Thursday, October 29, 2020

उपन्यास- अपने-अपने कारागृह

  अपने-अपने कारागृह


' मेम साहब फोन ...।'


'दीदी कैसी है आप? आपका मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था इसलिए लैंडलाइन पर फोन किया । बताइए आप कब तक लखनऊ पहुंच रही हैं ?'


'हम ठीक हैं शायद बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी ।  हम परसों दोपहर तक इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट से पहुँचेंगे ।'


'  ओ. के दीदी । मैं और शैलेश आपको और जीजाजी को लेने समय से पहुंच जाएंगे ।'


' व्यर्थ तकलीफ होगी । हम स्वयं पहुंच जाएंगे ।'


' दीदी,  इसमें तकलीफ कैसी ? फाइनली आप आ रही हैं , सोचकर हमें बेहद खुशी हो रही है । ममा तो बहुत एक्साइटेड हैं ।'


' अच्छा रखती हूं । रामदीन कुछ कह रहा है ।' कहकर उषा ने फोन रख दिया ।


 फाइनली आप आ रहे हैं । हमें बहुत खुशी हो रही है .. .सुनकर उषा समझ नहीं पा रही थी कि नंदिता के वाक्य सहज हैं या व्यंग्यात्मक । उसके दिल में दंश देते अनेकों तीरों में से एक तीर की  और वृध्दि हो गई थी । विचलित मनोदशा के कारण उसने रामू को निर्देश देते हुए कहा अगर कोई अन्य कॉल आए तब कुछ भी बहाना बना देना मैं अभी आराम करना चाहती हूं ।


 आज सुबह से ही उषा बेहद उद्दिग्न थी । नाश्ता भी नहीं किया था । अजय के ऑफिस जाते ही वह अपने कमरे में आकर लेट गई । किसी से बात ना करने की मनःस्थिति के कारण उसने अपना मोबाइल भी स्विच ऑफ कर दिया था ।  यहां तक कि नियत समय पर बावर्ची श्रीराम चाय बनाकर लाया तो उसने उसे भी लौटा दिया वरना आज से पहले उसे चाय लाने में जरा सी भी देर हो जाती थी तो वह सवाल जवाब करने से नहीं चूकती थी पर आज उसका न कुछ खाने पीने का मन कर रहा था और ना ही किसी से बातें करने का । 


जिस परेशानी से वह पिछले कुछ दिनों से गुजर रही थी आज उसकी चरमावस्था थी । उसकी इस परेशानी को अजय समझ रहे थे पर उनका समझाना भी व्यर्थ हो गया था कल उससे उसके महिला क्लब की सदस्य रीना,सीमा, ममता मिलने आई थीं उसे अनमयस्क देखकर सीमा ने उससे पूछा था, ' मैम क्या तबीयत ठीक नहीं है ?'


 ' हां  हल्का हल्का बुखार लग रहा है ।' ना चाहते हुए भी वह झूठ बोल गई थी ।


'  मेम मौसम बदल रहा है । इन दिनों संभल कर रहना ही अच्छा है ।' सीमा ने चिंतित स्वर में कहा । 


' तुम ठीक कह रही हो सीमा । कल रात मेरे भी सिर में भयंकर दर्द हो रहा था । दवा खाई तब जाकर आराम मिला । ' ममता ने उसके स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा । 


' मेम आप चली जाएंगी तब हमारा बिल्कुल भी मन नहीं लगेगा ।'  रीना ने विषय बदलते हुए कहा । 


' सच में रीना ठीक कह रही है । तरह-तरह के गेम,  तरह-तरह की एक्टिविटीज ..  आपने थोड़े समय में ही हमारे महिला क्लब को इतना जीवंत बना दिया है कि इसकी एक भी मीटिंग मिस करने का मन ही नहीं करता है ।  पता नहीं आपके जाने के पश्चात क्या होगा ।'ममता ने रीना का समर्थन करते हुए कहा था ।


परिवर्तन जीवन का स्वाभाविक नियम है ।  समय को रोका नहीं जा सकता पर समय के अनुसार स्वयं को ढालने की शक्ति अवश्य विकसित करनी चाहिए ।' अजय के शब्द कहते हुए उषा समझ नहीं पा रही थी कि रीना सीमा ममता की चिंता सच्ची है या बनावटी । 


 उसे स्वयं ही समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हो क्या रहा है । आज का दिन अचानक तो आ नहीं गया।। यह तो वर्षों पहले सुनियोजित था । अजय कहते हैं बहुत काम कर लिया ।  अब घूमेंगे , फिरेंगे अपने शौक पूरे करते हुए आराम से जिंदगी काटेंगे । कम से कम इस भागदौड़ से तो मुक्ति मिल जाएगी और तो और अपनों को तुम्हें और बच्चों को समय तो दे पाऊंगा  पर उषा को उनकी फिलासफी बनावटी, दिखावा, छलावा लगती । उसे लगता था जब इंसान विवश हो जाता है तभी इस तरह की बातें करता है वरना किसको ऐशो आराम, नाम और प्रसिद्धि बुरी लगती है  । हो सकता है कुछ लोगों को यह दिन सुकून और चैन दे जाता हो पर उसके अनुसार ऐसे विरले ही होंगे । आज का दिन उसकी जिंदगी का सबसे बुरा दिन है क्योंकि आज उससे सब कुछ छिनने वाला है । यह आराम , यह इज्जत, यह शोहरत आज के पश्चात यह जिंदगी सिर्फ स्वप्न बनकर रह जाएगी ।


एक समय था चाहे वह किसी पार्टी में जाती या मार्केटिंग के लिए , उसकी नीली बत्ती वाली गाड़ी उसको अन्य की तुलना में अति विशिष्ट बना देती थी । सब उसको अदब से सलाम ही नहीं करते, उसके स्वागत में पलक पाँवड़े भी बिछा दिया करते थे । यहां तक कि कुछ दुकानदार नया माल आने पर उसे फोन भी कर दिया करते थे । मैक्सिमम डिस्काउंट के साथ चाय नाश्ता भी सर्व होता था ।


 यद्यपि अजय के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनकर रांची आने के पश्चात सुख सुविधाओं में कमी कमी आई थी पर स्टेटस तो था ही पर अब वह भी नहीं रहेगा । आज के पश्चात सब समाप्त हो जाएगा ।


 कल शाम उन्हें अपने घर खाने का न्यौता देने आई उसकी पड़ोसन जॉइंट सेक्रेटरी विवेक शर्मा की पत्नी नीता ने बातों-बातों में उससे पूछा, '  उषा जी अब कहां सेटल होने का इरादा है ।'


 पहले कोई अगर यही प्रश्न पूछता था तो वह सहजता से उत्तर देती थी पर न जाने क्यों उनकी बात सुनकर  शरीर क्रोध से थर्रा गया । आखिर यह प्रश्न करके लोग कहना क्या चाहते हैं ? क्या इस दिन के बाद लोग नाकारा हो जाते हैं ? पर फिर स्वयं को कंट्रोल कर कहा,' घर लखनऊ में बनवा ही लिया है । अजय को जॉब के लिए कई ऑफर मिल रहे हैं पर उनकी इच्छा अब अपना बिजनेस प्रारंभ करने की है ।'


'  इस उम्र में बिजनेस ...किसी बिजनेस को सेटिल करने में वर्षों लग जाते हैं ।' आश्चर्य से नीता ने कहा था ।


' नया नहीं , अपने भाई का बिजनेस... काफी दिनों से वह इनको ज्वाइन करने के लिए कह रहे थे पर इनके पास समय ही नहीं था । दरअसल वह इनके सहयोग और अनुभवों द्वारा उसे और बढ़ाना चाहते हैं ।'  उषा ने नीता की शंका का निवारण करते हुए एक बार फिर झूठ का सहारा लिया था । वह नहीं चाहती थी कि अजय बेचारा कहलाए ।


' मेम अब हम चलते हैं । बच्चे स्कूल से आ गए होंगे ।' सीमा ने कहा ।


सीमा की बात सुनकर उषा विचारों के भंवर से बाहर निकली थी पर उनके जाने के पश्चात वह बेहद अपसेट हो गई थी ।  मन कर रहा था वह चीखे चिल्लाए ...अक्सर ऐसी स्थिति में वह अपना क्रोध नौकरों पर उतारती थी पर आज वह ऐसा भी नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसे लग रहा था अब उन पर भी उसका अधिकार नहीं रहा है । अवसाद की स्थिति में वह अपने जीवन के नापतोल में लग गई …


ऐसा नहीं है कि उसने सदा ऐशो आराम की जिंदगी जी । मम्मा डैडी के संघर्ष की वह भुक्तभोगी रही थी । ममा बताती हैं कि भारत पाकिस्तान विभाजन के समय उन्हें अपना घर परिवार छोड़कर भारत आना पड़ा था । डैडी और ममा के परिवार कड़वाहट की अग्नि में स्वाहा हो गए थे । उनके घरों में आग लगा दी गई थी । मम्मी और डैडी इसलिए बच गए क्योंकि उस समय वे अपने मामा के घर गए हुए थे । जैसे ही नफरत की चिंगारी थमी, वे  छुपते छुपाते भागे । मम्मा उस समय प्रेग्नेंट थी भाग्य अच्छा था या किस्मत ने साथ दिया वह भारत आने वाली बस में सवार हो गये  पर बस में भी खूनी खेल प्रारंभ हो गया । वे दो सीटों के बीच की जगह गिरकर सांस रोककर बैठ गए । वे लोग इन्हें मरा जान कर भाग गए । न जाने कितने घंटे उन्होंने शवों के मध्य बिताए । चारों तरफ सन्नाटा पाकर वे धीरे से बाहर निकले तब तक सूरज ने भी दस्तक दे दी।  मौत को उन्होंने मात दे दी थी । इस बात से उनका हौसला बुलंद था।  छिपते -छिपाते 2 दिन पश्चात आखिर वे भारतीय सीमा में प्रवेश कर पाए । 


उसके बाद का जीवन आसान नहीं था । एक तो अपनों को खोने का दुख दूसरा बेघर होने का एहसास । गनीमत थी लखनऊ में ममा की बहन का विवाह हुआ था । उन्होंने उन्हें शरण दी । शैलेश का वहीं जन्म हुआ । पापा को एक दुकान में काम मिला । एक कमरे का घर ले लिया । बस जिंदगी जल्दी चल निकली ।


 मम्मा को सिलाई का शौक था । उन्होंने कुछ कपड़े सिले । डैडी उनके सिले कपड़ों को रेडीमेड गारमेंट्स की शॉप पर ले गए । शॉप के मालिक ने तुरंत ही उन्हें खरीद लिया तथा दूसरा आर्डर भी दे दिया । धीरे-धीरे मांग बढ़ने पर एक टेलर को रख लिया गया । काम अच्छा चलने लगा था । 


ममा कहतीं हैं तू आई तो मानो लक्ष्मी ही बरसने लगी । तेरे आने के पश्चात तेरे डैडी ने चार कर्मचारियों के साथ रेडीमेड गारमेंट बनाने की फैक्ट्री की नींव रख दी । ममा डिजाइन बनातीं , उस डिजाइन को अपनी देखरेख में टेलर से बनवातीं  जबकि डैडी बाहर से आर्डर लेकर आते । उनके परिश्रम और लगन से व्यवसाय में दिनोंदिन उन्नति होने लगी । डिमांड को पूरा करने के लिए हुनरमंद कर्मचारी रखे गए । उनके बनाए कपड़ों की अपने देश में तो डिमांड थी ही अब वे बाहर भी निर्यात करने का प्रयास करने लगे थे । 


इसी बीच उन्होंने घर खरीद लिया । ममा घर बाहर के चक्कर में परेशान रहने लगी थीं  अंततः उन्हें घर के काम के लिए नौकर रखना पड़ा । रामदीन उनकी फैक्ट्री के एक कर्मचारी का ही लड़का था । उसने घर का काम अच्छी तरह से संभाल लिया था । कुछ वर्षों पश्चात फ़ैक्टरी के पास ही जमीन खरीदकर मम्मा डैडी ने अपना घर बना लिया था । जीवन में ठहराव आने के साथ ममा फ़ैक्टरी के साथ सोशल एक्टिविटी से भी जुड़ने लगी थीं  क्योंकि उनका मानना था कि लाभ का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों को दान देना चाहिए । 


डैडी की तरह उनका भी घर आने जाने का समय निश्चित नहीं था । घर के नौकरों को उन्होंने अपने -अपने कामों  में इतना निपुण कर दिया था जिससे कि उनके बाहर रहने पर भी घर की व्यवस्था सुचारु रुप से चल सके । सारी व्यवस्थाओं के बावजूद ममा का घर पर अच्छा नियंत्रण था ।  नौकरों की छोटी से छोटी गलती जहाँ वह पल भर में ही भांप लिया करती थी वहीं शैलेश और उसकी छोटी से छोटी आवश्यकताओं  को भी पूरा करने का वह हर संभव प्रयास किया करती थीं ।


 मम्मा और डैडी ने शैलेश और उसकी परवरिश में ना कोई भेदभाव किया और ना ही कोई कमी रहने की थी डैडी चाहते थे कि वह डॉक्टर बने तथा शैलेश उसका बड़ा भाई उनकी विरासत को संभाले शैलेश को भी इसमें कोई एतराज नहीं था पर वह चाहता था कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए उन्हें ज्वाइन करें क्योंकि शिक्षा मस्तिष्क का न केवल विकास करते हैं वरन निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ाती है डैडी को भी उसके बाद से कोई एतराज नहीं था यही कारण था कि उसने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री प्राप्त कर डैडी का बिजनेस ज्वाइन करना पसंद किया डैडी की इच्छा अनुसार वह स्वयं डॉक्टर बनना चाहती थी दो बार मेडिकल के एंट्रेंस टेस्ट में भी बैठी पर न जाने उसकी पढ़ाई में कमी थी या इच्छाशक्ति में वह सफल नहीं हो पाई अंततः उसने बीएससी करने का निर्णय लिया उन दिनों आजकल की तरह विभिन्न तरह के कोर्स नहीं हुआ करते थे लड़कियों के लिए मेडिकल या टीचिंग की बेस्ट माने जाते थे इक्का-दुक्का लड़कियां ही इंजीनियरिंग और साइंटिस्ट या सीए बनना चाहती थी बीएससी करते-करते उसका अजय से परिचय हुआ था वह साधारण परिवार से था पर था कुशाग्र बुद्धि 1 दिन लाइब्रेरी में बुक कराने के लिए दोनों ने एक साथ ही लाइब्रेरी में प्रवेश किया दोनों एक ही पुस्तक यीशु करवाना चाह रहे थे प्रॉब्लम यह थी उस पुस्तक की एक ही प्रति लाइब्रेरी में थी उन दोनों को असमंजस में पड़ा देखकर अंततः लाइब्रेरियन ने पूछा, ' मैं किसके नाम बुक इशू करूं ?'


' सर पुस्तक उषा जी के नाम इश्यू  कर दें ।'अजय ने कहा था ।


उसकी इस सदाशयता ने उषा का दिल जीत लिया था । प्रारंभ में पढ़ाई से संबंधित विषयों पर चर्चा करने के लिए कॉलेज कैंपस से अधिक कॉपी कैसे सुरक्षित लगा धीरे-धीरे उनकी मुलाकात में बढ़ने लगी उसी के साथ दिलों में जगह भी स्थिति यह हो गई थी कि जब तक वे दिन में एक बार मिल नहीं लेते थे उन्हें चैन नहीं मिलता था वह इस आकर्षण का मतलब समझ नहीं पा रही थी क्या यही प्यार है बार-बार यही प्रश्न उसके मन मस्तिष्क में उमड़ घुमड़ कर उसे परेशान करने लगा था ।


 उषा जानती थी अजय को उसके घर वाले स्वीकार नहीं करेंगे । वह शुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण है जबकि अजय मांस मच्छी खाने वाला बंगाली उस पर भी साधारण परिवार । अजय के पिता श्री केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल हैं तथा मां  डी. ए. वी . में शिक्षिका । इसके बावजूद उस पर अजय के प्यार का जादू इस कदर छा गया था कि उसने कई अच्छे रिश्ते यह कहकर लौटा दिए थे कि मुझे अभी और पढ़ना है । संतोष था तो सिर्फ इतना कि अजय सिविल सर्विस के लिए प्रयास कर रहा था । उसे  विश्वास था कि अगर वह इस प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो गया तब शायद उसके ममा -डैडी उनके रिश्ते को स्वीकार कर लेंगे । 


शैलेश के विवाह की बातें भी चलने लगीं थीं ।  डैडी की अच्छी प्रतिष्ठा के कारण अच्छे रिश्ते आ रहे थे ।  अंततः एक चीनी मिल के मालिक अनिल शर्मा की पुत्री नंदिनी से उसका विवाह हो गया । नंदिनी का बड़ा भाई अमर था जो अपने पापा की फैक्टरी  में ही सहयोग कर रहा था । उसका भी विवाह हो गया था । उसकी पत्नी पल्लवी बेहद सुलझे विचारों की लगी या यूं कहें कि मां ने उसी को देखकर नंदिनी को पसंद किया क्योंकि उन्हें लगा था कि अगर उसने घर परिवार में इतना अच्छा सामंजस्य स्थापित कर रखा है तो शत-प्रतिशत नहीं तो कुछ अंश तो परिवार की बेटी मैं भी आया होगा । नंदिनी की मां भी अपनी बहू पल्लवी की तारीफ करते हुए नहीं थक रही थीं । अंततः रिश्ता पक्का करने के इरादे से नंदिनी को डायमंड सेट देते हुए मम्मा ने कहा था, ' बेटा, तुम मेरी बहू ही नहीं , बेटी ही हो । कभी भी कोई भी समस्या आए मेरे साथ खुले मन से शेयर करना ।  घर को टूटने मत देना क्योंकि तोड़ना तो बहुत आसान है बेटा पर जोड़ना बहुत ही कठिन ।  बस मेरी यही बात सदैव ध्यान रखना ।'


 विवाह बहुत धूमधाम से हो गया ।  दोनों पक्ष संतुष्ट थे । नंदिनी ने फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया था । उसने पापा से फ़ैक्टरी ज्वाइन करने की इच्छा प्रकट की तो पापा ने तुरंत स्वीकार कर लिया । पापा ने उसको फाइनेंस डिपार्टमेंट का इंचार्ज बना दिया । सच तो यह था कि नंदिनी ने आते ही घर बाहर संभाल कर घर भर का दिल जीत लिया था ।  ममा -डैडी तो खुश थे ही,  उषा को भी घर में एक मित्र मिल गया था जिससे वह अपनी हर बात शेयर कर सकती थी तथा समाधान भी प्राप्त कर सकती थी ।


 वह समय भी आ गया जब सिविल सर्विस रिटेन एग्जाम का रिजल्ट निकला । अजय  खुशी थी पर आधी अधूरी ...अब वह आधी खुशी को पूरी करने में जुट गया । उसकी भी एम .एस .सी.  की परीक्षा प्रारंभ होने वाली थी अतः दोनों ही अपना लक्ष्य प्राप्त करने में जुट गए । 


उषा की परीक्षाएं समाप्त हो गई थीं । अजय भी अपना इंटरव्यू दे आया था । उषा की परीक्षा की समाप्ति के पश्चात उसने उसे कॉफी हाउस में मिलने के लिए बुलाया । उस दिन वह बेहद नर्वस था । उसका हाथ पकड़ कर उसने कहा ,' अगर मैं इस परीक्षा में असफल हो गया तो जीवन की परीक्षा में भी असफल हो जाऊँगा ।'


' कहते हैं इंसान जैसा सोचता है वैसा ही फल प्राप्त होता है । मैं कभी नकारात्मक विचार मन में नहीं लाती । सदा सकारात्मक सोचती हूँ इसलिए सफल होती हूँ ।  तुम अवश्य सफल होगे और फिर तुम्हारा यह प्रयास अंतिम तो नहीं है अगर किसी कारणवश सेलेक्ट नहीं हो पाए तो अगले वर्ष परीक्षा देना । मुझे विवाह की कोई जल्दी नहीं है । मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी । 'उषा ने उसका हाथ हौले से दबाते हुए कहा था ।


'सच उषा, अब मुझे कोई डर नहीं है अगर तुम्हारा साथ है तो मैं कठिन से कठिन परीक्षा में सफल होने के प्रति आश्वस्त हूं ।' अजय ने आत्मविश्वास से कहा ।


अच्छे परिणाम की आकांक्षा लिए उस दिन उन दोनों ने सहज रूप से विदा ली थी । एक हफ्ते पश्चात उसका एम.एस.सी . का भी रिजल्ट निकलने वाला था । उसका रिजल्ट निकला ही था कि अजय का भी फाइनल रिजल्ट आ गया ।  वह आई.ए.एस. में सेलेक्ट हुआ था । अपने -अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त कर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था । एक दूसरे को ट्रीट देते हुए वे आगे की प्लानिंग करने लगे । 


अजय ने अपने घर में उषा के संदर्भ में पहले ही बता दिया था उषा उनसे मिल भी चुकी थी । अजय के पापा को कोई आपत्ति नहीं थी पर अगर की मम्मी क्षमा को उसका नॉन बंगाली होना रास नहीं आ रहा था पर बेटे की खुशी के लिए उन्होंने बेमन से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था । अब उसे अपने मम्मी डैडी को इस रिश्ते के लिए तैयार करना था ।  नंदिनी भाभी को उसने अपने और अजय के बारे में पहले से ही बता दिया था ।  नंदिनी भाभी की बात मानकर मम्मा -डैडी से पहले उसने नंदिनी भाभी के सम्मुख ही शैलेश से बात की । उसकी बात सुनकर शैलेश ने चौक कर कहा था , ' विवाह वह भी बंगाली से ....मम्मा डैडी कभी तैयार नहीं होंगे ।' 


'भाई इस बात का एहसास मुझे भी है इसीलिए तो मैं पहले आपसे बात कर रही हूँ ।भाई मैं उससे बेहद प्यार करती हूँ ।  उसे 4 वर्षों से जानती हूँ ।  यद्यपि बी.एस.सी. के पश्चात वह सिविल सर्विस की कोचिंग करने दिल्ली चला गया था पर हम सदा संपर्क में रहे ।  जाते समय उसने कहा था ,' अगर मैं इस परीक्षा में सफल हो पाया तभी तुम्हारा हाथ मांगने तुम्हारे मम्मा डैडी के पास आऊंगा वरना हम एक दूसरे को एक बुरे स्वप्न की तरह भूल जाएंगे । आज उसने अपनी मंजिल प्राप्त कर ली है । वह मम्मा डैडी के पास पास मेरा हाथ मांगने आना चाहता है । अगर मम्मा डैडी मान जाते हैं तब तो कोई बात नहीं है अगर नहीं मानते हैं तब क्या आप दोनों से सहयोग की आशा कर सकती हूँ ।'


'  पर वह अकेले क्यों आ रहा है ? उसके माता- पिता उसके साथ क्यों नहीं आ रहे हैं ?' शैलेश ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा ।


'भाई वह नहीं चाहता कि उसके मां -पापा मेरे मम्मा- डैडी के हाथों अपमानित हों ।'


'  तुम क्या सोचती हो नंदिनी ?'


' लड़के का मुख्य गुण उसकी योग्यता है ।  इस परीक्षा में सफलता उसकी योग्यता का प्रमाण पत्र है ।  अगर दीदी उसे चाहती हैं तो मैं नहीं समझती कि लड़के का बंगाली होना बहुत बड़ा इशू है । ' नंदिनी ने उत्तर दिया था ।


'  तू इतवार को उसे बुला ले ,सब कुछ ठीक ही होगा ।' शैलेश ने उषा से कहा था ।


इतवार को शैलेश के कथनानुसार शाम को उसने अजय को बुला लिया मम्मा -डैडी को उसने पहले ही बता दिया था कि वह अपने एक मित्र से उन्हें मिलना चाहती है ।


 अजय के आने पर उसका परिचय करवाते हुए उषा ने कहा , ' डैडी यह हैं अजय विश्वास मेरा क्लास में पहली बार में ही आई.ए.एस . में सेलेक्ट हो गया है तथा कल ही ट्रेनिंग के लिए जा रहा है । मैं चाहती हूं कि यह आपका आशीर्वाद लेकर जाए ।'


' रियली यह सर्विस बहुत  खुशनसीबओं को  ही मिल पाती है । तुम सदा सफल रहो बेटा ।'अजय को अपने पैरों पर झुकते देखकर उसके पिता आलोक शंकर ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा था । 


इसी बीच शैलेश और नंदिनी आ गए।। अजय को देखकर उन्होंने उषा की ओर इशारा करके ओ.के . कह दिया था । वह उनको आँखों आँखों में ही थैंक्स कहने जा रही थी कि मम्मा की आवाज सुनाई दी…


'  तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं ?'


' जी वह एक केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल है ।'


' और तुम्हारी मां...।'


'  वह शिक्षिका हैं ।'


' एक ही स्कूल में ...।'


' नहीं डीएवी में ।'

' ओ.के . । तुम लोग कितने भाई बहन हो ?'


' जी एक बहन अंजना है । उसका विवाह हो चुका है ।'


' क्या करते हैं तुम्हारे जीजा जी ?'


' वह पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर हैं ।'


 'तुम भी... उससे प्रश्न पर प्रश्न ही करती जाओगी या कुछ नाश्ता पानी का भी इंतजाम करवाओगी ।' कुछ और पूछने को आतुर को डैडी ने रोते हुए निर्देश दिया ।


मम्मा के प्रश्न पूछने के तरीके से नंदिनी और अजय हतप्रभ थे ।  पता नहीं क्यों उषा को लग रहा था कि ममा को उनके संबंधों का एहसास हो गया है । उसका अनुमान सच निकला । अजय के जाते ही तीखी नजरों से देखते हुए ममा ने उससे पूछा , ' क्या तुम अजय को पसंद करती हो ?' 


'हाँ...।'  तीखी नजरों के बावजूद उसने सच बताना उचित  समझा क्योंकि झूठ कह कर वह उन्हें गुमराह नहीं करना चाहती थी ।  साथ ही इससे अच्छा अवसर उसे दोबारा मिले या ना मिले ।


' क्या उससे विवाह करना चाहती हो ?'


'क्या इसी लड़के के लिए तुम अब तक रिश्तो को नकारती  आई हो । तुम्हें पता है वह बंगाली है और हम ब्राह्मण । हम शाकाहारी हैं और वह मांसाहारी ।' उसे चुप देखकर ममा ने तेज आवाज में पुनः कहा ।


'मम्मा वह कहता है अगर तुम नहीं खाती हो तो घर में नॉनवेज नहीं बनेगा । रसोई में वही बनेगा जो तुम चाहोगी ।'


' यह सब कहने की बातें हैं । माना वह तुम्हारी वजह से नहीं खाएगा पर जब उसके माता-पिता तुम्हारे पास आएंगे वह बनाना और खाना चाहेंगे तो क्या वह उन्हें रोक पाएगा ' 


' मम्मा मुझे उस पर विश्वास है ।'


' भले ही वह आई.ए.एस .बन गया है पर क्या तुम एक नौकरी पेशा इंसान के साथ संतुष्ट रह पाओगी ? तुम्हारा एक महीने का जितना जेब खर्च है उससे ज्यादा उसका वेतन नहीं होगा ।'


' मम्मा मैं उसे चाहती हूं । उसके साथ मैं किसी भी हाल में खुश रह लूंगी ।'


'  यह सब फिल्मी बातें हैं । यथार्थ के धरातल पर आदर्शवादिता धरी की धरी रह जाती है । तुम उसकी मां से मिली हो ।'


'हां ...बहुत सीधा सादा परिवार है । वह मुझे चाहती भी बहुत हैं ।'


' क्यों नहीं चाहेंगी ? इतने बड़े घर की लड़की जो फंसा ली है ।उनके तो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे होंगे ।' कहते हुए उनके स्वर में तिरस्कार की भावना झलकने लगी थी। 


मम्मा अजय ने मुझे नहीं उसकी सरलता योग्यता संतुलित व्यवहार तथा निर्णय लेने की क्षमता ने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया है वह आईएएस में मैं सेलेक्ट हुआ है लड़कियों की लाइन लग जाएगी उसके घर पर पर वह अब भी मुझसे विवाह करना चाहता है वह मुझसे प्यार करता है और मैं उससे हमारा प्यार सच्चा है एक बात और अगर अजय से मेरा विवाह नहीं हो पाया तो मैं कभी विवाह नहीं करूंगी अजय को दिल में बसा ए दूसरे पुरुष से विवाह करना है उसे धोखा नहीं दे सकती उसने मम्मा की बात का प्रतिवाद करते हुए कहा था उसे पता था अगर अब वह कमजोर पड़ी तो मैं उसके और अजय के रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगी क्या तुम्हारे डेडी उस रिश्ते को स्वीकार कर पाएंगे उसके स्वर की दृढ़ता को देखकर हम आकाशवाणी पड़ा था मम्मा उन्हें मनाना आपका काम है अजय में क्या कमी है वह सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर अपनी योग्यता का परिचय दे चुका है इस बार उसका आंसर भी संस्था पर है तो मध्यमवर्गीय परिवार का और वह भी हो जाती है जमाना बदल रहा है मामा और उसके साथ सोच भी मैं अजय को चाहती हूं और वह भी मुझे अगर आपने मेरा विवाह कहीं और कर दिया मेरे विचार उस लड़के के विचारों से नहीं मिल पाए तब क्या मेरे साथ आप भी दुखी नहीं रहेंगे पर प्रेम लोहा सफल दांपत्य की तो गारंटी नहीं हुआ करते आप ही कह रही हैं मामा पर हर अरेंज मैरिज भी तो सफल नहीं होती जब तू ने निर्णय कर ही लिया है तो अब बहस किस लिए ठीक है तेरे डैडी से बात करके देखती हूं ।


'आई लव यू ममा ।'कहते हुए वह ममा के गले से लग गई थी । 


एक बार फिर उसे पापा के ढेरों प्रश्न उत्तरों के मध्य से गुजरना पड़ा था । उसकी दृढ़ता देखकर वह अजय के घर गए । उसके माता-पिता से मिलकर उनके विचारों में परिपक्वता तथा घर का सुरुचिपूर्ण वातावरण देखकर वह आश्वस्त हो गए । अंततः  उन्होंने अपनी स्वीकृति दे ही दी । इसके साथ ही उसने मन ही मन एक प्रतिज्ञा की थी कि वह अपने विवाह को असफल नहीं होने देगी चाहे कितनी भी परेशानियों का सामना क्यों न करना पड़े ।


 अजय के ट्रेनिंग पूर्ण करके आने के पश्चात विवाह की तारीख पक्की कर दी गई खूब धूमधाम से विवाह हुआ था उसके सास-ससुर के अतिरिक्त बहन अंजना और मयंक जीजा जी ने भी उसे हाथों हाथ लिया था अंजना दी और मयंक जीजा जी ने शिमला कुल्लू मनाली का हनीमून पैकेज गिफ्ट किया था यद्यपि वाह शिमला कुल्लू मनाली मम्मा डैडी के साथ भी जा चुकी थी पर अजय के साथ जाना सुखद आनंद दे गया था शिमला की माल रोड पर हाथ में हाथ डाले घूमना भूख लगने पर खाना और फिर अपने होटल के कमरे में आकर एक दूसरे के आगोश में खो जाना यही कुल्लू मनाली में भी हुआ रोहतांग और सोलंग वैली में बर्फ से अठखेलियां खेलने में जो आनंद आया था वह आज भी नहीं भूल पाई है यह बात अलग है कि रोहतांग और सोलंग वैली से आने के पश्चात वे 2 दिन तक अपने होटल के कमरे से बाहर ही नहीं निकले थे कुछ सर्दी तथा तथा कुछ एक दूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की चाहत हफ्ते भर पश्चात जब वे लौटे तो उनके चेहरे की रंगत ही बता रही थी कि वह एक दूसरे के साथ बहुत संतुष्ट और खुश हैं दूसरे दिन वह अजय के साथ मम्मा डैडी के घर गई अजय शैलेश और डैडी से बात करने में लग गए पर नंदिनी भाभी उसे अंदर खींच कर ले गई तथा उसकी आंखों में देखते हुए पूछा ननद रानी खुश तो है ना आप हमारे नंदोई जी के साथ हां भाभी कहते हुए उसने दोनों हाथों से अपना मुंह छुपा लिया था ।


'  कहीं घूमी भी या यूं ही ...।'


' नहीं भाभी , घूमे भी यह लीजिए यह शाल आपके लिए कुल्लू मनाली से खरीदा है और यह मां के लिए है ।' उसने पैकेट से शॉल निकालकर नंदिता को देते हुए कहा ।


' शॉल तो बहुत अच्छा है पर अजय जीजा जी ने आपको शॉल खरीदने के लिए समय दे दिया । '


'भाभी आप भी ...।'


' हां ननद रानी मैं भी ....अब अगर आप से मजाक नहीं करूंगी तो फिर किससे करूंगी ।' कहते हुए उसने प्यार से चोटी काटी थी ।


' उई ...।' कहते हुए वह बिल बिलबिलाई थी ।


' जाइये,  मां से मिल लीजिए वरना वह भी सोचेंगी कि बिटिया ने उनकी सुध नहीं ली । अपनी भाभी से ही चिपकी बैठी है ।'


 आप ठीक कह रही हैं भाभी मैं ममा से मिलकर उन्हें यह शाल भी दे दूंगी ।' चिकोटी वाले स्थान को उसने सहलाते हुए कहा ।


 उषा मां को ढूंढते हुए किचन में पहुंच गई मम्मा अपने सुपर विज़न में रामदीन से पनीर पकौड़े बनवा रही थी उसने उन्हें किचन में देख कर कहा मामा आप यहां ।


 हां दीदी जब से आप ने अपने और जूजू के आने की सूचना दी है तब से मम्मा किचन में रामदीन के साथ ही लगी हुई है कुछ वेरी स्पेशल बनवा रही है न ने ने ने ने कहा विवाह के पश्चात पहली बार घर में दामाद आया है कुछ स्पेशल तो बनाना ही है ।'  ममा ने प्यार से उसे देखते हुए कहा । 


मम्मा किचन में तभी जाती है जब किसी को स्पेशल ट्रीटमेंट देना हो... डैडी के विदेशी  डेलीगेट या विशेष मित्र । ममा का अजय को उसी तरह ट्रीट करना उषा को बहुत ही अच्छा लगा ।


'  मम्मा आपके लिए यह शाल ।'


'  अच्छा अब तू इतनी बड़ी हो गई है कि मेरे लिए उपहार भी लाने लगी । 


' मम्मा यह अजय ने आपके लिए पसंद की है । '


' वाओ... वेरी ब्यूटीफुल उसे मेरी ओर से थैंक्स कहना और हां अपनी सास के लिए भी लाई है न ।' 


' हां मम्मा ...।'


नंदिनी सोच रही थी कि मां की यही सोच बेटी के घर के रिश्तो को दरकने से बचा लेती है वरना  कुछ बात तो बेटी को ससुराल से दूर रहने जिम्मेदारियों से भागने की सलाह देती है । उसे खुशी थी कि वह ऐसे घर की बहू बनी ।




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अजय का देवघर स्थानांतरण हुआ तो अजय ने अपने मां -पापा को बाबा बैजनाथ के दर्शन के लिए बुला लिया । बुलाया तो अजय ने उसके मम्मी- डैडी को भी था पर वह अपनी व्यावसायिक व्यस्तता के कारण नहीं आ पाए थे । 


बाबा बैजनाथ धाम की बड़ी मान्यता है । बैजनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है । सावन के महीने में देश और प्रदेश के हर कोने से लगभग पाँच मिलियन लोग केसरिया कपड़े धारण कर, आस्था का जल अर्पित कर, बाबा बैजनाथ के दर्शन कर स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं । 


कहते हैं अगर कोई व्यक्ति यहां आकर कोई कामना करे तो उसकी कामना अवश्य पूर्ण होती है । जिनकी कामना पूरी हो जाती है वह सुल्तानगंज से गंगा जल एवं कांवड़ लेकर ,केसरिया कपड़े धारण कर ,लगभग 108 किलोमीटर की नंगे पांव यात्रा कर , बम- बम भोले का नाद करते हुए ,बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर ,उनको गंगा जल अर्पण कर स्वयं को धन्य मानते हैं । कुछ लोग तो बिना रुके अपनी इस यात्रा को पूरा करते हैं । शासन की ओर से इन कांवड़ियों को हर सुविधा प्रदान की जाती है । जगह-जगह पर इन कावड़ियों के लिए चाय पानी के साथ खाने-पीने की भी व्यवस्था होती है । 


उषा को इन भक्तों की श्रद्धा पर आश्चर्य होता था । भला नंगे पांव पैदल चलकर दर्शन करने वालों को क्या भगवान का अधिक आशीर्वाद मिलेगा ? वह मम्मी जी और पापा जी के साथ मंदिर दर्शन के लिए गई तो थी पर बेमन से ।  उसे मंदिर मंदिर भटकना व्यर्थ लगता था । उसे लगता था अगर पूजा ही करनी है तो घर में ही कर लो पर अजय को पूजा पाठ में कुछ अधिक ही विश्वास था इसलिए उसने अपने मम्मी -पापा को दर्शन करने के लिए बुला लिया था । अजय की वजह से बाबा भोलेनाथ के दर्शन अच्छी तरह से हो गए थे । कम से कम ऐसे स्थलों में रहने वाली भीड़ से भी बचाव हो गया था । मम्मी -पापा भी बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर बेहद प्रसन्न थे ।


 मम्मी -पापा लगभग एक महीने उनके साथ रहे थे । पदम और रिया उनसे बेहद हिल गए थे । दो वर्षीय रिया मम्मी जी के हाथ से ही खाना खाना चाहती थी , उन्हीं के साथ सोना चाहती थी वहीं चार वर्षीय पदम जब तक अपने दादा- दादी जी के साथ पार्क नहीं घूम लेता, उन्हें छोड़ता ही नहीं था और सब तो ठीक था पर उषा को लगने लगा था कि दोनों बच्चे जिद्दी होते जा रहे हैं ।  उसकी कोई भी बात नहीं सुनते हैं अगर वह कुछ कहती तो मम्मी जी तुरंत टोक देतीं ,' अरे बच्चे हैं । बच्चे अभी शैतानी नहीं करेंगे तो कब करेंगे ?  वैसे भी यही उम्र है खेलने कूदने की । जहां एक बार स्कूल के बैग का बोझ कंधों पर आया, सारी शैतानियां धरी की धरी रह जाएंगी ।' 


पदम ने प्ले स्कूल में जाना प्रारंभ कर दिया था पर उसे लगता था जैसी शिक्षा वह बच्चों को देना चाहती है वह इन छोटी जगह में दिलवाना संभव नहीं है पर इतने छोटे बच्चों का को कहीं भेजना भी संभव नहीं है । अनिश्चय की स्थिति में उसने अजय से कहा तो उसने कहा ,' स्कूल सभी अच्छे होते हैं । बच्चे के मानसिक विकास में जहां परवरिश का योगदान होता है वहीं पढ़ाई बच्चों की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है । अगर फिर भी तुम बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान नहीं चाहती तो बच्चों को लखनऊ लेकर चली जाओ । मम्मी -पापा के साथ रहकर पढ़ाओ । मैं आता जाता रहूँगा ।'


 उषा को अजय से अलग रहना मंजूर नहीं था । वैसे भी अजय के साथ रहते उसे जो सुख सुविधाएं मिल रही थीं वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए कभी दूरी तो कभी व्यस्तता का बहाना बनाकर वह तीज त्योहारों पर  नाते -रिश्तेदारी मैं भी जाने से बचती रही थी । इन सबके कारण उसकी मायके और ससुराल वालों से तो दूरी बढ़ी ही , अपने बच्चों पदम और रिया की फीलिंग की भी वह परवाह नहीं कर पाई । वह उन्हें शांति के पास छोड़ कर अपने सामाजिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहा करती थी । अपनी व्यस्तता एवं बार-बार स्थानांतरण का हवाला देकर उसने अजय के विरोध के बावजूद बच्चों की बेहतर शिक्षा की दुहाई देकर छोटी उम्र में ही उन्हें देहरादून के  बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया था । 


उस समय उसे न केवल अजय का वरन् अपने मम्मी- डैडी और सास-ससुर के विरोध का भी सामना करना पड़ा था । अजय से तो कई दिनों तक उसकी बोलचाल ही बंद रही पर वह अपने निर्णय पर अडिग रही क्योंकि उसका मानना था कि अच्छे स्कूल में न केवल पढ़ाई अच्छी होती है वरन व्यक्तित्व का भी विकास होता है । 


वर्ष में दो बार वह पदम और रिया के जन्मदिन के अवसर पर उनसे मिलने अवश्य जाती थी जिससे उन्हें दूरी का एहसास ना हो तथा वे इस बात को समझ सकें कि उनकी मां ने जो किया उनकी भलाई के लिए ही किया है । वह पदम के जन्मदिन पर पदम के साथ रिया के लिए तथा इसी तरह रिया के जन्मदिन पर पदम के लिए भी उपहार ले जाती ।  अच्छे रेस्टोरेंट में उनके मित्रों को ट्रीट देने के साथ रिटर्न गिफ्ट भी देती थी । एक अच्छा समय उनके साथ व्यतीत कर घर वापस आती तो बच्चों के खुशी से भरे चेहरे उसके सारे अपराध बोध को दूर कर देते थे । 


पदम रिया के जाने के पश्चात उषा ने भी उनकी कमी महसूस की थी ।  खाली घर खाने को दौड़ता था अतः खाली समय को भरने के लिए उषा ने स्वयं को पहले से भी अधिक  क्लब ,किटी तथा समाज सेवा में व्यस्त कर लिया था । उसने पढ़ाई के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खोले थे । इस कार्य के लिए उसने विभिन्न स्कूलों के शिक्षकों से भी सहायता मांगी थी । सभी ने उसके इस नेक कार्य की न केवल भूरी भूरी प्रशंसा की वरन अपना योगदान देने का भी प्रयास किया । उन्होंने विद्यार्थियों की योग्यता के अनुसार उन्हें विभिन्न कैटेगरी में विभक्त किया तथा उन्हीं के अनुसार पढ़ाई करवाने की व्यवस्था की ।


शांति को जब इस प्रौढ़ शिक्षा केंद्र के बारे में पता चला तब उसने एक दिन दबी जुबान से कहा, '  मेम साहब, मैंने पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की है आगे भी पढ़ना चाहती हूँ अगर आप आज्ञा दें ।'


उषा को भला क्या आपत्ति हो सकती थी उसकी इच्छा का मान रखते हुए उसने शांति को भी प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में भेजना प्रारंभ कर दिया था और सच उसकी सीखने समझने की क्षमता देखकर शिक्षक भी हैरान थे । 


 उषा ने शांति की योग्यता देखकर उसे पुस्तकें तथा स्टेशनरी से लेकर सारी सुख सुविधाएं प्रदान की ।  उसके हर्ष का पारावार न रहा जब एक वर्ष के अंदर ही शांति ने आठवीं की परीक्षा दी तथा उसमें 60% अंकों से पास हुई थी । इस सफलता ने उसे इतना उत्साहित किया कि उसने आगे पढ़ने की ठान ली । उषा के प्रयासों तथा शांति की मेहनत का ही फल था कि उसने धीरे-धीरे दसवीं, बारहवीं तथा ग्रेजुएशन भी कर लिया ।  यद्यपि इस बीच अजय का तीन चार जगह स्थानांतरण हुआ पर शांति ने अपनी पढ़ाई जारी रखी । ग्रेजुएशन करने के पश्चात अब उसकी इच्छा बी.एड. करने की थी । उसकी इच्छा का मान रखते हुए उषा ने उसका बी .एड.में एडमिशन करा दिया ।


समय के साथ उसकी सामाजिक व्यस्तताएं बढ़ती गईं । अजय चाहते थे जब बच्चे घर आए तब वह अपनी सामाजिक गतिविधियों पर रोक लगा दे । कम से कम उन्हें एहसास तो हो कि उसके माता- पिता उनकी परवाह करते हैं । अपनी इस बात को पूरा करने के लिए वह यथासंभव समय पर घर आने का प्रयास करती पर संयोग ऐसा होता कि जब बच्चे आते उषा की व्यस्तता और बढ़ जाती । कभी उसे किसी कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए जाना होता तो कभी कोई चैरिटेबल संस्था अपने कार्यक्रम उसकी अध्यक्षता में करवाना चाहती तो कभी उसके द्वारा स्थापित  प्रौढ़ शिक्षा के लिए चलाए जा रहे केंद्रों में उसे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने होती तो कभी कोई संस्था अनाथालयों में कपड़े और खाने का वितरण करना चाहती थी । वह चाहती थी कि अपनी जगह किसी अन्य को भेज दें पर संस्था के आयोजक उसी से आने का आग्रह करते  क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वह उनका उद्घाटन करेगी तो उनको ज्यादा प्रचार और प्रसार मिलेगा ।


सच कभी कभी बाहरी जिम्मेदारियां इंसान को इतना विवश कर देती हैं कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता है । कभी-कभी उषा को लगता कि अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के कारण वह घर परिवार पर अधिक ध्यान नहीं दे पा रही है । बाहरी फ्रंट पर वह अवश्य सफल है जबकि बच्चों के प्रति वह अपना दायित्व पूर्णरूपेण नहीं निभा पा रही है  तब वह अपराध बोध से भर उठती थी । 


बच्चों से अधिक सामाजिक प्रतिबद्धता को महत्व देते देखकर भी अजय ने उसको न कभी टोका और ना ही रोका । यहां तक कि बच्चों के सामने भी उसकी व्यस्तता को उत्तरदायित्व का जामा पहनाकर उनको संतुष्ट करने का प्रयास करते रहे क्योंकि उन्हें लगता था थोड़े समय के लिए बच्चे आए हैं उनके सामने ऐसा कुछ ना हो जिससे वे यहां की कटु स्मृतियां लेकर जाएं । 


