गत वर्ष गया,
कुछ स्वप्न टूटे,
कुछ अधूरे पड़े,
नये संगी-साथी मिले
कुछ बिछड़े,
अजीब विडम्बना
गिले-शिकवे
भुलाए न भूले...
संभव-असंभव
कुछ भी नहीं,
सहेजकर सलवटें
मन के चादर की,
नव स्वप्न बुनें,
अधूरों में रंग भरे,
मन से मन को जोड़ें...
खट्टी-मीठी को
सहेजकर मुट्ठी में,
कहकर अलविदा
गत वर्ष को,
तन-मन को
कर निर्मल
आओ आगत का
आगाज करें...
शत-शत अभिनंदन,
नव स्वप्नों का
शत-शत अभिनंदन ।
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