Monday, April 6, 2020
प्रायश्चित
प्रायश्चित
मनीष जब सुबह उठा तो देखा, घड़ी 8:00 बजा रही है ।रात देर तक मीटिंग अटेंड करने के कारण वह अत्यंत थका हुआ था अतः आते ही सो गया था । उसने अलसाई स्वर में पुकारा…
' सविता ...।'
कोई प्रतिउत्तर न पाकर किचन में झांका तो वहां कोई नहीं था । बच्चों के कमरे में जाकर देखा तो पाया कि शिखा सो रही है पर अमित और सविता कहीं नजर नहीं आ रहे थे ।
पिछले 20 वर्षों में पहली बार हुआ था कि उसे समय पर बेड टी नहीं मिली थी वरना चाय के साथ पेपर भी उसे परोस दिया जाता था दरवाजे के नीचे पड़े पेपर को उठाकर मुड़ा ही था की घंटी बजी दरवाजा खोला तो देखा नौकरानी शीला खड़ी है । उसे देखते ही वह बोली, ' साहब मेमसाहब ठीक है ना ! कल उनकी हालत देखकर हम तो घबरा ही गए थे । वह तो भैया उस समय घर पर ही थे । वे तुरंत उन्हें अस्पताल ले गए ।'
तो क्या सविता एडमिट है कल जब वह मीटिंग में जा रहा था तभी शिवम का फोन आया था कि पापा मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है पर मीटिंग की वजह से वह इतना परेशान था कि उसने कह दिया ,'तो मैं क्या करूं जाकर डॉक्टर को दिखा लो ।'
तब उसने सोचा था ऐसे ही कुछ हुआ होगा जैसा कि सविता अक्सर पिछले कुछ दिनों से शिकायत करती रही है । लेकिन वह उसकी शिकायत को नजरअंदाज करता रहा था क्योंकि उसे लगता था कि वह उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही वह ऐसे बहाने करती रहती है । शरीर ठीक-ठाक है फिर यह बेचैनी क्यों ?
उनके विवाह को 20 वर्ष हो चुके हैं । दुनिया वालों की नजरों में उनका परिवार खुशहाल है समर्पित पत्नी है , योग्य बच्चे हैं पर वह कभी भी मन से सविता का नहीं हो सका । शारीरिक भूख मिटाने में वह भले ही उसकी सहायक बनी हो किंतु मानसिक भूख सदा ही अतृप्त ही रही । उसका विवाह उसके पिता की जिद का परिणाम था । उन्हें घर के काम में दक्ष लड़की चाहिए थी । पढ़ाई से उन्हें कोई मतलब नहीं था । उनका मानना था ज्यादा पढ़ाई लड़कियों को बददिमाग और बदजुबान बनाती है । ऐसी लड़कियां परिवार को तोड़ देती है । तोड़ना बहुत आसान है पर जोड़ना बहुत कठिन ...।
सविता उनके मित्र की बेटी है । बचपन में मां का साया उठ जाने के कारण वह अक्सर उनके घर प्यार पाने आ जाया करती थी । मां उसे अपने हाथों से सजा सवार कर , खिला पिलाकर प्रतिदान में बेटी ना होने पर भी बेटी का सुख भोग लिया करती थीं । उसने भी मां की बीमारी में दिन रात एक कर दिया था । यह सच था कि अपनी सेवा से भी वह मां को नहीं बचा पाई थी पर उसकी सेवा ने पिताजी का दिल जीत लिया था और उन्होंने उसे बेटी से बहु बनाने की ठान ली ।
उस समय वह इंजीनियर के अंतिम वर्ष में था । दो छोटे भाई थे ।' बिन घरनी घर भूत का डेरा 'वाली कहावत चरितार्थ होने लगी थी । सविता ही जब तक आकर घर को व्यवस्थित कर जाती थी पर मां के ना रहने पर उसे भी उनके घर आने में संकोच होने लगा था ।