सच तो यह था कि अजय की समझदारी और सहयोग के कारण ही पदम और रिया के मन में उसके लिए कटुता नहीं आई ।  वैसे वह स्वयं ही ऐसे समय में बच्चों को सॉरी कहते हुए ,उनकी हर इच्छा को पूरा करने के साथ उनके साथ अधिक से अधिक समय गुजारने का प्रयास करती।  संतोष था तो सिर्फ इतना कि समय के साथ पदम और रिया उसकी मजबूरी समझने लगे थे तथा उसका मनोबल बढ़ाने के लिए कभी-कभी वे स्वयं ही उससे जाने का आग्रह करते ।


 धीरे-धीरे उन्हें अपनी मम्मा की उपलब्धियों पर गर्व होने लगा था । समाज के लिए कुछ करने की उसकी जिजीविषा धीरे-धीरे उसका जुनून बनती गई । यही कारण था कि अगर वह किसी ऐसे शहर में जाती जहां प्रौढ़ शिक्षा जैसे केंद्र नहीं होते तब वह इन केंद्रों को खुलवाती ।   अनाथ आश्रम जैसी संस्थाओं को 'महिला क्लब' के माध्यम से सहायता दिलवाती ।  इन सामाजिक गतिविधियों के अतिरिक्त वह महिलाओं के मानसिक विकास के लिए  'महिला दिवस' पर वाद विवाद प्रतियोगिता का खुला आयोजन करवाती जिसमें शहर की कोई भी महिला सम्मिलित हो सकती थी वहीं सावन में 'सावन संध्या 'का आयोजन करके वह महिलाओं के रुझान को सांस्कृतिक कार्यक्रम की ओर मोड़कर उन्हें एक नई पहचान दिलवाने का प्रयास करती । 


आश्चर्य तो उषा को तब होता जब थोड़ी सी ही प्रेक्टिस के पश्चात कुछ महिलाएं इतना अच्छा प्रदर्शन करती कि लगता ही नहीं था कि वे प्रोफेशनल डांसर नहीं हैं । वर्ष में एक बार वह खेल सप्ताह का भी आयोजन करवाती जिसमें महिलाओं के अलावा बच्चों के लिए भी स्पून रेस, कैरम, टेबल टेनिस इत्यादि की प्रतियोगिताएं करवाती । इसके साथ वह हर वर्ष 'महिला क्लब' की ओर से एक जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा का प्रबंध करवाती । बच्चा ऐसा चुनती जो पढ़ने में बुद्धिमान हो पर जिसके माता-पिता उसकी पढ़ाई का निर्वहन ना कर पा रहे हों । इसका पता लगाने के लिए वह सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य से संपर्क स्थापित करती तथा उनके द्वारा चयनित बच्चे की छात्रवृत्ति का प्रबंध करवाती । अगर उस बच्चे का पूरे वर्ष का रिकॉर्ड अच्छा रहता तब दूसरे वर्ष भी उसे ही सहायता प्रदान की जाती अन्यथा दूसरा बच्चा चुना जाता । पहले तो वह यह सामाजिक कार्य सिर्फ नाम के लिए किया करती थी पर धीरे-धीरे यह उसकी आदतों में शुमार होते गए । उसे लगता था कि एक उच्च पदस्थ अधिकारी की पत्नी होने के नाते उसका समाज के प्रति भी कुछ कर्तव्य और दायित्व है । वह अपना दायित्व पूरे तन -मन से निभाने का प्रयत्न करने लगी । अपनी इसी विशेषता के कारण वह सबकी चहेती बनती गई ।


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 अपने-अपने कारागृह-2


अजय का देवघर स्थानांतरण हुआ तो अजय ने अपने मां -पापा को बाबा बैजनाथ के दर्शन के लिए बुला लिया । बुलाया तो अजय ने उसके मम्मी- डैडी को भी था पर वह अपनी व्यावसायिक व्यस्तता के कारण नहीं आ पाए थे । 


बाबा बैजनाथ धाम की बड़ी मान्यता है । बैजनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है । सावन के महीने में देश और प्रदेश के हर कोने से लगभग पाँच मिलियन लोग केसरिया कपड़े धारण कर, आस्था का जल अर्पित कर, बाबा बैजनाथ के दर्शन कर स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं । 


कहते हैं अगर कोई व्यक्ति यहां आकर कोई कामना करे तो उसकी कामना अवश्य पूर्ण होती है । जिनकी कामना पूरी हो जाती है वह सुल्तानगंज से गंगा जल एवं कांवड़ लेकर ,केसरिया कपड़े धारण कर ,लगभग 108 किलोमीटर की नंगे पांव यात्रा कर , बम- बम भोले का नाद करते हुए ,बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर ,उनको गंगा जल अर्पण कर स्वयं को धन्य मानते हैं । कुछ लोग तो बिना रुके अपनी इस यात्रा को पूरा करते हैं । शासन की ओर से इन कांवड़ियों को हर सुविधा प्रदान की जाती है । जगह-जगह पर इन कावड़ियों के लिए चाय पानी के साथ खाने-पीने की भी व्यवस्था होती है । 


उषा को इन भक्तों की श्रद्धा पर आश्चर्य होता था । भला नंगे पांव पैदल चलकर दर्शन करने वालों को क्या भगवान का अधिक आशीर्वाद मिलेगा ? वह मम्मी जी और पापा जी के साथ मंदिर दर्शन के लिए गई तो थी पर बेमन से ।  उसे मंदिर मंदिर भटकना व्यर्थ लगता था । उसे लगता था अगर पूजा ही करनी है तो घर में ही कर लो पर अजय को पूजा पाठ में कुछ अधिक ही विश्वास था इसलिए उसने अपने मम्मी -पापा को दर्शन करने के लिए बुला लिया था । अजय की वजह से बाबा भोलेनाथ के दर्शन अच्छी तरह से हो गए थे । कम से कम ऐसे स्थलों में रहने वाली भीड़ से भी बचाव हो गया था । मम्मी -पापा भी बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर बेहद प्रसन्न थे ।


 मम्मी -पापा लगभग एक महीने उनके साथ रहे थे । पदम और रिया उनसे बेहद हिल गए थे । दो वर्षीय रिया मम्मी जी के हाथ से ही खाना खाना चाहती थी , उन्हीं के साथ सोना चाहती थी वहीं चार वर्षीय पदम जब तक अपने दादा- दादी जी के साथ पार्क नहीं घूम लेता, उन्हें छोड़ता ही नहीं था और सब तो ठीक था पर उषा को लगने लगा था कि दोनों बच्चे जिद्दी होते जा रहे हैं ।  उसकी कोई भी बात नहीं सुनते हैं अगर वह कुछ कहती तो मम्मी जी तुरंत टोक देतीं ,' अरे बच्चे हैं । बच्चे अभी शैतानी नहीं करेंगे तो कब करेंगे ?  वैसे भी यही उम्र है खेलने कूदने की । जहां एक बार स्कूल के बैग का बोझ कंधों पर आया, सारी शैतानियां धरी की धरी रह जाएंगी ।' 


पदम ने प्ले स्कूल में जाना प्रारंभ कर दिया था पर उसे लगता था जैसी शिक्षा वह बच्चों को देना चाहती है वह इन छोटी जगह में दिलवाना संभव नहीं है पर इतने छोटे बच्चों का को कहीं भेजना भी संभव नहीं है । अनिश्चय की स्थिति में उसने अजय से कहा तो उसने कहा ,' स्कूल सभी अच्छे होते हैं । बच्चे के मानसिक विकास में जहां परवरिश का योगदान होता है वहीं पढ़ाई बच्चों की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है । अगर फिर भी तुम बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान नहीं चाहती तो बच्चों को लखनऊ लेकर चली जाओ । मम्मी -पापा के साथ रहकर पढ़ाओ । मैं आता जाता रहूँगा ।'


 उषा को अजय से अलग रहना मंजूर नहीं था । वैसे भी अजय के साथ रहते उसे जो सुख सुविधाएं मिल रही थीं वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए कभी दूरी तो कभी व्यस्तता का बहाना बनाकर वह तीज त्योहारों पर  नाते -रिश्तेदारी मैं भी जाने से बचती रही थी । इन सबके कारण उसकी मायके और ससुराल वालों से तो दूरी बढ़ी ही , अपने बच्चों पदम और रिया की फीलिंग की भी वह परवाह नहीं कर पाई । वह उन्हें शांति के पास छोड़ कर अपने सामाजिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहा करती थी । अपनी व्यस्तता एवं बार-बार स्थानांतरण का हवाला देकर उसने अजय के विरोध के बावजूद बच्चों की बेहतर शिक्षा की दुहाई देकर छोटी उम्र में ही उन्हें देहरादून के  बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया था । 


उस समय उसे न केवल अजय का वरन् अपने मम्मी- डैडी और सास-ससुर के विरोध का भी सामना करना पड़ा था । अजय से तो कई दिनों तक उसकी बोलचाल ही बंद रही पर वह अपने निर्णय पर अडिग रही क्योंकि उसका मानना था कि अच्छे स्कूल में न केवल पढ़ाई अच्छी होती है वरन व्यक्तित्व का भी विकास होता है । 


वर्ष में दो बार वह पदम और रिया के जन्मदिन के अवसर पर उनसे मिलने अवश्य जाती थी जिससे उन्हें दूरी का एहसास ना हो तथा वे इस बात को समझ सकें कि उनकी मां ने जो किया उनकी भलाई के लिए ही किया है । वह पदम के जन्मदिन पर पदम के साथ रिया के लिए तथा इसी तरह रिया के जन्मदिन पर पदम के लिए भी उपहार ले जाती ।  अच्छे रेस्टोरेंट में उनके मित्रों को ट्रीट देने के साथ रिटर्न गिफ्ट भी देती थी । एक अच्छा समय उनके साथ व्यतीत कर घर वापस आती तो बच्चों के खुशी से भरे चेहरे उसके सारे अपराध बोध को दूर कर देते थे । 


पदम रिया के जाने के पश्चात उषा ने भी उनकी कमी महसूस की थी ।  खाली घर खाने को दौड़ता था अतः खाली समय को भरने के लिए उषा ने स्वयं को पहले से भी अधिक  क्लब ,किटी तथा समाज सेवा में व्यस्त कर लिया था । उसने पढ़ाई के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खोले थे । इस कार्य के लिए उसने विभिन्न स्कूलों के शिक्षकों से भी सहायता मांगी थी । सभी ने उसके इस नेक कार्य की न केवल भूरी भूरी प्रशंसा की वरन अपना योगदान देने का भी प्रयास किया । उन्होंने विद्यार्थियों की योग्यता के अनुसार उन्हें विभिन्न कैटेगरी में विभक्त किया तथा उन्हीं के अनुसार पढ़ाई करवाने की व्यवस्था की ।


शांति को जब इस प्रौढ़ शिक्षा केंद्र के बारे में पता चला तब उसने एक दिन दबी जुबान से कहा, '  मेम साहब, मैंने पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की है आगे भी पढ़ना चाहती हूँ अगर आप आज्ञा दें ।'


उषा को भला क्या आपत्ति हो सकती थी उसकी इच्छा का मान रखते हुए उसने शांति को भी प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में भेजना प्रारंभ कर दिया था और सच उसकी सीखने समझने की क्षमता देखकर शिक्षक भी हैरान थे । 


 उषा ने शांति की योग्यता देखकर उसे पुस्तकें तथा स्टेशनरी से लेकर सारी सुख सुविधाएं प्रदान की ।  उसके हर्ष का पारावार न रहा जब एक वर्ष के अंदर ही शांति ने आठवीं की परीक्षा दी तथा उसमें 60% अंकों से पास हुई थी । इस सफलता ने उसे इतना उत्साहित किया कि उसने आगे पढ़ने की ठान ली । उषा के प्रयासों तथा शांति की मेहनत का ही फल था कि उसने धीरे-धीरे दसवीं, बारहवीं तथा ग्रेजुएशन भी कर लिया ।  यद्यपि इस बीच अजय का तीन चार जगह स्थानांतरण हुआ पर शांति ने अपनी पढ़ाई जारी रखी । ग्रेजुएशन करने के पश्चात अब उसकी इच्छा बी.एड. करने की थी । उसकी इच्छा का मान रखते हुए उषा ने उसका बी .एड.में एडमिशन करा दिया ।


समय के साथ उसकी सामाजिक व्यस्तताएं बढ़ती गईं । अजय चाहते थे जब बच्चे घर आए तब वह अपनी सामाजिक गतिविधियों पर रोक लगा दे । कम से कम उन्हें एहसास तो हो कि उसके माता- पिता उनकी परवाह करते हैं । अपनी इस बात को पूरा करने के लिए वह यथासंभव समय पर घर आने का प्रयास करती पर संयोग ऐसा होता कि जब बच्चे आते उषा की व्यस्तता और बढ़ जाती । कभी उसे किसी कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए जाना होता तो कभी कोई चैरिटेबल संस्था अपने कार्यक्रम उसकी अध्यक्षता में करवाना चाहती तो कभी उसके द्वारा स्थापित  प्रौढ़ शिक्षा के लिए चलाए जा रहे केंद्रों में उसे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने होती तो कभी कोई संस्था अनाथालयों में कपड़े और खाने का वितरण करना चाहती थी । वह चाहती थी कि अपनी जगह किसी अन्य को भेज दें पर संस्था के आयोजक उसी से आने का आग्रह करते  क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वह उनका उद्घाटन करेगी तो उनको ज्यादा प्रचार और प्रसार मिलेगा ।


सच कभी कभी बाहरी जिम्मेदारियां इंसान को इतना विवश कर देती हैं कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता है । कभी-कभी उषा को लगता कि अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के कारण वह घर परिवार पर अधिक ध्यान नहीं दे पा रही है । बाहरी फ्रंट पर वह अवश्य सफल है जबकि बच्चों के प्रति वह अपना दायित्व पूर्णरूपेण नहीं निभा पा रही है  तब वह अपराध बोध से भर उठती थी । 


बच्चों से अधिक सामाजिक प्रतिबद्धता को महत्व देते देखकर भी अजय ने उसको न कभी टोका और ना ही रोका । यहां तक कि बच्चों के सामने भी उसकी व्यस्तता को उत्तरदायित्व का जामा पहनाकर उनको संतुष्ट करने का प्रयास करते रहे क्योंकि उन्हें लगता था थोड़े समय के लिए बच्चे आए हैं उनके सामने ऐसा कुछ ना हो जिससे वे यहां की कटु स्मृतियां लेकर जाएं । 


सच तो यह था कि अजय की समझदारी और सहयोग के कारण ही पदम और रिया के मन में उसके लिए कटुता नहीं आई ।  वैसे वह स्वयं ही ऐसे समय में बच्चों को सॉरी कहते हुए ,उनकी हर इच्छा को पूरा करने के साथ उनके साथ अधिक से अधिक समय गुजारने का प्रयास करती।  संतोष था तो सिर्फ इतना कि समय के साथ पदम और रिया उसकी मजबूरी समझने लगे थे तथा उसका मनोबल बढ़ाने के लिए कभी-कभी वे स्वयं ही उससे जाने का आग्रह करते ।


 धीरे-धीरे उन्हें अपनी मम्मा की उपलब्धियों पर गर्व होने लगा था । समाज के लिए कुछ करने की उसकी जिजीविषा धीरे-धीरे उसका जुनून बनती गई । यही कारण था कि अगर वह किसी ऐसे शहर में जाती जहां प्रौढ़ शिक्षा जैसे केंद्र नहीं होते तब वह इन केंद्रों को खुलवाती ।   अनाथ आश्रम जैसी संस्थाओं को 'महिला क्लब' के माध्यम से सहायता दिलवाती ।  इन सामाजिक गतिविधियों के अतिरिक्त वह महिलाओं के मानसिक विकास के लिए  'महिला दिवस' पर वाद विवाद प्रतियोगिता का खुला आयोजन करवाती जिसमें शहर की कोई भी महिला सम्मिलित हो सकती थी वहीं सावन में 'सावन संध्या 'का आयोजन करके वह महिलाओं के रुझान को सांस्कृतिक कार्यक्रम की ओर मोड़कर उन्हें एक नई पहचान दिलवाने का प्रयास करती । 


आश्चर्य तो उषा को तब होता जब थोड़ी सी ही प्रेक्टिस के पश्चात कुछ महिलाएं इतना अच्छा प्रदर्शन करती कि लगता ही नहीं था कि वे प्रोफेशनल डांसर नहीं हैं । वर्ष में एक बार वह खेल सप्ताह का भी आयोजन करवाती जिसमें महिलाओं के अलावा बच्चों के लिए भी स्पून रेस, कैरम, टेबल टेनिस इत्यादि की प्रतियोगिताएं करवाती । इसके साथ वह हर वर्ष 'महिला क्लब' की ओर से एक जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा का प्रबंध करवाती । बच्चा ऐसा चुनती जो पढ़ने में बुद्धिमान हो पर जिसके माता-पिता उसकी पढ़ाई का निर्वहन ना कर पा रहे हों । इसका पता लगाने के लिए वह सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य से संपर्क स्थापित करती तथा उनके द्वारा चयनित बच्चे की छात्रवृत्ति का प्रबंध करवाती । अगर उस बच्चे का पूरे वर्ष का रिकॉर्ड अच्छा रहता तब दूसरे वर्ष भी उसे ही सहायता प्रदान की जाती अन्यथा दूसरा बच्चा चुना जाता । पहले तो वह यह सामाजिक कार्य सिर्फ नाम के लिए किया करती थी पर धीरे-धीरे यह उसकी आदतों में शुमार होते गए । उसे लगता था कि एक उच्च पदस्थ अधिकारी की पत्नी होने के नाते उसका समाज के प्रति भी कुछ कर्तव्य और दायित्व है । वह अपना दायित्व पूरे तन -मन से निभाने का प्रयत्न करने लगी । अपनी इसी विशेषता के कारण वह सबकी चहेती बनती गई ।


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अजय का हजारीबाग स्थानांतरण हो गया था । नक्सली एरिया था पर जब काम करना है तो कहीं भी स्थानांतरण हो जाना ही पड़ता है । वैसे भी वह सदा सुरक्षाकर्मियों के साथ ही चलते हैं । पदम और रिया की दीपावली की छुट्टियां होने वाली थीं वे आने वाले थे । अजय ने मम्मी -पापा से आग्रह किया था अगर वह भी आ जाए तो इस बार पूरा परिवार मिलकर दीपावली साथ मनाएं । वे मान गए ।


इस बार अजय उन्हें रजरप्पा के प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां छिन्नमस्तिके के मंदिर के साथ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल गया के भी दर्शन करवाना चाहते थे । दरअसल मम्मी- पापा ने  एक बार गया जाकर अपने माता-पिता का पिंडदान करने की चाहत अजय के सम्मुख रखी थी । हमारे समाज में मान्यता है अगर व्यक्ति अपने पितरों का गया जाकर पिंड दान कर दे तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है अतः इस बार अपने मम्मी- पापा की इच्छा का आदर करते हुए अजय ने गया जाने का भी कार्यक्रम बना लिया था ।  आना तो अंजना को भी था पर उसके ससुरजी दिनेशजी को हार्ट अटैक आ गया था जिसकी वजह से वह नहीं आ पा रही थी ।


पदम और रिया आ गए थे । वे भी अपने दादा -दादी के साथ दीपावली मनाने के लिए अत्यंत ही उत्सुक थे ।  वे उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें आना था । पदम और रिया भी उन्हें स्टेशन लेने जाना चाहते थे । 


' ट्रेन सुबह 6:00 बजे आएगी । क्या तुम दोनों जग जाओगे ?' उनकी उत्सुकता देखकर उषा ने पूछा था ।


'जैसे ही आप हमें आवाज देंगी , हम जग जाएंगे ।'दोनों ने एक साथ कहा था ।


छुट्टी के दिन 10, 11 बजे से पहले न जगने वाले पद्म और रिया की उत्सुकता देखने लायक थी ।


' मैं दादी जी से खूब कहानियां सुनूँगी ।' रिया ने अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा ।


' और मैं दादा जी के साथ कैरम और चेस खेलूंगा ।' पद्म भी कहाँ पीछे रहने वाला था ।


' कैरम तो मैं भी खेलूंगी ।'


'और जब हारेगी तो रोयेगी भी,  प्लीज भैया मुझे जिता दो ।' कहकर पदम ने उसे चिढ़ाया था ।


 ' अब मैं नहीं रोऊँगी । अब मैं बड़ी हो गई हूँ । वैसे भी मैं दादा जी को पार्टनर बनाऊंगी । वह  मुझे कभी हारने ही नहीं देंगे ।'


' वाह ! कहानी के लिए दादीजी और कैरम के लिए दादा जी । तू तो दलबदलू है ।'


' दलबदलू कैसे ? दादाजी तुम्हारे हैं मेरे नहीं...।'


' फिर तू हमेशा दादी की पूँछ क्यों बनी रहती है ?'


' दादी मेरी मनपसंद चीजें बना कर देती हैं । कभी डाँटती नहीं हैं ।'


'तो क्या दादाजी डाँटते हैं ? '


' डाँटते तो वह भी नहीं है पर वह दादी जी की तरह मेरी मनपसंद डिश बर्गर , चाऊमीन तो नहीं बना सकते ।' 


' भुक्की कहीं की ...।' कहते हुए पदम ने रिया को एक बार फिर चिढ़ाया था ।


'ममा,  भाई मुझे चिढ़ा  रहा है ।'


'बस चिढ़ गई,  मम्मी की पूँछ ...।'


' पदम अब उसे और मत चिढ़ा । तेरी छोटी बहन है ।  ट्रेन राइट टाइम है । खाना खाकर जल्दी सो जाओ वरना सुबह आँख नहीं खुलेगी ।'उषा ने दोनों को शांत कराते हुए  कहा ।


यद्यपि उसे बच्चों की नोंक-झोंक अच्छी लग रही थी । उसके जीवन में ऐसे खुशनुमा पल बहुत ही कम आ पाते थे किन्तु अगर वे जल्दी सोयेंगे नहीं, तो उठेंगे कैसे ? इसलिए उसे उन्हें रोकने ही पड़ा ।


'ओ.के. ममा खाना दे दीजिए ।'


' हमें सुबह उठा दीजिएगा ।' खाना खाकर पदम और रिया ने सोने जाते हुए कहा । 


' ठीक है, अब तुम दोनों सो जाओ ।'


 रात्रि 4:00 बजे फोन की बजती घंटी ने उन्हें नींद से जगा दिया। अजय का काम ही ऐसा है कि 24 घंटे उसे वर्कप्लेस पर रहना होता है अतः फोन ना उठाने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता । रिसीवर उठाकर कान से लगाया ही था कि उधर से आती आवाज सुनकर वह अवाक रह गया…


' सर्वेश उस ट्रेन से मेरे मम्मी- पापा भी आ रहे हैं ।  ए.सी -2 में उनका रिजर्वेशन है । उनका बर्थ नंबर 7 और 9 है । प्लीज उनको उतारकर सेफ जगह पहुंचा देना । तब तक मैं रिलीफ टीम के साथ पहुंचता हूँ ।'


 क्या ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है ?'  उषा ने चिंतित स्वर में पूछा ।


' लातेहार से 20 किलोमीटर दूरी पर नक्सलियों ने ट्रेन में विस्फोट कर दिया है । लातेहार के डी.एम .ने हमसे मदद मांगी है । हम अपनी रेस्क्यू टीम लेकर जा रहे हैं । ' कहते हुए अजय ने फोन मिलाना प्रारंभ कर दिया तथा आवश्यक निर्देश देने लगे ।


'  हे भगवान !मम्मी जी और पापा जी ठीक प्रकार से हों...।' अजय की बात सुनकर उषा बुदबुदा उठी थी ।


अत्यावश्यक स्टेप लेने के पश्चात जब तक अजय तैयार हुए एस.पी. विनय मित्रा अपनी टीम के साथ आ गए । हजारीबाग से लातेहार 137 किलोमीटर दूरी पर है । ढाई घंटे से पहले उनका पहुँचना नामुमकिन था ।


अधिक जानकारी के लिए उषा ने टी.वी खोल लिया । घटना का प्रसारण हो रहा था... नक्सलियों द्वारा किये इस ब्लास्ट से लगभग चार डिब्बे तबाह हो गए हैं। लगभग 400 लोगों के मारे जाने की खबर आ रही थी...सैकड़ों लोग घायल हैं...  मदद तो अभी तक नहीं पहुंच पाई है । स्थानीय लोग ही घायलों को निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा रहे हैं । जिनके पास साधन हैं वे  अपनी गाड़ी से घायलों को अस्पताल में भर्ती करवा रहे हैं । तभी कैमरा घूमा... एक आदमी एक महिला के हाथ से सोने के कंगन निकाल रहा था इसी के साथ एंकर की आवाज गूँजी…'देखिए कुछ लोग तो सहायता कर रहे हैं वहीं कुछ अराजकतत्व घायलों को लूटने से भी बाज नहीं आ रहे हैं ।'


एक नक्सली संगठन ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी । उषा को जहां घायलों को लूटने वाला दृश्य दंशित कर रहा था वहीं वह यह नहीं समझ  पा रही थी कि आखिर यह नक्सली चाहते क्या हैं ? इनको तो गरीबों का मसीहा कहा जाता है । इनकी उत्पत्ति ग़रीबों, शोषकों ,आम जनों को न्याय दिलवाने के लिए हुई थी पर अब ऐसे संगठन उन्हें न्याय दिलवाने की जगह उनके ही कंधे पर बंदूक रखकर चलाने लगे हैं । इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ  दहशत फैलाना है । इसीलिए जगह- जगह मार-काट, विस्फोटों के द्वारा कभी सी.आर.पी.एफ के जवानों को उड़ाने की घटना तो कभी ट्रेन में विस्फोट... पीठ पीछे से वार करना, लड़ाई लड़ना नहीं वरन कायरता है । ऐसे लोग समाज के दुश्मन हैं तभी ऐसा विध्वंसकारी कार्य करते हुए यह लोग यह भी नहीं सोच पाते हैं कि ऐसा करके वे अपने देश की संपत्ति को नष्ट कर देश के विकास को अवरुद्ध कर रहे हैं ।


' इस विस्फोट में एस 19, 10 तथा 11 बोगियां तो नष्ट हो ही गई है बी 1 तथा ए.सी 2 की बोगियां भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं ।' सुनकर उषा को शॉक लगा ।


 ए. सी.-2 में ही तो मम्मी पापा का रिजर्वेशन है । कहीं वे तो... सोचकर वह सिहर उठी ।


 उसने तुरंत अजय को फोन मिलाया वह नॉट रिचेबिल बता रहा था । कई बार फोन किया पर बार-बार वही आवाज सुनकर वह परेशान हो उठी । अंततः उसने एस.पी विनय मित्रा को फोन मिलाया ।  रिंग जा रही थी सुनकर वह बुदबुदा उठी...मित्रा फोन उठाओ ।


' हेलो ...।' सुनकर वह पूछ उठी, '  मित्रा भाई साहब अजय कहाँ है ? उनका फोन कब से मिला रही हूँ पर अनरिचेबिल  रहा है  । अजय के मम्मी -पापा का क्या पता चला ? वह भी इसी ट्रेन से आ रहे हैं । ए. सी 2 में रिजर्वेशन है- बर्थ नंबर 7 और 9 ।'


' भाभी जी, अभी हम पहुंचे नहीं हैं । पहुंचने के पश्चात ही पता चल पाएगा । सर दूसरी गाड़ी में है । मैं उनसे कहूंगा कि वह आपसे बात कर लें  पर आप चिंता ना करें सब ठीक ही होगा ।' 


अब सिवाय इंतजार के अन्य कोई उपाय नहीं था । उसकी आवाज सुनकर बगल के कमरे में सोये पदम और रिया  भी उठ कर आ गए । उनके आते ही उसने टी.वी बंद कर दिया । उषा उन्हें इस घटना के बारे में बताकर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी । उन्होंने अजय के बारे में पूछा तो कह दिया... तुम्हारे पापा को अति आवश्यक काम आ गया था जिसकी वजह से उन्हें जाना पड़ा ।


' माँ कब तक आएंगे डैडी ?' पद्म ने पूछा ।


'जब काम समाप्त हो जाएगा तब आ जाएंगे ।'


' ममा, डैडी को रात में ऐसा क्या काम आ  गया कि उन्हें जाना पड़ा...आप उन्हें रोकती क्यों नहीं हो ?' रिया ने प्रश्न किया था ।


' बेटा उनका काम ही ऐसा है, मैं उन्हें कैसे रोक सकती हूँ ।'


' फिर दादा-दादीजी को लेने कौन जाएगा ?' रिया के चेहरे पर चिंता झलक आई थी ।


 ' तब तक आपके डैडी आ जाएंगे । अगर नहीं आ पाए तो हम सब लेने चलेंगे । ट्रेन लेट हो गई है । आप दोनों आराम से सो जाओ अभी रात बहुत बाकी है ।'


' क्या ट्रेन लेट हो गई है ? आपको कैसे पता चला?' पद्म ने पूछा ।


'  अभी थोड़ी देर पूर्व इंक्वायरी से पता लगाया था । ' उषा ने  उन्हें संतुष्ट करने के प्रयास में झूठ का सहारा लिया ।


' ओ.के . ममा पर आप भी चलो मुझे बहुत डर लग रहा है ।' रिया ने कहा था ।


रिया का आग्रह देखकर वह उनके साथ चली गई । रिया उससे चिपक कर सो गई थी पर उसकी आंखों में चिंता के कारण नींद नहीं थी । उन्हें सोते देखकर अंततः वह धीरे से उठी और फिर जाकर टी.वी. ऑन कर लिया ।  मृतकों की संख्या और बढ़ गई थी । हेल्पलाइन नंबर पर कांटेक्ट करने के लिए कहने के साथ ही साथ सदा की तरह सरकारी मशीनरी के ढुलमुलपन  को कोसा जा रहा था । न जाने क्यों उसे लगने लगा था कि सरकारी मशीनरी को कोसना मीडिया की आदत बनती जा रही है । क्या मीडिया को यह नहीं पता है कि सरकारी अधिकारी कैसे,  किन-किन हालतों में सीमित साधनों के संग अपना कर्तव्य निभाने का प्रयास करता है ?  अगर ऐसा न होता तो लातेहार के डी.एम . सहायता के लिए अजय को फोन नहीं करते और अजय अपनी टीम को लेकर तुरंत जाते । उसके बाद भी सरकारी मशीनरी पर ढुलमुलपन  का आरोप और फिर मीडिया भी अपना कर्तव्य ठीक से कहां निभा पाता है !! मीडिया का कर्तव्य सिर्फ बुराई उजागर करना ही नहीं, उसका निवारण करना भी है । हाल की घटना ही देखें मीडिया ने लूटने की घटना तो दिखाई पर क्या उसने उस आदमी को पकड़ने या उस महिला को उसका सामान लौटाने में तत्परता दिखाई । मीडिया कभी किसी को पीटते हुए दिखायेगा पर पीटने वाले को रोकते हुए नहीं । इन वारदातों के लिए वह बार-बार पुलिस या समाज को दोषी ठहराता है पर स्वयं को नहीं । यह कैसा दोहरा मापदंड है !!


अभी अभी सूचना मिली है कि हजारीबाग के डीएम अजय विश्वास के पिता इस हादसे में मारे जा चुके हैं तथा उनकी मां गंभीर रूप से घायल है । उन्हें अभी -अभी एक एंबुलेंस द्वारा रांची मेडिकल कॉलेज भेजा जा रहा है   डी.एम .साहब अपने ही दुख में इतना परेशान है कि उन्हें और किसी की चिंता ही नहीं रही है ।


' नहीं... ऐसा नहीं हो सकता। ' सुनकर उषा चीख उठी थी । 


उसने एक बार फिर अजय को फोन मिलाने का प्रयास किया पर उसने फोन ही नहीं उठाया शायद वह यह दुखद समाचार उसे फोन द्वारा नहीं देना चाहता था  । शायद अजय को पता नहीं था कि उसे मीडिया के द्वारा सब कुछ पता चल चुका है पर मीडिया का ऐसा आरोप सुनकर उषा अवाक रह गई थी । क्या डी.एम . इंसान नहीं है ? क्या उसकी भावनाएं संवेदनाएं मर चुकी है ? क्या उसे शोक मनाने का अधिकार नहीं है ?


 उसने टी.वी . बंद कर दिया था । अब बाकी ही क्या बचा था । अब तो बस अजय का ही इंतजार था । वह समझ नहीं पा रही थी कि वह पदम और रिया को क्या कहकर सांत्वना देगी।  वे तो अपने दादा -दादीजी के साथ दीपावली मनाना चाह रहे थे । टी.वी. के द्वारा सभी को इस मनहूस खबर का पता लग चुका था । कोई उससे मिलने आ रहा था तो कोई फोन द्वारा समाचार ले रहा था । वह सब को यही कह रही थी कि उसे भी इतना ही पता है जितना उन्हें । यद्यपि उसने घर के नौकरों को इस घटना के बारे में बच्चों को बताने से मना कर दिया था पर वह इतने भी छोटे नहीं थे । कि हवा का रुख भांप न सकें ।


' मम्मा क्या हुआ ? आप परेशान लग रही हैं ।'  सुबह अपने कमरे से निकलते ही पदम ने उससे पूछा ।


' कुछ नहीं बेटा ...।'


' कुछ तो हुआ है । आप हमें बता नहीं रही हैं ।  डैडी भी अभी तक नहीं आए हैं । क्या दादा -दादीजी को लेने नहीं जाना है ?'


' बेटा, तुम्हारे दादा जी अब कभी नहीं आएंगे ।'


' क्यों ममा ?' रिया ने पूछा था ।


' बेटा आप के दादाजी की डेथ ट्रेन एक्सीडेंट में हो गई है तथा दादी जी अस्पताल में एडमिट हैं ।' कहकर उषा ने  उन दोनों को आगोश में भर लिया  । आखिर वह उनसे कब तक झूठ बोलती !! कम से कम बाद में किसी अन्य के द्वारा सच पता चलने पर वे उस पर झूठ बोलने का आरोप तो नहीं लगाएंगे ।


' नहीं .. आप झूठ बोल रही हैं ।' पद्म ने अविश्वास से उसकी ओर देखते हुए कहा ।


'काश यह झूठ ही होता ।' कहकर उषा बिलख पड़ी थी । उसके साथ भी बच्चे भी रोने लगे ।


शीला मित्रा स्वयं खाना लेकर आईं पर बच्चों ने भी खाने से इंकार कर दिया । शाम को जब अजय में घर में कदम रखा तो उनकी हालत बेहद नाजुक थी । वह लगभग टूट चुके थे । उसे देखते ही  अजय ने कहा ,' उषा,  मैंने पापा को खो दिया । मैंने तो उनको मां छिन्नमस्तिके के दर्शन के लिए बुलाया था पर मां ने ऐसा क्यों किया ?  मैं तो उनकी पिंडदान की इच्छा भी पूरी नहीं कर पाया । उनका पूरा शरीर जलकर राख हो गया । मैं उनके सामान से ही उनकी शिनाख्त कर पाया । मैं कितना अभागा हूँ उषा कि अपने पिता को मुखाग्नि भी नहीं दे पाया । ट्रेन की उनका अंतिम क्रिया स्थल बन गई ।  मैं कुछ नहीं कर पाया ...मैं कुछ नहीं कर पाया ।' कहकर अजय बिलख पड़े  ।


 '  भाग्य के  लिखे को कोई नहीं मिटा सकता...वस्तुस्थिति को हमें स्वीकार करना होगा ।  गनीमत है मम्मी जी बच गईं ।' स्वयं को नियंत्रित कर उसने अजय के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था ।


'  मम्मी जी के बारे में तुम्हें  कैसे पता चला ?' अजय ने स्वयं को संभालते हुए पूछा ।


' टी. वी न्यूज़ से .. ।'


'ओह!...'


' मम्मी जी को ज्यादा चोटें तो नहीं आईं ।'


'  चोट तो अधिक नहीं आई हैं । जब विस्फोट हुआ था तब वह बाथरूम में थीं अतः बच गईं पर अभी भी इस दुर्घटना के कारण मेंटल शॉक की स्टेट में हैं । वह आई.सी.यू .में भर्ती हैं ।'


' मम्मीजी को कुछ नहीं होगा ।  जो चला गया उसे लौटा कर तो नहीं लाया जा सकता पर जो बच गया है उसे कुशल घर ले आयेन । चले मम्मी जी के पास ।' उसने अजय की ओर भरी आंखों से देखते हुए कहा ।


' पर बच्चे . .।'


' वे भी चलेंगे । वे भी अपनी दादी जी से मिलना चाहते हैं ।'


'क्या तुमने उन्हें यह सब बता दिया ।'


' बताना ही पड़ा वरना उन्हें किसी अन्य से पता चलता तो पता नहीं कैसे रियेक्ट करते । '


' कहाँ हैं वे दोनों ?' अजय ने संयत होकर पूछा ।


' वे कुछ कह-पी नहीं रहे थे । शीला मित्रा उन्हें यह कहकर अपने घर ले गईं हैं कि शायद वे उनकी बेटी के साथ कुछ खा लें । '


अभी बात कर ही रहे  कि अजय के फोन की घंटी बजी उठी .. .फोन उठाया तो अंजना थी, ' भाई , अभी -अभी मैंने टी.वी पर यह खबर सुनी,  क्या यह सच है ?'


'  हां बहन,  सच है, मैं कुछ नहीं कर पाया । ' कहकर अजय सुबुक पड़े ।


' मम्मी जी...।'


' उन्हें मेडिकल कॉलेज में एडमिट करा कर आया हूँ । अब  बच्चों को लेकर जा रहा हूँ ।'


' भइया आना तो मैं भी चाहती थी पर क्या करूं पापा जी की तबीयत ठीक नहीं है ।'  कहते हुए अंजना रो पड़ी थी । 


' रो मत बहन । हमें स्थिति को स्वीकारना ही होगा । तुम पापा जी की ओर ध्यान दो । अपने पापा को तो हम खो चुके हैं उन्हें मत खोने देना ।'


 उस बार जैसी मनहूस दिवाली कभी नहीं मनाई गई । तेरहवीं के दिन सारे कर्मकांड किए गए । अंजना और मयंक सिर्फ एक दिन के लिए ही आ पाये । अफसोस था तो बस इतना कि माँ जी उस दिन तक भी अस्पताल से घर नहीं आ पाई थीं ।


पदम और रिया की छुट्टियां समाप्त हो गई थीं । वे भी  लौट गए थे । मम्मी जी को अस्पताल से घर आने में लगभग 20 दिन  लग गये । अभी भी वे शॉक की स्थिति में ही थीं । वह न किसी से बात करना चाहतीं और न ही खाना खाना चाहतीं । उषा और अजय दोनों मिलकर भी उनकी चुप्पी नहीं तोड़ पा रहे थे । लगभग एक हफ्ते पश्चात उन्होंने कहा , ' मुझे अपने घर जाना है ।'


अजय ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया था पर वह नहीं मानी । अंततः अजय और उषा उन्हें छोड़ने गये । घर पहुँचने के दूसरे दिन से ही उन्होंने स्कूल ज्वाइन कर लिया । धीरे धीरे वह सहज होने लगीं ।  अजय तो कुछ दिनों पश्चात लौट गए थे पर मम्मी जी के मना करने के बावजूद भी उषा रुक गई थी । उसे अपने पास रुका देखकर वह लगभग रोज उससे कहतीं, ' तू जा बेटी,  अजय अकेला होगा । मैं ठीक हूँ । अब तो मैंने स्कूल भी ज्वाइन कर लिया है । कुछ भी होगा तो फोन तो है  ही ।'


 अंततः उनकी बात मान कर अपनेबमम्मा- डैडी को उनका ध्यान रखने के लिए कहकर वह लौट आई थी ।  कहते हैं प्रलय आये या झंझावात , जीवन को चलना है चलता ही जाता है ।


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अपने बच्चों को सफलता की ऊंचाइयां छूते देखकर न केवल उसे वरन अब अजय को भी उसके निर्णय पर गर्व का अहसास होने लगा था । वह भी महसूस करने लगे थे कि कभी-कभी बच्चों की भलाई के लिए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं । यह फैसला भी उनमें से ही एक था । आज रिया और पदम अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाए तो उसके निर्णय के कारण ही वरना बार-बार स्थानांतरण जहां उनकी शिक्षा को बाधित करता वहीं उनके व्यक्तित्व के विकास में भी बाधा उत्पन्न करता ।


शांति ने भी बी.एड. कर लिया था ।  जैसे ही शांति को सूचना मिली कि उसे केंद्रीय विद्यालय में नौकरी मिल गई है वह मिठाई लेकर अपने पिता गोपाल के संग उसका आशीर्वाद लेने आई । 


उषा ने खुशखबरी सुनकर उसका मुँह मीठा कराते हुए कहा,' शांति तुम्हारी सफलता पर मुझे बेहद खुशी हो रही है ।  बस यही कामना है कि तुम लगन और परिश्रम से अनेकों विद्यार्थियों के जीवन को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करती रहो ।' 


' गोपाल तुम कब आये ।' उषा ने गोयल।की ओर मुखतिब होते हुए कहा ।


' कल ही...और आते ही खुशखबरी मिल गई । मेम साहब,  यह सब आपके कारण ही हो पाया है ।'  गोपाल ने प्रसन्नता से कहा । 


वह अपनी बेटी की सफलता पर अत्यंत ही खुश  था । शांति की सारी सफलता का श्रेय उसको देते हुए वह उसके सामने नतमस्तक था । 


 ' गोपाल मैंने सिर्फ शांति की चाहत को पंख दिए थे पर पूर्ण तो उसने स्वयं किया । अगर वह प्रयास न करती, परिश्रम न करती तो कोई कुछ नहीं कर पाता ।' उषा ने गोपाल से कहा था ।


'  आप ठीक कह रही हैं मेम साहब । आपने उसे पंख दिए जिससे उसने उड़ना सीख लिया ।  दुख तो इस बात का है कि पिता होते हुए भी मैं पिता का फर्ज ठीक से निभा नहीं पाया । अपनी अज्ञानता वश मैंने उसके पंख असमय ही काट दिए थे । अगर वह आप के संपर्क में नहीं आती तो गंदी नाली के कीड़े की तरह कहीं सड़ रही होती ।'


' पर ऐसा हुआ तो नहीं न । गोपाल अब यह सोचकर खुशी मनाओ कि आज तुम्हारी बिटिया  लाखों करोड़ों के जीवन में प्रकाश लाने योग्य हो गई है  । मुझे खुशी होगी यदि इसके जीवन में भी प्रकाश की किरण प्रवेश कर पाए ।'


' मैं समझा नहीं मेम साहब .. आप कहना क्या चाहतीं हैं ?' 


