Saturday, December 18, 2010
हमारा मन या हमारी चाहत ही हमारे सारे दुखों का कारण है ...
हमारा मन या हमारी चाहत ही हमारे सारे दुखों का कारण है....सच तो यह है कि हम चाहे कितने भी साधन संपन्न क्यों न हों अगर हमारा मन संतुष्ट नहीं हे तो दुनिया के सारे सुख बेमानी है....यही कारण है कि कुटिया में रहने वाले,आधे पेट खाने वाले गरीब मजदूर भी चैन की नीद सोते है जबकि सब सुख-साधनों से भरपूर तथाकथित अमीर मखमली गद्दो पर भी करवट बदलते रहते है....क्यों....शायद इसलिए कि वे अपनी परिस्थितियो के साथ समझौता नहीं कर पाते...और अधिक पाने की चाह में निरंतर भौतिक सुखो की ओर भागते रहते है यही मनोवृति उनमें असंतुष्टि का कारण बनती है...। यह असंतुष्टि तभी दूर हो सकती है जब हम ऊपर यानि अपने से समर्थ को न देख कर नीचे अर्थात ग़रीबों को देखें....उनकी तकलीफों को महसूस करें....अभावों में भी उनकी हँसी का रहस्य जानने की कोशिश करें....पूर्ण विश्वास है की आप जीने की कला सीख जायेंगे ।
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