आज हम नई जिन्दगी में प्रवेश कर रहे हे....एक ऐसी जिन्दगी जिसका दिन निश्चित होता हे....यधपि मेरे पति को अवकाश तो अगस्त में ही प्राप्त हो गया था पर पूर्ण रूप हम नई जिन्दगी में दो दिन पूर्व यानि २६ तारीख को प्रवेश किया हे....३८ वर्ष की सर्विस के पश्चात् नई जगह आकर रहना, फिर से घर बसाना आसन नहीं होता जबकि सारी सुख सुविधाओं से जिंदगी बीती हो....पर कहते हे इंसानी मन सब कुछ भूल कर सहज हो जाता हे हमारे साथ भी ऐसा ही होगा....शायद समय लगे पर फिर से सब कुछ ठीक हो जायेगा....पुराने दोस्तों को भुलाना आसान नहीं होता पर आज दुनिया सिमट गई हे यदि इचा हो तो फ़ोन के जरिये हम आपस में सम्बन्ध बनाये रख सकते हे....आज बस इतना ही....
Sunday, November 28, 2010
Friday, November 19, 2010
jivan ke rang
जीवन
जीवन सुख और दुःख का बसेरा हे....शायद ही ऐसा कोई जीवन हो जिसमे सुख दुःख न हो, शायद हम इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते....सच तो यह हे की दोनों ही एक दुसरे के पूरक हे....जीवन में अगर दुख न होगा तो भला हम सुख की आनंददई अनुभूति को जी कैसे पायेगे....सुख ही सुख होगा तो दुःख की भयावता से कैसे परिचित होंगे....जीवन नीरस तो होगा ही जीवन जीते हुए भी जीवन रस से वंचित रहेंगे. अतः जीवन की धूप छाव से मत घबराइए बढते चलिए, बढ़ते चलिए जीवन सुखमय बन जायेगा.... &n
Thursday, November 18, 2010
pariwar
व्यक्ति से परिवार बनता हे तथा परिवार से समाज....अर्थात व्यक्ति पर ही समाज के निर्माण का दायित्व होता हे, अगर व्यक्ति किसी काम की अलख मन में जगा ले तो चाहे कितनी ही कठिनाइया आये वह अलख को बुघने नहीं देगा....उसके आदशो की अलख स्वयं तो जलेगी ही दुसरो के घर को भी अपने प्रकाश से प्रकाशित करेगी इसमें संदेह नहीं हे. आवश्कता हे इक्च्शक्ति की....ऐसा व्यक्ति अपने मनोबल के कारन न केवल अपना ध्येय प्राप्त करता हे वरन अपने साथ समाज को चलने के लिए भी प्ररित करता हे....बड़े- बड़े महापुरुष इसके उदाहरण हे....जिन्होंने अपनी सोच और कर्म से समाज और देश को एक नई दिशा दी....जो व्यक्ति समाज को साथ लेने की शक्ति रखता हे वही सही अर्थो में मानव कहलाने का अधिकारी होता हे....आइये हम सब भी समाज के लिए एक नेक काम करे समाज में परिवर्तन अवश्य ही होगा....
Tuesday, November 16, 2010
SUDHA ADESH: bhrashtachar
SUDHA ADESH: bhrashtachar: "कल का महत्वपूर्ण मुद्दा भ्रष्टाचर आज महत्वहीन हो गया हे....अगर ऐसा न होता तो क्या अनेको घोटाले में फंसे व्यक्ति जिन्हें सजा मिलनी चाहिए वे ..."
soch
इन्सान की सोच इन्सान के जीवन को महतवपूर्ण दिशा देती हे....नकारात्मक एवं कुंठित सोच वाला इन्सान चाहे कितना ही योग्य और बुद्धिमान क्यों न हो जीवन में तरक्की नहीं कर सकता. वह अपने गुणों को विकसित करने की जगह दुसरे के गुणों को देखकर ईर्ष्या में जलभुनकर अपना ही नुकसान कर बेठाता हे, तथा दोष दुसरो के माथे पर थोप कर अपनी असफलता पर आंसू बहाने लगता हे, इसके विपरीत सकारात्मक सोच वाला इन्सान अपनी कमियों को भी अपनी मेहनत के बल पर विजय प्राप्त कर अपना मुकाम हासिल कर लेता हे....यही कारन हे कभी-कभी जो काम पांच इन्द्रिय वाले नहीं कर पते वह अपंग भी अपनी जीवन के प्रति अपनी लगन के कारन कर लेते हे....अब तुम्हे स्वयम विचार करना हे की तुम्हे सदा गिले शिकवे के साथ जिंदगी गुजारनी हे या जिंदादिल इन्सान की तरह जीना और दूसरो को भी जीने के लिए प्रैरित करना हे ....
