Thursday, June 6, 2013

एक सच

आज व्यक्ति के लबों मुस्कराहट तिरोहित होती जा रही है...ठहाकेदार हँसी, जहाँ अंदरूनी खुशी की परिचायक हुआ करती थी आज फूहड़ता का प्रतीक बनती जा रही है...मंद-मंद मुस्कराना,औठों पर नकली मुस्कान लिए घूमना आज आभिजात्य वर्ग का शिष्टाचार बनता जा रहा है...। हँसना,खिलखिलाना और मुस्कराना इंसान का प्राकृतिक स्वभाव है...सच तो यह है कि स्वाभाविक और निर्दोष मुस्कान दुखी चेहरे पर भी मुस्कान ला सकती है...नन्हा शिशु जब अकारण मुस्कराता तो उसकी मुस्कान निर्दोष और स्वार्थरहित होती है पर जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है उसकी मुस्कान कम होती जाती है...किशोरावस्था तक आते-आते मुस्कान ओढ़ी हुई प्रतीत होती है...कारण है चिन्ता और तनाव...। इंसान तनावों में भी मुस्कराने कि आदत डाल ले तो तनाव स्वयं ही भागने कि राह खोजने लगेंगे...तनाव और चिन्ताओ से आज कोई भी अछूता नहीं रहा है...हमें जीवन कि परिभाषा बदलते हुए इनके संग-संग ही जीना होगा...अगर हम इन्हें अपने जीवन का अंश बना लें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि जीवन सहज, सरल एवं सुगम होता जाएगा...तब औठों पर मुस्कान ओढ़ी हुई नहीं वरन व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंश बनती जायेगी और व्यक्ति सर्वनाशक प्रवृतियों से दूर सर्वहित कार्य करता हुआ अनायास ही सर्वप्रिय,सर्वमान्य और सर्वजयी होता जाएगा...।