Sunday, December 30, 2012

शुभ नववर्ष

जीवन के
हर पल को
कर स्पंदित,
नूतन आभा से
कर आच्छादित,
नवसंदेश, नवचेतना का
लेकर उपहार,
स्वप्निल सुनहरे
स्वप्नों को
सजाकर अलकों पर,
प्रेम और सदभावना का
फैलाते हुए आँचल
लो आ गया नववर्ष...
शत-शत अभिनंदन,
 शत-शत अभिनंदन... 

आज मै इतिहास बन गई हूँ

यह कविता मैंने नवसदी में प्रवेश के समय लिखी थी, लगभग बारह वर्ष बीतने के पश्चात भी आज भी इसके भाव और अर्थ में कोई अंतर नहीं आया है...उस समय यह कविता नवभारत के रविवारीय परिशिष्ट में भी प्रकाशित हुई थी...पेश है कविता आज मै इतिहास बन गई हूँ...


दुल्हन की तरह
सजी सँवरी,इठलाती, शर्माती
गर्वोन्मुक्त मुस्कान से सुसज्जित,
इक्कीसवीं सदी का
नवउमंग, नवउल्लहास के संग
स्वागत करते देखकर
थकी हारी बीसवीं सदी
थोड़ा सकुचाई, थोड़ा घबराई,
फिर साहस बटोरकर
धीरे से बोली,
'बहना, यह सच है
कि कल जो मेरा था
वह आज तुम्हारा हो गया,
आज  मै इतिहास बन गई हूँ...
जैसा आज तुम्हारा
स्वागत हो रहा है
कल वैसा ही मेरा हुआ था...
गिला शिकवा किसी से
कुछ भी नहीं,
संतोष है तो सिर्फ इतना
कि मैने तुम्हें तराशा सँवारा,
समृद्ध एवं गौरवशाली
अतीत दिया है...
फूलो-फलो, हँसो,मुस्कराओ,
खिलखिलाओ सदा यूँ ही
पर मत भूलना मेरा योगदान,
साहस और धैर्य
क्योंकि अतीत की 
नींव पर ही
 भविष्य की इमारत खड़ी है...।         

Tuesday, December 11, 2012

सुख-दुख हर इंसान के जीवन के हिस्से है...ये मानव जीवन की ऐसी अवस्थाये है जिनके वशीभूत इंसान की मानसिक क्रियाओ का निर्धारण होता है,यही कारण है कि एक ही अवस्था में कोई सुख का अनुभव करता है तो कोई दुख का,कोई आशा का तो कोई निराशा का...आवश्यकता है अपने मन को वशीभूत करने की जिससे कि छोटी - छोटी बाते मन को उद्देलित न कर पाये और इंसान विषम से विषम परिस्थितियों में भी अपना संतुलन न खोये...अगर इंसान ऐसा कर पाया तो उसकी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी...। मेरी पुस्तक वीरान मन के खंडहर का अंश...

Wednesday, October 31, 2012

ऐसा कहर बरपाया

प्रकृति के तांडव से आज तक कोई नहीं बच पाया है...इंसान भले ही अपनी सफलताओ पर कितना ही क्यों न इतरा ले, पर क्या अपने सारे संसाधनों के बल प इस तरह की आपदाओ को रोक पाया है...नहीं...अपनी इस व्यथा को व्यक्त किया अपनी कविता... ऐसा कहर बरपाया... ऐसा कहर बरपाया प्रकृति का अजब खेल है निराला, ऐसा कहर बरपाया, कल तक थी जहाँ खुशियाँ, आज मातम वहाँ छाया... मौत के बीच सिसकती ज़िंदगी, आज खड़ी है दोराहे पर,< अपनों के लिए रोये या अपनी बदनसीबी पर,समझ कोई न पाया... डूबा बचपन, डूबी जवानी, डूब गई खुशियाँ सारी, जलभक्षक बना, विनाश का काला अध्याय खून से लिखाया... उजड़ गई बस्तियाँ लाशों के बिछे मंजर, ज्ञान विज्ञान सब पीछे छूटे, प्रकृति ने तांडव मचाया... आकाश,जल और धरा को बाँधकर, इतराता रहा मानव, एक झटके में तोड़कर गुरूर को उसके,बेबस बनाया... कुदरत के संग कर खिलवाड़, मसीहा बनने की कोशिश न करो, इंसा हो इंसा ही बने रहो, नियति तूने सबक सिखया...।

