Friday, April 11, 2014
फसल
बोई थी मैंने फसल
प्यार की,विश्वास की,
उमंग की,उत्साह की,
अपनत्व की,सहयोग की...
कोपलें फूटी भी न थीं
कि कुछ सिरफिरों ने
काट डाली और बो दी...
फसल नफरत की,
ईर्ष्या,द्वेष की,
वेमनस्य की, क्रोध की,
बदले की,जहर की...।
पर भूल गये
नफरत को नफरत के
जल से नहीं,
प्यार के जल से सींचा जाता है...।
अगर ऐसा न होता तो
न यह जमीं होती
न ही यह अलौकिक सौन्दर्य,
न ही हम और तुम...।
Wednesday, April 9, 2014
एक मौका और दीजिये
एक मौक़ा और दीजिये
पाँच वर्ष पश्चात
खादी के
कुर्ता पाजामे में
सुसज्जित
सिर पर
गांधी टोपी लगाये
आँखों पर
रे-बेन का
काला चश्मा पहने
पेरों में
रिबोक के
जूते पहने
सुरक्षाकर्मियों के घेरे में
एक बार फिर
द्वार पर हाथ बांधे
व्यक्ति को देखकर
हमने पूछा,
'कौन हो भाई,
हमने पहचाना नहीं...।'
'हम गरीबदास
आपके सेवक...
एक मौका और दीजिये। '
'आप वह गरीबदास नहीं हो
जिन्हें हमने वोट दिया था...
कंधों पर थैला लटकाये
चप्पल चटकारते,
पेट को
आंतों में धँसे
उस कमजोर और मरियल से
व्यक्ति में
समाज सुधार का
जज्बा देख
हमने सोचा था
हमारे मध्य पला बढ़ा
वह आदमी
निश्चित रूप से
हमारी समस्याओं का
हल ढूंढ पाएगा...
पर तुम भी
औरों की तरह ही निकले...
जाइये...जाइये
अब हमें और बेबकूफ
मत बनाइये
कहीं और जाकर
वोट मांगिए। '
'नहीं भाई
हम वही गरीबदास है
आपकी समस्याओं का
हल ढूँढते-ढूँढते
हम स्वयं उलझ गये थे,
आपकी मेहरबानी से
हमारी गरीबी तो
हो गई दूर...
एक मौका और
दीजिये जहाँपनाह,
जिससे अब
आपकी गरीबी हम
कर सकें दूर...।
@सुधा आदेश
Subscribe to:
Posts (Atom)