'गोपाल अभी शांति की उम्र ही क्या है । पुनर्विवाह अब अपराध नहीं रहा है । कोई अच्छा सा लड़का देखकर, उसका विवाह कर एक बार फिर से इसका घर बसा सको तो मुझे लगेगा । मैं सोचूँगी कि मैं अपने मिशन में कामयाब हो गई । उषा की बात सुनकर शांति के चेहरे पर चमक आई थी ।


'मेम साहब अगर शांति चाहेगी तो मैं उसे  रोकूँगा नहीं ।' गोपाल ने शांति की ओर देखते हुए कहा था ।  


अपने पिता को अपनी ओर देखते देखकर शांति ने सिर नीचा कर लिया था ...उषा को लग रहा था मानो वह अपनी मौन स्वीकृति दे रही है । आखिर हर सांसारिक आदमी अपना घर परिवार चाहता है ।


'  मुझे तुमसे यही उम्मीद थी ।' गोपाल का उत्तर सुनकर तथा शांति के मनोभावों को पढ़कर  उषा ने खुशी से कहा था । 


 शांति ने  उसका आशीर्वाद लेकर स्कूल जॉइन कर लिया था एक जिंदगी को अंधेरों से रोशनी की ओर बढ़ते देख वह अत्यंत ही प्रसन्न थी ।  अगर हिम्मत है लगन है तो इंसान कमल की तरह दलदल में भी खिलकर अपनी पहचान बना सकता है ।


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 पदम ने मैट्रिक करने के पश्चात इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा जाने की बात कही तब उषा चौंक गई थी । एकाएक उसे महसूस हुआ कि अब वह बड़ा हो  गया है । आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि उसने कभी बच्चों का रुझान जानने का प्रयत्न क्यों नहीं किया  !! वह चाहती थी कि पदम भी अपने डैडी की तरह सिविल सर्विस को अपना कैरियर बनाए । अपनी इस सोच के कारण उसने पदम से अपना विचार त्याग कर आई.ए.एस . के लिए तैयारी करने के लिए कहा पर वह नहीं माना ।


 उसे प्रारंभ से ही कंप्यूटर से खेलने का शौक था । वह उसे ही अपना कैरियर बनाना चाहता था । उसे लगता था कि आज सॉफ्टवेयर इंजीनियर की ज्यादा डिमांड है । मन मार कर उसने उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा जाने की इजाजत दे दी । खुशी इस बात की थी कि पदम न केवल अपने निश्चय पर अडिग रहा वरन् उसे आई.आई.टी. दिल्ली में प्रवेश भी मिल गया ।


आई.आई.टी. करते-करते प्लेसमेंट द्वारा उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब मिल गया । लंदन में कार्यरत पदम आज करोड़ों में कमा रहा है । उषा के मन मस्तिष्क पर प्रशासनिक सेवाओं से प्राप्त सुविधाओं का इतना अधिक असर था कि उसने पदम से ढाई वर्ष छोटी बेटी रिया से अपनी इच्छा पूरी करनी चाही , तब उसने भी भाई की बात दोहरा दी । वह भी भाई के नक्शे कदम पर चलना चाह रही थी ।  बी.ई. करने के पश्चात वह एम.बी.ए. करने कलकत्ता चली गई ।


कुछ चुभने का अहसास होते ही उषा के विचारों पर ब्रेक लग गया । उसने उधर निगाह डाली जहाँ चुभन हो रही थी । उसने पाया कि उसकी अपर आर्म पर बैठा मच्छर उसे चुभन का एहसास करा रहा है । उसने आव देखा न ताव अपना दूसरा हाथ उठाकर मच्छर पर मारा । जरा सी देर में वह निर्जीव होकर उसकी हथेली पर आ गिरा । इसे भी आज उसके हाथों ही मरना था शायद ठीक उसी तरह जैसे वह मन ही मन मर रही है । 


घड़ी की तरफ देखा 3:00 बजा रही थी । अजय अभी तक नहीं आए थे । उषा पलंग से उठकर कमरे में पड़े सोफे पर बैठ गई । मन एक बार फिर अनियंत्रित घोड़े की तरह भागने लगा था…


 पदम को नौकरी मिलते ही उषा उसके विवाह के लिए लड़की की तलाश कर ही रही थी कि उसने अपने साथ काम करने वाली लड़की डेनियल से विवाह करने का फैसला सुनाया ही नहीं ,विवाह भी कर लिया ।  


 पद्म के इस निर्णय ने उसके अहम को चोट पहुंचाई थी । प्रतिक्रिया स्वरूप उसने पदम से कभी मुँह  न दिखाने की बात कह दी । तब अजय ने प्रतिरोध करते हुए कहा था,' हमने भी तो प्रेम विवाह किया था फिर विरोध क्यों ? '


' हमने विवाह किया था पर माता-पिता की सहमति से... यह नहीं की पहले विवाह कर लिया फिर सूचना दी ।' उषा ने क्रोध में उत्तर दिया ।


' तुम्हारी बात ठीक है पर जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता । पदम के फैसले को स्वीकार करने में ही हमारी भलाई है ।'


'  तुम्हें जो करना हो करो पर मैं इस विवाह को स्वीकार नहीं कर पाऊंगी ।'


 वह तो अजय की समझदारी थी कि उसने माँ बेटे के अमूल्य रिश्ते को दरकने से बचा लिया था ।  उसके विरोध के बावजूद अजय ने पदम और डेनियल को भारत आने का निमंत्रण दे दिया तथा एक छोटी सी पार्टी देखकर उनके रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी थी । उस पार्टी में भारतीय परंपरागत ड्रेस भारी काम वाले क्रीम कलर के लहंगे में डेनियल को देखकर उसका सारा विरोध ताश के पत्तों की तरह डह गया था । उस दिन वह परी से कम नहीं लग रही थी । उससे भी अधिक उसका  हाथ जोड़कर अभिवादन करना अतिथियों को भा गया था । सभी उसकी प्रशंसा करते हुए नहीं थक  रह थे ।


 रिया को डेनियल के रूप में सखी मिल गई थी । डेनियल थी तो अंग्रेज पर उसे भारतीय ड्रेस पसंद थी । अपनी बार्ड रोब को वह तरह-तरह की भारतीय ड्रेसों से सजाना चाहती थी । इस कार्य में रिया ने उसकी सहायता की । उन दोनों को साथ-साथ घूमते, शॉपिंग करते देखकर उसका दिल जुड़ा  गया था । भावी पीढ़ी में यह प्रेम भाव होना सुखद भविष्य की तस्वीर पेश कर रहा था । मन ही मन उसने डेनियल को बहू रूप में स्वीकार कर लिया था ।


मम्मी जी इस अवसर पर नहीं आई थीं ।  दरअसल उस घटना के पश्चात वह यात्रा नहीं करना चाहती थीं शायद ट्रेन की यात्रा उन्हें पापा की याद दिला आ जाती थी । अतः वह और अजय पदम और डेनियल को उनके पास आशीर्वाद हेतु लेकर गए ।


 मम्मी जी उन्हें देखकर बहुत खुश हुई  । जब डेनियल उनके चरण स्पर्श करने के लिए झुकी तब उन्होंने उसे रोकते हुए कहा, '  बेटा तेरी जगह मेरे हृदय में है ...और पदम तू दादी की एक बात सदा याद रखना कभी इसको कोई दुख न होने देना । फूल सी नाजुक है मेरी बच्ची ।'


' यस दादी ,आपकी आज्ञा शिरोधार्य है । आप हम दोनों को अपना आशीर्वाद दीजिए ।'  कहकर वह उनके चरणों में झुका ।


' बेटा,  मेरा आशीर्वाद तो सदा तुम्हारे साथ है । '


' मुझे पता था आपका आशीर्वाद मुझे और डेनियल को अवश्य मिलेगा ।' गदगद स्वर में पदम ने कहा ।


' क्यों नहीं मिलता । अब मेरे जीवन में बचा ही क्या है  सिर्फ तुम सबके ?  सदा खुश रहो मेरे बच्चों ।' कहते हुए माँ जी ने अपना जड़ाऊ सेट निकालकर डेनियल को पकड़ाया था ।


दादी की बात सुनकर डेनियल ने उषा की तरफ देखा था । डेनियल को उसकी ओर देखते देखकर मम्मी जी ने उसे प्यार भरी डांट लगाते हुए कहा , ' अपनी सास की ओर क्या देख रही है   मैं तुझे दे रही हूँ उसे नहीं ।'


मम्मी जी ने सबकी पसंद का भोजन बनवाया था । रात्रि के भोजन के पश्चात उषा ने मम्मी जी से आग्रह करते हुए कहा,' मम्मी जी अब आपने अवकाश प्राप्त कर लिया है, अब आप हमारे साथ चलकर रहिए ।'


' नहीं बेटा, मुझे यही रहने दे  ।  कुछ बच्चे अभी भी मुझसे पढ़ने आते हैं । उनको पढ़ा कर मुझे संतुष्टि मिलती है । जब यह कार्य नहीं कर पाऊंगी तब तुम्हारे पास ही आऊंगी ।' कहकर उन्होंने अपनी नम हो आई आँखों को पोंछा था ।


मम्मी जी की  जिजीविषा उषा को हतप्रभ कर रही थी वरना इस उम्र में लोग अपने बच्चों पर आश्रित होने लगते हैं । एक हफ्ते उनके पास रहकर वे लौट आये थे । उनको विदा करते हुए मम्मी जी की आँखे भर आईं थीं ।


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इसी बीच अजय का प्रिंसिपल सेक्रेटरी पद पर रांची स्थानांतरण हो गया । ' किंग ऑफ स्मॉल किंगडम'  वाला दर्जा उनसे छिन गया था ।  अब उषा भी दूसरी लाइफ में है स्वयं को समायोजित करने का प्रयास करने लगी । अपनी रचनात्मकता तथा कार्यशैली से उसने 'महिला क्लब ' में अपना दबदबा बना लिया था तथा सभी एक्टिविटीज में खुलकर भाग लेने लगी थी । 


वैसे भी जगह-जगह खोलें प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों के कारण उसकी ख्याति पहले ही' महिला क्लब ' की अध्यक्षा प्रभा मेनन तक पहुंच चुकी थी ।  वह उससे इतना प्रभावित थीं कि उससे सलाह लिए बिना वह कोई कार्य नहीं करना चाहती थीं ।  सेक्रेटरी ममता को भी उन्होंने स्पष्ट निर्देश दे दिया था कि वह उससे सलाह लेकर ही किसी कार्यक्रम का निरूपण करें । अनाथ आश्रम में दान देने के साथ अपने क्लब के माध्यम से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खोलने का अपना विचार उसने अध्यक्षा के सम्मुख रखा तो उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था ।


 रिया को भी अंततः कैंपस द्वारा एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छा ऑफर मिल गया । उसकी पोस्टिंग बेंगलुरु में हुई थी । उषा की इच्छा तो पूरी नहीं हो पाई परंतु कदम दर कदम बच्चों को अपनी मंजिल प्राप्त करते देखकर उषा की खुशी का ठिकाना न था । बच्चों को पल-पल बढ़ते देखना माता- पिता को न केवल सुकून पहुँचाता है वरन आत्मिक संतोष भी देता है । बच्चे माता-पिता का गुरूर होते हैं । हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके बच्चे उनसे अधिक नाम कमाए और एक दिन ऐसा आए कि बच्चे उनके नाम से नहीं वरन वह बच्चों के नाम से जाने पहचाने जाएं ।


रिया के ज्वाइन करते ही उषा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी ।  रिया से जब इस संदर्भ में बात की तो उसने कहा , ' मम्मा मुझे अभी थोड़ा सेट तो हो लेने  दीजिए ।'


उषा को रिया का कहना भी ठीक लगा । दो वर्ष बीतने पर भी जब उसका यही उत्तर रहा तो उसने चेतावनी के स्वर में कहा, '  अब मैं तुम्हें और वक्त नहीं दे सकती ।  तुम्हें विवाह के लिए सहमति देनी ही होगी ।  दो वर्ष हो गए हैं तुम्हें जॉब करते हुए , समय से बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्ति मिल जाए यह हर एक माता-पिता की इच्छा होती है ।'


बेटा -बेटी आई.ए.एस .नहीं बन पाए तो सोचा  चलो दामाद ही  इस प्रोफेशन का चुन लें, कम से कम उसकी इच्छा तो पूरी हो जाएगी ।  दीपावली पर रिया का आने का कार्यक्रम था । एक लड़का  उषा की नजरों में था ।  वह अजय के अभिन्न मित्र देवेंद्र जो रांची में डिस्ट्रिक्ट जज थे, का पुत्र सुजय था । वह आई.पी.एस .था । उसे यू.पी . काडर मिला था ।  वह भी दीपावली पर घर आ रहा था । उषा  सोच रही थी कि इस बार जब रिया आएगी तब वह दोनों को मिलाकर उनका विवाह पक्का कर देगी ।


 दीपावली पर रिया आई । उसके आत्मविश्वास ने उसके चेहरे का लावण्य और बढ़ा दिया था । दीपावली के पश्चात उषा  सुजय से मिलने का कार्यक्रम बना ही रही थी कि  दीपावली के दूसरे दिन रिया ने उससे कहा, '  मम्मा, कल मैं अपने मित्र को बुला लूँ वह मेरा कलीग है तथा रांची का ही रहने वाला है ।'


' अवश्य इसमें पूछने की क्या बात है । शाम 4:00 बजे तक आ जाए तो अच्छा है ।  शाम 6:00 बजे देवेंद्र भाईसाहब से मिलने जाना है । उनका लड़का सुजय आया हुआ है ।  बहुत ही सुदर्शन लड़का है । सोचा तुमसे मुलाकात करा दूँ । वह आई.पी.एस . है ।


' ठीक है ममा मैं उसको फोन कर देती हूँ ।'  रिया ने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा ।


ठीक 4:00 बजे  एक गाड़ी ने उनके बंगले में प्रवेश किया । उससे गौर वर्ण, छह फीट का एक लड़का उतरा । रिया उसको रिसीव करने पहुँच गई । उसे लेकर वह अंदर आई तथा उसका, उससे परिचय करवाते हुए उसने कहा, '  पल्लव, मीट माय ममा डैड और ममा डैड यह है पल्लव  मेरा कलीग । हम एक ही कंपनी में काम करते हैं । यह ब्रांच मैनेजर है । इसके पिता हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट हैं ।' 


' आओ बेटा, बैठो .. रिया तुम्हारी काफी प्रशंसा कर रही थी ।' अजय ने उसका स्वागत करते हुए कहा ।


 पल्लव ने रिया  की तरफ देखा । उसने इंकार में सिर हिलाया  ही था कि उषा ने पूछा, ' तुम्हारी एजुकेशन कहाँ हुई है ।'


' जी रांची में.. ।'


' बी.टेक्. कहाँ से किया है ?'


 ' बी.आई.टी. मेसरा से ।'


' उषा, प्रश्न पर प्रश्न ही पूछती जाओगी या चाय नाश्ते  का भी प्रबंध करोगी ।'


' बस अभी...।'  कहकर उषा किचन में चली गई ।


 डैडी और पल्लव के बीच पॉलिटिक्स से लेकर सरकारी और प्राइवेट कंपनी में वर्क कल्चर पर बातें होने लगीं ।  इसी बीच ममा श्यामू के साथ नाश्ता लेकर आईं । समोसे के साथ प्याज के पकोड़े, मिठाई इत्यादि ।  सब हल्के-फुल्के माहौल में नाश्ता कर रहे थे पर रिया तनाव में लग रही थी । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी बात वह कैसे मम्मा डैडी के सम्मुख रखे ।


' आंटी जी इतने अच्छे नाश्ते के लिए शुक्रिया । अंकल जी अब मैं इजाजत चाहूँगा ।' पल्लव ने उठते हुए कहा ।


'  बेटा आते रहना ।' डैडी ने उससे कहा था ।


रिया पल्लव को कार तक छोड़ने गई ।


' तुमने मेरे और अपने संबंधों के बारे में अपने ममा- डैडी को बताया ।' पल्लव  ने रिया से पूछा ।


' अभी नहीं ...समझ नहीं पा रही हूँ कि कैसे कहूं ?'


'  वक्त कम है । कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए । तुम ही कह रही थीं कि तुम्हारी मम्मा तुम्हारे विवाह की बात कर रही हैं ।'


'  हां 6:00 बजे का अपॉइंटमेंट है  । लड़का आई.पी.एस. है ।' रिया ने उसे चढ़ाते हुए कहा ।


'  कहीं यह जनाब मेरा पत्ता ही साफ ना कर दें ।'


'  शायद...।' रिया की आंखों में एक नटखट चमक थी । 


' रिया अब मुझे और परेशान मत करो । प्लीज , तुम अपने मम्मी डैडी से जल्द से जल्द बात करो ।'


' तुमने बात की ।'


' अभी तो नहीं पर आज अवश्य ही करूँगा ।'


' मतलब दो दो जगह बिजली चमकेगी ।'


' नहीं सिर्फ एक जगह... मेरे ममा पापा मेरी राय का सम्मान अवश्य करेंगे ।'


' ओ.के . मैं भी कम नहीं हूँ । मम्मा डैडी को मना ही लूंगी ।' 


रिया पल्लव को विदा कर अंदर आई ही थी कि उषा ने कहा,' रिया शीघ्र तैयार हो जाओ ।  देवेंद्र भाई साहब के घर जाना है । ' 


'  मम्मा डैडी आप दोनों चले जाओ । मेरा मन नहीं है ।'


' मन को क्या हो गया । अभी तो तुम पल्लव के साथ खूब खिलखिला कर बातें कर रही थीं ।'  


' देवेंद्र भाई साहब ने तुझे बुलाया है ।  वह तुझे अपने पुत्र सुजय से मिलाना चाहते हैं । चल बेटा जल्दी आ जाएंगे ।' पापा ने उससे आग्रह किया था ।


रिया उनके साथ चली गई । देवेंद्र अंकल और मनीषा आंटी ने उनके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी   सुजय   भी ठीक थे किन्तु उसका मन पल्लव से लग चुका था अतः उनके बारे में सोचने का प्रश्न ही नहीं था । वैसे भी उसका और सुजय का कार्यक्षेत्र अलग था । अगर वह सुजय को चुनती तो उसे या तो उससे अलग रहना पड़ता या जॉब ही छोड़ना पड़ता । दोनों ही स्थिति शायद ही वह स्वीकार कर पाती । 


एक अच्छी मुलाकात के पश्चात वे घर लौट आए । खाने का किसी का मन नहीं था अतः श्यामू को कोल्ड कॉफ़ी बनाने का निर्देश देकर लिविंग रूम में बैठ गए ।


  वह टीवी खोलने ही जा रही थी कि मम्मा ने पूछा, ' बेटा तुझे सुजय कैसा लगा ?'


'  ठीक था ।' अन्मयस्कता से रिया ने कहा था ।


' फिर उसके साथ तुम्हारे विवाह की बात चलाएं ।'


विवाह और सुजय के साथ...नहीं, मैं आपको बता नहीं पाई थी कि मैं पल्लव के साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहती हूँ ।'


' क्या…?'


 एक बार फिर उषा के मन मस्तिष्क में 30 वर्ष पूर्व का दृश्य घूम गया । ठीक उसी तरह उसने अपने और अजय के बारे में अपने मम्मा डैडी को बताया था । इतिहास एक बार फिर स्वयं को दोहरा रहा था पर वह इसके लिए तैयार नहीं थी । यही कारण था कि रिया की बात सुनकर वह बुरी तरह बिफर पड़ी थी ।उसकी मनोदशा देखकर अजय उसे अंदर ले कर गए तथा समझाते हुए कहा, '   शब्दों को लगाम दो उषा तुमने भी प्रेम विवाह किया है फिर अपनी पुत्री की मनः स्थिति क्यों नहीं समझ पा रही हो । पदम से तुम्हें शिकायत थी कि उसने हमसे बिना अनुमति लिए विवाह कर लिया किंतु रिया ने विवाह नहीं किया है । वह अपनी पसंद बताते हुए हमसे हमारा आशीर्वाद मांग रही है । लड़का अच्छा है । उसके साथ एक ही कंपनी में काम कर रहा है । उसे पसंद है तो हमारा आपत्ति करना व्यर्थ है । वैसे भी बच्चों की प्रसन्नता में ही हमारी प्रसन्नता होनी चाहिए । लगता है प्रेम विवाह हमारे बच्चों के डी.एन.ए .में है ।' अजय ने तनाव भरे माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से अंतिम वाक्य कहा तथा उषा की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा ।


 उषा अजय की बात का कोई उत्तर नहीं दे पाई थी । अजय की बातों से पूर्ण सहमत ना होने के बावजूद अंततः उसने अपनी सहमति दे दी थी क्योंकि उसे लगा अगर उसने सहमति नहीं दी तो रिया भी कहीं पदम की तरह कोई गलत कदम ना उठा ले और सच उसकी स्वीकृति ने रिया को प्रसन्नता से सराबोर कर दिया । उसकी सहमति पाते ही रिया ने उसे किस करते हुए कहा ,' मम्मा मुझे आपसे यही उम्मीद थी    यू आर माय ग्रेट ममा ।'


रिया की आँखों में उमड़ा प्यार उषा को द्रवित कर गया  । सारा आक्रोश भूल कर उसने अजय से पल्लव के माता-पिता से मिलने की इच्छा जाहिर की । अंततः उन्होंने पल्लव के माता- पिता अवनीश और कविता से मिलकर उनका विवाह तय कर दिया । वह भी अपने सारे पूर्वाग्रह बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढने को तैयार हो गए थे ।


विवाह की  नियत तिथि से हफ्ता भर पूर्व ही पदम और डेनियल भी आ गए थे । आते ही पदम और डेनियल ने जिस तरह विवाह की बागडोर अपने हाथ में ली थी उसे देखकर उषा को महसूस हुआ था कि सचमुच  बच्चे माता-पिता का बहुत बड़ा सहारा होते हैं । यद्यपि रिया ने विवाह की काफी शॉपिंग पहले ही कर ली थी पर डेनियल उससे संतुष्ट नहीं हुई । उसने आते ही रिया को फिर ढेरों शॉपिंग करा दी प्रिया की ड्रेस ,ज्वेलरी, ब्यूटी पार्लर से लेकर सूटकेस लगाने का सारा काम डेनियल ने ही किया था । तब लगा था कि डेनियल भले ही विदेशी हो पर संस्कारों में कहीं भी वह किसी भारतीय लड़की से कम नहीं है ।


अजय और उषा इस विवाह में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे । वास्तव में वह पदम के विवाह की कमी इस विवाह से पूर्ण करना चाहते थे अतः बारातियों के साथ अपने नाते रिश्तेदारों के रुकने का पूरा इंतजाम उन्होंने होटल में किया था । स्टेशन से होटल  लाने ले जाने की व्यवस्था के साथ,  होटल के रूम के अलॉटमेंट की जिम्मेदारी पदम ने अपने ऊपर ले ली थी । दुख इस बात का था कि मम्मी जी ने इस बार भी आने से मना कर दिया था ।


 विवाह वाले दिन रिया बहुत खूबसूरत लग  रही थी । भारतीय साड़ी में डेनियल भी उससे कम नहीं लग रही थी । सभी अतिथि उसके स्वागत तथा व्यवहार से बेहद प्रसन्न थे । विवाह भली प्रकार संपन्न हो गया था ।  घराती, बारातियों को संतुष्ट देखकर उषा और अजय अत्यंत ही संतुष्ट थे।


 उनका घर कॉस्मापॉलिटन हो गया था । वह स्वयं ब्राह्मण, अजय बंगाली जबकि उनकी बहू क्रिश्चियन और उनका दामाद पंजाबी बिहारी । अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर तथा बच्चों को अपने परिवारों ने प्रसन्न देखकर वे अत्यंत प्रसन्न थे । अभी खुशियों को जी भी नहीं पाए थे कि उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया । अजय के किसी विरोधी ने विवाह में हुए शानो शौकत पर अंगुली उठाते हुए मिनिस्ट्री में उसके खिलाफ रिपोर्ट भेज दी थी । तुरंत ही डिपार्टमेंटल इंक्वायरी सेट हो गई । वह और अजय बेहद अपसेट थे पर अजय को विश्वास था कि सांच को आंच नहीं आएगी । वैसे भी उनका सदा यही कहना रहा था उषा जो भी करो सोच समझ कर करना क्योंकि हमारी तो सिर्फ दो ही आँखें हैं जबकि सैकड़ों आँखें हमें देख रही हैं । 


ऐसी विचारधारा वाला व्यक्ति कभी कोई गलत कार्य कर ही नहीं सकता । उषा को भी अजय पर पूर्ण विश्वास था जबकि लोगों की उठी अंगुलियां उसे आरोपी सिद्ध करने पर तुली थीं । उषा यह सोचकर परेशान थी कि आखिर यह कैसी न्याय व्यवस्था है  जहां लोग अनैतिक तरीके अपनाते भी फल फूल रहे हैं जबकि सीधे-साधे ईमानदारी के रास्ते पर चलते हुए लोगों को इस तरह के झूठे आरोपों में फंसा कर आरोपी न जाने कैसा आनंद प्राप्त करते हैं ? 


उषा का उस समय किसी से मिलने जुलने का मन नहीं करता था पर फिर वह सोचती कि इस तरह घर में बंद रहकर वह एक तरह से लोगों के आरोपों को  कुबूल ही  करेगी । वह जानती थी कि अजय ने कभी बेईमानी का एक पैसा भी लेना कुबूल नहीं किया न ही किसी नेता या अपने सीनियर के आगे झुके । भले ही इस बात के लिए उन्हें बार-बार स्थानांतरित किया जाता रहा हो । अजय के लिए उनके उसूलों से बढ़कर कुछ भी नहीं है और जहाँ तक विवाह में खर्च का प्रश्न है तो क्या एक क्लास वन अधिकारी अपनी 30 वर्ष की सर्विस के पश्चात अपनी पुत्री का विवाह धूमधाम से नहीं कर सकता ?


 जीवन में परेशानियां आती है पर जो  सक्षमता से उनका मुकाबला करता है उसके सम्मुख यह परेशानियां बौनी होती जाती है और अंततः सत्य सामने आ ही जाता है । उनके साथ भी ऐसा ही हुआ । 6 महीने के अंदर ही अजय को क्लीन चिट मिल गई । तब जाकर उन्हें चैन की सांस आई । बाद में पता चला कि अजय के एक जूनियर अधिकारी ने अजय को फँसाने के लिए वह पत्र भेजा था । एक बार वह अधिकारी अजय के पास एक मंत्री की सिफारिश पर किसी गलत फाइल पर हस्ताक्षर करवाने के लिए आया था । अजय ने उसे इस कार्य के लिए उसे न सिर्फ टोका वरन निकट भविष्य में ऐसी किसी सिफारिश पर काम करने से भी मना कर दिया था । अजय के निर्णय ने मंत्री को नाराज कर दिया था अतः विवाह का मुद्दा उठाकर मंत्री जी ने उस ऑफिसर के जरिए अजय को फँसाने की चाल चली थी ।


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 इसी बीच पदम और डेनियल को कन्या रूपी रत्न प्राप्त हुआ । उषा और अजय बेहद प्रसन्न थे । वह इस खुशी में सम्मिलित होने पदम के पास जाना  चाहते थे पर अजय को छुट्टी नहीं मिल पाई । वे मन मसोस कर रह गए थे । सुकून था तो सिर्फ इतना कि डेनियल और बच्ची सकुशल तथा इस समय  डेनियल के मम्मी- पापा  उसके पास पहुँच गए थे ।


 समय खिसक रहा था । उम्र के साथ उषा के कार्य करने की क्षमता घटी नहीं, बढ़ी ही थी ।   अब वह और अधिक तन्मयता से अपने सामाजिक कार्यों को अंजाम देने में लग गई थी । सिर्फ घर परिवार में समर्पित महिलाओं को विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ उनकी योग्यता को निखारना उसकी हॉबी बन गई थी । इसके साथ ही अब वह प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में जाकर पढ़ाने भी लगी थी ।


 वैसे तो रिया को उसके पास आने का समय ही नहीं मिलता था पर डिलीवरी के समय वह उसके पास आ गई थी । उसकी ससुराल में मान्यता थी कि पहली डिलीवरी मायके में होनी चाहिए । इस मान्यता के पीछे वजह थी कि एक लड़की के लिए मां बनना जीवन का बहुत ही नाजुक मोड़ है । इस मोड़ पर उसको अपनी मां के पास ही रहना चाहिए आखिर मां के साथ ही बेटी सहज रहती है जिसके कारण वह बिना झिझक माँ से अपनी समस्याएं शेयर कर सकती है ।


 उषा को भी रिया का आना आत्मिक संतुष्ट दे गया था ।  कम से कम अब वह रिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकेगी जो उसे रिया की पढ़ाई तथा तत्पश्चात नौकरी के कारण नहीं मिल पाया था । मम्मी जी इस खुशखबरी को सुनने के पश्चात स्वयं को रोक नहीं पाई तथा सारे पूर्वाग्रह त्याग कर उनके पास आ गेन । अपनी पोती के बच्चे को वह अपनी गोद में खिलाना चाहती थीं । अभी वह खुशी को आत्मसात भी नहीं कर पाई थी कि महिला क्लब की अध्यक्षा प्रभा मेनन ने उसे बुलाया तथा 'हस्बैंड नाइट ' के आयोजन की तारीख फिक्स कर दी । यद्यपि ' हस्बैंड नाईट' की तारीख तथा रिया की डिलीवरी डेट में महीना भर का अंतर था पर फिर भी उसे लग रहा था कि कहीं इस कार्यक्रम की वजह से रिया की देखभाल में कमी न रह जाए अतः उसने अध्यक्षा से बेटी की डिलीवरी की समस्या बताई तो उन्होंने कहा,'  उषा इस समय यह आयोजन हो गया तो हो गया वरना फिर कई महीनों के लिए टल जाएगा क्योंकि मुझे अगले महीने ही अपनी बहू की डिलीवरी के लिए यू.के. जाना है । वैसे भी अभी रिया की डिलीवरी में तो अभी समय है ।'


आखिर  उषा को सहमति देनी पड़ी । घर आकर जब मम्मी जी और रिया को इस कार्यक्रम के बारे में बताया तब मम्मी जी ने कहा, '  तू निश्चित रह,  मैं तो हूँ ही रिया के पास ।'


'हस्बैंड नाइट' के दिन महिलाओं द्वारा एक छोटे से सांस्कृतिक कार्यक्रम को अंजाम दिया जाना था यद्यपि मम्मी जी के कहने से बावजूद वह स्वयं को अपराध बोध से मुक्त नहीं कर पा रही थी पर उसके लिए प्रोग्राम की सफलता भी आवश्यक थी अतः उसे जाना ही पड़ता था ।


एक दिन मम्मी जी ने कहा ,' उषा रिया को कहीं घुमा ला और नहीं तो उसे चाट खिला ला । वह अकेली बैठी बैठी बोर हो जाती है ।'


 मम्मी जी की बात सुनकर एक बार फिर उषा यह सोचकर अपराध बोध से भर उठी कि रिया को कहीं लेकर जाने की बात उसके मस्तिष्क में पहले क्यों नहीं आई । स्वयं को संयत कर उसने मम्मी जी से कहा , मम्मी जी आप भी हमारे साथ चलिए ।'


'  नहीं बेटा ...तुझे तो पता है मैं यह सब पचा नहीं पाती हूँ । तुम दोनों चले जाओ ।' सहज स्वर में उन्होंने कहा था ।


 पहले तो रिया ने मना किया पर दादी के बार-बार आग्रह को वह ठुकरा नहीं पाई तथा साथ चलने को तैयार हो गई । वे चाट खा ही रही थी कि प्रभा मैडम का फोन आ गया तथा उन्होंने आग्रह पूर्वक उससे क्लब आने के लिए कहा । यद्यपि उस दिन उसने उनसे ना आने के लिए आग्रह किया था वह मान भी गई थी पर अब तो जाना ही था अतः वह रिया को साथ लेकर ही वह क्लब पहुँची । उनको देखकर प्रभा मेनन ने  सॉरी कहते हुए रिया से उसका हालचाल पूछा तथा प्रोग्राम के संदर्भ में बात करने लगीं ।  


क्लब का माहौल , जुनून और प्रोग्राम के लिए महिलाओं को प्रैक्टिस करते देख कर रिया आश्चर्यचकित रह गई । उससे भी ज्यादा आश्चर्य से अपनी मम्मा को हर प्रोग्राम का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते देखकर हो रहा था । वह न केवल प्रैक्टिस करने वाली महिलाओं को की कमियों को इंगित करते हुए सुधार लाने के लिए टिप्स बता रही थीं वरन साथ ही साथ ड्रेस, मेनू और सजावट के मुद्दे पर प्रभा मेनन और क्लब की कार्यकारिणी के सदस्यों के साथ संजीदगी से चर्चा भी कर रही थीं । यह सब देखकर रिया उनकी फैन हो गई घर आकर उसने मम्मा से कहा, '  मम्मा आपकी नजर बहुत सूक्ष्म और निर्णय लाजवाब है । अगर आप कहीं काम करती तो मेरा विश्वास मानिए आप बहुत उन्नति करतीं । ' 


रिया के इन शब्दों ने न केवल उसको तसल्ली पहुँचाई वरन प्रोग्राम को और भी अच्छी तरह से करवाने का साहस भी पैदा कर दिया । आखिर उसकी बेटी भी अब उसके साथ थी ।


 एक बार वह बाहर से लौटी तो नौकर को असमय सोया पाकर वह उस पर शब्दों के चाबुक चलाने लगी ।  उस समय तो रिया ने कुछ नहीं कहा पर उसके अंदर आते ही उसने कहा , ' ममा, अब जमाना बदल गया है । नौकरों से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए आखिर वह भी इंसान है ।'


' तुम जैसा करो या सोचो । वैसे भी तुम्हें नौकरों के भागने का डर होगा पर यह कहाँ भागेंगे । सरकारी मुलाजिम है । यह इतने कामचोर हैं कि अगर इनके साथ कड़ाई से पेश नहीं आये तो ये काम ही नहीं करेंगे...आखिर इन्हें अनुशासन में रखना भी बेहद आवश्यक है ।'  मन का अहंकार जाने अनजाने उनके शब्दों में झलक ही आया था । उस समय वह यह भी भूल गईं कि वह किसी अन्य से नहीं वरन अपनी बेटी से बातें कर रही हैं ।


 रिया चुप हो गई थी पर उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे उसका इस तरह से नौकर को डांटना उसे अच्छा नहीं लगा है पर फिर भी वह अपनी बात पर कायम रही शायद ऐसा करते हुए वह भूल गई थी कि रिया अब बच्ची नहीं एक मेच्योर एवं अनुभवी लड़की है । उसकी बात काटना उसे अपमानित करना ही हुआ पर उस समय वह स्वयं नहीं उनका अहंकार बोल रहा था । वह तो गनीमत थी मम्मी जी उस समय पड़ोस में रहने वाली शुचिता भल्ला के घर गई थीं । 


शुचिता उसकी पडोसन थीं । उसकी सास देवयानी से उनका पहनावा हो गया था । एक पंजाबी और एक बंगाली,  पर जब मन मिल जाता है तो सरहदों की दीवारें छोटी हो जाती हैं । देवयानी आंटी के पैरों में अर्थराइटिस की वजह से बेहद दर्द होता था । उनकी उम्र भी 85 के करीब थी । उनके दोनों घुटनों का ऑपरेशन होना था पर ब्लड प्रेशर, डायबिटीज तथा किडनी की समस्या के कारण डॉक्टर कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहता था अतः ऑपरेशन टलता जा रहा था । स्थिति यह हो गई थी कि वह वाकर से ही चल फिर पाती थीं । देवयानी आँटी   तो आ नहीं पाती थीं अतः मम्मीजी ही उनका हालचाल लेने कभी-कभी उनके पास चली जाया करती थीं । हम भी खुश थे कम से कम उनके कारण मम्मी जी का मन तो लग रहा है । देवयानी आंटी का बचपन लखनऊ में बीता था अतः बातों का अकाल नहीं पड़ता था । 


समय पर रिया ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया । समाचार सुनकर पल्लव अपनी मम्मी के साथ आ गया । वह बेहद प्रसन्न था पर उसकी मम्मी ने कहा, '  कन्या तो सुंदर है पर अगर पहला बेटा होता तो आगे बेटा हो या बेटी चिंता नहीं रहती ।'


अपनी सास के वचन सुनकर रिया के चेहरे पर आई  खुशी फीकी पड़ गई थी । पल्लव समझ नहीं पा रहा था कि मम्मा को इस खुशी के अवसर पर यह कहने की क्या आवश्यकता थी ।


 आखिर उषा से रहा नहीं गया उसने कहा, ' कविता जी अगर मैं गलत नहीं हूँ तो शायद आपके घर 30 वर्ष पश्चात लक्ष्मी आई है ।'


'आप सच कह रही हैं उषा जी । मेरे दो पुत्र ही हैं ।'


'फिर तो आपको खुश होना चाहिए इतने वर्षों पश्चात आपके घर लक्ष्मी आई है ।'


' वास्तव में पुत्र और पुत्री दोनों ही परिवार को पूर्ण बनाते हैं । इस बात को मैंने भी समय-समय पर महसूस किया है । वह बात मैंने सामान्य रूप से कही थी । मैं बहुत खुश हूँ इस नन्ही गुड़िया को पाकर । पल्लव जा मिठाई लेकर आ । अस्पताल में सबको बांटनी है । आखिर लक्ष्मी आई है हमारे घर.. ।' कहते हुए उन्होंने रुपए निकालकर पल्लव को दिए थे ।


 पता नहीं उषा की बात सुनकर कविता का मन बदला या स्वयं ही उन्हें एहसास हुआ पर इतना अवश्य था कि उनकी बात सुनकर उषा को सुकून का अहसास हुआ वरना उनकी प्रतिक्रिया देखकर एक बार तो वह डर ही गई थी । आज भी बेटी होना हमारे समाज में सुख का नहीं वरन दुख का ही सबब होता है । वह आज तक नहीं समझ पाई कि क्यों ? 


 एक बार बेटा कर्तव्यच्युत हो भी जाए पर बेटी माता- पिता को कभी अकेला नहीं छोड़ती जितनी अच्छी तरह वह उनके सुख- दुख को महसूस करती है उतना बेटा नहीं पर फिर भी उसे सदा पराया धन कहकर अपमानित किया जाता है आखिर क्यों ? तन से बेटी भले ही दूर रहे पर मन से वह सदा अपने माता- पिता के पास ही रहती है । उनके दुख में वह जार जार रोती है । यह बात अलग है परिस्थितियां उसे उसके मन का न करने दें ।


बेटी माँ के जीवन का वह खूबसूरत एहसास है जिसमें वह अपना अक्स ही नहीं देखती अपना बचपन भी तलाशती  है । पल-पल उसे बढ़ते देखना जहाँ सुकून पहुँचाता है वहीं यह एहसास भी जीने नहीं देता कि एक दिन उसे अपनी प्यारी नाजुक कली को किसी दूसरे को सौंपना होगा । क्या वहाँ उसे वही प्यार और दुलार मिल पाएगा जिसकी वह आकांक्षी है ? अपने दिल के टुकड़े को अनजान आदमी को सौंपते हुए कांपता है दिल,  पर सामाजिक बंधनों को तो निभाना ही पड़ता है । 


बेटी वह कड़ी है जो दो परिवारों के मिलन का कारण ही नहीं बनती वरन उन्हें जोड़कर भी रखती है । कुछ अपवादों को छोड़ दें तो रिश्तो की संवाहक स्त्री ही होती है । स्त्री ही संसार की निर्मात्री है । वास्तव में कन्या एक ऐसा हीरा है जिसे जितना तराशो उतना ही चमकता है तथा अपनी चमक से दो परिवारों को प्रकाशित करता है । सबसे अधिक दुख तो उसे तब होता है जब  स्त्री ही स्त्री के बाल रूप को स्वीकार नहीं कर पाती । 


नन्हीं  परी को अपने हाथों में पाकर मम्मी जी की खुशी खुशी का ठिकाना नहीं था आखिर परपोती को खिलाने का सौभाग्य कितनों को मिल पाता है !! वह बहुत खुश थी कि ईश्वर ने उन्हें यह अवसर दिया है । वह अपने हाथों से उसकी तेल मालिश करतीं, कसरतें करवातीं  तथा उसे नहलातीं तथा उसके साथ बातें भी करतीं । माहौल एक बार फिर सहज हो गया था ।


रिया की खुशी में सम्मिलित होने से पदम स्वयं को नहीं रोक पाया तथा उसने आने का कार्यक्रम बना लिया । उसके आने का समाचार सुनकर अजय और उषा ने अनिला और परी के लिए एक पार्टी का आयोजन कर लिया । इष्ट मित्रों की शुभकामना और आशीर्वाद ने इस अवसर को खूबसूरत बना दिया था ।


 पदम और डेनियल की पुत्री अनिला की तोतली बोली तथा नन्ही परी की मासूम हँसी ने मम्मी जी की हँसी लौटा दी थी । जब वह नन्हीं रिया को तेल लगातीं तो 4 वर्षीय अनिला कहती, ' बड़ी अम्मा यह तया कल रही हो ?'


' बेटा, देख तेरी छोटी बहन कमजोर है ।  वह बैठ भी नहीं पाती इसलिए इसको तेल लगाकर मजबूत बना रही हूँ ।'


'  मुझे भी लगाओ न, मुझे भी पापा की तरह स्ट्रांग बनना है । '


और वह तेल लगाकर ही मानती । मम्मी का बदला रूप देखकर अंजना भी बहुत खुश हुई थी । समय के साथ पदम और डेनियल चले गए थे । अनिला के मासूम प्रश्नों के अभाव में रिया और परी के रहने के बावजूद भी घर में सूनापन आ गया था । जो आया है वह जाएगा भी सोच कर मन को संतुष्ट कर लिया था ।


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एक दिन मम्मी जी नन्ही परी को तेल लगा रही थीं कि देवयानी आंटी का फोन आया ।  उन्होंने मम्मी जी से बात करने की इच्छा जाहिर की । उषा ने फोन मम्मी जी को दे दिया । मम्मी जी ने उनका उत्तर सुनते ही कहा,' बधाई देवयानी जी, मिठाई से काम नहीं चलेगा , पार्टी देनी होगी ।'


फोन रख कर मम्मी जी ने बताया कि शुचिता भल्ला दादी बन गई हैं ।  उनके पुत्र प्रियांश की पत्नी रत्ना को पोता हुआ है । मम्मी जी और वह बधाई देने पहले अस्पताल गए फिर देवयानी आंटी से मिलने घर पहुंचे । इस अवसर पर देवयानी आंटी की खुशी का ठिकाना न था । उनके थके- रुके कदमों में तेजी आ गई थी । मम्मी जी भी बेहद खुशी थीं । एक महीने के अंदर दो दो खुशियां …  । 


जैसे ही शुचिता बहू रत्ना और पोते को लेकर घर आई ,मम्मी जी उससे मिलने गई   । उनसे मिलते ही देवयानी ने उनसे कहा, '  देख क्षमा, कितना प्यारा बच्चा है । मेरे प्रियांश का ही प्रतिरूप है। केवल इस दिन के लिए ही मैं जीवित रहना चाहती थी । अब मुझे मृत्यु का भी कोई भय नहीं है । कल आए तो आज ही आ जाए । इसने मुझे सोने की सीढ़ी पर चढ़ा दिया है । शास्त्रों में लिखा है कि परपोता होने पर इंसान सोने की सीढ़ी चढ़कर स्वर्ग जाता है । ईश्वर ने मेरी सारी मनोकामना पूर्ण कर दी हैं ।'


' आप ऐसे क्यों कह रही हैं देवयानी जी ? अभी तो आपको इसे अपनी गोद में खिलाना है, चलते हुए देखना है ।'


' हाँ क्षमा इच्छा तो है इसे अपने हाथों से खिलाऊँ, इसे चलते देखूँ ... देखो ईश्वर को क्या मंजूर है ।'


देवयानी की बात सुनकर क्षमा सोचती रह गई थी कि न जाने कैसी इंसानी प्यास है जो बुझती ही नहीं है  । पहले पुत्र का विवाह,  फिर बच्चे की कामना फिर उसके बच्चे का विवाह फिर उसके बच्चे की चाह , शायद  मानव मन की यही बढ़ती आस हमारी सांसो को रुकने नहीं देती ।


 रिया को गए हफ्ता भर भी नहीं बीता था कि शुचिता भल्ला की सास बीमार हो गईं । पता चला कि उनके पेट में बेहद दर्द है । अल्ट्रासाउंड तथा सी टी स्कैन के पश्चात पता चला कि उनके पेट में इंफेक्शन है तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा । इतनी उम्र में ऑपरेशन वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें पर अगर ऑपरेशन नहीं करवाते हैं तो बचने के चांस ही नहीं थे क्योंकि पेट फूलता जा रहा था कोई अन्य उपाय न पाकर अंततः ऑपरेशन का निर्णय लेना ही पड़ा । उनकी क्रिटिकल स्थिति देखकर भल्ला साहब ने अपने भाई बहनों को सूचित कर दिया था । वे सभी आ गए थे । शुचिता बेहद परेशान थी अभी महीने भर पूर्व ही रत्ना को पुत्र हुआ था । अभी वह जच्चा बच्चा में ही बिजी थी कि यह एक अन्य परेशानी...। बहुत कठिन समय था उसके लिए ...एक तो छोटे बच्चे के साथ बीमार सास की देखभाल और ऊपर से आए गयों की खातिरदारी । बीमार की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता पर समय से खाना पीना सब को चाहिए । 


मम्मी जी भी अपनी अभिन्न मित्र देवयानी के लिए बेहद परेशान थीं । डॉक्टरों के अनुसार ऑपरेशन सफल रहा था पर उनकी रिकवरी की प्रोग्रेस पर ही उनकी स्थिति के बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकेगा । उनकी छोटी आंत में इंफेक्शन था अतः लगभग 2 फीट छोटी आंत को काटकर निकालना पड़ा था । डिप चल रही थी उसके साथ ही अनेकों दवाइयाँ पर फिर भी रिकवरी का कोई साइन नजर नहीं आ रहा था । मायूसी सबके चेहरे पर स्पष्ट नजर आने लगी थी । डॉक्टर अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर ही रहे थे अतः इंतजार करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय ही नहीं था । हफ्ते भर पश्चात जब डॉक्टर ने कहा कि अब उनके सिस्टम ने काम करना प्रारंभ कर दिया है अब आप उन्हें पतला बिना जीरे का मट्ठा दे सकते हैं ।  तब सबकी जान में जान आई । करीब-करीब 15 दिन पश्चात देवयानी आंटी घर आई थीं ।  उनके घर आने का समाचार सुनकर मम्मी जी बेहद प्रसन्न थीं ।  दूसरे दिन वह उनसे मिलने उनके घर गईं ।  जब वह लौट कर आईं तो बेहद गुमसुम थीं । कारण पूछा तो बिना कुछ कहे वह अपने कमरे में चली गई ।


आखिर उषा से रहा नहीं गया क्योंकि इतना चुप तो उसने मम्मी जी को  तभी  देखा था जब पिताजी छोड़ कर गए थे । वह स्वयं चाय बनाकर उनके पास लेकर गई तथा उनकी उदासी का कारण पूछा ,'क्या हुआ मम्मी जी देवयानी आंटी ठीक तो है ना ।'


'बेटा भगवान इतना लंबा जीवन ही क्यों देता है !!'