पिताजी ने जब अपनी मन की बात उससे कही तो उनकी डबडबाई आंखों में इसरार देखकर मना नहीं कर पाया । उसकी उस दिन की कमजोरी पूरे उम्र भर की सजा बन गई । पत्नी बनाकर वह सविता को घर तो ले आया पर उसे कभी जीवनसंगिनी नहीं मान पाया । सविता भी उसके साथ के बजाय घर के कामों में ज्यादा व्यस्त रहती थी । वास्तव में वह पिताजी की आशा के अनुरूप ही थी । वह घर के हर सदस्य की एक -एक जरूरत को पूरा करती । यहाँ तक कि उसने उसे भी कोई तकलीफ नहीं होने दी । सब उसके कार्य व्यवहार से खुश थे पर वही उससे तारतम्य स्थापित नहीं कर पाया था ...शायद उसने करना ही नहीं चाहा था । यद्यपि वह ग्रैजुएट थी पर सुबह से शाम तक घर के कामों में व्यस्त रहने के कारण हल्दी , धनिया की गंध से लिपटी उसके देह से उसे वितृष्णा होती थी । उसे ऐसी सुंदरी की चाह थी जो भले ही कामकाजी ना होती लेकिन उसकी मित्र मंडली में विभिन्न विषयों पर होते वार्तालाप में सम्मिलित होकर अपनी विदयता की छाप छोड़ते हुए उसके सम्मान में चार चांद लगा सकती थी । पर उसे तो घर के कामों से ही फुर्सत ही नहीं थी ।
' पापा , चाय ...।' तभी शिखा ने चाय रखते हुए कहा ।
' शिखा, तुम्हारी मम्मी एडमिट हैं और तुमने बताया भी नहीं...।' विचारों पर विराम लगाते हुए उसने कहा ।
अपने स्वर पर उसे स्वयं हैरानी हो रही थी... जिसने कभी उसकी परवाह न की हो , आज वह उसके खातिर परेशान क्यों है ?
' पापा, आपको फोन तो किया था पर आप की सेक्रेटरी ने बताया कि आप मीटिंग में व्यस्त हैं ।' शिखा ने संयत स्वर में कहा ।
यह सच है कि कल उसकी विदेशी डेली गेट के साथ मीटिंग थी । उसने अपनी सेक्रेटरी से किसी भी फोन कॉल को उस तक पहुंचाने से मना किया था तथा मीटिंग में व्यवधान न हो इसलिए अपना सेलफोन भी ऑफ कर दिया था । घर में ताला बंद देखकर भी उसे ऐसा नहीं लगा कि ऐसा कुछ हुआ होगा । उसे लगा कि तीनों कहीं बाहर गए होंगे ।
चाय का घूंट पिया तो लगा जैसे जहर पी रहा हो । चीनी इतनी ज्यादा थी कि उससे पी ही नहीं गई । इसी बीच फोन बज उठा …
' सर जाने से पहले वे लोग आपसे मिलना चाहते हैं । उनकी 12:00 बजे की फ्लाइट है ।'
' ठीक है , मैं आता हूँ । '
वह नहाने के लिए बाथरूम में घुसा तो वहाँ कपड़े न पाकर शिखा को आवाज लगाई । वह मिमियाती हुई बोली, ' मुझे क्या पता ? सब पूछ मम्मी रखती हैं । अलमारी खोलकर देख लीजिए । मैं नाश्ता तैयार कर रही हूँ, अस्पताल लेकर जाना है ।'
' अच्छा तुम नाश्ता बनाओ... मैं स्वयं देख लेता हूँ ।'
अलमारी खोली तो सब कुछ करीने से रखा था वरना सविता ही पानी गर्म कर उसके कपड़े, टॉवेल वगैरह यथास्थान रख देती थी । विचार अलग होने पर भी वह सदा उसके निकाले कपड़े पहनता रहा था । उसका ड्रेस सेंस इतना अच्छा था कि वह कभी भी उसे नकार नहीं पाया था ।
नाश्ते में शिखा ने उसके सामने ब्रेड, कॉर्नफ्लेक्स रख दिया था पर कुछ ऐसा था जिसे वह मिस कर रहा था । जिसकी अनुपस्थित उससे सही नहीं जा रही थी ।
' पापा, आप मुझे अस्पताल छोड़ देंगे ।' शिखा ने उसे ऑफिस जाने के लिए तैयार देख कर कहा ।
