में बनती है । ‘


       ‘ चाचाजी, मुझे देखना है, चीनी कैसे बनती है ?’


         ‘ ठीक है बेटा, मेरा एक मित्र है उससे बात करता हूँ अगर वह कुछ इंतजाम करा देगा तो तुम्हें अवश्य शुगर फैक्टरी ले जाऊँगा । बिना आज्ञा के फैक्टरी में किसी को जाने नहीं देते हैं । ‘ चाचा ने कहा ।


          चाचा से आश्वासन पाकर सुनयना इधर-उधर देखने तथा सोचने लगी... यहाँ कितना खुला-खुला है । भीड़ भी अधिक नहीं है वरना दिल्ली, मुंबई में चारों ओर ऊँची-ऊँची इमारतें तथा सड़कों पर गाडियाँ ही गाडियाँ ही नजर आती हैं । अचानक सड़क के किनारे उसे बहुत से पाइप जैसी संरचनायें नजर आईं । वह फिर बालसुलभ जिज्ञासा से पूछ बैठी ।  

   

      ‘ चाचाजी इतने सारे पाइप...यहाँ क्या होता है ?’  पाइप की तरफ इशारा करके उसने पूछा । 


     ‘ बेटा यह पावर हाउस है ।’


     ‘ पावर हाऊस...यह क्या होता है ?


    ‘ बेटा, यहाँ बिजली...इलेक्ट्रिीसिटी बनाई जाती है । ‘


     ‘ इलेक्ट्रिीसिटी...जिससे हमारे घर में बल्ब जलते हैं, फैन चलते हैं । ‘  


     ‘  हाँ बेटा, यहाँ बिजली बनती है जिससे कई शहरों, अस्पतालों और कारखानों को रोशनी मिलती है ।‘


         ‘ लेकिन कैसे...?’ सुनयना ने पूछा ।


‘ बेटा, बिजली कई तरीके से बनाई जाती है । कोयला, तेल, नैचुरल गैस, जल, वायु या नाभिकीय ऊर्जा ( nuclear energy) से हीट ( गर्मी ) पैदा की जाती है । इस हीट से पानी को गरम कर भाप पैदा कर टरबाइन...चेम्बर में भेजा जाता है । जिसके कारण टरबाइन तेजी से घूमता है तथा अपने साथ लगे इलेक्ट्रिकल जनरेटर / आलटेरनेटर को घुमाता है जिससे बिजली पैदा होती है । इस तरह से पैदा हुई बिजली को जगह-जगह भेजा जाता है । पवनचक्कियों तथा सौर उर्जा से भी बिजली बनाई जाती है ।'


     ‘ अजय, इस पावर हाउस में दीपक काम करता था न ।’ पापा ने चाचा से पूछा ।


       ‘ हाँ भइया किन्तु पिछले वर्ष ही उसका ओबरा पावर हाउस में स्थानांतरण हो गया ।’


         ‘ ओह ! इस बार सोच रहा था उससे मिलूँगा ।’ पापा ने कहा ।


       ‘ लो घर भी आ गया ।‘ कहते हुए चाचा ने एक बड़े से घर के गेट की ओर गाड़ी मोड दी ।


       गाड़ी के गेट पर पहुँचते ही एक आदमी दौड़ा-दौड़ा आया तथा गेट खोल दिया । चाचा ने घर के मुख्य द्वार के पास बने आहते में गाड़ी रोक दी । गाड़ी के रूकते ही चाचाजी ने कहा,‘ भुलई, भइया-भाभी का सामान ऊपर कमरे में रख देना ।’


        ‘ जी मालिक...।’ भुलई ने कहा ।


       गाडी की आवाज सुनकर दादा-दादी बाहर आ गये । वे उतर ही रहे थे कि चाची का हाथ पकड़े रोहन भी बाहर आ गया । उसके नमस्ते करते ही दादा-दादी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, वहीं चाची ने उसे एक मीठी किस्सी दी तथा रोहन से कहा, ‘ दीदी को जय करो ।’


       रोहन हिलने का नाम ही नहीं ले रहा था वह चाची की साड़ी के पल्लू को पकड़े, उनके पीछे छिपकर उसे कनखियों से देख रहा था ।


    ‘ ननकू चाय बना देना । ‘ दादी ने आवाज लगाई ।

       ‘ माँ ,चाय हमने पी ली है, फ्रेश होकर सीधे खाना ही खायेंगे । ‘ पापा ने कहा ।  


        ‘ ठीक है । भइया-भाभी, आप फ्रेश हो लो । तब तक मैं खाना लगवाती हूँ ।’ नंदिनी ने कहा ।


      भुलई ने पापा-मम्मी का सामान, उनके कमरे में रखवा दिया । ममा-पापा फ्रेश हाने के लिये चले गये । वह भी ममा के साथ चली गई । सुनयना हाथ मुँह धोकर रोहन के लिये लाई चाकलेट लेकर शीघ्र ही नीचे आ गई । चाची किचन में काम कर रही थीं तथा ननकू उनकी सहायता करवा रहा था । सुनयना चाची के पास किचन में गई । अभी भी रोहन उसे देख रहा था । उसने रोहन के पास जाकर कहा…


         ‘ दीदी से दोस्ती करोगे ...। ’


       ‘ रोहन जाओ, दीदी के पास । अभी तक तुम रोज पूछ रहे थे दीदी कब आयेगी और अब तुम उससे बात ही नहीं कर रहे हो ।’ चाची ने सुनयना को देखते हुये रोहन से कहा ।


      रोहन अभी भी शर्मा रहा था तथा चाची के पीछे छिपने का प्रयास कर रहा था । रोहन को अपने पास न आता देखकर, सुनयना ने अपने द्वारा लाई चाकलेट रोहन को दीं । चाकलेट लेकर रोहन डायनिंग टेबिल की कुर्सी पर जाकर बैठ गया तथा चाकलेट का रैपर खोलकर खाने लगा ।


‘ गंदी बात रोहन...तुमने दीदी को थैंक यू भी नहीं कहा और अब अकेले-अकेले ही खा रहे हो । मैंने कितनी बार कहा है कि कोई भी चीज शेयर करके खानी चाहिये ।’ चाची ने रोहन से कहा ।


‘ इटस ओ.के. चाचीजी । मैं यह सारी चाॅकलेट रोहन के लिये लाई हूँ ।’


‘ यह तो ठीक है बेटा, लेकिन इसे सिखाना तो होगा ।’  


‘ थैंक यू दीदी...आप भी लो ।’ ममा को गुस्सा होते देखकर रोहन ने उसे चाकलेट देते हुये कहा ।


‘ वेलकम रोहन । ये चाकलेट आप ही खाओ । मैं आपके लिये ही चाकलेट लाई हूँ ।’ सुनयना ने उससे प्यार से कहा ।


रोहन उसके साथ धीरे-धीरे सहज होने लगा । वह रोहन के पास बैठ गई । उसने देखा कि किचन के पास बने कमरे में डायनिंग टेबिल है । उसने कुर्सियाँ गिनना प्रारंभ किया । वह बारह पर आकर अटक गई...अर्थात् एक साथ बारह लोग खाना खा सकते हैं, उसने मन ही मन सोचा ।


       ‘ भाभी, खाना लग गया है ।’ ममा के आते ही चाची ने कहा ।


        चाची की बात सुनकर सब डायनिंग रूम में आकर अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ गये । चाची ने डायनिंग टेबिल पहले ही अरेंन्ज कर दी थी । सबके बैठते ही ननकू गर्मागर्म परांठे बनाकर सबको खिलाने लगा । सुनयना को सबके साथ बैठकर खाते हुये बहुत अच्छा लग रहा था ।


       उस दिन काफी देर तक वे सब बैठे बातें करते रहे । दादा-दादी जब सोने के लिये जाने लगे तब सब उठे । ममा और चाची ने मिलकर किचन समेटा तथा सोने के लिये अपने-अपने कमरों में चले गये ।


3




    चिड़िया चहचहाईं  -3 


          दूसरे दिन सुबह कुछ आवाजें सुनकर सुनयना उठकर बैठ गई । उसने माँ को जगाकर उन आवाजों की ओर उनका ध्यान दिलाया । माँ ने बताया ये आवाज बाहर से आ रही चिड़ियों की चहचहाहट है । गाँव की खुली हवा में इनको भी चहकने का अवसर मिल जाता है । शहर में इनको खुली हवा नहीं मिलती ।


         माँ की बात सुनकर सुनयना खिड़की के पास गई और बाहर देखने लगी । उसने देखा खिड़की के बाहर एक बड़े से पेड़ पर अनेकों चिड़ियायें फुदक रही हैं । मुंबई में रहने वाली सुनयना ने इतनी चिड़ियायें एक साथ कभी नहीं देखीं थीं । अभी वह चिड़ियाओं को फुदकते देखकर आनंदित हो ही रही थी कि उसे पेड़ की डाल पर एक घोंसला दिखाई दिया । उसने आश्चर्य से पूछा, ‘ ममा, चिडिया का यह घोंसला तो बहुत सुंदर है । ये छोटी-छोटी चिड़िया इसे बनातीं कैसे हैं ?’

       ‘ बेटा, चिडिया सूखी घास के तिनके या सूखी पत्तियों की पतली टहनियों को आपस में बुनकर अपना घोंसला बनातीं हैं । अपने घोंसले को मजबूती देने के लिए यह मकड़ी के जाले, मिट्टी तथा अपने मुँह से निकली लार का भी प्रयोग करतीं हैं । कुछ चिड़िया अपने घोंसले को आरामदायक बनाने के लिए पत्तियों एवं पंखों का भी प्रयोग करते हैं । ’


       ‘ वाउ ग्रेट...बहुत मेहनत लगती होगी ।’


        ‘ घर बनाना आसान है क्या...!!’ ममा ने कहा ।  


       बातें करते-करते उसने देखा कि एक चिड़िया अपने मुँह में कुछ लेकर आई तथा घोंसले में बैठकर अपनी चोंच में लाई चीज को डालकर फिर उड़ गई थोड़ी देर बाद वह फिर आई तथा फिर उसने ऐसा ही किया । जब उसने कई बार ऐसा किया तो उसने ममा को बुलाकर पूछा,‘ ममा, चिड़िया यह क्या कर रही है ?’


       ‘ बेटा, चिड़िया के घोंसले में, उसके बच्चे होंगे । वह उन्हें खाना खिला रही है ।’


         ‘ क्या इस तरह चिडिया अपने बच्चों को खाना खिलाती है ? बार-बार आने-जाने में थक नहीं जाती होगी । क्या बच्चे स्वयं नहीं खा सकते ?’


       ‘ बेटा वह माँ है । उसके बच्चे छोटे हैं । वे अभी उड़ नहीं पाते होंगे । माँ को मेहनत तो करनी ही होगी । अपनी छोटी सी चोंच में वह कितना ला पायेगी, इसलिये उसे बार-बार जाना पड़ रहा है ।’


      ‘ ममा  चिड़िया खाती क्या है ?’ सुनयना ने बैग से बाइनोकुलर निकालते हुये कहा ।


       ‘ अनाज के दाने जैसे गेंहू , चावल, दाल इत्यादि...कुछ चिड़ियायें कीड़े मकोड़े भी खातीं हैं । इसीलिए कुछ लोग चिड़ियाओं के लिए एक बर्तन में पानी तथा अनाज के दाने रख देते हैं ।’


        ‘ ममा, एक बार में चिड़िया कितने अंडे देती है ।’ सुनयना ने बाइनोकुलर से बाहर देखते हुये कहा ।


           ‘ दस से बारह...।’


           ‘ क्या दस से बारह ? पर घोंसले में तो तीन चार ही दिख रहे हैं । ’


       सुनयना ने बैक पैक से अपना मोबाइल निकाला और फोटो खींचने लगी ।


‘ ओह ! सुबह- सुबह तूने बातों में लगा लिया । माँजी की पूजा भी शुरू हो गई और मैं अभी फ्रेश भी नहीं हुई हूँ  ।’ घंटी बजने की आवाज सुनकर ममा ने झुंझलाकर कहा ।


     ममा जल्दी से सूटकेस से कपड़े निकालने लगीं तथा सुनयना फोटो खींचकर, अपने छोटे पर्स में अपने मोबाइल को रखकर दादी को पूजा करते देखने के लिये जाने लगी । वह कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों से नीचे जाने के लिये उतर ही रही थी कि उसने देखा ननकू दो कप चाय लेकर उनके कमरे में जा रहा है । वह तो चाय पीती नहीं थी अतः नीचे चली गई ।


                ‘ मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...।’ दादीजी को पूजा करते तथा सुमधुर आवाज में भजन गाते देखना सुनयना को बहुत ही अच्छा लग रहा था । ममा को तो पूजा करने की फुर्सत ही नहीं है...जब उन्हें समय मिलता तो कर लेतीं हैं वरना नहीं, उसने सोचा । उसने मंदिर और पूजा करती दादीजी की फोटो खींची । पूजा करने के पश्चात् दादी ने उसे प्रसाद दिया । अब तक ममा-पापा नीचे आ गये थे । दादी ने सबको प्रसाद दिया । मम्मी, दादी से प्रसाद लेकर किचन में चली गईं  तथा पापा और चाचा ड्राइंग रूम में बैठकर बातें करने लगे ।


       ‘ सुनयना बेटा, नाश्ता बन गया है । जाकर अपने पापा और चाचा को बुला लाओ । ’ चाची ने उससे कहा ।


   । ‘ मेरा जूता है जापानी, पतलून इंग्लिस्तानी, सिर पर लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी...गाने की आवाज सुनकर सुनयना भूल गई कि वह किसलिये आई है । वह उस ओर गई जिधर से आवाज आ रही थी । उसने देखा कि एक टेबिल पर रखे स्टैंड में एक बड़ी सी प्लेट...आज की सी.डी. जैसी चीज घूम रही है तथा उसके ऊपर एक कील जैसी चीज चल रही है । उसे आश्चर्य से देखते देखकर चाचा उसके पास आये तथा मुस्कराकर बोले, ‘ यह ग्रामोफोन है । जैसे आप आजकल सी.डी. लगाकर गाना सुनते हो वैसे ही पहले समय में हम लोग इस ग्रामोफोन पर गाने सुनते थे और आज भी सुन रहे हैं । ’


       ‘ यह सुई... और यह बड़ा सा भाग ।’


       ‘ यह सुई ग्रामोफोन का महत्वपूर्ण भाग है । यह सुई इस रिकार्ड के घुमावदार खाँचों के संपर्क में आकर, इन खाँचों में संजोई गानों की ध्वनि को पढ़कर गाने के रूप में हम तक पहुँचाती हैं ।’


        ‘ और यह...।’ सुनयना ने ग्रामोफोन के उठे भाग को स्पर्श करते हुये पूछा ।


         ‘ इसके बॉक्स से लगी इस नली को ध्वनि भुजा कहा जाता है, । इस ध्वनि भुजा से ग्रामोफोन से निकलती ध्वनि एक जगह एकत्रित होकर इस भाग जिसे भोंपू या इसको साउंड बॉक्स भी कहते हैं, से हमारे पास पहुँचती है । ’


         ‘ चाचाजी क्या यह बहुत पुराना है ?’


      ‘ हाँ बेटा, यह हमारे परदादा की यादगार है । इसलिये मैं इस ग्रामोफोन को बहुत सहेजकर रखता हूँ ।’


      ‘ चाचाजी क्या मैं इसकी फोटो खींच सकती हूँ ?’


       ‘ क्यों नहीं बेटा, तुम इसके पास खड़ी हो जाओ, मैं तुम्हारी फोटो खींचता हूँ ।’


       सुनयना ग्रामोफोन के पास खड़ी हो गई । चाचा के फोटो खींचते ही वह बोली,‘ ओह ! मैं तो भूल ही गई कि चाची ने आप दोनों को नाश्ते के लिये बुलाया है ।’


       वह कमरे से बाहर निकल ही रही थी कि उसकी निगाह छत पर लगे पर्दा नुमा कपड़े पर गई ।


         ‘ चाचाजी यह कपड़ा...?’ उसने छत की ओर इशारा करते हुए कहा ।


      ‘ बेटा, यह एक प्रकार का पंखा है ।‘


        ‘ पंखा...। ’


      ‘ हाँ बेटा, पहले समय में जब हमारे गाँव में बिजली नहीं थी तब इस पंखे को चलाकर कमरे को ठंडा रखते थे । ‘


        ‘ यह चलता कैसे है ?’


       ‘ बेटा, इस पंखे से एक रस्सी बंधी रहती थी जो उस दरवाजे के ऊपर बने होल से बाहर निकाली जाती थी जिसे बाहर बैठा आदमी खींचता रहता था जिससे इस कमरे में बैठे लोगों को हवा मिलती थी ।‘


        ‘ लेकिन चाचाजी क्या वह आदमी थक नहीं जाता होगा ? ‘


      ‘ कहाँ रह गई सुनयना...? सबको जल्दी लेकर आओ, नाश्ता ठंडा हो रहा है । ’ चाचीजी की आवाज आई । 


       ‘ आई चाची ।’ मन के प्रश्न को मन में दबाकर कहते हुये सुनयना ने सोचा कि वह इस पंखे का भी फोटो खींचेगी । जब वह इन सबके बारे में अपनी सहेलियों को बतायेगी तो उन्हें भी इन सब चीजों के बारे में जानकर अच्छा लगेगा ।   

               

        सुनयना के साथ पापाजी, चाचाजी भी डायनिंग रूम में आकर अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठ गए । ननकू गर्मागर्म गोभी के परांठे खिला रहा था तथा वे सब एक साथ बैठकर खा रहे थे । उसे सबके साथ नाश्ता करते हुये बहुत अच्छा लगा रहा था वरना मुंबई में तो सुबह-सुबह सबको इतनी जल्दी रहती थी कि किसी को किसी के साथ बात करने का भी समय ही नहीं रहता है ।


       नाश्ता करने के पश्चात् रोहन सुनयना का हाथ पकड़कर छत पर ले गया । छत काफी बड़ी थी । चारों ओर हरे-भरे खेत दिखाई दे रहे थे । सामने एक मंदिर भी दिखाई दे रहा था । उसके आस-पास कई घर दिखाई दिये । कुछ छोटे तथा कुछ बड़े, कुछ पक्के तथा कुछ कच्चे । उसने नीचे झांककर देखा तो घर के पास ही एक कुंआ दिखाई दिया । जिससे लोग रस्सी के सहारे पानी खींचकर घड़े में भरकर ले जा रहे थे तथा कुछ लोग नहा भी रहे थे । एक व्यक्ति तो अपनी गाय को नहला रहा था । आस-पास का दृश्य देखकर उसे बहुत ही अच्छा लग रहा था । तभी उसने दूसरी तरफ देखा तो पाया कि उधर मैदान में कुछ लड़के-लड़कियाँ खेल रहे हैं । उनमें एक लड़का सामने रखे कुछ पत्थर के ढेर को ‘ बॉल ’ से मारकर भाग गया । कुछ लड़के उस पत्थर के ढेर को पुनः बनाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरे लड़के उसे ‘बॉल ’ मारकर रोक रहे थे । अभी वह देख ही रही थी कि चाची किसी काम से ऊपर आईं…


      ‘ चाचीजी , यह कौन सा गेम है ?’ सुनयना ने चाची का ध्यान उस खेल की तरफ दिलाते हुए पूछा ।


         

      ‘ बेटी, यह सतोलिया खेल है । कुछ लोग इसे गिट्टी फोड़ भी कहते हैं । इसमें सात पत्थर होते हैं । सबसे बड़ा नीचे तथा अन्य छोटे । इन पत्थरों को एक के ऊपर रखा जाता है । एक टीम का लड़का या लड़की गेंद से इसको तोड़ता है तथा उसी टीम के लड़की या लड़के को इन गिरे पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर ‘ सतोलिया ’ बोलना होता है । अगर सतोलिया बोलने से पहले गेंद उसे लग जाती है तो वह टीम आउट हो जाती है तथा फिर दूसरी टीम गेंद से पत्थर गिराती है । इस तरह खेल चलता रहता है । ’ 


' चाची जी यह...।' सुनयना ने जमीन पर चौक से बने आयताकार आकृतियों को देखते हुए कहा ।


' बेटा, यह भी खेल है जिसे किठ-किठ कहते हैं ।'


' यह खेल है, इसे कैसे खेला जाता है ?'


'  इसमें खिलाडी बाहर से एक पत्थर एक डिब्बे में फेंकता है और फिर किसी भी डिब्बे की लाइन को छुए बिना एक पैर पर (लंगड़ी टांग) उस पत्थर को बाहर लाता है। इसे घर के भीतर और बाहर दोनों जगह खेला जा सकता है।' कहते हुए चाची ने किनारे रखा एक चपटा पत्थर उठाया तथा उसे खेलने की विधि बताने लगीं ।


' वाह ! यह तो बहुत अच्छा गेम है । मैं भी इसे खेलूँगी ।'


' ठीक है बेटा, तुम खेलो, मैं चलती हूँ ।'


सुनयना और रोहन खेलने लगे…


      ‘ सुनयना फ्रेश हो लो ।’ चाचीजी की बात खत्म ही हुई थी कि ममा की आवाज आई ।


    ‘ आई ममा ।’ कहकर उसने इधर-उधर देखते हुये कई फोटो खींची ।


        उस दिन पूरा दिन उसने रोहन के साथ खेलते बिताया ।


4




गाँव की सैर-4 


       दूसरे दिन चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर ही उसकी आँख खुली । उसने बाइनोकुलर से चिड़िया के घोंसले की ओर देखा । चिड़िया उन्हें खाना खिला रही थी तथा बच्चे उसकी ओर अपनी चोंच उठाये अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे । दादी की पूजा की घंटी सुनकर वह नीचे आई । वह वहीं चटाई पर बैठ गई । दादी को पूजा करते देखना उसे बहुत अच्छा लग रहा था । कल की ही तरह दादी ने उसे तथा अन्य सबको प्रसाद दिया । आज नाश्ते में मूली के परांठे बनाये थे । नाश्ता कर दादाजी ने उससे कहा अगर घूमने चलना हो तो तैयार हो जाओ ।


                सुनयना जल्दी से तैयार होकर आ गई । बाहर ठंड से बचने के लिए उसने अपना जैकेट पहन लिया तथा अपने बैग में अपनी पानी की बोतल के साथ एक कैप तथा फोटो खींचने के लिये मोबाइल भी रख लिया । रोहन ने नाश्ता नहीं किया था अतः चाची ने उसे रोक लिया । उसे तैयार देखकर दादाजी ने ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिये कहा ।


         ‘ दादाजी, क्या हम घूमते हुये नहीं चल सकते  हैं ?  मैं गाँव को अच्छे से देखना चाहती हूँ  ।’ सुनयना ने आग्रह भरे स्वर में कहा ।


      ‘ ठीक है बेटा...पैदल चलते हैं । जब तुम थक जाओ तो बता देना, मैं गाड़ी मँगा लूँगा ।’


      ‘ ठीक है दादाजी ।  ’


    सुनयना दादाजी के साथ गाँव देखने चल दी । जैसे ही वह घर के बाहर आई...घर के गेट के सामने लगे पेड़ से ननकू को कुछ पत्तियाँ और नाजुक डंठल तोड़ते देखकर सुनयना ने पूछा…


      ‘ दादाजी, ननकू अंकल इस पेड़ की पत्तियाँ क्यों तोड़ रहे हैं ?’


   ‘ बेटा, यह नीम का पेड़ है...तुम्हारी दादी इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से नहातीं हैं ।’ दादजी ने उत्तर दिया ।


     ‘ अच्छा...मेरी मेम ने भी बताया था कि नीम, पीपल ऐसे पेड़ हैं जिनसे अधिक मात्रा मे आक्सीजन निकलती है । ये पेड़ दिन के साथ रात में भी आक्सीजन छोड़कर हमारे वायुमंडल को शुद्ध करते हैं । नीम की पत्तियाँ यहाँ तक कि इसकी डाली भी कीटाणुनाशक होने का कारण बहुत लाभदायक है ।’


        ‘ आपकी मेम ठीक कहती हैं बेटा । इसलिये हमारे गाँव में लगभग हर घर के सामने नीम के पेड़ लगाये जाते हैं । गाँव के लोग आज भी नीम की डंठल का ब्रश बनाकर दाँत साफ करते थे ।’


       ‘ नीम की डंठल का ब्रश...।’


       ‘ हाँ बेटा...इससे दाँत खराब नहीं होते । जब कभी हम बीमार पड़ते थे तो हमारी माँ नीम के पत्तों को उबालकर उसके पानी से हमें नहाया करतीं थीं ।’


         ‘ दादी तो अब भी नहातीं हैं पर इससे क्या होता है ?’


