Sunday, December 26, 2021

दादी की पाती पोती के नाम

 


दादी की पाती पोती के नाम

मेरी नन्हीं परी अब तुम बड़ी हो रही हो। कल तुम्हारा बारहवां जन्म दिन था। तुम अपने जीवन के तेरहवें वर्ष में प्रवेश कर रही हो। तेरहवें वर्ष को अंग्रेजी में थरटीन यर कहा जाता है। तुमने सुना होगा टीन एज...अर्थात् जब बच्चा अपना बचपन छोड़कर कैशौर्यावस्था में प्रवेश करता है। अब तुम पूछोगी...दादी, यह कैशौर्यावस्था क्या होती है ? बेटी, यह अवस्था वह होती है जब बच्चा न बच्चों में शुमार होता है और न ही बड़ों में । मम्मी-पापा जब अपने दोस्तों से बात कर रहे होते हैं तो कह देते हैं आप जाओ खेलो या पढ़ो, बड़ों के बीच में बच्चे नहीं बैठा करते या बड़ों की बात सुनना अच्छी बात नहीं है और जब छोटे भाई बहन के साथ खेलने लगो तब तुम्हें लगता होगा कि इनके साथ क्या खेलूँ, यह तो बच्चे हैं।

इस समय तुम्हें अपने शरीर में भी परिवर्तन नजर आ रहे होंगे...जैसे स्त्री अंगों का बढना, तुम्हारी बगल में बाल आना, यह स्वाभाविक है इससे तुम्हें डरने या सहमने की आवश्यकता नहीं है, यह हम मनुष्यों के जीवन के स्वाभाविक परिवर्तन हैं जिनसे पता चलता है कि हमारे शरीर का विकास हो रहा है।

बेटी, मैंने देखा कि एक दिन तुम जरमीनेशन इन प्लांट पढ़ रही थीं। इसको समझने के लिये तुमने चने के दाने को अपने घर के गमले की मिट्टी में दबाकर पानी डाला था। वह हमारे वायुमंडल धूप, हवा और धरती माँ से नमी तथा अन्य पौष्टिक तत्वों लेकर जब हफ्ते भर पश्चात् उसमें नन्हीं पत्तियाँ आईं तब तुम उन्हें हम सबको दिखाते हुये कितनी खुश हुई थीं। बेटी, हमारी प्रकृति ने चाहे वह फल हो या फूल, जानवर हो या कीट पतंगा सबको अपने जैसा ही जीव, फल या फूल बनाने की शक्ति दी हुई है। अगर यह शक्ति न मिली होती तो इस संसार में कोई भी जीव, जंतु, पेड़ पौधा होता ही नहीं । इसी देन के कारण हम सभी अपने-अपने रूपों में जीवित हैं और इसी कारण यह संसार संतुलित रह पाता है ।

तुमने देखा होगा कि एक नन्हा बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है। अगर वह बच्चा लड़का है तो पुरूष बनता है। अगर वह लड़की है तो स्त्री बनती है। अब शायद तुम्हारा प्रश्न हो कि यह नन्हा बच्चा आता कहाँ से है? बेटी इसके लिये तुम्हें इंसान की शारीरिक संरचना के साथ उसके शरीर के अवयवों के बारे में जानना होगा। मैंने कल तुम्हें डाइजेस्टिव सिस्टम के बारे पढ़ते देखा था। तुम मुझे बता रही थीं कि दादी देखिये जब हम खाना खाते हैं तो वह पहले हमारे मुँह जिसे ‘बकल कैविटी’ भी कहते हैं, में जाता है जहाँ हम उसे हम दाँतों से चबाते हैं। यहीं इसमें सैलाइवा मिलता है जिससे चबाया फूड आसानी से फूडपाइप या ओसोफेगस के द्वारा आमाशय (स्टमक) में पहुँचता है जहाँ उसमें कई जूस मिलते हैं। स्टमक से हाइडफोक्लोरिक एसिड, गालब्लेडर से बाइल जूस तथा पैन्क्रियास से इनसुलिन...जो हमारे खाने को पचाने में मदद करते हैं । इसके पश्चात् यह खाना छोटी आँत (स्माल इनस्टेटाइन) में जाता है जहाँ खाने के पोषक तत्व छोटी आँत में मौजूद थ्रेड लाइक स्ट्रक्चर द्वारा अवशोषित कर ब्लड वैसेल द्वारा शरीर के अन्य भागों में पहुंचाते हैं तथा बचा खाना लार्ज इनस्टेटाइन (बड़ी आँत) में जाता है । यहाँ भी स्माल छोटी आँत वाली प्रक्रिया दोहराई जाती है। अब वेस्ट प्रोडक्ट रेक्टम द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

बेटी, ठीक इसी तरह हमारे शरीर में उपस्थित फेफड़ो (लंगस) द्वारा हमारे शरीर को आक्सीजन की पूर्ति की जाती है। जिसे श्वसनतंत्र कहते हैं। अभी तक आपने पाचनतंत्र, श्वसनतंत्र के अवयवों के बारे में पढ़ा । उसी तरह हमारे शरीर को सुजारू रूप से चलाने के लिये उत्सर्जन तंत्र (एक्सक्रीटरी सिस्टम), तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) परिसंचरण तंत्र (सरकुलेटरी सिस्टम) अंतःस्त्रावी सिस्टम (एन्डोका्रइन सिस्टम), पेशी सिस्टम (मस्कुलर सिस्टम) तथा प्रजनन तंत्र (रिप्रोडक्टरी सिस्टम) होता है जो आपस में एक साथ मिलकर काम करते हैं ।

धीरे-धीरे तुम इन सभी सिस्टम के बारे में पढ़ोगी किन्तु आज मैं तुम्हें प्रजनन तंत्र के बारे में बताना चाहूँगी । प्रजनन तंत्र के मुख्य अवयय स्त्रियों में ओवरी, फैलोपियन टियूब तथा गर्भाशय (यूटरस) होते हैं वहीं पुरूषों में टेस्टिस । ओवरी में अंडे बनते हैं वहीं पुरूषों में स्थित टेस्टिस में स्पर्म बनते हैं।