' क्यों नहीं ? वैसे मैं भी तुम्हारी मम्मी को देखकर तथा डॉक्टर से बात करते ही ऑफिस जाने वाला था ।'
पता नहीं कैसे वह झूठ बोल गया । अब तक तो उसने अस्पताल जाने के बारे में सोचा ही नहीं था । यह सच है कि वह सविता को मिस कर रहा था पर अभी भी उसे सविता के स्वास्थ्य से ज्यादा अपनी डील की फिक्र थी क्योंकि उस पर ही उसका कैरियर निर्भर था । शिखा के सामने वह छोटा नहीं पड़ता चाहता था ।
शिखा के साथ वह अस्पताल गया । वहाँ पहुँचकर आई.सी. यू . में सविता को देखकर हक्का-बक्का रह गया । उसे अहसास नहीं था कि वह इतनी सीरियस होगी । उसे देखते ही शिवम रोने लगा तथज़ बोला, ' पापा रात में मम्मी को एक और अटैक आया था ।'
' रो मत बेटा , तुम्हारी मम्मी को कुछ नहीं होगा । मैं अभी डॉक्टर से बात करके आता हूँ । '
उसे देखते ही डॉक्टर बोला, ' इनकी बीमारी आज से नहीं, कई वर्षों से है ...अनियमित नाड़ी, पल्पिटेशन , बेचैनी जरूरत से ज्यादा तनाव के कारण होती है । इन्हें यह अटैक भी इसी कारण से आया है । ट्रीटमेंट प्रारंभ कर दिया है पर अभी कुछ कह नहीं सकते... बुरा मत मानिएगा शर्मा साहब , आपका पारिवारिक जीवन तो सहज है... मेरा मतलब है उन्हें कोई तनाव परेशानी ….।'
मनीष कुछ कह नहीं पाया था । असमंजस की स्थिति में वह कैबिन से बाहर निकला । क्या कविता की इस हालत का जिम्मेदार वह स्वयं नहीं है ? वह कई वर्षों से इस तरह की शिकायत कर रही थी पर उसने ही कभी ध्यान नहीं दिया । वस्तुतः वह उसे कभी समझ ही नहीं पाया था या समझने का प्रयास ही नहीं किया था । वह तो थोपे हुए संबंध को निभा रहा था । बस उसकी आवश्यकताएं पूरी होती रहे , इससे ज्यादा उसने सविता से कोई आशा नहीं की थी... पर आज उसे लग रहा था कि जिस संबंध को वह थोपा हुआ मान रहा था , उसे निभाते- निभाते वह उससे जुड़ अवश्य गया था । अगर ऐसा न होता तो मात्र कुछ घंटों की उसकी अनुपस्थिति उसकी दिनचर्या को अस्त-व्यस्त नहीं कर देती । वह जैसी भी है उसके जीवन में ऐसी घुल गई है जैसे पानी में शक्कर...। वही अपने अहम के चलते स्वार्थी बनता गया था । वह तो एक मुश्त रकम देकर निश्चित हो जाया करता था । सविता ने ना तो उसे किसी की शिकायत की है ना ही कभी खर्च का रोना रोया.. न ही उस समय कमजोर पड़ती दिखी जब उसका और रीमा का प्यार परवान चल रहा था ...।
ऐसा नहीं था कि उसे पता नहीं चल पाया था । उसके दोस्त अनंत ने उसे चेताया भी था । उसने स्वयं तो अपने मित्र के आग्रह को माना नहीं पर सविता भी निस्पृह बनी रही ...पता नहीं वह किस मिट्टी की बनी थी । शायद वह भी उसे प्यार नहीं करती है , उसकी तरह ही संबंध निभा रही है वरना उसके और रीना के संबंध को सहजता से नहीं लेती , सोचकर वह रीमा के प्यार में अपनी सुध बुध गंवा बैठा था महीनों उस पर मोटी रकम खर्च की । उसके लिए अपनी बीवी बच्चों को भी परवाह नहीं की । उसका साथ न छूटे इस वजह से उसने अपना तबादला भी रुकवाया पर जैसे ही उसे अच्छी नौकरी मिली वह उसे छोड़कर चली गई ।