       ‘ बेटा आप ही तो कह रही थीं कि नीम के पेड़ में कीटाणुनाशक गुण भी होते हैं । जैसे आप पानी में डिटोल डालकर नहाते हो, उसी तरह नीम की पत्ती के पानी से नहाने से शरीर की त्वचा स्वस्थ रहती है ।’


         ‘ मालिक पाँव लागूँ ।’ वे बात कर ही रहे थे सामने से आते एक आदमी ने दादाजी के पैर छूते हुये कहा ।


        ‘ खुश रहो...कैसे हो रामलाल ? बाल बच्चे कैसे हैं ? सब ठीक है न । ’ दादाजी ने उसे आशीर्वाद देते हुये कहा ।


          ‘ आपकी दया है मालिक ।’


        इसके बाद भी रास्ते में जो-जो आदमी मिलता गया, वह इसी तरह दादाजी को प्रणाम करके ही आगे बढ़ता तथा दादाजी भी उससे बड़े प्रेम से बातें करते । दादाजी के प्रति लोगों का सम्मान तथा दादाजी का लोगों के प्रति प्रेम देखकर सुनयना को बहुत अच्छा लग रहा था । वह सोच रही थी कि गाँव में सब लोग एक दूसरे का कितना सम्मान करते हैं जबकि हमारे मुंबई के अपार्टमेंट में तो कोई किसी से बात ही नहीं करना चाहता । सामने भी कोई पड़ेगा तो बिना देखे ही चला जायेगा । सब अपने मोबाइल या लैपटॉप में ही लगे रहते हैं ।


                चलते-चलते उसने देखा कि गाँव में कुछ घर मिट्टी के बने हैं तो कुछ ईटों के । किसी घर के सामने गाय बंधी हैं, कहीं कोई झाड़ू लगा रहा है तो कोई घर के बाहर कपड़े सुखा रहा है । एक घर के सामने की जगह में कुछ लड़के कुश्ती खेलते नजर आये । थोड़ा आगे बढ़े तो देखा एक लड़का गाड़ी के पुराने टायर को चला रहा है तथा अन्य लडके उसके पीछे-पीछे भाग रहे हैं । कुछ ही दूर गये थे कि एक जगह कुछ लड़के एक लकड़ी से एक छोटी लकड़ी को हवा में उछाल रहे हैं किन्तु उनके आते ही वे यह सोचकर रुक गए कि कहीं उन्हें चोट न लग जाए । दादाजी ने उसे आश्चर्य से उनकी ओर देखते देखा तो कहा,’ इस खेल का नाम गुल्ली डंडा है । गाँव के बच्चों के लिये यह क्रिकेट है ।‘


          ‘क्रिकेट...।’ सुनयना ने उनका फोटो खींचते हुये पूछा ।


         ‘ हाँ बेटा...हमारे समय का तथा आज के गाँव के बच्चों का यह क्रिकेट ही है ।’


       सुनयना को दादाजी कि बात कुछ समझ में आई तथा कुछ नहीं । वह उनका फोटो खींचने लगी । उसे फोटो खींचते देखकर दादाजी के कहने पर बच्चों ने ‘गुल्ली डंडा’ खेल खेलने का नाटक किया । फोटो खींचकर आगे बढ़ते हुए कुछ कच्चे घरों को देखकर अचानक सुनयना ने पूछा,‘ दादाजी, गाँव में अधिकतर घर कच्चे क्यों होते हैं ? ‘ 

 

       ‘ बेटा, गाँव वालों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे पक्के घर बनवा सकें । इसके अतिरिक्त कच्चे घर ठंडे रहते हैं जिससे उनका गर्मी से भी बचाव हो जाता है । ’


       ‘ सर्दी में ....। ‘ सुनयना ने पूछा ।


                ‘ बेटा, मिट्टी से बने, ये घर, सर्दी में भी ईंटों से बने घरों की तुलना गर्म रहते हैं अतः इस कारण भी गाँव के लोग ऐसे ही घर बनाते थे । ‘


      ‘ गर्मी में ठंडे तथा सर्दी में गर्म, ऐसा कैसे दादा जी ? ‘


   ‘ बेटा ये घर क्ले यानि मिट्टी से बनाए जाते हैं । इन घरों की छत भी फूस...सूखे पेड़ पत्तों से बनाई जाती है ।  तुम्हें पता होगा कि मिट्टी तथा घास-फूस गर्मी का बुरा संवाहक  ( bad conductor of heat ) है अतः मिट्टी बाहरी गर्मी को न अंदर जाने देती है और न ही अंदर कि गर्मी को बाहर आने देती है । इसलिए ऐसे घर सर्दी में गर्म तथा गर्मी में ठंडे होते हैं । ‘


     ‘ दादाजी, इनको पेंट कैसे करते हैं ?’


       ‘ इन घरों को गाय के गोबर से पेंट किया जाता है ।’


        ‘ क्या गाय का गोबर ? ’


       ‘ हाँ बेटा, गाँव वाले गाय के गोबर को बहुत पवित्र मानते हैं । वे घर के आँगन को भी गोबर से रोज ही लीपते हैं । ’


    ‘ दादाजी, वह घर बहुत सुंदर लग रहा है । उस घर पर कितनी सुंदर पेंटिग बनी है ।’ सुनयना ने फोटो खींचते हुये कहा ।


     ‘ हाँ बेटा, कुछ लोग अपने घर को सजाने के लिये चित्रों से सजाते हैं ।’   

                                   

    बातें करते-करते एक जगह पहुँचकर दादाजी ने कहा …


     ‘ चारों ओर जहाँ तक तुम देख पा रही हो,  हमारे खेत हैं । ये देखो गन्ने का खेत...।‘ 


         ‘ गन्ने...।’


     ‘ हाँ बेटा इनसे गुड़ और शुगर बनती है ।’


      ‘ शुगर, शुगर फैक्टरी में बनती है न दादाजी । ‘


         ‘ हाँ बेटा ...। ‘


       ‘ दादाजी क्या आप मुझे शुगर फैक्टरी दिखायेँगे ?’ उसने पूछा ।


       ‘ बेटा, ठीक है, चलेंगे किसी दिन । ’


 ‘ दादाजी लेकिन आप यह तो मुझे बता सकते हैं कि चीनी बनती कैसे है ?’


     ‘ शुगर फैक्टरी में गन्ने को बड़ी-बड़ी मशीनों के द्वारा क्रश करके रस निकाला जाता है । रस को बड़े-बड़े कंटेनर में उबाला जाता है । उबलते-उबलते जब यह गाढ़ा हो जाता है तब इससे चीनी बनाते हैं । इस चीनी को बोरों में स्टोर कर लेते हैं । ’


        ‘ और गुड़...।’


    ‘ गुड़ बनाने के लिये गन्ने के रस को उबालकर गाढ़ा किया जाता है जब यह गाढ़ा हो जाता है तब गुड़ बन जाता है ।’


 ‘ दादाजी आपने कहा कि चीनी बनाने के लिये भी गन्ने के रस को उबाला जाता है तथा गुड़ बनाने के लिये भी फिर दोनों में क्या अंतर है ?’


     ‘ बेटा चीनी बनाने के लिये गन्ने के रस में उसे पारदर्शी बनाने के लिये कुछ कैमीकल मिलाये जाते हैं जिससे वह सफेद तो हो जाती है जबकि उसके सारे पोषक तत्व जैसे पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन इत्यादि नष्ट हो जाते हैं जबकि गुड़ में रस को सिर्फ गाढ़ा किया जाता है जिससे यह चीनी से अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है ।’


      ‘ ओ. के. दादाजी । क्या मैं गन्ना चूस सकती हूँ ?’


       ‘ यहाँ चूसने में तुम्हें परेशानी होगी ।  मैं रामू से कह दूँगा कुछ गन्ने घर पहुँचवा देगा  ।’

       थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उसकी नजर खेत में चलते दो बैलों पर पड़ी जिनके कंधे पर कुछ रखा था जिसे एक आदमी पकड़कर चल रहा है ।


     ‘ दादाजी खेत में गाय...यहाँ क्या कर रही है ?’


      ‘ बेटा, यह गाय नहीं, बैल हैं ।’


         ‘ बैल...ये यहाँ क्या कर रहे हैं ?’


      ‘ बेटा, बैलों के कंधे पर जो रखा है उसे हल कहते हैं । इसके द्वारा खेतों में बीज डालने से पहले गुड़ाई की जाती है जिससे मिट्टी पोरस यानि भुरभुरी हो जाए । ’


      ‘ मुझे पता है दादाजी जैसे गमले की मिट्टी को हम खुरपी से खोदते हैं पर इससे तो इतने बड़े खेत की गुड़ाई करने में बहुत समय लगता होगा ।’


      ‘ हाँ बेटा, यह छोटे खेतों के लिये तो ठीक है पर बड़े खेतों को जोतने के लिये किसान ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं ।’


          ‘ ट्रैक्टर...उससे कैसे ? ’


  ‘ जुताई के उपयोग में लाने वाले ट्रैक्टर के पीछे के हिस्से में इस हल जैसे ही लोहे के कई हुक जैसे पार्ट लगे होते हैं । खेत में जब ट्रैक्टर को चलाते हैं तो उसमें लगे हुक से गुड़ाई होती जाती है । मैं तुम्हारे चाचा को कह दूँगा कि वह तुम्हें ट्रैक्टर में बिठाकर घुमा दे ।’


  ‘ दादाजी आप बैल के साथ मेरी फोटो खींच दीजिये प्लीज । मुझे याद तो रहेगा कि मैंने गाँव में क्या-क्या देखा । ’ सुनयना ने अपना मोबाइल दादाजी को पकड़ाते हुये कहा ।


       दादाजी ने उसकी बैल तथा हल के साथ कई फोटो खींच दीं । आगे बढ़ते ही सुनयना ने एक खेत में लगी कुछ फलियों को देखते हुये कहा, ‘ यह मटर है न दादाजी...।’


  ‘ हाँ बेटा, वह देखो उधर गेंहूँ तथा सरसों के खेत हैं तथा उधर गोभी, गाजर, मूली तथा आलू भी लगे हुये हैं ।’


  ‘ क्या मैं मटर की फलियाँ तोड़ सकती हूँ ? मटर मुझे बहुत अच्छी लगती हैं ।’  दादाजी की बात को अनसुनाकर सुनयना ने पूछा ।


   ‘ तोड़ भी सकती हो और खा भी सकती हो ।’


       ‘ ओ.के. दादाजी ।’


      ‘ दादाजी, मेम कहती हैं गेंहू, मटर, सरसों, तिल रबी क्राप में आते हैं । ‘ सुनयना ने मटर तोड़ते हुए कहा ।


      ‘ आपकी मेम ठीक कहती हैं ।  यह सर्दी में होती हैं , इसलिए इन्हें विंटर क्रोप भी कहा जाता है । ‘


        ‘ अब मुझे सदा याद रहेगा वरना रबी और खरीफ की फसल में सदा कन्फ्युज हो जाती हूँ । ‘ सुनयना ने मटर छीलकर मुँह में डालते हुए कहा ।  


       ‘ यह तो बहुत मीठी मटर है । हमारे मुंबई में ऐसी मटर तो मिलती ही नहीं है ।’


        ‘ ठीक कह रही हो बेटा । ताजी मटर का स्वाद अलग ही होता है ।‘


     दादाजी अपने खेत दिखाते हुए आगे चलने लगे तो सुनयना ने कहा, ‘ दादाजी, एक फोटो यहाँ भी...घर जाकर ममा-पापा तथा मुंबई जाकर अपने दोस्तों को दिखाऊँगी तथा कहूँगी कि मेम ने तो हमें नकली गाँव दिखाया था पर मैं तो असली, अपने दादाजी के गाँव घूमकर आई हूँ ।’


     ‘ तुम मटर की फली को तोड़ने की एक्टिंग करो । मैं एक फोटो खींचता हूँ ।’


    दादाजी के फोटो खींचते ही उसने दादाजी के साथ एक सेल्फी ली । सुनयना ने फोटो दादाजी को दिखाई तो वह बोले, ‘ बहुत अच्छी खींची है ।’


       दादाजी भी सुनयना के संग बच्चे ही बन गए थे । उन्हें भी उसके साथ घूमने तथा फोटो खींचने तथा उसके हर प्रश्न का उत्तर देने में बहुत आनंद आ रहा था । वे आगे बढ़े तो दादाजी ने उसे बताया कि यह गेहूँ का खेत है । छोटे-छोटे पौधों के ऊपर लगी फलियों को वह छूकर देखने लगी तब दादाजी ने कहा,‘ बेटा, इन्हीं में गेहूँ  के दाने बनते हैं । पकने पर इन बालियों से दानों को निकाला जाता है । उन्हें पीसकर आटा, दलिया बनाया जाता है ।’


      ‘ दलिया गेहूँ के दानों से बनता है !! मुझे दलिया बहुत पसंद है ।’


  ‘ दलिया तो मुझे भी पसंद है, पोष्टिक भी होता है । तुम्हारी दादी से कहकर कल नाश्ते में दलिया बनवा दूँगा ।’


       आगे बढे तो एक खेत में पीले-पीले फूल दिखाई दिये…


        ‘ दादाजी ये फूल...।’


  ‘ बेटा यह सरसों के फूल हैं कुछ दिनों में इनमें बालियाँ आ जायेंगी । सरसों के पौधे की ऊँचाई एक से तीन फीट होती है । ’


    ‘ सरसों...इसको किस काम में लाया जाता हे ।’


       ‘ इससे तेल बनाया जाता है जिसे तलने तथा सब्जियाँ बनाने के काम में लाया जाता है । सरसों का तेल मालिश के काम भी आता है ।’


       सुनयना ने गेहूँ और सरसों के खेत में खड़े होकर फोटो खिंचवाईं । 

        

       ‘ दादाजी इन खेतों की सिंचाई कैसे करते हैं ?’


       ‘ बेटा सिंचाई के लिए हमारा ट्यूब वेल है जिससे आवश्यकतानुसार सिंचाई की जाती है । वैसे अधिकतर गाँव वालों को बारिश के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है ।‘

               

         ‘ टियूबवेल...यह क्या होता है दादाजी ।’

    ‘ जमीन में बोरिंग करके, पंप की सहायता से पानी निकालकर एक जगह इकट्ठा किया जाता है जिसे आवश्यकतानुसार पाइपों के जरिये खेतों में पहुंचाया जाता है । ’


    ‘ दादाजी इसे क्या कहते हैं ?’ अचानक खेत से लगी सड़क पर एक गाड़ी में कुछ लोगों को बैठे देखकर सुनयना ने कहा ।


     ‘ बेटा इसे बैलगाड़ी कहते हैं क्योंकि इसे बैलों द्वारा चलाया जाता है । अब तो गाँव में आवागमन के दूसरे साधन भी आ गये हैं पर पहले समय में गाँव में बैलगाड़ी ही लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का एकमात्र साधन थी । इससे सामान भी ढोया जाता है । ’


     ‘ दादाजी, वह औरत मुँह पर कपड़ा क्यों डाले है ?’


      ‘ बेटा, गाँव में बड़े लोगों के सामने घर की बहुयें मुँह पर कपड़ा डाले रहती हैं ।  इसे घूँघट कहते हैं ।’


  ‘ इससे क्या इन्हें घुटन नहीं होती होगी ?’ उसे याद आया कि ममा और चाची दादाजी के सामने घूँघट तो नहीं निकालती किंतु उनके आते ही सिर ढक लेती हैं ।


    ‘ बेटा, घुटन तो होती होगी किन्तु अब तो गाँव में भी यह प्रथा कम होने लगी है लेकिन पूरी तरह खत्म होने में समय लगेगा ।’


                 बातें करते-करते आगे बढ़ रहे थे । एक जगह पहुँचकर दादाजी ने बताया...यह हमारा फलों का बाग है यहाँ आम, अमरूद, शरीफा इत्यादि के पेड़ लगे हुये थे ।


   ‘ बेटा, अमरूद खाओगी ।’ दादाजी ने उससे पूछा ।


       ‘ हाँ दादाजी ।’


    ‘ रामू हमारी बिटिया को अमरूद तोड़कर देना ।’


                ‘ जी मालिक...।’


   दादाजी की बात सुनकर, रामू ने तुरंत एक अमरूद तोड़कर उसे देते हुये कहा,‘ लो बिटिया ।’


        ‘ दादाजी एक रोहन के लिये ।’


        ‘ हाँ क्यों नहीं...।’ कहते हुये रामू ने एक और अमरूद उसे तोड़कर दिया ।


       दूसरे अमरूद को बैग में डालते देखकर दादाजी ने उससे कहा,‘ तुम खा लो बेटा, रोहन तथा अन्य लोगों के लिये रामू घर अमरूद दे जायेगा ।’


       इसके साथ ही दादाजी ने रामू को अमरूद घर पहुँचाने के लिये कहते हुये पूछा, ‘ घर में सब ठीक है न रामू । कोई परेशानी तो नहीं है ।’


           ‘ हम ठीक हैं सरकार, आप हैं तो हमें क्या चिंता ?’


                दोपहर हो रही थी अतः दादाजी ने कहा कि अब घर चलते हैं । रास्ते में एक इमारत पर पर प्राथमिक विद्यालय लिखा देखकर सुनयना ने पूछा, ‘ दादाजी, यह स्कूल है ।’


     ‘ हाँ बेटा, आजकल छुट्टियाँ चल रही हैं ।’


       वे दोनों घर लौट आये । उस दिन गाँव घूमकर सुनयना बेहद खुश थी । गाँव में फैली हरियाली तथा शुद्ध हवा में घूमकर वह स्वयं को बेहद तरोताजा महसूस कर रही थी वरना मुंबई की गर्मी उसे सदा परेशान कर देती है । घर आने पर सुनयना रोहन को अपना लाया अमरूद देते हुये, अपनी देखी सभी चीजों के बारे में बताने लगी तथा मोबाइल पर खींची सारी फोटो दिखाने लगी । इसके साथ ही उसने मनीषा, इला, रीता, भावना, वरूण को अपनी खींची तस्वीरें भेज दीं । उसकी बातें सुनकर दादाजी सोच रहे थे कि कितना मासूम होता है बचपन !!


5


रामू गन्ना लाया-5 


      ‘ बच्चों कहाँ हो तुम ? रामू गन्ना लाया है, चूसना है क्या ? ’ दादी ने आवाज लगाई ।


     ‘ हाँ दादी । वह अमरूद भी लाया होगा, दादाजी ने उससे कहा था ।’


      ‘ हाँ बेटा, अमरूद कल खा लेना । अभी गन्ना चूस लो ।’ 


        दोनों को आते देखकर, दादी ने घर के पिछवाड़े बने एक बड़े से आँगन में एक चारपाई बिछवा दी । सुनयना घर के इस हिस्से में पहली बार आई थी । ममा-पापा अक्सर गाँव की बात करते हुये गाँव के इस घर जिसे वे हवेली कहते थे, के बारे में बताया करते थे । वह कहते थे कि गाँव की हमारी हवेली बहुत बड़ी है । दादाजी गाँव के बड़े आदमी हैं । हवेली को उसके परदादाजी ने बनवाया था किन्तु हवेली इतनी बड़ी है वह कभी सोच ही नहीं पाई थी । बार-बार उसे यही लग रहा था कि यहाँ दादा-दादी, चाचा-चाची इतने बड़े घर में रहते हैं जबकि वह मुंबई में दो बैडरूम के छोटे से घर में रहती है ।


        ‘ अगर गन्ना खाना है तो तुम दोनों हाथ धोकर आओ । रोहन, जाओ दीदी के हाथ धुला दे ।’ दादी ने उन्हें निर्देश देते हुये कहा ।


        ‘ दीदी आओ ।’ रोहन ने उससे कहा ।


        रोहन उसे आँगन के एक कोने में लेकर गया तथा बोला, ‘ दीदी यहाँ हाथ लगाओ, मैं हैंडिल को दबाता हूँ, जब पानी निकलेगा, तुम हाथ धो लेना । ’


       ‘ यह कैसा नल है ? ’सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।


       ‘ दीदी, यह हैंडपंप है । इसके हैंडिल को दबाओ तो इस नली से पानी निकलता है ।’ रोहन ने नल के आगे के भाग की ओर इशारा करते हुए कहा ।


         सुनयना हाथ धोकर हैडिल की ओर गई तथा बोली,‘ रोहन, अब मैं चलाऊँगी, तुम हाथ धोओ ।’


        सुनयना ने हैडिल को दबाया पर पानी नहीं निकला…


          ‘ दीदी थोड़ा और जोर लगाओ ।’


         

        इस बार सुनयना ने थोड़ी अधिक ताकत लगाई तब पानी निकला ।


      ‘ आई डन इट, आई डन इट...।’ सुनयना खुशी से चिल्लाई ।


       ‘ क्या हुआ दीदी ?’ रोहन ने आश्चर्य से पूछा ।


         ‘ मैंने कहा मैंने कर लिया यानि मैं नल से पानी निकालने में सफल हो गई ।’


           ‘ दीदी आप अँग्रेजी में बोल रही थीं । मैं भी अभी छोटा हूँ, अँग्रेजी ठीक से नहीं बोल पाता ।’


         ‘ कोई बात नहीं रोहन धीरे-धीरे तुम भी सीख जाओगे ।’


        ‘ बच्चों क्या अभी तक हाथ नहीं धुले ?’ दादी ने आवाज लगाई ।

          

       ‘ धुल गये दादी ।’ कहते हुये वे दोनों आ गये ।


        ‘ यहाँ बैठ जाओ ।’ दादी ने उन दोनों को चारपाई पर बैठने का निर्देश देते हुये कहा ।


          जब वे दोनों बैठ गये तो दादी ने उन्हें गन्ना छीलकर दिया तथा उन्हें निर्देश दिया कि गन्ने का चूसा हिस्सा चारपाई के पास रखी बालटी में डालना जमीन पर नहीं । दादीजी की बात मानकर सुनयना और रोहन दोनों गन्ना चूसने लगे ।


           ‘ दादी आप नहीं खाओगी ।’

        

     ‘ नहीं बेटा...तुम लोग खाओ ।’ कहकर दादी हाथ धोने चली गईं ।


         ‘ पर क्यों दादी...?’


       ‘ बेटा इसके रेशे मेरे दाँतों में फँस जाते हैं ।’ कहकर दादी ने पास में रखे बैग से स्वेटर निकालकर बुनना प्रारंभ कर दिया ।


        ‘ दादी, आप हाथ से स्वेटर बना रहीं हैं । इसमें तो बहुत समय लगता होगा किन्तु इसका डिजाइन बाजार के स्वेटर से भी अच्छा लग रहा है ।’


       ‘ तू हाथ का बुना स्वेटर पहनेगी !!’


      ‘ हाँ दादी...क्या आप मेरे लिये बनायेंगी ?’


      ‘ अगर तू पहनेगी तो अवश्य बना दूँगीं ।’


      ‘ थैंक यू दादी । आई लव यू ।’ कहकर उसने दादी के गाल पर किस किया ।


       ‘ मैं भी तुम दोनों को बहुत प्यार करती हूँ ।’ दादी ने उसका आशय समझते हुये दोनों के गाल थपथपाये ।


        ‘ दादीजी मैं हाथ धोकर आऊँ  ।’ गन्ना चूसने के पश्चात् सुनयना ने दादी से कहा ।


           ‘ जाओ...।’


        सुनयना दौड़कर गई तथा स्वयं हैंडपंप का हैडिल दबाकर हाथ धोने लगी । इस बीच रोहन आ गया उसने उसके भी हाथ धुला दिये ।


        हाथ धोते-धोते एक आवाज सुनाई पड़ी…


          ‘ यह कैसी आवाज है ?’