बेटी, जब लड़की या लड़का टीन एज में पहुँचते हैं तब उनके यह अंग अपना काम करना प्रारंभ करते हैं। लड़कियों के शरीर में उपस्थित ओवरी में अंडे का निर्माण होता है जो फैलोपियन टियूब से होते हुये गर्भाशय में पहुँचता है। यह अंडा कुछ दिन गर्भाशय में रहता है। अगर इस बीच अंडे में स्पर्म आकर मिल जाते हैं तब फर्टिलाइजेशन हो जाता है । तब स्त्री के शरीर के अंदर एक नये जीव का निर्माण होने लगता है जो धीरे-धीरे बढ़ता है। जब इस जीव के अंगों को विकास हो जाता है तब यह नन्हें बच्चे के रूप में दुनिया में आ जाता है। अगर ऐसा नहीं होता तब अंडा स्वतः ही नष्ट हो जाता है। स्वतः नष्ट हुये अंडे का तरल पदार्थ जो खून के रूप में होता है स्त्री के मूत्रमार्ग के पास स्थित वैजाइना से बाहर आने लगता है। अंडे के यूटरस में नष्ट होने तथा गंदे द्रव के शरीर से बाहर निकलने के समय स्त्री को तीन चार दिन थोड़ी परेशानी से गुजरना पड़ता है जैसे कमर में हल्का दर्द किन्तु यह इतना भी नहीं होता कि कोई लडक़ी अपनी सहज दिनचर्या न कर पाए। इन दिनों तुम स्कूल जा सकती हो, पीना मनपसंद खेल सकती हो ।

बेटी, स्त्री को इस प्रक्रिया से हर महीने गुजरना होता है क्योंकि अंडे बनने और उसे नष्ट होने में 28 दिन लगते हैं। इसीलिये इसे कुछ लोग इसे महीना, कुछ पीरियड, कुछ मेन्सुरेशन भी कहते हैं जिसका अर्थ एक निश्चित अवधि के पश्चात् डिस्चार्ज होना होता है।

बेटी, अब तुम उम्र की इस अवस्था में पहुंच चुकी है । तुम्हारे शरीर में अंडा बनने तथा उसके नष्ट होने की प्रक्रिया कभी भी प्रारंभ हो सकती है । अगर कभी तुम्हारी पेंटी में खून के दाग लगें तो घबराना नहीं क्योंकि यह एक लड़की के जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब भी ऐसा हो अपनी मम्मी को बता देना। तुमने सैनिटरी पैड का नाम सुना होगा। वह तुम्हें सैनिटरी पैड यूज़ करना बता देंगी जिससे कि तुम्हारे कपड़े गंदे न हों।

बेटी, ईश्वर ने स्त्री को माँ बनने का वरदान दिया है इसीलिये उसे बहुत सहनशील बनाया है। शायद तुम्हारे अबोध मन में प्रश्न आया हो कि स्त्री के अंडे से पुरूष का स्पर्म कैसे मिला । बेटी, जब दो विपरीत लिंगी आपस में प्यार करते हैं तब ऐसा होता है।

बेटी, तुम सोच रही होगी मैं तुम्हें यह पत्र क्यों लिख रही हूँ !!  तुम अब बड़ी हो रही हो...मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ और मैं यह भी जानती हूँ कि तुम भी मुझे बहुत चाहती हो। मैं चाहती हूँ तुम अपने बारे में अपने शरीर के बारे में जानो,अपने सामाजिक दायरे के बारे में जानो। लड़कों को दोस्त बनाओ पर उससे एक निश्चिित दूरी बनाकर रखो।

तुम अपने मनमस्तिष्क में यह क्षमता विकसित करो कि किसी भी लड़के के व्यवहार को देखकर या उसके स्पर्श करने के तरीके को देखकर तुम समझ सको कि ‘गुड टच’ और ’बैड टच’ क्या है जिससे कोई तुम्हें हार्म ( नुकसान )  न पहुँचा सके । बेटी, ईश्वर ने स्त्री को ही माँ बनने की क्षमता दी हैै अतः स्त्री को बहुत सोच समझकर कदम उठाना चाहिये। जब तुम्हें लगे कि अब तुम्हें माँ बनना चाहिये, अब तुम बच्चे की जिम्मेदारी संभाल पाने योग्य हो तभी इस ओर कदम बढ़ाना।

बेटी, अपनी क्षमताओं और कमियों को पहचानकर निरंतर आगे बढ़ने की कोशिश करो। अभी अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाओ। अपना लक्ष्य निर्धारित करो तथा उसे पाने के लिये जी जान से जुट जाओ । एक समर्थ, आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर लड़की ही जीवन में आई सारी कठिनाइयों को झेलकर आगे बढ़ सकती है। मैं तुम्हें सदा सफल देखना चाहती हूँ। ढेरों आशीर्वाद...।

हर कदम पर तुम्हारी सफलता की कामना के साथ...।

तुम्हारी दादी


Friday, October 8, 2021

नफ़रतें

 न जाने इतनी नफरतें

कैसे पाल लेते हैं लोग

अपनों का जीना ही

मुश्किल कर देते हैं लोग ।


जिंदगी है छोटी फिर भी

शिकायतें बेहिसाब करते हैं लोग

दिल में जला प्यार का दिया

न जाने क्यों बुझा देते हैं लोग ।


दूरी अपनों से बनाकर

तनाव के समुंदर डुबकी लगा देते हैं लोग

मिटती नहीं यादें अपनों की

भूल जाते हैं लोग ।


साथ छूटता नहीं

भूल जाते हैं लोग

बंद आंखों में तस्वीर अपनों की देखकर भी अनजान बने रहते हैं लोग ।


सुधा आदेश







Sunday, September 19, 2021

उसकी खातिर

 उसकी खातिर-7


एक दिन उसके आफिस से आते ही दीपा ने उसके पास आकर कहा, “भइया आप अपनी बाइक पर मुझे बिठायेंगे।"


        “ हाँ...हाँ क्यों नहीं, चलो।"


       वह दीपा को लेकर बाहर निकलने ही वाला था कि शालिनी आँटी आ गईं । उसे दीपा बिठकर जाते देखकर उन्होंने प्रश्न किया तो उसने कहा,”आँटी, दीपा बाइक पर बैठकर घूमना चाहती है।"


        “उसने कहा और तुम चल दिये । दीपा अंदर जाओ, तम कहीं नहीं जाओगी।" उनकी कड़क आवाज सुनकर दीपा रोती हुई अंदर चली गई।


       शीला आँटी ने दीपा को रोते देखकर कारण पूछा तब शालिनी आँटी ने कहा,"दीदी, बहुत जिद्दी होती जा रही है, सुदीप की बाइक पर बैठने की जिद्द कर रही थी।"


        “तो क्या हुआ ? सुदीप एक चक्कर लगवा देता।"


      “दीदी आप भी… एक अनजान के साथ उसे कैसे जाने देती !!”


