औरत की ज़िंदगी...
कभी सुबह, कभी शाम है औरत की ज़िंदगी,
नर्म रेशमी एहसास है औरत की ज़िंदगी...।
रिश्तों के अजीब चक्रव्वुह में फंसी औरत की ज़िंदगी,
फिर भी सदा अलग-थलग बेजार औरत की ज़िंदगी... ।
आदि से अंत तक पहेली रही औरत की ज़िंदगी,
पली कहीं सजी कहीं, बेआवाज,बेजुबान औरत की ज़िंदगी...।
जननी बनी नाम न दे पाई,बेनाम औरत की ज़िंदगी,
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