' मम्मी जी यह आप क्या और किसके लिए कह रही हैं ? '


' बेटा, हमारे जैसे लोग बोझ ही हैं  न ।'


' मम्मी जी आप ऐसा कैसे सोच सकतीं हैं ? आप से ही तो हम हैं आप हमारा मनोबल हैं ।'


' बेटा यह तुम्हारा बड़प्पन है पर ऐसी जिंदगी से क्या लाभ जो दूसरों के लिए बोझ बन जाए । अब देखो न देवयानी को वह बिस्तर पर पड़ी है उसे अपने शरीर का भी होश नहीं है । देवयानी के लिए बड़ी मुश्किल से नर्स मिली है पर वह कह रही है कि वह डायपर नहीं बदलेगी । अब शुचिता बहू के बच्चे को संभाले या अपनी सास को । शुचिता कह रही थी कि आंटी बच्चे का डाइपर तो मैं बदल सकती हूँ पर इनका कैसे बदलूँ ? इतना भारी शरीर मैं अकेले कैसे अलट पलट पाऊंगी ? आया की तलाश कर रही हूँ ।  जब से वहां से लौटी हूं यही सोच रही हूँ यह जीवन की कैसी रिवर्स प्रोसेस है बच्चा जब होता है तब वह लेटा रहता है । लेटे लेटे ही सुसु पॉटी करता रहता है फिर वह वॉकर से चलना सीखता है फिर अपने पैरों पर चलने लगता है । यही बच्चा समय के साथ संसार सागर में अपने विभिन्न किरदार निभाते हुए न केवल अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निभाता है वरन् संसार में भी अपने कर्मों की छाप छोड़ कर संतुष्टि प्राप्त कर, स्वयं को सफल मानते हुए गर्वित हो उठता है पर धीरे-धीरे उसके सुदृढ़ और बलिष्ठ शरीर का क्षरण होने लगता है । वह अशक्त होता जाता है और एक दिन ऐसी भी स्थिति आती है कि उसे वाकर पकड़ना पड़ता है और फिर बिस्तर... स्थितियां एक जैसी ही होती है पर पहले वाली स्थिति में आस होती है पता है कि एक वर्ष या दो वर्ष पश्चात वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा पर दूसरी स्थिति में न कोई आस है न ही यह पता है कि यह स्थिति कब तक रहेगी !! सहने वाला भी मजबूर और करने वाला भी मजबूर । ऐसी स्थिति किसी को न झेलनी पड़े ।' कहकर माँ जी ने आँखें बंद कर ली थीं ।


 उस रात उन्होंने अजय के समझाने के बावजूद भी खाना नहीं खाया बार-बार यही कहती रही,' मुझे भूख नहीं है मैं सोना चाहती हूं प्लीज मुझे अकेला छोड़ दो ।'  


अजय को उस दिन उसने पहली बार बहुत परेशान देखा था । वह रात में कई बार उठ कर उनके कमरे में भी गए । सुबह जब वह चाय देने उनके कमरे में गई तो देखा वह अपने स्वभाव के विपरीत सो रही हैं ।  उषा ने माँ जी को आवाज लगाई तब भी वह नहीं उठीं । उषा ने उन्हें हाथ से हिलाया तो पाया उनके शरीर में कोई हलचल ही नहीं है । घबराहट में उसने अजय को आवाज दी । वह आए उनकी नब्ज देखी । अनिश्चय की स्थिति में डॉक्टर को फोन किया वह तुरंत ही आ गये । डॉक्टर ने आते ही उन्होंने उन्होंने उन्हें मृत घोषित कर दिया । मृत्यु की वजह ब्रेन हेमरेज बताया ।


डॉक्टर की बात सुनकर अजय किंकर्तव्यविमूढ़ रह गए थे । आखिर यह कैसी मृत्यु है जिसमें न किसी को सेवा का अवसर दिया और न ही कुछ कहने सुनने का समय । उन्हें लग रहा था कि उनका रुपया पैसा सुख सुविधाएं किस काम की ...न वह उस एक्सीडेंट में अपने पापा को बचा पाए और न अब मम्मी जी को  । विधि के विधान के आगे सब नतमस्तक थे ।


 शुचिता कह रही थी कि माँ भी आंटी की मृत्यु की खबर सुनकर बेहद विचलित हैं । बार-बार यही कहे जा रही हैं कि भगवान को बुलाना तो मुझे अपाहिज को चाहिए था पर बुला उसे लिया । 


दो महीने के अंदर एक बार फिर सब जुड़े पर इस बार सबके चेहरे गमगीन थे । अनिला ने आते ही पूछा, ' दादी ,बड़ी अम्मा कहाँ है ? सब उनके फोटो को फूल माला है क्यों चढ़ा रहे हैं ?'


अनिला की बात सुनकर उषा ने उसे गोद में उठा लिया था पर वह बार-बार एक ही प्रश्न पूछती जा रही थी अंततः उसे कहना ही पड़ा,' बेटा बड़ी अम्मा भगवान जी के पास चली गई हैं ।'


'  दादी बड़ी अम्मा कब आयेंगी भगवान जी के पास से ?'


' बेटा, अब वह कभी नहीं आयेंगी ।'


' क्यों दादी ?'


' बेटा भगवान जिससे प्यार करते हैं उसे अपने पास बुला लेते हैं ।'


'  तो क्या भगवान जी बड़ी अम्मा को ही प्यार करते हैं , मुझे नहीं...।' अनिला ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा ।


'  बेटा ऐसा नहीं कहते ।' उषा ने उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा  ।


' पर क्यों दादी ?'


' कहाँ हो तुम ?' अजय की आवाज सुनकर कहा, ' बेटा ,तेरे दादा जी बुला रहे हैं । मैं अभी आती हूँ ।' कहकर उसने अनिला को गोद से उतारकर सुकून का अनुभव किया था । यह बच्चे भी... तरह तरह के प्रश्न कर कभी-कभी पेसोपेश में डाल देते हैं । 


सारे कर्मकांड निभाए गए इस बार अजय उनकी अस्थियों को प्रवाहित करने गया गये  तथा पिंड दान भी किया । उषा भी उनके साथ गई थी । इस बार वह सहज थी।  इस बार उसे यह सब कर्मकांड पोंगापंथी नहीं वरन व्यक्ति की आस्था को दर्शाने वाले प्रतीत हो रहे थे ।


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 ऐसी ही न जाने कितनी बातें हैं जो उषा के जेहन में उमड़ घुमड़ कर उसे परेशान कर रही थीं । उन्होंने अपना घर लखनऊ में बनवाया था पर अपने स्वभाव के कारण वह आस-पास वालों  से कोई संबंध नहीं रख पाई थी । जब वह घर जाती, कोई उनसे मिलने आता भी तो अपनी प्रशंसा के इतने पुल बांधने लगती है कि लोग किनारा करने लगते । आज उसे महसूस हो रहा था कि इंसान चाहे शौहरत की कितनी भी बुलंदियों को क्यों न छू ले पर उसके पैर सदा जमीन पर ही रहनी चाहिए । 


यही बात जब तब अजय ने उसे समझाने की कोशिश भी की थी पर उसके सिर पर बड़े अधिकारी की पत्नी का जादू इस कदर छाया हुआ था कि उसे सदा सिर्फ अपनी ही सोच ठीक लगती रही थी ।


'  तबीयत ठीक नहीं है क्या जो इस समय लेटी हो ?'  सब कुछ जानते हुए भी अजय ने कमरे में प्रवेश करते ही पूछा ।


' नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । 'उषा ने उठते हुए कहा ।


' घनश्याम सामान यहाँ रख दो ।' अजय ने अर्दली को आदेश देते हुए कहा ।


' सर हमसे कोई भूल हो गई हो तो क्षमा करिएगा । कल से नए साहब के पास जाना होगा ।  पता नहीं वह कैसे होंगे ?' फेयरवेल में मिलीं फूल मालाएं तथा गिफ्ट उसने पास रखे टेबल पर रखते हुए कहा ।


'  सब अच्छे ही रहते हैं जिसके पास भी रहो मन लगाकर काम करो और सुखी रहो ।'  घनश्याम को उसके लिए लाया उपहार उसे देते हुए अजय ने कहा ।


घनश्याम उनको  प्रणाम करके चला गया तथा रो पड़ी थी उषा…। 


'  पागल मत बनो उषा ... यह रोना-धोना क्या तुम्हें शोभा देता है ? यह दिन अचानक तो नहीं आया है !  क्या यही कम है कि हमने एक सुखी जीवन बिताया है । सबसे अधिक संतोष तो मुझे इस बात का है कि बिना किसी धांधली में फंसे मैं ग्रेसफुली अवकाश प्राप्त कर रहा हूँ । अब चलो उठो, आँसू पोंछो श्यामू चाय बना कर लाता ही होगा । और हां आज शाम को फेयरवेल है । वहाँ मुँह लटका कर मत बैठना । अब तुम बच्ची नहीं हो एक उच्च पदस्थ अवकाश प्राप्त अधिकारी की मैच्योर वाइफ हो । मैं चाहता हूँ जिस ग्रेसफुलनेस के साथ तुम अब तक रहती आई हो उसी ग्रेसफुलनेस के साथ यहां से विदा लो।' 


 फेयरवेल के समय अजय के सहयोगियों से अजय की प्रशंसा सुनकर उषा भावविभोर हो उठी थी । न चाहते हुए भी एक दो बार उसकी आँखों में आँसू छलक ही उठे थे । उसकी बगल में अजय की जगह आए अधिकारी की पत्नी  शिखा गुप्ता बैठी हुई थी । वह उसके साथ बातें करना चाह रही थी पर वह अपनी मनः स्थिति के चलते सहज नहीं हो पा रही थी । यद्यपि वह उसे पहले से जानती थी पर तब वह जूनियर अधिकारी की पत्नी थी । जूनियर अधिकारी की पत्नी होने के कारण उस समय उसने उसको महत्व नहीं दिया था । दुख तो इस बात का था जो महिलाएं पहले उसके इर्द गिर्द घूमा करती थीं अब वे शिखा के इर्द-गिर्द मंडरा रही थीं यह सब देख कर उषा यह सोचने को मजबूर हो गई कि क्या व्यक्ति की पहचान सिर्फ उसकी कुर्सी होती है ?


उषा की अन्मयस्कता  के बावजूद शिखा पूरे समय उसके साथ रहने का प्रयत्न कर रही थी  । उसी ने उसके हाथ में खाने की प्लेट पकड़ाई । सच कहें तो शिखा की विनम्रता ने उसका मन मोह लिया था । जब वह खाना खाने लगी तब श्रीमती रूपाली शर्मा सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस की पत्नी उसके पास आकर बैठ गई । उषा कुछ पूछ पाती, उससे पहले ही उसने कहा, ' मैं आपसे मिलने आना चाह रही थी पर क्या करूँ बहू दिव्या की डिलीवरी नजदीक आने के कारण समय ही नहीं मिल पाता है ।  आप तो जानती हैं उसे बेड रेस्ट बताया है । अब ऐसी हालत में उसे नौकरों के सहारे तो छोड़ा नहीं जा सकता । दिव्या ने आज मुझे यह कहकर जबरदस्ती भेजा है कि दो-तीन घंटे की ही तो बात है , मैं रह लूँगी । अगर कुछ परेशानी हुई तो मोबाइल तो है ही । आज उषा आंटी का फेयरवेल है आपको जाना ही चाहिए । सच बहुत ही समझदार बच्ची हैं । 


शर्मा साहब ने आपको कल के डिनर का निमंत्रण दे ही दिया होगा । इसके अतिरिक्त एक बात और आपसे कहनी है । दो महीने पश्चात हमारे शर्मा साहब का भी रिटायरमेंट है । मैं चाहती हूँ कि इस अवसर को यादगार बना लूँ ।  मैंने सोचा है कि यहां से जाने के पहले एक दिन सभी घनिष्ठ मित्रों को एकत्रित कर एक पार्टी का आयोजन करूँ । रिटायरमेंट के पश्चात हम हरियाणा चले जाएंगे पता नहीं फिर कभी किसी से मिलना होगा भी या नहीं । आपसे आग्रह है कि आप इस अवसर पर अवश्य आइएगा । यद्यपि तारीख तो अभी निश्चित नहीं हुई है निश्चित होने पर सूचित करूँगी ।  विनय को मैंने अपने मन  की बात बताई तो उसने कहा कि मम्मा बहुत अच्छा आईडिया है । पर पार्टी डैड के जन्मदिन पर ही दीजिएगा क्योंकि यहां (आंध्रा ) में 60 वां जन्मदिन लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं । हम तो स्वयं ही डैड के इस जन्मदिन को बहुत ही धूमधाम से मनाना चाहते हैं । रिचा से भी मेरी बात हो गई है हम दोनों ही छुट्टी लेकर उस समय आ रहे हैं ।'


 उषा रूपाली को देख रही थी कितनी सहजता से वह अपनी बात कह गई जबकि वह इस बात को लेकर पिछले कुछ दिनों से कितनी परेशान है । अजय ठीक ही कहते हैं इंसान को जिंदगी में आए हर चैलेंज को ग्रेसफुली अपनाना चाहिए तभी वह प्रसन्न रह सकता है । वक्त का यही तकाजा भी है ।


लौटते हुए उषा के मन में छाया अंधेरा छंटने लगा था पर फिर भी रूपाली की बात बार-बार मन को मथ रही थी....पता नहीं फिर किसी से मिलना हो पाएगा या नहीं !!  सच क्या जिंदगी है नौकरी वालों की..  आधे से अधिक जीवन यूँ ही बंजारों की तरह घूम- घूम कर बिताने के लिए मजबूर तो रहता ही है, अहंकार , पद प्रतिष्ठा की होड़  के साथ जोड़-तोड़ की राजनीति भी उसके जीवन का हिस्सा बन जाती है । इस जोड़-तोड़ में जो जितना सफल रहता है उसे उतना ही बड़ा पद, प्रतिष्ठा मिलती है पर एक समय ऐसा आता है जब न उसकी यह पद प्रतिष्ठा काम में आती है और न ही जोड़-तोड़ । एक दिन उसे अपनी सारी सुख सुविधाओं को त्यागकर, लंबे समय पश्चात वापस अपने नीड़ में लौटना पड़ता है, फिर से नई जिंदगी प्रारंभ करनी पडती है किन्तु इस उम्र में नई जगह में सेट होना,  मित्रता कायम करना,  क्या इतना सहज है ?


' पर तुम्हें तो आदत है इस सबकी, फिर  परेशानी क्यों ?' अन्तरचेतना  ने उसे टोका था ।


 ' हाँ आदत रही है पर इस बार परिस्थिति दूसरी है  ।'


'   दूसरी कैसे ?'


' यहाँ पर घर बार के लिए सोचना नहीं पड़ता ।  पद प्रतिष्ठा है । काम करने के लिए आदमी है और मित्रता तो पद के कारण स्वयमेव  हो ही जाती है   ।  35 वर्षों पश्चात अपनी जड़ों को टटोलकर जगह बनाना बेहद कठिन है । '


'कठिन को सरल बनाना ही इंसानी जीवन की खूबसूरती है ।' अन्तरचेतना ने उसे कुरेदा था ।


' ओ. के.  अब तुम जाओ... थोड़ी देर मुझे अकेला रहने दो ।' कहते हुए उषा ने उसे झिड़का था ।


'  मैं तो चली जाऊंगी पर इतना अवश्य याद रखना जो इंसान जीवन में आए हर चैलेंज को खूबसूरती के साथ से स्वीकारता है वही सदा प्रसन्न रहता है वरना जिंदगी उस अलाव की तरह हो जाती है जिसे जलाया तो शरीर को गर्माहट देने के लिए है पर दूसरे को गर्माहट देने के प्रयास में उसकी अपनी जिंदगी ही राख बनती जाती है । अब यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम अलाव की तरह जलकर स्वयं को और जग को सुकून देना चाहती हो या तिल तिल जलकर राख बनना चाहती हो ।'


' मैं आज तक जैसे जीती आई हूँ वैसे ही जाऊँगी, अपने लिए भी और समाज के लिए भी ।' उषा ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा  ।


'  वेरी गुड..  अब उदासी का लबादा छोड़कर चेहरे पर खुशी लाओ और नए जीवन का प्रारंभ नव उत्साह के साथ करो ।'


' ओ.के.।'


अंतर्चेतना  उसकी सखी थी । जब वह परेशान होती तब आकर वह उसके मन पर न केवल मलहम लगाती वरन राह भी दिखा जाती थी ।


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 दूसरे दिन की उनकी लखनऊ की फ्लाइट थी ।  एयरपोर्ट पर फूल मालाएं लिए लगभग पूरा ऑफिस ही उपस्थित था । अजय के प्रति सब का आदर देखकर उषा मन ही मन गदगद थी । वहीं  शुचिता, रीना, सीमा ,ममता उसे फूल मालाएं पहनाते हुए उससे भूल न जाने तथा कभी-कभी आने का आग्रह कर रही थीं ।  वह जानती थी यह सब फॉर्मेलिटी है वरना कब कौन दोबारा आ पाता है !!


 पता नहीं अब किसी से मिलना हो पाएगा या नहीं ...बार-बार रुपाली की बातें मन को मथ रहीं थीं । उषा को दुख तो उसे इस बात का था कि 35 वर्ष की यह जिंदगी महज एक स्वप्न बन कर रह जाएगी । किसी को अगर यहां के किस्से सुनाएगी भी तो इस जीवन से अनभिज्ञ लोग उसकी बातों को उसकी कपोल कल्पना ही समझेंगे । आज के पश्चात सब समाप्त हो जाएगा । शायद दिल के स्तर पर कायम हुई मित्रता ही बाकी रह पाए । बाकी सब तो पानी का बुलबुला मात्र ही रह जाएगा पर प्रत्यक्ष में उसने कहा, '  मैं तो आऊंगी ही पर आप लोग भी जब अवसर मिले लखनऊ आइएगा।  बहुत ही अच्छा शहर है ।'


'मेरा लखनऊ घूमा हुआ नहीं है ,अवश्य आऊंगी मेम, मिलना भी होगा और घूमना भी ।'  सीमा ने कहा ।


' एक बात और मेरे द्वारा प्रारंभ किए गए प्रौढ़ शिक्षा अभियान को जंग मत लगने देना ।' उसने  उनकी ओर देखते हुए कहा ।


' आप निश्चिंत रहें मेम, मैं जब तक मैं हूँ तब तक आप का अभियान न रुकेगा न जंग खाएगा।' ममता ने कहा था ।


' थैंक यू ममता ।'


' मेम थैंक यू कह कर मुझे लज्जित ना करें । मैं आपकी वही ममता हूँ जिसे आप कभी भी कॉल करके बुला लिया करती थीं । ' 


ममता सेक्रेटरी थी महिला क्लब की । उसको उस पर पूरा भरोसा था । 


' उषा चलो समय हो रहा है ।' अजय ने कहा ।


' अच्छा बाय ...।' कहते हुए उसने एक बार फिर चारों ओर देखा मानो इस दृश्य को आँखों में भर लेना चाहती हो फिर वह अजय के साथ चल दी । कल तक जहाँ वह इस समय की कल्पना मात्र से विचलित थी ,आज उसके लिए पूरे मन से तैयार थी । बोर्डिंग पास लेने और सिक्योरिटी चेक में लगभग आधा घंटा बीत गया । अभी फ्लाइट में आधे घंटे की देर थी वे वेटिंग एरिया में गए बैठ गए । 


एकाएक उषा को याद आई 25 वर्ष पूर्व की उसकी पहली विमान यात्रा...अजय ने अंडमान निकोबार जाने का कार्यक्रम बनाया था । उन्हें कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर के लिए  फ्लाइट पकड़नी थी । कोलकाता वे ट्रेन से गए थे   पदम और रिया के साथ वह भी विमान यात्रा के बारे में सोच -सोच कर बहुत एक्साइटेड थी । आकाश में विमान को उसने उड़ते तो देखा था पर बैठने का अवसर नहीं मिला था ।  उसकी पहली विमान यात्रा होने के कारण उसे जरा भी अहसास नहीं था कि हवाई जहाज कैसे उड़ान भरता है ।


उस समय आज की तरह विजुअल मीडिया या टी.वी. का बहुत ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं था सिर्फ एक चैनल था दूरदर्शन .. जिसके राष्ट्रीय प्रसारण पर कुछ ही घंटे के कार्यक्रम आया करते थे । कुछ सीरियल हम लोग ,बुनियाद ,दादी नातियों वाली और एक कॉमेडी सीरियल यह जो है ज़िंदगी जिसमें फारुख शेख और स्वरूप संपत ने बेहतरीन एक्टिंग की थी, ही हम सबके पसंदीदा सीरियल थे ।  देश विदेश के समग्र समाचारों को समेटे 15 मिनट का समाचार बुलेटिन आता था तथा  रविवार को एक मूवी जिसका हम सभी को बेसब्री से इंतजार रहता था  ।


जब उनका पहला श्वेत श्याम टी.वी. आया था तब रविवार को वह मूवी देखने अपने इष्ट मित्रों को बुला लिया करती थी ।  बीच के 15 मिनट के ब्रेक में चाय नाश्ता सर्व होता था । एक अलग ही मजा था जबकि आज पूरे दिन सीरियल आते रहते हैं, न्यूज़ और मूवी भी आती रहती हैं पर उस समय दो-तीन घंटे टी.वी. देखकर जो सुकून मिलता था वह आज पूरे दिन चलने वाले सीरियल को देख कर भी नहीं मिलता है ।


आज ' एयरलाइंस ' जैसे सीरियल के द्वारा हवाई जहाज से संबंधित बहुत सी जानकारियां आम जनता को मिल जाती हैं । उसे आज भी याद है उस यात्रा से एक दिन पूर्व उसने एक अजीब स्वप्न देखा था वह विमान में बैठी है और विमान सड़कों पर बस की तरह चलता जा रहा है कभी इधर कभी उधर ।


 बोर्डिंग का अनाउंसमेंट सुनते ही उसने अपने विचारों पर ब्रेक लगाई और बोर्डिंग के लिए लगी लाइन में लग गए  । बोर्डिंग पास के चेक होने के पश्चात वे गेट से बाहर निकले तथा एयरलाइंस की बस के द्वारा हवाई जहाज तक पहुंचकर  अपनी सीट पर जाकर बैठ गए ।  पहले विमान में बैठते हैं टॉफी, कॉटन बड्स इत्यादि दी जाती थी पर अब कुछ भी नहीं दिया जाता । यात्रियों के बैठते ही परिचारिका ने हवाई जहाज के उड़ान भरने की सूचना देते हुए सीट बेल्ट बांधने के लिए कहा । प्लेन के टेकऑफ करते ही वह एक बार फिर से अपनी पहली विमान यात्रा की यादों में खो गई …


 जैसे ही दमदम एयरपोर्ट पर उन्होंने विमान में प्रवेश किया परिचारिका ने उनका मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया था । उनके विमान के अंदर प्रवेश करते ही दूसरी एयर होस्टेस उन्हें अपनी सीट तक ले गई । उनके बैठने के थोड़ी देर पश्चात एक परिचारिका एक ट्रे में कॉटन बड्स और टॉफी लेकर आई ।  संकोच की वजह से उसने तो सिर्फ दो ही टॉफी उठाई थी पर 8 वर्षीय पदम एवं 6 वर्षीय रिया ने पूरी मुट्ठी भर ली ।  उसने आंखें तरेरी तो परिचारिका ने मुस्कुरा कर कहा , ' लेने दीजिए मेम,  बच्चे हैं और हाँ कुछ आवश्यकता हो तो इस बटन को दबा दीजिएगा ।' सीट के ऊपर लगे स्विच की ओर इशारा करते हुए उसने कहा था । 


उस परिचारिका ने बच्चों की सीट बेल्ट बांधने में भी सहायता की थी । आज यह सदाशयता शायद ही देखने को मिले । विमान ने धीरे-धीरे रेंगना प्रारंभ किया ही था कि तब अचानक उसे रात का स्वप्न याद आया । उसके स्वप्न मैं भी तो विमान ऐसे ही चल रहा था । जब वह अपने इस स्वप्न के बारे में सोचती है तो समझ ही नहीं पाती है कि  उसने स्वप्न में उस सच्चाई को  कैसे देख लिया जिसके बारे में उसे जरा भी आभास नहीं था ।


 उसने अपने मन की बात बताने के लिए अजय की ओर देखा तो उन्होंने उसके चेहरे पर टंगे प्रश्न को देख कर कहा , ' विमान हैंगर से रनवे पर जा रहा है वहाँ से टेकऑफ करेगा ।'


' ओ.के .' कहते हुए उसने अजय को रात का स्वप्न बताया तो उन्होंने सहजता से कहा... 'देखने सुनने में अवश्य बात लोगों को अजीब लगे  पर यह भी सच है कि कभी-कभी हमारा अवचेतन मन उस सच्चाई को देख लेता है जिसे हम जानना चाहते हैं और यही हमारे स्वप्न में आकर जीवन की उसका अघटित घटना से हमारा परिचय करवा देता है जो भविष्य में होने वाली है ।'


 रनवे पर आते ही विमान ने स्पीड पकड़ ली । नियत स्पीड पर पहुंचते ही पृथ्वी से 45 डिग्री का कोण बनाते हुए विमान ऊपर उठने लगा । अपनी वांछित ऊंचाई पर पहुंचने के पास पश्चात वह स्टेबल हो गया ।  तभी एक और अनाउंसमेंट हुआ कि अब अगर आप चाहे तो सीट बेल्ट खोल सकते हैं । 


विंडो से नीचे देखा तो बादलों की चादर बिछी हुई थी । वह बहुत ही सुंदर दृश्य था जो बादल सदा हमारे ऊपर रहते हैं आज वह उन्हें नीचे देख रही थी । सबसे बड़ी बात बादलों के ऊपर  वही नीलाकाश । थोड़ी देर पश्चात नीला पानी दिखने लगा । अजय ने बताया कि हम समुद्र के ऊपर से गुजर रहे हैं । दरअसल अंडमान निकोबार एक टापू है उस पर पहुंचने के लिए अरेबियन समुद्र के ऊपर से गुजरना पड़ता है । पता नहीं क्यों उस समय मन में एक डर समाने लगा कहीं विमान गिर जाए तो वह मन के डर से उभरने का प्रयत्न कर ही रही थी कि रिया ने कहा , ' मम्मा ठंड लग रही है ।'


उषा ने कॉलिंग बेल बजाई परिचारिका ने कारण पूछा तब उसने कहा, ' एक ब्लैंकेट चाहिए । बच्चे को ठंड लग रही है ।'


' यस मेम ।'


 तुरंत ही परिचारिका ने उसे ब्लैंकेट लाकर दे दिया । रिया ब्लैंकेट ओढ़ कर उसकी गोद में लेट गई थी । इसी बीच पदम को भूख लगाई । अजय ने उसके लिए जूस मंगा लिया । थोड़ी ही देर में लंच सर्व हो गया । 


खा पीकर थोड़े रिलैक्स हुए थे कि परिचारिका ने एक बार फिर गंतव्य स्थान के आने की सूचना देते हुए सीट बेल्ट बांधने का निर्देश दिया ।  विमान अब पोर्ट ब्लेयर चारों ओर चक्कर लगा रहा था नीचे दीप नजर आ रहा था जो चारों ओर से समुद्र से घिरा था उसकी नजर में प्रश्न देख कर अजय ने कहा , ' लगता है विमान को उतरने का क्लीयरेंस नहीं मिल रहा है ।'


कहकर अजय विंडो से बाहर देखने लगे । एकाएक उसे महसूस हुआ कि विमान नीचे उतर रहा है अंततः रनवे पर आते ही एक हल्की आवाज के साथ हमारे विमान ने धरती छू ही ली ।


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 थोड़ी ही देर में ही अपनी जगह पर आकर विमान रुक गया ,.। विमान का गेट खुलते ही यात्री एक-एक करके उतरने लगे । गेट पर परिचारिका हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए  सभी यात्रियों को विदा कर रही थी । एयरपोर्ट छोटा था अतः हम पैदल ही बाहर आए । बाहर आकर सामान ले ही रहे थे कि एक आदमी ने पूछा, '  मेम क्या आपने भानुप्रिया को देखा ?'


'कौन भानुप्रिया ?'


' मेम आप भानुप्रिया को नहीं जानतीं ?  वह बहुत अच्छी फिल्म एक्ट्रेस है । वह यहाँ फिल्म की शूटिंग करने आ रही है ।'


तब याद आया जब वे दमदम एअरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक के पश्चात वेटिंग एरिया में बैठे बोर्डिंग का इंतजार कर रहे थे । तभी एक सुंदर लंबी लड़की को देखा तो था पर वह एक्ट्रेस होगी, उसने सोचा भी नहीं था । वैसे भी वह साउथ की हीरोइन है हिंदी बेल्ट में बहुत कम जानी पहचानी जाती है ।


बाहर निकलते ही हम टैक्सी करके अपने होटल पहुंचे । उसी टैक्सी को हमने पूरे दिन के लिए बुक कर लिया था । दरअसल हमारे पास अंडमान निकोबार घूमने के लिए सिर्फ एक ही दिन था क्योंकि अजय ने पहले ट्रेन का रिजर्वेशन यह सोचकर करा लिया था कि प्लेन का रिजर्वेशन तो मिल ही जाएगा ।  तब रिजर्वेशन आज की तरह कहीं भी बैठे बैठे ऑनलाइन नहीं हुआ करते थे । 


अजय ने एजेंट के द्वारा पहले रांची से कोलकाता तथा मद्रास से रांची का ट्रेन का टिकट बुक करा लिया था । जब प्लेन का रिजर्वेशन कराने लगे तो जिस दिन हमें कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर के लिए चलना था उस दिन का रिजर्वेशन मिला ही नहीं जिसके कारण हमें 2 दिन कलकत्ता रुकना पड़ा पर इसका एक फायदा यह हुआ कि हमने कोलकाता आराम से घूम लिया । कोलकाता का जू देखा ही, विक्टोरिया मेमोरियल कॉलोनियल युग( अंग्रेजों )की याद करा गया ।  चौरंगी लेन में घूम-घूम पर शॉपिंग की,  हावड़ा ब्रिज जैसा सुना था, वैसा ही पाया । ट्राम में बैठकर सैर करने के साथ,  देश की पहली मेट्रो ट्रैन का लुफ्त उठाने से भी नहीं चुके ।


एयरपोर्ट से होटल ज्यादा दूर नहीं था । लगभग 10 मिनट में हम होटल पहुंच गए । होटल का नाम अभी भी याद है एन.के. इंटरनेशनल…. फ्रेश होकर होटल के ही रेस्टोरेंट में नाश्ता कर बाहर निकले । टैक्सी ड्राइवर हमारा ही इंतजार कर रहा था । सर्वप्रथम हमने टैक्सी ड्राइवर को सेल्यूलर जेल लेकर चलने के लिए कहा । 


अरेबियन समुन्द्र के किनारे बनी यह जेल अंग्रेजों के समय काला पानी के नाम से  प्रसिद्ध थी । जिस स्वतंत्र सेनानी को अंग्रेज कड़ी से कड़ी सजा देना चाहते थे उसे यहां भेज दिया करते थे क्योंकि यह दीप चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है जिसके कारण कोई भी यहाँ से कहीं भाग नहीं सकता था । उस समय यहाँ आने जाने का एक मात्र साधन जहाज हुआ करते थे । यह जेल स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को दी गई भीषण यातनाओं का दर्द समेटे हुए है ।


हमारे गाइड ने हमें बताया कि सेलुलर जेल की इमारत का निर्माण 1896 से 1906 किया गया था किंतु इसके बहुत पहले 1857 में हुए गदर में बचे वीर सेनानियों को भी दंड स्वरूप यहीं रखा गया था । सबसे बड़ी बात यह है कि हाथ पैरों में बेड़ियां पहने उन वीर सेनानियों से इस जेल का निर्माण तो कराया ही गया,  कुछ सेनानियों को इमारतों और बंदरगाह के निर्माण के कार्य में भी लगाया गया । यह जेल सात भागों में विभक्त है । हर भाग तीन मंजिला है । इस जेल के बीच में स्थित सेंटर टावर के द्वारा सभी कैदियों पर नजर रखी जा सकती है । इसका एक-एक कमरा लगभग 13 फीट लंबा और 7 फीट चौड़ा है इसका निर्माण ऐसे किया गया है कि एक कमरे में रहने वाला दूसरे कमरे में रहने वाले को न देख  पाए । इस जेल में प्रत्येक कमरे में सलाखें भी ऐसी लगाई गई हैं कि सलाखों से देखने पर दूसरे कमरे का पीछे वाला हिस्सा अर्थात दीवार ही दिखाई दे । कमरे में हवा पानी के लिए सिर्फ एक छेद था । इस तरह के इस जेल में 693 कमरे  (सेल) हैं ।


जेल में प्रवेश करते ही सामने फ़ोटो गैलरी में लगे वीर शहीदों के चित्रों को नमन कर हम आगे बढे। प्रवेश करते ही गाइड ने जेल के दाहिनी तरफ स्थित एक कमरा दिखाया जहाँ स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को फांसी दी जाती थी तथा इसी कोठारी के बाहर खुलते दरवाजे से उनके शवों को समुन्द्र में फेंक दिया जाता था । इस कोठरी से सटी इमारत।की तीसरी मंजिल में वीर सावरकर को दस वर्ष रखा गया जिससे वे विचलित होकर अंग्रेजी साम्राज्य के आगे झुक जायें ।



 इस जेल में वीर सावरकर , बटुकेश्वर दत्त,  बहादुर शाह जफर, नंद गोपाल, सोहन सिंह, वामन राव जोशी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों  ने जीवन बिताया । 1930 में प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महावीर सिंह जो आजादी की लड़ाई में शहीद भगत सिंह के सहयोगी रह चुके थे उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिये जा रहे अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ भूख हड़ताल भी की  थी जिसे वीर सावरकर ने यह कहकर तुड़वाया था कि जब हम ही नहीं रहे तो देश को आजाद करवाने की लड़ाई कौन लड़ेगा !!


इन वीर सेनानियों को दी गई यातनाओं को चित्रों द्वारा दर्शाया गया है  । गले में लोहे का मोटा सा रिंग, उससे ही लगी लोहे की सलाखों को हाथ पैरों में लगे लोहे के छल्ले को जोड़ा गया था । चित्रों को दिखाने के पश्चात जब गाइड ने जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जाने वाली यातनाओं के बारे में बताया तो रोंगटे खड़े हो गए थे । लोहे की छड़ों से पीटना , जख्मों पर नमक छिड़कना,  नंगे बदन बर्फ की शिला पर लेटने को मजबूर करना, कई-कई दिन खाने  के लिए न देना, इत्यादि इत्यादि।  सच इन वीर सेनानियों ने हमारे लिए अपनी जान कुर्बान कर दीं पर  हम उन्हें क्या दे पाए , सम्मान करना तो दूर उनका नाम लेना भी को याद नहीं रहता है । कोई लेता भी है तो सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए । देशभक्ति का ऐसा जज्बा और जुनून, आज शायद ही नवयुवकों में देखने को मिले । आज की पीढ़ी तो सिर्फ और सिर्फ अपने लिए ही जीना चाहती है । 


भरे मन से वे जेल से बाहर निकले तथा सिप्पी घाट की ओर चल दिए । 80 एकड़ में फैला यह उपजाऊ जमीन है । यहाँ मसालों जैसे दालचीनी, तेजपत्ता, काली मिर्च ,जायफल इत्यादि की खेती होती है । वहाँ उपस्थित कर्मचारी ने हमें लौंग,दालचीनी के नमूने दिखाये। उनकी खुशबू देख कर हमें असली-नकली का भेद समझ मे आ गया था । आवश्यकता के कुछ मसाले हमने वहां से खरीदे । मन तो था कुछ देर और यहां घूमा जाए किन्तु समय कम था । हम बाहर निकल आए तथा कोरेबियन कोव बीच की ओर चल दिये ।


 कोरेवियन  कोव  बीच नारियल के हरे भरे पेड़ों से घिरा सैंडी बीच है । समुद्र का नीला पानी जहां मन को मोह रहा था वहीं समुद्र की ऊंची- ऊंची लहरें उसकी विशालता का अनुभव कर आ रही थीं । अजय, पदम और रिया के साथ समुद्र की लहरों में प्रवेश कर अठखेलियां करने लगे । पदम और रिया बहुत ही एक्साइटेड थे ।उन्होंने उसे भी पानी के अंदर खींचने का प्रयत्न किया पर उसने मना कर दिया । दरअसल उसने बच्चों और और अजय के कपड़े तो रख लिए थे पर अपने कपड़े रखना भूल गई थी । एक घंटा बीत गया पर फिर भी उनका बाहर निकलने का मन नहीं कर रहा था । अंततः  अजय ने यह कहकर बच्चों को बाहर निकाला था कि और जगह भी घूमनी है । वैसे कोरेवियन कोव बीच  सनसेट पॉइंट के लिए भी प्रसिद्ध है । अगर शाम तक रुकते तो अन्य जगह नहीं घूम पाते । 


अब जंगलों और छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच गुजरते हुए चिड़िया टापू पहुंचे । हमें बताया गया कि इस टापू पर तरह-तरह की चिड़ियाएं आती हैं शायद इसीलिए इसका नाम 'चिड़िया टापू 'पड़ा । हम अंदर जा ही रहे थे कि एक आदमी ने बताया कि यहां फिल्म की शूटिंग चल रही है । हम भी दर्शकों की पंक्ति में जाकर खड़े हो गए । पहली बार फिल्म की शूटिंग देखने का अवसर मिल रहा था अतः बहुत ही उत्सुक थे । हीरो तो पता नहीं कौन था पर एक्ट्रेस भानुप्रिया ही थी । गाना तमिल भाषा में होने के कारण समझ में नहीं आ रहा था पर लग रहा था कि गाने की एक ही पंक्ति पर तीन बार रिटेक हुआ । तब जाकर शॉट ओ.के. हुआ । कैमरा एक घूमने वाली गाड़ी पर था जिसे विभिन्न एंगिल पर घुमाया जा सकता था । लाइट वाले तो थे ही,  हीरोइन के बाल और कपड़ों को लहराने के लिए बड़े-बड़े पेडेस्टल फैन भी लगाए हुए थे । एक अनोखा अनुभव था ।


' सुनो कुछ खाओगी ?' अजय ने पूछा ।


अजय की आवाज सुनकर वह अपने विचारों के भंवर से बाहर आई । उसने पुनः अजय की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा । अजय ने अपना प्रश्न पुनः दोहराया , उनका प्रश्न सुनकर उसने नकारात्मक स्वर में सिर  हिलाया ।


'  क्या बात है ?अनमयस्क बैठी हो।  तबीयत तो ठीक है न । सुबह से कुछ खाया नहीं है । कुछ खा लो । तब शायद ठीक लगे । मैं ब्रेड सैंडविच ले लेता हूँ । इस फ्लाइट में खाना ऑन पेमेंट बेसिस पर मिल रहा है ।'


'  ले लीजिए अजय जानते थे कि जब उसका मूड ठीक नहीं होता तब कुछ भी खाने पर वह स्वयं को फ्रेश महसूस करती है । शायद खाना उसे डिप्रेशन से मुक्त करता है पर इस समय वह डिप्रेस्ड नहीं थी । बस ख्यालों में खो गई थी ।


 वे खाकर चुके ही थे कि घोषणा हुई कि आप सभी सीट बेल्ट बांध लें ,विमान लखनऊ एयरपोर्ट पर लैंड करने वाला है । कुछ ही मिनटों पश्चात हमारे वायुयान जमीन छू ली । विमान से उतर कर उन्होंने एयरपोर्ट में प्रवेश किया । एयरपोर्ट काफी बदला बदला लग रहा था ।  पुराने एयरपोर्ट की तुलना में इसकी इमारत भव्य थी । सामान आने में लगभग 20 मिनट लग गए ।


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 हम सामान लेकर अभी बाहर निकले ही थे कि शैलेश और नंदिता 'वेलकम दीदी एवं जीजा जी 'का फ्लैग लेकर खड़े नजर आए । उन्हें देखते ही शैलेश और नंदिता ने एक साथ कहा, '  वेलकम दीदी एवं जीजा जी ।'


 इसके साथ ही उन्होंने उनके हाथ से सामान वाली ट्रॉली ले ली  तथा गाड़ी की तरफ बढ़ने लगे । घर पर मम्मा डैडी उनका इंतजार कर रहे थे । गाड़ी की आवाज सुनते ही मम्मा गेट पर आ गईं ।  वह बहुत दुबली लग रही थीं ।  उषा अंदर प्रवेश करने जा ही रही थी कि मम्मी ने उसे रोकते हुए कहा, '  रुक बेटा,  नंदिता तुम दोनों का स्वागत करना चाहती है ।'


'  2 मिनट रुको दीदी,  मैं अभी आई । जीवन दीदी जीजा जी का सम्मान उनके कमरे में रख दो ।'  जीवन को निर्देश देते हुए नंदिता अंदर चली गई ।


'  यह जीवन...।'


'  रामदीन बहुत बूढा हो गया है । अब वह सिर्फ किचन संभालता है । अन्य कामों के लिए जीवन को रख लिया है ।' मम्मा ने उसकी आँखों में प्रश्न देखकर उसका समाधान किया  था ।


' बेबी आप कैसे हो ?' कहते हुए रामदीन ने अपने हाथ में लिया आरती का थाल ममा को पकड़ाते हुए उसके पैर छुए ।


' मैं ठीक हूँ । रामदीन  तुम कैसे हो ?'


' जब तक साहब मेम साहब का हाथ म्हारे सिर पर है तब तक हमें कुछ नहीं हो सकता ।' 


रामदीन उनका पुराना नौकर है । वस्तुतः उसने जब से होश संभाला तबसे सदा रामदीन  को सबकी सेवा में संलग्न पाया है । रामदीन उनके लिए नौकर नहीं , उनके घर का सदस्य जैसा ही है । उसे याद आया जब वह बी.एस.सी. कर रही थी, एक दिन उसके कॉलेज में हड़ताल हो गई । उसकी मां को अपनी किसी मित्र से पता चला कि कॉलेज में हड़ताल हो गई है,  वह परेशान हो उठीं ।  एकाएक उन्हें कुछ नहीं सूझा । उन्होंने रामदीन को कॉलेज भेज दिया ।  रामदीन कॉलेज जाकर प्रत्येक से पूछने लगा आपने हमारी बेबी दीदी को देखा …


' अरे भाई कौन बेबी दीदी ...नाम तो बताओ ।' उसका प्रश्न सुनकर कई लोगों ने पूछा ।


' अरे भैया बेबी ही तो नाम है उनका । घर में सब उन्हें बेबी कहकर ही बुलावत रहे हैं । इसी बीच उसका एक मित्र जो उसके घर आ चुका था रामदीन को पहचान कर उसे कॉमन रूम में लेकर गया ।  उसे देख कर वह खुशी के कारण कह उठा ,' बेबी दीदी, आप यहां हो , हम आपको कहां-कहां नहीं ढूंढे,  भला हो इन बाबू जी का जो यह हमें आपके पास ले आए वरना हम मेम साहब को क्या मुँह  दिखाते ।  अब आप घर चलिए । मेम साहब ने आपको घर लेकर आने के लिए हमें भेजा है ।' 


रामदीन की बात सुनकर उषा की सहेलियां हँस पड़ी थीं तथा वह खिसिया गई थी । उसने चिढ़कर कहा था, '  तुम जाओ मैं आ जाऊंगी ।'


' हम आपको लिए बिना जायेंगे तो मेम साहब हमको बहुत डाँटेंगी ।'


 अंततः उषा को उसके साथ जाना पड़ा था । घर आकर वह ममा पर बहुत बिगड़ी थी । उसे लगता था कि उसकी स्वतंत्रता का हनन हुआ है । बार-बार लड़कियों का हंसना उसे शर्मिंदा कर रहा था । मम्मा उसकी बातें शांति से सुनती रहीं पर जब उसका क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने कहा, '  माना मैं आज तेरी नजरों में दोषी हूँ पर कोई दंगा फसाद हो जाता और तू उस में फंस जाती तब …!! बेटा आज हम भले ही लड़कियों की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं पर यह भी सच है कि थोड़ी सी ऊंच-नीच लड़कियों का पूरा जीवन नष्ट करने की क्षमता रखती है । हमारा समाज लड़कों की अनेकों गलतियों को क्षमा कर सकता है पर लड़की की एक छोटी सी भूल भी वह माफ नहीं कर पाता । तुम्हारा सह शिक्षा महाविद्यालय है इसलिए मन अधिक ही घबराता है ।'


' मम्मा जब तक हम स्त्रियों में आत्मविश्वास नहीं होगा तब तक हमें डराने वाले डराएंगे ही,  आप भी तो समाज सेवा के द्वारा हर स्त्री में विश्वास रूपी चेतना जगाने का प्रयास कर रही हैं ।'


'  तू ठीक कह रही है बेटी पर जगह -जगह घूमने के पश्चात मेरा विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि स्त्री कहीं भी सुरक्षित नहीं है यहां तक कि अपने घर में भी... इसलिए हर स्त्री को अपने आँख और कान सदा खुले रखने चाहिए । हर खतरे को भांपने की शक्ति विकसित करनी चाहिए तभी पग- पग पर बिछे कांटों से बचा जा सकता है ।'


आज उषा को महसूस हो रहा था कि मम्मा की यह बात 40 वर्ष पश्चात भी शत प्रतिशत सही है शायद पहले से भी अधिक ...स्त्रियों का शोषण ,बलात्कार के मामले आज घटे नहीं वरन बढ़े ही हैं । आज भी समाज में दोगले चरित्र के लोग मौजूद है जिन्हें पहचाना आज भी सहज नहीं है । ऐसे लोग कब किसे अपने जाल में फसाकर धोखा दे दें पता ही नहीं चल पाता है और बेचारी लड़कियां समाज के लिए अस्पृश्य हो जाती हैं जबकि आरोपी पुनः अपराध करने के लिए स्वतंत्र घूमते रहते हैं । समाज का यह दोगलापन उसकी समझ से बाहर था । लड़की के साथ ऐसा व्यवहार क्यों ? आखिर उसकी गलती क्या है ? क्या केवल इसलिए कि वह शारीरिक रूप से कमजोर है या इसलिए कि वह शीघ्र ही किसी पर विश्वास कर लेती है ? क्या किसी पर विश्वास करना गलत है ? अगर कोई किसी के विश्वास भंग कर दे तो ...सजा सिर्फ वही क्यों भुगते ? 