         “सुदीप अनजान कहाँ है ? मुझे परख है इंसान की, वह दीपा को अपनी बहन के जैसा ही मानता है।"


          “दीपा उसके लिये बहन जैसी ही है, बहन तो नहीं ।"


       “ मैं तुझसे बहस नहीं करना चाहती, तुझे जो उचित लगे वही कर।"


       उस दिन के पश्चात् न दीपा ने सुदीप से बाइक पर बैठने का इसरार किया और न सुदीप ने अपनी तरफ से कोई प्रयास किया। दरअसल मन के पूर्वाग्रह के कारण शालिनी आँटी का दीपा का उसके साथ उठना बैठना पसंद नहीं था पर शीला आँटी के कारण वह दीपा को कुछ नहीं पातीं थी पर उसने अनुभव किया था कि जब भी दीपा उसके पास आती, शालिनी आँटी की निगाहें उसका पीछा करती रहतीं।


       तीसरे दिन ज्वर की तीव्रता कम हो गई थी अतः डाक्टर के पास जाना ही नहीं पड़ा । शीला आँटी भी लौट आईं थीं। जब उन्हें घटना का पता चला तब उन्होंने कहा,"मैं तो सदा से कहती रही हूँ कि एक से भले दो ।"


       शालिनी आँटी ने इस बार उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया था पर अब उनका व्यवहार उसके प्रति सहज हो गया था। एक बार पुनः दीपा उसके साथ बैठकर घूमने की इच्छा जाहिर तो उसने दीपा से पूछा,"क्या आपने अपनी ममा से बाइक पर बैठने की इजाजत ली ?”


     “ हाँ भइया, ममा ने ही मुझे आपके साथ घूमने जाने के लिये कहा है।"


       सुदीप ने बरामदे में खड़ी शालिनी आँटी की ओर देखा तो उन्होंने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दे दी । अब स्थिति यह थी कि दीपा उसके आफिस से आने के समय बाहर ही खड़ी रहती और जब तक वह उसे उसकी इच्छानुसार अपनी बाइक पर बिठाकर कॉलोनी का एक चक्कर नहीं लगवा देता वह उसे गेट के अंदर घुसने ही नहीं देती थी ।


       एक दिन वह दीपा को कॉलोनी का एक चक्कर लगाकर बाइक को पार्क कर ही रहा था कि अपनी मित्र रोशनी अपने ममा-पापा के साथ बाहर जाते देखकर उसने कहा,"सब बच्चे अपने ममा-पापा के साथ बाहर घूमने जाते है। पर मेरे तो पापा ही नहीं हैं।"


         "क्या आपको पापा चाहिये ?”


     "पापा...वह कैसे आयेंगे ? ममा कहतीं हैं वह तो भगवान के पास चले गये हैं।"


        “पर दूसरे पापा तो आ सकते हैं।"


       “दूसरे पापा...पर कैसे ?”


    “ ठीक वैसे ही जैसे मैं तुम्हारा भाई हूँ...क्या तुम मुझे अपना भाई मानती हो ?”


       “ हाँ...।"


       “तो फिर तुम्हारी ममा मेरी ममा तथा मेरे पापा तुम्हारे पापा ।" सुदीप ने दीपा से कहा।


    “सच भइया...क्या ऐसा हो सकता है ?”


   “ हो सकता है...अगर तुम चाहो तो...।"


   “दूसरे पापा भी मुझे पहले वाले पापा की तरह प्यार करेंगे !!” उसकी आँखों में प्रश्न झलक आया था । 


       “अगर तुम उन्हें पापा कहोगी तो वह भी तुम्हें खूब प्यार करेंगे ।"


        “फिर मुझे ढेर सारी चाकलेट और खिलौने मिलेंगे !! रोशनी की तरह पापा भी मुझे घुमाने ले जाया करेंगे।" दीपा की नन्हीं-नन्हीं आँखों में अनेकों टूटे स्वप्न एक बार पुनः पूर्णता की ओर अग्रसर होने लगे थे।


    “अगर तुम्हारी ममा मेरी ममा बनने को तैयार हो जायेँ तब !!"


      “मैं ममा से बात करती हूँ।“ कहते हुये उसके रोकने के बावजूद दीपा तेजी से अंदर चली गई।


       सुदीप ने भावावेश में आकर दीपा से कह तो दिया था पर अब वह मन ही मन पछता रहा था...। मन में डर था कि कहीं शालिनी आँटी फिर बुरा न मान जायें...पर अब कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि तीर म्यान से निकल चुका था। उसने मन ही मन सोच लिया था कि अगर शालिनी आँटी बुरा मान गईं तो वह यहाँ से कहीं और शिफ्ट हो जायेगा क्योंकि अगर वह यहाँ रहा तो वह बार-बार दीपा में सुदीपा को ढूँढता रहेगा।


       अभी वह अपने कमरे में पहुँचा भी नहीं था कि दीपा दौड़ी-दौड़ी आई तथा उससे कहा, “भइया, ममा बुला रही हैं।"


       उसके मन में अज्ञात भय समाने लगा था । उसने सोच लिया था कि शालिनी आँटी के कुछ कहने से पूर्व ही वह उनसे क्षमा माँग लेगा ।


