Monday, October 14, 2013

जीवन

जुगनू सा कभी जलता कभी बुझता रहा जीवन, तितली सा कभी हँसता कभी उड़ता रहा जीवन । तूफानों ने कभी रोका मार्ग,आंधियों ने कभी बिखरा दिया तन-मन, चिड़िया सा चुन-चुनकर तिनका-तिनका सँवरता रहा जीवन । तरिणी की तपिश ने कभी तपाया,ज्योत्नेश की ज्योत्सना ने कभी सहलाया, पग में कभी चुभे कांटे,लौह सा कुन्दन बन निखरता ही गया जीवन । फूल सा कभी महकता, कभी मुरझाता गया जीवन, नदिया सा फिर भी निरंतर बहता ही गया जीवन ।

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