यद्यपि अजय जहाँ रहे थे , उनके कड़े अनुशासन के कारण जिले की कानून व्यवस्था में सुधार हुआ था पर अपनी इसी सोच के तहत उसने अजय से कहकर हर जिले में 'वूमेन हेल्पलाइन' भी प्रारंभ करवाई थी । चाहे दहेज के द्वारा उत्पीड़न हो या सामाजिक शोषण,  अगर कोई महिला शिकायत दर्ज करवाती तो तुरंत ही उसकी शिकायत पर कार्यवाही होती थी तथा उसे उचित न्याय दिलवाने का प्रयास होता । खुशी तो इस बात की थी कि उसके इस प्रयास को अच्छा रिस्पांस भी मिला था।


 मम्मा ने उन दोनों को टीका लगाकर आरती उतारकर मुंह मीठा करवाने के लिए अपना हाथ उसके मुँह की ओर बढ़ाया ।  उसकी प्रतिक्रिया ना पाकर मम्मा ने कहा , ' कहाँ खो गई बेटा,  मुँह मीठा कर...।'


 उनकी आवाज सुनकर वह विचारों के भंवर से बाहर निकली । माँ के हाथ से मिठाई खाई, उसके पश्चात उन्हें घर में प्रवेश की अनुमति मिली । 


'दीदी जीजा जी आप दोनों फ्रेश हो लें तब तक मैं खाना लगवाती हूँ ।'  कहकर नंदिता किचन में चली गई ।


 अजय और उषा जब अपने कमरे में पहुँचे, कमरे की व्यवस्था देखकर उसने मन ही मन नंदिता की तारीफ की ।  बाथरूम में भी टॉवल सोप,  सब यथा स्थान रखे हुए थे । अजय फ्रेश होने चले गए तथा उषा के मन में फिर द्वंद चलने लगा...  आज उसे लग रहा था कि भले ही अजय के पद की वजह से उसे सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती रही हो पर आज उसके पास क्या है ? जैसे उसने आज से 35 वर्ष पूर्व जिंदगी की शुरुआत की थी ठीक वैसे ही स्थिति क्या उसके लिए आज नहीं है !! मम्मा सच कहती थीं  कि नौकरी पेशा इंसान चाहे कितना भी उच्च पदस्थ क्यों न हो उसकी प्रतिष्ठा क्षणिक होती है जबकि बिजनेसमैन की स्थाई । पापा और शैलेश के पास सारी जिंदगी वही सुविधाएं रहेंगी जो उन्होंने अपने कर्म से अर्जित की हैं  जबकि अजय अपने कर्म से अर्जित अपनी प्रतिष्ठा मान सम्मान सब पीछे छोड़ आए हैं । अब उन्हें एक नए सिरे से जीवन प्रारंभ करना होगा । नई जान पहचान बनानी होगी ,नए रिश्ते कायम करने होंगे । क्या अब इस उम्र में यह सब संभव हो पाएगा ?  माना पैसा है पेंशन है जिससे उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा पर वह मान सम्मान तो नहीं है ।


' जल्दी से फ्रेश हो लो । सब खाने पर  हमारा इंतजार कर रहे होंगे ।' उषा के मन के अंतर्द्वंद से अनभिज्ञ अजय ने कहा ।


अजय की आवाज सुनकर एक बार उषा ने मन के द्वंद से मुक्ति पाते हुए कहा, '  आप चलिए मैं आती हूँ ।'


' तुम भी फ्रेश हो लो ,साथ साथ ही चलेंगे ।'


फ्रेश होकर जब वे बाहर आए तब सब उनका इंतजार कर ही रहे थे । अजय की मनपसंद पनीर बटर मसाला ,भरवा भिंडी के साथ बूंदी रायता और पुलाव था । 


' भाभी आपको मेरी और अजय की पसंद आज भी याद है ।' 


' आप भी कैसी बात कर रही हैं दीदी , आप हमारी अपनी हैं कोई गैर नहीं । बहुत दिनों पश्चात मिल रहे हैं तो क्या हुआ पसंद ना पसंद तो याद रहेगी ही आखिर जीवन के सुनहरे पल कोई भूल पाता है !! दरअसल अतीत के खूबसूरत पल ही तो जीवन में अनचाहे ही पदार्पण करती  विषम परिस्थितियों में जीने की संजीवनी देते हुए जीवन को खूबसूरत बनाते हैं ।' नंदिता ने कहा था ।


उषा देर रात तक मम्मा डैडी से बात करती रही । डैडी ने बिजनेस से रिटायरमेंट ले लिया था तथा मम्मा अपने घुटने के दर्द की वजह से अब लंगड़ा कर चलने लगी थीं  । नंदिता को मम्मा डैडी के खाने पीने तथा दवा का ध्यान रखते देख कर उषा सोच रही थी , काश ! उसकी सास को भी उसके साथ बिताने के लिए कुछ पल और मिल जाते ।


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 दूसरे दिन उषा अपनी ननद अंजना के घर उससे मिलने गई । घंटी बजाने जा ही रही थी कि अंदर से तेज तेज आवाजें सुनकर घंटी दबाने के लिए बढ़े हाथ पीछे हट गए ।


' चाय बना कर देने में जरा सी देर हो गई तो आप इतना हंगामा कर रही हैं । आपकी वजह से ही मैं अपने मित्र की जन्मदिन की पार्टी से जल्दी आई हूँ ।'


' जल्दी आ गई तो कौन सा एहसान कर दिया !! मैं अब कुछ नहीं कर पाती हूँ तो तुम्हारे लिए बोझ बन गई हूँ । क्या क्या नहीं किया मैंने तुम्हारे और इस घर के लिए... तुम्हारे दोनों बच्चे देवेश और संयुक्ता मेरे ही हाथों पले बढ़े हैं ।  अरे,  मेरा नहीं तो कम से कम अपने पापा का ही ख्याल कर लिया कर ।  मयंक होता तब तो तू आती ही न ।'


'  पूरा दिन आपकी सेवा करने के पश्चात भी आप संतुष्ट नहीं रह पातीं तो मैं कुछ नहीं कर सकती । आखिर मैं भी अपनी जिंदगी जीना चाहती हूँ । 


' जा अपने कमरे में जा... हम बुड्ढे बुढ़िया की परवाह ही किसे है ? तुम लोगों के लिए तो हम कचरे का ढेर हैं ,बस फेंक ही नहीं पाते हो ।'


उषा और अजय इस वाद विवाद को सुनकर समझ नहीं पा रहे थे कि घंटी बजाएं या ना बजाएं । अजय अंजना को बिना बताए आकर सरप्राइज देना चाहते थे पर अब उन्हें लग रहा था कि किसी के घर बिना बताए जाना उसकी तार-तार होती जिंदगी में ताक-झांक करने जैसा है । अनिश्चय की स्थिति में वे लौटने की सोच ही रहे थे कि मयंक आ गए उन्हें देखकर मयंक ने कहा , ' भाई साहब भाभी जी आप ...आप लोग बाहर क्यों खड़े हैं ? अंजना तो कल से ही आपका इंतजार कर रही है ।'  कहते हुए मयंक ने घंटी बजा दी ।


अंजना ने दरवाजा खोलते ही उन्हें देखकर कहा ,'भैया भाभी आप अचानक…'


' हां दीदी , बस एक छोटा सा सरप्राइज देना चाहते थे इसलिए फोन नहीं किया था ।' उत्तर उषा ने दिया था  ।


अंजना ने उनकी खातिरदारी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर उसके चेहरे पर छाया असंतोष कहीं न कहीं से झलक ही जाता था विशेषतया तब जब उसकी सास घुमा फिरा कर बार-बार एक ही बात कहतीं पूरी जिंदगी काम किया है ।  इसके बच्चे देवेश और संयुक्ता मेरे हाथों ही पले बढ़े हैं । क्या-क्या पापड़ नहीं बेले बच्चों के लालन-पालन में... पर अब मुझसे कोई काम नहीं होता । परवश हो गई हूँ  किसी को क्या कहूँ, समय के साथ स्वयं को बदलना एवं सहना पड़ता ही है ।


ममा के घर के माहौल तथा अंजना के घर के माहौल की उषा ने तुलना की तो जाने अनजाने वह सोचने को मजबूर हो गई क्या सिर्फ अंजना की ही गलती है या उसकी सास ही उसके साथ सहयोग नहीं करना चाहतीं । अगर आपसी सामंजस्य न हो तो देर सबेर ऐसी घटनायें होंगी ही, तब क्या घर का वातावरण सामान्य रह पाएगा ? क्या बच्चों की ऐसे माहौल में स्वस्थ परवरिश संभव है ? 


उस दिन ऐसे ही अनेकों प्रश्न लिए उषा अंजना के घर से लौटी थी ।


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  दो दिन पश्चात अजय और  उषा का सामान आ गया और वे अपने 3 बैडरूम के विला में आ गए । उनका पार्क फेसिंग विला था । घर को सेट कर ही रहे थे कि एक युगल ने घंटी बजाई । अजय के बाहर आते ही उन्होंने कहा, ' हम आपके पड़ोसी हैं । मैं डॉ रमाकांत एवं यह मेरी पत्नी उमा ।'


' आइए...आइए ।' अजय उनको घर के अंदर लेकर आये तथा उससे उनका परिचय करवाया ।


 ' आज का डिनर आप हमारे साथ हमारे घर करेंगे ।' उमा ने उनकी ओर देखते हुए कहा ।


 ' इसकी क्या आवश्यकता है ? हम मैनेज कर लेंगे ।' अजय ने कहा ।


' अब हम पड़ोसी बन गए हैं । एक अच्छा मित्र ही एक अच्छा पड़ोसी हो सकता है । उस दिशा में यह डिनर एक छोटा सा प्रयास है ।' रमाकांत ने कहा ।


'  पर...।'


' पर वर कुछ नहीं भाई साहब । आपको आना ही होगा ।' उमा ने आत्मीयता से कहा ।


यद्यपि मम्मा ने उसकी सहायता के लिए रामदीन को उसके साथ भेज दिया था पर वे उनके आग्रह को ठुकरा नहीं पाए अंततः उन्होंने अपनी सहमति दे दी ।


शाम को वे उनके घर गए ।


' आइए अजय जी हम आपका ही इंतजार कर रहे थे ।' कहते हुए रमाकांत उन्हें अंदर ले गए ।


अंदर आकर वह बैठे ही थे कि उमा एक ट्रे में जूस और नाश्ता लेकर आ गईं तथा कहा, ' वेलकम वेलकम... आप आए हैं तो बहुत ही अच्छा लग रहा है ।' 


उमा बहुत ही सुलझी हुई लगी ।  रमाकांत एक वर्ष पूर्व ही सी.एम.ओ. के पद से सेवानिवृत्त हुए थे । वह भी इस शहर में पैर जमाने का प्रयास कर रहे थे । वह गोरखपुर से थे पर सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने अपने स्थाई निवास के लिए लखनऊ को ही चुना था । उनका मानना था कि लखनऊ सेंट्रल प्लेस है जिसके कारण कहीं भी आने-जाने के लिए यू.पी . के अन्य जिलों की तुलना में यहां अच्छी सुविधाएं हैं । उनके दोनों बच्चे श्रेया और शैवाल ऑस्ट्रेलिया और स्कॉटलैंड में थे ।


उमाकांत और अजय आपस में बातें करने लगे । उषा, उमा की सहायता करवाने के उद्देश्य से उमा के मना करने के बावजूद किचन में चली गई । किचन बहुत ही व्यवस्थित और साफ सुथरा था ।  खाना भी उन्होंने पहले से ही बनाकर हॉट केस में डाइनिंग टेबल पर रख दिया था बस पूरियाँ ही तलनी  थीं ।


'  अगर मैं आपको आपके नाम से बुलाऊँ तो बुरा तो नहीं लगेगा ।' पूरी बनाते हुए उमा ने उससे पूछा ।


' बिल्कुल नहीं , आप मुझे उषा कहकर बुला सकती हैं ।'


' दरअसल मुझे श्रीमती शर्मा या वर्मा कहना कभी अच्छा नहीं लगा । हम अपने नाम के बजाय अपने पति के नाम से क्यों पहचानी या बुलाई जाएं आखिर हमारी भी तो कोई पहचान है,  हमारा भी अपना अस्तित्व है ।' उमा ने उससे कहा ।


'  आप ठीक ही कह रही हैं । मेरी भी यही सोच रही है पर कुछ लोगों को नाम से पुकारा जाना पसंद नहीं होता है ।'


' किसी और को हो या ना हो पर मुझे और आपको कोई आपत्ति नहीं है तो हम एक दूसरे को नाम से ही पुकारेंगे ।'


' ओ.के. उमा जी । आप तो एक वर्ष से यहाँ पर हैं । आपको यहां कैसा लग रहा है ? क्या-क्या एक्टिविटीज हैं ?'


' एक्टिविटी तो बहुत है यहाँ पर ।  महिलाओं की किटी चल रही है । हम लोगों का एक सीनियर सिटीजन ग्रुप भी है ।'


'सीनियर सिटीजन ग्रुप...।'


' इस ग्रुप में सभी सेवानिवृत्त दंपति है । सभी अपनी- अपनी तरह से जीने का प्रयास कर रहे हैं ।'


' सभी जीने का प्रयास कर रहे हैं , आपने ऐसा क्यों कहा उमा जी ?'


'  उषा सेवानिवृत्ति के पश्चात जीवन प्रारंभ करना जीवन की एक नई सुबह है पर यह सुबह आशाओं से भरी नहीं है । इस जीवन में न कोई आस है और न ही कोई उमंग ,बस जीवन काटना मात्र है... एक ऐसा जीवन , जिसकी किसी को आवश्यकता ही नहीं है ।'


' उमा जी आप यह क्या कह रही हैं ? हमने अपनी सारी जिम्मेदारियां भली-भांति निभाई हैं । जिम्मेदारियों से मुक्त हुए तो यह विचार क्यों ? अभी तक हम औरों के लिए जीते आए थे, अब हमें अपने लिए अपनी इच्छा अनुसार जीना चाहिए ।' अनायास ही उषा के होठों पर अजय की विचारधारा आ गई थी ।


'  बच्चों से दूर मन का खाली हिस्सा न जाने क्यों सोचने लग जाता है कि अब हमारी किसी को आवश्यकता नहीं है ।  तब मन अवसाद से भर उठता है ।' कहते हुए उमा के चेहरे और उदासी छा गई थी ।


' बच्चे अपनी जगह खुश हैं , खुश रहें । संतुष्टि का यही भाव हमारे अंदर चेतना का संचार करें , हमारा बस यही प्रयास रहना चाहिए ।'


' तुम ठीक कह रही हो उषा पर मन न जाने क्यों  कभी-कभी बेहद असंतुष्ट हो जाता है । खैर..अगले शनिवार को यानी 9 मार्च शशि अरोड़ा के घर सिटीजन ग्रुप की गोष्ठी है । अभी हमारे इस ग्रुप में सात फैमिली हैं । सभी सेवानिवृत्त हैं । तुम भी हमारे साथ चलना यदि वहाँ का माहौल उपयुक्त लगे तो अगले महीने से ज्वाइन कर लेना ।'


'  क्या होता है इस गोष्ठी में ?'


'एक राउंड तंबोला होता है इसके पश्चात कोई गेम , तत्पश्चात एक घंटे किसी टॉपिक पर विचार विमर्श होता है । इस बार का विषय है ' श्री कृष्ण का बाल रूप ' किसी एक पर ज्यादा बोझ न पड़े इसलिए जिसके घर गोष्ठी होती है उसके घर सब लोग एक-एक डिश बनाकर ले जाते हैं । इसके अतिरिक्त हर त्योहार पर गैदरिंग करने की भी  हम लोग कोशिश करते हैं ।'


' अभी तो होने होली आने वाली है  ।'


' हाँ 18 मार्च को होली है । 17 मार्च को धुलेंडी  के दिन श्रीमती लीना एल्हेन्स के घर पर प्री होली समागम है  । उनके घर होली जलाई जाती है अतः यह कार्यक्रम उनके घर ही होता है ।


'  वाह उमा जी ...वास्तव में बहुत अच्छा है आपका यह ग्रुप ।'


'  हाँ उषाजी, महीने में एक दिन तो हम अपनी जिंदगी जी ही लेते हैं । सबसे बड़ी बात हमारे साथ हमारे पति भी एन्जॉय  करते हैं वरना लेडीज किटी में हम स्त्रियां तो एन्जॉय करती हैं पर हमारे पतिदेव घर में बैठे हमारा इंतजार करते रहते हैं । यह मुझे अच्छा नहीं लगता था । पहले की जिंदगी और अब की जिंदगी में काफी अंतर आ गया है । पहले यह लोग ऑफिस में रहते थे और हम अपनी  खुशियां दूसरी जगह तलाशती थी पर अब हमें ऐसी जगह तलाशनी हैं जहां दोनों को खुशियां मिल पाए ।' 


 उमा की बात सुनकर उषा कुछ कह पाती तभी अजय की आवाज आई , 'खाना हो गया हो तो चलें।'


'  हाँ जी, बस आई ।'  बातें करते-करते कब खाना पीना हो गया पता ही नहीं चला ।


उमा और रमाकांत को धन्यवाद देते हुए वे घर आ गए थे । अजय तो सो गए थे पर उषा की आँखों में नींद नहीं थी । उसे न जाने  ऐसा क्यों महसूस हो रहा था कि जीवन की प्रत्येक अवस्था एक नया संदेश लेकर आती है । हर अवस्था की अलग अलग आवश्यकताएं हैं , अलग चुनौतियां हैं । इंसान को सुनिश्चित करना होगा इन बदली अवस्था में उसकी प्राथमिकताएं क्या हैं पर एक बात अवश्य है वह प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खोलने का अपना इरादा नहीं बदलेगी ।


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 सुबह नाश्ता करके उषा उठी ही थी कि पदम का फोन आ गया ।  वह 15 दिन के पश्चात हफ्ते भर के लिए आ रहा था । साथ में रिया भी आ रही थी । सुनकर उषा की प्रसन्नता का पारावार न रहा । 


15 दिन में ही घर सेट करना था पर जब एक टारगेट निश्चित कर ले तो सोचा हुआ काम पूरा ना हो पाए, ऐसा हो ही नहीं सकता । अनिला का कनछेदन नहीं हुआ है, क्यों न इस बार उसके कान छिदा दें । साथ में एक छोटी सी पार्टी का भी आयोजन कर लें । मन में विचार आते ही उषा ने अपने मन की बात अजय से की तो उन्होंने कहा, ' यह तो बहुत अच्छा विचार है । एक रस्म भी पूरी हो जाएगी , साथ ही नई जगह में नए लोगों को बुलाकर अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा देंगे...जान पहचान का दायरा बढ़ेगा ।'


नई जगह, नया विचार, नई योजना मन में नई स्फूर्ति का संचार हो गया था । काम करने के लिये नौकरानी पूनम मिल ही गई थी । खाना बनाने के लिए महाराजिन  की तलाश जारी थी । रामदीन को वापस भेज दिया था । आखिर वह कब तक रहता घर तो सेट हो ही गया था ,जो कुछ बचा था धीरे धीरे वह भी हो ही जाएगा । अब एक बैंक्विट हॉल की तलाश में जुट गए आखिर शैलेश और नंदिता की सलाह पर 'बंदिनी' हॉल बुक करा लिया ।


लोगों से जुड़ने के प्रयास में शनिवार को होने वाली सीनियर सिटीजन ग्रुप की गोष्ठी में जाने का भी मन बना लिया । जब सब लोग कुछ न कुछ बना कर ले जा रहे हैं तब खाली हाथ जाना अच्छा नहीं लगेगा । खाने में पता नहीं कौन क्या ला रहा है । स्नेक्स में वैरायटी चल सकती है,  सोचकर उषा ने स्प्रिंग रोल बना लिए ।


 डॉ रमाकांत और उषा के साथ वे प्रकाश और शशि अरोड़ा के घर गए । वहां पहले से ही कुछ लोग उपस्थित थे । प्रकाश और शासी को तो उमा और रमाकांत ने बात दिया था किंतु उनको देखकर कई आंखों में प्रश्न देखकर उमा उनका परिचय करवाने ही जा रही थी कि अजय ने कहा,  ' मैं अजय रिटायर्ड प्रिंसिपल सेक्रेट्री फ्रॉम बिहार और यह है मेरी पत्नी उषा ।' कहते हुए उन दोनों ने अभिवादन में  हाथ जोड़ दिए ।


' आपका स्वागत है ।  मैं हूँ मेजबान प्रकाश रिटायर्ड मैनेजर फ्रॉम रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एवं यह हैं मेरी अर्धांगिनी शशि अरोड़ा ।'  प्रकाश ने अजय की तरफ हाथ बढ़ाया तथा शशि जी ने हाथ जोड़े ।


' मैं आनंद तथा मेरी पत्नी लीना एल्हेन्स रिटायर्ड कमिश्नर इनकम टैक्स ।'


'मैं अरविंद एवं माय बेटर हाफ नीलम झा पीसीएस '


' मैं गौतम एवं नीलिमा स्वामी  हम दोनों ही प्राध्यापक रहे हैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में ।'


 मैं फरहान और मेरी पत्नी नजमा अख्तर रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ।'


'  हमें तो आप जानते ही हैं मैं डॉक्टर रमाकांत और मेरी पत्नी उमा ।' रमाकांत ने उठकर परिचय देते हुए कहा ।


आर्मी मुझसे 

मैं आर्मी से 

जीता रहा हरदम 

इस खयशनुमा एहसास में ...

गोली सीने पर खाई 

पीठ पर नहीं ,

मेडल मिले 

पर अब 

नाम के आगे 

लग गया  पुच्छला

 रिटायर्ड का, 

छुटाए छूटता नहीं 

भुलाए भूलता नहीं, 

क्यों एहसास दिलाते हो 

उस जीवन का 

जो हमारा रहा ही नहीं 

हम आम हैं आम ही रहें 

आम ही जियें, आम ही मरें

 मेरी आपकी सबकी 

यही कहानी ...।'


' तुरंत दिल से निकली कहिए कैसी है मेरी यह नायाब कविता ।  मैं कर्नल देवेंद्र एवं यह हैं मेरी धर्मपत्नी कविता ।'  देवेंद्र ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े थे ।


वाह एकदम सटीक... कई आवाज एक साथ उठीं  ।


'हम आम हैं आम ही रहें, आम ही जियें आम ही मरें... बहुत सुंदर लाइन हैं ...।'गौतम स्वामी ने कहा ।


उषा को लगा इस छोटे से हॉल में एक मिनी भारत समा गया है । सबके आते ही कॉफी सर्व हुई ।उसके साथ ही सर्व हुए उषा के बनाएं स्प्रिंग रोल...  सबने स्प्रिंग रोल की बेहद प्रशंसा की ।


' थैंक्स.. ।' कहते हुए पता नहीं उषा को ऐसा क्यों लगा कि वह यहां के लिए नई नहीं है । उसने इस ग्रुप को ज्वाइन करने का मन बना लिया । देवेंद्र के पास जहां कविताओं का भंडार था  वहीं प्रकाश और शशि अच्छे गायक थे । नीलिमा अच्छी वक्ता... । ' श्री कृष्ण के बाल रूप की ' उन्होंने बहुत अच्छी व्याख्या की थी ।  वहीं नजमा ने स्वरचित गजल गाकर सबका मन मोह लिया था । 


अगले महीने का मीनू डिसाइड होने के साथ यह भी बता दिया गया कि किसको क्या क्या बनाना है । इसके साथ ही लीना के घर होली पर होने वाले कार्यक्रम में बना कर लाने वाले मीनू का भी निर्णय हो गया । इस दिन उसे फिर से स्प्रिंग रोल बनाने के आग्रह के साथ बच्चों को भी लेकर आने का निर्देश दिया गया । उसने भी उन सभी को अपनी पोती अनिला के कनछेदन में आने का निमंत्रण दे दिया । घर आते आते रात्रि के 12:00 बज गए थे ।  सोते हुए बार-बार उषा को उमा के शब्द याद आ रहे थे कि हम महीने में एक दिन अपनी जिंदगी जी लेते हैं ।


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 16 मार्च को सुबह 10:00 बजे पदम और डेनियल आ गए । शाम 6:00 बजे रिया और पल्लव अपनी पुत्री परी के साथ आने वाले थे । अजय के पार्क में घुमाने तथा पास के शॉपिंग सेंटर में ले जाने के बाद भी अनिला सुबह से ही ' मैं बोर हो रही हूँ ।' की रट लगाए हुई थी पर जैसे ही परी आई वह खुश हो गई ।


' मां देखो मेरी छोटी बहन कितनी प्यारी है ।' अनिला ने डेनियल से कहा ।


 विदेश में रहने के बावजूद अनिला को अंग्रेजी के साथ साफ हिंदी बोलते देखकर उषा को अत्यंत हर्ष हो रहा था । डेनियल भी अब अच्छी हिंदी बोलने लगी थी । उषा हिंदी की कद्रदान थी । उसका मानना था कि बच्चों को दूसरी भाषाओं के साथ अपनी मातृभाषा अवश्य आनी चाहिए । मातृभाषा ही व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ कर रखती है ।


 रिया और डेनियल बहुत दिनों पश्चात मिलने के कारण बेहद प्रसन्न थीं । उनकी लखनऊ घूमने की प्लानिंग चल रही थी उधर पदम और पल्लव अपनी अपनी बातों में मशहूर थे और अनिला और परी ने अपने दादाजी पर कब्जा जमाया हुआ था । वह कभी उनसे किसी चीज की फरमाइश करती, तो कभी बाहर घूमने की पेशकश करती । उषा अजय को बिना तू चपड़ किए बच्चों की एक-एक बात मानते देख कर आश्चर्यचकित थी जबकि वह स्वयं महाराजन स्नेह के साथ किचन में लगी हुई थी । स्नेह को काम करते हुए अभी हफ्ता भर ही हुआ था । उसे अपने स्वाद के अनुसार खाना बनाने की शिक्षा देने के लिए उसके साथ लगना ही पड़ता था । वैसे 2 लोगों के खाने में कुछ विशेष समय नहीं लगता पर वह सिर्फ घर तक ही सीमित नहीं रहना चाहती थी । अगर इस स्नेह ट्रेंड हो गई तो कम से कम वह इस जिम्मेदारी से तो मुक्त रहेगी ।


दूसरे दिन पदम और रिया का लखनऊ भ्रमण का कार्यक्रम बन गया । वे उन्हें भी चलने के लिए कहने लगे पर अजय का मन नहीं था । उनका कहना था बच्चों को जाने दो । हमारे साथ रहने से वे ठीक से एंजॉय नहीं कर पाएंगे । उषा भी उनकी बात से सहमत थी अंततः वे चले गए ।


पल्लव और डेनियल का लखनऊ घूमा हुआ नहीं था  अतः   वे ज्यादा ही उत्साहित थे । नवाबों की नगरी उन्हें सदा से आकर्षित करती रही थी । शाम को जब वे सब लौट कर आए तो बेहद प्रसन्न थे । पल्लव को जहां छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा पसंद आया वहीं डेनियल को भूल भुलैया । उसने आते ही कहा, '  मम्मा पता नहीं इसे कैसे निर्मित किया गया है अगर हम गाइड नहीं करते तो हम सबका भूल भुलैया से बाहर निकलना ही कठिन हो जाता । सबसे बड़ी बात अपनी ही आवाज वहां बहुत देर तक गूंजती रहती है ।' 


अनिला और परी अपने दादाजी के पास बैठी पूरे दिन के किस्से सुना रही थीं ।  कैसे बुद्धा पार्क में वोटिंग की , नींबू पार्क में घूमे तथा जनेश्वर मिश्र वर्क में झूला झूले ।


 इसी बीच ऊषा ने गरमा गरम वेजिटेबिल कबाब पेश किए । उन्हें देखकर पदम कह उठा, '  वाह ममा ! आपका जवाब नहीं । कबाब वह भी गर्मागर्म । इस बार मैं सोच ही रहा था कि आपसे कबाब बनाने के लिए कहूँगा पर मेरे कहने से पूर्व भी आपने बना दिये । थैंक यू मॉम ।'


' ज्यादा मस्का मत लगा,  बता कैसे बने हैं ?'  आदतन वह पूछ बैठी । जबकि अजय उसकी इस आदत के लिए यह कहकर कई बार टोक चुके हैं कि ऐसा वही कहते हैं जिन को स्वयं पर विश्वास नहीं होता ।


'  मम्मा एकदम परफेक्ट लाजवाब ...।' 


डेनियल भी काफी स्वाद से  कबाब खा रही थी , यही हाल रिया और पल्लव का था । भौतिकता की अंधी दौड़ में भाग रहे युवाओं को आज खाने पीने का समय ही कहाँ मिल पाता है । उनकी चाव से कहते देखकर उषा ने हर दिन कुछ नया बनाने और खिलाने का मन बना लिया था ।


 बच्चे कुछ ही दिनों में लगता था पूरा लखनऊ एक्सप्लोर कर लेना चाहते थे अतः लगभग रोज ही उनका कहीं ना कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम बन जाता । कभी वे हजरतगंज जाते तो कभी अमीनाबाद,  कभी चौक तो कभी कपूरथला या फिर कभी वे  फन या वेव मॉल जाते और नहीं तो लखनऊ की चाट खाने ही निकल जाते तथा साथ में उनके लिए भी पैक करा लाते । उषा भी बच्चों को एक साथ घूमते देख कर बहुत खुश थी ।


 उषा उनके लिए रोज ही कुछ स्पेशल बना कर रखती । बाहर का खाने के बावजूद वे उसके हाथ का बना खाना भी  बड़े चाव से खाते ।  बच्चों के घूमने निकलते ही अजय और उषा भी अनिला के कनछेदन का निमंत्रण देने निकल जाते । सीनियर सिटीजन ग्रुप के लोगों के  अतिरिक्त कुछ अन्य लोग भी उनकी लिस्ट में सम्मिलित थे ।


मम्मा डैडी के अतिरिक्त मयंक और अंजना ने भी बच्चों को बुलाया था । उन्हें उन सबको लेकर उनके घर भी जाना था । बच्चों की सुविधा अनुसार उसने दोनों जगह जाने का कार्यक्रम बना लिया । पहले उषा उन्हें अपने मम्मा डैडी के घर लेकर गई । डेनियल अपने नाना -नानी तथा मामा -मामी के लिए उपहार लेकर आई थी ।  उसका उपहार उनके प्रति उसके अपनत्व दर्शा रहा था । डेनियल का अपनत्व एवं व्यवहार देखकर नंदिता ने कहा , ' बहुत भाग्यशाली हैं आप दीदी जो इतनी अच्छी बहू पाई है ।' 


कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया अंजना ने भी दी थी । जब वह उन्हें उनके पास लेकर गई थी ।


' बुआ बुआ ' कह कर डेनियल न केवल अंजना के आगे पीछे घूम रही थी वरन किचन में भी अंजना का हाथ बंटा रही थी । मयंक के माता-पिता भी डेनियल के हाथों से उपहार पाकर बेहद प्रसन्न थे । विशेषता आज माँ जी ने कोई नकारात्मक बात नहीं की ।


धूलेंडी के दिन लीना एल्हेन्स का फोन आ गया  । उन्होंने सबको साथ लेकर आने का एक बार फिर निमंत्रण दिया था ।  अब न ले जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था ।  उसने स्प्रिंग रोल के साथ हरा भरा कबाब और बना लिए ।


लीना ने घर के लॉन में  होलिका रखी थी । सबके पहुंचते ही होलिका दहन की तैयारी प्रारंभ हो गई । डेनियल के लिए यह एक नई चीज थी ।उसने होलिका दहन का कारण पूछा तो उषा ने उसे होलिका की कहानी सुना कर,  उसको होली के त्योहार के बारे में बताने का प्रयत्न किया तथा यह भी बताया की होली बुराई पर अच्छाई के प्रतीक स्वरूप मनाई जाती है । होली के रंग आपस में प्रेम और सद्भाव के प्रतीक हैं ।  यह रंगों का त्योहार होली, सारे गिले शिकवे भुला कर प्रेम से रहने का संदेश देता है । 


होलिका दहन के पश्चात ही रंगों का त्यौहार  प्रारंभ हो गया । छोटे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद ले रहे थे वहीं बड़े छोटे और बराबर वालों के गले मिलकर आशीर्वाद और शुभकामनाएं देने लगे । तत्पश्चात फाग के गाने,  होली के ऊपर बने फिल्मी गाने तथा हास परिहास प्रारंभ हो गया । ढोलक संभाल रखी थी शशि ने जबकि देवेंद्र और  नीलम ने गानों की कमान संभाल रखी थी वहीं नजमा  मंजीरे पर थाप दे रही थी ।


पदम, रिया और पल्लव के साथ डेनियल भी खुशी खुशी रंगो के त्यौहार को एन्जॉय कर रही थी ।  साथ ही साथ अनिला और परी भी ।  देर रात होली विश करके वे सब घर लौटे ।


दूसरे दिन अनिला और परी सुबह जल्दी ही उठ गईं । उठते ही अपनी- अपनी पिचकारी लेकर ' होली खेलना है ।'  की रट लगाने लगी ।


आखिर पदम ने बाहर लॉन में बाल्टी में पानी रखकर रंग डाल दिया । उसने उनको पिचकारी में रंग भर कर चलाना  सिखाया ही था कि वे दोनों एक दूसरे के ऊपर रंगों की बौछार करने के साथ जो भी उनके सामने आता उस पर रंगों की बौछार करते हुए ' होली है ' कहतीं और भाग जातीं ।  उन दोनों को मस्ती करते देख अजय बाहर बरामदे में बैठे-बैठे खुश हो रहे थे कि तभी अनिला ने उनके ऊपर रंगों की बौछार करते हुए कहा, ' हैप्पी होली दादाजी 'उसी का अनुसरण परी ने भी किया ।


' अरे अरे...।'  कहते हुए अजय अपने स्थान से हटे ।  तभी पदम और डेनियल ने उनके पैरों पर रंग लगाते हुए ' हैप्पी होली पापा जी ' कहा । अजय ने उन्हें आशीर्वाद दिया... क्यू में रिया और पल्लव भी थे ।


 गुझिया खाकर डेनियल आश्चर्यचकित थी । उसने उससे कहा, ' ममा, आप मुझे भी गुझिया बनाना सिखा दीजिए । हर होली पर पदम गुझिया की बात करते हैं पर मुझे बनानी ही नहीं आती । आप से सीख लूँगी तो कभी-कभी पदम को बनाकर खिला दिया करूंगी ।'


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 22 तारीख को अनिला का कनछेदन करना निश्चित हुआ । सुबह 10:00 बजे अस्पताल में  कनछेदन के लिए अपॉइंटमेंट ले लिया था । अजय नहीं चाहते थे कि किसी सुनार से अनिला के कान छिदाये जाएं । गन शॉट से एक मिनट भी नहीं लगा कान छेदने में । डॉक्टर के द्वारा दर्द निवारक दवा लगाने के कारण दर्द भी नहीं हुआ ।


 दिन में पूजा का आयोजन किया गया था तथा रात्रि में डिनर का । डिनर में  सभी आमंत्रित लोगों ने आकर अनिला को आशीर्वाद दिया तथा उनका मान बढ़ाया । नए लोगों से परिचय के साथ जान पहचान का भी  दायरा बढ़ाने वे अत्यन्त खुश थे ।


 पच्चीस तारीख को पदम और रिया को जाना था । पूरा घर खाली हो जाएगा, सोच- सोचकर उषा का मन परेशान होने लगा था । कुछ दिन पूर्व जहाँ वह उनके आने का इंतजार कर रही थी वहीं अब उनके जाने की आहट से उसका मन दुखी था पर वह कर भी क्या सकती है ?  बच्चे तो उड़ते पंछी हैं । थोड़ी देर अपने नीड में विश्राम कर फिर कर्म क्षेत्र में जाना उनकी मजबूरी है,  सोचकर मन को समझाने का प्रयत्न किया था ।


दो दिन बच्चों ने उनके साथ गुजारने का फैसला किया । अजय, पदम, पल्लव जहां बातें कर रहे थे वही डेनियल और रिया, स्नेहा के साथ किचन में लगी हुई थीं । वहीं वह स्वयं अनिला और परी को उनके डैडी और ममा की बचपन की फोटो दिखा रही थी । अनिला बड़ी होने के कारण अनेकों प्रश्न कर रही थी मसलन यह फ़ोटो कब की है । इसमें मैं कहां हूँ ?  मम्मा कहाँ है ? परी, अनिला के प्रश्नों को दोहराने का प्रयत्न कर रही थी जबकि वह दोनों को संतुष्ट करने का प्रयास कर रही थी ।


 डेनियल और पल्लव ने लंदन आने का वायदा लेकर उनसे विदा ली वहीं रिया भी कह रही थी, ' मम्मा एक बार आइए ना बेंगलुरु ।'


 जब वह उन दोनों को विदा करके लौटी तो मन बहुत बेचैन था । कैसी है यह मजबूरी है ? एक समय था जब पति-पत्नी एकांत चाहते हैं पर मिल नहीं पाता था पर अब जब एकांत ही एकांत है पर चाहना नहीं , मायूसी सिर्फ मायूसी ।


 उषा ने अजय से लंदन जाने की बात की तो उन्होंने कहा, '  चलेंगे पर जरा व्यवस्थित तो हो लें ।'


बात अजय की भी ठीक थी क्योंकि कुछ डियूज बाकी थे तथा जो मिल चुका था उसे उचित जगह इन्वेस्ट करना था । उषा ने सोचा कि अब उसे भी अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए । गौतम तथा नीलिमा अध्यापक रहे हैं अतः इस संदर्भ में उसे उनसे बात करना उचित लगा ।  एक दिन अवसर देखकर वह गौतम स्वामी के घर गई तथा अपना प्रौढ़ शिक्षा वाला मंतव्य  उन्हें बताया तो उन्होंने कहा, ' उषा जी विचार तो बहुत अच्छा है पर अभी हमें अपनी बेटी के पास मुंबई जाना है । आने पर विचार करते हैं । '


' अगर हम कक्षाएं प्रारंभ करना चाहे तो यहां कोई जगह है ।'


' यहां पास में ही एक कम्युनिटी हॉल है  । वहां आप क्लास ले सकती हैं । इसके लिए आपको सेक्रेटरी गुरमीत सिंह से बात करनी होगी । वह मकान नंबर 502 में रहते हैं ।' नीलिमा ने उत्तर दिया ।


'  ठीक है आप लोग होकर आइए,  तब तक मैं सोचती हूँ कैसे क्या कर सकती हूँ ।' 


उषा ने गुरमीत सिंह से बात की । वह  उषा के इस मिशन में साथ देने के लिए तैयार हो गए । उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के संदर्भ में आस पास की जगहों में प्रचार करने के लिए पैम्फलेट भी बंटवा दिए जिससे लोगों को उनके मिशन का पता चल सके तथा इक्छुक लोग आकर पढ़ाई का लाभ उठा पायें ।


 जब पूनम और स्नेह  को उसके इस मिशन का पता चला तो उन्होंने  उससे कहा , 'भाभी क्या आप हमें पढ़ाओगे ?'


'  क्यों नहीं ? बिल्कुल पढ़ाऊंगी । यह बताओ तुम थोड़ा बहुत पढ़ना जानती हो या बिल्कुल भी नहीं ।'


'  मैं पांचवी कक्षा तक पढ़ी हूँ ।' स्नेह ने कहा ।


' और तुम पूनम ...।'


'मैं तो सिर्फ अपना नाम ही लिख पाती हूँ ।'


ठीक है कल 5:00 बजे कम्युनिटी हॉल में पहुँच जाना । कॉपी पेंसिल मैं दूंगी पर फीस के रूप में ₹20 हर महीने लूँगी ।'


' 20 रुपये ।' कहकर वे आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगीं ।


'  क्यों क्या हुआ ?'


'  कुछ नहीं भाभी ।'


'  तुम दोनों सोच रही होगी कि क्या मैं तुम दोनों से भी फीस लूंगी ?'


'नहीं भाभी, हम सोच रहे थे कि सिर्फ 20 रुपये फीस ।'


' हाँ सिर्फ 20 रुपये । 20 रुपये फीस मैं इसलिए रख रही हूँ क्योंकि मेरा मानना है बिना फीस के विद्या का  कोई मोल नहीं होता ।  अगर इंसान पैसा खर्च करता है तो उसे वसूलना भी चाहता है । अगर मैं निःशुल्क विद्या दूँगी तो शायद एक-दो दिन पढ़कर तीसरे दिन विद्यार्थी आए ही ना ।'


'भाभी हमें पढ़ना है हम अवश्य आएंगे ।'


 उसके इस नेक काम में उमा, शशि और लीना ने भी हाथ बंटाने के लिए तैयार हो गईं  जिसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया । वैसे भी एक से भले दो ...महीने भर में ही 20 विद्यार्थी आ गए । वैसे भी एक घंटे में इससे अधिक को पढ़ाने की गुंजाइश भी नहीं थी ।


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 एक दिन अंजना और मयंक आए । वे बहुत उदास थे । उषा ने उनकी उदासी का कारण पूछा तो अंजना ने कहा, ' भाभी माँ- पापा हमसे रूठ कर वृद्धाश्रम चले गए हैं । हमने उन्हें मनाने का बहुत प्रयास किया पर मान ही नहीं रहे हैं । बार-बार यही कह रहे हैं कि अब जब तुम्हारी बदनामी होगी,  तब तुम्हें पता चलेगा ।  जो सुनेगा तुम्हें ही दोष देगा ,कहेगा माता-पिता को परेशान किया होगा तभी वे वृद्धाश्रम गए हैं ।'


' बात तो उनकी भी सही है वरना ऐसे ही कोई नहीं चला जाता वृद्धाश्रम में रहने के लिए ।' उषा ने कहा ।


' भाभी आप भी ...।' अंजना ने रुआंसे स्वर में कहा ।


' अंजना मैं तुम्हें गलत नहीं कह रही हूँ पर यह स्थिति आई ही क्यों ? कभी सोचा तुमने !!'


' भाभी,  अब मैं क्या बताऊं, उस दिन मैं डॉक्टर के पास अपने गायनिक समस्या को लेकर गई थी ।  वहां समय लग गया । लौट कर आई तो देखा मां जी बहुत क्रोध में थीं । मुझसे तो उन्होंने कुछ नहीं कहा पर इनके आते ही वह बरस पड़ी, कहा,' तुम्हें काम से तथा इसे घूमने से ही फुर्सत नहीं है । जब तुम दोनों के पास हमारे लिए समय ही नहीं है तब हम तुम लोगों के पास क्यों रहें ?'


 मयंक तो अवाक रह गए ।  अपना सारा क्रोध मयंक ने मुझ पर निकाला जबकि मैं पूरा खाना बनाकर हॉट केस में रखकर गई थी । हां यह बात अवश्य है कि उस दिन मैंने डॉक्टर के पास जाने की बात माँ जी को नहीं बताई थी ।'


'  पर क्यों ?' उषा ने पूछा ।


' भाभी, अगर मैं उन्हें बताती तो वह भी मेरे साथ यह कहकर चल देतीं कि मेरा भी ब्लड प्रेशर चेक करा देना या मेरे पैर का दर्द ठीक नहीं हो रहा है तू अस्पताल जा रही है तो मैं भी अपना चेकअप करा लूंगी । अगर नहीं  जातीं तब भी तिरस्कार के स्वर में कहतीं, 'हमने खूब काम किया ।  गाय भैंसों की सानी लगाई ,चक्की पीसी, कुएं से पानी निकाला, खलबट्टा में मसाला पीसा , तुम्हारी उम्र में न हम कभी बीमार हुए और न ही डॉक्टर के चक्कर लगाए । तुम लोग के पास अब कुछ  काम रहा नहीं है , खाली हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने पर  बीमार नहीं पडोगी तो और क्या होगा ?  अब उम्र के साथ ब्लड प्रेशर अवश्य बढ़ गया है । उस दिन सोचा कि उनकी कड़वी बातें सुनने से अच्छा है कि बिना बताए ही चली जाती हूँ । भाभी, यही मेरी गलती थी । '


'पिताजी....।'


' उन्होंने तो काफी दिनों से किसी को कुछ भी कहना ही छोड़ दिया है ।'


' वृद्धाश्रम का पता उन्हें किसने बताया ?'


'पड़ोसन देवलीना की सास देविका आंटी ने I '


 'लेकिन क्यों ?'


' यह तो पता नहीं भाभी । माँ जी को मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रही थी पर जब से देविका आंटी से उनका संपर्क बढ़ा है ,उनको मुझ में कमियां ही कमियां नजर आने लगी हैं । '


' क्या …?' इस बार उषा के चेहरे पर आश्चर्य था ।


'  हां भाभी , अब वह हमेशा मेरी तुलना देविका आंटी की बहू देवलीना से करने लगी हैं । अक्सर कहती है उसे देख चार पैसे भी कमा कर लाती है और घर भी संभालती है पर तुझे बाहर घूमने से ही फुर्सत नहीं मिलती । भाभी उन्होंने ही मुझे नौकरी नहीं करने दी थी । जब भी मैं इस संदर्भ में उनसे बात करती थी तो वे कहतीं थीं कि हमारे घर में बहुओं से काम नहीं कराया जाता और अब इसी बात पर रोकना, रोकना...। भाभी जी अगर मैं कहीं नौकरी नहीं करती तो क्या मुझे कहीं आने-जाने का अधिकार नहीं है ? अब जब भी मैं घर से बाहर निकलती हूँ, तब- तब मुझे उनकी जली कटी सुननी पड़ती है  । उस दिन तो इंतिहा ही हो गई । उन्होंने घर छोड़कर जाने का फैसला ही सुना दिया । सबसे बड़ी बात उन्होंने देवेश और संयुक्ता को भी फोन करके अपने वृद्धाश्रम जाने की बात कह दी तथा सारा दोष यह कहकर मुझ पर मढ़ दिया कि तेरी माँ के कारण ही हम यह फैसला ले रहे हैं । बच्चों को भी लग रहा है कि कहीं मैं ही दोषी  हूँ । भाभी जीवन के 25 वर्ष मैंने उनको समर्पित कर दिए पर आज मेरी सारी तपस्या भंग हो गई ।' कहकर अंजना रोने लगी ।


 उषा को देविका जहां सुलझी महिला लग रही थीं वही अंजना की सास कमला ईर्ष्या से ग्रस्त स्त्री ...। उनकी ईर्ष्या ने हरी-भरी बगिया में कांटे बो दिए थे । घर की बात घर में ही रहे यही बड़ों की जिम्मेदारी है न कि वे अपने कार्यकलापों से घर की शांति ही तहस-नहस करने पर उतारू हो जाएं । 


उषा ने रोती भी अंजना को दिलासा देते हुए कहा,'  अगर तुम गलत नहीं हो तो धैर्य रखो सब ठीक हो जाएगा । भले ही थोड़ा समय  क्यों ना लगे । मैं उनसे मिलकर देखती हूँ ।' 


हताश निराश मयंक ने उषा को वृद्धाश्रम का पता दे दिया । उषा ने भी उनकी समस्या को सुलझाने का पूरा भरोसा उन्हें दिया ।


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 दूसरे दिन उषा दिनेश जी और कमला जी के बारे में पता लगाने के लिए वृद्धाश्रम गई । मैनेजर को अपना परिचय देते हुए दिनेशजी और कमलाजी के बारे में पूछा तो मैनेजर रंजना ने कहा, ' हाँ, वे दोनों हफ्ते भर पूर्व ही आए हैं । आज से पूर्व ऐसा कपल मैंने नहीं देखा । बेटा, बहू कई बार उनसे घर चलने की मिन्नतें कर चुके हैं पर ये लोग जाना ही नहीं चाहते हैं । दिनेश जी अवश्य थोड़े उदास रहते हैं पर कमलाजी  बेहद प्रसन्न हैं । अब आप उनके बारे में पूछने आई हैं ।'


मैनेजर रंजना उसे  कमरा नंबर 15 में छोड़ गई । उसको देखकर कमलाजी ने कहा, ' अरे उषा तुम ,अंजना ने अब तुम्हें खुशामद करने के लिए भेजा है ।  उससे कह देना कि हम यहाँ बेहद खुश हैं । उसे चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है ।'


'  आंटीजी घर जैसा आराम यहां कैसे मिल सकता है ?'


