Wednesday, December 25, 2013

अनमोल जीवन

जीवन में आये प्रत्येक सुख-दुख सफलता-असफलता के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है । अनावश्यक क्रोध और अनियोजित कार्य न केवल हमारी कार्य क्षमता को प्रभावित करते है वरन असंतुष्टि के भी जन्मदायक है...जीवन के प्रति असंतुष्टि जहाँ कर्तव्यविमुख करती है वहीं कार्य के प्रति असंतुष्टि हमें निरंतर आगे बढ्ने के लिए प्रेरित करती है...यह तभी संभव है जब हम अनावश्यक वाद-विवाद से बचते हुए अपनी प्रत्येक क्रियाओं को उचित दिशा निर्देश देते हुए अपने कार्य क्षेत्र का निर्धारण करें...आलोचना या परिस्थितियों के प्रति आक्रोश या उससे डरकर कार्यविमुख होना हमारी हताशा का परिचायक है,हताशा में किया कोई कार्य कभी सफल नहीं हो सकता...चलते जाना ही जीवन ही है वहीं रुकना मौत...जीवित रहते भला मृत्यु का वरण कौन करना चाहेगा...? जीवन अनमोल है...नई चाह, नई आस के संग जीवन के सारे रंगों को निज में समाहित करते हुए आगे बढ़ते जाइये,समस्त कठिनाइयाँ,परेशानियाँ स्वमेव दूर होती जायेंगी ।

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