कुछ दिन बाद रीमा का पत्र आया था जिसमें लिखा था ...इतनी अच्छी पत्नी और बच्चों के होते तुमने मुझसे संबंध क्यों बनाए मनीष ? क्या तुम उसको तलाक देकर मुझसे विवाह कर सकते थे ? शायद नहीं फिर मैं तुम्हारे साथ आगे क्यों बढ़ती ? क्यों अपनी जिंदगी एक ऐसे रास्ते पर जाने देती जिसका कोई छोर नहीं था । मैं सविता से अनंत के घर, उसके गृहप्रवेश के अवसर पर मिली थी । उसका बड़प्पन देखकर मुझे लगा... मैं इस देवी के साथ विश्वासघात कर रही हूँ, उसका घर तोड़ रही हूँ, उससे उसका प्यार उसके बच्चों का पिता छीन रही हूँ । इस सबसे मुझे क्या मिलेगा ...जीवन भर का संताप किसी को धोखा देने का एहसास ? मैं ऐसा नहीं कर सकती थी । इसलिए अच्छा ऑफर मिलने पर नौकरी छोड़ कर चली गई । आशा करती हूँ तुम किसी और के साथ जुड़कर उसे धोखा नहीं दोगे । उसको समझ कर देखो ...एक के साथ जुड़कर, दूसरे को तोड़ देना तो बुद्धिमानी नहीं है ।
रीमा का पत्र पढ़कर वह किंकर्तव्यविमूढ़ बना बैठा रह गया था...पर यह सोचकर वह एकाएक कठोर हो गया कि हो ना हो सविता ने ही उसे बहकाया होगा । इस घटना के पश्चात मनीष ने स्वयं को काम में इतना डुबा लिया था कि उसे न दिन का ख्याल रहता था और ना ही रात का । अमित और सुमित का विवाह हो गया था । वह अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए थे । इसी बीच पिताजी को लकवा मार गया । सविता का काम बढ़ गया पर उसने कभी शिकायत नहीं । वह अपना कर्तव्य निभाती रही । पिताजी की नजरों में उसके लिए प्यार देखकर लगता था शायद उनका चुनाव ठीक ही था वरना अमित और सुमित की पत्नियां तो उनके साथ एक हफ्ता भी नहीं करना चाहती थीं...उन्हें अपनी आजादी अधिक प्यारी थी ।
एक बार उसे बिजनिस ट्रिप पर एक महीने के लंदन जाना पड़ा । इस बीच पिताजी की तबीयत इतनी बिगड़ी कि उन्हें बचाया न जा सका । जब तक वह आ पाया उनका शरीर मिट्टी में मिल चुका था । उसके लौटने पर उसके बॉस बोले थे, ' मनीष , तुम्हारे पिताजी मरने से पूर्व हफ्ता भर तक अस्पताल में रहे तुम्हारी पत्नी सविता ने इस स्थिति में जिस धैर्य और साहस का परिचय दिया वह काबिले तारीफ है । तुम्हारे भाई तो बाद में आ पाए । तुम बहुत लकी हो जो तुम्हें ऐसी पत्नी मिली ।' कहते हुए उनके चेहरे पर दर्द की रेखाएं खिंच गई थीं ।
बॉस के पारिवारिक जीवन से वह भलीभाँति परिचित था सब कुछ होते हुए भी अपनी अत्याधुनिक पत्नी की जिद के कारण वह अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा नहीं कर पा रहे थे । बॉस के मुख से पत्नी के बारे में प्रशंसात्मक वाक्य सुनकर लगा था कि कुछ इसमें जो इसे दूसरों से अलग करता है शायद मैंने पाली ग्रंथि की वजह से वही उसके साथ सहज नहीं हो पाया है ।
एकाएक उसके अंदर की सारी कटुता घुलने लगी थी । उसने सविता पर नजर डाली तो पाया कि अभी भी उसका शरीर इकहरा और आकर्षक है । बिना किसी दिखावे के उसने अब तक अपना सौंदर्य बरकरार रखा है । उस समय उसने सोचा था कि अब वह उस पर ध्यान देगा तथा उसे शिकायत का कोई मौका नहीं देगा पर ऐसा कहां हो पाया था । कुछ काम तथा कुछ मन में खींची लक्ष्मण रेखा के कारण वह चाहकर भी सहज नहीं हो पाया ।