       “सॉरी आँटी...मैंने आपके जीवन में अनाधिकृत प्रवेश करने का प्रयत्न किया है। अब मैं आपको और परेशान नहीं करूँगा। दूसरा कमरा मिलते ही शीघ्र ही यहाँ कहीं और शिफ्ट कर जाऊँगा।" उसने कमरे में प्रवेश करते ही सिर झुकाकर कहा।


      “सिर्फ सॉरी कहने से ही काम नहीं चलेगा...सजा तो तुम्हें मिलेगी ही ।"


                “मैं हर सजा भुगतने के लिये तैयार हूँ ।"कहते हुये सुदीप के चेहरे पर मायूसी छा गई ।


    “ मैं तुम्हें और दीपा को भाई-बहन के बंधन में बाँधना चाहती हूँ।"


       “ क्या...?” आँखों में अविश्वास का भाव लिए उसने कहा        


        “ अगर तुम्हारे पापा चाहें तो...।"


        “ अगर आप मेरी ममा बनने को तैयार हैं तो उन्हें तो मैं मना ही लूँगा।"। खुशी के अतिरेक से उसका स्वर अवरुद्ध हो गया ।  वह शीघ्रता से बाहर निकला । 


        वह पापा को फोन करने जा ही रहा था कि शालिनी आँटी ने उसके पास आकर कहा,”इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं है बेटा, पहले मैं अपने दीदी जीजाजी से बातें तो कर लूँ।“


    “ओ.के., थैंक यू सो मच आँटी।“ कहते हुए उसकी आँखों की खुशी शालिनी से छिप नहीं पाई। वह उसके निश्चल हृदय को देखकर, यह सोचकर निश्चिंत थी कि जो बेटा अपने पिता का इतना ध्यान रखता है वह उसके और दीपा के साथ कोई अन्याय नहीं होने देगा।  

 

       जयंत आँटी अंकल को शालिनी आँटी ने जब सारी बातें बताईं तो वह खुशी से फूले न समाये ।अंकल आँटी ने निश्चय किया कि वह शालिनी आँटी का रिश्ता लेकर उसके पापा के पास जायेंगे । उन्होंने फोन करके पापा को अपने आने की सूचना दे दी ।


       कुछ ही दिनों में पापा और शालिनी आँटी एक सादे समारोह में विवाह के बंधन में बंध गये। दीपा की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। तुषार अंकल और अनिल आंटी भी इस विवाह से बेहद प्रसन्न थे। वह जानता था पापा और शालिनी आँटी...ममा ने अपने-अपने बच्चों की खुशी के लिये विवाह बंधन में बंधने का निर्णय लिया है। शालिनी ममा के बारे में तो वह नहीं जानता पर पापा ने सदा अपने मन की है...। आज उन्होंने अगर यह फैसला किया है तो सिर्फ उसकी खातिर, उसके लिये...। वह यह भी जानता था कि बेमन से किये फैसले भी वह बखूबी निभायेंगे क्योंकि वह किसी का दिल नहीं तोड़ सकते। उसे पूरा विश्वास था कि उनकी खातिर लिया फैसला उन चारों के जीवन में एक नई रोशनी लेकर आयेगा। एक बार फिर उसका घर बस गया है। अब वह निश्चिन्त होकर अपना मन अपने काम में एकाग्र कर पायेगा।


सुधा आदेश

समाप्त

 


Sunday, August 29, 2021

दांत का दर्द

            

                                                         


दांत का दर्द



    अनिल के दाँत में बहुत दर्द हो रहा था । उसकी माँ शीला उसे दांत के डाक्टर के पास दिखाने ले गई । आखिर आधे घंटे के इंतजार के पश्चात् रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें अंदर जाने के लिये कहा ।


    "आपका क्या नाम है ? " डाक्टर शालिनी ने उसे एक लंबी कुर्सी पर बैठने का आदेश देते हुये मुस्कराकर पूछा ।


    "अनिल ।"


    "क्या हुआ है आपको ?"


    " दांत में बहुत दर्द हो रहा है ।"

    "किस दांत में ?"


    * इस दांत में ।"अनिल ने अपनी अंगुली से दांत को स्पर्श करते हुये कहा ।


    "अच्छा अपना मुँह खोलो ।"


    अनिल के मुँह खोलते ही डाक्टर ने चेयर के ऊपर लगी लाइट जला दी । लाइट के जलते ही अनिल रोने लगा ।


    " रोओ मत, आप तो बहादुर लड़के हैं न । इस लाइट की सहायता से हम देखेंगे कि आपके दांत को हुआ क्या है ?  अब अपना मुँह  खोलो ।"


    "ओ.के. डाक्टर आंटी ।" रोना बंद करते हुये अनिल ने अपना मुँह खोल दिया ।

    " दर्द इस दांत में है ।"डाक्टर ने यंत्र से उसके दांत को टच करते हुये कहा ।


    "जी ।" अनिल ने दर्द से कराहते हुये कहा ।


    "क्या तुम मीठा बहुत खाते हो ?"


    " हाँ डाक्टर आंटी, मुझे चाकलेट बहुत पसंद है ।"


    " उसके बाद कुल्ला करते हो ।"


    " नहीं ।"


    "बस यही तो बात है । आपने चाकलेट खाई और चाकलेट ने आपके दांत ।"डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कहा ।  


    "चाकलेट दांत कैसे खायेगी ?" अनिल ने आश्चर्य से पूछा ।


    "अगर आप खाना खाने के बाद कुल्ला नहीं करोगे, सुबह उठकर या रात में सोने से पहले ब्रुश नहीं करोगे  तो चाकलेट या खाना आपके दांतों में लगा रह जायेगा । धीरे-धीरे खाना सड़ने लगेगा तथा उसमें कीड़े पैदा होने लगेंगे और ये कीड़े आपके दांतों को खाने लगेंगे ।"


    "मुँह में कीड़े...।"कहकर उसने बुरा सा मुँह बनाया ।


    "हाँ कीड़े...उनमें से कुछ कीड़े अगर आपके पेट में चले गये तो पेट में भी दर्द होने लगेगा ।"


    "यही बात तो मैं इससे कहती हूँ पर यह मेरी बात सुनता ही नहीं है ।" अनिल की मम्मी ने अनिल की तरफ देखते हुये डाक्टर से कहा ।