      ‘ शालू माँ बुला रही हैं ।’ रोहन ने कहा ।


   ‘ शालू माँ...कौन शालू माँ ?’ सुनयना ने पूछा ।


    ‘ दीदी, चलिये मैं आपको उससे मिलवाता हूँ ।’


       रोहन उसे आँगन के बाहर ले गया । वहाँ दो गायें बंधी हुई थीं । उनके मुँह के सामने दो गड्ढ़े बने हुये थे जिनमें घास रखी हुई थी । उसे याद आया कि उसने पढ़ा था कि गाय घास खाती है । इसका मतलब गाय के मुँह  के सामने बने ये गड्ढ़े उसके खाने का बर्तन हैं । सुनयना जल्दी से अंदर गई तथा अपना मोबाइल लेकर आ गई ।


    ‘ दीदी, इनसे मिलो यह हमारी शालू माँ तथा यह लीला माँ ।’ रोहन ने उसके आते ही कहा ।


   ‘ क्या कह रहे हो ? यह तो गाय हैं ।’ सुनयना ने फोटो खींचते हुये आश्चर्य से कहा ।


  ‘ हाँ दीदी ये गाय हैं पर मेरी ममा कहतीं हैं कि ये भी हमारी माँ हैं क्योंकि हम इनका दूध पीते हैं । इसीलिये मैंने इनका नाम शालू माँ तथा लीला माँ रखा है । ’ कहते हुये रोहन वहीं रखी घास को उठाकर गाय को खिलाने लगा ।


   ‘ दीदी, आप भी खिलाओ न ।’ कहते हुये रोहन ने उसे घास दी ।


      सुनयना ने मना कर दिया क्योंकि उसे डर लग रहा था । वह रोहन के पीछे खड़ी होकर उसे घास खिलाते देख रही थी । अभी वे बातें कर ही रहे थे कि ननकू हाथ में बाल्टी लेकर आ गया । वह एक जगह जहाँ लोहे का चक्का लगा था, गया वहाँ से जब वह घास उठाने लगा तो सुनयना पूछा,' अंकल यह क्या है ?'


' बेटा, यह घास काटने की मशीन है । इससे घास काटकर उसे पशुओं के खाने लायक बनाया जाता है ।'


' पर कैसे ?'


ननकू ने घास चक्के से लगी खुली पाइप में डाली तथा चक्के में लगे हैंडल को घुमाने लगा । जैसे ही चक्का घूमता । घास कटने लगती ।'


' मैं काटूँ ।' सुनयना ने आगे बढ़ते हुए कहा ।


' बहुत भारी है आप नहीं घुमा पाओगी । चोट भी लग सकती है ।'


' ओ.के.अंकल । '


 ननकू ने घास उठाई तथा गाय के मुँह के सामने बने गड्ढे में घास डालकर उसने गाय के सिर पर हाथ फेरा । जब गाय घास खाने लगी तब वह उसके पिछले पैरों के नीचे बैठ गया । उसने उसके थन को धोया तथा दूध निकालने लगा । दूध को एक धार के रूप में बालटी में गिरते देखना सुनयना को बहुत अच्छा लग रहा था । थोड़ी ही देर में पूरी बाल्टी भर गई । सुनयना ने इस दृश्य को भी कैमरे में कैद कर लिया ।


         ‘ इतना सारा दूध !! अंकल क्या अब आप लीला माँ का भी दूध निकालेंगे ?’


    ‘ नहीं बेटा, आपकी लीला माँ आजकल दूध नहीं दे रही हैं ।’

         ‘ पर क्यों ? ’


    ‘ बिटिया, हर गाय कुछ दिनों बाद दूध देना बंद कर देती है । अब जब वह बच्चा देगी तब फिर से दूध देने लगेगी ।’


         ‘ बच्चा...।’


     ‘ हाँ बिटिया, अगर गाय बछड़ा देती है तो वह बैल बनता है अगर बछिया देती है तो वह गाय बनती है ।’ ननकू ने उसे समझाते हुये कहा ।

       ‘ अगर ‘ ही ’ तो बैल अगर ‘ शी ’ तो गाय ।’ सुनयना ने कहा ।


       ननकू को आश्चर्य से अपनी ओर देखते हुये सुनयना ने कहा, ‘ मैं समझ गई अंकल...थैंक यू ।’


       हर गाय थोड़े दिनों बाद दूध देना बंद कर देती है जब वह बच्चा देगी तब दूध देगी...बार-बार ननकू अंकल के शब्द उसके मनमस्तिष्क में घूम रहे थे पर क्यों ? सोचते-सोचते सुनयना के अंदर जाने लगी तभी उसकी नजर आँगन के कोने में बने एक कमरे की ओर गई ।


     ‘ वह किसका कमरा है ? वहाँ आग कैसे जल रही है ?’


      ‘ वह ननकू का कमरा है ।’ रोहन ने कहा ।

         वह उस कमरे की ओर बढ़ी... 


      ‘ कहाँ जा रही है बिटिया ? ’ दादी ने उसे ननकू के कमरे की ओर जाते हुए देखा तो पूछा ।


         ‘ दादीजी  वह आग !!’


      ‘ बेटा, ननकू की पत्नी झूमा चूल्हे पर खाना बना रही है । ’


      ‘ चूल्हा... यह क्या होता है दादीजी ? ’


      ‘ रोहन, जा अपनी दीदी को चूल्हा दिखा ला । ’


          वह रोहन के साथ ननकू के कमरे में गई । झूमा उन्हें देखकर उठ गई तथा अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी आँखें पोंछते हुए आश्चर्य से पूछा, ‘ कोई काम है का बचवा ?‘


       ‘ आँटी, मै चूल्हा देखना चाहती हूँ । ’ सुनयना ने कमरे में घुसते ही कहा ।


       ‘ आव बिटिया, यही चूल्हा है । इसी पर हम खाना बनावत हैं । ’ झूमा ने चूल्हे की तरफ इशारा करते हुए कहा ।


     सुनयना ने देखा कि चूल्हा यू के आकार का बना है । उसमें झूमा ने लकड़ी डालकर आग जला रखी है । उस आग में वह खाना बना रही है । चूल्हे से निकलते धुंये के कारण वह बार-बार आँखें भी पोंछ रही है ।


     ‘ आँटी, चूल्हे पर खाना बनाने में आपको बहुत परेशानी होती होगी । क्या आपके पास गैस नहीं  है ? ’ उसे गर्मी और धुंये से परेशान होते देख चूल्हे का फोटो खींचते हुये सुनयना ने पूछा ।  


        ‘ बिटिया हम गरीबन के पास गैस कहाँ ? ‘   

      

    ‘ दीदी, अब हम कैरम खेलें ।’ उनकी बातों से बोर हो रहे रोहन ने कहा । 


      ‘ ठीक है, चलो ।’ सुनयना ने कहा ।


       सुनयना के कानों में बार-बार झूमा के शब्द गूँज रहे थे...बिटिया, हम गरीबन के पास गैस कहाँ ? लेकिन वह क्या कर सकती है ? अभी तो वह छोटी है । छोटी है तो क्या हुआ वह दादाजी से बात करेगी । वह ननकू को गैस दिलवा देंगे, उसने मन ही मन सोचा ।   

 

           ‘ दादी, हम कैरम खेलने जा रहे हैं ।’  रोहन ने दादी को देखकर उनसे इजाजत माँगी ।


        ‘ ठीक है बच्चों । अब अंधेरा हो रहा है । घर के अंदर ही खेलो ।’ कहकर दादी एक बड़े से शीशे के जार को हिलाने लगीं ।


       ‘ दादी यह आप क्या कर रही हैं ?’


       ‘ बेटा इसमें मैंने गोभी और गाजर का अचार डाला है । तेरे पापा को बहुत पसंद है ।’


      ‘ अचार...लेकिन यह बाहर क्यों रखा है ?’


       ‘ बेटा, अचार को धूप में रखकर ही बनाते हैं जिससे धूप की गर्मी से इसमें डाली सब्जियाँ और तेल पक जाये ।’


     ‘ मतलब अचार को सोलर एनर्जी से पकाया जाता है ।’ सुनयना ने कहा ।


       ‘ हाँ बेटा...ननकू, इस अचार के मर्तबान को अंदर उठाकर रख देना, कहीं बारिश आ गई तो खराब हो जायेगा ।’


         ‘ आया मालिकिन...।’


       ननकू के आने पर दादी भी अंदर आ गईं तथा वे दोनों भी अंदर जाकर कैरम खेलने लगे ।


       थोड़ी देर पश्चात् सुनयना पानी पीने किचन में आई तो देखा डायनिंग रूम के बगल वाले कमरे में लाइट जल रही है । वह अंदर गई उसने देखा कि ननकू एक जगह बैठा कुछ रहा है ।

                   

       ‘ अंकल, आप क्या कर रहे हैं ?’  पानी पीना भूल कर सुनयना ने उसके पास जाकर पूछा ।


      ‘ बिटिया हम चक्की की सफाई कर रहे हैं । बड़ी मालिकिन कहे रहीं कि कल आपको नाश्ते में दलिया खाना है । दलिया खत्म हो गया है अतः हम इस चक्की पर दलिया पीसने जा रहे हैं ।’ ननकू ने कहा ।


    ‘ चक्की...इस पर दलिया पीसेंगे...मैं कुछ समझी नहीं । ’


       ‘ बिटिया यह हाथ चक्की है । आप देखो इसमें दो गोल चक्के हैं । ऊपर वाले गोल चक्के के बीच में एक छेद है तथा चक्के को घुमाने के लिये इस चक्के में एक हैंडिल भी लगा है । इस छेद में हम गेहूँ डालकर हैंडिल से घुमायेंगे तो गेहूँ के दाने पिसकर यहाँ इकट्ठे होते जायेंगे जिसे हम बाद में निकाल लेंगे ।’ चक्की की सफाई हो गई थी अतः ननकू ने चक्की के बीच में बने एक होल में एक मुट्ठी गेहूँ डालते हुये चक्की के हैंडिल को पकड़कर गोल-गोल घुमाते हुये कहा तथा पुनः एक मुट्ठी गेहूँ चक्की के होल में डाल दिया ।


       सुनयना ने देखा कि जमीन से थोड़ी ऊँचाई पर एक थाल जैसे बने आकार के बीच में दो गोल चक्के एक ऊपर एक रखे हुये हैं । ऊपर के चक्के में एक होल और एक हैंडिल है । ननकू होल में गेहूँ डालकर, हैंडिल को गोल-गोल घुमा रहा है । उसने देखा कि थोड़ी ही देर में गेहूँ छोटे-छोटे भागों में टूटकर चक्की के किनारे से निकलने लगा जो थाल में गिरने लगा ।


      ‘ अरे वाह ! मैं चलाऊँ अंकल ।’ सुनयना ने फोटो खींचने के पश्चात् कहा ।


      ‘ बिटिया बहुत भारी है । आप नहीं चला पाओगी ।’


         ‘ कोशिश तो कर सकती हूँ ।’


      ‘ आओ...।’ ननकू ने हटते हुये कहा ।


     सुनयना ने ननकू की तरह चक्की चलाने का प्रयत्न किया किंतु बड़ी मुश्किल से हैंडिल को घुमा पाई ।


         ‘ सच अंकल, चक्की बहुत भारी है ।’ कहते हुये वह हट गई ।


        ‘ क्या कर रही है मेरी बिटिया ? ’ उसी समय दादी ने आते हुये कहा ।


         ‘ दादी दलिया कैसे बनता है, देख रही थी । ननकू अंकल को देखकर मैंने भी चक्की चलाने की कोशिश की पर यह तो बहुत भारी है, मुझसे तो यह चक्की चली ही नहीं ।’ सुनयना ने निराश स्वर में कहा ।


         ‘ बेटा तुम अभी छोटी हो...जब बड़ी होगी तब चला लोगी ।’ दादी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुये कहा ।


           ‘ दादी आटा भी तो गेहूँ से ही बनता है वह भी क्या इसी चक्की से पीसा जाता है ?’

     ‘ हाँ बेटा आपकी परदादी के समय गेहूँ का आटा भी इस हाथ चक्की से पीसा जाता था पर जब से आटा पीसने की मशीन आ गईं हैं तबसे आटा मशीन पर ही पिसवाया जाने लगा है ।’


     ‘ मम्मी तो दलिया बाजार से मँगवातीं हैं ।’


          ‘ बेटा, अब बाजार में सब मिलता है । दलिया खत्म हो गया था । तुम्हें दलिया खाना था अतः मैंने ननकू से दलिया पीसने के लिये कह दिया ।’


                ‘ थैंक यू दादी ।’

 

6




बरसा पानी झम झमाझम  -6 


       दूसरे दिन सुनयना का मनपसंद नाश्ता दलिया और ब्रेड आमलेट बना था । आज सुबह से ही बारिश हो रही थी । बाहर कहीं जा नहीं सकते थे अतः नाश्ता करके सुनयना और रोहन घर के ऊपरी मंजिल पर बनी बालकनी से बारिश देखने लगे । बारिश उसके लिये नई नहीं थी । मुंबई में तो हमेशा ही बारिश होती रहती है । उसके लिए नई बात थी चारों ओर दूर-दूर तक फैले हरे-भरे खेतों को देखना जबकि उसके शहर में हरियाली का नामोनिशान नहीं है । चारों ओर घर ही घर...इंसान ही इंसान, किसी अन्य जीवजन्तु के लिये तो मानो कोई जगह ही नहीं है । आज वह बाहर जा नहीं सकती थी अतः वह घर पर ही रोहन के साथ, रोहन के खिलौनों से खेलने लगी । शाम को पानी बरसना बंद हुआ तो वह फिर रोहन के साथ बालकनी में आ गई ।


       सुनयना बालकनी में आकर इधर-उधर देख ही रही थी कि एक ओर खेत में मोर नाचता दिखाई दिया । वह पहली बार मोर को नाचते देख रही थी अतः बेहद प्रसन्न थी । अचानक वह दौड़कर अंदर गई तथा अपना बाइनोकुलर लेकर आ गई । बाइनोकुलर से मोर को नाचते देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था ।  


      ‘ दीदी,  यह क्या है ?’ रोहन ने पूछा ।


      ‘ यह बाइनोकुलर है । इससे छोटी चीजें बड़ी दिखने लगतीं हैं। लो तुम भी देखो । ‘ सुनयना ने बाइनोकुलर रोहन को पकड़ाते हुए कहा तथा वह मोर के नाचने का वीडियो बनाने लगी ।


      ‘ इससे तो मोर बहुत बड़ा लग रहा है । सच दीदी मोर नाचते हुए कितना अच्छा लग रहा है । ‘ रोहन ने बाइनोकुलर से मोर को देखते हुए कहा । 


       वह विडियो बना ही रही थी कि उसके पास खड़े रोहन ने एक ओर इशारा करके कहा, ‘ दीदी...वह देखो इंद्रधनुष ।’

                आकाश में इंद्रधनुष चमक रहा था...बहुत ही खबूसूरत दृश्य था...ऊपर इंद्रधनुष तथा नीचे नाचता मोर...वह भावविभोर हो गई । वह मोबाइल में इन दृश्यों को कैद कर ही रही थी कि दादाजी आ गये । उन्हें देखकर दोनों एक साथ बोले, ‘ दादाजी, वह देखिये इंद्रधनुष...।’

                ‘ बहुत सुंदर....बच्चों क्या तुम्हें पता है यह इंद्रधनुष कैसे बनता है ?’ उन दोनों को इन्द्रधनुष को निहारते देखकर दादाजी ने अपना चश्मा ठीक करते हुए वहाँ पड़ी कुर्सी पर बैठते हुये पूछा ।


         ‘ नहीं दादाजी, आप बताइये ।’ सुनयना ने पूछा ।


       ‘ बच्चों, जब बरसात होती है तब बरसात की छोटी-छोटी बूंदें वायुमंडल में स्थित हवा में लटकी रह जाती हैं ।  इन बूंदों पर जब सूरज की किरणें पड़तीं हैं तब इंद्रधनुष का निर्माण होता है ।’ दादाजी ने कहा । 

 

  ‘ किंतु इंद्रधनुष में इतने सारे रंग...!!’ सुनयना ने पूछा ।


      ‘ बच्चों सूरज के प्रकाश में सात रंग होते हैं । ’


     ‘ क्या सूरज के प्रकाश में सात रंग होते हैं ? हमें तो वह सफेद दिखता है ? ’ सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।


    ‘ दरअसल सफेद रंग सात रंगों से मिलकर बनता है...।’ दादाजी ने कहा ।

     ‘ कौन-कौन से सात रंग, प्लीज दादाजी बताइये न ।’ सुनयना ने दादाजी से आग्रह करते हुए कहा ।


        ‘ बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंग । इन रंगों को एक शब्द ‘ विबग्योर ’ के द्वारा याद कर सकते हो ।’


        ‘ बिबग्योर...इसका क्या अर्थ है ।’


      ‘ बेटा, ‘VIBGYOR’ शब्द अंग्रेजी के सात अक्षर से मिलकर बना है जिसका अर्थ है V  से Violet (बैगनी), I  से Indigo (नीला) , B से Blue (आसमानी), G  से Green  (हरा), Y से Yellow (पीला), O से Orange (नारंगी) तथा R  से Red (लाल ) ।’


        ‘ लेकिन यह इंद्रधनुष...।’ 


       ‘ बेटा जैसा तुम्हें बताया कि सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते हैं । पानी की बूँदों पर सूर्य के प्रकाश का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के इन रंगों का कारण है ।’


         ‘ आपने क्या कहा दादाजी ?  मैं समझ नहीं पाई ।’ सुनयना ने कहा ।

‘ बेटा, हवा में लटकी पानी की नन्हीं-नन्हीं बूँदों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो वह सात रंगों में टूटकर इंद्रधनुष का निर्माण करता है । 

      ‘ ओ.के. दादाजी ।’


    ‘ अच्छा बताओ इंद्रधनुष में सबसे बाहर कौन सा रंग है ।


      ‘ लाल रंग दादाजी । ’ रोहन ने इंद्रधनुष को देखते हुये कहा ।‘


   ‘ वेरी गुड रोहन बेटा, और अंदर...।’ दादाजी ने रोहन को देखते हुये कहा ।


  ‘ बैगनी रंग...।’ इस बार सुनयना और रोहन दोनों ने कहा ।


       ‘ ऐसा क्यों होता है ?’


      ‘ आप बताइये न दादाजी । ’ सुनयना ने कहा ।


    ‘ लाल रंग के प्रकाश में मुड़ने की शक्ति कम होती है अतः लाल रंग इंद्रधनुष में सबसे ऊपर होता है जबकि बैंगनी रंग के प्रकाश मुड़ने की शक्ति अधिक होती है अतः यह सबसे नीचे रहता है ।’


    ‘ आपके कहने का मतलब है कि रंगों के मुड़ने के अनुसार ही इंद्रधनुष में यह सात रंग क्रमानुसार रहते हैं । ’  सुनयना ने कहा ।


      ‘ हाँ बेटा, एक बात और इंद्रधनुष सदा सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है । इंद्रधनुष पूरी गोलाई में बनता है पर हमें यह धनुष जैसा नजर आता है ।


       थोड़ी ही देर में इंद्रधनुष विलुप्त हो गया तथा सूर्य बादलों के साथ लुका छिपी खेलने लगा । आकाश का रंग बदलने लगा था । सुनयना के लिये नई चीज थी । शहर की आपाधापी तथा ऊँची-ऊँची इमारतों के कारण उसके लिये ऐसे दृश्य दुर्लभ हैं । एक बार फिर सुनयना ने इस दृश्य को अपने मोबाइल में कैद कर लिया ।


    ‘ अरे, मोर कहाँ गया ? ’ अचानक मोर को न पाकर सुनयना ने पूछा ।


  ‘ रात हो रही है, वह भी आराम करने गया होगा ।‘ रोहन ने कहा ।


      ‘ क्या अपने घर ?’ सुनयना ने कहा ।


    ‘ बच्चो मोर अपने लिए कोई घर नहीं बनाता वह जंगलों में रहना पसंद करता है लेकिन भोजन की खोज उसे इंसानी आबादी तक खींच लाती है ।’ दादाजी ने कहा ।


       ‘ दादाजी मोर क्या खाता है ?’ सुनयना ने पूछा ।


  ‘ मोर हानिकारक कीड़े मकोड़ों को जैसे चूहे, छिपकलियाँ ,दीमक के साथ मोर साँप को भी खा तथा पचा भी जाता है इसलिए यह हम किसानों का अच्छा मित्र भी है । जिस लाल मिर्च को खाने से पहले हम इंसान कई बार सोचते हैं, उसे भी मोर बड़े चाव से खाता है जिससे किसानों को थोड़ा नुकसान भी होता है । ‘ दादाजी ने उनसे कहा ।

 

    ‘ मोर साँप भी खाता है...।‘ सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।  

 

         ‘ हाँ बेटा । ‘


        ‘ बच्चों क्या तुम जानते हो कि हमारे राष्ट्रीय पक्षी का नाम क्या है ?’ दादाजी ने पूछा ।


     ‘ मोर...। ‘ रोहन  ने कहा ।


        ‘ सही । ‘


  ‘ पर मोर को ही राष्ट्रीय पक्षी क्यों चुना गया ?’ सुनयना ने फिर पूछा ।


   ‘ मोर सुंदर तो है ही, साथ ही जैसा मैंने बताया किसानों के लिए लाभदायक भी है ।’ दादा जी ने कहा ।

      ‘ मोर के पंख इतने सुंदर हैं तभी भगवान कृष्ण इसे अपने मुकुट में लगाते हैं । ‘ सुनयना ने कहा ।


   ‘ बेटा, इसीलिए मोर को पवित्र मानते हैं । ‘ दादाजी ने कहा । 


       ‘ दादाजी मैंने पढ़ा है कि जिसके ज्यादा पंख होते हैं वह मोर होता है जिसके कम होते हैं वह मोरनी होती है...ऐसा क्यों ? ‘ सुनयना को कहीं पढ़ी बात याद आई तो वह पूछ बैठी  ।


    ‘ मोर के पंखों के बारे में एक असमिया लोक कथा है । आज तुम दोनों को सुनाती हूँ । सुनोगे...।’ दादीजी ने कहा जो उनकी बातचीत के मध्य आईं थीं तथा बिना कुछ कहे चुपचाप कुर्सी पर बैठकर स्वेटर बुनते हुये उनकी बात सुन रही थीं ।


       ‘ हम सुनेंगे...बताइये दादी, मोर को पंख कैसे मिले ?’ सुनयना और रोहन ने उत्सुकता से पूछा ।


      ‘ लेकिन यह एक कहानी है सच्चाई नहीं ।’ दादी ने कहा ।


    ‘ ठीक है दादी, आप सुनाइये न !’