Monday, November 15, 2010
bhrashtachar
कल का महत्वपूर्ण मुद्दा भ्रष्टाचर आज महत्वहीन हो गया हे....अगर ऐसा न होता तो क्या अनेको घोटाले में फंसे व्यक्ति जिन्हें सजा मिलनी चाहिए वे विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों में न बेठे होते....हमारा चतुर्थ स्तम्भ भी बस अपनी टी . आर . पी . रेटिंग बढ़ने के लिए कुछ दिन इन् मुद्द्दो को उछालता हे फिर ऐसी चुप्पी साथ लेता हे मनो कुछ हुआ ही न हो....
यह संवेदनहीनता hi ऐसे लोगो का मनोबल बढाती हे तथा ये बार-बार बिना डरे ऐसे काम करते रहते हे ....पिसता हे आम आदमी....जो अपने लिए दो जून की रोटी के लिए मेहनत करता हे पर उसके हाथ खाली के खाली ही रह जाते हे क्योकि उनकी भलाई के लिए निर्धारित रकम ये देश के दुश्मन हजम कर जाते हे.....जब तक भ्रष्टाचारियो के लिए मृत्युदंड का कानून नहीं बनेगा तब तक ये नहीं सुथरेंगे....पढने में यह बात अजीब लगे पर शरीर का जब कोई अंग ख़राब हो जाता हे तो क्या उसे काटा नहीं जाता....देश को विकास के रास्ते पर ले जाना हे तो कुछ कष्टप्रद निर्णय लेने ही होगे....
यह संवेदनहीनता hi ऐसे लोगो का मनोबल बढाती हे तथा ये बार-बार बिना डरे ऐसे काम करते रहते हे ....पिसता हे आम आदमी....जो अपने लिए दो जून की रोटी के लिए मेहनत करता हे पर उसके हाथ खाली के खाली ही रह जाते हे क्योकि उनकी भलाई के लिए निर्धारित रकम ये देश के दुश्मन हजम कर जाते हे.....जब तक भ्रष्टाचारियो के लिए मृत्युदंड का कानून नहीं बनेगा तब तक ये नहीं सुथरेंगे....पढने में यह बात अजीब लगे पर शरीर का जब कोई अंग ख़राब हो जाता हे तो क्या उसे काटा नहीं जाता....देश को विकास के रास्ते पर ले जाना हे तो कुछ कष्टप्रद निर्णय लेने ही होगे....
Sunday, November 14, 2010
baldivas
आज बालदिवस हे....जब हम छोटे थे तब यह दिन हमारे लिए बहुत मायने रखता था लगता था जेसे हमें पंख मिल गए हे....कोई तो हे हमारा ध्यान रखने वाला....पर तब से अब तक स्तिथिया काफी बदल गई हे, बल दिवस आज भी आता हे पर सिर्फ खानापूर्ति कर दी जाती हे....बचपन तो तब भी रो रहा था और आज भी रो रहा हे खाने के लिए रोटी नहीं, पहनने के लिए कपडा नहीं ऐसी स्तिथि में पढ़ने के लिए किताबे कहाँ से आएँगी....योजनाये बनती हे, फंड भी दिए जाते हे पर बचपन सिसकता ही रह जाता हे और हम चाँद लोगो के साथ बालदिवस मनाकर इस खुशफहमी में जीते हे की हमने अपना कर्त्तव्य का पालन कर diya....
aatankvad
आतंकवाद और नक्सलवाद देश और दुनिया के लिये गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं...देश के विकास में तो ये संगठन बाधक हैं ही, जनमानस के दिलों नफ़रत के बीज भी बो रहे हैं,आख़िर नफ़रत से किसका फ़ायदा होगा...उनका जो ख़ून की होली खेल रहे हैं या उनके आकाओं का...शायद किसी का भी नहीं क्योंकि नफ़रत से सिर्फ़ नफ़रत ही पैदा होती है, दुख तो इस बात का है कि हमारा ही नहीं दुनिया का राजनीतिक नेतृत्व भी इनके सामने पंगु हो गया है...न जाने क्या होगा इस देश और दुनिया का...
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