Tuesday, November 22, 2011

पल



आज दुनिया जिस दौर से गुजर रही है उसमे हर गुजरता पल महत्वपूर्ण होता जा रहा है....जो पलो के महत्व को नकार देते वे स्वयं को भुलावे मे रखते है क्योंकि गुजरते पल लौट कर नहीं आते.... इस बात को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोया हे,,,,,

दो पल की है ज़िंदगी


कतरा-कतरा बूँद-बूँद सजती रही ज़िंदगी,
कभी बिहंसती कभी चटकती रही ज़िंदगी।

शबनमी बुंदों ने जब-जब भिगोया तन मन,
सूरज की उजली किरण सी सँवरती गई ज़िंदगी।

पतझड़ की कंटीली हवाओं ने जब-जब भी दी चुभन,
तिनका-तिनका बेताहशा,बेतरतीब बिखरती  गई ज़िंदगी।

भागे ज़िंदगी की जद्दोजेहद के पीछे जितना ही,
उतनी ही छिटकती चली जा रही जिंदगी।

अरमानों को सहेजकर अलकों पर ,कहती है 'सुधा',
कैद कर लो सुख-दुख के पल,दो पल की है ज़िंदगी।

Tuesday, November 8, 2011

मुखोटा

इंसान अपने चेहरे पर न जाने कितने मुखोटे लगाए रहता है । अंदर से कुछ बाहर से कुछ...सच तो यह है कि कभी-कभी वह स्वयं ही मुखोटे के पीछे छिपे अपने चेहरे को नहीं पहचान पाता या अपने अहंकार के वशीभूत इसे स्वीकार करने में हिचकता है पर शायद वह नहीं जानता कि वह दूसरों को धोखा दे सकता है पर स्वयं को नहीं... मुखोटा जो स्वयं के साथ सच्चा नहीं वह दूसरों के साथ सच्चा कैसे होगा, साथ चलना है तो चलेंगे ही पर विश्वास पर दाग लगा ही होगा...। अपनों के साथ छल कपट कर गर तुम आगे बढ़े भी मत भूलो, स्वयं तुम्हारा भी भला नहीं होगा....। मुखोटों में कैद ज़िंदगी भी क्या जिदगी, छिपकर नज़रों से अपनी जीना भी भला जीना होगा....। जीना है तो जियो शान से आत्मसम्मान, आत्मगौरव के संग, विश्वास करो न करो तुम सारा जमीन,सारा आकाश तुम्हारा होगा....। सुधा आदेश

Sunday, November 6, 2011

मन

मन को आज तक कोई नहीं समझ पाया है मन अगर चाहे कठिन से कठिन समस्याओ का हल चुटकियों मे कर दे,नहीं तो सरल से सरल समस्याओ के समाधान में महीनो लगा दे....किसी ने सच ही कहा है....मन की गति मन ही जाने....मेंने मन की गति को कुछ इस तरह उकेरने का प्रयत्न किया है.... उलझनों में घिरा मन अगर मगर में हैरान परेशान मन फिर भी चलता चला जा रहा है मन...। कितना कैद रहे मन, उड़ना है तो उड़ेगा मन फिद्रत से मजबूर मन.... हँसोगे तो हँसेगा मन रोओगे तो रोएगा मन नाचता नचाता रहा सदा मन....। आवश्यकता में तीव्रता से भागा मन रुका तो रुका ही रह गया मन, मन को ही नहीं समझ पाया मन...। मित्र बना जब मन का मन, अंधेरों में जुगनू सा जगमगाया मन, इन्द्रधनुष सा लहराया, सुकून पाया मन....।

Wednesday, October 12, 2011

शुभकामनाये

मेरा आँचल रहा मरहूम,
तुम आई दिल मे बसी
मेरे ख्वाबो की
अनमोल कड़ी सी....

दिल को सुकून मिला
ख्वाबो को विश्राम मिला
आवाज ने तुम्हारी भर दिया
दिल का सूना कोना....

दूर हो पर  फिर भी
पास इतनी ज्यो चाँद से चाँदनी....
खुशी के इस दिन
दुआ बस इतनी....

महकता जीवन सदा रहे
खुशियाँ के रंगो से
भरपूर प्यार मिले
जीवन के हर रिश्ते से....