      ‘ एक गाँव में गनेरू नाम का एक व्यक्ति था । वह गाँव का मुखिया था । वह गारो नाम की जनजाति से था ।’


    ‘ मुखिया...जनजाति हम समझे नहीं...।’ सुनयना ने पूछा ।


   ‘ बेटा मुखिया वह होता है जिसकी बात सारे गाँव वाले मानते हैं जैसे हमारे गाँव के मुखिया आपके दादाजी हैं तथा जनजाति मतलब पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले लोग जिनका रहने खाने पीने का अपना अलग तरीका होता है ।’


        ‘ ओ.के. दादी ।’


    ‘ इस जाति में पिता से भी अधिक माँ को माना जाता है । एक बार गनेरू ने अपने गाँव में एक नृत्य प्रतियोगिता रखी । इस प्रतियोगिता में कई लड़के लडकियों ने नृत्य किया किंतु जयमाला नाम की लड़की तथा जय नाम के लड़के ने बहुत अच्छा नृत्य किया । आयोजकों ने दोनों को ही प्रथम पुरस्कार दिया । पुरस्कार लेते हुये दोनों ने एक दूसरे को देखा । जयमाला की आँखों में अपने लिये प्यार देखकर जय ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।’   

 

    ‘ फिर क्या हुआ दादी...।’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा । वहीं रोहन दादाजी के मोबाइल में गेम खेलने लगा उसे इस कहानी में कोई मजा नहीं आ रहा था ।


     ‘ जयमाला ने जय के बारे में अपनी माँ-पापा को बताया तो उसके माँ-पापा जय के साथ उसका विवाह करने के लिये तैयार हो गये क्योंकि उन्हें लगा था कि उनकी बेटी अपने समान नृत्य करने वाले लड़के जय के साथ खुश रहेगी । उन्होंने उसका विवाह धूमधाम से जय के साथ कर दिया । जब वे जयमाला को विदा करने लगे तो उसकी माँ एक चुनरी लेकर आई । नीले, लाल, हरे, पीले रंग की तथा हीरे, जवाहरातों से जड़ी खूबसूरत चुनरी को देखकर, जयमाला बहुत खुश हुई । यह तो बहुत सुंदर है माँ...कहते हुये जयमाला उसे छूने के लिये आगे बढ़ी ।


       उसकी माँ तुरंत पीछे हटकर बोलीं…'नहीं, नहीं इसे मत छूना । यह एक जादुई चुनरी है । इसे मेरी परनानी ने मुझे दिया था । '


     जयमाला माँ की बात सुनकर रूक गई तथा प्रश्नयुक्त नजरों से उन्हें देखने लगी । तब उसकी माँ ने कहा, ' बेटा जब इसे तुम ओढ़ना चाहो तब इस छूने से पहले यह मंत्र पढना ।' कहकर उन्होंने उसके कान में एक मंत्र पढ़ा । जयमाला ने वह मंत्र पढ़कर अपनी माँ से चुनरी ले ली ।


       जयमाला और जय दोनों एक गाँव में रहने लगे । एक दिन जयमाला ने जय से कहा कि मुझे मछली खानी है अतः मैं मछली लेने बाजार जा रही हूँ । जय ने कहा ठीक है । जब वह घर से निकली तो उसने देखा बाहर बरामदे में रस्सी पर उसकी माँ की दी गई वह जादुई चुनरी लटकी है । वह जल्दी में थी अतः उसने चुनरी को उठाकर बक्से में नहीं रखा । उसने जाते हुये जय से कहा चाहे जो हो जाये तुम इस चुनरी को मत छूना । जब मैं आऊँगी तब इसे रख दूँगी । जय ने फिर कहा ठीक है ।


       अभी जयमाला घर से थोड़ी ही दूर गई थी कि अचानक आकाश में बादल छा गये...गरज के साथ बारिश होने लगी । जय बाहर आया उसने देखा कि बाहर रस्सी पर जयमाला की सुंदर चुनरी लटक रही है, कहीं बारिश में यह खराब न हो जाये, सोचकर वह उसे उठाने के लिये आगे बढ़ा । उधर जयमाला को भी लगा कि कहीं जय उसकी  चुनरी को न छू ले वह बिना मछली लिये घर की ओर दौड़ी किन्तु उसके लौटने के पहले ही जय ने उस चुनरी को उठा लिया था । उसके चुनरी को छूते ही चुनरी के बेलबूटे उसके शरीर पर लगकर पंख का आकार लेने लगे । जयमाला ने जय के शरीर में पंखों को उगते देखा तो वह घबराकर चिल्लाई...नहीं...नहीं...। उसने चुनरी खींचने की कोशिश की । इस प्रयत्न में बचे बेलबूटे जयमाला के शरीर में पंख बन गये । अब दोनों के शरीर को पंख मिल गये थे । जय के हिस्से में ज्यादा चुनरी आई अतः उसके शरीर में पंख ज्यादा और खूबसूरत हैं जबकि जयमाला के हिस्से में कम चुनरी आई अतः उसे कम पंख मिले । वे दोनों उड़कर जंगल में चले गये । कहा जाता है कि जब आकाश में बादल गड़गड़ाते हैं या बारिश होती है तब मोर मोरनी नृत्य करने लगते हैं ।’


       ‘ दादी क्या जिसके पंख ज्यादा होते हैं वह मोर है ? ’


    ‘ हाँ बेटा जय लड़का था अतः वह मोर बना तथा जयमाला मोरनी ।’


     ‘माँजी बहूरानी पकौड़े बनाय रहीं हैं...आप सबन को बुलावत हैं । गर्म-गर्म खा लेब ।’ ननकू ने आकर कहा ।


    ‘ चलो बच्चों चलो । ’ दादाजी ने रोहन के हाथ से अपना मोबाइल लेते हुये कहा ।


       मोबाइल हाथ से छिनते ही रोहन ने बुरा सा मुँह बनाया । वहीं दादी ऊन और सलाई को बैग में रखकर चलने के उठ गईं । दादी का हाथ पकड़कर चलते हुये सुनयना ने कहा, ‘ दादी क्या ऐसा सचमुच हुआ था ?’


  ‘ बेटा, मैंने पहले ही कहा था, यह कहानी है ।’


     ‘ फिर कहानी में झूठ क्यों बताया जा रहा है ।’ सुनयना ने अपनी तर्क बुद्धि का इस्तेमाल करते हुये पूछा ।


    ‘ बेटा पहले जमाने में लोग ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते थे । उन्हें यह बताना कि मोर के पंख ज्यादा होते हैं जबकि मोरनी के कम या मोर अधिक सुंदर होता है वहीं मोरनी कम सुंदर होती है या वे तभी नाचते हैं जब आकाश में बादल हों, बादल गड़गड़ा रहे हों या पानी बरस रहा हो, उस समय लोगों को इन बातों को ऐसी ही कहानियों के माध्यम से समझाया जाता था । ’


   ‘ आप ठीक कह रही हैं दादी, मेरी मेम भी यही कहतीं हैं बच्चों को बोरिंग से बोरिंग विषय भी कहानी के माध्यम से समझाया जा सकता है । ’


       सुनयना की बात सुनकर दादी सोच रही थीं कितना अंतर आ गया है पहले के समय और आज के समय में, हमें जो बताया जाता था वह हम बिना तर्क वितर्क के स्वीकार कर लेते थे जबकि आज के बच्चे तब तक संतुष्ट नहीं होते तब तक कोई घटना उनके तर्क की कसौटी पर खरी न उतरे ।


       ‘ दादी मैं तो पूछना ही भूल गई कि आज आप दूसरा स्वेटर बुन रही थीं कल वाला नहीं क्योंकि कल तो ऊन नीली थी जबकि आज की गुलाबी ।’ अचानक सुनयना ने पूछा ।


      ‘ बेटा तू कह रही थी कि मुझे हाथ का बुना स्वेटर पहनना है अतः आज मैं तेरे लिये स्वेटर बना रही हूँ  ।’ दादी ने अपने विचारों को परे ढकेलकर पूछा ।


      ‘ क्या हमारे जाने तक यह स्वेटर बन जायेगा ?’


        ‘ हाँ मेरी लाढ़ो ।’


       ‘ आप बहुत अच्छी हो दादी ।’ कहकर सुनयना ने दादी की ओर देखा ।

        सुनयना की बार-बार प्रशंसा करने की आदत ने दादी को भी इस बात का एहसास हो चला था कि तारीफ इंसान का मनोबल बढ़ाती है न कि उसे बिगाड़ती है जबकि हमारे समय मे माता-पिता बच्चों की तारीफ इसलिये नहीं करते थे कि कहीं ज्यादा तारीफ से बच्चा बिगड़ न जाये ।


    बातें करते-करते वे नीचे डायनिंग हाल में पहुँच गये । उनके बैठते ही माँ और चाची ने उन्हें प्याज और गोभी के पकौड़े परोस दिये ।


       ‘ क्या चटनी नहीं बनाई ? ’ दादाजी ने कहा ।


      ‘ बनाई है पिताजी...ननकू चटनी नहीं दी ।’ चाची ने ननकू से कहा ।


       ‘ बस मालिकिन, पिस ही गई है ।’ ननकू ने कहा ।


     ‘ मैं चटनी लेकर आती हूँ ।’ ननकू की आवाज सुनकर सुनयना चटनी लाने किचन में पहुँच गई । उसने देखा कि ननकू नीचे बैठा एक कटोरी में कुछ डाल रहा है ।


        ‘ अंकल यह आप क्या कर रहे हैं ?’ सुनयना ने ननकू के पास जाकर पूछा ।


    ‘ बिटिया, चटनी पीसी है उसे ही कटोरी में डाल रहा हूँ । ’


         ‘ चटनी...इस पर...यह क्या है ? ममा तो मिक्सी में चटनी पीसती हैं ।’


        ‘ बेटा, यह सिल बट्टा है । पहले घरों में मिक्सी नहीं होती थी तब इसी पर चटनी, मसाले इत्यादि पीसे जाते थे ।’ ननकू की बजाय चाची ने उत्तर दिया ।


     ‘ पर चाची आपके पास तो मिक्सी है फिर इस पर क्यों ?’


    ‘ आपके दादाजी को मिक्सी में पिसी चटनी अच्छी नहीं लगती अतः हमारे घर अभी भी चटनी सिल बट्टे पर ही पीसी जाती है ।’


       ‘ क्या सिल बट्टे पर पिसी चटनी और मिक्सी में पिसी चटनी का टेस्ट अलग होता है ?’


    ‘ आप खाकर देखो और बताओ ।’ चाची ने कहा ।


       ननकू चटनी देकर आ गया । वह सिल उठाने जा रहा था कि सुनयना ने उससे कहा,‘ अंकल बताइये इस पर चटनी कैसे पीसी जाती है ? ’


       ननकू थोड़ा सा धनिये के पत्ते सिल पर रख दिये तथा बट्टे को धनिये के ऊपर रखकर आगे पीछे करने लगा ।

         ‘ अंकल मैं करके देखूँ ।’


     ‘ ठीक है बिटिया ।’ कहकर ननकू हट गया ।


       सुनयना उसके हाथ से बट्टा लेकर ननकू की नकल करने लगी ।


    ‘ आजकल के बच्चे भी...उन्हें अपने हर प्रश्न का उत्तर चाहिये ।’ नलिनी ने कहा ।


      ‘ दीदी, इसमें बुरा क्या है ? अच्छा ही है, कम से कम कूपमंडूक तो नहीं रहेंगे ।’


        ‘ सुनयना कहाँ हो ? पकौड़े ठंडे हो रहे हैं । बहू तुम दोनों भी आ जाओ ।’ दादी ने कहा ।


        ‘ आई दादी ।’ सुनयना ने कहा ।


       सिल बट्टा छोड़कर वह भी सबके साथ खाने बैठ गई । उसके साथ ममा और चाची भी आ गईं ।


     ‘ मेरी प्रकाश से बात हो गई है । वह कह रहा है कि अगर शुगर फैक्टरी देखना चाहते हो तो कल आ जाओ । परसों से वह छुट्टी पर जा रहा है । कल दस बजे चलना होगा ।’ खाते-खाते चाचा ने कहा ।


     ‘ शुगर फैक्टरी मैं तो अवश्य चलूँगी ।’


       ‘ आपके लिये ही तो चाचा ने शुगर फैक्टरी देखने का कार्यक्रम बनाया है ।’ चाची ने कहा ।


7


सुनयना चली शुगर फैक्ट्ररी-7


‘ दादी, मुझे ये वाला बटर अच्छा नहीं लगता । आप जो बनाती हैं वह अच्छा लगता है ।’ परांठे के साथ रखे बटर को देखकर रोहन ने कहा ।

                ‘ दूसरा बटर...।’ रोहन की बात सुनकर सुनयना ने आश्चर्य से पूछा । दरअसल रोहन और चाचा को परांठे के साथ बटर पसंद है । वह भी उनकी देखादेखी बटर खाने लगी तो उसे भी पराँठे के साथ बटर अच्छा लगने  लगा है ।

                ‘ हाँ दादी अच्छा बटर बनातीं हैं । मम्मी तो मलाई से बटर बनाकर दे देतीं हैं ।’ रोहन ने बुरा सा मुँह  बनाकर कहा ।

                ‘ ठीक है, आज इसी से खा लो...कल दूसरा बटर खा लेना । मैं आज निकाल दूँगी ।’ दादी ने कहा ।

                ‘ जल्दी-जल्दी नाश्ता कर लो । ठीक दस बजे हमें निकलना होगा । हमें साढ़े दस तक शुगर फैक्टरी पहँचना है ।’ चाचाजी ने कहा ।

       बटर की बात मस्तिष्क से निकालकर सुनयना ने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया तथा तैयार होने चली गई । ठीक दस बजे वह तैयार होकर बैठक में आ गई । चाची और रोहन नहीं जा रहे थे । वे पहले ही फैक्टरी देख चुके थे । चाचाजी तो तैयार थे ही ममा-पापा तैयार हो रहे थे । ममा-पापा के तैयार होकर आते ही वे चल पड़े । जैसे ही  फैक्टरी परिसर में प्रवेश किया चारों ओर फैली हरियाली, जगह-जगह लगे फूलों ने उसका मन मोह लिया । चाचा ने बताया कि यह फैक्टरी की कोलानी है । इसमें फैक्टरी में काम करने वाले लोग रहते हैं । एक इमारत के आहते में गाड़ी खड़ी की तथा कहा,‘ प्रकाश ने मुझसे यहाँ गेस्ट हाउस में मिलने के लिये कहा है ।‘  

       हमारी गाड़ी के रूकने की आवाज सुनकर एक अंकल बाहर आये ।

                ‘ ये प्रकाश हैं ।’ चाचाजी ने गाड़ी से उतर कर उनका हम सबसे परिचय कराया ।

       नमस्ते के आदान-प्रदान के पश्चात् प्रकाश अंकल हम सबको अंदर ले गये । वहाँ उन्होंने नाश्ते का प्रबंध कर रखा था । हम लोग नाश्ता करके आये थे किन्तु उनका मन रखने के लिये हमने थोड़ा-थोड़ा खा लिया । नाश्ता करते-करते ममा पापा से बात करने के साथ उन्होंने सुनयना से भी उसके स्कूल और पढ़ाई के बारे में पूछा ।

       नाश्ता करने के पश्चात् प्रकाश अंकल हमें फैक्टरी लेकर गये । वह हमें पहले फैक्टरी के उस स्थान पर ले गये जहाँ ट्रकों से गन्ना क्रेन द्वारा एक चेन कन्वेयर में डाला जा रहा था । गन्ना अपने आप ठीक वैसे ही आगे बढ़ता जा रहा था जैसे फ्लैट एक्सलेटर में खड़ा आदमी बिना चले ही आगे बढ़ता जाता है । अंकल ने बताया कि अब यह गन्ना कटर में जाएगा जहाँ गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े किए जायेंगे । गन्ने के इन टुकड़ों को क्रशर में भेजा जायेगा जहाँ इसे कुचला जायेगा जिससे कि इसका रस निकल जाये । गन्ने के रस से झिलकों एवं अतिरिक्त पानी को अलग करके इस रस को विभिन्न चैम्बरों में भेजा जाता है । अंकल आगे बढ़ते जा रहे थे तथा दूर से ही उन चैम्बरों को दिखाते जा रहे थे । एक जगह उन्होने कहा यह बॉयलर हैं । गन्ने के रस को बॉयलर में डालकर गाढ़ा किया जाता है तथा गन्ने के पानी तथा झिलकों को दूसरी जगह एकत्रित किया जा रहा है ।

       ‘ अंकल बॉयलर में रस को गाढ़ा कैसे किया जाता है ?‘ सुनयना ने संकुचित स्वर में पूछा ।

       ‘बेटा, कोयले या गैस को जलाकर, बाहर से गर्मी देकर इन बॉयलरस को गर्म किया जाता है जिससे गन्ने का रस उबलने लगता है । उबलने से गन्ने के रस का बचा पानी वाष्पीकृत हो जाता है जिससे रस गाढ़ा हो जाता है ।‘

       ‘ थैंक यू अंकल । ‘

       ‘ वैल्कम बेटा । तुम्हारा प्रश्न सुनकर मुझे खुशी हुई । आगे भी तुम्हें कुछ पूछना हो तो पूछ लेना। ‘

       ‘ ठीक है अंकल ।‘

  अंकल ने आगे बढ़ते हुए कहा कि गन्ने के रस यानि शीरे को साफ करने के लिये इन्हीं बायलरों में लाइम वाटर तथा सल्फर का घोल डालकर साफ किया जाता है । अब इस साफ किये शीरे को अन्य बड़े-बड़े चैम्बरों में बनी बाइब्रेट करती बड़ी-बड़ी छलनियों से पास किया जाता है जिससे कि यह दानों का आकर ले ले । इन चीनी के दानों को एक अन्य बड़े चैम्बर में एकत्रित करते हैं । यहाँ गर्म हवा से इनकी नमी को सुखाकर एक पाइप के जरिये स्टोरेज एरिया में पहुँचाते हैं । इस स्टोरेज एरिया में पाइप के मुँह पर बोरा लगा देते हैं । लगभग एक मिनट से भी कम समय में बोरा भरकर नीचे लगी कन्वेयर बेल्ट पर गिर जाता है । अब तक हम फैक्टरी के इस भाग में पहुँच गये थे । हमने देखा कि जैसे ही बोरे में चीनी भर गई वह कन्वेयर बेल्ट पर गिर गया तथा आगे बढ्ने लगा । थोड़ा आगे बढ़ने पर ही बोरा सिलने की मशीन लगी हुई थी । एक आदमी ने बोरे के मुँह के किनारे को उस मशीन में लगा दिया । इसके पश्चात बोरा कन्वेयर बेल्ट पर स्वयं आगे बढता जा रहा था तथा सिलने वाली मशीन बोरे के मुँह को सिलती जा रही थी । अंकल ने बताया कि यही कन्वेयर बेल्ट बोरे को गोदाम में पहुँचा देती है । अंकल ने यह भी बताया कि यह सारी क्रियायें आटोमैटिक मशीनों द्वारा ही होती हैं । फैक्टरी में इतने लोगों के काम करने के बावजूद कहीं गंदगी का नामोनिशान नहीं था । सभी काम करने वाले मुस्तैदी से अपने-अपने कामों में लगे थे ।

       प्रकाश अंकल ने फैक्टरी से बाहर निकलते हुये बताया कि शीरे को गाढ़ा करते हुये जो पानी निकलता है उसे वॉटर ट्रीटमेंट में ले जाते हैं जहाँ इसे शुद्ध करने के पश्चात सिंचाई के काम में लेते हैं । गन्ने के झिलके से बिजली बनाई जाती है । इस बिजली से शुगर फैक्टरी तथा फैक्टरी के आवासीय परिसर की आवश्यकतायें तो पूरी होती ही हैं, बची बिजली को यू.पी. पावर कारपोरेशन को भी दे देते हैं । अगर शीरा आवश्यकता से अधिक होता है तो उससे शराब बनाई जाती है । चिमनी से जो धुआँ निकलता है उससे प्रदूषण न हो इसके लिये इस धुयें पर पानी के छिड़काव की भी व्यवस्था है । इस प्लांट द्वारा नित्य 53 हजार बोरे का निर्माण होता हैं ।

       सुनयना को फैक्टरी में शुगर बनते देखकर बहुत अच्छा लगा । विशेषकर प्रकाश अंकल जैसे बता रहे थे उससे सब समझ में आ रहा था । वह हमें गाड़ी तक बैठाकर ही गये । पापा-ममा भी उनकी बहुत तारीफ कर रहे थे । लौटते हुये चाचा ने कहा, ‘कल हम अपनी गुड़िया को ट्रैक्टर की सैर करायेंगे ।‘

                ‘ सच चाचा !! मैं ट्रैक्टर में कभी नहीं बैठी हूँ ।’

       सुनयना घर पहुँचकर दादीजी  और चाचीजी को शुगर फैक्टरी के बारे में बताने गई तो पता चला कि वे  किचन में हैं । वह किचन में गई तो देखा चाची खाना बना रही हैं तथा दादी एक स्टूल पर बैठकर रस्सी को आगे पीछे कर रहीं हैं ।

                ‘ दादी, आप यह क्या कर रही हो ?’

                ‘ बेटा रोहन के लिये मक्खन निकाल रही हूँ ।’

                ‘ अच्छा, जैसे यशोदा माँ कृष्ण भगवान के लिये निकालतीं थीं ।’

                ‘ हाँ बेटा ।’

                ‘ और भगवान कृष्ण उस माखन को चुराकर खा भी जाते थे, है न दादी ।’ सुनयना ने कहा ।

                ‘ हाँ बेटा, इसीलिये उन्हें माखनचोर भी कहा जाता था ।’ दादी ने कहा ।

                ‘ दादी,  इसको क्या कहते हैं तथा इससे मक्खन कैसे निकलता है ?’ सुनयना ने पूछा ।  

                ‘ बेटा इसे रई कहते हैं । इस रई से जब मटके में रखे दही को बिलोया जाता है तब दही से माखन निकल आता है ।’ दादी ने उसका आशय समझकर कहा ।

                ‘ बिलोया...मैं समझी नहीं दादी ।’

                ‘ देखो बेटा, जब मैं इस रर्ह को इस रस्सी के सहारे घुमाऊँगी तो यह मटकी के अंदर घूमने लगेगा जिससे मटकी के अंदर का दही भी घूमने लगेगा ।’ दादी ने रस्सी के सहारे रई को घुमाते हुये उसे दिखाते हुये कहा ।

       सुनयना ने देखा कि दादी के रई को चलाते ही मटकी का दही बहुत तेजी से कभी क्लोकवाइज तथा कभी एंटी क्लोक वाइज घूम रहा है जिससे दही के ऊपर झाग बन रहे हैं । थोड़ी देर में ही झाग मक्खन में बदलने लगे । दादी ने मटकी में ठंडा पानी डाल दिया तथा फिर रई घुमाने लगीं । थोड़ी ही देर में दादी ने हाथ से मक्खन निकाला तथा बाहर रखे ठंडे पानी में डाल दिया ।

                ‘ दादी आपने मक्खन को ठंडे पानी में क्यों डाला ?’

                ‘ बेटा, ठंडे पानी में डालने से मक्खन जम जायेगा फिर उसे मैं ऐसे निकाल लूँगी ।’ दादी ने ठंडे पानी से मक्खन निकालकर उसका गोला बनाते हुये कहा ।

                ‘ अरे वाह ! यह तो बिल्कुल बाजार के मक्खन जैसा लग रहा है ।  दादीजी अब आप मटके के दही का क्या करेंगी ?’

                ‘ बेटा यह मट्ठा बन गया, इसे हम सभी पीयेंगे ।’

                ‘ मट्ठा...।’

                ‘ बटरमिल्क...।’ वहीं काम करती ममा ने उत्तर दिया ।

                ‘ बटर मिल्क... बटर मिल्क तो मुझे बहुत अच्छा लगता है । मैं अवश्य पीऊँगी ।’

                ‘ ठीक है बेटा । अभी देती हूँ ।’

        दादी ने गिलास में बटर मिल्क निकाल कर उसमें थोड़ा काला नमक और जीरा डालकर सुनयना को देते हुये कहा ।

                ‘ दादीजी, बटर मिल्क बहुत अच्छा बना है लेकिन इसमें तो बड़ी मेहनत लगती होगी । दही को मिक्सी में चलाकर भी तो मक्खन निकाल सकते हैं ।’ सुनयना ने बटरमिल्क पीते हुये कहा ।

                ‘ हाँ बेटा, मक्खन मिक्सी में भी निकाल सकते हैं पर उसमें इतना सारा दही कई बार चलाना पड़ेगा जबकि इसमें एक बार में ही हो गया । इसके साथ ही मेरी हाथों की एक्सरसाइज भी हो जाती है ।’ दादी ने मुस्कराते हुये कहा ।

                ‘ एक्सरसाइज...।’

                ‘ गाँव के लोगों की पहले यही तो एक्सरसाइज थी । हाथ की चक्की चलाना, दही बिलोना, कुएं से पानी निकालना इत्यादि ।’ दादी ने कहा ।

                ‘ दादी प्लीज आप फिर से रस्सी पकड़िये, मुझे आपकी फोटो खींचनी है ।’ सुनयना ने मोबाइल निकालते हुये कहा ।

                ‘ दादीजी,  देखिये कितनी अच्छी फोटो आई है । ’ सुनयना ने फोटो खींचकर दादी को दिखाते हुये कहा ।

                ‘ सच, बहुत ही अच्छी आई है ।’ दादी ने कहा ।

                ‘ दीदी, चलो न आज आप सुबह से घूम रही हो । चलो अब मेरे साथ खेलो...।’ रोहन ने उसका हाथ पकड़कर केवल कहा ही नहीं अपने साथ ले भी गया ।        

 

8




ट्रैक्टर की सैर-9


                नाश्ता करने के बाद चाचा ने उससे तैयार होने के लिये कहा । वह तैयार होकर आई तो रोहन भी साथ चलने  की जिद करने लगा । वह नाश्ता कर चुका था अतः चाची ने उसे भी तैयार कर दिया । ट्रैक्टर  में ड्राईवर  के बैठने के अलावा किसी अन्य के बैठने की जगह नहीं होती अतः चाचाजी ने सुनयना और रोहन को पहिये के ऊपर बनी जगह पर बैठाकर कहा, ‘ ठीक से बैठ गये हो न, डर तो नहीं लग रहा है । अगर डर लगे बता देना ।’


     ‘ जी चाचाजी । टैक्टर से क्या काम किया जाता है ?’ सुनयना ने ट्रैक्टर के चलते ही पूछा ।


       ‘ बेटा, कृषि के भिन्न-भिन्न कार्यो के लिये भिन्न-भिन्न यंत्रों को उपयोग होता है । इन्हें कृषि यंत्र कहा जाता है । इन कृषि यंत्रों का उपयोग खेतों की जुताई, बुआई, खाद और कीटनाशक दवाइयां डालने, सिंचाई करने, फसल की कटाई, ढुलाई के लिये किया जाता है । ट्रैक्टर एक प्रमुख कृषियंत्र है । जब खेतों में जुताई करनी हो तो इसमें जुताई वाला यंत्र, जब बुबाई करनी हो तब बुबाई वाला यंत्र एवं जब कटाई करनी हो तब कटाई वाला यंत्र लगाकर इसे खेतों में चलाते हैं जिससे हम जो चाहते हैं, वह हो जाता है । कहने का अर्थ है ट्रैक्टर में हम जो चाहे अटैचमेंन्ट लगाकर मनचाहा काम कर सकते हैं वरना पहले समय में यह सब काम हाथ से करना पड़ता था तब किसानों को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी तथा समय भी बहुत लगता था ।’ चाचाजी ट्रैक्टर चलाते हुये उसे बताया ।


      ‘ चाचाजी कुछ करके दिखाइये न ।’


     ‘ इस समय हमारे ट्रैक्टर में जुताई वाला यंत्र लगा है इससे जुताई करके बताता हूँ ।’ कहते हुये चाचाजी ने एक खाली खेत में टैक्टर उतार दिया तथा ट्रेक्टर में लगे यंत्र को नीचा कर दिया । सुनयना ने देखा कि यंत्र में लगे हुक खेत में घुसकर मिट्टी को भुरभुरा करने लगा ।


      ‘ चाचाजी इस यंत्र को क्या कहते हैं ?’


