माँ
नभ जैसी विशालहृदयी,
सागर सा गहरा मन,
धरती सी सहनशील,
सावन की फुहारों सी ममतामई
या इनके सम्मिलित रूप से भी
अनूठी,अनोखी, अनमोल थी मेरी माँ...।
मदर टेरेसा सी ममतामई,
फ्लोरेंस नाइटिंगेल सा सेवाभाव,
हेलन केलर सी दृढ़निश्चयी
झांसी की रानी जैसी जुझारू,
या इनके सम्मिलित रूप से भी
अनूठी, अनोखी, अनमोल थीं मेरी माँ...।
जिसके आँचल की छांव ने
त्रितापों ( दैहिक,दैविक,भौतिक )से बचाया,
वहीं उनके अनुशासन ने
कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलना सिखाया
कभी प्रताड़ा तो कभी तन-मन के घावों पर
ममता का मलहम लगाया...।
नहीं देख पाये तब माँ के विभिन्न रूप
नहीं सोच पाये उसे भी कुछ चाहिए
और कुछ नहीं तो थोड़े से प्यारे बोल...
अपनी ही दुनिया में इतना रम गये
कि माँ की धुंधलाती आँखें,
आवाज में आती खामोशी,
उनके पल-पल दूर जाने का
एहसास नहीं करा पाई...।
विलीन हो गई है आज वह परमपिता में
तरस रही हूँ ममता की छांव के लिये,
उस कोख के लिये जिसमें सिर रखकर
दर्देगम भूल जाया करती थी...
तरस रही हूँ उस आवाज के लिये
जिसके साये में पली बढ़ी,
तरस रही हूँ उस घर के लिये
जहाँ मैं बेरोक टोक, मौके-बेमौके
चली जाया करती थी ।
बेघर हो गई हूँ आज मैं...
उनकी बड़ी-बड़ी आँखें
अंतर्तम में बस, दिलासा दे जाती हैं
उनके कोमल हस्त आँखों से
झरते आँसुओं को पोंछ जाते हैं
उनके सिखाये जीवन मूल्य
चलना सिखाते हैं...।
मेरी यादों में, मेरी सांसों में,
मेरी रग-रग में,
आज भी वह जीवित हैं
निराकार रूप में ही सही
माँ आज भी मेरे आस-पास हैं
मेरे आस-पास ही हैं ।
@सुधा आदेश