Wednesday, December 25, 2019

यह शहर तुम्हारा नहीं

पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर अंतरतम से उदित उद्गार... 
 यह शहर तुम्हारा नहीं 

 जला दो इस शहर को, 
यह शहर तुम्हारा नहीं ।
 मिटा दो इन गलियों को 
इनमें तुम कभी खेले नहीं । 

 मार दो अपने ही
बंधु-बांधवों को ही, 
प्यार तुमसे उन्होंने
कभी किया ही नहीं ।

 माँ भारती के 
पुत्र तुम सब, 
माँ के भाल को उजाड़ते, 
झिझकते क्यों नहीं । 

 क्या थे, क्या से क्या 
हो गए तुम!! 
हाथ में खंजर , 
कलम क्यों नहीं । 

 देश के भविष्य तुम,
भविष्य तुम्हारा होगा
मनमस्तिष्क को खोलकर 
सोचते क्यों नहीं । 


तोड़ना बहुत ही 
आसान है बंधु, 
दिलों को जोड़ने का सुकून 
पाते क्यों नहीं । 

 सिसकती, तड़पती 
उजड़ी जिंदगियों को, 
फिर से बसाने का 
संकल्प लेते क्यों नहीं !! 

 मत भूलो नफ़रतों ने 
उजाड़ी हैं अनेकों जिंदगियां 
दिलों में घोलकर कडुवाहट
सुकून तुम भी पाओगे नहीं ।

 प्यार के दो पल गुजारो 
अपनों के संग, 
सच कहती है सुधा, 
द्वेष कहीं रहेगा नहीं । 

@ सुधा आदेश