      ‘ बेटा इसे कल्टीवेटर कहते हैं । इसका उपयोग खेत की जुताई करने, मिट्टी के ठेलों को तोड़ने तथा फसल उगाने से पूर्व भूमि को नर्म बनाने तथा खरपतवार हटाने के लिये होता है ।’ थोड़ी ही देर में चाचा सड़क पर आ गये तथा आगे बढ़ने लगे ।


' चाचा जी यह खर... क्या होता है । मैं समझी नहीं ।' सुनयना ने पूछा ।


' बेटा, ऐसा पौधा, जो फसलों के बीच बिना बोए स्वयं ही उग जाता है और उस फसल को विभिन्न रूपों में हानि पहुँचाकर उपज को कम कर देता है, उसे खरपतवार कहते हैं ।'


     ‘ ओ.के.चाचाजी, अब हम लोग कहाँ जा रहे हैं ?’


     ‘ अब हम अपने टियूब वेल की ओर जा रहे हैं ।’


       ‘ टियूब वेल...दादाजी कह रहे थे इससे सिंचाई की जाती है पर कैसे ?’


       ‘ यही मैं तुम्हें बताऊँगा ।’


     थोड़ी ही देर में वे टियूब वेल पहुँच गये । चाचाजी ने उन दोनों को ट्रैक्टर से उतारा तथा उन दोनों को लेकर टियूब वेल की ओर बढ़े । चाचाजी ने टियूब वेल आपरेटर रामदीन से स्विच ऑन करने के लिये कहा । रामदीन के स्विच ऑन करते ही उसने देखा कि स्विमिंग पूल जैसे एक गहरे गड्ढ़े में एक मोटी धार के साथ पानी गिर रहा है ।


    ‘ बेटा, तुम देख रही हो उस कैबिन में एक बड़ी मोटर लगी है । उसके ऑन करते ही उस पाइप के जरिये पानी हमारे बनाये इस गड्ढे में गिरने लगा । अब इस पानी को पाइपों के जरिये खेतों में सिंचाई के लिये भेजा जाता है । सिंचाई में यूनिफार्मिटी के लिये पाइपों के मुँह पर स्प्रिंकलर भी लगा देते हैं...वह देखो उस खेत में ।’


     सुनयना ने देखा कि एक खेत में सिंचाई हो रही है उसमें कई फब्बारे की तरह चारों ओर धारें निकल रही हैं ।


     ‘ चाचाजी, टियूब वेल में पानी कहाँ से आ रहा है ?’ सुनयना ने फिर पूछा ।


   ‘ जमीन से बेटा...आपको पता होगा कि हमारी जमीन के नीचे पानी है । मशीनों के द्वारा जमीन में पानी तक एक गोलाकार छेद बनाते हैं जिसे बोरिंग कहा जाता है । इस गोलाकार छेद के जरिये जमीन के अंदर के पानी तक लंबे-लंबे पाइप डाले जाते हैं । इन पाइपों में मोटर लगाकर जमीन से पानी निकाला जाता है । अभी तुमने देखा कि जैसे ही रामदीन ने मोटर ऑन की, जमीन में लगे पाइपों से पानी आने लगा तथा यहाँ हमारे बनाए इस गड्ढे में स्टोर होने लगा । शायद तुमने ध्यान नहीं दिया हमारे घर में भी मोटर लगी है जिसको ऑन करने से पानी छत के ऊपर लगी पानी की टंकी में स्टोर हो जाता है जहाँ से बाथरूम, किचन जहाँ भी आवश्यक हो पानी पूरे दिन आता रहता है । घर के लिये छोटी मोटर लगाई है जबकि यहाँ बड़ी मोटर लगाई गई है । ’


    ‘ प्लीज चाचाजी, यहाँ हमारा फोटो खींच लीजिये । मुंबई जाकर अपनी दोस्तों को दिखाऊँगी ।’  उसने अपना मोबाइल निकालकर चाचाजी को देते हुये कहा ।


      चाचाजी ने ट्रैक्टर और टियूबवेल के साथ तो उसके और रोहन के फोटो खींचे ही, खेतों के बीच उसे तथा रोहन को खड़ा करके भी मोबाइल से कई फोटो खींचे । अभी वह फोटो खींच ही रहे थे कि शोर सुनाई दिया । उन्होंने देखा कि एक बैल भाग रहा है, उससे डरकर चार लड़के भाग रहे हैं ।


    ‘ शायद इन लड़कों ने उसे परेशान किया होगा तभी बैल इन लड़कों के पीछे भाग रहा है ।’ चाचाजी ने कहा ।


       तीन लड़के तो भाग गये किन्तु एक छोटा लड़का भागते-भागते एक गड्ढे में गिर गया । चाचाजी उसे बचाने के लिये जाने लगे तो वहीं खड़े रामदीन ने कहा,‘ मालिक, रूक जाइये । बैल अभी गुस्से में है, अभी आप जायेंगे तो वह आप पर भी हमला कर सकता है । वह देखिये बैल उस गड्ढे के पास खड़े होकर उस लड़के को देख रहा है किन्तु कुछ कर नहीं रहा है ।’


       सचमुच बैल थोड़ी ही देर मे चला गया तब रामदीन और चाचाजी ने उस बच्चे को उस गड्ढे से बाहर निकाला । वह बच्चा अभी भी डर से काँप रहा था । वह गाँव का ही बच्चा था चाचाजी ने रामदीन को मोटर बंद कर उस बच्चे को उसके घर पहुँचाने का आदेश दिया तथा स्वयं भी घर लौटने लगे । घर लौटकर उन्होंने ट्रैक्टर  खड़ा कर उसे उतारा । उसे उतार कर जब वह रोहन को उतारने आगे बढ़े तब तक रोहन ने छलांग लगा दी । वह संभल नहीं पाया तथा गिर गया ।


       रोहन के मुँह से चीख निकली जिसे सुनकर चाचाजी ने उसे उठाया तथा क्रोध से कहा,‘ तुम मानते नहीं हो, कूद गये । बताओ कहाँ चोट लगी है ?’


       रोहन ने रोते हुये घुटने की ओर इशारा किया । सुनयना और चाचा ने देखा कि उसका घुटना हल्का सा फूल गया है । चाचाजी उसे गोदी में उठाकर घर लाये ।


    ‘ क्या हुआ रोहन को ?’ दादी ने चिंतातुर स्वर में पूछा ।


     ‘ आपका लाड़ला ट्रैक्टर से कूद गया, संभल नहीं पाया और गिर गया ।’ चाचाजी ने कहा ।


      ‘ चोट तो नहीं लगी...।’


    ‘ घुटना हल्का सा फूल गया है ।’ चाचाजी ने उसे दादी के पास बिठाते हुये कहा । 


    ‘ बहू, जरा आइस देना तथा एक गिलास में हल्दी वाला दूध देना ।’ दादी ने रोहन के घुटने को देखते हुये कहा ।


      ‘ जी अम्माजी...अभी लाई ।’ चाची ने कहा ।


       चाची तुरंत ही एक बाउल में आइस पीस ले आईं साथ में एक छोटी टॉवल भी । दादीजी ने उस टॉवल में आइस पीस रखकर रोहन के घुटने पर रख दिया ।


      ‘ इससे क्या होगा दादी ?’सुनयना ने पूछा ।


        ‘ बेटा आइस का सेक रोहन के घुटने पर आई सूजन को कम करेगा ।’

         ‘ और हल्दी वाला दूध...।’


      ‘ हल्दी वाला दूध दर्द कम करता है । वैसे स्वस्थ व्यक्ति भी अगर रोज हल्दी वाला दूध पीये तो वह जल्दी बीमार नहीं पड़ेगा ।’ दादी ने उत्तर दिया ।


       तब तक चाची एक गिलास दूध में हल्दी डालकर ले आईं । उसे दूध की ओर देखता देखकर चाचीजी ने उससे पूछा ‘ सुनयना क्या तुम भी पीओगी ?’


       सुनयना को भी भूख लग रही थी उसने भी हाँ कर दी । इसके साथ ही वह यह भी देखना चाहती थी कि हल्दी वाला दूध पीने में कैसा लगता है । चाची ने उसे भी हल्दी वाला दूध लाकर दे दिया । सुनयना ने दूध पीया तो उसे ठीक ही लग रहा था । उसने पास खड़ी अपनी ममा से कहा,‘ ममा अब मैं भी रोजाना हल्दी वाला दूध पीया करूँगी, दादी कह रहीं हैं कि इसको पीने से बीमार कम पड़ते हैं ।’


     ‘ बेटा, पता नहीं बाजार की पिसी हल्दी कैसी होती है इसलिये मैं दूध में हल्दी नहीं डालती हूँ ।’


         ‘ अगर सुनयना पीना चाहती है तो मैं हल्दी पिसवाकर तुम्हारे साथ रख दूँगी । तुम ले जाना । तुम और अजय भी पीओगे तो फायदा ही करेगा ।’ दादीजी ने कहा ।


     ' ठीक है माँ जी ।'


     ‘ ननकू स्टोर से एक किलो के लगभग हल्दी निकालकर, धोकर सुखा देना ।’ 


       ‘ मालिकिन हल्दी तो धुली रखी है । आटा खत्म हो रहा है । आप कहें तो गोदाम से गेहूँ निकालकर धो दें ।’


       ‘ अरे, उसमें पूछने की क्या बात है । जाओे निकाल लो । बहू से चाबी ले लो । ‘ दादीजी ने उससे कहा ।


    चाची से चाबी लेकर ननकू गोदाम जाने लगा तो गोदाम देखने के लिये सुनयना भी उसके पीछे-पीछे चलने लगी ।


      ‘ बिटिया आप कहाँ आय रही हो ?’


       ‘ अंकल मुझे गोदाम देखना है ।’


        ‘ ठीक है । आय जाव ।’


        घर के स्टोर रूम में बने दरवाजे को खोलते ही ननकू ने बिजली जला दी । लगभग दस सीढ़ियाँ उतरकर नीचे बने एक बड़े से हॉल में पहुँचते ही ननकू ने फिर लाइट जलाई । ननकू के लाइट जलाते ही सुनयना चौंक  गई । गोदाम में अनगिनत बोरे रखे हुये थे तथा बाहर जाने के लिये एक लोहे का दरवाजा भी नजर आ रहा था । सुनयना ने पूछा,‘ अंकल इन बोरों में क्या रखा है तथा यह दरवाजा...’


   ‘ बिटिया, इन बोरों में अनाज रखा है तथा वह दरवाजा इन बोरों को लाने ले जाने के लिये है ।’


    ‘ लाने ले जाने के लिये... इन बोरों को कहाँ ले जायेंगे ? इतना सारा अनाज कौन खायेगा ?’


    ‘ बिटिया, यह अनाज मंडी में जायेगा, वहाँ से लोग खरीदेंगे ।’ ननकू ने एक बोरे में से गेहूँ अपने लाये बैग में निकालते हुये कहा ।


   ‘ अनाज मंडी...मैं समझी नहीं अंकल ।’


   ‘ बिटिया अनाज मंडी मतलब बाजार जहाँ लोग अनाज खरीदते हैं ।’


    ‘ अंकल साँप...।’ कहकर वह दौड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गई ।


       ‘ बिटिया डरो मत...धामिन साँप है । यह जहरीला नहीं होता । वैसे भी साँप को जब तक हम छेड़ेंगे नहीं, वह काटेगा नहीं...।’


       ननकू ने वहीं खड़े डंडे से ठक-ठक किया । साँप चला गया तथा वह गेहूँ लेकर बाहर आ गया ।


9



ट्रैक्टर की सैर-9


                नाश्ता करने के बाद चाचा ने उससे तैयार होने के लिये कहा । वह तैयार होकर आई तो रोहन भी साथ चलने  की जिद करने लगा । वह नाश्ता कर चुका था अतः चाची ने उसे भी तैयार कर दिया । ट्रैक्टर  में ड्राईवर  के बैठने के अलावा किसी अन्य के बैठने की जगह नहीं होती अतः चाचाजी ने सुनयना और रोहन को पहिये के ऊपर बनी जगह पर बैठाकर कहा, ‘ ठीक से बैठ गये हो न, डर तो नहीं लग रहा है । अगर डर लगे बता देना ।’


     ‘ जी चाचाजी । टैक्टर से क्या काम किया जाता है ?’ सुनयना ने ट्रैक्टर के चलते ही पूछा ।


       ‘ बेटा, कृषि के भिन्न-भिन्न कार्यो के लिये भिन्न-भिन्न यंत्रों को उपयोग होता है । इन्हें कृषि यंत्र कहा जाता है । इन कृषि यंत्रों का उपयोग खेतों की जुताई, बुआई, खाद और कीटनाशक दवाइयां डालने, सिंचाई करने, फसल की कटाई, ढुलाई के लिये किया जाता है । ट्रैक्टर एक प्रमुख कृषियंत्र है । जब खेतों में जुताई करनी हो तो इसमें जुताई वाला यंत्र, जब बुबाई करनी हो तब बुबाई वाला यंत्र एवं जब कटाई करनी हो तब कटाई वाला यंत्र लगाकर इसे खेतों में चलाते हैं जिससे हम जो चाहते हैं, वह हो जाता है । कहने का अर्थ है ट्रैक्टर में हम जो चाहे अटैचमेंन्ट लगाकर मनचाहा काम कर सकते हैं वरना पहले समय में यह सब काम हाथ से करना पड़ता था तब किसानों को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी तथा समय भी बहुत लगता था ।’ चाचाजी ट्रैक्टर चलाते हुये उसे बताया ।


      ‘ चाचाजी कुछ करके दिखाइये न ।’


     ‘ इस समय हमारे ट्रैक्टर में जुताई वाला यंत्र लगा है इससे जुताई करके बताता हूँ ।’ कहते हुये चाचाजी ने एक खाली खेत में टैक्टर उतार दिया तथा ट्रेक्टर में लगे यंत्र को नीचा कर दिया । सुनयना ने देखा कि यंत्र में लगे हुक खेत में घुसकर मिट्टी को भुरभुरा करने लगा ।


      ‘ चाचाजी इस यंत्र को क्या कहते हैं ?’


      ‘ बेटा इसे कल्टीवेटर कहते हैं । इसका उपयोग खेत की जुताई करने, मिट्टी के ठेलों को तोड़ने तथा फसल उगाने से पूर्व भूमि को नर्म बनाने तथा खरपतवार हटाने के लिये होता है ।’ थोड़ी ही देर में चाचा सड़क पर आ गये तथा आगे बढ़ने लगे ।


' चाचा जी यह खर... क्या होता है । मैं समझी नहीं ।' सुनयना ने पूछा ।


' बेटा, ऐसा पौधा, जो फसलों के बीच बिना बोए स्वयं ही उग जाता है और उस फसल को विभिन्न रूपों में हानि पहुँचाकर उपज को कम कर देता है, उसे खरपतवार कहते हैं ।'


     ‘ ओ.के.चाचाजी, अब हम लोग कहाँ जा रहे हैं ?’


     ‘ अब हम अपने टियूब वेल की ओर जा रहे हैं ।’


       ‘ टियूब वेल...दादाजी कह रहे थे इससे सिंचाई की जाती है पर कैसे ?’


       ‘ यही मैं तुम्हें बताऊँगा ।’


     थोड़ी ही देर में वे टियूब वेल पहुँच गये । चाचाजी ने उन दोनों को ट्रैक्टर से उतारा तथा उन दोनों को लेकर टियूब वेल की ओर बढ़े । चाचाजी ने टियूब वेल आपरेटर रामदीन से स्विच ऑन करने के लिये कहा । रामदीन के स्विच ऑन करते ही उसने देखा कि स्विमिंग पूल जैसे एक गहरे गड्ढ़े में एक मोटी धार के साथ पानी गिर रहा है ।


    ‘ बेटा, तुम देख रही हो उस कैबिन में एक बड़ी मोटर लगी है । उसके ऑन करते ही उस पाइप के जरिये पानी हमारे बनाये इस गड्ढे में गिरने लगा । अब इस पानी को पाइपों के जरिये खेतों में सिंचाई के लिये भेजा जाता है । सिंचाई में यूनिफार्मिटी के लिये पाइपों के मुँह पर स्प्रिंकलर भी लगा देते हैं...वह देखो उस खेत में ।’


     सुनयना ने देखा कि एक खेत में सिंचाई हो रही है उसमें कई फब्बारे की तरह चारों ओर धारें निकल रही हैं ।


     ‘ चाचाजी, टियूब वेल में पानी कहाँ से आ रहा है ?’ सुनयना ने फिर पूछा ।


   ‘ जमीन से बेटा...आपको पता होगा कि हमारी जमीन के नीचे पानी है । मशीनों के द्वारा जमीन में पानी तक एक गोलाकार छेद बनाते हैं जिसे बोरिंग कहा जाता है । इस गोलाकार छेद के जरिये जमीन के अंदर के पानी तक लंबे-लंबे पाइप डाले जाते हैं । इन पाइपों में मोटर लगाकर जमीन से पानी निकाला जाता है । अभी तुमने देखा कि जैसे ही रामदीन ने मोटर ऑन की, जमीन में लगे पाइपों से पानी आने लगा तथा यहाँ हमारे बनाए इस गड्ढे में स्टोर होने लगा । शायद तुमने ध्यान नहीं दिया हमारे घर में भी मोटर लगी है जिसको ऑन करने से पानी छत के ऊपर लगी पानी की टंकी में स्टोर हो जाता है जहाँ से बाथरूम, किचन जहाँ भी आवश्यक हो पानी पूरे दिन आता रहता है । घर के लिये छोटी मोटर लगाई है जबकि यहाँ बड़ी मोटर लगाई गई है । ’


    ‘ प्लीज चाचाजी, यहाँ हमारा फोटो खींच लीजिये । मुंबई जाकर अपनी दोस्तों को दिखाऊँगी ।’  उसने अपना मोबाइल निकालकर चाचाजी को देते हुये कहा ।


      चाचाजी ने ट्रैक्टर और टियूबवेल के साथ तो उसके और रोहन के फोटो खींचे ही, खेतों के बीच उसे तथा रोहन को खड़ा करके भी मोबाइल से कई फोटो खींचे । अभी वह फोटो खींच ही रहे थे कि शोर सुनाई दिया । उन्होंने देखा कि एक बैल भाग रहा है, उससे डरकर चार लड़के भाग रहे हैं ।


    ‘ शायद इन लड़कों ने उसे परेशान किया होगा तभी बैल इन लड़कों के पीछे भाग रहा है ।’ चाचाजी ने कहा ।


       तीन लड़के तो भाग गये किन्तु एक छोटा लड़का भागते-भागते एक गड्ढे में गिर गया । चाचाजी उसे बचाने के लिये जाने लगे तो वहीं खड़े रामदीन ने कहा,‘ मालिक, रूक जाइये । बैल अभी गुस्से में है, अभी आप जायेंगे तो वह आप पर भी हमला कर सकता है । वह देखिये बैल उस गड्ढे के पास खड़े होकर उस लड़के को देख रहा है किन्तु कुछ कर नहीं रहा है ।’


       सचमुच बैल थोड़ी ही देर मे चला गया तब रामदीन और चाचाजी ने उस बच्चे को उस गड्ढे से बाहर निकाला । वह बच्चा अभी भी डर से काँप रहा था । वह गाँव का ही बच्चा था चाचाजी ने रामदीन को मोटर बंद कर उस बच्चे को उसके घर पहुँचाने का आदेश दिया तथा स्वयं भी घर लौटने लगे । घर लौटकर उन्होंने ट्रैक्टर  खड़ा कर उसे उतारा । उसे उतार कर जब वह रोहन को उतारने आगे बढ़े तब तक रोहन ने छलांग लगा दी । वह संभल नहीं पाया तथा गिर गया ।


       रोहन के मुँह से चीख निकली जिसे सुनकर चाचाजी ने उसे उठाया तथा क्रोध से कहा,‘ तुम मानते नहीं हो, कूद गये । बताओ कहाँ चोट लगी है ?’


       रोहन ने रोते हुये घुटने की ओर इशारा किया । सुनयना और चाचा ने देखा कि उसका घुटना हल्का सा फूल गया है । चाचाजी उसे गोदी में उठाकर घर लाये ।


    ‘ क्या हुआ रोहन को ?’ दादी ने चिंतातुर स्वर में पूछा ।


     ‘ आपका लाड़ला ट्रैक्टर से कूद गया, संभल नहीं पाया और गिर गया ।’ चाचाजी ने कहा ।


      ‘ चोट तो नहीं लगी...।’


    ‘ घुटना हल्का सा फूल गया है ।’ चाचाजी ने उसे दादी के पास बिठाते हुये कहा । 


    ‘ बहू, जरा आइस देना तथा एक गिलास में हल्दी वाला दूध देना ।’ दादी ने रोहन के घुटने को देखते हुये कहा ।


      ‘ जी अम्माजी...अभी लाई ।’ चाची ने कहा ।


       चाची तुरंत ही एक बाउल में आइस पीस ले आईं साथ में एक छोटी टॉवल भी । दादीजी ने उस टॉवल में आइस पीस रखकर रोहन के घुटने पर रख दिया ।


      ‘ इससे क्या होगा दादी ?’सुनयना ने पूछा ।


        ‘ बेटा आइस का सेक रोहन के घुटने पर आई सूजन को कम करेगा ।’

         ‘ और हल्दी वाला दूध...।’


      ‘ हल्दी वाला दूध दर्द कम करता है । वैसे स्वस्थ व्यक्ति भी अगर रोज हल्दी वाला दूध पीये तो वह जल्दी बीमार नहीं पड़ेगा ।’ दादी ने उत्तर दिया ।


       तब तक चाची एक गिलास दूध में हल्दी डालकर ले आईं । उसे दूध की ओर देखता देखकर चाचीजी ने उससे पूछा ‘ सुनयना क्या तुम भी पीओगी ?’


       सुनयना को भी भूख लग रही थी उसने भी हाँ कर दी । इसके साथ ही वह यह भी देखना चाहती थी कि हल्दी वाला दूध पीने में कैसा लगता है । चाची ने उसे भी हल्दी वाला दूध लाकर दे दिया । सुनयना ने दूध पीया तो उसे ठीक ही लग रहा था । उसने पास खड़ी अपनी ममा से कहा,‘ ममा अब मैं भी रोजाना हल्दी वाला दूध पीया करूँगी, दादी कह रहीं हैं कि इसको पीने से बीमार कम पड़ते हैं ।’


     ‘ बेटा, पता नहीं बाजार की पिसी हल्दी कैसी होती है इसलिये मैं दूध में हल्दी नहीं डालती हूँ ।’


         ‘ अगर सुनयना पीना चाहती है तो मैं हल्दी पिसवाकर तुम्हारे साथ रख दूँगी । तुम ले जाना । तुम और अजय भी पीओगे तो फायदा ही करेगा ।’ दादीजी ने कहा ।


     ' ठीक है माँ जी ।'


     ‘ ननकू स्टोर से एक किलो के लगभग हल्दी निकालकर, धोकर सुखा देना ।’ 


       ‘ मालिकिन हल्दी तो धुली रखी है । आटा खत्म हो रहा है । आप कहें तो गोदाम से गेहूँ निकालकर धो दें ।’


       ‘ अरे, उसमें पूछने की क्या बात है । जाओे निकाल लो । बहू से चाबी ले लो । ‘ दादीजी ने उससे कहा ।


    चाची से चाबी लेकर ननकू गोदाम जाने लगा तो गोदाम देखने के लिये सुनयना भी उसके पीछे-पीछे चलने लगी ।


      ‘ बिटिया आप कहाँ आय रही हो ?’


