यह शहर तुम्हारा नहीं
जला दो इस शहर को,
यह शहर तुम्हारा नहीं ।
मिटा दो इन गलियों को
इनमें तुम कभी खेले नहीं ।
मार दो अपने ही
बंधु-बांधवों को ही,
प्यार तुमसे उन्होंने
कभी किया ही नहीं ।
माँ भारती के
पुत्र तुम सब,
माँ के भाल को उजाड़ते,
झिझकते क्यों नहीं ।
क्या थे, क्या से क्या
हो गए तुम!!
हाथ में खंजर ,
कलम क्यों नहीं ।
देश के भविष्य तुम,
भविष्य तुम्हारा होगा
मनमस्तिष्क को खोलकर
सोचते क्यों नहीं ।
तोड़ना बहुत ही
आसान है बंधु,
दिलों को जोड़ने का सुकून
पाते क्यों नहीं ।
सिसकती, तड़पती
उजड़ी जिंदगियों को,
फिर से बसाने का
संकल्प लेते क्यों नहीं !!
मत भूलो नफ़रतों ने
उजाड़ी हैं अनेकों जिंदगियां
दिलों में घोलकर कडुवाहट
सुकून तुम भी पाओगे नहीं ।
प्यार के दो पल गुजारो
अपनों के संग,
सच कहती है सुधा,
द्वेष कहीं रहेगा नहीं ।
@ सुधा आदेश