' घर ...उसे घर नहीं सराय कहो । मयंक को तो काम से ही फुर्सत नहीं मिलती है और अंजना को घूमने से ही समय नहीं मिलता है । हम बुड्ढे बुढ़िया मरे या जियें, किसे परवाह है । '


' आंटीजी उन्हें आपकी चिंता है तभी तो वे आपको अपने साथ ले जाने के लिए आ चुके हैं ।'


' अरे वह हमें इसलिए नहीं ले जाना चाहते कि उन्हें हमारी परवाह है वह सिर्फ इसलिए ले जाना चाहते हैं जिससे समाज में उनकी किरकिरी ना हो ।'


'  आंटीजी, आप उन्हें गलत समझ रही हैं । आखिर वे आपके बेटा, बहू हैं ।'


' रहने दे, रहने दे । यह सब उनका दिखावा है । उन्हें हमारी परवाह है यह दिखाने  के लिए ही उन्होंने तुझे भेजा है ।' कहकर कमला जी हंस पड़ी थीं ।


 उनकी व्यंगात्मक हंसी उषा को चुभ रही थी । अंततः उसने दिनेश अंकल की ओर देखा वह शून्य में निहार रहे थे । उषा से रहा नहीं गया तो उसने कहा , ' अंकलजी, आप ही आंटीजी को समझाइए न ।' 


उसका प्रश्न सुनकर दिनेश अंकल चौक उठे थे पर उत्तर आंटीजी ने दिया, '   वह क्या कहेंगे ?  वह तो वही करते हैं, जो मैं कहती हूँ । मेरे घूमने का समय हो गया है , अब मैं चलती हूँ ।' कहकर कमला जी उठ कर चली गईं ।


कमला जी का उत्तर सुनकर कहने सुनने का कोई अर्थ ही नहीं था ।  अब तो सभी को उचित समय का इंतजार था शायद कभी वह अपने बहू बेटे की मनःस्थिति को समझ पायें । उषा वापस रंजना के आज गई ।


' वे लोग नहीं माने ।' रंजना ने पूछा ।


' नहीं...।'


'  स्ट्रेंज कपल...।'


 रंजना की बात सुनकर उषा चुप लगा गई । 


' अजीब बात है ,लोग तो यहां मजबूरी में आते हैं पर लगता है यह अपनी मर्जी से आए हैं शायद बहू बेटे से झगड़ा करके ।'उसे चुप देख कर रंजना ने पुनः कहा ।


' रंजना जी अगर इन्हें कभी कोई परेशानी या तकलीफ हो तो कृपया मुझे या अंजना को बता दीजियेगा ।' कहते हुए उषा ने अपना और अंजना का कांटेक्ट नंबर रंजना को दिया ।

'अवश्य उषा जी ,आप परेशान न हों हम 'परंपरा' में रह रहे अपने प्रत्येक सदस्य का ध्यान रखते हैं ।  हेल्थ समस्या होने पर हमारे यहां डॉक्टर भी विजिट पर आते हैं । '


' यह तो बहुत अच्छी बात है । कितने लोग हैं आपके इस वृद्धाश्रम में ।'


'बुरा मत मानियेगा उषाजी, हम इसे वृद्धाश्रम नहीं मानते । दरअसल 'परंपरा 'के द्वारा हम अपनी सनातन परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं जहां बड़ों के साथ सम्मान का व्यवहार होता है । आज की पीढ़ी भले ही  बुजुर्गों का सम्मान न करती हो पर हम बुजुर्गों को एक पारिवारिक वातावरण देने का प्रयास करते हैं । एक बात और हमारे परिवार में हर धर्म और जाति के लोग हैं। वे सभी न केवल मिल जुल कर रहते हैं वरन एक दूसरे के सुख- दुख में भी बराबर के हिस्सेदार हैं ।'


' पर क्या यह लोग यहां संतुष्ट रहते हैं ।' उषा ने पूछा ।


'  पूरी तरह से संतुष्ट  तो नहीं कह सकते क्योंकि जिसने अपने जीवन के लगभग 60 70 वर्ष अपने परिवार के साथ, परिवार का पालन पोषण करते हुए बिताए ,जिन बच्चों के लिए अपना तन मन जलाया । बचत करके कोठियां खड़ी कीं । जीवन के इस पड़ाव पर उनके अपनों द्वारा बेदखल कर देने पर टीस तो मन में रहती ही है ।'


' सच कह रही हैं आप रंजना जी । पता नहीं इंसान इतना संवेदन शून्य क्यों और कैसे हो जाता है जो इस उम्र में अपने पालकों को यूँ बेसहारा छोड़ देता है ।' उषा ने कहा ।


' शायद आज की पीढ़ी की भौतिकता वादी मानसिकता के साथ -साथ कर्तव्य से भागने की प्रवृत्ति या बुजुर्गों की नई पीढ़ी के साथ सामंजस्य बिठा पाने की अक्षमता...।' रंजना ने उत्तर दिया ।


' आपकी सोच यथार्थवादी है अगर आप बुरा न माने  तो क्या तो क्या मैं 'परंपरा 'के बारे में  कुछ पूछ सकती हूँ । दरअसल मैं एक समाज सेविका हूँ ।'


'  अरे वाह ! तब हम आपसे सहयोग की आशा कर सकते हैं । पूछिए आप क्या जानना चाहतीं हैं ?'


'कितने लोग हैं यहाँ पर ?'


' लगभग 40 लोग हैं । उनमें 10 जोड़े हैं तथा अन्य सभी अकेले अपना जीवन काट रहे हैं । किसी की पत्नी नहीं है तो किसी का पति । सबके बीच एक बात कॉमन है ये सभी अपने बच्चों के हाथों चोट खाए हुए हैं । जब ये लोग पहली बार हमारी इस संस्था में प्रवेश करते हैं तब महीनों तक सहज नहीं रह पाते हैं । घर की याद में कहीं कोने में बैठे दर्द का सैलाब पी रहे होते हैं या आँसू बहा रहे होते हैं । कुछ बच्चों की मजबूरी होती है । पति पत्नी के नौकरी करने के कारण उनके पास अपने बुजुर्गों के लिए समय नहीं रहता । अकेले वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहते तथा आज की सामाजिक परिस्थिति उन्हें किसी अटेंडेंट (सहायक) पर विश्वास नहीं करने देती ।  ऐसे बुजुर्गों के मन में असंतोष तो रहता है पर वे बच्चों की भावनाओं को समझ कर प्रसन्न रहने का प्रयास करते हैं । ऐसे दो कपल हैं हमारे यहां जोसेफ एवं क्रिस्टीना,  जाकिर अली एवं शमीम , इनके बच्चे हर रविवार इनके पास बैठकर क्वालिटी समय व्यतीत करते हैं । कभी-कभी उनके खाने के लिए भी लेकर आते हैं । उनकी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं । संभव हुआ तो आउटिंग भी करा देते हैं । एक कपल सर्वेश और अंजली का केस थोड़ा अलग है । सर्वेश को 50 वर्ष की उम्र में पैरालिसिस हो गया था । बहुत इलाज करवाया पर कोई लाभ नहीं हुआ । उनका पुत्र आशु उन्हें अपने साथ दिल्ली ले गया । आशु और उसकी पत्नी नौकरी करते हैं । उनके ऑफिस जाने के पश्चात उनकी पत्नी अंजली पूरे दिन डर के साए में जीती रहती थी कि अगर बच्चों की अनुपस्थिति में सर्वेश को कुछ हो गया तो ...अंततः उन्होंने यह सोचकर अपने घर लौटने का फैसला किया कि यहां कम से कम उनके नाते रिश्तेदार, सगे संबंधी, मित्र तो हैं   जो उनके एक फोन कॉल पर हाजिर हो सकते हैं पर कहते हैं बुरे वक्त में सबकी निगाहें फिरने लगती है अंततः उन्हें यहां आना पड़ा ।'


'  रंजना मेरा चादर गंदा है ,बदलवा देना ।'


' जी आंटीजी,  अभी शंकर से कहकर बदलवा देती हूँ ।' रंजना ने उन्हें आश्वस्त किया था ।


' यह मनीषा हैं । लगभग 7 वर्षों से यहाँ हैं । इनके पति की अभी 6 महीने पहले ही मृत्यु हुई है । घर से कोई नहीं आया । हम सबने मिलकर ही अंतिम क्रिया कर्म करवाए ।  इनके पति पी.डब्ल्यू. डी . में सुपरिटेंडेंट इंजीनियर थे । अच्छा पद ,अच्छा ओहदा पर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था । उनके बेटों ने सारी रकम अपने नाम करा ली थी । इन्होंने सोचा,  बाद में देनी है तो अभी क्यों न दे दें ।  बस उनकी इसी सोच ने इन्हें कंगाल कर दिया । बहुए रोटी के लिए भी तरसा देती थीं तब आकर इन्होंने 'परंपरा ' में शरण ली । गनीमत है कि इनको पेंशन मिल रही है । अब अकेली है स्वयं को इस संस्था के बुजुर्ग लोगों की सेवा में व्यस्त रखती हैं ।' 


' कितनी बार कहा जाता है कि पैसा अपने पास ही रखो,  अपने जीते जी किसी को मत दो पर लोग गलतियां कर ही बैठते हैं ।' उषा ने कहा ।


'  हां उषा जी,  शायद इंसान  अपने खून पर आवश्यकता से अधिक विश्वास कर लेता है ।' रंजना ने कहा ।


तभी उनके ऑफिस के सामने से एक औरत गुजरी । उसे देखकर रंजना ने कहा, '  इन्हें देख रही हैं आप , यह गुरुशरण कौर हैं । पूरी जिंदगी इन्होंने संघर्ष किया है । इनके पति हरमीत कौर बीमार रहते हैं पर तीनों बेटों में से कोई भी इन लोगों की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है । यह लाहौर की रहने वाली हैं । पार्टीशन के समय उनका परिवार भारत आया था । वह बताती हैं उस समय वह मात्र 5 वर्ष की थीं । अपने माता- पिता के साथ छुपते छुपाते भारत आई थीं । खून की नदियां, लोगों के कटे-फटे शव आज भी इन्हें पागल कर देते हैं । लाहौर में इनकी बहुत बड़ी हवेली थी । घी , दूध की कमी न थी । फल सब्जियों के बाग थे जबकि भारत में इन्हें और उनके परिवार को कितने ही दिनों तक शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा । वे बताती हैं कि सूखी रोटी, पानी जैसी दाल खाई भी नहीं जाती थी पर पेट भरने के लिए खाई । अनेकों परेशानियों से गुजरते हुए इनके माँ बाबा ने मेहनत करके अपनी पहचान बनाई । इन्हें शिक्षा अच्छी शिक्षा दिलवाकर अच्छे घर में विवाह किया । अच्छा खासा बिजनेस है इनका । बड़ी  कोठी भी है पर बच्चों ने धोखे से उसे अपने नाम करवा कर इन्हें घर से बाहर निकाल दिया । ' हम दो बार बेघर हुए हैं और अब इस उम्र में यहां आना पड़ा  ।'  कहते हुए गुरुशरण कौर की आंखें भर आतीं हैं । अपनी बड़ी बहन को याद कर वह भाव विह्वल हो उठती हैं । वह कहती हैं अगर वह यहाँ इनके साथ होती तो कम से कम मन से तो मैं अकेली ना होती ।'


' क्या हुआ था उनकी बड़ी बहन को ?' उषा ने पूछा ।


' उनकी बड़ी बहन हादसे के समय अपनी मौसी के घर गई थी इसलिए वह उनके साथ नहीं आ पाई थी । मौसी का परिवार उस दर्दनाक हादसे में मारा गया पर बहन बच गई । उसे एक मुस्लिम परिवार ने पनाह दी । बाद में उस परिवार ने उसे अपनी बहू बना लिया था ।'


' ओह नो ….सच इस विभाजन ने देश को तो तोड़ा  ही,  दिलों को भी कभी नाम मिटने वाले जख्म भी दिए हैं । दुख तो इस बात का है कि आज भी सीमावर्ती इलाकों में निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं ।' कहते हुए उषा की आवाज में दर्द स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था ।


' जख्म नहीं नासूर... मेरे पिताजी के भाई भी उस दंगे में मारे गए । उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने अपने एक मुस्लिम दोस्त को बचाने का प्रयास किया था ।' रंजना ने अतीत में जागते हुए कहा ।


'  रंजना मैं भाग्यवादी नहीं हूँ पर कुछ घटनाएं भाग्य पर विश्वास करने के लिए मजबूर कर देती हैं । राजा से रंक, विछोह, दर्द... मेरे परिवार ने भी विभाजन का दंश झेला है । मेरे ममा-डैडी भी अपनी जान बचा कर अपना घर बार छोड़कर भारत आए थे । इस विभाजन में उन्हें न सिर्फ अपने माता-पिता वरन अपने भाई -भाभी को भी खोया था जबकि मम्मा का परिवार वही आतताईयों का शिकार हो गया था पर वे अपने उस दुख से उबर कर फिर से खड़े हुए । अगर इंसान में धैर्य और साहस है तो वह अपने बुरे पलों को अच्छे पलों में बदल सकता है । जिंदगी कभी रुलाती है तो वही हमें हंसने का अवसर भी देती है । यह हमारे ऊपर निर्भर है कि उस अवसर का हम कैसे उपयोग कर पाते हैं । '


'आप ठीक कह रही हैं उषा जी । सच तो यह है कि विपत्ति ही इंसान को कुंदन बन कर निखरने का अवसर प्रदान करती है ।


'ठीक कह रही हो रंजना ...एक बात और पूछना चाहती हूँ अगर आप बुरा न माने तो ...।'


'बुरा क्यों मानूँगी,  पूछिए ।' 


' सुना है कि जब कोई व्यक्ति बहुत बीमार पड़ जाता है तब आप लोग उसे वापस घर भेज देते हैं ।'


'आपने सच सुना है । ज्यादातर जगह यही व्यवस्था है  पर हमारे घर यहां अगर कोई घर न जाना चाहे तो उसके ट्रीटमेंट की व्यवस्था मैनेजमेंट द्वारा की जाती है ।'


' यह तो बहुत अच्छा है । जब मैंने सुना, तब यही विचार आया कि जब इनके घर वाले अच्छी हालत में भी इन्हें अपने पास नहीं रख पाते तब बीमारी की हालत में कैसे रख पाएंगे ।'


' शायद यही सोचकर हमारे दिव्यांशु सर ने अपने अस्पताल में ऐसे लोगों की निशुल्क सेवा का बीड़ा उठाया है ।'


' दिव्यांशु ...।'


' परंपरा के संरक्षक ...उनका अपना अस्पताल भी है ।'


' ओ.के . । आज देश को ऐसे ही समाजसेवियों की बहुत आवश्यकता है । क्या मैं यहां इन व्यक्तियों से मिलने आ सकती हूँ ? कुछ इनके खाने पीने के लिए ला सकती हूँ ?'


' अवश्य ...पर आपको सबके लिए लाना होगा । हम किसी में भेदभाव नहीं करना चाहते ।'


'मैं इस बात का ध्यान रखूंगी ।' कहते हुए उषा ने रंजना से विदा ली थी ।


मैनेजर के केबिन से बाहर निकलते हुए उषा को एक बड़ा सा हॉल दिखाई दिया जिसमें भगवान राम, कृष्ण के साथ जीसस क्राइस्ट, गुरु गोविंद सिंह के फोटो भी लगे हुए थे अर्थात यहां रहने वाले सभी व्यक्ति अपनी- अपनी धार्मिक आस्थाओं और स्वतंत्रता के साथ अपना जीवन यापन करने के लिए स्वतंत्र हैं,सोच कर उषा के मन में अंधेरे में भी उजास की किरण सुकून पहुँचाने लगी थी ।


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उषा परंपरा से लौटी तो मन बेहद उदास था । अजय किसी काम से बाहर गए हुए थे अतः उसने उमा के घर जाने का निश्चय किया । वह उमा के घर गई । दरवाजा खुला देखकर उसने पहले बाहर से आवाज लगाई । कोई उत्तर न प्राप्त कर उसने अंदर प्रवेश किया । उमा को सोफे पर आंख बंद किए बैठे पाया । सदा प्रसन्न रहने वाली उमा का यह रूप देख कर उषा को आश्चर्य हुआ । उसने आगे बढ़ कर उन्हें आवाज लगाई । इस बार चौंककर उमा ने आँखें खोली । उनकी आंखों में आँसू देख कर उसने चिंतित स्वर में पूछा, ' क्या बात है उमा ? सब ठीक तो है ना । '


उमा को निःशब्द  बैठा देखकर उषा ने पुनः पूछा , 'तुम्हारे हाथ में यह क्या है ?'


उषा ने अपने हाथ में पकड़ा फोटो उसके सामने कर दिया एक सुंदर सी लड़की का फोटो था । उसे देखकर उषा ने पूछा,  उमा, यह किसका फोटो है यह मेरी बड़ी बेटी नीता का फोटो है ?'


 ' नीता का.. ।'


'  पर उसके बारे में आपने कभी बताया नहीं ।'


' क्या बताती, नीता नहीं रही । आज उसकी पुण्यतिथि है ।'


'  पर कैसे ?'


' बहुत लंबी कहानी है । नीता हमारे प्रेम की पहली निशानी थी । वह घर भर में सबकी दुलारी थी । किशोरावस्था में प्रवेश करते ही उसके दादा- दादी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी । नीता तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थी । उसका बार-बार यही कहना था की उसे अभी और पढ़ना है पर सासू माँ का कहना था कि ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करेगी ? हमें नौकरी तो करवानी नहीं है । यहां तक कि रमाकांत और मेरा विरोध भी काम नहीं आया । उन्होंने उसका विवाह तय कर दिया । अच्छा खाता पीता परिवार था । घर वर भी अच्छा था । पुश्तैनी बिजनेस था । मन मार कर हमने विवाह कर दिया । हफ्ते भर पश्चात जब नीता पगफेरे के लिए घर आई तो उसका बुझा चेहरा देखकर मन बैठ गया । पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा,' नीरज बहुत शराब पीते हैं ।'


' अरे यह तो बड़े घरों का शौक है । 'सुनकर सासू मां ने कहा था ।


'  मैं सासू मां को कुछ नहीं कह पाई थी क्योंकि उनकी बात को काटना सांप के बिल में हाथ डालने जैसा था पर महीने भर पश्चात दोबारा आई बेटी को देखकर  मन का बांध टूट गया । इस बार  नीता को दहेज में कार न देने के विरोध में भेजा गया था । बेटी की खुशी के लिए रमाकांत में लोन लेकर कार का प्रबंध किया पर उसके पश्चात भी उसके दुखों का अंत नहीं हुआ । उसे किसी न किसी बात पर प्रताड़ित किया जाता रहा । उसे फोन करने की भी मनाही थी । एक बार  उसने अपनी दर्द भरी दास्तां चिट्ठी में लिखकर चुपके से नौकरानी को देकर  पोस्ट करा दी । चिट्ठी क्या थी मानो खून से लिखी इबारत हो । पढ़कर रमाकांत नीता से मिलने गए पर उसके ससुराल वालों ने उन्हें उससे मिलने के लिए मना कर दिया । तब रमाकांत ने दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए कानूनी कानूनी नोटिस भिजवाने की धमकी दी । तब वे लोग नर्म पड़े तथा नीता को उनके साथ भेजने को तैयार हो गए । नीता के चेहरे की चमक गायब हो गई थी । आँखें अंदर धंस गई थीं । हाथ जैसे पत्थर बन गए थे । वह उसे अंक में लेकर बहुत देर तक रोती रही थी पर नीता की आंखों के आँसू सूख गए थे । वह बार-बार बस एक ही वाक्य दोहरा रही थी... 'ममा अब मैं उस घर में वापस नहीं जाऊंगी ।'


माँ बाबूजी उसका हाल देखकर दुखी तो थे पर उनका यही कहना था हो सकता है कि अपनी नीता ही एडजस्ट कर पा रही हो । ऐसे ही कोई रिश्ता थोड़े ही टूट जाता है । समझौता तो करवाना ही होगा। पूरी जिंदगी लड़की को घर पर बिठा कर तो नहीं रखा जा सकता पर मेरा और रमाकांत का एक ही मत था कि अगर नीता नहीं जाना चाहती तो हम उसे नहीं भेजेंगे । एक दिन नीता का पति नीरज अपने मम्मी-पापा के साथ आया । रमाकांत तो उससे बात ही नहीं करना चाहते थे पर जब उन्होंने क्षमा मांगी तथा आगे किसी शिकायत का मौका न देने की बात कही तब रमाकांत ने कहा, ' मैं अपनी बेटी पर दबाव नहीं डालूंगा ,अगर वह जाना चाहेगी तभी उसे भेजूंगा ।'


 तब नीरज ने नीता से बात करने की इजाजत चाही । हमने उसे इजाजत दे दी । हमारी नीता नीरज की भोली भाली बातों में आ गई तथा वह उसे एक मौका और देने के लिए तैयार हो गई है । हमने भरे मन से उसे विदा किया बस यही हमारी गलती थी ।' कहकर उमा फूट-फूटकर रोने लगी ।


' स्वयं  को संभालिए उमा जी ।'


' संभाला ही तो नहीं जाता उषा…  उसकी हर पुण्यतिथि पर उसकी याद मुझे बहुत बेचैन कर देती है  । कैसी माँ हूँ मैं , जिसने अपने ही हाथों अपनी फूल सी बच्ची को उन कसाईयों के हवाले कर दिया । मैं नीरज की चिकनी चुपड़ी बातों में पता नहीं कैसे आ गई थी । शायद एक माँ के मन में इस रिश्ते को एक मौका और देने की आस जग गई थी पर ऐसा ना हो सका । महीना भर भी नहीं हुआ था कि हमें सूचना मिली की नीता ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली है ।'


'  पर क्यों ?'


' यह आज भी हमारे लिए पहेली है क्योंकि इस घटना के दो दिन पूर्व उससे बात हुई थी तब वह सहज थी । शायद वह हमें अपनी परेशानी बताकर और परेशान नहीं करना चाहती थी लेकिन उसने सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें लिखा था कि मैं आत्महत्या कर रही हूँ । हमने एफ .आई .आर. दर्ज करवाई पर कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने सब मैनेज कर लिया था । सुसाइड नोट नीता के हाथ का ही था पर मेरा मन नहीं मानता कि मेरी बच्ची ने आत्महत्या की होगी … मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी बच्ची ऐसी कायराना हरकत नहीं कर सकती । वह जिंदगी से लड़ सकती थी पर पलायन हरगिज नहीं कर सकती थी । सुसाइड नोट उसे डरा धमका कर भी लिखवाया जा सकता था । कितनी तड़पी होगी मेरी नाजुक बच्ची उस समय ।' कहकर उमा सुबकने लगी थी ।


 उषा समझ नहीं पा रही थी कि वह कैसे उमा को सांत्वना दे । अजीब विडंबना है हमारी समाज की... कभी-कभी हम बच्चों की भावनाओं की भी परवाह नहीं करते । सब कुछ जानते हुए भी हम रिश्तों को जोड़े रखने में बहुत कुछ इग्नोर करने का प्रयत्न करते हैं । हमारी यही चाह बच्चों का मनोबल तोड़ देती है और वे इस तरह के अतिवादी कदम उठा लेते हैं और माता पिता ताउम्र अपनी गलती पर पश्चाताप करने के लिए विवश हो जाते हैं । 


' उमा जो हो गया उसे लौटाया नहीं जा सकता पर कोशिश यह होनी चाहिए कि इंसान अपनी गलतियों से सबक ले ।' उषा ने उमा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।


'तुम ठीक कह रही हो उषा ।  इस घटना के पश्चात हमने एक निर्णय लिया था कि हम अपनी दूसरी बेटी श्रेया का विवाह उसके आर्थिक रूप से सक्षम होने पर ही करेंगे ।  सबसे बड़ी बात माँ बाबूजी भी हमारी इस  बात से सहमत हो गए थे । 'उमा ने स्वयं को स्थिर करते हुए कहा ।


 सच दुख की कोई सीमा नहीं है । हंसना बोलना कर्म करना हर इंसान की नियति है पर यह भी सच है कि संसार में आया हर किरदार अपने -अपने हिस्से के सुख- दुख झेल रहा है ।


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उषा ने महीने में एक बार ' परंपरा' जाने का नियम बना लिया था । वह वहां जाकर बुजुर्गों के दुख दर्द बांटती, कभी उनके लिए अपने हाथों का बने  लड्डू या गुलाब जामुन भी ले जाया करती । उसको अपने बीच पाकर ' परंपरा ' में उपस्थित सभी लोगों के चेहरे पर खुशी छा जाती थी । 


उस दिन उषा बूँदी के लड्डू लेकर गई थी । कृष्णा के चेहरे पर हमेशा मायूसी छाई रहती थी ।  उस दिन उसके हाथों में बूंदी के लड्डू देखकर उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । कारण पूछने पर उसने कहा,' मेरे बेटे अनिमेष को बूंदी के लड्डू बहुत पसंद थे । '


' क्या हुआ अनिमेष को ?'


उसके प्रश्न के उत्तर में कृष्णा ने उसे जो बताया उसे सुनकर वह स्तब्ध रह गई थी ।  आखिर एक बच्चा अपना पूरा जीवन उसको देने वाली अपनी मां के साथ ऐसा भी व्यवहार कर सकता है !!


 कृष्णा ने कहा, ' जब मेरा पुत्र अनिमेष मात्र 7 वर्ष का था तभी मेरे  पति का देहांत हो गया था ।  मैंने शिक्षिका की नौकरी कर अनिमेष को माँ के साथ पिता का भी प्यार दुलार दिया । अनिमेष की हर इच्छा को पूरी करने की हर संभव कोशिश की । इसके लिये मुझे स्कूल के पश्चात ट्यूशन भी लेनी पड़ती थीं । इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पश्चात जब अनिमेष को नौकरी का ऑफर मिला, तब  मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा । उस समय मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी तपस्या सफल हो गई है ।  मिठाई बांटने के साथ मैंने अपने सगे संबंधियों को एक छोटी सी पार्टी भी दी थी ।


समय के साथ मैंने अनिमेष का धूमधाम से विवाह कर दिया । मेरा पुत्र अनिमेष तथा पुत्र वधू प्रतिमा मुंबई में नौकरी करते हैं । जब उनका बेटा अंश हुआ तब अनिमेष मुझे यह कहकर मुंबई ले गया कि मां आपने बहुत नौकरी कर ली । अब आराम करो , हमारे पास रहो , अपने पोते को खिलाओ । मैं भी उसके आग्रह को स्वीकार कर, नौकरी छोड़कर खुशी खुशी उनके साथ चली गई थी । जब तक अंश छोटा था तब तक सब ठीक चलता रहा पर जब वह अपनी मेडिकल की पढ़ाई के लिए हॉस्टल में रहने चला गया तब मैं उनकी आंखों की किरकिरी बनने लगी । रोज किसी न किसी बात पर ताना, खर्चे का रोना आखिर मैं लौट आई । 


 घर भी अनिमेष ने बेच  दिया था अब मैं रहती भी तो कहां रहती अंततः मैंने यहां इस वृद्धाश्रम में आकर रहने का निश्चय कर लिया ।  दुख तो इस बात का है कि मेरे अपने खून ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा कि उसकी माँ कहां और कैसे रह रही है  । '


माँ का एक अनूठा रूप... जिस मां को उसके अपने पुत्र ने न केवल दंश दिए वरन अपने स्वार्थ के लिए उसका इस्तेमाल करने से भी नहीं चूका,  उसी माँ की आंखों में अपने पुत्र की पसंद के बूंदी के लड्डू देखकर आँसू... इन आंसुओं का मोल भला एक कृतघ्न संतान कहां समझ पाएगी ? 


 कृष्णा को ढाढस बंधा कर उषा दूसरे कमरे में गई । सीमा ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया । सीमा का दुख भी किसी से कम नहीं था ।  पति परमेश्वर द्वारा सताई वह ऐसी नारी थी जिसने अपने समस्त दायित्व पूरे करने के पश्चात अपने हाथों से सजाया संवारा अपना वह घर सदा के लिए छोड़ दिया जिसमें उसे सदा तिरस्कार मिला । उसका पढ़ा-लिखा पति शराब के नशे में उससे मारपीट करने के साथ दुराचार भी किया करता था । जब तक बच्चे छोटे थे,  तब तक वह सब चुपचाप सहती रही पर बच्चों के स्थापित होते ही सुकून की तलाश में वह यहां चली आई ।


अपनी आपबीती उषा को सुनाते हुए अंत में उसने कहा था, '  उषा आज भी मैं यह नहीं सोच पाती हूँ कि बलात्कार के आरोपी को हमारे समाज में दंड का प्रावधान है पर बलात्कार अगर पति के द्वारा किया जाए तो...।'


हमारी सामाजिक व्यवस्था पर चोट करते उसके प्रश्न का उत्तर उषा के पास भी नहीं था । पहली मुलाकात में उसके मुख से उसकी आपबीती सुनकर उषा सिर्फ इतना ही कह पाई थी, '  आप बच्चों के पास क्यों नहीं गई ?'


' उषा बच्चों के पास जाकर मैं उनकी नजरों में दीन हीन नहीं बनना चाहती थी । मैं यहां रहकर अचार पापड़ बनाती हूँ । उन्हें बेचकर इतना तो कमा ही लेती हूँ कि इस आश्रम में अपनी आवश्यकताएं पूरी कर सकूँ ।'


 जितने लोग उतनी कहानियां... यहां आकर उषा को लग रहा था कि सिर्फ कच्चे घरों में ही नहीं, पक्के घरों में भी बहुत सी दुश्वारियां हैं । कच्चे घरों में लाखों दुश्वारियां सहते हुए भी लोग अपने बुजुर्गों को  घर से बाहर नहीं निकलते पर पक्के घरों में कहीं स्वार्थ, कहीं अहंकार, तथा कभी अवहेलना का तीर इन्हें इस दशा तक पहुंचने के लिए मजबूर कर ही देता है ।


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 पदम और डेनियल के साथ अनिला भी बार -बार उनसे आने का आग्रह कर रही थी । आखिर उन्होंने पदम के पास जाने का मन बना ही लिया । यद्यपि नए खुले प्रौढ़ शिक्षा केंद्र के कारण उषा का जाने का मन नहीं था पर शशि और उमा ने उससे कहा, ' अगर आप जाना चाहती हैं तो चली जाइये,  हम तो हैं ही , मैनेज कर लेंगे ।'


शशि और उमा की बात सुनकर उषा ने संतोष की सांस ली थी । वीजा वगैरा की फॉर्मेलिटी पूरी करके अजय ने टिकट बुक करा लीं तथा जाने की तैयारी करने लगे । लंदन जाने से पूर्व उषा 'परंपरा' गई क्योंकि उसे लग रहा था कि दो-तीन महीने तक वह किसी से नहीं मिल पाएगी ।


उस दिन उसने मूंग की दाल का हलुआ बनाया था । जैसे ही उसने 'परंपरा ' में प्रवेश किया बर्तन के गिरने की आवाज के साथ किसी की तेज आवाज गूँजी।  गुरुशरण कौर ने उसकी आँखों में प्रश्न देख कर कहा, ' यह रीता हैं ।  अभी हफ्ते भर पूर्व ही यह यहां आई हैं । जब से उनका बेटा इन्हें यहां छोड़ कर गया है तबसे इनका यही हाल है । चिल्लाना और सामान फेंकना ...।  लगता है यह इनका अपना आक्रोश व्यक्त करने का तरीका है । यह लगभग 90 वर्ष की हैं ।  अपना काम भी ठीक से नहीं कर पाती हैं अतः इनके बेटे ने इनके साथ एक 25- 26 वर्ष की नौकरानी को रखने का आग्रह किया है । वह इनके साथ पिछले 10 वर्षों से रह रही है । इनकी बहू नहीं रही है । बेटा अपनी उम्र के कारण अपने पुत्र के साथ रहना चाहता है पर उनके पुत्र ने दादी को साथ रखने से मना कर दिया अतः मजबूर होकर इनके पुत्र को इन्हें यहां रखना पड़ा । जाते हुए बार-बार भरी आंखों से वह हम सबसे यही कह रहे थे ' प्लीज मेरी माँ का ध्यान रखिएगा ।'


वैसे जब इनका मूड ठीक रहता है तब यह अच्छी तरह से बातें करती हैं । बिना प्रेस की साड़ी तो यह पहनेंगी ही नहीं । लगता है नौकरानी से कोई चूक हो गई होगी तभी यह इतना बिगड़ रही हैं । '


गुरुशरण कौर की बात सुनकर उषा को लग रहा था न जाने ईश्वर किसी को इतनी उम्र ही क्यों देते हैं ? न जाने ईश्वर की कैसी न्याय व्यवस्था कि अच्छे भले स्वस्थ इंसान तो छोटे से हादसे में ही गुजर जाते हैं किन्तु बूढ़े, लाचार लोग जो न केवल अपने परिवार वरन स्वयं के लिए भी जिनकी जिंदगी बोझ बन जाती है,  वे सालों साल जीते जाते हैं ।


सबको हलुआ देकर वह अंत में रीता जी के पास गई । उसे देखकर ममत्व भरे स्वर में उन्होंने पूछा, '  तुम यहाँ कब आईं बेटी ?'


'  माँ जी,  आज ही ।'


'  क्या तुम्हारे बेटे ने भी तुम्हें घर से निकाल दिया है ?'


' माँ जी, लीजिए  हलुआ ।' उषा ने उनकी बात का कोई उत्तर न देते हुए हलुवा की प्लेट उनकी और बढ़ाते हुए कहा ।


' बड़ी खुश हो । क्या बात है ?'


'आज मेरे बेटे का जन्मदिन है इसलिए मूंग की दाल का हलुवा लेकर आई हूँ।' पता नहीं उषा कैसे झूठ बोल गई ।


' मूंग की दाल का हलुआ ...ला दे । बहुत दिनों से नहीं खाया है । मेरी बहू अनीता भी बहुत अच्छा मूंग की दाल का हलुआ बनाती थी । जब से वह गई है घर-घर ही नहीं रह गया है । अगर  वह होती तो वह मुझे यहां कभी नहीं रहने देती । बहुत ही अच्छी थी वह । हमारे बीच सास बहू का नहीं वरन मां बेटी का रिश्ता था पर मेरा अपना खून, मेरा पोता रितेश जिसे मैंने अपने हाथों से पाला यहां तक कि उसकी पॉटी भी धोई, उसने मुझे अपने पास रखने से मना कर दिया । जब रितेश के बेटा हुआ था तब मैं परदादी बनने पर बहुत खुश हुई थी । सदानंद और अनीता ने बहुत शानदार पार्टी दी थी । मुझे सोने की सीढ़ी पर चढ़ाया था । उसे देखकर पड़ोसी पड़ोसी नाते रिश्तेदारों ने कहा था , ' अम्मा अब तो आप सोने की सीढ़ी चढ़कर स्वर्ग जाओगी ।  क्या यही स्वर्ग है बेटा ?' कहते हुए वह उदास हो गई थी ।


 उषा उनकी बात का क्या उत्तर देती अतः माँ जी का ध्यान उन दुःखद घटनाओं से हटाने के लिए कहा,  माँ जी, आप हलुआ और लेंगी ।'


' नहीं बेटा इतना बहुत है । अब उम्र हो गई है ज्यादा खाया नहीं जाता पर इतना याद रखना अपने बेटे को ज्यादा प्यार मत करना,  न ही कोई चाह रखना क्योंकि यही प्यार और चाह दर्द का कारण बनता है । ' माँ ने उसे समझाते हुए कहा ।


'  बेटा तुम भी लो थोड़ा हलुआ ।'  उषा ने उनकी नौकरानी शील को हलुआ देते हुए कहा ।


' थैंक्यू ऑंटी ।'


' वेलकम बेटा । खुश रहो ।अपनी माँ जी का अच्छे से ख़्याल रखना ।''


'माँ जी,  अब मैं चलती हूँ ।' उषा ने रीताजी की ओर देखते हुए कहा ।


'  ठीक है । मिलने आ जाया करना । मुझसे तो अब ज्यादा चला नहीं जाता है । बस अपने कमरे में ही पड़ी पड़ी समय काट रही हूँ ।  वैसे अलीगंज में हमारी बहुत बड़ी सी कोठी है । पता नहीं सदानंद ने उसे बेचा या किराए पर उठा दिया है ।' कहकर वह फिर अतीत में खो गई थीं ।


उषा कमरे से बाहर निकल आई । ज्यादा कुछ कह कर उषा उनका मन नहीं दुखाना चाहती थी वैसे भी एक उम्र के पश्चात जब शरीर काम नहीं करता तब दिल को सुकून पहुंचने के लिए इंसान के पास यादें ही एकमात्र सहारा रह जाती हैं ।


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लंदन जाने की लगभग सारी तैयारियां हो गईं थीं  ।  सामान की पेकिंग के साथ अनिला के लिए बेसन के लड्डू, पदम के लिए काजू कतली तथा डेनियल के लिए गुंझिया इत्यादि ।  जाने से एक  दिन पूर्व उषा अपने मम्मी -पापा से मिलने गई । उस दिन मम्मा की तबीयत कुछ खराब थी ।  सुबह से उन्होंने कुछ नहीं खाया था । 


नंदिता ने बताया कि मां को सुबह से ही पतले दस्त हो रहे हैं । दवा दी है पर कोई फायदा नहीं हो रहा है अगर कल तक फायदा नहीं हुआ तो डॉक्टर को दिखाएंगे । अभी वे बात कर ही रहे थे कि मम्मा ऊ, ऊ करने लगी ।


'  क्या हुआ मम्मी जी ?' नंदिता ने पूछा ।


उन्होंने इशारे से कहा कि उल्टी आ रही है । नंदिता जल्दी से मग लेकर आ गई तथा उसके ममा के मुंह के नीचे रख दिया। मम्मा ने उल्टी की । उल्टी का  रंग देखकर सब चौक गए ...काला रंग ।


' भैया ,ममा को जल्दी अस्पताल ले चलिए ।' अचानक उषा ने कहा ।


'  पर क्यों ?'


' शरीर में कहीं से खून रिस रहा है ।'


' क्या…?'  डैडी ने कहा ।


'  हाँ...माँ को तुरंत अस्पताल लेकर जाना होगा । शैलेश तुम ममा को लेकर आओ ,तब तक मैं गाड़ी पोर्टिको मैं लेकर आता हूँ ।'  कहते हुए अजय चले गए ।


शैलेश ने ममा को गोद में उठाया तथा तेजी से बाहर  निकले । तब तक अजय गाड़ी लेकर आ गए थे । शैलेश ने ममा को गाड़ी में लिटाया ।  डैडी उनका सिर अपनी गोद में लेकर बैठ  गए । शैलेश के  बैठेते ही अजय ने गाड़ी  चला दी ।


'  दीदी क्यों ना हम भी चलें । घर में बैठे मन भी नहीं लगेगा ।' नंदिता ने कहा ।


' यही मैं भी सोच रही थी । चलो चलते हैं । ' उषा ने कहा ।


नंदिता ने रामदीन को कुछ आवश्यक निर्देश देकर  गाड़ी निकाली तथा वे चल पड़े ।


'  दीदी,  आपको कैसे पता चला कि मम्मी के शरीर से खून रहा है ?' नंदिता ने रास्ते में पूछा ।


' तुम यह तो जानती ही होगी कि हमारे  शरीर में  खाने को पचाने के लिए कई जगहों से एंजाइम्स एवं एसिड निकलते हैं अगर ये खून के संपर्क में आते हैं तो वह खून को काला कर देते हैं ।' 


 ' ओ.के .दीदी,  मुझे यह बात पता ही नहीं थी । वह तो अच्छा हुआ आप आ गईं वरना शैलेश भी पता नहीं समझ पाते या नहीं ।' नंदिता ने उत्तर दिया ।


जब भी अस्पताल पहुंचे तब तक ममा को इमरजेंसी  में भर्ती कर लिया गया था । टेस्ट चल रहे थे । टेस्ट पूरे होने पर जब वह आईं तो उन्हें सीधे आई.सी.यू. में ले जाया गया  तथा डिप के साथ अनेक इंजेक्शन लगने प्रारंभ हो गये । डॉक्टर ने तुरंत ही दो बोतल खून का इंतजाम करने के लिए कहा । एंडोस्कोपी से पता चला कि उनके स्टमक (आमाशय ) में अल्सर था, वह बर्स्ट हो गया है जिसके कारण उनका काफी खून बह गया है अतः उन्हें खून चढ़ाना पड़ेगा जिसकी वजह से उनका हीमोग्लोबिन भी 6:00 हो गया था । वैसे एंडोस्कोपी के समय जहाँ से ब्लीडिंग हुई थी, उसे सील कर दिया गया था पर ब्लड तो चढ़ाना ही था ।


शैलेश ब्लड बैंक से ब्लड लेने गए तो उन्होंने खून देने से पहले एक डोनर लाने के लिए कहा । शैलेश ने खून देना चाहा पर  उसकी उम्र के बारे में पता चलने पर ब्लड बैंक वाले ने कहा, '  हम साठ वर्ष से ऊपर के व्यक्ति का खून नहीं लेते हैं क्योंकि इस उम्र के पश्चात शरीर में खून बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है । तब उषा ने खून दिया तथा एक डोनर शैलेश में अपनी फैक्ट्री से बुलवा लिया । 


वह ममा के पास गई तो उन्होंने कहा, ' आज तो तुम्हें लंदन जाना है ।'


' हाँ पर...।'


' तुम चली जाओ बेटा , मुझे कुछ नहीं होगा । तेरे डैडी , शैलेश और नंदिता तो है हैं ।'


'  मम्मी जी आपको ऐसी हालत में छोड़कर जाना हमें अच्छा नहीं लगेगा ।' अजय ने उत्तर दिया था ।


'  पर बेटा...।'


'  मम्मी जी प्लीज,  आप ज्यादा बात न करें,  आराम करें ।' अजय ने कहा ।


' ठीक है बेटा ।' कहकर उन्होंने आंखें बंद कर लीं । 


अजय को अपनी ममा की केयर करते देखकर बहुत अच्छा लगा था यद्यपि उषा को अपना प्रोग्राम कैंसिल होने का दुख तो था पर अगर वह ममा को ऐसी हालत में छोड़कर चली जाती तो स्वयं की नजरों में तो अपराधी होती ही,  वहाँ भी चैन से नहीं रह पाती ।  उषा ने जहां पदम और डेनियल को मम्मा की बीमारी की वजह से अपने न आने की सूचना दी वहीं अजय ने टिकट कैंसिल करवाएं । टिकट रिफंडेबल थे अतः ज्यादा पैसा नहीं कटा । 


उनके न आने से अनिला बहुत अपसेट हो गई थी । यहाँ तक कि वह उससे बात करने के लिए भी तैयार नहीं हो रही थी । दरअसल स्प्रिंग ब्रेक के कारण उसकी हफ्ते भर की छुट्टी थी जिसे वह अपने दादा -दादी के साथ बिताना चाहती थी । आखिर उषा ने डेनियल से स्काइप पर आकर अनिला से बात कराने के लिए कहा । पहले तो अनिला स्काइप पर आने के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी पर जब डेनियल और पदम में समझाया तब वह उससे बात करने के लिए तैयार हो गई पर फिर भी वह उसकी तरफ नहीं,  दूसरी तरफ मुँह करके उससे  बात कर रही थी ।


'  मेरी रानी गुड़िया ,दादी से बहुत नाराज है ।'


' हाँ.. ।'उसने दूसरी तरफ देखते हुए क्रोध से कहा ।


' अच्छा यह बताओ अगर तुम्हारी मम्मा बीमार होती तो क्या तुम उसे बीमारी की हालत में छोड़कर कहीं जा सकती थीं ।'  उषा ने अनिला से पूछा ।


'  नहीं, कभी नहीं ...।' अनिला ने उसकी ओर देखते हुए कहा ।


' फिर बेटा मैं अपनी मम्मा को छोड़कर कैसे आऊं ? वह बहुत बीमार हैं ।  अस्पताल में एडमिट है ।'


'क्या बड़ी दादी बीमार हैं ?'