       ‘ अंकल मुझे गोदाम देखना है ।’


        ‘ ठीक है । आय जाव ।’


        घर के स्टोर रूम में बने दरवाजे को खोलते ही ननकू ने बिजली जला दी । लगभग दस सीढ़ियाँ उतरकर नीचे बने एक बड़े से हॉल में पहुँचते ही ननकू ने फिर लाइट जलाई । ननकू के लाइट जलाते ही सुनयना चौंक  गई । गोदाम में अनगिनत बोरे रखे हुये थे तथा बाहर जाने के लिये एक लोहे का दरवाजा भी नजर आ रहा था । सुनयना ने पूछा,‘ अंकल इन बोरों में क्या रखा है तथा यह दरवाजा...’


   ‘ बिटिया, इन बोरों में अनाज रखा है तथा वह दरवाजा इन बोरों को लाने ले जाने के लिये है ।’


    ‘ लाने ले जाने के लिये... इन बोरों को कहाँ ले जायेंगे ? इतना सारा अनाज कौन खायेगा ?’


    ‘ बिटिया, यह अनाज मंडी में जायेगा, वहाँ से लोग खरीदेंगे ।’ ननकू ने एक बोरे में से गेहूँ अपने लाये बैग में निकालते हुये कहा ।


   ‘ अनाज मंडी...मैं समझी नहीं अंकल ।’


   ‘ बिटिया अनाज मंडी मतलब बाजार जहाँ लोग अनाज खरीदते हैं ।’


    ‘ अंकल साँप...।’ कहकर वह दौड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गई ।


       ‘ बिटिया डरो मत...धामिन साँप है । यह जहरीला नहीं होता । वैसे भी साँप को जब तक हम छेड़ेंगे नहीं, वह काटेगा नहीं...।’


       ननकू ने वहीं खड़े डंडे से ठक-ठक किया । साँप चला गया तथा वह गेहूँ लेकर बाहर आ गया ।


10



हर साँप जहरीला नहीं होता-10 


       सुनयना ने बाहर आकर साँप के बारे में बताया तो ममा तो घबड़ा ही गईं वहीं चाची ननकू को डाँटने लगीं । तब उसने यह कहते हुये ननकू का बचाव किया कि ननकू अंकल उसे लेकर नहीं गये वरन् वही उसके साथ गई थी ।


       अभी बात हो ही रही थी कि दादाजी आ गये । सारी बातें पता लगने पर उन्होंने कहा, ‘ बेटा, जैसे हम इंसान साँप से डरते हैं वैसे ही साँप भी हम इंसानों से डरता है । अगर वह काटता भी है तो तभी जब उसे अपनी जान का खतरा होता है । वैसे भी सभी साँप जहरीले नहीं होते । सच तो यह है साँप हम किसानों का शत्रु नहीं मित्र है वह फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले हानिकारक जंतुओं को खाकर किसानों की सहायता ही करता है । अगर साँप न हों तो चूहों की संख्या इतनी बढ़ जायेगी कि वे हमारी फसलों को नष्ट कर देंगे ।’


   ‘ सच दादाजी, साँप और क्या-क्या खाता है ?’


   ‘ सर्पो का मुख्य भोजन चूहे, खरगोश, गिलहरी, मेढ़क इत्यादि हैं किंतु कुछ छोटे सर्प कीट पतंगों को भी खाते हैं ।’


      ‘ दादाजी आप कह रहे हैं कि सभी सर्प जहरीले नहीं होते ।’


    ‘ हाँ बेटा, संसार में लगभग 2500 प्रकार के सर्प पाये जाते हैं । इनमें से केवल 80 प्रकार के सर्प जहरीले होते हैं । कोई भी जलीय अर्थात पानी में रहने वाला सर्प जहरीला नहीं होता ।’


    ‘ दादाजी, कौन-कौन से सर्प जहरीले होते हैं ?’


        ‘ भारत में कोबरा, करैत, रसैल वाइपर इत्यादि जहरीले होते हैं । अजगर कभी जहरीला नहीं होता । ’


    ‘ मालिक आपसे मिलने कोई आया है ।’ भुलई ने अंदर आते हुये कहा ।


      ‘ उसे बैठक में बिठाओ मैं अभी आता हूँ ।’ दादाजी ने उठते हुये कहा ।


    ‘ जी मालिक...।’ कहकर वह चला गया ।


         ‘ दीदी चलो खेलते हैं ।’


     ‘ तुम्हारा दर्द ठीक हो गया ।’


    ‘ हाँ देखो, अब मैं ठीक हो गया हूँ ।’ रोहन ने उसे चलकर दिखाते हुये कहा ।


       रोहन सच मे बहुत बहादुर लड़का है । सुनयना ने मन ही मन सोचा तथा उसके साथ चली गई ।

................................ 

     

       दोपहर में खाने के समय पापा ने उससे पूछा,‘ कैसा लगा टैक्टर पर सैर करना ?


    ‘ बहुत अच्छा लगा पापा...चाचाजी ने टियूब वेल भी दिखाया ।’


        ‘ भइया, बहुत इंटेलिजेंट लड़की है...हर बात की तह में जाने की कोशिश करती है । जब तक संतुष्ट नहीं हो जाती पूछती ही रहती है ।’


      ‘ क्या मैं इंटेलिजेंट नहीं हूँ ? मुझे तो सब पहले से ही पता था फिर क्या पूछता !!’ रोहन ने तुनकते हुये कहा ।


       ‘ सच कह रहा है रोहन, उसे सब पता था तो वह क्या पूछता !! रोहन बेटा, अब तुम्हारा दर्द कैसा है ? ’ पापा ने रोहन के कंधे पर हाथ रखकर कहा ।


      ‘ अब ठीक है ताऊजी । आपको पता है ताऊजी, आज एक लड़का गड्ढे में गिर गया था । वह तो पापा और रामदीन अंकल ने उसे निकाला वरना उसके साथी तो उसे छोड़कर भाग गये थे ।’


       ‘ उसे भी बहुत चोट आई होगी, बहुत रो रहा था बेचारा ।’ सुनयना ने आगे जोड़ा ।


       ‘ यह तो बहुत गलत बात है । ‘ कहते हुए दादाजी ने चाचा की ओर देखा ।


       उन दोनों की बात सुनकर अन्य सभी चाचाजी की ओर देखने लगे । चाचाजी ने सब बातें विस्तार से बताईं । उस दिन सबने बातें करते-करते खाना खाया । खाने के पश्चात् दादी ने सबको लाल मिठाई दी ।


       ‘ माँ यह लाल मिठाई है ।’ पापा ने दादीजी से आश्चर्य से पूछा ।


   ‘ हाँ भइया, अब माँ भी हैल्थ कान्शियस हो गईं हैं । उन्हें लगता है इस तरह से कोई एक पीस ही खायेगा वरना पहले हम लोग अनलिमिटेड खाते रहते थे ।’ चाचाजी ने दादीजी के कहने से पूर्व ही कहा ।


       सुनयना ने दादी का दिया लाल मिठाई का पीस खाया तो कह उठी,‘ वेरी टेस्टी दादी...बिल्कुल मिल्क केक लग रहा है । दादी एक पीस और खा लूँ ।’


        ‘ हाँ...हाँ क्यों नहीं...? मैंने तुम बच्चों के लिये ही तो बनाया है । रोहन तू भी ले ।’ कहते हुये दादीजी ने दोनों की प्लेट में एक-एक पीस और रख दिया ।


       ‘ बच्चों कल हम सब पिकनिक पर चलेंगे । सुनयना और रोहन तुम अपना क्रिकेट बैट, बैडमिंटन रैकेट इत्यादि रख लेना ।’


      ‘ सच दादाजी, तब तो खूब मजा आयेगा ।’ सुनयना ने खुशी से उछलते हुये कहा । रोहन ने भी उसके स्वर में स्वर मिला दिया ।


   खाने के पश्चात् दादा-दादी, ममा-पापा, चाचा-चाची आराम करने चले गये । सुनयना और रोहन को नींद नहीं आ रही थी वे दोनों बाहर आँगन में खेलने लगे । थोड़ी देर पश्चात् सुनयना को लगा कि कहीं खट्-खट् की आवाज आ रही है । वह उस ओर गई जिधर से आवाज आ रही थी...उसने देखा ननकू एक बड़े से लोहे के बर्तन में एक लोहे की लंबी स्टिक से ठक-ठक कर रहा है ।


      ‘ आप यह क्या कर रहे हैं अंकल ? ’


       ‘ बिटिया, आपको पिसी हल्दी ले जानी है न, इसलिये हल्दी कूट रहा हूँ ।’


       ‘ इसमें...यह क्या है अंकल ।’


      ‘ बिटिया यह ओखली है और यह मूसल । इससे मसाले इत्यादि कूटे जाते हैं ।’


      ‘ अच्छा...ओखली...हाँ मैंने पढ़ी है ‘ ओ ’ से ओखली पर देखी आज है ।’ कहते हुये उसे याद आया कि उसकी ममा के पास भी तो एक छोटी सी ओखली है जिससे वह चाय में डालने के लिये अदरक कूटतीं हैं ।

 

11




पिकनिक में  आया मजा-11


       दूसरे दिन सब पिकनिक के लिये तैयार हो गये । चलते हुये दादाजी ने कहा, ‘ बच्चों अपने एक-एक जोड़ी कपड़े बैग में रख लो जहाँ हम पिकनिक पर जा रहे हैं वहाँ वोटिंग और स्विमिंग भी कर सकते हैं ।’


        स्विमिंग की बात सुनकर सुनयना बहुत खुश हुई । वह अच्छी स्विमिंग कर लेती थी । तभी उसे याद आया कि वह तो अपनी स्विमिंग ड्रेस लेकर ही नहीं आई है । उसने निराश स्वर में कहा,‘ दादाजी मैं अपनी स्विमिंग ड्रेस लेकर नहीं आई हूँ ।’


    ‘ कोई बात नहीं बेटा, हमारे स्विमिंग पूल में तुम कोई भी कपड़ा पहनकर स्विमिंग कर सकती हो ।’


        ‘ ओ.के. दादाजी ।’


       वह अपने कमरे में गई तो देखा ममा-पापा तैयार हो रहे हैं । उसने अपनी ड्रेस ममा के बैग में डाल दी । लगभग आधे घंटे के पश्चात् दादाजी की बड़ी गाड़ी में हमारे बैठते ही, ननकू ने दो बडी टोकरी तथा एक चटाई तथा कुर्सियां गाड़ी में रख दी । हम चल पड़े । लगभग डेढ़ घंटे के पश्चात् हमारी गाड़ी एक जगह रूकी । हम सब उतरे । पापा, चाचा ने एक अच्छी सी जगह देखकर चटाई बिछा ली तथा दादीजी और दादाजी के बैठने के लिये कुर्सियाँ लगा दीं । दादीजी ने सबको बैठने का आदेश दिया । वहीं ममा और चाची टोकरी खोलकर प्लेटों में नाश्ता डालने लगीं । रोहन ने अपना क्रिकेट बैट निकाल लिया तथा उससे खेलने के लिये आग्रह करने लगा ।


    ‘ रोहन पहले नाश्ता, उसके बाद खेलना  ।’ चाची ने कहा ।


    इसके साथ ही चाची ने सुनयना और रोहन को नाश्ते की प्लेट पकड़ा दी ।


        ‘ यह जगह तो काफी अच्छी हो गई है, पहले तो यहाँ कुछ नहीं था ।’ पापा ने कहा ।


       ‘ हाँ भइया, यह सब सरकार तथा यहाँ के नागरिकों के सहयोग तथा समर्पण के कारण संभव हुआ है । इस नदी में अब गंदे नालों का पानी डालना बंद कर दिया है । मूर्ति विसर्जन भी अब नदी में नहीं उस कुण्ड में होता है । ’ चाचाजी ने एक स्थान की ओर इशारा करते हुये कहा ।


      ‘ यह तो बहुत अच्छी बात है, लोग अब स्वच्छता की ओर ध्यान देने लगे हैं । ’ 


    पापा चाचा की बात सुनकर नाश्ता करते हुये उसने चारों ओर देखा तो पाया कि एक ओर नदी बह रही है... कुछ नावें नदी में चल रही हैं तथा कुछ किनारे पर खड़ी हैं । उनकी तरह कुछ लोग और भी थे ।


       ‘ दादी यह कौन सी नदी है ?’


        ‘ बेटा यह गंगा नदी है ।’


       रोहन ने जल्दी-जल्दी नाश्ता कर पुनः अपना क्रिकेट बैट निकाल लिया तथा उससे खेलने के लिये आग्रह करने लगा ।


    ‘ बच्चो पहले वोटिंग कर लो, उसके बाद खेलना ।’


      ‘ ठीक है दादाजी ।’ रोहन और सुनयना ने एक साथ कहा ।


       ‘ दादी, आप भी चलो । ’ दादी को अपनी कुर्सी से उठते न देखकर सुनयना और रोहन ने आग्रह किया ।


     ‘ नहीं बेटा...तुम लोग जाओ । मैं यहीं ठीक हूँ ।’  दादी ने स्वेटर बुनते हुये कहा ।


     ‘ चलो बच्चो, तुम्हारी दादी नहीं जायेंगी, उन्हें वोटिंग से डर लगता है ।’ दादाजी ने उनसे कहा ।


        ‘ डर...।’ सुनयना ने कहा ।


     ‘ बेटा, तुम्हारे दादाजी ऐसे ही कह रह रहे हैं ।  मेरा मन नहीं है । तुम लोग जाओ...पर सेफ्टी जैकेट पहनकर जाना ।’  दादी ने स्वेटर बुनना बंद कर सेफ्टी जैकेट वाला बैग आगे करते हुये कहा ।


     ‘ ओह ! हम तो भूल ही गये थे । आपने याद दिलाया...थैंक यू माँ ।’ चाचाजी ने कहा । 


      सबने एक-एक जैकेट निकालकर पहन ली तथा नदी की तरफ चल दिये । नदी के किनारे पहुँचकर सुनयना ने देखा कि नदी के पानी में बहुत सारे पौधे लगे हुये हैं । तभी थोड़ी दूर पर नदी के अंदर पत्थर के नीचे से एक पतला साँप निकलता हुआ दिखाई दिया । सुनयना जोर से अपनी माँ के पीछे छिपते हुये चिल्लाई, ‘ ममा, साँप ।’


    ‘ बेटा, डरो मत, यह नोन पोयजनस ( बिना जहर वाला ) पानी वाला साँप  है ।’ चाचाजी ने कहा ।


       ‘ ओ.के. चाचाजी । दादाजी भी यही कह रहे थे कि पानी में रहने वाले साँप जहरीले नहीं होते ।’ कहती हुई सुनयना अपनी ममा को छोड़कर खड़ी हो गई । उसकी देखा देखी रोहन भी अपनी ममा के पल्लू को छोड़कर उसके साथ आकर खड़ा हो गया ।


   ‘ और ये देखो एक्वेटिक प्लांट...तुमने पढ़ा है न ।’ ममा ने कहा ।

        ‘ हाँ ममा ।’  उसने नदी के पानी में तैरते पौधों को देखते हुए कहा ।


       ‘ आइये मालिक नाव तैयार है ।’ मल्लाह ने आवाज लगाई ।


        जैसे ही वे नाव में बैठे । मल्लाह ने खूँटे से बंधे रस्से को खोला तथा नाव को नदी में धक्का देखकर आगे बढ़ाया फिर स्वयं सीट पर बैठकर नाव चलाने लगा । अब नाव नदी के बीच में आ गई थी । नदी काफी गहरी थी । दादाजी ने बताया कि जो आदमी नाव चलाता है उसे मल्लाह कहते हैं तथा जिसकी सहायता से नाव आगे बढ़ती है उसे पतवार कहते हैं ।  मल्लाह को दोनों हाथों से पतवार की सहायता से नाव चलाते देखकर सुनयना ने पूछा…


        ‘ क्या मैं नाव चला सकती हूँ ?’


        ‘ आ जाब बिटिया, चला लेव ।’ मल्लाह ने कहा । 


         मल्लाह ने थोड़ा खिसक कर उसे बैठा लिया तथा एक पतवार उसके हाथ में पकड़ा दी तथा दूसरी स्वयं चलाने लगा । उसे देखकर रोहन भी आ गया । दोनों बारी-बारी से पतवार चलाने लगे । लगभग आधे घंटे की वोटिंग के बाद वे लौटे तो बहुत खुश थे । उन दोनों ने अपनी-अपनी सेफ्टी बेल्ट उतार कर बैग में रख दी । रोहन ने क्रिकेट बैट और बॉल उठाकर कहा…


        ‘ दीदी अब क्रिकेट खेलें ।’


          ‘ ठीक है चलो...।’    


       ‘ ठीक से खेलना, कहीं बॉल नदी में न चली जाये ।’ चाचा ने उसे समझाते हुये कहा ।


         ‘ ठीक है ।’


        सुनयना और रोहन खेलने लगे । पापा और चाचा घूमने लगे । दादाजी अखबार पढ़ रहे थे जबकि दादीजी स्वेटर बुन रहीं थीं ।


      थोड़ी देर पश्चात् दादाजी ने कहा,‘ बच्चों स्विमिंग करना है तो कर लो फिर लौटना भी है ।’


       ‘ ओ.के. दादाजी...पर स्विमिंग पूल कहाँ है ।’


      ‘ बेटा यह नदी ही हमारा स्विमिंग पूल है ।’


         ‘ नदी, स्विमिंग पूल...।’


       ‘ हाँ बेटा...अभय और अजय जाओ, बच्चों को स्विमिंग करा लाओ ।’


         ‘ चलो बच्चों...। ’


         ‘ नहीं, मैं नदी में स्विमिंग नहीं करूँगी , यह तो बहुत गहरी है । कहीं डूब गई तो...।’ सुनयना ने डर कर कहा ।


     ‘ यहाँ नहीं दीदी, नहाने का स्थान अलग है...वहाँ पानी कम है । चलो दीदी, खूब मजा आयेगा ।’ रोहन ने कहा। 


      ‘ माँ आप नहाओगी नहीं...।’ चलते समय चाचाजी ने दादी से पूछा ।


        ‘ नहीं बेटा...।’


       ‘ पर क्यों ? आप तो जब आती हो तब स्नान करती हो ।’


                ‘ बेटा आज मन नहीं है । तुम लोग जाओ । मैं और तुम्हारे पिताजी यहीं हैं ।’ दादीजी ने स्वेटर बुनते हुये कहा । 


       रोहन के कहने पर सुनयना चल दी । नदी के किनारे एक जगह पक्का स्थान था । वहाँ से नदी में जाने के लिये सीढ़ियाँ थीं । सुनयना ने देखा कि यहाँ कई लोग नहा रहे हैं तथा कुछ लोग तैर भी रहे हैं । उन सबको देखकर वे दोनों भी अपने-अपने पापा के साथ नदी में उतर गये जबकि ममा और चाची नदी के किनारे बने चबूतरे पर बनी बेंच पर बैठकर बातें करते हुए उन्हें नहाते देखने लगीं । पानी में उतरते ही सुनयना को इतना मजा आया कि अब वह निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी । सुनयना के साथ रोहन ने भी तैरने की कोशिश की ।


       अचानक शोर सुनकर सुनयना और रोहन ने उस ओर देखा जिधर से आवाजें आ रहीं थीं । उन्होंने देखा कि सामने चल रही नाव उलट गई है जिससे उसमें सवार लोग पानी में गिर गये हैं । दो लोग जिन्हें तैरना आता था वे तो किनारे की तरफ बढ़ रहे हैं वहीं अन्य लोग बचाओ...बचाओ कहते हुये चिल्ला रहे हैं । पापा और चाचा ने उनकी आवाज सुनकर, ममा और चाची को आवाज लगाकर उन्हें संभालने के लिये कहा तथा वे डूबते लोगों को बचाने के लिये पानी में कूद पड़े ।  पापा और चाचा को देखकर कुछ अन्य लोग भी जिन्हें तैरना आता था, नदी में कूद पड़े । यह देखकर सुनयना और रोहन रोने लगे । ममा और चाची उन दोनों को समझाते हुये, मंदिर के पिछवाड़े ले गईं तथा उनके कपड़े बदलवाने लगीं ।


       कपड़े बदलकर जब वे बाहर आये तो देखा नाव पर सवार सभी लोगों को बाहर निकाल लिया गया है । बाहर निकाले छह लोग तो ठीक हैं किन्तु दो लोगों कि हालत खराब है, वे बेहोश हो गए हैं ।  एक को पापा तथा दूसरे को चाचा जमीन पर पेट के बल लिटाकर उसकी पीठ को दबाकर पानी निकाल रहे हैं । थोड़ी देर पश्चात उन्हें सीधा लिटाकर वे  बेहोश व्यक्ति के मुँह पर अपना मुँह रखकर फूँकने लगे तथा बीच-बीच में उसके सीने को हाथ से दबा भी रहे हैं ।   


        ‘ ममा, यह क्या कर रहे हैं ?’ सुनयना ने पापा और चाचा को ऐसा करते देखकर पूछा ।


       ‘ लगता है पानी में डूबने के कारण उस व्यक्ति के पेट और फेफड़ों में पानी भर गया है । पानी को उसके सीने को दबाकर निकालने के पश्चात् अब उसे कृत्रिम श्वास दे रहे हैं जिससे उसकी श्वास ठीक तरह से चल सके तथा उन व्यक्तियों के सीने को दबाकर उनके दिल की गति को सामान्य करने का प्रयास कर रहे हैं । ’ ममा ने उत्तर दिया ।


      थोड़ी ही देर में उन दोनों व्यक्तियों को होश आ गया । उन्हें होश में आया देखकर सभी बेहद प्रसन्न हुए । इसके पश्चात हम सब भी उस स्थान पर लौट आये जहाँ दादा-दादी बैठे थे ।


      ‘ कैसा लगा हमारा स्विमिंग पूल...।’ उनके लौटते ही दादाजी ने सुनयना से पूछा ।


      ‘ दादाजी आज पापाजी और चाचाजी ने दो लोगों की जान बचाई ।’ सुनयना ने दादाजी की बात का कोई उत्तर न देते हुए कहा । उसके मनमस्तिष्क में अभी भी वह दृश्य तैर रहा था । 

 

       ‘ जान बचाई...क्या कह रही है सुनयना ? ’ दादाजी ने पापा और चाचाजी की ओर देखकर पूछा ।


        

      चाचाजी ने सारी घटना दादा जी को बताई तो वह बोले, ‘ ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है सब बच गये ।’


12


डैम की सैर -12 

  

        ‘ बहू अब खाना लगा दो । सब थक गये होंगे ।’


      ‘ हाँ भाभी, खाना लगा दो । जब यहाँ आये हैं तो बच्चों को नरोरा डैम भी दिखा दें ।’ चाचा जी ने कहा ।


        ‘ नरोरा डैम...।’ सुनयना और रोहन ने एक साथ पूछा ।


         ‘ हाँ बेटा, अब हम नरोरा डैम देखने चलेंगे ।’


       ममा और चाची खाना लगाने लगीं । जल्दी-जल्दी खाना खाकर हमने सामान पैक करके गाड़ी में रखा तथा  चल दिये । नरोरा डेम के पुल के पास पहुँचकर चाचाजी ने कहा ‘ यह पुल 1962 से 1967 के बीच में बनाया गया है । इसकी विशेषता यह है कि इसमें मछलियों के आने जाने के लिये भी रास्ता बनाया गया है ।'


     ‘ मछलियों के लिये रास्ता...पर कहाँ है रास्ता ?’ सुनयना और रोहन ने कहा ।


       ‘ बेटा, यह जगह है ।’ चाचाजी ने एक स्थान की ओर इशारा करते हुये कहा ।


      सुनयना और रोहन थोड़ी देर उस स्थान को देखते रहे तथा फिर सुनयना ने कहा, ‘ ‘ चाचाजी, यहाँ तो कोई मछली नहीं दिखाई दे रही है ।’


      ‘ बेटी, इस समय मछली कम रहतीं हैं, बरसात में ज्यादा आतीं हैं ।’ पास खड़े एक आदमी ने कहा ।


     ‘ चाचाजी डैम कहाँ है ?’ सुनयना ने इधर-उधर देखते हुये पूछा ।


    ‘ बेटा, यही डैम है । देखो उस तरफ पानी इकट्ठा है जबकि दूसरी तरफ बहुत कम है ।’ 


     ‘ चाचाजी, नदी पर डैम क्यों बनाया जाता है ?’ सुनयना ने पूछा ।


      ‘ बेटा, डैम के द्वारा नदी के पानी को रोककर, आसपास के गाँवों में भेजा जाता है जिससे किसान अपनी फसलों की सिंचाई कर सकें । सिंचाई के साथ शहरों और गाँवों में पीने के लिये इस पानी का उपयोग करने के अलावा इस पानी से बिजली भी बनाई जाती है । इसके लिये यहाँ पर एटामिक पावर स्टेशन हैं जिसमें बिजली बनाकर बिजली उद्योगों और आस-पास की जगहों को दी जाती है ।’


      ‘ यह उसी तरह का है जैसा कि कासिमपुर पावर स्टेशन है ।’


       ‘ हाँ बेटा,  कासिमपुर में थर्मल पावर स्टेशन है जबकि यहाँ एटोमिक पावर स्टेशन हैं ।’


     ‘ चाचाजी थर्मल और एटोमिक पावर स्टेशन में क्या अंतर है ?’


