आस है तो जीवन है
रीत गया जीवन
जैसे कोई पुराना घड़ा
घड़ा तो फिर भर जाएगा
रीता जीवन
कैसे भर पायेगा ?
घड़ा तो घड़ा है
निर्जीव है
घुटन ,संताप से दूर है
लोग आयेंगे, प्यास बुझायेंगे
रीते जीवन को
कौन भर पायेगा ?
रीत तो नदिया भी
जाती है
पावस की सुहानी बूंदे
बरस-बरस कर
धरती से गगन का कराती है मिलन
रीती नदिया सैकड़ों बांध तोड़कर
धरा की प्यास बुझा जाती है ।
हे पागल मन
मत हो निराश
स्नेह की नन्हीं-नन्हीं बूँदें
फिर आयेंगी,
सहलाकर तन-मन को
रीते मन को,
रीते जीवन को
प्यार की खुशबू से
भर जायेंगी...
मत भूलना
आस है तो जीवन है ।
@सुधा आदेश