Sunday, July 31, 2011

क्या खोया क्या पाया

जीवन की आपाधापी में क्या खोया क्या पाया जब समझ पाए तब हाथ खाली थे... अपने हो चुके थे पराये जीवन के चौराहे पर हम नितांत अकेले विस्मित खड़े थे आखिर हमारे जैसे सफल आदमी से चूक कहाँ, क्यूँ कर हुई... दिल ने झकझोरा तुम सफल थे पर जिनको सीढ़ी बनाकर तुमने सफलता के शिखर छूये, आगे बढ्ने के जुनून में उन्हें तुम स्वयं रोंदते गए तुम ने जैसा बोया वैसा ही पाया अब दुःख क्यों,अफसोस क्यों...?

Tuesday, July 5, 2011

jivan

जीवन  दो  पल  का,
उसमे सिमटती सारी व्यथाये ,
आशाये , निराशाये ,
कब और कहाँ ,
क्यों और कैसे,
प्रशन    निरर्थक ,
शेष सिर्फ यादे.