Tuesday, September 11, 2012

हिन्दी दिवस

मेरा बारह वर्षीय बेटा स्कूल से आकर बोला , ' ममा,कल हिन्दी दिवस है ,
मेम ने कुछ
लिख कर लाने के लिए कहा है,
 प्लीज ममा  कुछ लिखवा दो न...?'
मन में कुछ
अकुलाने लगा,
हिन्दी हमारी मात्रभाषा है,राजभाषा है
और हम इसके प्रचार, प्रसार हेतु
हिन्दी दिवस मना रहे है...
कलंक लगा रहे है निज भाल पर
क्या धरोहर दे रहे है नवांकुरों को
जिनकी जड़ें हम स्वयं ही
विदेशी भाषा से
नित सींच रहे है...
वर्ष में एक दिन 
' हिन्दी दिवस ' मनाकर
मात्रभाषा को कब्र से
खोदकर खड़ा कर रहे है,
ठीक उसी तरह जैसे पूर्वजों की
आत्माओ की शांति के लिए
पित्रपक्ष में एक दिन
उनके लिए सुरक्षित रख देते है,
उस दिन दान दक्षिणा देकर
उन्हें स्मरण कर
कर्तव्यों की इतिश्री समझ कर
पुनः दिनचर्या में
हो जाते है लीन...।  

हिन्दी दिवस

मेरा बारह वर्षीय बेटा स्कूल से आकर बोला , ' ममा,कल हिन्दी दिवस है ,
मेम ने कुछ
लिख कर लाने के लिए कहा है,
 प्लीज ममा  कुछ लिखवा दो न...?'
मन में कुछ
अकुलाने लगा,
हिन्दी हमारी मात्रभाषा है,राजभाषा है
और हम इसके प्रचार, प्रसार हेतु
हिन्दी दिवस मना रहे है...
कलंक लगा रहे है निज भाल पर
क्या धरोहर दे रहे है नवांकुरों को
जिनकी जड़ें हम स्वयं ही
विदेशी भाषा से
नित सींच रहे है...
वर्ष में एक दिन 
' हिन्दी दिवस ' मनाकर
मात्रभाषा को कब्र से
खोदकर खड़ा कर रहे है,
ठीक उसी तरह जैसे पूर्वजों की
आत्माओ की शांति के लिए
पित्रपक्ष में एक दिन
उनके लिए सुरक्षित रख देते है,
उस दिन दान दक्षिणा देकर
उन्हें स्मरण कर
कर्तव्यों की इतिश्री समझ कर
पुनः दिनचर्या में
हो जाते है लीन...।  

Saturday, June 30, 2012

मत छेड़ो तान

मत छेड़ो तान धनश्याम बांसुरी की
आज नहीं है आकांछा किसी को
हँसने झूमने नाचने गाने की....।

सिसक रहा है शैशव आज बंद दरवाजो  में ,
क्लब सामाजिक सेवा में व्यस्त ,
माँ को आज नहीं है लालसा ,
बांहों के झूले लोरी सुनने की....।
मत छेड़ो तान ....

भारी बोझ तले  दबा बचपन ,
भूल गया घरोंदे बनाना,
नावे चलाना,हँसना रोना औ मचलना,
आज नहीं है अभिलाषा माखन चुराने की....।
मत छेड़ो तान....

अलबेला,मस्ताना,मदहोश योवन
भूलकर सावन के झूले ,
जूझ रहा जीवन संग्राम में निज पहचान बनाने की,
आज नहीं है उसे तृष्णा रास रचाने की....।
मत छेड़ो तान....

