जीवन एक सतत प्रक्रिया है और मृत्यु एक शाश्वत सत्य...सच तो यह है कि जन्म से ही हर पल के साथ ही इंसान मृत्यु कि और अग्रसर होने लगता है...जन्म से मृत्यु कि इस यात्रा में कोई मोह के जाल में फंसा कसमसाता रह जाता है तो कोई इसे तोड़कर आगे बढ़ता जाता है, कोई परमात्मा में विश्वास कर सत्य और ईमानदारी को जीवन लक्ष्य बना लेता है तो कोई परमात्मा के अस्तित्व को नकार कर छल,कपट द्वारा ध्येय पूर्ति में संलग्न हो जाता है तो कोई अपने उद्देश्य को निर्धारित न कर पाने के कारण समाज को दोष देते हुए असामाजिक बनते जाते है तो कुछ विपरीत परिस्थियों पर विजय प्राप्त कर अनुकरणीय उदाहरण पेश कर जाते है...तात्पर्य यह कि इंसान का सफल होना या न होना उसकी मानसिक सोच और परिस्थितियो पर निर्भर है...इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है...।
Sunday, March 24, 2013
Saturday, March 16, 2013
दर्द
दर्द इंसानी जीवन का सार्वभोमिक सत्य है...जिस जीवन का प्रारम्भ दर्द से हो तथा जिसका अंत दर्द की पीड़ा से मुक्त न हो वह जीवन भला दर्दरहित कैसे हो सकता है जबकि इंसान सदा सुख को गले लगाने के लिए तत्पर तथा दुख से भागने के लिए प्रयत्नशील रहता है...अगर हम सुख की तरह ही दुख को भी अपना साथी बना ले तो दुख की धड़ियाँ भी कट ही जाएंगी...यह सदा याद रखें कि दुख के पश्चात ही हम वास्तविक सुख का अनुभव कर पाते है,,,।
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