    ‘ बेटा थर्मल पावर स्टेशन में कोयला, गैस से पानी गर्म करके गर्मी पैदा करते हैं जबकि एटोमिक पावर प्लांट में यूरेनीयम एटम को तोड़कर उससे गर्मी पैदा की जाती है । जैसा मैंने तुम्हे पहले बताया था कि इस तरह पैदा हुई हीट गर्मी से पानी को गर्म कर भाप पैदा कर टरबाइन...चेम्बर में भेजा जाता है । जिसके कारण टरबाइन तेजी से घूमता है तथा अपने साथ लगे इलेक्ट्रिकल जनरेटर / आलटेरनेटर को घुमाता है जिससे बिजली पैदा होती है । इस तरह से पैदा हुई बिजली को जगह-जगह भेजा जाता है । ‘  

 

       ‘ ओ.के. चाचाजी । यह डैम तो बहुत लंबा है ।’ सुनयना ने कुछ समझते कुछ न समझते हुए कहा ।


        ‘ हाँ बेटा, इसकी लंबाई 922. 0 मीटर है ।’


       पुल के प्रवेश द्वार पर चौधरी चरण सिंह बैराज, नरोरा लिखा हुआ था । 


     ' चाचा जी, यहाँ चौधरी चरण सिंह बैराज लिखा है । चौधरी चरण सिंह कौन थे ।'


     ' चौधरी चरण सिंह हमारे देश के प्रधानमंत्री थे । उन्हीं के नाम पर इस पल का नाम रखा गया है ।'


    ' ओ.के.चाचा जी ।'


       उस स्थान पर ग्रुप फोटो खिंचवाने के पश्चात् पुल पर बने रास्ते पर घूमते हुये उन्होंने कई फोटो खींचीं । शाम हो गई थी अतः लौटना था जबकि दृश्य इतना सुंदर था कि उनका घर लौटने का बिल्कुल मन ही नहीं था । एक रेस्टोरेंट में खाने के पश्चात् उस दिन घर लौटने में रात के दस बज गये थे ।


       उनके घर पहुँचते ही भुलई ने गेट खोला, समान उतारते हुए उसने कहा, ‘ मास्टरजी आप सबन को बुलावे आए रहें, कहे रहें कि कल दोपहर में उनके घरे दावत है । आप सबन को जरूर आना है । ‘


       ‘ कल उनका पोता ग्यारह दिन का हो जाएगा...नामकरण के पश्चात दावत भी दे रहे होंगे । ‘ दादीजी ने कहा ।


       ‘ दावत...पोता...। ‘ सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।


       ‘ बेटा, मास्टरजी के बेटे को लड़का हुआ है, इस खुशी में वह दावत अर्थात पार्टी दे रहे हैं । ‘


       ‘ क्या मैं पार्टी में चल सकती हूँ ? मुझे भी छोटा बच्चा देखना है ।  ‘


       ‘ अवश्य बेटा ।‘ दादीजी ने कहा ।


       ‘ थैंक यू दादीजी । ‘ सुनयना ने खुशी से कहा ।


13




चिड़ियाओं से दोस्ती  -13


                दूसरे दिन सुनयना सोकर उठी । चिड़ियों का रोज जैसा शोर न पाकर उसने खिड़की से बाहर देखा । पेड़ पर घोंसला न पाकर वह चौंक गई । उसने नीचे देखा तो पाया कि नीचे टूटा हुआ घोंसला पड़ा है तथा चिडिया के बच्चे भी वहीं नीचे पड़े हुये हैं । उनमें से तीन में कोई हलचल नहीं है जबकि एक थोड़ा हिल रहा है । दो चिडियायें उसके पास बैठी हैं । शायद उसके ममा-पापा होंगे, उसने मन में सोचा । तभी उसने देखा कि एक चिड़िया, शायद उसकी ममा उसे कुछ खिलाने का प्रयत्न कर रही है पर वह अपनी चोंच ही नहीं खोल रहा है ।


        ‘ ममा...इधर आओ । देखो इनको क्या हुआ ?’


          ‘ क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रही हो ? ’ ममा ने उसके पास आकर पूछा ।


          ‘ ममा वह देखो चिड़िया और उसके बच्चे...।’


         ‘ ओह ! लगता है किसी शैतान चील ने इसका घोंसला गिरा दिया है । बेचारे बच्चे असमय ही मर गये हैं ।’ ममा ने अफसोस जताते हुये कहा ।


        ‘ एक तो जिंदा है । मैं जाती हूँ...उस बच्चे को किसी सेफ जगह रख दूँगी तो शायद बच जाये ।’ कहते हुये सुनयना ने अपना स्कार्फ उठाया और बाहर भागी ।


        ‘ बेटा संभलकर...।’ ममा ने उसका आशय समझकर कहा ।


         जैसे ही सुनयना ने नीचे पहुँचकर चिड़िया के बच्चे को उठाना चाहा । वे दोनों चिड़ियायें उस पर झपटीं । वह डरकर दूर हट गई । तभी उसे याद आया कि चिड़िया अनाज खातीं हैं अगर वह उनके लिये अनाज लाकर उनके सामने रख देगी तो वह उसे अपना दोस्त मान लेंगी तब वे उसके ऊपर नहीं झपटेंगी । वह अंदर आई । उसने ननकू से चावल माँगे । वह उसे दे रहा था कि उसे एक छोटी सी लकड़ी की बास्केट दिखाई दी । उसने उसे भी उठा लिया । ननकू की दिये चावल को उसने एक कटोरी में रखा तथा दूसरी कटोरी में पानी लिया तथा बाहर जाने लगी ।


        ‘ इन्हें लेकर बाहर कहाँ जा रही हो बिटिया ?’ ननकू ने कहा ।


        ‘ चिड़ियों को खिलाना है ।’ कहकर वह जैसे आई थी वैसे ही चली गई ।’


       बाहर जाकर उसने चावल और पानी की कटोरी चिड़ियाओं के सामने रख दी तथा पेड़ के पीछे छिप गई । इतनी देर में उसने छोटी सी बास्केट में अपना स्कार्फ तथा स्कार्फ के ऊपर कुछ पत्तियाँ और घास बिछा दी जिससे वह घोंसले जैसा लगने लगा । पेड़ के पीछे खड़े-खड़े ही उसने देखा कि दोनों चिड़ियायें कटोरी के पास गईं । पहले वे चिड़ियाएँ पानी और अनाज की कटोरियों को देखतीं रहीं फिर एक चिड़िया पानी पीने लगी तथा दूसरी दाना चुगने लगी । उन्हें ऐसे पानी पीते तथा खाते देखकर सुनयना को  लग रहा था जैसे वे बहुत भूखी हैं । वह घीरे-घीरे कदम बढ़ाते हुये चिड़िया के बच्चे के पास गई । उस बच्चे को वह जैसे उठाने लगी वे दोनों उसको मारने आईं । वह पीछे हट गई । उसे पीछे हटते देखकर वह उस बच्चे के पास ऐसे बैठ गईं जिससे कोई उसे छू न पाये । उनके शांत होने पर उसने अपना बनाया घोंसला दिखाते हुए इशारे से कहा, ‘ मैं इसको उसमें रखना चाहती हूँ  ।’


     पता नहीं वे सुनयना की बात समझीं या नहीं किन्तु इस बार सुनयना के आगे बढ़ने पर उन्होंने उस पर आक्रमण नहीं किया । उन्हें शांत बैठे देखकर उसने चिड़िया के बच्चे को उठाकर बास्केट में रख दिया तथा उस बास्केट को पेड़ के तने के पास रखकर नीचे पड़े पत्तों को उसके चारों ओर लगा दिया जिससे उसका धूप से बचाव हो सके । उसके हटते ही चिड़िया अपने बच्चे के पास गईं तथा उसे जाते हुये देखतीं रहीं । चिड़िया समझ गईं थीं कि वह उनकी शत्रु नहीं मित्र है ।


         सुनयना के मन में जीव जंतुओं के लिये प्रेम देखकर खिड़की से झांकती उसकी ममा को उस पर गर्व होने लगा था ।


सुनयना अंदर जा ही रही थी कि ननकू एक टोकरी में कुछ लिए बाहर निकला । जिज्ञासावश उसने पूछा, ' अंकल इसमें क्या है ?'


' बिटिया इसमें सब्जी के छिलके हैं ।'


' इनका आप क्या करेंगे ?'


' बिटिया इसे हम इस गड्ढे में डालेंगे ।' 


ननकू ने एक गड्ढे के पास पहुँचकर सब्जी के छिलके उसमें डालते हुए कहा ।


' पर क्यों अंकल ?'


' भइया कहते हैं कि सब्जी के छिलके इस गड्ढे में डालते जाओ । जब यह भर जाए तो इसके ऊपर मिट्टी डालकर ढक दो ।'


' इससे क्या होगा अंकल ?'


' वह कहते हैं कि एक महीने बाद जब इस गड्ढे को खोलेंगे तो जो खाद बनेगी वह हमारे बगीचे के पेड़-पौधों के लिए अच्छी होगी । ' ननकू ने घर लौटते हुए कहा ।


' ओ.के. अंकल, जब यह गड्ढा भर जाएगा तो फिर सब्जी के झिलके कहाँ डालेंगे ?'


' एक दूसरा गड्ढा खोदकर उसमें डालेंगे ।'


' गाय के गोबर की खाद भी तो पेड़-पौधों में डाली जाती है ।'


' हाँ बिटिया ।'


' दीदी आप कहाँ थीं ? मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूँ । चलिए छत पर आज पतंग उड़ाते हैं ।'


' पतंग...चलो खूब मजा आएगा ।'


उस दिन पापा-चाचा के साथ पतंग उड़ाने में सुनयना को बहुत मजा आया ।


नामकरण की दावत-14


       दोपहर को वे सब मास्टरजी के घर गए । उनकी गाड़ी के रुकते ही मास्टरजी बाहर गेट तक आ गए   तथा उन्हें अंदर लेकर गए । वहाँ कई लोग थे । घर भी छोटा था । दादाजी, पापा और चाचाजी बाहर बरामदे में बैठ गए जबकि दादीजी, चाचीजी, मम्मी, वह और रोहन अंदर चले गए ।


       कमरे के अंदर से गाने की आवाज आ रही थी । उनको कमरे में आते देखकर वहाँ उपस्थित सभी आंटियों ने दादी का अभिवादन किया । दादी ने उनके अभिवादन का उत्तर दिया । इसी बीच एक महिला उठकर आईं तथा उन्होने उन्हें बैठने के लिए कहा । सुनयना ने देखा कि अंदर कमरे में एक आंटी अपनी गोद में छोटे बच्चे को लेकर बैठी हैं । दादीजी ने आगे बढ़कर उसे गोद में उठाया तथा उसे एक लिफाफा दिया । दादीजी ने उसे अपने पास खड़ा देखकर उसे बच्चे को दिखाया । बच्चा बहुत ही प्यारा लग रहा था । दादीजी वहीं रखी एक कुर्सी पर बैठ गईं तथा वे सब जमीन पर बिछी चादर पर बैठ गए ।


       उसे ढोलक की ओर देखते देखकर दादी ने कहा,’ बेटा यह ढोलक है । ‘


       ‘ मुझे पता है दादीजी मूवी में मैंने देखा है । ‘ सुनयना ने कहा ।  


    सुनयना ने देखा कि वहाँ उपस्थित सभी आंटियाँ गाना गा रही हैं तथा एक आंटी ढोलक बजा रही है । एक आंटी  ढोलक पर चम्मच से ठक-ठक कर रही है पर उसकी आवाज भी मधुर ध्वनि पैदा कर रही है । जैसे ही एक गाना समाप्त होता दूसरा प्रारम्भ हो जाता किन्तु गाने के बोल वह चाहकर भी समझ नहीं पा रही थी बस इतना समझ में आ रहा था कि गाने माँ बच्चे के लिए गाये जा रहे हैं । अभी गाने चल ही रहे थे कि एक आदमी ने आकर कहा,’ खाना तैयार है । ‘


       जिन आंटी ने उन्हें अंदर बिठाया था वे ही उन्हें बाहर लेकर गईं । उनके साथ कुछ और आंटियाँ भी आईं ।  उसने देखा कि बाहर लंबाई में एक चादर बिछी है । उसी में सबको बैठने के लिए कहा । दादीजी,  चाची और ममा के उस बिछी चादर पर बैठते ही वह भी बैठ गई । थोड़ी ही देर में उनके सामने पत्तों की प्लेट तथा एक मिट्टी के बर्तन में पीने के लिए पानी रख दिया गया । अब दो आदमी खाना परोसने लगे । खाने में सब्जी, राइता, पूरी, कचौड़ी, पापड़ तथा खीर थी । सुनयना ने नीचे बैठकर कभी नहीं खाया था इसलिए बड़ा अजीब लग रहा था पर सबको खाते देखकर वह भी खाने लगी । खाना उसे ठीक ही लगा ।


' आकाश बेटा,गर्मी हो रही है । यहाँ टेबिल फैन लगा दे ।'


' ठीक है पिताजी ।'


टेबिल फैन की ठंडी हवा लगते ही दादाजी के पास बैठे एक आदमी ने कहा, ' मालिक आपके कारण हमारे गांव के हर घर में बिजली आ गई है ।'


' सच कहते हो भाई, आज मालिक के प्रयासों से इस गाँव में बिजली आई वरन घर -घर में शौचालय बन जाने के कारण हमारी बहू, बेटियों को आराम हो गया है ।' दूसरे अंकल ने कहा ।


' सच कह रहे हो । अजय भइया के कारण खेती के नए उपाय अपनाने के कारण हम सबके जीवन में भी सुधार आया है । ' पहले अंकल ने कहा ।


' इसी वजह से हमारा गाँव आदर्श गाँवों  में नामांकित हुआ है...शायद चुन भी लिया जाये ।' एक अन्य अंकल ने कहा ।


' भाइयों मैं तो निमित्त मात्र हूँ ।मेहनत तो आपने की है । फल भी आपको ही मिलना है ।' दादाजी ने विनम्रता से कहा ।


       घर लौटते हुए सुनयना के मन में कई प्रश्न थे अतः उसने घर आकर दादी जी से पूछा, ' दादी जी यह शौचालय क्या होता है ?'


' बेटा, टॉयलेट को ही शौचालय कहते हैं ।'


' क्या गाँव में पहले टॉयलेट नहीं होते थे ?'


' हाँ बेटा ।'


' फिर लोग कहाँ जाते थे ?'


' खेतों में ...।'


' ओह नो...।'


' दादी आपसे एक प्रश्न और पूछूं ।' सुनयना ने पुनः कहा ।


' पूछो...।'


 ‘ दादीजी, वे आंटियाँ क्या गा रहीं थीं । मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था । ‘ 


       ‘ बेटा, ये लोकगीत हैं जो हम गाँव वाले खुशी में गाते हैं । मास्टरजी के पोता हुआ है अतः सब महिलाएं मिलकर बधाई गीत गा रहीं थीं । ‘


     ‘ दादीजी,  लोकगीत किसे कहते हैं ?’


       ‘ बेटा, लोकगीत, लोगों के गीत होते हैं जिन्हें बिना सीखे कोई भी गा सकता है । इन्हें गाने के लिए विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता । ‘


       ‘ मुझे थोड़ा-थोड़ा समझ में तो आया पर सब नहीं आया । यह कौन सी भाषा है ? ‘


       ‘ बेटा, यह यहाँ की स्थानीय भाषा है । लोकगीत स्थानीय भाषा में ही गाये जाते हैं क्योंकि यह गाँव के लोगों के अपने गीत होते हैं । कोई भी त्योहार हो, घर में बच्चों का जन्म, मुंडन , विवाह जैसा कोई भी उत्सव हो, पहले समय में गाँव वाले अपनी खुशी प्रकट करने के लिए अपनी बोली में अपने गाने बनाते, गाते और नाचते थे । इनको बिना बाजों के सिर्फ ढोलक, ताली या थाली, चम्मच बजाकर भी गाया जा सकता है क्योंकि ये स्थानीय भाषा में होते हैं, सबकी समझ में आसानी से आ जाते हैं इसलिए इन गीतों को लोकगीत कहते हैं । ‘


       ‘ दादीजी,  स्थानीय भाषा का अर्थ....। ‘   


       ‘ हमारा भारत बहुत बड़ा देश है । तुम महाराष्ट्र में रहती हो वहाँ के लोग मराठी बोलते हैं । गुजरात के लोग गुजराती, राजस्थान के लोग राजस्थानी, पंजाब के लोग पंजाबी, पहाड़ी लोग पहाड़ी इत्यादि । ‘


    ‘ दादीजी तो क्या मराठी, पंजाबी, गुजराती स्थानीय भाषायें हैं ?‘


       ‘ हाँ बेटा…किन्तु हमारे देश की अधिकतर आबादी गाँव में रहती है । गाँव में रहने वालों की बोली शहरी लोगों से अलग होती है अतः लोकगीत वह होते हैं जो बड़े-बड़े शहरों से दूर गाँव में रहने वाले बोलते हैं । तुमने सुना होगा ननकू को बोलते हुए...जैसे आवा बिटिया । तोय दादाजी बुलवात हैं । वह तो हम लोगों के साथ रहकर अब हिन्दी भी ठीक से बोलने लगा है वरना ऐसे ही बोलता था ।‘  

                     

       ‘ दीदी, आप यहाँ क्या कर रही हो ? चलो न मेरे साथ । ताऊजी और पापा कैरम खेलने बुला रहे हैं । ‘ 


' तुम चलो, मैं दादीजी से बात कर रही हूँ ।'


' दादीजी से बाद में बात कर लेना । अब चलो भी । ताऊजी और पापा हमारा इंतजार कर रहे हैं ।' कहते हुए वह सुनयना का हाथ पकड़कर ले गया । 


सुनयना को रोहन के साथ बेमन से जाते देखकर दादी सोच रही थीं कि बच्चों के सामने सोच समझकर बातें करनी चाहिए क्योंकि वे सब बातें बड़े ध्यान से सुनते हैं । इसके साथ ही उनके बाल मन में उमड़ते घुमड़ते प्रश्नों का उत्तर गोल-मोल ढंग से देने की जबाव देने की बजाय उचित उत्तर देना चाहिए क्योंकि इस उम्र में वे जो देखते समझते हैं उसका प्रभाव उनके मानसिक विकास में सहायक होता है ।   

 

15




लॉन में पिकनिक-15


       उस दिन दादाजी ने शाम को सबको घर के बाहर लॉन में एकत्रित होने को कहा ।


       ‘ क्या बात है पिताजी, आपने हमें यहाँ क्यों बुलाया है ?’ अजय ने पूछा ।


     ‘ क्या कोई कारण हो तभी बुलाया जाता है । आज मन किया कि सब लोग एक साथ बैठें ,बातें करें कुछ खायें, पीयें । बच्चों के साथ कुछ गेम खेलें । ‘


      ‘ गेम, कौन सा गेम दादाजी ?’ सुनयना ने पूछा ।


      ‘ कहानी सुनाने का । तुम कहती हो कि तुम्हें कहानी पढ़ना और कहानी सुनाना बहुत पसंद है । तुम अपनी कहानी की पुस्तक से पढ़ी या किसी से सुनी कोई कहानी सुनाओगी तथा कहानी सुनाने के पश्चात हम सबसे प्रश्न पूछोगी । जो-जो उनके ठीक उत्तर देगा उसे मैं पुरस्कार दूँगा । ‘


     ‘ओ.के. दादाजी । मैं अभी कहानी की किताब लेकर आती हूँ । ‘ कहकर सुनयना कमरे में गई ।


     ‘ और मै दादाजी ?’ रोहन ने पूछा ।


    ‘ तुम हम सबको क्रिकेट खिलाओगे । जिसके ज्यादा रन बनेगें उसे पुरस्कार मिलेगा ।’ 


         ‘ ओ. के. दादाजी, मैं अपनी क्रिकेट किट लेकर आता हूँ ।’ रोहन खुशी-खुशी अपनी क्रिकेट किट लेने चला गया ।


     ‘ और हम लोग पिताजी...?’ अजय ने पूछा ।


       ‘ वह तुम लोग स्वयं डिसाइड करो । ’


    ‘ ठीक है पिताजी बाद में हम सब अंताक्षरी खेलेंगे ।’ अभय ने कहा ।


       ‘ हाँ यही ठीक रहेगा । आज माँ-पिताजी से उनका युगल गीत... झिलमिल सितारों का आँगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा...भी सुनेंगे । ’ अजय ने कहा ।


       ‘ अब हमें रहने भी दो । ‘ दादी जी ने कहा ।


      ‘ दादाजी-दादीजी क्या आप दोनों साथ-साथ गाते हैं ?’ कहानी की पुस्तक लेकर आई सुनयना ने चाचा-चाची की बात सुनकर उसने पूछा ।


       ‘ हाँ बेटा, आपके दादा-दादीजी बहुत अच्छा गाते हैं ।‘ चाचा ने कहा ।


    ‘ तब तो आप दोनों को हम सबको गाना सुनाना ही पड़ेगा । ‘ सुनयना ने अपने दादा-दादी से कहा ।


       ‘ अच्छा ठीक है । अब तुम अपनी कहानी सुनाओ ।‘ दादाजी ने कहा ।


    सुनयना कहानी सुनाने लगी...सब ध्यान से सुनने लगे । राजू और उसके कुत्ते बंटी की कहानी सबको बेहद पसंद आई । बंटी ने राजू की जान बचाई थी जिसकी वजह से वह घर भर का प्यारा बन गया था । उस बेजुबान ने सिद्द कर दिया था कि वह भले ही इंसान की नजर में जानवर है पर समझदारी में वह किसी से कम नहीं है ।


       कहानी सुनने के पश्चात दादाजी ने सुनयना से प्रश्न पूछने के लिए कहा । सुनयना ने प्रश्न पूछने शुरू किये तो पहला अवसर रोहन को दिया गया । आश्चर्य तो यह था कि रोहन ने उसके सभी प्रश्नों का सही-सही उत्तर दिये । किसी दूसरे का नंबर ही नहीं आ पाया । दादाजी से सारे पुरस्कार वही ले गया । इसके साथ ही दादाजी ने सुनयना को भी इतनी अच्छी कहानी सुनाने के लिए कई पुस्तकें उपहार में दीं ।   


       अब क्रिकेट की बारी थी । अभी वे क्रिकेट खेल ही रहे थे कि ननकू भुट्टे भुनने लगा । ननकू को भुट्टे भूनते देखकर वह उसके पास गई तथा पूछा, ‘ अंकल आप किस पर भुट्टे भून रहे हैं ?’


        ‘ बेटा यह अंगीठी है । ‘


      ‘ इसमे आपने आग कैसे जलाई है ? ‘


    ‘ बिटिया, इसमें कोयला जलाकर आग पैदा की जाती है । ‘


       ‘ कोयला किसे कहते हैं ?’ सुनयना ने पूछा ।


    ‘ कोयला...कोयला होता है बिटिया । ‘


     ‘ दीदी क्या कर रही हो ? आओ इधर... आपकी बेटिंग है । ’


    ‘ अब बाद में खेलना । पहले भुट्टे खा लो । नहीं तो भुट्टे ठंड़े हो जायेंगे ।’  चाची ने कहा ।


       ‘ चाची कोयला क्या होता है ?’