रिश्तों के नर्म नाजुक धागों को ,
सहेजने के प्रयास में रीत रहा बुढ़ापा ,
नहीं मिला अवकाश उसे ,
जीवन के बीहड़ जंगल से मुक्ति पाने का....।

मत छेड़ो तान धनश्याम बांसुरी की.....
आज नहीं है आकांछा किसी को
हँसने, झूमने , नाचने गाने की....।

Wednesday, June 27, 2012

शुभकामनाये

दाम्पत्य  जीवन सूरज की किरण सा,
उजास फैलाकर कर तन मन में,
दूर करे मन का अँधेरा....

दाम्पत्य जीवन सुधांशु की सुधारश्मि सा,
चंदन सा लेप लगाता रहा
अहम के टकराव से घायल दिल पर....

दाम्पत्य जीवन नदी की लहर सा
रोंद कर राह में आती चट्टानों को
बहता गया निरंतर....

दाम्पत्य जीवन पक्षियों के कलरव सा
प्यार - मनुहार, गिले शिकवे जिसमे ,
सात  जन्म का साथ निभाने का संकल्प भी....

दाम्पत्य जीवन कोयल की कूक सा
मधुर तान से अपनी
जीवन में मधुरस घोल गया....

दाम्पत्य जीवन फूलों की बगिया सा
प्यार और विश्वास से सींचा जिसने,
महकता जीवन उसका रहा....।

शुभकामनायों के साथ....
           चाचा-चाची.....







Monday, April 23, 2012

जीवन में सब कुछ मनचाहा नहीं होता....कहीं न कहीं समझोते करने ही पड़ते हें अगर कोई सोचता हे कि वह अपनी शर्तो पर जीएगा तो वह जीएगा तो अवश्य पर हो सकता हे वह अकेला पड़ता जाए....और अकेला व्यक्ति न केवल अपने लिए वरन समाज के लिए भी बोझ बनता जाएगा....
दिल तोड़ कर किसी का भला खुश कैसे रह सकता हे कोई
दुआ नहीं तो बददुआ किसी की कभी मत लेना
बढो जीवन में सदा आगे,पर किसी को रोंद कर नहीं
याद सदा रखना यह छोटी सी बात....

Thursday, February 2, 2012

हमारा संविधान कहता है कि हमारा राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है पर आज हिंदुओं कि बात करने वाला सांप्रदायिक कहलाता है जबकि मुस्लिम हितों कि बात करने वाला धर्मनिरपेक्ष....समाज के तथाकथित धर्मनिरपेक्षों कि ऐसी मानसिकता कहीं हमारे देश का एक और विभाजन न करा दे....दलगत स्वार्थ में लिप्त यह लोग यह भूल रहे है कि देश विकासोन्मुख तभी हो सकता है जब देश के सभी प्राणी प्यार, अपनत्व और भाईचारे के साथ   रहें।
पर लगता है कि इन लोगों को देश से ज़्यादा अपना स्वार्थ प्यारा है तभी तो इन्हे भाई को भाई से लड़ाने  तथा एक दूसरे के विरुद्ध विष वमन कर नफरत के बीज बोने में ज़्यादा आनंद आता है....और इससे भी ज़्यादा आनंद आता है लोकलुभावन वादे करने में..... जनता   अब इन लोगों कि नौटंकी देखकर थक चुकी है उसे  पता चल गया है कि इनके सारे करतब  सिर्फ चुनाब जीतने के लिए है....कोई किसी का साथी नहीं है....चुनाव संपन्न होते ही ये अपने ए॰ सी॰ कमरो  मे बंद हो जायेंगे शायद पाँच वर्षों तक किसी को दिखाई भी न दें....।        