प्यार की हर सौगात
सर आंखो पर लेना
ईर्ष्या द्वेष से रहना सदा दूर
पा लोगी कल्पनातीत जहां...। 

Sunday, October 2, 2011

गांधी जयंती



आज फिर गांधी जयंती समारोह मे

 जाने के लिए साल भर से उपेछित
बंद बक्सो से खादी के
कुर्ते पाजामे निकाल आए हे....
गांधीजी की प्रतिमा से

धूल मिट्टी की इंचों पड़ी धूल को
साफ कर पानी से धुलवाया गया हे।
चश्मे की ऐक कमानी टूट गई हे तो क्या
हारी थकी नेराश्य से भरी आंखो मे चश्मा तो हे,,,,
लंगोटी तार-तार हो चुकी हे तो क्या
महान भारत की लाखो करोणों जनता भी
तो ऐसे ही वस्त्रो से सुस्स्जित हे।
जनता जनार्दन को तीन घंटो का
इंतजार करा कर
खादी के वस्त्रो मे सुशोभित नेताजी
सभास्थल पर पहुंचे,
गांधीजी के आदर्शो को
अनमयस्क मन से दोहरा कर,
 उनका जयगान कर हारे थके घर लोटे,
 पत्नी से  बोले,
 खादी के इन मोटे कपड़ो का बोछ
अब सहा नहीं जाता
पेरिस से मंगाया मेरा
सिल्क का कुर्ता पाजामा ले आओ
तथा इन्हे बक्सो मे बंद कर दो....।'
उनकी बात सुनकर
अर्धांगिनी ने चुहुल करते हुए कहा,
' इन वस्त्रो मे आप सच्चे नेता लग रहे हो
श्वेत धवल कपड़ो मे सचमुच चमक रहे हो....।'
 सुनकर नेताजी के चेहरे पर चमक आई
फिर स्वयं को सोफे मे
छिपाते हुए मायूस स्वर मे बोले,
' क्यो मज़ाक बनती हो,
एक समय था जब खादी
स्वच्छ विचारो तथा  पवित्रता का प्रतीक थी
पर आज यही खादी,
ढोंग और ढकोसलो का पर्याय बन गई हे....
गांधीजी और गांधीवाद से
आज किसी का वास्ता नहीं रहा
आज तो यह  सिर्फ सत्ता सुंदरी तक
पहुँचने का जरिया बन गई हे
जालसाजी, भ्रष्टाचार,रिश्वत और घोटालो के युग मे
उनके आदर्श तार-तार हो गए हे
निज स्वार्थ हेतु लोग देश की अस्मिता को
विदेशियों के हाथ बेच कर
अपनी तिजोरियाँ भर रहे हे
पर मे ऐसा नहीं कर सकता
वर्ष मे एक बार  खादी धारण कर
उस महान आत्मा  को
याद करना अलग बात हे
पर  इसे धारण कर
नित्य उनकी आत्मा पर
होते प्रहारों  को सह नहीं सकता
अब न स्वयं को  बदल सकता हूँ न समाज को....
शायद यही अब हमारी नियति बन चुकी हे..।' 

सुधा आदेश    
        

Friday, September 30, 2011

अतीत

अतीत से चिपके रहना बुद्धिमानी नहीं हे कहा भी गया हे कि जो व्यक्ति अतीत से चिपका रहता हे वह जीवन मे कभी उन्नति नहीं कर सकता पर यह भी सच हे अतीत और वर्तमान के अनुभव ही हमे भविष्य की दशा और  दिशा निर्धारित करने मे समर्थ बनाते हे....यदि अतीत कि कठिनाइयो  से इंसान सबक नहीं लेता तो शायद आविष्कार ही न होते। आविष्कार आवश्यकता कि जननी हे अगर ऐसा नही  होता तो आज भी हम आज भी चूल्हे पर खाना बना रहे होते, बेलगाड़ी मे यात्रा कर रहे होते और तो और हमारे घरो मे डिबरियों से ही रोशनी हो रही होती....शिक्षित इंसान का कर्तव्य हे कि वह अपने ज्ञान के प्रकाश से अपने घर का ही अंधेरा दूर न करे वरन दूसरे के घर के अंधरे को दूर करने का प्रयास करे तभी वह सच्चे अर्थो मे समाज की सेवा  कर अपना मानव धर्म निभा पाएगा कार्य के प्रति समर्पित इन्सानो के कारण ही यह दुनिया रहने योग्य बनी हे वरना कुछ लोग तो अपनी करनी से विषबेल बोने की कोशिश मे लगे हे....हमे उनके इरादो को नेस्तनाबूद कर आगे बढ़ना होगा तभी हम विकास कर पाएगे