    ‘ बेटा कोयला एक प्रकार का ईंधन है जिसे जमीन से निकाला जाता है । '


       ‘ अगर हम यहाँ खोदेंगे तो हमें कोयला मिल जायेगा । ‘


    ‘ नहीं बेटा, कोयला हर जगह नहीं वरन कुछ विशेष जगहों पर ही मिलता है । जहाँ कोयला पाया जाता है वहाँ इसे निकालने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें लगाई जाती हैं । इसे काला हीरा भी कहा जाता है । ‘ चाची ने उसे भुट्टा देते हुए कहा ।


      ‘ काला हीरा...क्यों चाची ?’


     ‘ क्योंकि इसको जलाकर हम न केवल खाना बनाते हैं वरन इसको जलाकर ऊर्जा भी पैदा की जाती है । शायद  तुमने पढ़ा होगा कि जेम्स वाट ने पहली बार स्टीम इंजिन बनाकर जब पहली बार रेलगाड़ी चलाई गई थी तब उसके इंजिन में कोयले को जलाकर, स्टीम से बनी ऊर्जा से ट्रेन को चलाया गया था ।’ चाची ने उसे समझाते हुए कहा ।


       ‘ चाचीजी स्टीम इंजिन के बारे में में ने बताया था । चाचाजी भी बता रहे थे कि थर्मल पावर स्टेशन में तथा चीनी मिल में गन्ने के रस को बायलर  में उबालने के लिए कोयले का प्रयोग करते हैं ।'


' तुम ठीक कह रही हो बेटा ।' चाची ने उसकी तरफ प्रशंसात्मक नजरों से देखते हुए कहा ।


     वे भुट्टे खा ही रहे थे कि आकाश में चंद्रमा दिखने लगा…


   ‘ चाची, फूल मून । ’ सुनयना ने आश्चर्य से कहा ।  


      ‘ फुल मून...आज पूर्णिमा है क्या ? ’ चाची ने भी आश्चर्य से कहा ।


     ‘ हाँ बहू, तभी आज मैंने बाहर प्रोग्राम रखा है ।’ दादाजी ने कहा ।


      रात बढ़ने के साथ हल्की-हल्की ठंड होने लगी थी ।


       ‘ ननकू अलाव लाना ।’ दादाजी ने आवाज लगाई ।


      ‘ अलाव...यह क्या होता है दादाजी ? ’


     ‘ अभी ननकू लेकर आ रहा है तब तुम स्वयं देख लेना । ’


     थोड़ी ही देर में ननकू अलाव ले आया । एक बड़े से बर्तन में कोयला जल रहा था । उसने वह सबके बीच में रख दिया जिससे सबको गर्माहट मिलने लगी ।


      ‘ इसी को अलाव कहते हैं । जैसे शहरों में कमरों को रूम हीटर से गरम किया जाता है वैसे ही गांव में कमरों तथा बाहर अलाव जलाकर ही शरीर को गर्म रखने का प्रयास करते हैं । ’ दादाजी ने सुनयना से कहा ।


         ‘ जी दादा जी ।’ सुनयना ने कहा ।


      अब गाना सुनाने की बारी आ गई । दादा-दादी ने मिलकर दो गाने गाये...पहला... झिलमिल सितारों का आँगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा तथा दूसरा... गाता रहे मेरा दिल तू ही मेरी मंजिल...।


 चाचा-चाची भी कम नहीं थे...आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये । उनके गाने पर सुनयना और रोहन ने डांस भी किया । 


अंत में ममा, पापा ने...गाता रहे मेरा दिल, तू ही मेरी मंजिल सुनाया । नौ बज गये थे सबको इतना मजा आ रहा था कि कोई अंदर जाने के लिए तैयार ही नहीं था ।  अंततः दादी के कहने पर सबको खाने के लिए उठना ही पड़ा ।   

                   

 

16



              विदा के पल-16


                एक हफ्ते का समय कैसे बीत गया सुनयना को पता ही नहीं चला । आखिर उनकी वापसी का समय भी आ गया । दो दिन बाद उन्हें लौटना था । एक दिन वह रोहन, पापा, चाचा के साथ क्रिकेट खेल रही थी कि किचन से आती सुगंध को सूँघकर वह किचन में गई । दादी कड़ाही में कुछ भून रहीं थीं तथा चाची और ममा खाने की तैयारी कर रही थीं ।


        ‘ दादी आप क्या बना रही हो ?’ सुनयना ने दादी के पास आकर पूछा ।


     ‘ बेटा, आपके और रोहन के लिये बेसन के लड्डू बना रही हूँ ।’


        ‘ बेसन के लड्डू...ये तो मुझे बहुत पसंद हैं लेकिन हम तो कल चले जायेंगे ।’ सुनयना ने उदास स्वर में कहा ।


      ‘ ये लड्डू मैं तुम्हारे साथ रखने के लिये ही बना रही हूँ ।’


      ‘ वाउ दादीजी , आप बहुत अच्छी हो ।’


       ‘ फिर मैं क्या खाऊँगा ? आजकल आप जो भी बनाती हो दीदी के लिये बनाती हो मेरे लिये नहीं बनातीं ।’ उसी समय सुनयना को बुलाने आये रोहन ने रूंठते हुये कहा ।


        ‘ बेटा, इतने सारे बना रही हूँ । सब सुनयना के साथ थोड़े ही रख दूँगी । इसमें से आधे सुनयना के लिये आधे रोहन के लिये । अब तो खुश है न ।’ दादी ने बेसन भूनते हुये कहा ।


      ‘ ठीक है दादी ।’ चलो दीदी तुम्हारी बैटिंग है ।’


          ‘ तुम चलो मैं आती हूँ ।’


       रोहन चला गया । वह वहीं खड़ी दादी को बेसन भूनते देखती रही । उसे खड़े देखकर दादी ने कहा, ‘ बेटा, जब तुम छोटी थीं तब मैं और तुम्हारे दादाजी मुंबई गये थे । मैं बेसन के लड्डू लेकर गई थी । लड्डू तुमको बहुत पसंद आये थे । लौटते हुये मैंने सोचा कि तुम्हारे लिये लड्डू बनाकर रख जाऊँ । मैंने लड्डू बनाए ही थे कि उसी समय तुम्हारी ममा की कुछ सहेलियाँ मिलने आईं । तुम्हारी ममा ने उनके सामने बेसन के लड्डू रख दिये । यह देखकर तुम रोने लगीं । उस समय तुम ठीक से बोल नहीं पातीं थीं । कुछ शब्दों द्वारा अपनी बात समझा दिया करतीं थीं । रोते हुये तुम्हारे कुछ कहने के कारण उस समय हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि तुम कहना क्या चाह रही हो तथा अचानक तुमने रोना क्यों प्रारंभ कर दिया ? बाद में तुम्हारी ममा ने बताया कि तुम इसलिये रो रही थीं कि कहीं उनकी सहेलियाँ सब लड्डू खत्म न कर दें ।’


     ‘ ममा को कैसे समझ में आया ?’


       ‘ बेटा, बच्चा जब छोटा होता है तब माँ अपने बच्चे के हावभाव से बच्चे की हर बात समझ जाती है ।’


      ‘ सच दादी, क्या मैंने ऐसा किया था ? यह तो गलत था न...हमें अकेले नहीं वरन् सबके साथ शेयर करके खाना चाहिये ।’ सुनयना ने मायूस स्वर में कहा ।


       ‘ बेटा, उस समय आप छोटी थीं न...।’ दादी ने कहा । 


        ‘ दीदी चलो न...आप अभी भी यहाँ हैं । आपकी बैटिंग है ।’


       सुनयना रोहन के साथ चली गई । दादी ने उनके साथ उसकी पसंद की मठरी, बेसन के लड्डू, अचार, आलू की चिप्स और चावल की कचरी भी रख दीं । इस बीच उसने दादाजी से बात करके ननकू के लिए गैस दिलवाने का वायदा कर लिया । सबसे अधिक खुशी तो तब हुई जब दादी ने उसे उसको उसके लिये बनाया गुलाबी स्वेटर न केवल दिया वरन् अपने हाथों से उसे पहनाया भी ।


        ‘ दादी आपने तो मोर पंखों को मेरे स्वेटर में बना दिया है । थैंक यू दादीजी इतने सुंदर स्वेटर के लिये । ’ स्वेटर पहनकर, अपने स्वेटर में बने नीले हरे लाल रंगों से बने मोर के पंखों की लाइन बनी देखकर सुनयना ने कहा ।


      ‘ बेटा, जिस दिन तूने अपने लिये स्वेटर बनाने के लिये कहा था उस दिन मैंने तुझे मोर के पंखों की कहानी सुनाई थी इसलिये मैंने तेरे स्वेटर में भी मोर पंख बना दिये हैं जिससे जब भी तुम इसे पहनो तुम्हें नाचता मोर तथा मोर पंखों वाली कहानी याद आ जाये ।’


    ‘ दादीजी इस बार मैं मोबाइल में गाँव लेकर जा रही हूँ । जब-जब मैं यहाँ के फोटो देखूँगी, तब मुझे आपकी दादाजी की, यहाँ की हर बात याद आयेगी । जब मन होगा मैं स्वयं भी अपना सुंदर गाँव घूमूंगी तथा अपने दोस्तों को भी घुमाऊंगी ।’ सुनयना ने दादा-दादी से कहा ।


     ‘ क्या कह रही है बिटिया मोबाइल में गाँव...मैं समझी नहीं...।’ दादीजी ने उसकी ओर आश्चर्य से देखते हुये कहा ।


       ‘ दादीजी यह देखिये...।’ उसने अपने मोबाइल की गैलरी खोलकर अपने खींचे फोटो उन्हें दिखाते हुये कहा ।


      ‘ सच बिटिया आज तो सारे रिश्ते नाते इस मोबाइल में सिमटकर रह गये हैं ।’ दादीजी ने फोटो देखते हुए कहा ।  

 

    ‘ दादीजी आपने कुछ कहा क्या...?’ कुछ न समझ पाने के कारण सुनयना ने उनकी ओर देखते हुये पूछा ।


    ‘ बहुत अच्छा किया बिटिया...अब जब मन चाहे सबसे मिल लेना ।’ दादीजी ने मन में उमड़-घुमड़ रहे विचारों से बाहर निकलते हुये कहा ।


      ‘ हाँ दादी । अब तो मैं रोज ही आपसे वीडियो काल करके भी बात किया करूँगी । आप मेरी अच्छी वाली दादी तो हैं ही, मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी बन गई हैं न...। ’ सुनयना ने उनसे लिपटते हुये कहा ।


       सुनयना का अपने प्रति प्रेम देखकर दादी की आँखों में आँसू आ गये थे । सच लड़कियाँ होती ही इतनी प्यारी हैं ।





चलते-चलते दिल्ली भी घूम लें  -17

  

                ममा पैकिंग कर रही थीं पर उसका पैकिंग करने का बिल्कुल भी मन नहीं था । रोहन भी उनके जाने की बात सुनकर बेहद उदास हो गया था । उसे लग रहा था कि काश ! वह यहीं रूक जाती पर यह संभव नहीं था । पापा-ममा की छुट्टियों के साथ उसकी भी छुट्टियाँ समाप्त होने वाली थीं ।


                चाचा के साथ चाची और रोहन को भी उन्हें दिल्ली छोड़ने जाते देखकर सुनयना यह सोचकर खुशी से भर गई कि अब कुछ समय और उसे रोहन के साथ रहने को मिल जाएगा । चलते हुए दादी ने उसे एक लिफाफा दिया तथा कहा ,‘ इससे अपने लिए एक अच्छी ड्रेस खरीद लेना । ’


         ‘ दादी मुझे । ’


           ‘ तू भी ले । ’ कहकर दादी ने रोहन को भी एक लिफाफा दिया ।


       दादा-दादी से चलते समय उसने वायदा लिया कि गर्मियों की छुट्टी में वे मुंबई आयेंगे । पूरे रास्ते वह और रोहन बातें करते रहे । इसी बीच सबने मिलकर अंताक्षरी भी खेली । 


जैसे ही उन्होंने दिल्ली में प्रवेश किया । चारों ओर देखकर सुनयना को ऐसा लग रहा था जैसे दिन में ही अंधेरा हो गया हो...। सूरज को मानो किसी मटमैली छाया ने ढक लिया हो । 


' यहाँ तो बहुत प्रदूषण है ।' पापा ने कहा ।


' भइया, दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर है । आपने आज अखवार में  पढ़ा नहीं कि दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स आज 450 है । मास्क लगाए बिना बाहर निकलना स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित नहीं रह गया है । अब तो शहरों में लोग अपने घरों में एयर प्यूरीफायर लगाने लगे हैं । मुझे डर है कि कहीं भविष्य में हमें अपने साथ छोटा ऑक्सिजन सिलिंडर लेकर न चलना पड़े ।'


' सच कह रहे हो तुम न जाने कब सुधरेंगे लोग । आखिर पर्यावरण को सुरक्षित रखना हम लोगों का ही काम है । बिना सोचे-समझे पेड़ काटे जा रहे हैं, बेतरतीब कॉलोनियां बनाई जा रहीं हैं । पता नहीं क्या होगा इस दुनिया का ।' 


' आप क्या कह रहे हैं चाचा पापा ? प्रदूषण मास्क !! एयर प्यूरीफायर, ऑक्सीजन सिलिंडर ...और पर्यावरण ।' पापा चाचा की बातें सुनकर सुनयना ने अपने प्रश्नों का समाधान चाहा ।


' बेटा , 'परि' जो हमारे चारों तरफ है तथा 'आवरण 'जो हमें घेरे हुए है अर्थात हमारे चारों ओर फैली हवा । तुम यह जो धुंध देख रही हो वह हवा में मौजूद जहरीली गैसों के कारण हैं । ' चाचा ने उत्तर दिया ।


' जहरीली गैस...मैं समझी नहीं ।'


' बेटा, हम सांस लेते हैं तो कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं  इसके साथ ही पेट्रोल, डीजल से चलने वाली गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ तथा और भी कई अन्य चीजें हवा  को प्रदूषित करती हैं ।'


' यह कैसे पता चलता है कि यहाँ प्रदूषण अधिक है ?' सुनयना ने पूछा ।


' प्रदूषण मापक यंत्र के द्वारा हवा की शुद्धता को मापते हैं ।'


' इससे कैसे पता चलेगा कि हवा शुद्ध है या अशुद्ध ।'


' बेटा, हवा की शुद्धता ( एयर क्वालिटी इंडेक्स ) को  माइक्रोग्राम / क्यूबिक मीटर में मौजूद गैसों के अनुसार मापा जाता है अर्थात अगर यदि कहीं हवा में प्रदूषित कणों की संख्या  50 से कम है तो वहाँ की हवा बहुत अच्छी , 51 से 100 हो तो ठीक, 101से 150 हो तो कुछ खराब, 151 से 200 हो तो खराब, 201 से 300 से ऊपर होने पर बहुत खराब तथा 300 से अधिक होने पर स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खराब होती  है । '


' आप एयर प्यूरीफायर, ऑक्सिजन सिलिंडर की बात कर रहे थे ।'


' बेटा, एयर प्यूरीफायर से अपने कमरे की हवा को शुद्ध किया जा सकता है तथा ऑक्सीजन सिलिंडर तब प्रयोग में लाते हैं जब किसी के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाये । '


' चाचाजी , हवा को शुद्ध कैसे किया जाता है ?'


' बेटा, हमें अपने घर के आस-पास पेड़ पौधे लगाने चाहिए । घर का कूड़ा इधर-इधर नहीं डाल कर, डस्ट बिन में डालना चाहिए क्योंकि इधर-उधर पड़ा कूड़ा सड़ कर बदबू तो फैलाता ही है , उससे निकलती जहरीली गैसें भी हमारे आस-पास की हवा को प्रदूषित कर देती हैं ।'


अभी चाचा बात ही रहे थे कि 

उसी समय एक कार हॉर्न बजाते हुए पास से निकली । चाचा ने ब्रेक मारते हुए अपनी कार साइड में कर ली । अगर चाचा ने गाड़ी साइड न की होती तो तेज रफ्तार से दौड़ती कार ने उनकी कार को टक्कर मार ही दी होती । एकाएक ब्रेक लगने तथा गाड़ी के झटके के साथ रुकने से सब घबरा गए थे ।


' न जाने कब सुधरेंगे लोग !! पता नहीं इतनी हड़बड़ी क्यों ? देखो कितना धुंआ निकल रहा है । एयर पॉल्युशन के साथ यह आदमी ध्वनि प्रदूषण भी फैला रहा है ।' चाचा बुदबुदाए थे ।


' सुनयना अब चुप भी रहो । अभी एक्सीडेंट होते-होते बचा है ।' पापा ने सुनयना से कहा ।


' भइया , सुनयना को मत रोकिए । अगर हम बच्चों के प्रश्नों का उत्तर नहीं देंगे तो उनकी जिज्ञासा कैसे  शांत होगी । मुझे सुनयना की हर चीज को जानने समझने की प्रवृति अच्छी लगती है वरना आजकल के बच्चे तो बस मोबाइल में ही लगे रहते हैं ।' चाचा जी ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा ।


इस सबके बावजूद गाड़ी में चुप्पी छा गई थी ।  एक स्थान पर चाचाजी ने कर पार्क करते हुए कहा, ' बच्चों राजघाट आ गया । अपने -अपने कोट पहन लो बाहर बहुत सर्दी होगी ।'


' राजघाट ...।' सुनयना स्वयं को रोक नहीं पाई तथा गाड़ी से उतरते ही उसने  पूछा ।


  ' बेटा,  यह ‘ राजघाट ‘...यमुना नदी के किनारे बना पूज्य महात्मा गांधी का समाधि स्थल है । इसे हमारे राष्ट्रपिता  महात्मा गांधी जी  की स्मृति में बनाया गया है । ' चाचाजी ने सुनयना और रोहन को बताया ।


अंदर प्रवेश करते ही सुनयना ने देखा के चारों ओर पेड़ लगे होने पर यह स्थान एक बड़ा सा पार्क लग रहा है । जब वे समाधि स्थल तक पहुँचे तो उसने देखा कि महात्मा गांधी की समाधि काले पत्थर से बनाई गई है ।  तथा उसे फूलों से सजाने के साथ एक जगह ज्योति जल रही है तभी उसकी निगाह समाधि पर लिखे ' हे राम  ' पर गई । 


सुनयना से रहा नहीं गया । उसने पूछा, ‘ चाचा जी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता क्यों कहते हैं और यहाँ ' हे राम ’ क्यों लिखा है ?' 


       ‘ बेटा महात्मा गांधी के प्रयासों से हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था, हमें आजादी मिली थी इसलिए उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है ।‘


       ‘ ठीक है चाचा, पर अकेले गांधी जी कैसे आजादी दिला सकते हैं ?’


     ‘ अकेले नहीं बेटा, गांधीजी के साथ बहुत लोग थे । वह हम सबके नेता थे । उन्होंने सबको आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया ।’


 ' पर यह समाधि, समाधि पर जलता दिया  'हे राम ' ...इसका क्या मतलब है ।'


' बेटा जिस स्थान पर महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार हुआ था उस स्थान पर उनकी याद में समाधि बनाकर दिया जलाया जाता है । मृत्यु के समय  उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द ' हे राम ' थे । अतः उन्हें यहाँ लिख दिया गया है ।'


' भइया, यहाँ संग्रहालय भी है न ।'


' हाँ भाभी, उसे देखने में समय लग जायेगा। आज सुनयना को लालकिला और इंडिया गेट भी घुमा देते हैं ।'


    चाचा की बात सुनकर वे लौट चले । राजघाट के बाद चाचा उन्हें लालकिला किला ले गये । लाल पत्थरों से निर्मित लालकिला यमुना नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है ।


         ‘ पापा यहीं पर पंद्रह अगस्त को हमारे प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं ।’ रोहन ने पूछा ।


    ‘ हाँ बेटा । देखो यह वह स्थान है जहाँ हमारे प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं ।’ चाचाजी ने वह स्थान दिखाते हुये कहा ।


       लगभग एक घंटा उस भव्य किले में बिताकर वे पुनः चल दिये । गाड़ी से ही चाचाजी ने राजपथ पर स्थित संसद भवन तथा भारत के राष्ट्रपति का घर दिखाया । चाचीजी ने सुनयना और रोहन को बताया कि राष्ट्रपति के इस महल में 340 कमरे हैं ।


    ‘ क्या 340 कमरे...? क्या राष्ट्रपति का परिवार इतना बड़ा है ?’ सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।


      ‘ बेटा, राष्ट्रपति का परिवार तो हमारे जैसा है पर वह पूरे देश का प्रथम व्यक्ति अर्थात् सबसे बड़ा व्यक्ति है । वह तो इस महल के छोटे से भाग में रहते हैं । अन्य भागों में उनके काम करने वाले तथा अन्य लोग रहते हैं ।’ चाची ने कहा ।


         ‘ क्या हम लोग इसे देख सकते हैं ?’


    ‘ हाँ बेटा, सामान्य लोग भी इस महल के कुछ भाग देख सकते हैं ।’ चाचीजी ने कहा ।


       अब हमारी गाड़ी इंडिया गेट पहुँच गई थी । गाड़ी खड़ी कर इंडिया गेट के सामने पहुँच कर चाचाजी ने सुनयना और रोहन को बताया कि इंडिया गेट को अखिल भारतीय युद्ध स्मारक भी कहा जाता है । अनाम वीर शहीदों की स्मृति में यहाँ एक राइफल के ऊपर टोपी रख दी गई है । वीर शहीदों की याद में यहाँ एक ज्योति निरंतर जलती रहती है । 


सुनयना ने देखा कि इंडिया गेट के चारों ओर बहुत बड़ा मैदान तथा खुली जगह में बहुत भीड़ है तथा आइसक्रीम और चाट के ढेले भी खड़े हैं । शायद लोग पिकनिक मनाने यहाँ आते हैं । पापा ने सबको आइसक्रीम दिलवाई ।

       

आइसक्रीम खाने के बाद चाचाजी हमें इंडिया गेट के पास स्थित नेशनल वार मेमोरियल लेकर गये । चाचाजी ने बताया कि इस वार मेमोरियल को भारत सरकार ने अपने वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये बनवाया है जिसे 25 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को समर्पित किया था । यह वार मेमोरियल करीब 22,600 लोगों के सम्मान का सूचक है जिन्होंने आजादी के बाद अनेकों लड़ाइयों में देश की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दी । छह भुजाओं के आकार वाले इस मेमारियल के केंद्र में पंद्रह मीटर ऊँचा स्मारक स्तंभ है जिसके नीचे अखंड ज्योति जलती रहती है । मेमोरियल में 21 परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्ति लगी है । चाचा बता रहे थे तथा वे देख रहे थे । उन्होंने देखा कि शहीदों के नाम मेमारियल की दीवार के पत्थरों पर खुदा हुआ है । स्मारक स्तंभ के नीचे का भाग अमर जवान ज्योति जैसा लगा । 


    ' दिल्ली में देखने के लिए क्या बस यही जगह हैं ।'


' नहीं बेटा, दिल्ली में घूमने के लिए और भी जगह हैं जैसे कुतुब मीनार , जंतर मंतर, अक्षरधाम मंदिर इत्यादि । अभी समय कम है । अगली बार आओगी तो वह भी धूम लेना ।'


      ' ठीक है चाचा जी ।' 

    

       अनेकों प्रश्न उत्तरों के बीच इंदिरा गांधी हवाई अड्डा आ गया । जब चाचा-चाची और रोहन उन्हें छोड़कर जाने लगे तो उसने एक बार फिर उन्हें मुंबई आने के लिए कहा तथा मन ही मन यह वायदा किया कि वह अब हर वर्ष गाँव आया करेगी । सच तो यह है कि गाँव के स्वच्छ वातावरण, स्वच्छ हवा ने उसके मन को मोह लिया था । उसने मन ही मन सोचा कि वह अपने घर की बालकनी में तो ममा-पापा से कहकर पौधे लगाएगी ही, अपने मित्रों के साथ मिलकर अपने अपार्टमेंट के लोगों को भी पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित करेगी । उनसे कहेगी कि अगर हमें शुध्द हवा में सांस लेना है , पर्यावरण को बचाना है तो पेड़ पौधे लगाने के साथ स्वच्छता पर भी ध्यान देना होगा । 

 

सुधा आदेश


समाप्त







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