Wednesday, November 6, 2019
संतुष्टि
संतुष्टि
अक्सर नीलिमा अपने घर के सामने की सड़क पर एक युवक को गाय चराने के लिए जाते हुए देखा करती थी । मैले कुचैले कपड़े, नंगे पैरों के बावजूद उसके ओंठ कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते थे । चेहरे पर सदा एक निर्दोष मुस्कान खिली रहती थी । उसको देखकर कभी-कभी लगता कि वह इतनी तंगहाली में भी इतना खुश कैसे रह लेता है जबकि वह स्वयं सारी सुख-सुविधा होने के बावजूद खुश नहीं रह पाती थी ।
बच्चे बाहर पढ़ रहे थे । पति अमित चार दिन के टूर पर गये थे । घर में करने के लिये कुछ नहीं था अतः नीलिमा अपने बागवानी के शौक को पूरा करने के लिये बगीचे में पानी देने लगी । अचानक उसका पैर पाइप में उलझ गया और वह गिर पड़ी । संयोग था कि उसी समय वह युवक अपनी गाय को चराने जा रहा था । उसकी आवाज सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा आया तथा उसे उठाते हुये कहा ‘ आंटी चोट तो नहीं लगी ।’
‘ नहीं बेटा...।’
‘ क्या नाम है बेटा तुम्हारा ?’
‘ सोना....। ‘
‘ बहुत अच्छा नाम है । ‘
‘ ओ.के. आंटी अब मैं चलूँ ।’
‘ रूको बेटा, मैं अभी आई । ’ कहकर नीलिमा घर के अंदर गई ।
बाहर आकर नीलिमा ने सोना को चाकलेट के साथ कुछ रूपये दिये...
‘ आंटी हम गरीब जरूर हैं पर भिखमंगे नहीं...मेरे पास दो-दो माँ है फिर मुझे इन सबकी क्या आवश्यकता है ? मेरी सारी आवश्यकतायें वे पूरा कर देतीं हैं ।’ कहते हुये उसने उसकी गिफ्ट लेने से इंकार कर दिया ।
‘ दो-दो माँ...।’
‘ हाँ...एक मेरी माँ तथा दूसरी मेरी शालू माँ...।’ उसने गाय की ओर इशारा करते हुये कहा तथा चला गया ।
नीलिमा को सोना की संतुष्टि का रहस्य पता चल गया था ।
सुधा आदेश
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