Thursday, September 29, 2011

बचपन





जीवन की निष्पाप अवस्था हे बचपन
कवि की निर्दोष कल्पना हे बचपन,

माँ की ममता की लोरी की तान हे बचपन
पिता के सुदृद बाहो का झूला हे बचपन,

भाई बहन की मीठी तकरार हे   बचपन
संगी साथियो की मीठी नौक झौक हे बचपन,

चपलता, चंचलता, नटखटता का नाम हे बचपन
अनोखा,अनमोल सबसे प्यारा न्यारा हे बचपन,

कभी गुदगुदाता तो कभी रुलता हे बचपन
कर्तव्यो के बीहड़ जंगल मे जीना सिखाता हे बचपन,

जवानी का संबल हे बचपन
बुढ़ापे का उपहार हे बचपन,

रूप बदला, रंग बदला,न कभी बदला हे बचपन
यादों के झरोखो मे सदा टिमटिमाता रहा बचपन।






































































   

Monday, August 29, 2011

आज मेरी माँ को गए दो वर्ष हो गए पर ऐसा लगता हे वह आज भी मेरे आस पास ही हे जब में परेशांन   होती हूँ तो वह  चुपचाप आकर मेरे सर पर हाथ रख कर मुझे दिलासा देती हे...में रोटी हूँ तो उनके हाथ मेरे   आंसू पोंछ देते हे....उनकी बड़ी-बड़ी आँखे आज भी मेरे आने का इंतजार करती हे तथा मेरे जाने की खबर सुनकर उदास हो जाती हे....आज भी वह मेरी मार्गदर्शक हे....मेरी छोटी से छोटी ख़ुशी उनके चहरे पर ख़ुशी तथा मेरा छोटे से छोटा दुःख उनके चहरे  पर उदासी ले आता हे....वह    जहाँ कही भी हो सुखी हो....उनका आशिशो भरा हाथ   हमारे सर  पर हो....यही कामना  हे....

Sunday, July 31, 2011

क्या खोया क्या पाया

जीवन की आपाधापी में क्या खोया क्या पाया जब समझ पाए तब हाथ खाली थे... अपने हो चुके थे पराये जीवन के चौराहे पर हम नितांत अकेले विस्मित खड़े थे आखिर हमारे जैसे सफल आदमी से चूक कहाँ, क्यूँ कर हुई... दिल ने झकझोरा तुम सफल थे पर जिनको सीढ़ी बनाकर तुमने सफलता के शिखर छूये, आगे बढ्ने के जुनून में उन्हें तुम स्वयं रोंदते गए तुम ने जैसा बोया वैसा ही पाया अब दुःख क्यों,अफसोस क्यों...?

Tuesday, July 5, 2011

jivan

जीवन  दो  पल  का,
उसमे सिमटती सारी व्यथाये ,
आशाये , निराशाये ,
कब और कहाँ ,
क्यों और कैसे,
प्रशन    निरर्थक ,
शेष सिर्फ यादे.    

Tuesday, June 28, 2011

krodh

क्रोध क्रोध मानव का सबसे बड़ा दुश्मन हे क्योकि क्रोध में व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता हे....अपना मानसिक संतुलन खो देता हे जिसके कारण उसे अपने अच्छे बुरे का ख्याल ही नहीं रहता....मानव को अगर मानव बने रहना हे तो उसे अपने क्रोध पर अंकुश लगाना होगा... जो ऐसा करने में सक्षम रहता हे वह जीवन में आई हर बाधा को पर कर आगे बढ़ता जाता हे....।

Monday, June 27, 2011

shubhkamnaye

 प्यार की भीनी-भीनी सुगंध हे विवाह बंधन,
विश्वास की लडियो से गुंठित  है विवाह बंधन,
सात वचनों,सात जन्मो का साथ है विवाह बंधन,
सतरंगी इन्द्रधनुषी  अहसास है विवाह बंधन, 
आंधी तूफानो के बीच भी हाथ में पकडे हाथ
चलते जाने का नाम है विवाह बंधन.... 
सदा खुश रहो, ढेरो आशीष के साथ....
        मम्मी  एवम पापाजी ....   

