Wednesday, December 13, 2017
ख़ूबसूरत ज़िंदगी मिली, जी नहीं पाये पता नहीं क्यों ?
ख़ूबसूरत ज़िंदगी मिली
जी नहीं पाये पता नहीं क्यों ?
आँखों में अनेकों हसरतें पलती रहीं
अधूरी रहीं, पता नहीं क्यों ?
लबों पर शब्द अटके रहे
कह नहीं पाये पता नहीं क्यों ?
पाँव थिरकने को आतुर हुये
थिरक नहीं पाये पता नहीं क्यों ?
झिझक थी या मजबूरी
रही अनबूझ पहेली पता नहीं क्यों ?
उलझा रहा जीवन कर्तव्यों के जंगल में
उबर नहीं पाये पता नहीं क्यों ?
कल इतिहास बन जायेगी ज़िंदगी
जी लूँ, मन में द्वन्द पता नहीं क्यों ?
Thursday, August 24, 2017
कल एक न्यूज़ चैनल में एक मौलवी कह रहे थे कि तलाक़ के बाद औरत हरामज़ादी हो जाती है । एक आम आदमी की बात तो छोड़िये एक मौलवी की
औरत के प्रति इतनी घृणित सोच...ओफ !...बेहद शर्मनाक । केवल क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा ।
औरतें चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय की हों उन्हें स्वयं को को इतना सबल एवं जागरूक बनाना होगा जिससे कि वे निज पर होते अत्याचार के प्रति आवाज़ उठा सकें ।
Monday, May 29, 2017
रिश्तों में पारदर्शिता
रिश्तों में कटुता आज आम बात हो गई है...अगर रिश्तों में पारदर्शिता के साथ आपसी समझ आ जाये तो कोई कारण नहीं कि रिश्ते सावन की नरम फुहार बन जीवन को महका जायें ।
Friday, March 24, 2017
बड़ी मुददतों के बाद यह पल आया है
बड़ी मुददतों के बाद यह पल आया है,
तारों की झुरमुट में शाम बिताई है ।
भागते रहे चंद काग़ज़ के टुकड़ों के लिये
महफ़िल आज अपनों के संग सजाई है ।
वक़्त रूकता नहीं, रूकना तुम्हें होगा,
जीना है अगर ज़िंदगी,बात आज समझ में आई है ।
जीवन छोटा,बचे हैं चंद पल ही ज़िंदगी के,
जियें अपने लिये भी,ज़िंदगी ने ज़िंदगी से पहचान कराई है ।
@सुधा आदेश
Thursday, March 23, 2017
दर्द
दर्द की पर्त दर पर्त ऐसी जमती गई ,
सहेज कर दर्दे गम बिछोना बना लिया हमने।
कोई डर नहीं, कोई ख्वाहिश नहीं,
हसरतों को मुट्ठी में बंद कर लिया हमने ।
मौत भी आये तो अब कोई गम नहीं
जीने की चाहत को रेत की मानिंद उड़ा दिया हमने।
सिला चाहे जो भी दे यह मतलबी दुनिया
बदरंग चादर बेफिक्री की ओढ़ लिया हमने ।
@सुधा आदेश
Thursday, January 26, 2017
वर्षों के त्याग और बलिदान के फलस्वरूप हमें आज़ादी मिली
वर्षों के त्याग और बलिदान के फलस्वरूप हमें आज़ादी मिली । हमारे संविधान निर्माताओं ने आज के दिन हमें हमारा संविधान सौंपा था । हमें हमारे कर्तव्यों और अधिकारों के बारे में बताया गया था । दुख तो इस बात का है हमें हमारे अधिकार याद रहे पर कर्तव्य भूल गये । कुछ ऐसी ही मानसिकता ने कुछ पंक्तियों को जन्म दिया है ...
दोगली बातें बंद करो
अब तो कुछ शर्म करो,
कब तक छल कपट से
जनता जनार्दन को
गुमराह करते रहोगे ,
सत्ता सुंदरी के मद में
मचलते रहोगे ?
आरोप प्रत्यारोपों का
दौर बंद करो,
देश की रक्षार्थ
कुछ कर्म करो
सीख सकते हो तो सीखो
उन नौजवानों से
जिन्होंने तुम्हारे कल के लिये
तोड़ ममता की बेड़ियाँ
माँ की आन बान शान के लिये
अपना आज क़ुर्बान कर दिया,
हँसते - हँसते अपना जीवन
बलिदान कर दिया ।
@ सुधा आदेश
Tuesday, January 17, 2017
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का फटे कुर्ते से हाथ निकालकर दिखाना...
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का अपने फटे कुर्ते से हाथ निकाल कर लोगों को दिखाना...अनेकों प्रश्न ...
अमीरजादों को फटी जीन्स ( आज का फैशन ) पहने तो देखा था , क्या फटा कुरता भी फैशन में आ गया है ?
जिन राहुल गांधी के पर नाना के कपड़े पेरिस धुलने जाया करते थे तथा जिनकी दादी अपने अच्छे ड्रेस सेन्स के लिए जानी जाती रही हैं उनके वारिस द्वारा फटा कुरता पहनना... क्या कांग्रेस वास्तव में इतनी बदहाल हो गई है ?
या यह भारत की भोली भाली जनता का बेवकूफ बनाने या समझने की सोची समझी चाल है !!
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