    "बेटा, आपकी मम्मी जो कह रही हैं, क्या वह सच है ?" डाक्टर ने अनिल की ओर देखते हुये पूछा ।


    " जी...।"अनिल ने सिर झुकाकर कहा ।


    "जो बच्चा अपनी माँ की बात नहीं मानेगा उसे परेशानी तो होगी ही ।"


    "डाक्टर आंटी, अब मैं ममा की हर बात मानूँगा तथा खाने के बाद हमेशा कुल्ला करूँगा तथा सुबह और रात्रि में ब्रुश भी करूँगा ।"


    "इसके साथ ही सुबह उठने के बाद तथा रात में सोने से पूर्व भी ब्रुश करना चाहिये ।"

    " वह मैं करूँगा पर दांत का दर्द...।"अनिल ने कराहते हुये कहा ।


    "वह भी ठीक हो जायेगा । पहले नंबर की दवा को एक हफ्ते तक दिन में तीन बार लगाना । यदि अधिक दर्द हो तो दूसरे नंबर की दवा को दिन में दो बार खाना ।" डाक्टर ने दवा की पर्ची लिखकर अनिल को बताते हुये कहा ।

    "ओ.के. डाक्टर आंटी । माँ अब चलें । बाय आंटी...।" कहते हुये अनिल ने डाक्टर शालिनी से पर्चा लिया तथा मन ही मन सोचने लगा कि अब वह डाक्टर आँटी की बात को सदा ध्यान में रखेगा तथा कभी आलस नहीं करूँगा ।


सुधा आदेश  

 


Thursday, July 8, 2021

कोरोना की दूसरी लहर : दोषी कौन ?

 कोरोना की दूसरी लहर :दोषी कौन ?


कोरोना महामारी ने सारा जन-जीवन अस्तव्यस्त कर दिया है । वैक्सीन के साथ मास्क, दो गज की दूरी तथा सेनिटाइजर आज उतने ही आवश्यक हो गए हैं जितनी जीने के लिए शुद्ध हवा या दूसरे शब्दों में आक्सीजन ।


दुख तो इस बात का है सब कुछ जानते हुए भी इंसान नासमझ बना हुआ है । जरा सी छूट मिलते ही वह ऐसा व्यवहार करने लगता है जैसे मास्क या दूरी उसके जीवन के लिए आवश्यक नहीं वरन बोझ हैं जो उस पर जबर्दस्ती थोपी जा रही हैं । अभी दूसरी लहर थमी भी नहीं है कि कुछ लोग कहने लगे हैं कि अभी कोरोना के केस कम हैं चलो कहीं घूम आते हैं । शायद पर्यटन स्थलों, बाजारों में लोगों की भीड़ इसी मानसिकता के परिणाम स्वरूप हैं । 


यद्यपि यह अभी तक सुनिश्चित नहीं हो सका है कि यह  वायरस आदमियों द्वारा निर्मित जैवीय हथियार है या मानव द्वारा  प्रकृति के दोहन से उत्पन्न जीवाणु...किन्तु रोकधाम के उपायों को ठेंगा दिखाता इंसान ही इस जीवाणु के बार-बार पनपने का दोषी है ।



सुधा आदेश




Friday, July 2, 2021

पापा की राजकुमारी

 



पापा की राजकुमारी


‘ कोई अपने पति की रानी बन पाये या न बन पाये पर हर लड़की अपने पिता की राजकुमारी अवश्य होती है ।’

पढ़ते ही नीरा की आँखों से बेताहशा आँसू बहने लगे...बहते आँसुओं को उसने रोकने की चेष्टा भी नहीं की, उन्हें बहने दिया...। हर बहते आँसू में उसे अपने पापा की यादें उभर कर उसे विचलित करने लगीं ...


उसके पिताश्री राजीव मेहरा को परलोक सिधारे लगभग एक वर्ष होने जा रहा है पर आज भी उसका प्रत्येक दिन उन्हीं से प्रारंभ होता है तथा उन्हीं के साथ अंत भी...अगर उनसे उसे प्यार और विश्वास नहीं मिला होता तो जिन हालातों से वह गुजरी पता नहीं उसका क्या होता...?


वह छोटी सी थी तभी उसे एहसास हो गया था कि वह अपनी माँ की आँख का तारा नहीं वरन् काँटा है । वह बार-बार उसकी तुलना उसकी बड़ी बहन नेहा से करती तथा कहतीं, ‘ काला रंग ऊपर से चपटी नाक, छोटी आँखे, पता नहीं क्या होगा इसका ? न जाने किसके ऊपर गई है । ’


                कच्ची उम्र में बच्चे को जब प्यार और ममता की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, उस समय उसे उसकी कमियों की ओर इंगित कराया जाये तब उसके मनोबल पर तो प्रभाव पड़ेगा ही...। धीरे-धीरे वह अंतर्मुखी होती गई । वह न किसी से मिलती न ही किसी से बातें करती । इसका प्रभाव उसकी पढ़ाई पर भी पड़ने लगा । बुरा तो उसे तब लगता जब उसकी बड़ी बहन नेहा भी अपनी माँ की देखा देखी उसका मजाक बनाने लगती...।


       जब वह स्कूल जाने लायक हुई तब पापा ने उसका नाम उसी स्कूल में लिखवा दिया जिसमें नेहा पढ़ती थी । पापा ने जब नेहा को उसे अपने साथ स्कूल ले जाने के लिए नेहा से कहा तो उसने कहा, ‘ मैं इस काली कलूटी को अपने साथ नहीं ले जाऊँगी वरना मेरी सहेलियाँ मेरा मजाक बनायेंगी...।’


                ‘ क्या कह रही हो तुम, अपनी बहन के लिए तुम्हारे ऐसे विचार...शर्म आती है मुझे...।’ पापा ने नेहा कोे डाँटते हुए कहा था ।


                ‘ ठीक ही तो कह रही है नेहा । नीरा अभी छोटी है, नेहा नीरा को सँभाल नहीं पायेगी ? आप ही इसे छोड़ आया करियेगा...। अगले वर्ष से वह नेहा के साथ बस से चली जाया करेगी ।’ माँ ने नेहा का पक्ष लेते हुए कहा था ।