Monday, January 30, 2012

राहुल गांधी ने एक जन सभा में कहा कि मुस्लिम समुदाय की दयनीय स्थिति के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ज़िम्मेवार है...एक ऐसा व्यक्ति जिसे भारत का भावी पी.एम. कहा जा रहा है तथा जिस कांग्रेस पार्टी का इस देश पर लगभग पचास वर्षो तक शासन रहा है उसके तथाकथित राजकुमार के मुख से ऐसी बातें हास्यास्पद लगती है...ऐसा करके  वह देश को  तोड़ने का काम कर रहे है...आम नागरिक यह नहीं समझ पा रहा है कि यह वोट बैंक कि राजनीति देश को किधर ले जा रही है...इंसान के मन में प्यार की जगह नफरत के बीज बो कर कुछ समय के लिए वह भले सुख का अनुभव कर लें पर यह न भूलें अब जनता को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता...जनता के पास भी कान,आँख और दिमाग है...समझदार व्यक्ति कोई उनके झांसे में नहीं आने वाला...अगर कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलती है तो इसका अर्थ यह नहीं कि युवराज को स्वीकृति मिल गई...जनता सिर्फ उसे ही पसंद करेगी जो हर संप्रदाय को साथ लेकर चले न कि वोट के लिये भाई को भाई से लड़ा कर अपना भले कि सोचे...  

Thursday, January 26, 2012

क्या भूलूँ क्या याद करूँ

ऐ मन मेरे तू ही बता स्वतंत्रता दिवस की सांध्य बेला में क्या भूलूँ क्या याद करूँ.... देश प्रेम से भरपूर वे तेजस्वी चेहरे या देश को बेचने को आतुर मुखोटों के पीछे छिपे भेड़िये, एक वे थे जिन्होने देश के लिए कर दिया सर्वस्य न्योछावर, एक ये है जिन्होने निज राष्ट्र को लूट कर भर लिया घर। भूल गए अपने ही सहोदरो का बलिदान, देश को विकासोन्मुख बनाने की कसमें माँ को दिया वचन। घोटालों में फँसकर भ्रष्टाचार, आतंकवाद,जातिवाद को देकर बढ़ावा जनता जनार्दन को समझ कर गूँगा बहरा सर्वदा गुमराह करते रहे। विश्व के मानचित्र पर देश की डावांडोल स्थिति देखकर राष्ट्र प्रेम की भावना क्यों उद्देलित नहीं होती। संवेदनाये, भावनाएं क्यों व्याकुल नहीं करती क्या यांत्रिक विश्व में निर्जीव तन-मन के साथ तुम भी यांत्रिक बन गए हो। परभाषा के माध्यम से पले बढ़े लोगों को निज राष्ट्र से क्यों होगा प्रेम ? मात्रभाषा बोलने में आने लगी है अब शर्म सिसक रही माँ भारती देख निज पुत्रों के कर्म। विराट सांस्कृतिक परम्पराओं वाले देश के सुनहरे भविष्य की सुदृढ़ नीव भी अकुशल हाथों में असमय ही होने लगी है क्षीण । ऐ मन मेरे तू ही बता स्वतंत्रता दिवस की सांध्य बेला में क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?

Friday, January 13, 2012

शुचिता

मानव जीवन में शुचिता का होना अत्यंत आवश्यक है पर यह तभी संभव है जब हम मन,कर्म और वचन से ईमानदार रहें....कभी किसी का बुरा न सोचें न बुरा करे और न ही बुरा सुनें....बुरा सुनने, करने और कहने से ही इंसान के अंदर आसुरी शक्तियों का निवास होने लगता है जिसके कारण  वह अपनी मानवीय विशेषतायों से दूर होता जाता है....यह प्रवृति न केवल इंसान के लिए वरन परिवार और  समाज के लिए भी घातक है....अगर हम वास्तव में परिवर्तन लाना चाहते है तो हमें स्वयं को बदलना होगा कोई कारण नहीं की हम स्वस्थ समाज का निर्माण न कर पाएँ....

चाह है अगर दिल में, राह निकल ही आएगी,
कठिन भले हो  डगर, मिलेगी मंजिल,
गुजारिश है इस दिल की बस इतनी,
इरादों पर अपने, जंग मत लगने देना....।