'हां बेटा...।'


' ओ.के .दादी पर प्रॉमिस आप उनके ठीक होने पर अवश्य आयेंगी ।'


'  प्रॉमिस बेटा ।'


 उसके समझने के पश्चात अनिला को सहजता से बातें करते देख कर उषा ने संतुष्टि की सांस ली थी । घर में छोटा बड़ा कोई भी परेशान हो, नाराज हो तो जब तक उसकी नाराजगी दूर न हो, मन परेशान ही रहता है  । ममा को चार बोतल खून चढ़ाना पड़ा था । लगभग 10 दिन पश्चात मम्मा घर आ पाईं, तब सबने चैन की सांस ली ।


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 अपने खालीपन को भरने के लिए अजय ने एक एन.जी.ओ. ज्वाइन कर लिया। एन.जी.ओ. के सदस्य एक गांव को गोद लेकर वहां स्वच्छता अभियान के साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति भी गांव के लोगों में जागरूकता पैदा करने का प्रयास कर रहे थे । लोगों की अज्ञानता तथा असहयोग के कारण कार्य दुरुह अवश्य था पर मन में चाह हो,दुरूह को सरल बना देने की कामना हो,  वहां सफलता अवश्य मिलती है । अपने प्रयास को सफलता प्रदान करने के लिए अजय और उनकी टीम के सदस्य सुबह ही निकल जाते थे तथा शाम तक ही घर लौटते थे  । अजय को अपने पुराने रूप में पाकर उषा बेहद प्रसन्न थी ।


60 वर्ष की उम्र अधिक नहीं होती । वस्तुतः  इस उम्र में जब एक व्यक्ति अपनी सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होकर निश्चिंत होकर, अपनी समस्त ऊर्जा के साथ अपने कार्य में संलग्न होना चाहता है तो उसे अवकाश प्राप्ति का पत्र पकड़ा दिया जाता है । जो शरीर और मस्तिष्क एक दिन पूर्व तक सक्रिय था वह अचानक दूसरे दिन से निष्क्रिय कैसे हो सकता है ? यह भी सच है कि प्रत्येक समाज के कुछ नियम और कानून होते हैं जिनका पालन करना आवश्यक है । वैसे भी अगर पुरानी पीढ़ी , नई पीढ़ी को जगह नहीं देगी तो सृष्टि का विकास कैसे होगा ? जीवन की हर अवस्था की अपनी प्राथमिकताएं हैं, आवश्यकताएं हैं ...जो इंसान इन्हें पहचान कर अपने कदम आगे बढ़ा लेता है वह कभी असंतुष्ट नहीं रहता ।  वैसे भी जीवन रूपी वृक्ष को अगर समयानुसार खाद पानी, उपलब्ध नहीं कराई गई तो वह असमय ही अपने पहचान खो बैठेगा । पहचान खोकर क्या आदमी जी पाएगा ? अवकाश प्राप्त का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आदमी निष्क्रिय होकर बैठ जाए । 


जब तक इंसान में शक्ति है , वह तन मन से स्वस्थ है तब तक उसे कुछ न कुछ अवश्य करते रहना चाहिए वरना वह दूसरों के लिए तो क्या स्वयं अपने लिए भी बोझ बनता जाएगा । कोई भी आत्मसम्मानी व्यक्ति ऐसा कभी नहीं चाहेगा । 


कॉल बेल की आवाज सुनकर उषा ने दरवाजा खोला । सामने शशि खड़ी थी,उषा ने शशि से कहा, '  आओ अंदर आओ ...।' 


' क्या तुम्हें पता है आनंद और लीना के घर चोरी हो गई है ?' 


' नहीं तो, कब चोरी हुई ?  वह तो घर गए हुए थे ।'


'  कल ही...घर के ताले को तोड़कर चोरी की गई है । सूचना मिलते ही वे लौट आए हैं ।'


' क्या ज्यादा नुकसान हो गया ?'


' पता नहीं,  मैं उनके घर जा रही हूँ । क्या तुम भी चलोगी ?'


'  मिलकर तो आना ही चाहिए । चलो वहीं से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चले जाएंगे ।'


' ठीक है  ।'


 वे लीना के घर पहुँचे । लीना बहुत परेशान थी । वे दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि कैसे बात करें ?  


उनकी आंखों में प्रश्न देख कर लीना ने कहा,'  जाने से 2 दिन पूर्व ही हम एक विवाह में गए थे । विवाह में पहनने के लिए मैंने कुछ जेवरात निकलवाए थे । दूसरे दिन अचानक ससुर जी का फोन आ गया कि तुम्हारी मां की तबीयत खराब है , वह बार-बार तुम्हारा ही नाम ले रही हैं, तुम आ जाओ । अचानक जाने के कारण हम जेवर लॉकर में नहीं रख पाए और यह हादसा हो गया ...बैठे-बिठाए 45 लाख का नुकसान हो गया । इंटरलॉक नहीं टूटा तो चोरों ने दीवार ही तोड़ दी । घर के मुख्य दरवाजे के साथ मास्टर बेडरूम के दरवाजे को भी काटने के साथ गोदरेज की अलमारी को भी काट दिया । जो गया वह तो गया ही,  उन लोगों ने हमारी अलमारी भी बेकार कर दी । विवाह के पश्चात यह हमारी पहली शॉपिंग थी ।' कहते हुए लीना की आंखों में आँसू छलक आए थे  ।


'तुम भी व्यर्थ परेशान होती हो ।  जो चला गया,  सोचो वह हमारा था ही नहीं । अगर हमारा होता,  तो वह जाता ही नहीं । अलमारी और आ जाएगी । चोर सामान ही तो ले गया है,  हमारा भाग्य तो नहीं ।' आनंद जी ने सहज स्वर में कहा था ।


 फोन आने पर आनंद जी उठ कर चले गए  ।


' भाई साहब ठीक कह रहे हैं लीना । पुलिस में एफ.आई,आर. लिखवा ही दी है । अगर सामान को मिलना होगा तो मिल ही जाएगा।  जब इंसान चला जाता है तब इंसान सब्र कर लेता है तो यह सब तो भौतिक वस्तुएं हैं । ' शशि ने लीना को समझाते हुए कहा था ।


'  तुम ठीक कह रही हो शशि पर मन है कि मानता ही नहीं है ।'


' मन तो नहीं मानेगा पर मनाना तो पड़ेगा ही ...अब तुम्हारी सास कैसी हैं ?' अभी तक चुपचाप  बैठी उषा ने पूछा था ।


' पहले से ठीक हैं ।'


' शुभ समाचार है । बड़ों का साया सिर पर रहता है तो पूरा घर यूनाइटेड रहता है ।'


'  तुम ठीक कह रही हो उषा,  पिताजी के फोन करते ही इनके दोनों भाई भी पहुंच गए थे । हम सबको देख कर हफ्ते भर से ठीक से खा पी न पाने के कारण अस्पताल में भर्ती माँ जी के चेहरे की  रंगत ही बदल गई थी ।' कहते हुए लीना के चेहरे पर खुशी छा गई थी ।


'  जीवन के यही कुछ पल जहां संतोष दे जाते हैं वहीं जीवन को सफल भी बनाते हैं ।' 


' सही कहा उषा... हम सबको देखकर मां जी के चेहरे पर तो संतोष था ही,  पिताजी की प्रसन्नता भी देखने लायक थी । मां के घर आते ही उत्सव का माहौल बन गया था पर इसी बीच इस खबर के आने से रंग में भंग पड़ गया और हमें उल्टे पैर लौटना पड़ा ।' कहते हुए लीना के चेहरे पर उदासी छा गई थी ।'


'  बस अच्छा अच्छा सोचो ,अच्छा ही होगा ।' शशि ने कहा ।


' आई होप सो ...अच्छा मैं चाय बनाती हूँ ।' लीना ने कहा ।


' चाय फिर पिएंगे लीना,  क्लास का समय हो रहा है हम चलते हैं ।' उषा ने इजाजत मांगी थी ।


' कैसी चल रही हैं आपकी क्लास ?' 


बहुत अच्छी,  40 लोग हो गए हैं । दो ग्रुप में पढ़ाई की व्यवस्था की है ।'


' अगर मैं भी जुड़ना चाहूँ ।'


' हमें बेहद प्रसन्नता होगी ।' उषा ने कहा ।


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' उषा  क्या तुम्हें पता है कि फरहान साहब के माँ गिर गई हैं जिसके कारण उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई है ।'दूसरे दिन उमा ने सुबह की सैर पर जाते हुए उषा से कहा ।


' लगातार दो बुरी खबर... पर कैसे ?' उषा ने पूछा ।


' वह नहाने के लिए बाथरूम गई थीं , वहीं उनका पैर फिसल गया और वह गिर गईं ।' उमा ने कहा ।


' ओह ! इस तरह की अधिकतर घटनाएं बाथरूम में ही होती हैं । मेरा तो सदा यही प्रयास रहता है कि बाथरूम सूखा रखो ।' उषा ने कहा  ।


' मैंने तो इसलिए बाथ चेंबर बनवा लिया है ।' 

उमा ने कहा ।


'  मैं भी बनवाने की सोच रही हूँ,ऑर्डर दे दिया है । कुछ ही दिनों में लग भी जाएगा ।

वैसे उनकी उम्र क्या होगी ?'


' 80 के लगभग होंगी पर वह अपना सारा काम स्वयं कर लेती हैं ।'


' सच बुढ़ापा ही सबसे बड़ी बीमारी है । इस उम्र में जहां अनेकों तरह की बीमारियां शरीर में पदार्पण कर , शरीर को कमजोर बनाती है वहीं इस तरह के हादसे व्यक्ति के तन मन को तोड़ कर रख देते हैं ।' उषा ने कहा ।


' तुम सच कह रही हो उषा पर यह स्थिति तो सबके साथ आनी ही है । बहुत ही खुशनसीब लोग होते हैं जो एकाएक चले जाते हैं । चलो छोड़ो इन बातों को । क्या उनसे मिलने जाओगी ?'


' जाना तो चाहिए ।'


' वह किस अस्पताल में हैं ?'


' फोर्ड अस्पताल में ।'


'  अगर तुम जाओ तो मुझे भी ले लेना डॉक्टर साहब दो दिन के लिए बाहर गए हैं ।'


' ठीक है ।' कहते हुए दोनों ने विदा ली । 


सुबह की सैर कई मायने में महत्वपूर्ण होती है । तन- मन नई उर्जा से भरता ही है , आसपास की महत्वपूर्ण सूचना भी प्राप्त हो जाती हैं । 


शाम को उषा, अजय और उमा  के साथ फोर्ड अस्पताल में गई । माँ प्राइवेट रूम में आ गई थीं । उनको डिप चढ़ रही थी । उसने उनसे पूछा,'  डॉक्टर क्या कह रहे हैं ।'


' डॉक्टर कह रहे हैं, ऑपरेशन सफल रहा है । दो महीने का बेड रेस्ट बताया है साथ -साथ फिजियोथेरेपी भी करवानी होगी ।' फरहान साहब ने उत्तर दिया ।


:  हम माँ जी की आंखों के कैटरेक्ट ऑपरेशन कराने की सोच रहे थे कि अब यह हादसा । बेड रेस्ट के कारण इनके काम के लिए कोई मेड रखनी पड़ेगी । अपने फ्रोजेन शोल्डर के कारण मुझसे तो इनको उठाना, बिठाना हो नहीं पाएगा ।' नजमा ने माँजी की ओर देखते हुए कहा जो दवाओं के असर के कारण सोई हुई थी ।


' अस्पताल की ही कोई आया मिल जाए तो बहुत ही अच्छा है । '


'चाहती तो मैं भी हूँ पर 24 घंटे के लिए कोई आया मिलेगी, संदेह है । अपनी मेड से तो बात की है आप भी पूछ कर देखिएगा ।' फरजाना ने कहा ।


दूसरे दिन उषा ने अपनी मेड पूनम और स्नेह से बात की तो पूनम ने कहा,'  मेरी एक मित्र है कमला । उसके पति ने उसे छोड़ दिया है । वह घर लौट आई है । उसके एक छोटा बच्चा है । उसकी सौतेली मां कसाई की तरह  उससे  घर का काम कराती है साथ में उसके बच्चे को भी खाने के लिए तरसाती है वह कहीं काम करके इस स्थिति से मुक्त होना चाहती है अगर आप कहें तो मैं कल उसे लेकर आ जाऊं ।'  


' पर क्या वह अपने छोटे बच्चे के साथ एक बीमार आदमी की सेवा कर पाएगी ?'


' भाभी जी जब पेट की भूख सताती है तो इंसान हर काम कर लेता है । जहां बच्चे की बात है वह सब कर लेगी ।'


'  ठीक है,  कल उसे लेकर आ जाना ।  मैं उसे नजमा भाभी से मिलवा दूंगी अगर उन्हें ठीक लगेगा तो वे इसे काम पर रख लेंगी ।'


'  ठीक है भाभी ।'  पूनम ने कहा ।


 दूसरे दिन पूनम की जगह उसकी बेटी पूजा आई और उसने कहा, '  आंटी माँ ने मुझे काम करने के लिए भेजा है ।'


' तुम्हारी मां क्यों नहीं आई ?'


'  मां को बदमाशों ने बहुत मारा है ।'


' पर क्यों ?'


'वह कहते हैं कि कमला को तुम्हारी मां ने भगाया है ।'


' क्या कमला भाग गई ?'


' आंटी वह अपनी सौतेली मां के अत्याचारों से तंग आकर भाग गई ।  उसके चंगुल से बिना दाम की नौकरानी निकल गई इसलिए उसकी सौतेली माँ ने अपने पति के साथ मिलकर मां को इतना मारा कि वह गिर गई ।  गिरने के साथ ही उसका सिर्फ पत्थर से टकरा गया । बहुत खून निकला । वह तो अच्छा हुआ उसी समय भाई आ गया । भाई को देखकर वह बदमाश भाग गए । भाई मां को तुरंत अस्पताल लेकर गया । मां के सिर में 20 टांके आए हैं ।'


' पुलिस में शिकायत की ।'


' हम गरीबों की कौन सुनता है ? आंटी कमला का पिता पुलिस में ड्राइवर है । पुलिस वाले हमारी सुनेंगे या उसकी ।' कह कर पूजा काम में लग गई ।


उषा चाहती थी कि पूनम को न्याय मिले अतः उसने अजय से बात की । उसकी बात सुनकर अजय ने कहा, '  तुम इस पचड़े में न ही पड़ो तो अच्छा है । पूजा ठीक ही कह रही है,  अगर कमल का पिता पुलिस में है तो मैनेज कर ही लेगा फिर तुम सबूत कहां से लाओगी ।'


' पूनम के बेटे ने तो उन बदमाशों को अपनी माँ को मारते हुए देखा है ।' उषा ने कहा ।


' सिर्फ बेटे ने ही  देखा है । उसकी बात पर शायद ही कोई विश्वास करेगा । कमला के पिता ने उस पर अपहरण का आरोप लगाया है । यह कोई मामूली आरोप नहीं है । पुलिस व्यर्थ पूनम से पूछताछ करेगी तथा कमला का पिता कह देगा कि एक तो मेरी बेटी को इन्होंने भगा दिया और अब ये मुझ पर मारपीट का आरोप लगा रहे हैं ।'


' आप तो सदा न्याय का साथ देते रहे हैं और आज आप भी...।'  उषा ने कहा ।


'  तब की बात और थी ...उषा मैं पुलिस की कार्य विधि से पूर्णतः परिचित हूँ ।   यू.पी. और बिहार  मैं कोई अंतर नहीं है । यह गरीब तथा दबे कुचले लोगों का शोषण करना जानते हैं ,उन्हें न्याय दिलाना नहीं । अगर तुम पूनम के लिए कुछ करना चाहती हो तो उसके अस्पताल और दवा का खर्च उठा सकती हो ।'  कहकर अजय अपना काम करने लगे ।


उषा सोचने लगी … सामान्य धारणा  हैं कि हमारी व्यवस्था में अमीर गरीब सबको उचित न्याय मिलता है पर यह सब सिद्धांत की बातें हैं ,व्यावहारिक नहीं वरना कमला जैसे लोग पुलिस के पास जाते हुए हिचकिचाते नहीं और न ही ईमानदार,  काम के प्रति समर्पित अजय वरिष्ठ पद पर रहने के बाद भी इस समस्या पर नकारात्मक रुख अपनाते  । 


उषा पूनम को देखने उसके घर गई । पूनम अस्पताल से घर आ गई थी । उसे देख कर उसके चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी के भाव आये तथा उसने कहा  , ' भाभी जी आप ...।'


पूजा से तुम्हारे बारे में पता चलने पर मैं स्वयं को तुमसे मिलने से रोक नहीं पाई ।  तुम काम की चिंता मत करना । पूजा जितना काम कर पाएगी कर लेगी और हां डॉक्टर की सलाह मानते हो दवा समय पर खाती रहना ।' कहकर उषा ने उसे ₹5000 पकड़ाए थे ।


हाथ में रुपए पकड़ते हुए पूनम ने कृतज्ञता से उसकी ओर देखा तथा दुख भरे स्वर में कहा , ' भाभी मेरी गलती क्या थी सिर्फ यही न कि मैंने कमला की सहायता करनी चाही थी पर उसकी मां और पिता ने मुझ पर उसे भगाने का आरोप लगाने के साथ मुझ पर जानलेवा हमला भी करवा दिया ।'


उषा पूनम की बात का कोई उत्तर नहीं दे पाई । उसे प्रसन्नता तो इस बात की थी कि तन मन के घावों से उबरने का प्रयास करते हुए पूनम बीस दिनों पश्चात ही फिर से काम पर आने लगी थी वहीं नजमा की सासू मां भी घर आ गई थीं ।  उनके काम के लिए अस्पताल से ही एक आया का प्रबंध हो गया था ।


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 एक दिन  उषा सुबह की गुनगुनी धूप में मटर छील रही थी कि सेल फोन टन टना उठाना शुचिता का फोन था । एक वही है जिसके साथ सेवानिवृत्त के 2 वर्ष पश्चात भी संपर्क बना हुआ है ।  उषा ने फोन उठाया । उसके हैलो कहते ही  शुचिता ने कहा, '  दीदी, कहते हैं माता पिता परिवार को जोड़कर रखते हैं पर क्या वह परिवार में टूट का कारण भी बन सकते हैं ? '


' टूट का कारण ?' उषा ने आश्चर्य से पूछा था ।


'  हां दीदी,  एक समय था इनके पांचों भाई बहनों में अपार प्रेम था ।  बड़ा जो कहता था वही दूसरों के लिए ब्रह्म वाक्य बन जाता था । वर्ष में एक बार पांचों भाई बहन  अवश्य ही किसी एक जगह मिलने का कार्यक्रम अवश्य बनाते थे ।  चाहे वे हफ्ते भर के लिए ही मिलें पर मिलते अवश्य थे । हफ्ते भर  घर में जो खुशियों का माहौल रहता था उससे सभी के दिलों में प्रेम और अपनत्व का संचार होता था । उसे देख कर माँ जी और पिताजी तो प्रसन्न होते ही थे,  हम जेठानी देवरानी भी सुबह से शाम तक किचन में लगे रहने के बावजूद अपनी थकान भूल जाया करती थीं ।  पूरे परिवार को एकजुट तथा आपसी रिश्ता में प्रगाढ़ता  एक अजीब सा सुकून पहुँचाती थी विशेषता या तब जब अड़ोस पड़ोस में आपसी संबंधों का खून होते हुए देखती पर अब ...।'


'  पर अब क्या शुचिता दीदी ?'


' आपर तो जानती ही हैं  माँजी की हालत । जब तक वह ठीक थीं ,  कोई बात नहीं थी पर अब जब वह बेड रिडेन हो गई हैं तब कोई उनकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता । हमें मीता की डिलीवरी के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना है पर कोई उन्हें रखने के लिए तैयार ही नहीं है । '


' प्रियेश भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं । सुविधाएं भी उतनी नहीं रहीं पर करें भी तो क्या करें ? समझ नहीं पा रहे हैं । भाइयों के साथ हम देवरानी और जेठानी में भी अबोला की स्थिति आ गई है  । यहाँ तक कि ननदें  भी जो उनके अच्छे दिनों में माँजी से चिपकी रहती थीं । वे भी उन्हें अपने पास रखने को तैयार नहीं हैं ।'


' कब है डिलीवरी ?'


'डिलीवरी तो मई में है दीदी , अभी 5 महीने बाकी है पर उपाय तो सोचना ही होगा ।  सब से पूछ कर देख लिया पर कोई भी उन्हें रखने को तैयार नहीं है नीता अलग नाराज हो रही है उसके साथ ससुर है नहीं वह हमसे ही उम्मीद लगाए बैठी है । '


 'शुचिता सब्र करो … कुछ ना कुछ उपाय निकल ही जाएगा ।'


'  सब्र ही तो कर रही हूँ दीदी ...। कहाँ तो सोचा था कि सेवनिवृत्ति  के पश्चात छुट्टी की समस्या नहीं रहेगी । घूमेंगे फिरेंगे पर अब तो और भी बंधन हो गया है । दीदी किसी और से तो अपने मन की बात कह नहीं सकती, अतः जब मन करता है,  आपसे ही मन की बात शेयर कर अपने मन को हल्का कर लेती हूँ ।'


' शुचिता, बस यही कहना चाहूँगी, ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं । तुम्हारी सेवा का फल तुम्हें अवश्य मिलेगा ।' 


' दीदी कल किसने देखा है । हम अपना आज ही संवार लें । अच्छा दीदी प्रणाम, माँ जी ने घंटी बजाई है । जाकर देखती हूँ , क्या काम है ?' कहकर शुचिता ने फोन रख दिया था ।


शुचिता ने  माँ जी के वॉकर से रिमोट कंट्रोल वाली घंटी बांध दी थी जिससे अगर उन्हें किसी चीज की आवश्यकता हो तो घंटी को बजा कर उसे बुला लें । उनकी अटेंडेंट सुबह शाम ही आती थी बाकी समय उन्हें ही माँ जी को देखना पड़ता था ।


शुचिता और प्रियेश अपना कर्तव्य ठीक से निभा रहे थे किंतु फिर भी उसका कथन.. दीदी कल किसने देखा है हम अपना आज ही संवार लें, में न केवल उसके मन की व्यथा झलक  आई थी वरन जीवन के कटु सत्य को भी उकेर दिया था ।


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 उस दिन  सीनियर सिटीजन ग्रुप की गोष्ठी थी । अचानक सुबह-सुबह शशि का फोन आया कि आज की बैठक स्थगित कर दी गई है ।


' लेकिन क्यों.. ?' उषा ने आश्चर्य से पूछा ।


 ' अरविंद झा के माता-पिता का किसी ने कत्ल कर दिया है ।  वे अभी -अभी घर जाने के लिए निकले हैं । ऐसे में पार्टी करना अच्छा नहीं लगेगा ।' शशि ने कहा ।


' पर कैसे ,क्यों , क्या हुआ ?' उषा ने पूछा ।


' यह तो पता नहीं । सुबह 7:00 बजे झा साहब के पास इस दुर्घटना का फोन आया और वे एक घंटे के अंदर ही निकल गए ।'


अभी उषा और शशि बात कर ही रहीं थीं कि डोर बेल बजी । उषा ने मोबाइल ऑफ करके दरवाजा खोला तो  देखा उमा खड़ी हैं …


'  क्या तुम्हें पता चला कि अरविंद झा के माता-पिता का किसी ने खून कर दिया है ?'


'  हां अभी शशि का फोन आया था ।'


'उसी ने मुझे भी बताया । सच यह बुढ़ापा भी ....अभी पिछले वर्ष ही उनके घर चोरी हुई थी ।'


' क्या…?' एक बार फिर उषा चौंकी थी ।


' वह भी उनके किराएदार द्वारा ।'उमा ने कहा ।


' किराएदार द्वारा... क्या कह रही हैं आप ?  '


' हाँ उषा, मिर्जापुर में उनका बड़ा घर है । उन्होंने उसका एक हिस्सा किराए पर उठा दिया था । वह किराएदार उनका बहुत ध्यान रखता था । कभी-कभी उनका छोटा- मोटा काम भी कर दिया करता था अतः वह उनका विश्वास पात्र हो गया था । '


' क्या वह अकेला था ?'


' नहीं उसकी पत्नी और एक छोटा बच्चा भी था । एक दिन अरविंद जी की मम्मी को वह किराएदार  मूवी दिखाने ले गया । इंटरवल में बच्चे के लिए कुछ खाने का सामान लाने के लिए पहले पति निकला । पति के आने में देरी होने पर पति को देखने पत्नी और बच्चा निकल गए । मूवी समाप्त हो गई उनको ना आता देखकर अरविंद जी की माँ अकेली ही घर आईं ।  पूरा घर अस्त-व्यस्त पाकर वह किराएदार वाले भाग में गईं । उनका घर भी खुला पड़ा था तथा सामान भी नहीं था । उनमें से किसी को न पाकर उन्हें सारा माजरा समझ में आ गया पर अब वह क्या कर सकती थीं  सिवाय स्वयं को कोसने के ...किसी अनजान पर विश्वास करने का अपराध करने के लिए ।'


'  और उनके पति...।'


'  वह अपने मित्र के पुत्र के विवाह में देहरादून गए थे । उसी दिन मिर्जापुर में ही उनके एक अन्य मित्र की लड़की का भी विवाह था अतः दोनों को संतुष्ट करने के चक्कर में वह यहीं रुक गई तथा उनके पति देहरादून चले गए । मित्र की बेटी के विवाह में पहनने के लिए उन्होंने अपना कीमती सेट  निकलवाया था जिस पर किरायेदार की पत्नी की नजर पड़ गई थी ।' 


' ओह ! पुलिस में एफ.आई.आर .कराई होगी ।' उषा ने पूछा ।


' हाँ, कराई थी पर कुछ पता नहीं चला । पता भी कैसे लगेगा , इन सबमें पुलिस की सांठगांठ जो रहती है । अगर चोर पकड़ ही ले जाएं तो चोरी करना इतना आसान ना रह जाए । उषा पुलिस की निष्क्रियता का ही नतीजा है कि आजकल महिलाओं का भी  घर से निकलना सुरक्षित नहीं रह गया है ।  अन्य जगहों के साथ लखनऊ में भी चेन स्नेचिंग आम बात होती जा रही है ।' उमा ने चिंतित स्वर में कहा था।


' इसीलिए कहा जाता है कि  किराएदार भी पूरी तरह जांच पड़ताल के बाद ही रखना चाहिए ।' उषा ने उमा की बात पर ध्यान न देते हुए कहा ।


' तुम ठीक कह रही हो उषा पर जब जो होना होता है ,हो ही जाता है । दुनिया विश्वास पर कायम है । अब अगर कोई किसी का विश्वास ही तोड़ दे , तब इंसान क्या करें ? नीलिमा अक्सर कहती थी कि हम मां बाबूजी से  कहते हैं कि अब आप हमारे साथ रहिए पर वह अपना घर छोड़कर आना ही नहीं चाहते हैं ।' उमा ने कहा ।


 ' कितनी उम्र होगी दोनों की ।' उषा ने पूछा ।


' 80 प्लस होंगे । इस उम्र में भी उनकी जिजीविषा काबिले तारीफ थी वरना इस उम्र में तो लोग बच्चों पर आश्रित होने लगते हैं । भगवान उनकी आत्मा को शांति दे ।' उमा ने कहा ।


'  तुम सच कह रही हो । ' 


' अच्छा अब चलती हूँ । इनकी पूजा हो गई होगी,  नाश्ता देना है ।' कहकर उमा चली गई थी ।


उमा चली गईं थीं पर उषा के मन का बबंडर शांत होने का नाम नहीं ले रहा था । महीने भर के अंदर तीन तीन घटनाएं... आखिर यह जिंदगी का कैसा रूप है ? सब कुछ होते हुए भी इंसान इतना अकेला क्यों और कैसे रह जाता है ? दूसरों के पास तो दूर,  वह अपने बच्चों के पास भी नहीं जाना चाहता !! क्या यह उसका अहंकार है या बच्चों के साथ सामंजस्य स्थापित न करने की विवशता के साथ समय के साथ न चल पाने की अक्षमता है या किसी पर बोझ न बनने की उसकी आकांक्षा । मन में अनेकों प्रश्न थे पर जिसका कोई समाधान उसके पास नहीं था  ।


अजय अपने मिशन पर जा चुके थे अंततः अपने मन के द्वंद से मुक्ति पाने के लिए उषाने आज का दिन ' परंपरा ' के संगी साथियों के साथ बिताने का निश्चय किया ।


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 उषा ' परंपरा ' पहुँची ही थी कि एक कमरे से कराहने की आवाज सुनकर वह  उस कमरे की ओर गई । परंपरा के सभी लोग रीता जी के चारों ओर घेरा बनाकर खड़े थे । वह कराह रही थीं जबकि रंजना फोन पर किसी से बात कर रही  थी । उषा ने सीमा से कारण पूछा तो उसने कहा, ' रीता जी तीन दिन से बुखार से तड़प रही हैं किंतु  वह अस्पताल नहीं जाना चाहतीं ।'


'  पर क्यों ?' उषा ने पूछा ।


'वह कह रही हैं, मुझे मर जाने दो । मैं जीना नहीं चाहती ।' सीमा ने विवश नजरों से उसे देखते हुए कहा ।


'  प्लीज आप लोग इन्हें ऐसे घेरकर मत खड़े होइए ।' रंजना ने सबसे आग्रह करते हुए, उनके चारों ओर बने घेरे को चीरते हुए रीता जी के पास जाकर कहा,' आंटी मैंने डॉक्टर श्रीवास्तव को फोन कर दिया है । वह एंबुलेंस भेज रहे हैं । इसके साथ ही मैंने आपके बेटे सदानंद जी को भी फोन कर दिया है, आपके बारे में सुनकर उन्होंने कहा है कि मैं तुरंत आता हूँ ।'


' तुमने सदानंद को क्यों फोन किया !! मैं उससे मिलना नहीं चाहती और न ही मैं अस्पताल जाऊँगी ...मुझे मर जाने दो ।'  कहते हुए रीता जी ने अपना सिर कसकर पकड़ लिया ।


' आंटीजी, ऐसा मत कहिए । आपको हम सबके लिए ठीक होना होगा ।' उषा ने उनका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा तथा उनका माथा सहलाने लगी ।


रीता जी ने उसका हाथ पकड़कर कहा, ' बेटा, मैं अब इस मानसिक कष्ट से मुक्ति पाना चाहती हूँ । दिल में दर्द का सैलाब लिए आखिर कब तक जीऊँगी ?  अब तू ही इन्हें समझा कि मैं जिऊँ भी तो किसके लिए जिऊँ ? जिनके लिए मैंने अपने जीवन के कीमती वर्ष गंवा दिए , जब आज उनके पास ही मेरे लिए समय नहीं है तो मैं अब जीने की चाहना क्यों करूँ । मेरी मंजिल अब यहां नहीं वरन परमात्मा से मिलन की है । अब मुझे मर जाने दो ।'  कहते हुए उन्होंने अपने जबड़े भींच लिए । इसके साथ ही उनके हाथ शिथिल होते गए...थोड़ी ही देर में उनका शरीर ठंडा पड़ गया ।


रीता जी का इस तरह चले जाना उन सबको जीवन की नश्वरता का बोध कर गया था । गीता सूरी ने दार्शनिक अंदाज में कहा, ' बहुत परेशान थीं बेचारी, चलो मुक्ति मिली ।'


 ' किसी ने सच ही कहा है कि इंसान अकेला ही आता है, अकेला ही जाता है । भरा पूरा परिवार होते हुए भी कोई हमारे लिए आँसू बहाने वाला भी नहीं है ।' कहकर सीमा रोने लगी ।


' प्लीज आँटी, ऐसा मत कहिए, हम सब एक परिवार ही तो हैं ।' रंजना ने सीमा को अपने अंक में भरते हुए उनके आँसू पोंछते हुए कहा ।


' सच कह रही हो रंजना । अब हम सब एक परिवार का हिस्सा ही तो हैं पर यादें पीछा ही नहीं छोड़तीं हैं।' शमीम ने  कहा था । 


' सिर्फ वर्तमान में जीने का प्रयत्न करिए सीमा जी ।अतीत की कडुवी बातों को याद कर मन को कसैला मत बनाइये ।' उषा में उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा था । 


उषा की बात सुनकर सीमा निःशब्द उसे देखने लगी । केवल सिर हिलाकर उसने मौन स्वीकृति दे दी ।


रंजना ने रीता जी की मृत्यु की सूचना देने के लिए सदानंद को फोन लगाया पर इस बार फोन उनके पुत्र रितेश ने उठाया । रंजना की बात सुनकर उसने कहा, '  पापा नहीं आ पाएंगे । उनका ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया है । दादी की इच्छा थी कि उनका शरीर  मेडिकल कॉलेज में दान दे दिया जाए अतः प्लीज आप उनकी इच्छा पूरी कर दीजिए । जब मुझे समय मिलेगा मैं आकर अन्य फॉर्मेलिटीज पूरी कर दूँगा ।'


 रितेश की बात सुनकर रंजना के साथ अन्य सभी हतप्रभ थे । सदानंद नहीं आ सकते थे तो रितेश या उसकी पत्नी तो आ सकते थे । रीता के अनुसार उनका शरीर मेडिकल कॉलेज में दान दे दिया गया ।


उस दिन उषा बुरी तरह आहत हुई थी । आखिर संबंधों में इतनी संवेदनहीनता क्यों आ जाती है । माता -पिता अपना पूरा जीवन बच्चों के  पालन पोषण में लगा देते हैं पर बच्चे पंख मिलते ही अपने पालकों की अवहेलना क्यों करने लगते हैं ? क्या वे उनके लिए भी आउटडेटेड हो जाते हैं या माता-पिता का अति डोमिनेटिंग व्यवहार  उन्हें उनसे दूर ले जाता है ? वजह चाहे जो भी हो पर यह स्थिति न तो समाज के यह उचित है , न ही संबंधों के लिए...।


 शील बुरी तरह रो रही थी उसका कोई नहीं था । रंजना ने उसे रोता देख कर कहा, '  रो मत बेटा , माँ जी नहीं रही तो क्या हुआ ?  हम लोग तो हैं हीं, तुम्हें यहां किसी तरह की परेशानी नहीं होगी । अभी तक तुम सिर्फ रीता दादी की सेवा करती थी पर अब तुम अपने सभी दादा -दादी की सेवा करोगी ।  मैं प्रबंधक से कहकर तुम्हें परंपरा में नौकरी दिलवा दूंगी ।'


' सच आँटी ।'  कहकर शील रो पड़ी थी ।


रंजना उसके सिर पर हाथ फेर कर उसे दिलासा दे रही थी । इस दृश्य को देखकर उषा सोच रही थी कि सच रंजना जैसे लोग देश और समाज के लिए अनुकरणीय हैं । जहां वह अपनी संस्था के सभी सदस्यों को की आवश्यकताओं  का ध्यान रखती है वहीं उनके सुख -दुख में भी  पूरे तन- मन से शरीक होती है । इतना सेवा भाव आज के युग में कम ही देखने को मिलता है । उससे भी बड़ी बात चाहे कितनी भी विषम परिस्थितियां क्यों ना हो उसने रंजना को कभी हताश निराश होते नहीं देखा था ।


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उषा उदास  मन से  घर लौट रही थी कि उसका मोबाइल बज उठा । एक बार सोचा कि वह मोबाइल न उठाए... यह मोबाइल भी 2 मिनट चैन से रहने नहीं देता ।  चाहे अनचाहे बज उठता है किन्तु मन नहीं माना । गाड़ी साइड करके पर्स से मोबाइल निकाला …


फोन पर शुचिता थी उसके हेलो कहते ही उसने कहा , ' दीदी हम कल ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं ।'


' यह तो बहुत खुशी की बात है पर माँ जी...।' कह कर उषा ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया था ।


 ' मां जी को हमने ओल्ड एज होम में रख दिया है । मेडिकल सुविधा भी है । उनके लिए एक नौकरानी की व्यवस्था भी कर दी है । सबसे बड़ी बात माँ जी ने ही हमारी समस्या का हल सुझाया था ।'


' रियली...।'


'  हां दीदी... उन्होंने ही कहा कि मुझे किसी वृद्धाश्रम में रखकर तुम दोनों चले जाओ । तुमने मेरे लिए बहुत किया है । मेरा भी तुम्हारे प्रति कुछ कर्तव्य है । इनके ना नुकुर करने पर उन्होंने कहा, मैं आग्रह नहीं वरन आदेश दे रही हूँ । मुझे मेरी पोती का बच्चा खिलाना है और हां जैसे ही नवासा होगा सबसे पहले मुझे ही खबर देना । सच दीदी उन्हें यूं छोड़ कर जाना अच्छा तो नहीं लग रहा है पर माँ जी के सहयोग एवं प्रस्ताव हमारे मन के अपराध बोध कुछ कम कर दिया है । '


' शुचिता आंटी में आए परिवर्तन आश्चर्यजनक हैं  । काश ! हमारे बुजुर्ग हमारी समस्याओं को समझ कर सहयोग दें तो कोई कारण नहीं है कि कहीं कोई असंतोष पनपे ।  इंजॉय योर जर्नी ' 


'थैंक्यू दीदी और हां फोन से कनेक्ट रहना ।' 


'अवश्य  ... अच्छा रखती हूँ बाय ।'


' बाय ...।'


शुचिता से बात करने के बावजूद भी घर आकर उषा सहज नहीं हो पाई थी । कारण पता लगने पर अजय ने कहा...


 ' उषा सामाजिक संबंध इतने सहज नहीं होते जितना हम सोचते हैं।  इसके एक नहीं अनेकों कारण है आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक भी । संबंधों में संवेदनहीनता अचानक नहीं आती धीरे-धीरे पनपती है और एक ज्वालामुखी फटता है तब सारे रिश्ते नाते तहस-नहस हो जाते हैं इसलिए कहा जाता है इंसान को संतुलन बना कर चलना चाहिए .. जहां संतुलन या लय बिगड़ी वहां गिरना अवश्यंभावी है । अगर तुम यह सोच लो मानव जीवन क्षणभंगुर है जो आया है उसे जाना ही है तब शायद कभी स्वयं को हताश निराश महसूस नहीं करोगी ।'


' सच कहा आपने अच्छा मैं चाय बना कर लाती हूँ ।'


 ' क्यों स्नेहा नहीं आई ?'


' आई थी पर आज उसके घर कोई आने वाला था अतः उसने शाम को छुट्टी ले ली है ।' 


' चलो आज फिर बाहर ही खाते हैं । बहुत दिन हो गए कहीं गए भी नहीं है ।' अजय ने प्रेमासिक्त नजरों से उसे देखते हुए कहा ।


' पर मैंने तो सब्जी बना ली है ।'


'  उसे फ्रिज में रख देना कल खा लेंगे । चलो तैयार हो जाओ ।' 


 अजय उस दिन बहुत अच्छे मूड में थे ।  उस दिन उन्होंने न केवल बाहर खाना खाया वरन वेव माल में मूवी भी देखी ।  घूम कर जब वे घर लौटे तो बहुत अच्छे मूड में थे । बहुत दिनों पश्चात उनके मन में प्यार का अंकुर फूटा था । उस दिन न जाने कब वे दो बदन एक जान हो गए । 


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सुबह उसने अजय का मनपसंद दलिया और आलू पोहा के साथ थोड़ी पनीर भुजिया भी बना ली ।


' क्या हो गया है आज आपको यह स्पेशल ट्रीटमेंट !!' अजय ने कहा ।


'  स्पेशल तो आप मेरे लिए सदा से ही हो पर अपने-अपने दायरे में व्यस्त हम बस अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाए ।'


' शायद तुम ठीक कह रही हो । हमने पाया तो बहुत पर शायद जिंदगी नहीं जी पाए । आज भी भाग ही रहे हैं ।'


' शायद आपकी बात ठीक है पर इस भागमभाग के बीच सुकून मिले थोड़े से ही पल जीवन को जीवंत बना देने की क्षमता रखते हैं वरना जीवन नदी के ठहरे हुए जल की तरह ठहर कर सड़ने लगेगा । हमें जीवन में काम के क्षणों एवं आराम के क्षणों का निर्धारण करना होगा तभी शायद हम जीवन का आनंद ले पाएंगे ।'


' तुम तो पूरी फिलॉस्फर पर ही बन गई हो ।'

अजय ने पेपर लेकर पढ़ने का उपक्रम करते हुए कहा ।


' क्या आज आपको अपने मिशन नहीं जाना  है ।' उन्हें अपने मिशन पर जाने के लिए तैयार न होते देख कर उषा ने पूछा ।


' मैंने एन.जी.ओ. के कार्यों से स्वयं को पृथक कर लिया है ।' 


'  पर क्यों ?'उषा ने आश्चर्य से पूछा ।


' जहां पारदर्शिता न हो ,गरीबों और शोषितों  के उत्थान के लिए मिलने वाली रकम का सिर्फ 20% ही उन पर खर्च किया जाता हो । बाकी सब प्रबंधकों की जेबों में जाए ऐसी जगह मेरा काम करना संभव नहीं है ।'


अजय की बात सुनकर उषा आश्चर्यचकित रह गई थी ।  माना भ्रष्टाचार का भूत इस देश की नस नस में व्याप्त है पर एन.जी.ओ. जैसे संस्थान जिन्होंने समाज के वंचित वर्गों के उत्थान का बीड़ा उठाया है वह भी अपने लक्ष्य से भटकते हैं तब शायद ही कोई समाज सुधार की काम ना कर पाए । 


फोन की लगातार बजती घंटी ने उषा के विचारों पर ब्रेक लगाई .. फोन अजय ने उठाया, '  गुड मॉर्निंग बेटा कैसी हो ?'


'…..'


' क्या पद्म की तबियत ठीक नहीं है ?'


'......'


