आज फिर गांधी जयंती समारोह मे
जाने के लिए साल भर से उपेछित
बंद बक्सो से खादी के
कुर्ते पाजामे निकाल आए हे....
गांधीजी की प्रतिमा से
धूल मिट्टी की इंचों पड़ी धूल को
साफ कर पानी से धुलवाया गया हे।
चश्मे की ऐक कमानी टूट गई हे तो क्या
हारी थकी नेराश्य से भरी आंखो मे चश्मा तो हे,,,,
लंगोटी तार-तार हो चुकी हे तो क्या
महान भारत की लाखो करोणों जनता भी
तो ऐसे ही वस्त्रो से सुस्स्जित हे।
जनता जनार्दन को तीन घंटो का
इंतजार करा कर
खादी के वस्त्रो मे सुशोभित नेताजी
सभास्थल पर पहुंचे,
गांधीजी के आदर्शो को
अनमयस्क मन से दोहरा कर,
उनका जयगान कर हारे थके घर लोटे,
पत्नी से बोले,
खादी के इन मोटे कपड़ो का बोछ
अब सहा नहीं जाता
पेरिस से मंगाया मेरा
सिल्क का कुर्ता पाजामा ले आओ
तथा इन्हे बक्सो मे बंद कर दो....।'
उनकी बात सुनकर
अर्धांगिनी ने चुहुल करते हुए कहा,
' इन वस्त्रो मे आप सच्चे नेता लग रहे हो
श्वेत धवल कपड़ो मे सचमुच चमक रहे हो....।'
सुनकर नेताजी के चेहरे पर चमक आई
फिर स्वयं को सोफे मे
छिपाते हुए मायूस स्वर मे बोले,
' क्यो मज़ाक बनती हो,
एक समय था जब खादी
स्वच्छ विचारो तथा पवित्रता का प्रतीक थी
पर आज यही खादी,
ढोंग और ढकोसलो का पर्याय बन गई हे....
गांधीजी और गांधीवाद से
आज किसी का वास्ता नहीं रहा
आज तो यह सिर्फ सत्ता सुंदरी तक
पहुँचने का जरिया बन गई हे
जालसाजी, भ्रष्टाचार,रिश्वत और घोटालो के युग मे
उनके आदर्श तार-तार हो गए हे
निज स्वार्थ हेतु लोग देश की अस्मिता को
विदेशियों के हाथ बेच कर
अपनी तिजोरियाँ भर रहे हे
पर मे ऐसा नहीं कर सकता
वर्ष मे एक बार खादी धारण कर
उस महान आत्मा को
याद करना अलग बात हे
पर इसे धारण कर
नित्य उनकी आत्मा पर
होते प्रहारों को सह नहीं सकता
अब न स्वयं को बदल सकता हूँ न समाज को....
शायद यही अब हमारी नियति बन चुकी हे..।'
सुधा आदेश