Tuesday, June 21, 2011

शब्द दिल को तोड़ते भी हैं, दिलों को जोड़ते भी हैं ...

शब्द दिल को तोड़ते भी हैं, दिल को जोड़ते भी हैं । शब्दों के हेर-फेर से रिश्ते बिगड़ते भी है,संभलते भी है। शब्दों की बात निराली,रीत निराली, शब्दों को समझे बिना, शब्दों का तिलस्म न जान पाओगे बंधु। शब्दों के संग कर यारी करके देखो मित्र, अच्छे-बुरे वक्त में बहुत काम आयेंगे...।

Saturday, June 18, 2011

vishvas

विश्वास के बल पर ही पूरी दुनिया और मानव का मानव से संबंध कायम हे यह एक सार्वभोमिक सत्य हे....पर इससे भी बड़ा सत्य हे मानव का निज  पर विश्वास....अगर हमे निज  पर विश्वास नहीं हे तो हम योग्य होते भी सफल नहीं हो पायेगे, कहा भी गया हे मन के हारे हार हे मन के जीते जीत....हर  मानव  के जीवन में अच्छे बुरे पल आते हे पर अगर निज पर विश्वास हे तो मानव मार्ग में आई हर  बाधा को पार कर अपने उद्देश्य  को प्राप्त कर ही लेगा....    

Thursday, June 16, 2011

Takrav

अस्तित्व....मानव जीवन की पूरी लड़ाई अस्तित्व पर ही टिकी हे....दुनिया में जो कुछ भी घट रहा हे या जो भी अनहोनी हो  रही हे वह अपने-अपने अस्तित्व के लिए हे , चाहे यह आपसी संबंधो में या देश दुनिया में हो....अस्तित्व  के लिए कभी-कभी मानव मानवीय गुणों को भी ताक पर रख देता हे....एक दूसरे की भावनाओं की अनदेखी करते तथा अपना मनचाहा न होने पर उसे न जाने  ऐसा क्यों लगने लगता की लोग उसका तिरस्कार कर रहे हे....किसी बात पर असहमत होने का मतलब यह नहीं उसके अस्तित्व  को नकारा जा रहा हे....जो ऐसा सोचते हे वह बहुत बड़ी गलती करते हे....आज की युवा पीढ़ी में तो यह बात आम हे....बड़े अगर किसी बात के लिए डाट देते हे तो उनके अस्तित्व पर बन आती हे....इस सोच के कारण कभी-कभी वे अहितकारी कदम भी उठा लेते हे, पर अपनी इस सोच के कारण उनका ही अहित होता हे....सहनशीलता मानव का एक ऐसा गुण हे जिसको अपना कर इन्सान कभी कोई गलत कदम नहीं उठा   सकता....जो दुसरे के अस्तित्व को मान  देगा उसके अपने अस्तित्व को खरोंच भी नहीं आएगी विश्वास हे मेरा....

Wednesday, June 15, 2011

प्रेम की परिभाषा हर प्राणी के लिये अलग-अलग होती है ...

l प्रेम की परिभाषा हर प्राणी के लिये अलग-अलग होती है । किसी के सिये प्रेम त्याग तो किसी के लिये समर्पण है , किसी के प्रेम पूजा है तो किसी के लिये बलिदान...पर मेरे लिये प्राणी मात्र से प्रेम करना ही प्रेम है । प्रेम में चाहना नहीं वरन् अपने प्रेम के लिये कुछ कर गुज़रने की भावना मुख्य होनी चाहिये । प्रेम सनातन सत्य है इसके बिना सृष्टि की कल्पना भी असंभव है । अपने घोर विरोधी से प्रेम करके देखिये वह भी कुछ दिनों में आपका अपना हो जायेगा । मत भूलिये जंग नफ़रत से नहीं प्यार से जीती जा सकती है । नफ़रत से किसी और का नहीं स्वयं अपना ही नुक़सान होता है । एेसा क्षणों से उत्पन्न मानसिक उत्तेजना अपनी ही देह की दुश्मन बन जायेगी । मित्र भी शत्रु बनते जायेंगे अत:सारे पूर्वागृह त्याग कर प्रेम रूपी दौलत अपना लीजिये , जीवन ख़ुशनुमा बन जायेगा ।

