Tuesday, November 8, 2011

मुखोटा

इंसान अपने चेहरे पर न जाने कितने मुखोटे लगाए रहता है । अंदर से कुछ बाहर से कुछ...सच तो यह है कि कभी-कभी वह स्वयं ही मुखोटे के पीछे छिपे अपने चेहरे को नहीं पहचान पाता या अपने अहंकार के वशीभूत इसे स्वीकार करने में हिचकता है पर शायद वह नहीं जानता कि वह दूसरों को धोखा दे सकता है पर स्वयं को नहीं... मुखोटा जो स्वयं के साथ सच्चा नहीं वह दूसरों के साथ सच्चा कैसे होगा, साथ चलना है तो चलेंगे ही पर विश्वास पर दाग लगा ही होगा...। अपनों के साथ छल कपट कर गर तुम आगे बढ़े भी मत भूलो, स्वयं तुम्हारा भी भला नहीं होगा....। मुखोटों में कैद ज़िंदगी भी क्या जिदगी, छिपकर नज़रों से अपनी जीना भी भला जीना होगा....। जीना है तो जियो शान से आत्मसम्मान, आत्मगौरव के संग, विश्वास करो न करो तुम सारा जमीन,सारा आकाश तुम्हारा होगा....। सुधा आदेश

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