मानव जीवन में शुचिता का होना अत्यंत आवश्यक है पर यह तभी संभव है जब हम मन,कर्म और वचन से ईमानदार रहें....कभी किसी का बुरा न सोचें न बुरा करे और न ही बुरा सुनें....बुरा सुनने, करने और कहने से ही इंसान के अंदर आसुरी शक्तियों का निवास होने लगता है जिसके कारण वह अपनी मानवीय विशेषतायों से दूर होता जाता है....यह प्रवृति न केवल इंसान के लिए वरन परिवार और समाज के लिए भी घातक है....अगर हम वास्तव में परिवर्तन लाना चाहते है तो हमें स्वयं को बदलना होगा कोई कारण नहीं की हम स्वस्थ समाज का निर्माण न कर पाएँ....
चाह है अगर दिल में, राह निकल ही आएगी,
कठिन भले हो डगर, मिलेगी मंजिल,
गुजारिश है इस दिल की बस इतनी,
इरादों पर अपने, जंग मत लगने देना....।
चाह है अगर दिल में, राह निकल ही आएगी,
कठिन भले हो डगर, मिलेगी मंजिल,
गुजारिश है इस दिल की बस इतनी,
इरादों पर अपने, जंग मत लगने देना....।
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