कंपनी का सी. ई. ओ. बनते ही कार्य के सिलसिले में वह इतना व्यस्त होता गया कि अब उसका समय से घर लौटना भी संभव नहीं हो पाता था । देर रात तक मीटिंग ...बाहर का खाना नित्य का कृत्य हो चला था । इस कारण उसने अपने पास भी एक घर की चाबी रख ली थी जिससे किसी को भी कोई तकलीफ ना हो ...पर उसके मना करने के बावजूद सदा उसने सविता को अपने इंतजार में जगते पाया था । वह उसके इतना काम करने के कारण चिंतित थी पर वही उसकी चिंता नहीं कर पाया । वस्तुतः उसके पास तभी जाता है जब उसे उसकी जरूरत पड़ती थी और वह भी उसकी जरूरत को अन्य जरूरतों की तरह निपटा दिया करती थी । अपनी तकलीफ के बारे में उसने कभी कुछ कहना भी चाहा तो उसने अनसुना कर दिया । बच्चों से बातें किए बिना महीना बीत जाते थे ।
आज डॉक्टर की बातों ने उसकी बंद आंखें खोल दी तो क्या से यह बीमारी उस टेंशन के कारण थी जिसे वह चुपचाप पीती रही थी ...सेल फोन की घंटी ने उसके विचारों पर विराम लगा दिया…
' सर, आप कब आ रहे हैं ? वे लोग आ चुके हैं ।'
' वर्मा से कहो वह बात कर ले, मैडम की तबीयत ठीक नहीं है । आज मेरा ऑफिस आना नहीं हो पाएगा ।'
' लेकिन सर ...।'
'जैसे मैंने कहा वैसा करो ।'
एक डील नहीं हो पाई तो क्या हुआ उस पर ही तो ऑफिस की पूरी जिम्मेदारी नहीं है ,और लोग भी तो है ...उसने सोचा । वह आज ऑफिस नहीं जाएगा... एक काम छूटेगा तो दूसरा मिल जाएगा लेकिन अगर सविता को कुछ हो गया तो उसकी कमी कहाँ से पूरी कर पाएगा ? जिंदगी भर काम किया है , खूब कमाया है अगर नहीं पाया है तो पत्नी का प्यार और विश्वास ...वह उसकी पत्नी नहीं उसके तन मन में समाई ऐसी सुगंध है जिसकी जाते ही वह निर्जीव पंखुड़ियों की तरह बिखर जाएगा । आज वह जो कुछ है उसके कारण है ...वह उसकी अंतर्निहित शक्ति है , चेतना है ...जिसने उसकी सारी जिम्मेदारियों को अपने नाजुक कंधों पर उठाकर उसे सदा आगे बढ़ने की शक्ति दी है । वह आम स्त्री नहीं है जो सिर्फ गहनों और कपड़ों में ही अपना संसार ढूंढती हो । वह एक कर्मठ और कर्तव्यनिष्ठ औरत है जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धैर्य नहीं खोया । स्वयं घुलती रही पर चेहरे पर शिकन भी नहीं आने दी ।
आज वह उसके निस्वार्थ रूप को पहचान पाया है । अब वह उसे खोने नहीं देगा... इस एहसास के साथ वह डॉक्टर के कैबिन की ओर मुड़ गया । वह सविता का अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज करवायेगा । उनसे पूछेगा अगर यहाँ उसका इलाज संभव नहीं है तो बता दें, वह उसे विदेश ले जाएगा । आखिर इतनी दौलत कमाई किसलिए है ? वह अब किसी भी हालत में सविता को स्वयं से अलग नहीं होने देगा । वह उसकी आत्मा है , उसमें समाहित एक ऐसा अंश है जिसके बिना उसका अस्तित्व ही नहीं है ....वह प्रायश्चित करेगा ।
सुधा आदेश
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