' ठीक है बेटा, हम शीघ्र से शीघ्र आने का प्रयत्न करते हैं ।'


' ……'


' टिकट बुक करा दीं हैं लेकिन इसकी क्या आवश्यकता थी । हम टिकट बुक करा लेते ।'


' क्या हुआ पदम को ? मुझे फोन दीजिए । मैं बात करती हूँ । ' उषा ने अजय से फोन लेने का प्रयास करते हुए कहा पर तब तक फोन कर चुका था । 


उषा ने फोन मिलाने का प्रयत्न किया पर अनरिचेएबल बता रहा था उसने अजय से पूछा तो उन्होंने कहा, ' डेनियल कह रही थी की पदम को हफ्ते भर से बुखार चल रहा है ।  वह बेहोशी में तुम्हें याद कर रहा है अतः उसने कल की टिकट बुक करा दी है । हमें कल ही निकलना होगा ।'


' क्या...इतनी जल्दी कैसे निकल पायेंगे ? '


' क्यों अभी तो पूरे 36 घंटे बाकी हैं । कल दिल्ली से रात्रि 1 बजे की फ्लाइट है ।'


' लेकिन लखनऊ से तो जल्दी निकलना पड़ेगा ।'


' हाँ कल रात्रि आठ बजे की फ्लाइट है ।'


' ओह ! आज मुझे परंपरा भी जाना है । शमीम का आज जन्मदिन है । उसके बेटे ने उसका जन्मदिन मनाने के लिए 'परंपरा 'के सभी सदस्यों के साथ मुझे भी आमंत्रित किया है । दो महीने के लिए लंदन जाएंगे तो ममा -पापा से मिलने भी जाना होगा ।'


' सब हो जाएगा, चिंता मत करो ।'


' चिंता मत करो, बड़े आराम से कह दिया इन सब कामों के साथ पैकिंग भी करनी होगी । अनिला के लिए बेसन के लड्डू भी बनाने होंगे ।'


' परेशान क्यों होती हो, लड्डू, गुंझिया बाजार से ले लेंगे ।' अजय ने कहा ।


उषा बड़बड़ाती जा रही थी तथा साथ ही फोन पर भी ट्राई करती जा रही थी आखिर फोन मिल ही गया डेनियल ने कहा , ' मम्मा चिंता की कोई बात नहीं है । अभी डॉक्टर को दिखा कर आई हूँ । उन्होंने वायरल फीवर बताया है ।  दवा भी दे दी है । फायदा हो जाएगा । अभी पद्म सो रहे हैं वरना बात करा देती । कल रात पद्म नींद में आपको याद कर रहे थे अतः सुबह उठते ही मैंने आपकी फ्लाइट बुक करा दी ।'


 डेनियल से बात करने के पश्चात मन थोड़ा शांत हुआ । 30 वर्ष पूर्व की घटना याद आई । एक बार पदम गर्मी की छुट्टियों में घर आया हुआ था । उसे लू लग गई थी जिसके कारण उसे काफी तेज बुखार आ गया था । उस दरमियान वह उसे एक मिनट के लिए भी कहीं नहीं जाने देता था । इसी बीच उसे अत्यावश्यक कार्य से बाहर जाना पड़ा । उस समय पदम सो रहा था उसने सोचा कि वह शीघ्र लौट आएगी । वह लौट भी आई थी पर इसी बीच पदम की नींद खुल गई और उसने यह कहते हुए घर सिर पर उठा लिया कि मम्मा को बुलाओ । जब वह आई तब  उसे देखकर उसने कहा, ' आप अब क्यों आई हो ,जाओ ...आपको मुझसे अधिक अपना काम प्यारा है ।'


उषा को अपनी गलती का एहसास था पर दुख इस बात का था कि उस दिन अजय भी उस पर क्रोधित हुए थे ।  आज फिर वही स्थिति... पर आज उसे पदम पर क्रोध नहीं वरन  प्यार आ रहा था । कम से कम आज के माहौल में जब वह वृद्धों को अपने ही बच्चों द्वारा उपेक्षित एवं तिरस्कृत होते हुए देखती है तब आज वह यह सोच कर सुकून महसूस कर रही थी कि कम से कम उसका अपना पुत्र और पुत्र वधू उसकी केयर करते हैं । कौन कहता है कि आज के  युवा सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जीता है!! उनमें संवेदनाएं,  भावनाएं मर गई हैं । उनमें संवेदनाएं भी हैं,  भावनाएं भी । बस परिजनों को भी युवाओं की भावनाओं का सम्मान करना  आना चाहिए । बेवजह टोकना, यह न करो, वह न करो की पाबंदी, न केवल रिश्तो में कटुता घोलती है वरन उन्हें शनै शनै दूर ले जाती है ।  


कभी-कभी स्थिति इतनी विस्फोटक हो जाती है कि वे एक दूसरे को देखना या पहचाना भी नहीं चाहते  । यह जीवन के मधुर रिश्तों की बहुत बड़ी असफलता ही नहीं,  इंसान की रिश्तो को न सहेज पाने की विफलता भी है । यह सच है कि वह पदम और डेनियल के विवाह से प्रसन्न नहीं थी । उसने अपना विरोध जताया था पर उसके इस गलत कदम को अजय ने रोक दिया था । पता नहीं कैसी मनःस्थिति है हम बुजुर्गों की , बचपन से हम अपने बच्चे की हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हैं , जो वह चाहता है या मांगता है,अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसे देने का प्रयास करते हैं । यहाँ तक कि उसे स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए भी प्रेरित करते हैं पर वही बच्चा जब बड़ा होता है , अपने मनपसंद जीवनसाथी के साथ जीवन बिताने की इच्छा जाहिर करता है तब हम सदियों पुरानी रूढ़िवादिता से ग्रस्त होकर कभी कुंडली मिलाने,  स्वजाति में विवाह करने की बात करके उस पर दबाव बनाने लगते हैं । उस समय हम भूल जाते हैं कि विवाह को सफल बनाने के लिए ग्रह नक्षत्र, कुंडली मिलान नहीं वरन व्यक्ति की आपसी समझ, सामंजस्य एवं एक दूसरे को सम्मान देने की प्रवृत्ति बनाती है । आज वह दोनों के मध्य सामंजस्य देखकर प्रसन्नता का अनुभव करती है । 


शाम को उषा परंपरा होते हुए अपनी ममा से मिलने गई । वह अपने कमरे में आराम कर रही थीं अतः वह भी वहीं चली गई । अब वह पहले से ठीक थीं पर परहेज अभी भी  चल रहा था ।  उसे देखते ही उन्होंने कहा, '  देख बेटा नंदिता ने मुझ पर धारा 420 लगा रखी है । हर समय पहरा ...न  किचन में जाने देती  है,  न ही कुछ करने देती है और न ही मन का खाने देती है ।'


' ममा, दीदी आ गई हैं । अपने मन की सारी भड़ास निकाल दीजिए । कम से कम पेट का दर्द ठीक हो जाएगा । दीदी आप ममा से बात कीजिए,  जब तक मैं आपके और जीजू के लिए गर्मागर्म पकोड़े बनाती हूँ ।' कहकर नंदिता हंसते हुए चली गई ।


 वह मम्मा और नंदिता की बातें सुनकर निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न कर ही रही थी कि  नंदिता के जाते हुए ममा ने कहा, ' बहुत ध्यान रखती है नंदिता मेरा , समय से दवाई , समय से खाना,  मेरे लिए अलग से बिना मिर्च की सब्जी और सबसे बड़ी बात हर समय मुस्कुराते रहना,  चाहे कितना भी काम क्यों ना हो । बहुत खुशनसीब हूँ मैं जो मुझे नंदिता जैसी बहू मिली ।'


'  पर ममा अभी तो आप धारा 420... पहरा न जाने क्या क्या बोल रही थीं ।'


'  बेटा वह तो मैं मजाक में कह रही थी । नंदिता को भी पता है । वह भी मेरी बेटी जैसी ही है ।  मेरे सुख- दुख की साथी ।'


' ममा रहने भी दीजिए मेरी तारीफ़ ..  चलिए दीदी और ममा आप भी,  रामदीन ने दीदी और जीजाजी को देखते ही भजिया बनाने का इंतजाम कर लिया था ।  आपके लिए भी बिना मिर्च के लौकी की भुजिया बनाने के लिए कह दिया है ।' 


नंदिता ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा । 


लौटते हुए उषा सोच रही थी माना एकल परिवार के कारण बुजुर्गों की परेशानियां बढ़ी है पर अगर वे दोनों एक दूसरे की भावनाओं को समझें तो कुछ हद तक इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है ।


दूसरे दिन उषा पेकिंग कर ही रही थी कि नमिता आई । उसने बैग से सामान निकलते हुए कहा, ' दीदी, यह अनिला के लिए बेसन के लड्डू तथा परिमल के लिए गुंझिया हैं । इन्हें भी आप रख लीजिए ।'


' अरे, इन सबकी क्या आवश्यकता थी । अजय कह रहे थे जाते हुए नीलकंठ से खरीद लेंगे ।'


' बाजार में तो सब मिल ही जाता है दीदी लेकिन घर की बात दूसरी ही है । आपको तो समय नहीं था अतः में बना लाई । आखिर परिमल और अनिला मेरे भी तो बच्चे हैं । ' नमिता ने कहा ।


' थैंक्स नमिता । चाय बनाती हूँ ।'


' नहीं दी, अब चलती हूँ । माँ जी को खाना भी देना है ।अब आपके आने के बाद ही आपके हाथ की चाय पिऊंगी । हैप्पी एन्ड सेफ जर्नी ।' कहकर नंदिता चली गई थी ।


नंदिता को विदा करके आते हुए उषा सोच रही थी कि अगर आपस में सामंजस्य हो तो ननद भाभी से अच्छा रिश्ता कोई हो ही नहीं सकता ।


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   अजय तो पहले भी अपने ऑफिशियल टूर के कारण विदेश यात्रा कर चुके थे पर यह उषा की पहली विदेश यात्रा थी । दिल्ली एयरपोर्ट पर जब उषा लंदन जाने वाले एयर इंडिया के विमान में बैठी तो उसने पाया कि घरेलू उड़ानों में उपयोग किये जाने वाले विमानों की तुलना में यह विमान काफी बड़ा है । इस विमान में बीच में चार तथा दोनों किनारे तीन-तीन सीट हैं । आने जाने के लिए दो रास्ते  हैं । इसमें बिजनिस क्लास भी है । बिजनिस क्लास में यात्रियों को मिलने वाली सुविधाएं तथा खाना-पीना  इकोनॉमी क्लास वालों से बेहतर रहता है पर इसका किराया इतना होता है कि हाई इनकम वाले ही इसमें जाना एफोर्ड कर सकते हैं, हम जैसे आम आदमी नहीं । 


 विमान में बैठते ही नाश्ता पेश कर दिया गया । रात में खाया तो नहीं जा रहा था किन्तु घर से छह बजे ही निकल गए थे अतः खा लिया तथा  सीट पर बैठे-बैठे ही सोने का प्रयत्न करने लगे । अंततः 9 बजे के लगभग हमारे विमान ने जमीन छू ही ली । उषा ने लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर कदम रखा तो वह रोमांचित हो उठी  थी । 


कस्टम क्लीयरेंस में लगभग एक घंटा लग गया । लगभग आठ, साढ़े आठ घंटे की यात्रा के पश्चात जब वे एयरपोर्ट से बाहर निकले तो पदम और डेनियल के साथ अनिला  भी उनका इंतजार कर रही थी । पदम को देखकर उषा चौंकी थी पर कुछ पूछ पाती उससे पहले ही अनिला उसे देखकर दौड़ती हुई आई तथा उसने उससे चिपकते हुए कहा, ' आई लव यू दादी ।'


' आई लव यू टू बेटा ।'कहते हुए उषा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा था । 


 उसी समय पदम अपने पापा के हाथ से ट्रॉली लेने आया । उषा ने उसका हाथ छूकर कहा, '  बेटा, तुम्हारा बुखार कैसा है ?'


'  बुखार, मैं तो ठीक हूँ माँ ।  यह नाटक आपकी पोती अनिला का लिखा हुआ था । हम तो केवल किरदार थे ।' कहकर पदम मुस्कुरा उठा ।


' दादी आप आ नहीं रही थी अतः मैंने यह प्लान सोचा ।  मुझे लगा जब आप दादी के बीमार होने पर रुक सकती हो तो पापा के बीमार होने पर आप आ भी सकती हो । सॉरी दादी मेरी वजह से ममा को भी झूठ बोलना पड़ा ।' दस वर्षीय अनिला ने कान पकड़ते हुए कहा ।


' अनिला बेटा लेकिन आगे कभी झूठ मत बोलना क्योंकि झूठ बोलना गंदी बात है ।'


' ओ.के.  दादी ।'


 गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी । ऊंची ऊंची इमारतें,  साफ और चौड़ी सड़कें किसी दूसरी दुनिया में पहुंचने का एहसास करा रहे थे । घर भी बहुत ही अच्छा है और साफ सुथरा था । 


घर पहुंचकर अनिला उनका हाथ पकड़कर उन्हें अपने कमरे में लेकर गई । उसका डबल डेकर बेड ,  डिजाइनर स्टडी टेबल, एक अलमारी में उसके खिलौने…सब पद्म और डेनियल की परिष्कृत रुचि को दर्शा रहा था ।  अपनी एक-एक चीज अनिला उसे बड़े चाव से दिखा रही थी ।


' अनिला, दादी को कुछ खाने पीने और आराम करने भी दोगी ।' डेनियल ने कमरे में आते हुए अनिला से कहा ।


' चलिए दादी,  ममा ने आपके और दादाजी के लिए कुछ स्पेशल बनाया है ।'


' पहले फ्रेश तो हो लें बेटा  ।'


'ओ.के. दादी ।  चलिए मैं आपको आपके कमरे में ले चलती हूँ ।' अनिला ने कहा ।


 उषा अनिला के साथ अपने कमरे में आई । कमरा अच्छा और हवादार था ।  अजय वॉशरूम में थे । इस बीच उषा ने अपना सूटकेस खोलकर अनिला के लिए लाई  बार्बी डॉल उसे दी ।


' वेरी ब्यूटीफुल दादी, मैं इसे ममा को दिखा कर आती हूँ।'  कहते हुए  वह जैसे दौड़ी हुई गई, वैसे ही लौट भी आई ।


 अनिला के चेहरे पर छाई खुशी देखकर उषा को लग रहा था कि सच बचपन से अच्छी जीवन की निष्पाप अवस्था कोई नहीं है । 


खाने में पनीर बटर मसाला की सब्जी के साथ आलू गोभी देखकर उषा ने डेनियल की तरफ देखा तो उसने कहा , '  मां आज मैंने वही बनाया है जो आप से सीखा है । खाकर बताइए कैसा बना है ?'


' बहुत अच्छा...।'  खाते ही उषा ने कहा तथा  उसकी बात का समर्थन अजय ने भी कर दिया था ।


 वीक डेज में तो अनिला का स्कूल रहता था वहीं पदम और डेनियल अपने ऑफिस के कार्यों में बहुत बिजी रहते थे ।  स्कूल से आकर अनिला का पूरा समय उन्हीं के साथ बीतता था । शाम को वे घर के पास स्थित पार्क में अनिला के साथ चले जाते थे जिससे उन्हें खालीपन का एहसास नहीं होता था । सच कहें तो उसकी प्यारी- प्यारी बातें उनके खुश रहने का जरिया थीं ।  उसकी निश्चल और  प्रेमपगी बातें सुनकर कभी-कभी उषा सोचती कि न जाने लोग क्यों लड़कियां नहीं चाहते जबकि लड़कियां दिल से जुड़ी रहती हैं। 


सप्ताहांत में उन्हें डेनियल के डैडी ने बुलाया था । वे अच्छे मेजबान थे ।  बातों -बातों में डेनियल के पिताजी ने कहा,'  पद्म के भारतीय होने के कारण हम अपनी इकलौती बेटी डेनियल का विवाह पद्म से करने में हिचकिचा रहे थे ।  हमें लग रहा था कि वह पदम के साथ निभा पाएगी या नहीं किन्तु उसकी जिद के आगे हमें झुकना पड़ा । डेनियल को खुश देखकर हम भी बेहद खुश हैं ।  ' डेनियल के पापा ने अपने मन की बात कही ।


'वैसे हम भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बेहद प्रभावित रहे हैं विशेषता भारतीयों।की परिवार को जोड़े रखने की प्रवृत्ति तथा बुजुर्गों का सम्मान...। हमारे देश में तो सब अपने लिए ही जीते हैं इसलिए यहां ओल्ड एज में सीनियर सिटीजन होम में  रहने का प्रचलन है । ' डेनियल की मां ने कहा । 


अब हम उनसे क्या कहते कि अब हम भारतीय भी पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध से भ्रमित अपनी संवेदनशीलता तथा सांस्कृतिक पहचान खोने लगे हैं । उन्हें भारत आने का निमंत्रण देकर हम लौट आए ।


अगले हफ्ते पद्म ने  लंदन की प्रसिद्ध थेम्स नदी में वोटिंग के कार्यक्रम के साथ सेंट पॉल कैथेड्रल, लंदन आई, टावर ब्रिज देखने का भी कार्यक्रम बना लिया। थेम्स नदी ब्रिटेन की सबसे बड़ी नदी है लगभग 215 मील लंबी है...।  इस नदी पर 1894 में बना टावर ब्रिज देखने लायक है । अगर किसी बड़े जहाज को इस ब्रिज के नीचे से जाना होता है तो यह ब्रिज बीच से खुल जाता है । ठीक ऐसा ही ब्रिज हमने रामेश्वरम जाते हुए समुन्द्र पर बना पामबन ब्रिज देखा था । इस ब्रिज पर ट्रेन चलती है । 'लंदन आई' के कैप्सूल मैं बैठकर जहाँ लंदन शहर के बिहंगम दृश्य ने मन को मोहा वहीं वेस्टमिनिस्टर एबी के पुल पर चलते हुए बिग बेन, ब्रिटिश पार्लियामेंट को देखा । क्रुसी से हमने लंदन की स्काई लाइन के साथ ग्रीन विच लाइन को भी देखा । उस दिन इंडियन रेस्टोरेंट में खाना खाकर देर रात  लौटे थे । पूरे दिन घूमने के पश्चात भी थकान का नामोनिशान नहीं था ।


दूसरे दिन बंकिघम पैलेस गये । बंकिघम पैलेस ब्रिटिश राजशाही का आधिकारिक निवास स्थान है ।  बंकिघम पैलेस अपनी भव्य  रेलिंगों दरवाजों और विशाल बालकनी के साथ मुख्य द्वार के सामने महारानी विक्टोरिया की विशालकाय प्रतिमा तथा चारों ओर फैले खूबसूरत नजारों के लिए प्रसिद्ध है ।  हमने रॉयल कलेक्शन के साथ यहाँ के चेंजिंग ऑफ गॉर्ड सेरेमनी भी देखी । 


इसके पश्चात हम मैडम तुसाद म्यूजियम गये ।  ये मूर्तियाँ इतनी सजीव लग रहीं थीं कि विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये मोम की बनी हैं । ये मूर्तियाँ फ्रांसीसी मूर्तिकार मैडम तुसाद ने बनाई हैं । यह म्यूजियम कई तलों में बना है । विदेशी राजनयिकों , कलाकारों के साथ हमारे देश के भी प्रसिद्ध कलाकारों और राजनयिकों की मूर्तियां भी आकर्षित कर रही थीं ।


दूसरे हफ्ते पद्म और डेनियल विंडसर कैसल लेकर गए ।  लंदन से इस कैसल तक पहुंचने में लगभग एक घंटा लग गया । यह किला थेम्स नदी के किनारे स्थित पहाड़ियों पर बना विशाल किला है । कहा जाता है कि महारानी एलिजाबेथ यहाँ छुट्टियां मनाने यहां आती हैं ।  दर्शकों के लिए इस महल का कुछ ही भाग खुला है ।


इसी तरह पद्म और डेनियल हमें लोंगलीट सफारी और ब्राइटन बीच लेकर गए । ब्राइटन बीच हमें अपने मुम्बई जैसा लगा वहीं लॉन्गलीट सफारी में जानवरों को खुला घूमते देखना , आधे घंटे की क्रुसी की यात्रा में समुन्द्री शेरों को लेक में डॉलफिन की तरह उछलते देखने के साथ टॉय ट्रेन में बैठकर घूमना अच्छा लगा ।


हमें यहाँ आये लगभग 2 महीने हो गए थे । अगले हफ्ते हमें यूरोपियन टूर पर निकलना था और उसके कुछ दिन पश्चात ही हमें भारत लौटना था ।  यद्यपि अनिला के साथ पदम और डेनियल भी हमारे छोटे ट्रिप से नाराज थे पर अगले महीने मम्मा-डैडी की गोल्डन जुबली वेडिंग एनिवर्सरी की वजह से हमें लौटना ही था । वेडिंग एनीवर्सरी में जाना तो पदम और डेनियल भी चाहते थे किंतु उसी समय अनिला की परीक्षाएं थीं । चाहे छोटी क्लास ही क्यों न हो आजकल के माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं करना चाहते । 


 पदम और डेनियल ऑफिस तथा अनिला स्कूल गई हुई थी ।  अजय ने कहा कि कुछ पैकिंग कर लें ।  हमने अभी पैकिंग प्रारंभ ही की थी कि अंजना का फोन आया, उसने कहा, '  भाभी, एक खुशखबरी है ।'


' क्या…?'


'  मम्मा पापा घर आ गए हैं ।'


'  सच...यह तो बहुत खुशी की बात है  पर कैसे ?'


' एक दिन पापा जी की तबीयत खराब हो गई थी । रंजना मेम ने मुझे फोन किया । हम तुरंत पहुंच गए । पापा को अस्पताल में एडमिट करवाना पड़ा । उन्हें हार्ट अटैक आया था । डॉक्टर ने कहा अगर आने में थोड़ी भी देरी हो जाती तो आप इन्हें खो देते । मयंक और मेरी देखभाल ने सासू मां का ह्रदय परिवर्तन कर दिया और वे हमारे पास लौटने के लिए तैयार हो गईं ।' 


' मैंने कहा था ना कि एक दिन वे अवश्य वापस लौटेंगे । लौट आए ना...। अब कोई गलतफहमी न पनपने देना ।'


'  ओ.के. भाभी ।'


 फोन कट गया था टूटे रिश्ते जुड़ने की गंध दूर देश में भी आने लगी थी। 


 आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें यूरोप टूर के लिए निकालना था । आखिर उषा का स्वप्न साकार होने जा रहा था... वेनिस  में गोंडोला बोट द्वारा वोटिंग करते हुए वेनिस शहर की खूबसूरती ने मन मोहा वहीं पर पेरिस के एफिल टावर के तृतीय तल से पेरिस शहर के मनमोहक दृश्य को देखकर मन अभिभूत हो उठा।  इटली  के मिलान में पीसा की झुकी हुई मीनार संसार का अजूबा लगी वहीं वेटिकन सिटी की भव्यता ने मन को अपार शांति से भर दिया ।


स्विट्जरलैंड की वादियों में घूमते हुए उषा सोच रही थी कि जिंदगी तो अभी प्रारंभ हुई है । अभी तक वह विभिन्न दायित्वों और बंदिशों में बंधी, झूठी मान प्रतिष्ठा के भंवर जाल में फंसी जीवन का आनंद ही कब ले पाई थी !! सच तो यह है कि अभी तक वह जो जिंदगी जी रही थी वह उधार की थी । अब वह जियेगी तो सिर्फ अपने लिए पर यह अवश्य है वह अपनी जिंदगी को कभी हाशिया नहीं बनने देगी .. .। इसके साथ ही वह हाशिये में पड़ी जिंदगियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का हरसंभव प्रयत्न करेगी ।  अपनी इसी सोच के तहत उसने एक निर्णय लिया कि मम्मा डैडी के विवाह की स्वर्ण जयंती समारोह में  वह ' परंपरा ' के सभी लोगों को भी आमंत्रित करेगी । 


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अपने-अपने कारागृह-27 


 खुशनुमा यादें लिए उषा और अजय भारत अपने देश लौट आए थे । नंदिता ने मां -पाप की गोल्डन जुबली एनिवर्सरी पर ताज होटल में ग्रांड पार्टी का अरेंजमेंट कर रखा था । उषा ने 'परंपरा ' के सभीलोगों को बुलाने का आग्रह किया तो शैलेश, नंदिता के साथ मम्मा डैडी ने भी  सहमति दे दी थी ।


मां-पापा की विवाह की वर्षगांठ वाले  दिन दोपहर में पूजा थी । पूजा में सिर्फ घर के लोग ही सम्मिलित हुए । शाम को होटल में रिसेप्शन का आयोजन था । डैडी अपने गोल्डन ब्राउन सूट तथा मम्मा गोल्डन बॉर्डर की मेरून साड़ी में इस उम्र में भी बहुत ही खूबसूरत लग रही थीं । खास मेहमानों ने आना प्रारंभ ही किया था कि रंजना ' परंपरा' के सभी लोगों के साथ आ गई । नंदिता और शैलेश ने उन सभी  का गर्मजोशी से स्वागत किया । इस आयोजन का हिस्सा बनने के कारण सबके चेहरे खुशी से ओतप्रोत थे । 


' आज लग रहा है कि हम भी समाज का अंग अंग हैं । थैंक्यू उषा ।' गीता सूरी ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा था ।


' दीदी, आपने इन सबके मन में एक नया जोश भरा है शायद आपको पता नहीं है कि यहां आने के लिए इनमें से कुछ लोगों ने  नई ड्रेस बनवाई है तथा कुछ ने  अपनी पुरानी ड्रेस को ड्राई क्लीनिंग कराकर आज के फंक्शन में आने की तैयारी की है । सच दीदी आपका यह प्रयास इनमें एक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक हुआ है ।' रंजना ने कहा ।


  ' यही सोचकर मैंने इन सबको इस कार्यक्रम में बुलाया है । भविष्य में भी मैं ऐसे कार्यक्रम करने की कोशिश करूंगी । ' उषा ने रंजना से कहा ।


' एक्सक्यूज मी... ।' कहकर नंदिता ने उसे बुलाया तथा कहा,' दीदी, चलिए पहले रिंग सेरेमनी करवा दें । उसके पश्चात जयमाला का प्रोग्राम करा देते हैं ।'


' ठीक है चलो । रंजना प्लीज तुम सभी का ध्यान रखना ,कोई भी बिना खाए पिए यहां से ना जाए ।' उषा ने रंजना से कहा तथा नंदिता के साथ चली गई ।


' ओ.के . दीदी ।'


 स्टेज पर नंदिता ममा की तरफ  तथा उषा डैडी की तरफ खड़ी हुई । रिंग एक्सचेंज के पश्चात उषा और नंदिता ने उन दोनों को माला पकड़ाई तो वे नव युवाओं की तरह शर्मा उठे । ममा-पापा ने एक दूसरे को जयमाला पहनाई । 


आगंतुकों की ताली की गड़गड़ाहट के साथ कैमरे के फ्लैश चमचमा उठे । वीडियो फिल्म बन ही रही थी । शैलेश और अजय मेहमानों के स्वागत में लगे हुए थे । मम्मा- डैडी के कुछ मित्र तो ऐसे थे जो उनके विवाह में भी सम्मिलित हुए थे । उनमें से कुछ ने मम्मा -डैडी के साथ बिताए लम्हों को शब्दों में पिरोया तो चाहे अनचाहे ममा-पापा की आंखों में आंसू आ गए थे । प्रोग्राम बेहद सफल रहा था ।


प्रोग्राम देखकर  अंजना और मयंक भी कह उठे , ' भाभी,  अगले वर्ष आ रही अपने मम्मी पापा की गोल्डन जुबली  वेडिंग एनिवर्सरी भी हम ऐसे ही धूमधाम से मनाएंगे ।'


 रिटर्न गिफ्ट में मम्मा डैडी की ओर से राम और सीता जी की मूर्ति दी गई ।  सभी मेहमान प्रसन्न मन से शुभकामनाएं देते हुए गए थे ।


 विदा के समय कविता ने कहा, '  उषा अगले महीने 10 तारीख को शिखा का विवाह है । कार्ड मैं बाद में दूंगी किन्तु तुम्हे पहले से बता रही हूँ जिससे उस दिन तुम अपना कोई अन्य कार्यक्रम ना रख लो ।'


' बधाई कविता । बहुत खुशी की बात है । मैं तो कहती ही थी , चिंता मत करो,  जब समय आएगा सब हो जाएगा । शिखा है ही इतनी प्यारी जिस घर जाएगी ,उसे स्वर्ग बना देगी । सच बहुत अच्छी खुशखबरी सुनाई है तुमने कविता । बेटी का विवाह हो और हम न आएं, ऐसा हो ही नहीं सकता । ' उषा ने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा था ।


शिखा के विवाह को लेकर कविता काफी दिनों से  परेशान थी ।  शिखा गुणी है,  जॉब भी अच्छा है पर उसका छोटा कद उसके विवाह में बाधक बना हुआ था पर यह भी निर्विवाद सत्य है कि इस दुनिया में गुणों की कद्र करने वाले भी होते हैं । कविता की बात ने उसकी इस धारणा को पुष्ट किया था ।


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 दूसरे दिन उषा परंपरा गई । एक डायरी में उसने ' परंपरा ' के हर सदस्य से पूछकर उनके जन्मदिन की तिथि लिखी तथा जो युगल थे उनकी जन्मतिथि के साथ विवाह की वर्षगांठ की तारीख भी लिखी । कुछ ने उसके द्वारा चलाये अभियान तथा उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए बुझे  मन से कहा कि अपना तो कोई नहीं है अतः अब इस सब की क्या आवश्यकता है ? 


उषा ने कुछ उत्तर नहीं दिया क्योंकि वह उन्हें सरप्राइज देना चाहती थी । मनीषा का जन्मदिन अगले हफ्ते ही था । उसने रंजना से मिलकर उसका जन्मदिन मनाने का फैसला किया । अगस्त महीने की 8 तारीख को सायं 4:00 बजे वह केक लेकर गई । साथ ही प्रत्येक सदस्य के लिए नाश्ते के पैकेट भी उसने पैक करा लिए थे । रंजना ने सभी सदस्यों को डायनिंग हॉल में बुलाया । डाइनिंग टेबल पर केक देखकर सभी हैरान थे । 


उषा मनीषा के पास गई तथा उसका हाथ पकड़ कर डाइनिंग टेबल तक ले गई ।  उसके हाथ में चाकू देकर उषा ने सबको संबोधित करते हुए कहा, ' आज हम हमारी सखी मनीषा का जन्मदिन बनाने के लिए इस हाल में एकत्रित हुए हैं । आप सभी से अनुरोध है कि आप सब इन्हें जी भर कर शुभकामनाएं दीजिए ।'


 मनीषा के केक काटने के साथ ही ' हैप्पी बर्थडे मनीषा '  के स्वर से हॉल गुंजायमान हो उठा ।  इसी के साथ ही अजय ने कई फोटो खींच ली थीं ।


'  थैंक्यू दीदी,  आज आपने हमें परिवार का एहसास करा दिया है ।' कहते हुए मनीषा की आंखें भर आई थीं । 


मनीषा के साथ परंपरा के अन्य मित्र भी उसकी इस सदाशयता से बेहद प्रसन्न थे तथा उसकी प्रशंसा कर रहे थे ।


 उषा ने सोच लिया था कि अब वह नित्य ही कुछ घंटे परंपरा में बिताया करेगी ।  खुशी तो उसे इस बात की थी कि अजय भी उसके साथ परंपरा आने लगे । उषा जहां महिलाओं की समस्याएं सुलझाती, वहीं अजय पुरुषों की । इसके साथ ही उषा ने कढ़ाई ,बुनाई के प्रति भी महिलाओं में रुचि जागृत करने का प्रयत्न किया । इस काम में उसका सहयोग सीमा ने दिया था । वह कढ़ाई, बुनाई में पारंगत थी । उसका मानना था कि लोग अगर अपनी-अपनी रुचियों में व्यस्त रहें तो मस्तिष्क व्यर्थ इधर-उधर नहीं भटकेगा ।


  हर महीने ही किसी न किसी का जन्मदिन पड़ता था । कभी-कभी महीने में दो भी पड़ जाते थे । बिना उत्सव के ही उत्सव मन जाता । परंपरा में अब होली, दिवाली ,लोढ़ी, बैसाखी,  पोंगल, क्रिसमस जैसे पर्व भी मनाने की परम्परा उषा ने प्रारम्भ कर दी है । इन पर्वों पर सबका उत्साह देखते ही बनता था । इन सब कार्य विधियों से वे सभी मन से भी परस्पर जुड़ने लगे थे । यही कारण था कि अब सभी परंपरा वासी अपने अतीत को भूल कर खुश रहने का प्रयास करने लगे थे ।


हर पर्व पर सबकी भागेदारी देखकर उषा को लगता कि हमारे देश को अनेकता में एकता का देश यूँ ही नहीं कहा जाता । चाहे हमारे पर्व, रीतिरिवाज अलग हों, भाषा अलग हो पर हम सब एक ही रंग...प्रेम के रंग में रंगे हैं । यही हम भारतीयों की सच्चाई है ।


 अजय को भी परंपरा आना अच्छा लगने लगा था । डॉ रमाकांत को उन्होंने परंपरा का विजिटिंग डॉक्टर बनने के लिए तैयार कर लिया । वह सी.एम.ओ. रहे थे ।  यद्यपि वह पिछले 4 वर्षों से रिटायर्ड लाइफ जी रहे थे पर उनका अनुभव और जान पहचान परंपरा के सभी सदस्यों के लिए अत्यंत मायने रखती थी । 


परंपरा के सभी सदस्यों को बाहरी दुनिया से जान पहचान कराने के लिए अजय ने परंपरा को एक डेक्सटॉप गिफ्ट में दिया । उनका मानना था कि आज के युग में हर इंसान को कंप्यूटर फ्रेंडली होना चाहिए । उन्हें आश्चर्य हुआ जब पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंप्यूटर सीखने की इच्छा जाहिर की । जिन्होंने सीखना चाहा उनको अजय ने सिखाया भी । कभी-कभी तो उनका पूरा दिन परंपरा में ही बीत जाता था ।


अजय को  यह जानकर अच्छा लगा कि परंपरा के कई सदस्य कंप्यूटर पर विभिन्न अखबारों से अपडेट रहने के साथ फेसबुक पर भी सक्रिय रहने लगे हैं  । कुछ ने तो स्मार्ट फ़ोन भी खरीद लिए थे । उनको उषा और अजय ने यूज़ करना सिखाया । सच तो यह था कि किसी को पैसों की कमी नहीं थी अपनों की बेरुखी ने उन्हें तोड़ दिया था । कंप्यूटर तथा स्मार्ट फोन के कारण बाहरी दुनिया से जुड़ने के कारण उनकी मानसिकता में भी परिवर्तन आ रहा था ।


एक  दिन उषा के परंपरा पहुंचते ही कृष्णा ने कहा, ' दीदी कल मैंने अपनी बहू प्रतिभा को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी उसने उसे एक्सेप्ट कर लिया तथा लिखा मां जी आप कैसी हैं ? उसके साथ संवाद स्थापित होना सुकून दे गया है शायद इसी माध्यम के द्वारा हम एक दूसरे के दिल में जगह बना सकें ।' 


उस दिन रंजना ने भी कहा, '  दीदी आपके तथा अजय भाई के आने से परंपरा को नया जीवन मिल गया है सदा मुरझाए जीवनाविमुख ओठों पर मुस्कान खिली देखकर अनोखा संतोष मिलने लगा है । परंपरा में अविश्वसनीय परिवर्तन देखकर दिव्यांशु सर भी आपसे मिलना चाह रहे हैं । '


' हम भी उनसे मिलने के लिए उत्सुक हैं । '


' ओ.के. उषा जी मैं मीटिंग फिक्स कराती हूँ ।'


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अपने-अपने कारागृह-28 


 अगले हफ्ते हमें बेंगलुरु जाना था ।  जाने का पहला कारण  प्रिया का बार-बार उलाहना देना था कि आप मुझसे अधिक भैया को चाहते हो तभी उनके पास लंदन चले गए पर बेंगलुरु नहीं आ पाए । दूसरा अगले महीने की 20 तारीख को परी के पांचवे जन्मदिन के साथ  प्रिया के नए घर का गृह प्रवेश का भी आयोजन है । इससे अच्छा अवसर उसे खुश करने का और हो ही नहीं सकता था ।


वैसे भी भारतीय परंपरा के अनुसार गृह प्रवेश के अवसर पर मायके से शगुन लेकर किसी को जाना ही चाहिए । पदम आ नहीं पा रहा था अतः उनको जाना ही था । उनके आने का समाचार सुनकर रिया और परी बेहद प्रसन्न हुई । उनके आने का समाचार सुनकर  परी ने उनके सामने अपनी ढेरों फरमाइशें रख दी थीं  ...मसलन लैपटॉप ,बार्बी डॉल इत्यादि इत्यादि ।  लैपटॉप सुनकर उषा चौंकी थी । तब रिया ने बताया कि परी की दोस्त अमिता के पास बच्चों वाला लैपटॉप है । तब से वह लैपटॉप की रट लगाए हुए है और आज उसने आपसे भी लैपटॉप की फरमाइश कर दी । 


अजय ने परी की बात सुनकर कहा, '  वहीं खरीद लेंगे ।  व्यर्थ सामान बढ़ाने से क्या फायदा ?'


 उषा चाहती थी कि परी की फरमाइश का सामान वह लखनऊ से ही खरीद कर ले जाए क्योंकि  उसने देखा था कि लंदन पहुंचते ही अनिला को जो खुशी उसके द्वारा भारत से खरीदी बार्बी डॉल पाकर हुई ,उतनी वहां से खरीदी चीजों को पाकर नहीं हुई । 


कुछ शॉपिंग तो उषा ने कर ली थी कुछ बाकी थी आखिर गृह प्रवेश में जा रही थी । इस अवसर पर रिया और पलक के साथ उसके घर वालों के लिए भी तो  गिफ्ट लेने थे आखिर समाज में रहना है तो सामाजिक दायित्व निभाने ही होंगे । 


उस दिन बैंगलोर ले जाने वाले समान की पैकिंग करते हुए वह टी.वी. देख रही थी कि एक न्यूज फ्लैश हुई …


कश्मीर के पुंछ सेक्टर में पड़ोसी देश की अंधाधुंध फ़ायरिंग का जवाब देते हुए सेकंड लेफ्टिनेंट जैनेंद्र सिंह शहीद हो गए हैं ।


'  अरे यह तो देवेंद्र और सविता का पुत्र हैं । ' टीवी पर फ्लैश होते फोटो को देखकर एकाएक उषा के मुंह से निकला ।


' क्या …? ' अजय ने आश्चर्य से कहा तथा समाचार देखने लगे ।


'  ओह ! यह तो बहुत बुरा हुआ ।अभी कुछ दिन पूर्व ही तो उसने आर्मी ज्वाइन की थी ।' उषा ने कहा । 


' हमें उनसे मिलकर आना चाहिए । अन्य काम तो बाद में भी हो जाएंगे ।'  अजय ने कहा ।


' चलिए जाकर मिल आते  हैं ।' उषा ने सूटकेस बंद करते हुए कहा ।


' चलो ...।' अजय ने कहा । 


डॉ रमाकांत और उमा को लेते हुए वे कर्नल देवेंद्र के घर गए । मीडिया पहले ही उनके घर पहुंचा हुआ था । उसके प्रश्नों के उत्तर में देवेंद्र ने कहा, '  मेरा बेटा बहुत ही साहसी और जुनूनी था । अपनी माँ के मना करने के बावजूद वह फौज में गया । हमें उसकी शहादत पर गर्व है ।' 


उषा को देवेंद्र जी पर गर्व हो रहा था । शायद एक फौजी ही ऐसा कह सकता है । देश पर मर मिटने का जुनून हम सिविलियनस में कहाँ ? 


 सविता नि:शब्द थी । भरी आँखों से वह शून्य में निहार रही थी । उन्हें देखकर उषा के मन में बार-बार आ रहा था ...माना शहीद की माँ कहलाना गर्व का विषय है पर सीने में तो वही मासूम दिल धड़कता है जिसमें अपने पुत्र के लिए कोमल भावनाएं हैं, ढेरों यादें हैं, कुछ सपने हैं । माना सुख-दुख इंसानी जीवन का हिस्सा है पर इतना बड़ा दुख वह कैसे सह पाएगी ?  अभी कुछ दिन पूर्व ही तो वह अपनी पुत्री के विवाह का संदेश दे रही थी और अब यह दर्दनाक घटना...।


 इस दुखद स्थिति से भी अधिक उषा को यह बात दंश दे रही थी कि आखिर विभाजन का दंश लोग कब तक सहते रहेंगे !! स्वतंत्रता के 73 वर्ष पश्चात भी हम शांति से क्यों नहीं रह पा रहे हैं ? किन मनीषियों की मन की शांति के लिए यह युद्ध हो रहे हैं ? आखिर कैसे इंसान दूसरे इंसान के खून का प्यासा हो जाता है ? माना सरहदें हमें बाँटती है पर क्या हम अपनी-अपनी सरहदों में रहते हुए प्रेम और सद्भाव के साथ नहीं रह सकते !! एक इंसान के शरीर से निकला खून दूसरे को विचलित क्यों नहीं करता ? आखिर हम इतने संवेदन है क्यों और कैसे हो गए हैं ? परमपिता ईश्वर तो एक ही है हम सभी उसकी संतान हैं फिर यह खून खराबा क्यों ? 


अनेकों प्रश्न उषा के मन में बवंडर मचा रहे थे । अजय को बैंक का काम था वह उसे घर छोड़ते हुए बैंक चले गए । घर में मन नहीं लगा तो वह ' परंपरा' के लिए चल दी । अजीब इंसानी फितरत है कि खुशी हो या गम इंसान शांति की तलाश में न जाने कहां कहां भटकता फिरता है । 


'परंपरा 'में प्रवेश करते ही गुरुशरण कौर जहाँ उसे अपने हाथों द्वारा बनाए टेबल क्लॉथ को दिखा रही थी वहीं शमीम अपने कुर्ते पर डिजाइन  ट्रेस करने की विधि सीमा से पूछ रही थी । कृष्णा अपनी कविता की कुछ पंक्तियां को फेसबुक में हिंदी में शेयर करना चाह रही थी पर कर नहीं पा रही थी ...उसकी सहायता से कृष्णा को अपनी समस्या का समाधान मिल गया था ।


उषा निकल ही रही थी कि रंजना के साथ एक व्यक्ति ने परंपरा में प्रवेश किया । उसे देखकर  रंजना ने उससे कहा, '  उषा जी यह है दिव्यांशु सर और दिव्यांशु सर यह है उषा जी ।'


' आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई । आपने और अजय जी ने मिलकर हमारी परंपरा का कायाकल्प कर दिया है ।' दिव्यांशु जी ने विनम्रता से कहा ।


' सर हम तो सिर्फ सहयोग दे रहे हैं । हमें भी यहाँ आकर संतुष्टि मिलती है । किसी के लबों पर अगर हम मुस्कान ला सकें तो यह हमारे जीवन की सार्थकता है ।' उषा ने भी विनम्रता से उत्तर दिया था ।


'धन्यवाद उषा जी । आप जैसे लोगों की आज समाज को बहुत आवश्यकता है । मैं तथा परंपरा वासी आपके सदा आभारी रहेंगे ।' 


' जी ऐसा कहकर आप हमें लज्जित मत कीजिये ।'


' ओ.के...।' कहकर दिव्यांशु ने उससे विदा ली ।


उषा भी रंजना को धन्यवाद देकर हजरतगंज खरीददारी के लिए चल पड़ी उसे प्रिया और परी के लिए  चिकन का सूट खरीदना था । कल ही प्रिया ने उससे अपना मनपसंद फिरोजी रंग का सूट लाने के लिए आग्रह किया था ।


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 दिव्यांशु सर के शब्द तथा 'परंपरा' में आया सकारात्मक परिवर्तन उषा के दुखी मन में खुशी का संचार करने लगा था । जीवन को  चलना  है, चाहे कितने ही बड़े दुख या अवरोधों का सामना क्यों ना करना पड़े  !! यही हाल वृद्धावस्था का है …। माना बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता घटने लगती है पर आज उसे लग रहा था कि जीवन की हर अवस्था में चाहे कैसी भी मनःस्थिति हो ,अगर इंसान चाहे तो सक्रिय रह सकता है ।


' मैं कभी हार नहीं मानूँगी... न तन से, न मन से ।' उषा बुदबुदा उठी ।


' अरे बुद्धू, यह सब बातें मन को समझाने के लिए कही जाती हैं ।'


' कौन हो तुम ? कैसी बातें कर रही हो ? ' उषा ने इधर-उधर नजरें घुमाते हुए कहा ।


' अरे जरा संभल कर कहीं एक्सीडेंट न हो जाये ।'


' कौन हो तुम ?' क्रासिंग पर स्टॉप का साइन देखकर गाड़ी रोकते हुए कहा ।


' पहचाना नहीं ...मैं हूँ तुम्हारी अन्तरचेतना !!'


' ओह ! तुम !! अचानक कैसे ?'


'  तुमको काल्पनिक भावनाओं में बहते देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं चली आई ।' 


'  काल्पनिक भावनाओं में ...क्या कह रही हो तुम ?' उषा ने आश्चर्य से कहा ।


' हाँ उषा ...काल्पनिक भावनाओं के संसार से निकलकर यथार्थ के धरातल पर उतर कर सोचो । तुम अभी जो बात स्वयं से कह रही थी, वही बात इस संसार में आया हर प्राणी स्वयं से कहता हैं पर कभी स्वास्थ्य तो कभी परिस्थितियां उसे दूसरों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर कर देती हैं । अब ऐसी स्थिति में इंसान अपना मनोबल कायम न रख पाए तो …!' अन्तरचेतना ने कहा ।


' अगर मनोबल ही नहीं रहा तो वह जिंदा कैसे रह पाएगा ?' ग्रीन सिग्नल देखकर उषा ने गाड़ी आगे बढ़ाते हुए प्रश्न किया ।


' एकदम सत्य... पर रहना पड़ता है ।  तुमने देखा नहीं है 'परंपरा' में ...एक समय ऐसा आता है जब इंसान न तो स्वयं अकेला रह पाता है और न ही बच्चों के पास जाना चाहता है । शायद बच्चे ही उसे अपने साथ नहीं रखना चाहते हों । कुछ  खुशनसीबों को छोड़ दें तो एक न एक दिन यह स्थिति हर इंसान के हिस्से में आती ही है । यह हमारे समाज की क्रूर विडंबना है ।' अन्तरचेतना ने कहा ।


' तुम मुझे अवसाद में ढकेल रही हो !!'


' मैं तुम्हें अवसाद में नहीं ढकेल रही हूँ वरन मानव जीवन की कटु सच्चाई से परिचय करवा रही हूँ ।  हर इंसान को मन के कारागृह  में बंद रहते हुए अपने-अपने युद्ध स्वयं लड़ने पड़ते हैं ।'


 ' मन के कारागृह... अपने -अपने युद्व... तुम कहना क्या चाह रही हो ?' उषा ने फिर प्रश्न किया ।


' मन के कारागृह से तात्पर्य ,  अपने सुख-दुख को मन में बंदी बनाकर समाज के सम्मुख  हंसते हुए, आगे बढ़ते हुए अपने कर्तव्यों को पूरा करना और अपने- अपने युद्ध... तुमने प्रसिद्ध वैज्ञानिक डार्विन का सिद्धांत 'स्ट्रगल फॉर एक्जिस्टेंस 'नहीं पढ़ा । जीवन एक संग्राम है जो इस संग्राम में विजयी होता है,  वही जीवन में सफल होता है ।'


' शायद तुम ठीक कह रही हो पर विपरीत स्थिति में इंसान क्या करे ?' उषा ने समाधान चाहा था । 


'वही जो तुम ' परंपरा 'में सिखा रही हो ।'


गाड़ी के सामने स्कूटर आने के कारण ब्रेक लगने के साथ ही  उषा विचारों के भंवर से बाहर निकली । सच ही तो कह रही है अन्तरचेतना कोई इंसान हार नहीं मानना चाहता पर परिस्थितियां उसे विवश कर देती हैं । कृष्णा को उसने मन ही मन घुटते देखा है । गुरुशरण कौर का हाल भी उससे छिपा नहीं है । रीता जी अपनी इसी मनः स्थिति के कारण जीना ही नहीं चाहती थीं । 


 माना संसार में आया हर इंसान अपने -अपने कारागृह में बंद दुखों से त्रस्त है । कारण चाहे आर्थिक हों या सामाजिक, स्वास्थ्य से संबंधित हों या अपनों के दंश से पीड़ित हों , अगर इंसान स्वस्थ एवं सकारात्मक मनोवृति अपनाये तो विपरीत परिस्थितियां थोड़ी देर के लिए इंसान को भले ही कर्तव्य पथ से विचलित कर दें,  अवसाद से भर दें पर वह शीघ्र ही उन पर विजय प्राप्त करता हुआ निरंतर कर्म पथ पर अग्रसर होता जाएगा ।


 कर्म ही जीवन है का सिद्धांत अपनाने वाला कभी हार नहीं मानता । हार उसे कमजोर नहीं मजबूत बनाती है और वह अपना लक्ष्य प्राप्त करके ही रहता है । सच तो यह है परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, बिना किसी दोषारोपण के स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल ढालना ही इंसान की सबसे बड़ी खूबी है । अगर उसके साथ कभी ऐसी स्थिति आई तो वह बच्चों या किसी अन्य को दोष देने के वह स्वयं को बदलेगी ... जिस 'परंपरा' में आज वह लोगों को सुकून के पल दे रही है चाहे उसे उसी का हिस्सा क्यों न बनना पड़े ….। सोचते हुए उषा ने चैन की सांस ली । 


हजरतगंज आ गया था । उसने गाड़ी पार्क की तथा शॉपिंग के लिए निकल पड़ी । कल ही उन्हें  बेंगलुरु के लिए निकलना है ।


सुधा आदेश


समाप्त