Friday, June 10, 2011

kya ho gaya he in netao ko

पिछले  कुछ  दिनों  से  जो कुछ  घटा हे उसको देख सुन कर आखे शर्म से झुक जाती हे....ऐसे ऐसे शब्द सुनने को मिल रहे हे एक दुसरे पर इतने दोषारोपण हो रहे हे की लग ही नहीं रहा हे की हम एक सभी समाज में रह रहे हे....क्या भश्ताचार और काले धन  के विरुध आवाज उठाना गुनाह हे....तो यह गुनाह एक देशभक्त सदेव करेगा....केवल कतिपय लोगो की खातिर पूरा देश क्यों सजा भुगते ? आखिर किसी को तो आवाज बुलंद करनी ही थी, यह आवाज चाहे गाँधीवादी देशभक्त अन्ना हजारे की हो या धरती से जुड़े योगाचार्य बाबा रामदेव की हो....कुशी होती हे यह देख कर आज इनके साथ पूरा देश खड़ा हे....पाप का घड़ा भर गया हे....बस अब फूटने का इंतजार हे.....

Wednesday, April 27, 2011

pariwar

परिवाररूपी  संस्था एक ऐसी संस्था हे जिसकी वजह से संसार कायम हे, हमारे जीवन मूल्य कायम हे....अगर परिवार न होते तो समाज में एक ऐसी अव्यवस्था फैलती की यह संसार रहने लायक ही न रहता....यधपि आज की युवा पीढ़ी आत्माकेंद्रित होती जा रही हे, उनके अपने जीवन मूल्य हे वह अपनी शर्तो पर जीना चाहती पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए सनातन मूल्य हर काल और परिस्थितियों में एक रहे हे और रहेंगे,बड़ो का आदर करना छोटो को मान  देना से न केवल स्वयं को मान मिलाता हे वरन परिवार रुपी इकाई को भी बल मिलता हे....अगर समाज को टूटने से बचाना हे तो हमे परिवार को मजबूत करना होगा....               

Saturday, April 23, 2011

man

मन  पर  हमारा अपना ही वश नहीं हे क्यों....हम स्वयं  से ही सदेव क्यों लड़ते रहते हे....क्यों हम अपनी स्तिथि से संतुष्ट रह paate....
       यह सच हे की जो व्यक्ति अपनी स्तिथि से संतुष्ट नहीं होता व्ही  जिन्दगी में आगे बढ़ता हे पर आवश्यकता से अधिक असंतुष्टि व्यक्ति को दुखी ही करती हे अतः नकारात्मक सोच को त्याग कर कर्म करते रहिये आप एक ऐसी आत्मिक संतुष्टि पायेगे की उसके सामने हर दुःख कम लगने लगेगे....   

Wednesday, April 6, 2011

bhrashtachar

अन्ना हज़ारे   ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना संकल्प फिर दोहराया है पर उनका  यह प्रयास सदियो  से चले आ रहे नासूर से मुक्ति दिला पाएगा  शायद नहीं पर फिर भी उनके प्रयास की सराहना हर कोई कर रहा है आखिर  कोई तो है जो समाज मे फैली इस बुराई से मुक्ति दिलाना  चाहता है...और कुछ हो या न हो  कम से कम जन मानस तो आंदोलित होगा अगर ऐसा होता हे तो निश्चय ही उनका मंतव्य पूरा हो जायेगा....उनकी कामना सफल हो भ्रष्टचार पर अंकुश लगे आज हर सच्चे देशवासी की यही चाह हे.....पर यह तभी संभव  है जब हम अपनी एकजुटता दिखाये तथा निरंकुश होती जा रही इस सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दे....जय भारत....

