Wednesday, October 8, 2014

एक अनुभव

लखनऊ आने के पश्चात आज पहली बार मुझे अभिव्यक्ति संस्था की मासिक गोष्ठी में सम्मिलित होने का अवसर मिला...गोष्ठी अच्छी थी,पूरी तरह साहित्यिक वातावरण से भरपूर...पर उससे भी अच्छा लगा जब एक मेरी बेटी की उम्र की लड़की ने जब मुझसे पूछा,'आंटी, क्या आपकी सरिता और गृहशोभा में आपकी कहानियाँ छपी है। ' मेरे द्वारा सकारात्मक उत्तर प्राप्त कर उसने फिर पूछा, 'कब से छप रही है।' मैने बताया की उन्नीसों छियानवे से ।' तब उसने कहा,' उस समय तो में बारह वर्ष की रही होंगी, पर मै आपकी कहानियाँ पढ़ती रही हूँ ।'उसकी बात सुनकर लगा मेरी रचनाधर्मिता सफल हो गई है...। आज वह स्वयं अच्छी लेखिका है...उसकी ( शुचिता श्रीवास्तव) की रचनाधर्मिता को नमन... वैसे इस तरह की घटना पहली बार नहीं घटी है...आज से चौदह वर्ष पूर्व एक विवाह के स्वागत समारोह में एक लड़की ने मुझसे यही प्रश्न किया था पर वह सिर्फ पाठक थी लेखक नहीं...आज से सात वर्ष पूर्व की वह घटना भी नहीं भूल पाती हूँ जब में अपनी पुत्रवधू की तलाश कर रही थी...एक लड़की ने मुझसे पूछा कि क्या आप कहानियाँ लिखती है, मेरे हाँ कहने पर उसने कहा,मैंने आपकी कहानियाँ पढ़ी है ... खुशी की बात तो यह है कि वही कन्या आज मेरी पुत्रवधू है... ।