Wednesday, June 15, 2011
प्रेम की परिभाषा हर प्राणी के लिये अलग-अलग होती है ...
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प्रेम की परिभाषा हर प्राणी के लिये अलग-अलग होती है । किसी के सिये प्रेम त्याग तो किसी के लिये समर्पण है , किसी के प्रेम पूजा है तो किसी के लिये बलिदान...पर मेरे लिये प्राणी मात्र से प्रेम करना ही प्रेम है । प्रेम में चाहना नहीं वरन् अपने प्रेम के लिये कुछ कर गुज़रने की भावना मुख्य होनी चाहिये । प्रेम सनातन सत्य है इसके बिना सृष्टि की कल्पना भी असंभव है । अपने घोर विरोधी से प्रेम करके देखिये वह भी कुछ दिनों में आपका अपना हो जायेगा । मत भूलिये जंग नफ़रत से नहीं प्यार से जीती जा
सकती है । नफ़रत से किसी और का नहीं स्वयं अपना ही नुक़सान होता है । एेसा क्षणों से उत्पन्न मानसिक उत्तेजना अपनी ही देह की दुश्मन बन जायेगी । मित्र भी शत्रु बनते
जायेंगे अत:सारे पूर्वागृह त्याग कर प्रेम रूपी दौलत अपना लीजिये , जीवन ख़ुशनुमा बन जायेगा ।
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