       यद्यपि वह उस समय बहुत छोटी थी पर फिर भी जाने अनजाने ऐसे वाक्य उसके जेहन में ऐसे बस गये थे कि चाहकर भी वह उनसे मुक्त नहीं हो पाई थी शायद इसका कारण इनका बार-बार दोहराब था...।


       पापा की बातों का माँ और नेहा पर जरा सा भी असर नहीं होता था । इतना अवश्य था कि पापा के सामने वे कुछ नहीं कहती थीं पर उनके जाते ही काम के अनगिनत बोझों के साथ तानों की बरसात प्रारंभ हो जाती...। वह चाहकर भी पापा से कुछ भी नहीं कह पाती थी । उसका बालमन भी यह बात समझ गया था कि अगर वह माँ की बातें पापा को बताएगी तो उनके मन में माँ के प्रति कटुता पैदा हो जायेगी । वह घर के वातावरण को अशांत नहीं करना चाहती थी । वह जानती थी कि माँ स्वयं को बदल नहीं सकतीं पापा से डांट खाकर उस समय वह भले ही चुप हो जायें पर बाद में तो उनका क्रोध उस पर ही निकलेगा । 


उसके चुप रहने के कारण माँ उसके प्रति और कटु होती गईं । एक बार काम पूरा न होने पर माँ ने उसे डाँटा ही नहीं मारा भी था वह उसे दिन माँ की डाँट और मार से बुरी तरह टूट गई थी । आफिस से आने पर पापा ने उसकी दशा देखी तो आते ही पूछ बैठे...माँ ने अपनी तरह से सफाई दी पर उस दिन एकांत पाते ही उसने पापा से पूछ ही लिया,‘ पापा, क्या मैं आपकी और माँ की ही बेटी हूँ  या आप मुझे कहीं से उठा लाये हैं ?’


                ‘ बेटा, ऐसा क्यों कह रही हो ?’


                ‘ फिर माँ मुझे दीदी की तरह प्यार क्यों नहीं करती, क्यों सदा मुझे डाँटती रहती है और आज जरा सी गलती करने पर मारा भी...।’


                ‘ बेटा, तू यह क्यों नहीं सोच लेती कि तेरी माँ ऐसी ही है । मुझसे एक वायदा कर कि तू पिछली सारी बातें भुलाकर पढ़ने में, सिर्फ पढ़ने में अपना मन लगायेगी । शिक्षा ही व्यक्ति के विकास में सहायक होता है...यह मत भूलना कि व्यक्ति शक्ल सूरत से नहीं, गुणों से महान बनता है । जिस दिन ऐसा होगा तेरी माँ तुझे खूब प्यार करेगी ।'


       अब वह नीरा को क्या बताते कि नेहा के पश्चात् उसकी माँ नीलम घर के वारिस के रूप में बेटा चाहती थीं पर बेटे की जगह बेटी को पाकर वह मायूस हो गई थी उस पर काला रंग...फिर भी विधि का विधान समझकर उसने उसे अपना लिया । दो वर्ष पश्चात् उसने पुत्र के लिये आग्रह किया तो उसने उसकी माँग को ठुकराते हुए कहा था, ‘ नीलम, मैं पुरानी मान्यताओं पर विश्वास नहीं करता...अगर उचित परवरिश और उचित माहौल मिले तो आज पुत्रियाँ पुत्रों से कम नहीं है...अतः मैं यही चाहूँगा कि  तुम इन्हें उचित संस्कार देकर जिम्मेदार नागरिक बनाओ ।’


       उनकी इस बात ने नीलम को विद्रोही बना दिया और अपना सारा आक्रोश वह नन्हीं नीरा पर निकालने लगी ।  उसे लगता था इसी के कारण उसकी इच्छा अधूरी रह गई...नीरा की उसे अवहेलना करते देखकर उन्हें दुख होता था पर चाहकर भी नीलम की इच्छा पूर्ण करने में असमर्थ थे क्योंकि उन्हें लगता था आज के मँहगाई के जमाने में दो की उचित परवरिश हो जाये, इतना ही काफी है वह तीसरा लाकर अपनी परेशानी नहीं बढ़ाना चाहते थे और अगर तीसरा भी पुत्री रूप में आ गया तब...इच्छा को तो कोई अंत ही नहीं है अतः जो प्राप्य है उसी में संतुष्ट होना क्या इंसान के लिये संभव नहीं है...कम से कम आज की घटना ने यह सिद्ध ही कर दिया था...इसी के साथ उन्होंने नीरा को बोर्डिग स्कूल में डालने का  निर्णय ले लिया । 

   

       जब नीरा को पता चला तो उसने विरोध किया क्योंकि उसे लगता था माँ तो माँ अब तो पापा भी उससे दूरी बनाना चाहते हैं तब उन्होंने उसे यह कहते हुए समझाया था,‘ बेटा, मैं तुझसे स्वयं को दूर नहीं कर रहा हूँ  वरन् तुझे इस कष्टदाई माहौल से निकाल रहा हूँ जिससे तू अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा सवके...वैसे वहाँ तू अकेली कहाँ रहेगी वहाँ तेरी बहुत सारी मित्र होंगी और फिर मैं भी तुझसे मिलने आता रहूँगा ।’


                पापा की बात को आत्मसात कर उसने अपना पूरा ध्यान पढ़ने में लगा दिया...कहते हैं अच्छा हो या बुरा समय किसी के लिये नहीं रूकता...वह स्कूल से कालेज में आ गई...अच्छे अंक लाने के बावजूद माँ के ताने समाप्त नहीं हुए...अब उन्हें लगने लगा  कि अगर ज्यादा पढ़ गई तो उसके विवाह में और अधिक परेशानी होगी...अच्छा लड़का देखने के कारण दहेज की मांग बढ़ती जाएगी पर वह यह नहीं समझ पा रही थीं कि शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक नहीं वरन् सहायक हुआ करती है...।


