Thursday, January 13, 2022

माँ

 

माँ

नभ जैसी विशालहृदयी,
सागर सा गहरा मन,
धरती सी सहनशील,
सावन की फुहारों सी ममतामई
या इनके सम्मिलित रूप से भी
अनूठी,अनोखी, अनमोल थी मेरी माँ...।

मदर टेरेसा सी ममतामई,
फ्लोरेंस नाइटिंगेल सा सेवाभाव,
हेलन केलर सी दृढ़निश्चयी
झांसी की रानी जैसी जुझारू,
या इनके सम्मिलित रूप से भी 
अनूठी, अनोखी, अनमोल थीं मेरी माँ...।

जिसके आँचल की छांव ने
त्रितापों ( दैहिक,दैविक,भौतिक )से बचाया,
वहीं उनके अनुशासन ने
कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलना सिखाया
कभी प्रताड़ा तो कभी तन-मन के घावों पर
ममता का मलहम लगाया...।

नहीं देख पाये तब माँ के विभिन्न रूप
नहीं सोच पाये उसे भी कुछ चाहिए
और कुछ नहीं तो थोड़े से प्यारे बोल...
अपनी ही दुनिया में इतना रम गये
कि माँ की धुंधलाती आँखें,
आवाज में आती खामोशी,
उनके पल-पल दूर जाने का
एहसास नहीं करा पाई...।

विलीन हो गई है आज वह परमपिता में
तरस रही हूँ ममता की छांव के लिये,
उस कोख के लिये जिसमें सिर रखकर
दर्देगम भूल जाया करती थी...
तरस रही हूँ उस आवाज के लिये
जिसके साये में पली बढ़ी,
तरस रही हूँ उस घर के लिये
जहाँ मैं बेरोक टोक, मौके-बेमौके
चली जाया करती थी ।

बेघर हो गई हूँ आज मैं...
उनकी बड़ी-बड़ी आँखें
अंतर्तम में बस, दिलासा दे जाती हैं
उनके कोमल हस्त आँखों से
झरते आँसुओं को पोंछ जाते हैं
उनके सिखाये जीवन मूल्य
चलना सिखाते हैं...।

मेरी यादों में, मेरी सांसों में,
मेरी रग-रग में,
आज भी वह जीवित हैं
निराकार रूप में ही सही
माँ आज भी मेरे आस-पास हैं
मेरे आस-पास ही हैं ।

@सुधा आदेश


Tuesday, January 11, 2022

.सारा सच

 सारा सच


स्त्री बेटी है, बहू है 

पत्नी है, माँ भी है बिडम्बना यह कैसी

नहीं है समाज में

उसका कोई अस्तित्व

यही है सारा सच ।


स्त्री ही स्त्री की दुश्मन

कभी बेड़ियों, कभी परम्पराओं में 

जकड़तीअपनी ही 

बहू, बेटियों को

यही है  सारा सच ।


लक्ष्मी,सरस्वती 

दुर्गा भी वह

नहीं पहचान पाई

निज में छिपे निज अस्तित्व को

यही है सारा सच ।


स्त्री कमजोर नहीं

जिस दिन पहचानेगी

अपने अधिकार

नहीं रहेगी मोहताज

आशियाना पा ही लेगी

यही है सारा सच ।


@सुधा आदेश


Friday, January 7, 2022

पलों का नाम है जिंदगी

 पलों का नाम है जिंदगी


जीवन का हर पल, लिख रहा इबारत जिंदगी की

सजा लो इसे या मिटा दो, नियंता हो तुम।


मिटा दो भले ही पर मत भूलना, पल मिटते नहीं

शिद्दत के साथ याद आते हैं, अपवाद नहीं हो तुम।


मत भूलो दुनिया गढ़ी है,निज हस्तों से तुमने

सहेज नहीं पाए,बिखरने दिया,दोषी हो तुम।


 नहीं बिगड़ा अभी कुछ भी, मजबूत इरादों के संग

रुके कदम आगे बढ़ाओ,विश्वास बनो तुम।


पीछे जो छूट गया,वह अपना था ही नहीं

छोड़कर दामन मोह का, निःस्पृह बनो तुम।


टुकड़ा-टुकड़ा बदलेगी तकदीर,रखो आस

चीर कर अंधकार को, प्रकाश बनो तुम।


@सुधा आदेश