जीवन का गान
टूटे मन की बगिया में
खिलेंगे जब फूल पलाश के
बिहँस उठेगा मन का पांखी
पहन केसरिया चोली ।
पतझड़ के मुरझाये पातों को
चुन-चुनकर सहलायेंगे जब रिश्ते जख्मों को
बहता ही जायेगा झर-झर हिमशिखरों से
उदित जल प्रपात सा जड़ जीवन ।
प्रकृति के तांडव नर्तन से हो त्रसित
त्राहि-त्राहि करेगा जब जन-जीवन
अंजुरी भर दान देकर प्रेम का
चाँद सा मुस्करायेगा जीवन ।
रिक्त हो जाये भले यह जीवन
टूटेंगे न कभी स्वप्न सुनहरे
टूट-टूटकर पुनः जुड़ेंगे
ज्यों नाजुक रिश्तों की डोरी ।
मत भूलना, जड़ नहीं चेतन है तू
रुक-रुककर चलना आदत नहीं नियति है
नियति से लेकर टक्कर
बदल सकता है जीवन का गान ।
सुधा आदेश
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