       नेहा का पूरा समय अपनी माँ की शह पाकर पूरा समय सजने संवरने और घूमने में बीतने लगा...। पढ़ाई उसके लिये द्वितीय वरीयता थी...नतीजा हुआ मैट्रिक में उसका रिजल्ट अच्छा नहीं रहा जिसके कारण हायर सेकेन्डरी में उसे अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिल पाया...पापा तो निराश हुए ही पर माँ ने यह कहकर हौसला बढ़ाया कि कोई बात नहीं बेटा यही तो तेरी मंजिल नहीं है कौन सी तुझे नौकरी करनी है, तू तो है ही इतनी सुंदर कि कोई भी तुझे यूँ ही ब्याह ले जायेगा...।


माँ की बात सच ही निकली ...समय के साथ नेहा को एक खानदानी घर का एक अच्छा लड़का मिल ही गया । माँ-पापा ने उसका विवाह धूमधाम से कर दिया । 


नीरा भी अब पोस्टग्रेजुएशन कर डिग्री कालेज में सहायक अध्यापिका के पद पर काम करने लगी थी साथ ही डॉक्टरेट भी कर रही थी । माँ का अब उसके प्रति रवैया बदलने लगा था । माँ का अपने प्रति बदलता नजरिया देख उसे पापा की बात याद आती...शिक्षा ही व्यक्ति के विकास में सहायक होता है...यह मत भूलना कि व्यक्ति शक्ल सूरत से नहीं, गुणों से महान बनता है । जिस दिन ऐसा होगा तेरी माँ तुझे खूब प्यार करेगी ।


एक दिन माँ की तबियत खराब हो गई, उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाया तो पता चला कि उन्हें  हार्ट अटैक है । नेहा आई पर अपने पारिवारिक दायित्वों के कारण रुक न सकी ।  आखिर माँ ठीक होकर घर आ गईं पर कमजोरी काफी थी इसलिये डॉक्टर ने उन्हें पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी । कॉलेज के साथ माँ की देखभाल के भी सारा दायित्व नीरा ही निभा रही थी ।एक दिन वह माँ के कमरे खाना लेकर जा रही थी कि उनकी आवाज सुनाई दी, ' आपने मेरी बात नहीं मानी, अभी तो नीरा है उसके जाने के पश्चात बुढ़ापे में कौन हमारी देखभाल करेगा ।'


' अरे हम दोनों तो हैं न, एक दूसरे की देखभाल करने के लिए ...।'


' आखिर कब तक…?'


' जब तक सांस है तब तक...।'


' आप चिंता क्यों करते हैं, मैं हूँ न...। मैं आप दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी ।'


उसी समय नीरा ने निश्चय कर लिया था कि वह विवाह नहीं करेगी । 


समय के साथ माँ-पापा उसके लिए लड़का देखने लगे किन्तु उसने मना कर दिया । माँ-पापा उसके निर्णय से खुश नहीं थे पर उसकी इच्छा के आगे मजबूर थे ।


माँ उसके इस निर्णय के लिए स्वयं को दोषी मानने लगीं थीं । एक दिन वह ऐसी सोई कि उठी ही नहीं । पापा बहुत अकेले हो गए थे किंतु अब उनकी एक ही रट रहती...तू विवाह कर ले बेटा, वरना मैं चैन से मर भी नहीं सकूँगा ।


आखिर उसे उनकी बात माननी पड़ी पर उसने कह दिया कि जिसके साथ मेरा विवाह होगा उसे मेरे साथ आपकी जिम्मेदारी भी उठानी होगी ।


पापा उसकी बात सुनकर हतप्रभ रह गए थे आखिर ऐसा लड़का कहाँ मिलेगा !! कई बसंत बीत गए । पापा की खोज जारी रही किन्तु कोई भी लड़का ऐसा नहीं मिला । उसकी पूर्णतया देखभाल करने के बावजूद पापा धीरे-धीरे कमजोर होते जा रहे थे वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है । वह उन्हें चेकअप के लिए अस्पताल लेकर गई ...डॉक्टर चेक कर ही रहे थे कि पापा ने मन की बात कही, ' बेटा, मुझे कुछ नहीं हुआ है, अगर यह विवाह के लिए तैयार हो जाये तो मेरी सारी बीमारी दूर हो जाये पर यह मानती ही नहीं है, कहती है कि जो लड़का आपको रखने को तैयार होगा उसी से यह विवाह करेगी । '


' पापा, आप यहां स्वयं को दिखाने आये हैं न कि यह सब बातें कहने...।'


' कहने दीजिये मिस...।'


' जी नीरा...।'


' नीरा जी , आज बहुसंख्यक वृद्धों की यही समस्या है, आप लड़की हैं, इसलिए अपने पिता के बारे में इतना सोच रही हैं ।'


' आप चिंता न कीजिये, बाबूजी, आपकी बेटी को ऐसा लड़का मिल जाएगा । वैसे आपकी बेटी करती क्या हैं । '


' बेटा, मेरी बेटी डॉ नीरा डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर है, बहुत होनहार और कर्तव्यपरायण है ।'


' वह तो मैं देख ही रहा हूँ ।' डॉ ने नीरा की ओर देखते हुए कहा ।


इसके साथ ही डॉ आशुतोष ने पर्चा लिखकर नीरा को देते हुए कहा, ' आपके पिताजी को कुछ नहीं हुआ है । थोड़ी कमजोरी है ,ये टॉनिक हैं, इन्हें देती रहिए , ठीक हो जाएंगे । अगर कुछ परेशानी हो तो फोन कर लीजिएगा । '


' जी...।' कहकर वे उठ गए ।


नीरा को पापा की बीमारी के सिलसिले में कई बार डॉ आशुतोष से मिलना हुआ ।


एक दिन वह क्लास लेकर आई ही थी कि डॉ आशुतोष को उसने इंतजार करते पाया । उन्होंने उससे कॉलेज की कैंटीन में चलने के लिए कहा । वह कॉफ़ी पी ही रहे थे कि डॉ आशुतोष ने उससे कहा, ' अगर आप मुझ पर विश्वास कर सकतीं हैं तो मैं आपकी शर्त के साथ सारी उम्र आपके साथ चलना चाहता हूँ । अगर आपकी इजाजत हो तो आपके घर जाकर आपके पिताजी से बात करूँ ।'


' आपके घर वाले…!!'


