Wednesday, April 15, 2015

मेरा गाँव मेरा शहर

मेरा गांव मेरा देश पनघट पर हँसी छिछोरी करती गोरियाँ टपकते नलों पर इंतज़ार करती नर नारियों की टोलियाँ । साधनहीन चेहरों पर श्रमबिंदुओं से उत्पन्न तेजस्विता, जीवन की भागदौड़ से त्रस्त चिंतामगन निस्तेज चेहरे । जीवनदायिनी हवाओं से प्रफुल्ललित जन-जीवन गरम प्रदूषित हवाओं के थपेड़ों से घायल तन-मन । दूध और दही से सराबोर अलमस्त जीवन, जाम और कोक को समर्पित निःसहाय लोग । जीवन रसमय रागात्मक लोकगीतों से गुंजायमान घर-घर डिस्को की धुन पर थिरकते दिग्भ्रमित युवक युवतियाँ । जीवनमूलयों को सहेजते सीधे-सादे चेहरे, आदर्शो की धज्जियाँ उड़ाते अर्ध नग्न रैन बसेरे । सुन ले गुन ले सौ टके की बात रूक जा मन बाबरे शहर की ओर मत भाग। शहर में तू, तू न रहेगा गाड़ियों की रेल पेल में दब कर, भूल जायेगा निज अस्तित्व चलेगा पर निर्जीव सा । सुधा आदेश

Tuesday, April 14, 2015

ज़िंदगी

अच्छे बुरे पलों का जोड़ है ज़िंदगी संगीत नहीं गणित सी कठोर है ज़िंदगी । पल कभी टीस देते हैं, कभी ख़ुशी घबराना नहीं,बौराना नहीं,निचोड़ है ज़िंदगी । सहेजना उन्हीं पलों को जो देते हैं ख़ुशी रजनीगंधा सी महकती जायेगी ज़िंदगी । ख़ुशियों को बाँटो,हर पल को जिओ रूको न कभी,खुदा की इनायत है ज़िंदगी। ज़िंदगी का फ़लसफ़ा गर समझ पाते बेगानी नहीं,अपनी सी,इंद्रधनुषी लगेगी ज़िंदगी । सुधा आदेश