Monday, August 24, 2015

दिलों में बंद आक्रोश जब निकलेगा चिंगारी उड़ेगी ही तुम जलो या मैं फ़र्क़ क्या पड़ता है । फ़र्क़ क्या पड़ता है जब आदमी ही आदमी के ख़ून का हो जाये प्यासा ख़ून बन जाये पानी । ख़ून बन गया है पानी तभी दरिंदगी पर दहशतगर्दों की ख़ून नहीं खौलता । ख़ून खौले भी तो भला खौले कैसे जब हम आस-पास की दुनिया से बेख़बर अपनी ही दुनिया में रम गये हैं ...।

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