Tuesday, April 5, 2011

world cup

जी हाँ  पिछले कुछ दिनों से  जहाँ देखो वहां बस सब क्रिकेट की ही बाते कर रहे हे....करे भी क्यों न आखिर २८ वर्ष बाद हमारी क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप जीती हे....हम सबके लिए गर्व की बात हे....जीत का एक अलग ही नशा होता हे पर दुःख तो यह देख कर होता हे  की पूरा देश ही इन पर धन बरसा रहा हे, लाखो करोडो तो ऐसे दिए जा रहे हे मानो १००o,२००० हो....इतनी ही दिलेरी hum  अन्य खेलो के लिए क्यों नहीं दिखाते क्या उनके त्याग और समर्पण में कोई कमी हे....क्या उन्होंने देश का नाम रोशन नहीं किया....लाखो, karodo का दान देते समय हमारी सरकारे अपने उस नारे को भूल जाती हे....हमारा हाथ गरीबो के साथ....पर यहाँ तो यही नजर आ रहा की सरकार  का हाथ गरीबो के साथ नहीं वर्ना इन क्रिकेटर के साथ हे....इनको न केवल धन दिया जा रहा हे वरन इनके टेक्स भी माफ कर दिए जाते हे....आखिर यह कैसा जूनून हे जिसने इस देश को जकड़ रक्खा हे अगर ऐसा न होता to   किग्फिशेर एयरलाइन वाले  उनके पुरे परिवार के लिए देश विदेश की यात्रा मुफ्त करने की घोषणा न करते....अगर यह जूनून हे तो इश्वर इन्हें सद्बुधी दे की ये प्राप्त धन को किसी चेरिटी के काम  में लगाये....किसी गाव को अपना कर उसे विकास की राह पर ले जाये....या किसी गरीब के बच्चो की पढाई की जिम्मेदारी उठाये....पुरे वर्ष चलने वाले इस क्रिकेट का यह बूखार  एक दिन सबको अपनी चपेट में ले लेगा....कोई नहीं बचेगा दुश्मन हमारे देश पर आक्रमण कर रहा होगा और हम जय हिंद के नारे के साथ उससे लोहा लेने की बजे चौको और   ६क्कों पर तली बजाते-बजाते मौत को गले लगा रहे होंगे....   

Monday, April 4, 2011

nav varsh shubh ho

आज चेत्र  माह का पहला दिन हे अर्थात हिंदी कैलेंडर के अनुसार  आज हमारा नववर्ष पर आज किसे याद हे....क्या हम पाश्चात्य की अंधी नक़ल में अपनी ही संस्कृति की उपेश तो  नहीं करने लगे हे पाश्चात्य को अपनाना बुरा नहीं हे ,बुरा हे अपनी जदो  से कटना....कहते हे जब जागे तभी सबेरा.... आप सब से यही आशा हे की कम से कम अपने नवांकुरो को आज के दिन का महत्व बताते हुए आज के दिन को नए तरीके से मानाने के उपाय बतायेगे वेसे देश के अन्य हिस्सों जिसे महाराष्ट्र में आज का दिन  गुड्डी पर्व तथा दक्षिण में उगादी के नाम से मनाया जाता हे....शुभ नव वर्ष आप सब को....    

Thursday, March 31, 2011

ak sach

जीवन सहज और सरल नहीं होता अगर होता तो जीवन में इतनी परेशानियाँ नहीं होती....क्यों हर पल हमें अहसास दिला जाता हे कि कहीं  तो हमारे जीवन में कुछ तो कमी है, उस कमी को हमें स्वयं  दूर करना है....आखिर कब तक हम ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे नहीं बेठे रहेंगे....अगर  हमें  अपनी मंजिल पानी हे तो पत्थरो को तोड़ कर राह  बनानी ही होगी....शायद जीवन की यही  खूबी हमें निरंतर प्रयास करने के लिए प्रेरित  करती  हे और हम बार बार असफलता के घूंट पीकर भी सफलता की कामना के साथ आगे बढ़ते जाते है....सही दिशा में आगे बढ़ने वाला कभी असफल नहीं होता, सच तो यह है प्रयास नहीं करने वाले ही भाग्य  को दोष देते है , सबको काम करने के लिए दिन में २४ घंटे ही मिलते है कोई इनका उपयोग करके अमर हो जाता है  तो कोई गन्दी नाली में पड़े कीड़े की मानिंद, बिना किसी का ध्यान  अपनी ओर आकर्षित किए  इस दुनिया से चला जाता है....अब तुम्हें स्वयं  निर्धरित करना हे तुम्हे कौन सा जीवन चाहिए.....?       

