Thursday, January 22, 2015
ख़्वाहिश
लहू के आँसू पीकर
तमाम उम्र गुजार दी,
अब तो बाग के फूल भी
कांटे बन चुभने लगे है ।
तिल-तिल जलें भी
तो आखिर कब तक,
ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं
सजा बन चुकी है ।
कहने को मिला है
सोने का महल...
पर कैद खाने
कम नहीं ।
जीना आसान नहीं
पढ़ा था किताबों में,
दुश्वार इतना होगा
समझ अब पाये है।
समझोता करते-करते
कब तक जिये हम,
आखिर कोई तो हो
जिसे अपना कह सकें हम।
नहीं मिली ज़िंदगी
मेरे साथ मेरे कर्म ,
पल भर मिली खुशी
संतुष्टि बने मेरी ।
शिकवा- शिकायतें भूल
लम्हा-लम्हा गुजरे
ज़िंदगी के
चंद दिन यूँ ही ।
अंतिम ख़्वाहिश यही,
न रहे बदले की भावना,
न रहे कोई चाहना
मुक्ति मिले निर्दोष दीप सी।
Sunday, January 18, 2015
दर्द
दर्द का सैलाब
बहे नयनों से...सुकून
दर्द का सैलाब
वाचाल हो जाये...क़हर
दर्द का सैलाब
सड़े दिल में...नासूर
नासूर न बना
क़हर मत ढा
ढूँढ सुकून के पल,
एक न एक दिन
समझ ही जायेगी दुनिया
तेरे निस्वार्थ करम ।
Thursday, January 15, 2015
ए ज़िंदगी
किसी को इतना भी न सता ए ज़िंदगी
सबर का बाँध ही टूट जाए ,
रिश्तों को इतना तार-तार न कर
अपनों पर विश्वास करना ही भूल जाए,
कर्तव्यों की डोर थामे अकेले
आख़िर चलें भी तो चलें कब तक,
मैं और मेरा पर सवार बंदे जब
भावनाओं की परवाह ही न करें ।
Tuesday, January 6, 2015
आस अभी बाक़ी है
मैं हुआ जब-जब
हम पर हावी
टूट गई संवेदनायें सारी
कुलीन प्रवृत्तियाँ होने लगी क्षीण
होने लगा मन विदीर्ण ।
श्वेत धवल खरगोशों ने
मारी जब कुलांचें
खोखला भुनभुना नींव पर स्थापित
आस्थाओं के महल
ढहने लगे अचानक क्यों ?
व्यक्ति ...
परिवार को टूटने से
बचा नहीं पाया
राष्ट्र की एकता के लिये
चिंतित होगा क्यों ?
अनिश्चित,अनैतिक,अमर्यादित
व्यवस्थाओं में फँसकर
क्यों और कैसे
कहाँ से कहाँ
आ गये हम !
टूटा ही है मानव
साँस अभी बाक़ी है,
बुझती साँसों को
मिल जाये जीवन
आस अभी बाक़ी है ।
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