Monday, January 30, 2012

राहुल गांधी ने एक जन सभा में कहा कि मुस्लिम समुदाय की दयनीय स्थिति के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ज़िम्मेवार है...एक ऐसा व्यक्ति जिसे भारत का भावी पी.एम. कहा जा रहा है तथा जिस कांग्रेस पार्टी का इस देश पर लगभग पचास वर्षो तक शासन रहा है उसके तथाकथित राजकुमार के मुख से ऐसी बातें हास्यास्पद लगती है...ऐसा करके  वह देश को  तोड़ने का काम कर रहे है...आम नागरिक यह नहीं समझ पा रहा है कि यह वोट बैंक कि राजनीति देश को किधर ले जा रही है...इंसान के मन में प्यार की जगह नफरत के बीज बो कर कुछ समय के लिए वह भले सुख का अनुभव कर लें पर यह न भूलें अब जनता को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता...जनता के पास भी कान,आँख और दिमाग है...समझदार व्यक्ति कोई उनके झांसे में नहीं आने वाला...अगर कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलती है तो इसका अर्थ यह नहीं कि युवराज को स्वीकृति मिल गई...जनता सिर्फ उसे ही पसंद करेगी जो हर संप्रदाय को साथ लेकर चले न कि वोट के लिये भाई को भाई से लड़ा कर अपना भले कि सोचे...  

Thursday, January 26, 2012

क्या भूलूँ क्या याद करूँ

ऐ मन मेरे तू ही बता स्वतंत्रता दिवस की सांध्य बेला में क्या भूलूँ क्या याद करूँ.... देश प्रेम से भरपूर वे तेजस्वी चेहरे या देश को बेचने को आतुर मुखोटों के पीछे छिपे भेड़िये, एक वे थे जिन्होने देश के लिए कर दिया सर्वस्य न्योछावर, एक ये है जिन्होने निज राष्ट्र को लूट कर भर लिया घर। भूल गए अपने ही सहोदरो का बलिदान, देश को विकासोन्मुख बनाने की कसमें माँ को दिया वचन। घोटालों में फँसकर भ्रष्टाचार, आतंकवाद,जातिवाद को देकर बढ़ावा जनता जनार्दन को समझ कर गूँगा बहरा सर्वदा गुमराह करते रहे। विश्व के मानचित्र पर देश की डावांडोल स्थिति देखकर राष्ट्र प्रेम की भावना क्यों उद्देलित नहीं होती। संवेदनाये, भावनाएं क्यों व्याकुल नहीं करती क्या यांत्रिक विश्व में निर्जीव तन-मन के साथ तुम भी यांत्रिक बन गए हो। परभाषा के माध्यम से पले बढ़े लोगों को निज राष्ट्र से क्यों होगा प्रेम ? मात्रभाषा बोलने में आने लगी है अब शर्म सिसक रही माँ भारती देख निज पुत्रों के कर्म। विराट सांस्कृतिक परम्पराओं वाले देश के सुनहरे भविष्य की सुदृढ़ नीव भी अकुशल हाथों में असमय ही होने लगी है क्षीण । ऐ मन मेरे तू ही बता स्वतंत्रता दिवस की सांध्य बेला में क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?

Friday, January 13, 2012

शुचिता

मानव जीवन में शुचिता का होना अत्यंत आवश्यक है पर यह तभी संभव है जब हम मन,कर्म और वचन से ईमानदार रहें....कभी किसी का बुरा न सोचें न बुरा करे और न ही बुरा सुनें....बुरा सुनने, करने और कहने से ही इंसान के अंदर आसुरी शक्तियों का निवास होने लगता है जिसके कारण  वह अपनी मानवीय विशेषतायों से दूर होता जाता है....यह प्रवृति न केवल इंसान के लिए वरन परिवार और  समाज के लिए भी घातक है....अगर हम वास्तव में परिवर्तन लाना चाहते है तो हमें स्वयं को बदलना होगा कोई कारण नहीं की हम स्वस्थ समाज का निर्माण न कर पाएँ....

चाह है अगर दिल में, राह निकल ही आएगी,
कठिन भले हो  डगर, मिलेगी मंजिल,
गुजारिश है इस दिल की बस इतनी,
इरादों पर अपने, जंग मत लगने देना....।