Friday, January 28, 2011

NIRASH HU ME

पिछले दो तीन दिन से मन बहुत परेशान हे, बचपन से हम सुनते आये हे कश्मीर  से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक हे कश्मीर भारत का  अभिन  अंग  हे अगर ऐसा हे तो वहा एक आम हिन्दुस्तानी तिरंगा क्यूँ  नहीं फहरा सकता....KAISI अजीब बात हे तिरंगा फहराने वालो को रोकने के लिए राज्य और केंद्र सरकार  ने पूरी ताकत लगा दी....इसका क्या अर्थ निकाला जाये....क्या ऐसा करके हमने देश और दुनिया को यह सन्देश नहीं दिया की कश्मीर हमारे देश का हिस्सा नहीं हे....अगर यह सच हे तो हमारी सेना वहाँ क्या कर रही वह ऐसे देश की रक्षा में क्यों  लगी हे जिसे हमारे देश के हुकुमरान अपना मानते ही नहीं हे....अगर ऐसा होता तो वह वहां तिरंगा फहराने जाने वालो को नहीं रोकते, रोकते भी तो उन्हें रोकते जो तिरंगा फहराने का विरोध कर रहे थे....इतिहास ऐसे नेत्रत्व को कभी माफ नहीं करेगा. उन्हें देश को जबाब देना ही होगा विशेषतया उन्हें जिनके पुत्र, पति या भाइयो ने देश के भाल की रक्षा करने में अपना सर्वस्य अर्पित  कर दिया....वाह क्या श्रधांजलि दी हे हमने उन्हें....शर्म से हमे मर नहीं जाना CHAHIYE  आज TO जय हिंद , जय भारत कहने में भी जबान लड़खड़ाने लगी हे.....     

Saturday, January 8, 2011

hatash nirash

कई बार ऐसा होता है की न चाहते हुऐ  भी इन्सान जिंदगी से हताश निराश हो जाता हे विभिन्न तरह के विचार आकर उसकी दशा और दिशा बदल देते हे पर वह कोई उपाय नहीं  खोज पाता....स्तिथी  इतनी  अजब गजब हो जाती हे की वह उससे निकलने का सही मार्ग खोजने में असमर्थ रहता हे कुछ ऐसी ही स्तिथि हमारे  देश की हे....राजनेताऔ ने अपने स्वार्थ के लिए समाज के इतने  टुकड़े कर दिए हे की हमारी अस्मिता ही खतरे में पडा गई हे बचपन से  हम सुनते आये हे की कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक हे....दुःख होता हे जब कुछ तथागत  बूधिजिवियो को        भारत का अभिन्न अंग कहलाने वाले कश्मीर के बारे में  कहते हुए सुनते हे की वह तो भारत का हिस्सा कभी था ही नहीं....लालचौक   पर तिरंगा   झंडा फहराने के जज्बे   वालौ  को आज चुनोती    दी  जाती की यदि  आपके  कारण  घाटी में कोई समस्या आती हे तो उसके लिए आप ही जिम्मेवार होगे, वहां  एक चुनी हुई सरकार  हे, कानून व्यवस्था की जिम्मेवारी सरकार की हे, ऐसा कह कर वह देशभक्तों का साथ दे रही या अलगाववादियों का....समझ में यह नहीं आ रहा हे हमारी केंद्रीय  सरकार यह सब देख सुन कर चुप क्यों हे....कही इसके पीछे कोई गहरी चाल तो नहीं हे....कही सरकार यह सब किसी के इशारे पर तो नहीं होने दे रही वरना ऐसा क्यों हे की हम अपने ही देश के एक भूभाग पर तिरंगा नहीं फहरा सकते न ही ऐसे लोगो पर कोई कार्यवाही कर पाते जो हमारे देश की अखंडता पर कुठाराघात करता हे....आखिर हम इतने विवश क्यों हे....हमारी सीमाओं पर हमरे वीर सपूत जान की बाजी लगा देते हे पर हम उनकी शहादत को मूल्य समझने को भी   तेयार नहीं हे आखिर यह कैसी मजबूरी  हे....न जाने कब हमारे राजनेता छुद्र स्वार्थ को तिलांजलि देकर देश हित में सोचेंगे और करेंगे....आज  का हताश निराश सामान्य  नागरिक गर्वे से एक बार पुनः कह सकेगा हम उस भारत देश के नागरिक हे जहाँ के हर नागरिक के दिल में देश के लिए अथाह प्रेम हे वह मर जायेगा पर अपने देश के टुकड़े नहीं होने देगा....