' मेरी माँ  बचपन में ही नहीं रहीं । पिताजी की अभी चार महीने पूर्व मृत्यु हो गई थी । तुम्हारे पापा को देखकर न जाने क्यों मुझे अपने पापा की याद आ जाती है...। ' कहते हुए उसने सिर झुका दिया था ।


' अरे कहाँ हो ? तैयार नहीं हुईं आज बाबूजी की बरसी है । अनाथाश्रम में बांटने के लिए फल, मिठाई लेकर आया हूँ । '


जैसे वह उस लीं डॉ आशुतोष के विवाह के प्रस्ताव पर चौंकी थी ठीक वैसे ही वह आज उनकी आवाज सुनकर अतीत से बाहर निकलते हुए चौंकी थी । यही तो वह भी चाहती थी पर पता नहीं क्यों कह नहीं पाई थी । उसने भरी आंखों से डॉ आशुतोष को देखा… पता नहीं क्यों उसे उन आंखों में पिताजी नजर आ रहे थे, वैसे ही केयरिंग न लविंग । 


सच पापा ने उसे राजकुमारी समझकर पाला ही नहीं, राजकुमारी जैसा जीवन भी दिया...शायद पाप की दुआओं का ही असर है कि उसे डॉ आशुतोष जैसा जीवन साथी मिला ।


सुधा आदेश


 







 

 

 

 

 


Thursday, May 20, 2021

माँ जैसा कोई नहीं

 माँ जैसा कोई नहीं

माँ जैसा कोई नहीं

 वरद हस्त हो माँ का

विपदाओं में भी 

अकेला नहीं इंसान ।


अंधेरे कितने भी डराएं

जीवन में आएं 

कितने भी झंझावात

हँसकर सह जाता इंसान । 


चक्रवाती तूफानों से मुकाबला करता 

तम  भी बन जाता रवि

हौसला न खोता इंसान ।


माँ है तो रिश्ते हैं

प्यार है, अपनत्व है

माँ नहीं तो भीड़ में भी

अकेला इंसान ...।


माँ जीवन का अनमोल उपहार

जीवन की पहली मित्र...

गर तेरा मिले आशीष रहे

दौलतमंद है इंसान ।



@सुधा आदेश

Friday, May 7, 2021

चलो आज गुनगुना लें

 चलो आज गुनगुना लें

कोई नया गीत गा लें

शुद्ध हवा को भरकर फेफड़ों में

मन का अवसाद भगा दें ।


बहुत हुआ कोरोना-कोरोना

रोना धोना बंद करें

चलो थोड़ा योगाभ्यास करें

मन में नवचेतना जाग्रत करें ।


सहायता कर सकते हो तो

रोग पीड़ितों की  करो,

अकेला उन्हें मत छोड़ो

उनके दुखों की ढाल बनो ।


नश्वर संसार के बाशिंदे तुम

आना-जाना जीवन की रीति 

व्यर्थ न गंवाओ कुछ करके जाओ

नश्वर चमन में नाम तुम्हारा होगा ।


@सुधा आदेश

Thursday, January 28, 2021

कामना

 कामना



सिले ओंठ 

संज्ञाशून्य मस्तिस्क

अराजक तत्वों का

देख वहशी, तांडव नर्तन 

क्या भूलूँ, क्या याद करूँ ?


असहमति चाहे जितनी हो

गण के तंत्र से

तिरंगे का अपमान 

अकल्पनीय ही नहीं 

असहनीय है ।


काश याद करते

अमर शहीदों का बलिदान

जिन्होंने तिरंगे की

आन बान शान के लिए

जीवन अर्पित कर दिया ।


जार-जार रोती भारत माँ

छिन्न-भिन्न कर 

भाल को उसके

 अट्टहास करते तुम 

हो ही नहीं सकते तुम भारतवासी  !!


आम नागरिक मैं

रग-रग में बहता खून

देशप्रेम का…

शर्म आती है 

कैसे कहूँ आज

शुभ गणतंत्र दिवस ?


भूल पायेंगे न कभी हम

चाहता है दिल  यही 

हर वर्ष आये यह शुभ दिन

न हो हमारी भावनाओं पर कुठाराघात

लहर-लहर लहराये तिरंगा प्यारा

मान हमारा, शान हमारा ।


आज के दिन हमें 

हमारे अधिकार मिले

कर्तव्य मिले

भूले कर्तव्य, बस अधिकार

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रहे याद  ।


देश का मान रखना है

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का

दुरुपयोग से बचें

अधिकारों की मांग के साथ

कर्तव्यों का भी रखें ध्यान ।


 पल्लवित और पुष्पित

होगा तभी हमारा गणतंत्र ।

विश्व विजयी होगा देश हमारा

 यही इस दिल की कामना

 यही इस दिल की कामना ।


धन्यवाद


सुधा आदेश

Sunday, January 3, 2021

लो आ ही गया 2021

 लो आ ही गया 2021


समय रुकता नहीं

किसी के लिए

कदम दर कदम

ताल मिलाता आखिर

आ ही गया वर्ष 2021...


कुछ नए स्वप्न बुने

कुछ नए संकल्प लें

पर अतीत को न भूले

क्योंकि अतीत की नींव पर ही

भविष्य की इमारत खड़ी है ।


तन-मन से स्वागत  करो

नव वर्ष 2021 का

पर न भूलो 2020 को  

सिखाया है जिसने मानव को

विपरीत परिस्थितियों से जूझना ।


याद करोगे जब-जब

गत वर्ष के अच्छे बुरे पल

कोरोना  वायरस का कहर

लॉक डाउन की त्रासदी

स्वयं का घरों में कैद होना

प्रकृति का मुस्कराना

चिड़ियों का चहकना

नदी नालों का साफ होना ।


अंतरात्मा तुम्हारी 

स्वर्गादिपि गरीयसी धरा को

प्रदूषित करने से रोकेगी...

दे जाओगे  तुम नव पीढ़ी को

प्रदूषण मुक्त अवनि और गगन ।


नव वर्ष का हार्दिक अभिनंदन

सभी स्नेहिल मित्रों को नववर्ष

शुभ हो ।


🌹🌹🌹🌹🌹

 

सुधा आदेश