Tuesday, December 31, 2013

स्वागत नववर्ष

गत वर्ष गया, कुछ स्वप्न टूटे, कुछ अधूरे पड़े, नये संगी-साथी मिले कुछ बिछड़े, अजीब विडम्बना गिले-शिकवे भुलाए न भूले... संभव-असंभव कुछ भी नहीं, सहेजकर सलवटें मन के चादर की, नव स्वप्न बुनें, अधूरों में रंग भरे, मन से मन को जोड़ें... खट्टी-मीठी को सहेजकर मुट्ठी में, कहकर अलविदा गत वर्ष को, तन-मन को कर निर्मल आओ आगत का आगाज करें... शत-शत अभिनंदन, नव स्वप्नों का शत-शत अभिनंदन ।

Wednesday, December 25, 2013

अनमोल जीवन

जीवन में आये प्रत्येक सुख-दुख सफलता-असफलता के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है । अनावश्यक क्रोध और अनियोजित कार्य न केवल हमारी कार्य क्षमता को प्रभावित करते है वरन असंतुष्टि के भी जन्मदायक है...जीवन के प्रति असंतुष्टि जहाँ कर्तव्यविमुख करती है वहीं कार्य के प्रति असंतुष्टि हमें निरंतर आगे बढ्ने के लिए प्रेरित करती है...यह तभी संभव है जब हम अनावश्यक वाद-विवाद से बचते हुए अपनी प्रत्येक क्रियाओं को उचित दिशा निर्देश देते हुए अपने कार्य क्षेत्र का निर्धारण करें...आलोचना या परिस्थितियों के प्रति आक्रोश या उससे डरकर कार्यविमुख होना हमारी हताशा का परिचायक है,हताशा में किया कोई कार्य कभी सफल नहीं हो सकता...चलते जाना ही जीवन ही है वहीं रुकना मौत...जीवित रहते भला मृत्यु का वरण कौन करना चाहेगा...? जीवन अनमोल है...नई चाह, नई आस के संग जीवन के सारे रंगों को निज में समाहित करते हुए आगे बढ़ते जाइये,समस्त कठिनाइयाँ,परेशानियाँ स्वमेव दूर होती जायेंगी ।

Monday, December 23, 2013

चिरंतन सत्य

सफलता के हिंडोले में उड़ान भरता इतना मगरूर है आदमी, निज छाया को पहचानने से भी इंकार कर रहा है आज आदमी। विवशताओं की तमस में इतना छिप गया है आज आदमी, जिम्मेदारियों से अनकहे ही नाता तोड़ रहा है आज आदमी। सफलता तो आती-जाती है अपने तो अपने है अच्छे या बुरे, क्यों भूल रहा है आज आदमी। रोशनी जितनी आती जाती है पास अत्यधिक रोशनी की तलाश में उतना ही तड़प रहा है आज आदमी। सुखी जीवन का मूलमंत्र निस्वार्थ कर्म किये जा क्यों नहीं समझ पा रहा आज आदमी। जीवन है क्षणभंगुर शीशे जैसा नाजुक फिर भी मृगमरीचिका के पीछे क्यों भाग रहा है आज आदमी।