Tuesday, March 3, 2020

आंदोलित है मन

आंदोलित है मन जैसा मैंने अब तक सुना समझा और जाना है, लेखक संवेदनशील होता है । शायद यही कारण है दुनिया में घटती कोई भी अच्छी घटना उसे सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है वहीं बुरी घटनाओं की नकारात्मक ऊर्जा उसके तन-मन को आंदोलित कर देती है ...पर पिछले कुछ दिनों की घटनायें मन को आंदोलित कर रही हैं...क्या लेखक वामपंथी या दक्षिणपंथी होता है ? क्या अपनी विचारधारा के चश्मे से ही वह समाज में व्याप्त अनाचार और दुराचार के विरुद्ध लेखनी चलाता है... वरना सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाली सरकार द्वारा दोनों सदनों में पारित विधेयक का ऐसा विरोध...ऐसी हिंसा !!! माना ऐसी हिंसाएं पहले भी होती रही हैं क्योंकि कोई भी समाज अचानक असहिष्णु नहीं होता । विचारणीय प्रश्न यह है कि इन हिंसाओं से फायदा किसे होता है ? आम आदमी को अपनी रोजी -रोटी से ही फुर्सत नहीं है वे इन आंदोलनों में भाग ले ही नहीं सकते । यह कौन स्वार्थी तत्व हैं जो हमारे देश के सामाजिक ढांचे को तोड़ने के साथ सामाजिक एकरसता को छिन्न- भिन्न करने में लगे हैं । अगर हमें देश को विकास के रास्ते पर ले जाना है तो इन स्वार्थी तत्वों को पहचान कर इन्हें नेस्तनाबूद करना होगा । किसी एक व्यक्ति या दल पर हिंसा का ठीकरा फोड़ने से काम नहीं चलेगा । एक बात और क्या ऐसी घटनाएं पहले इस देश में नहीं हुई थीं ? क्या समाज में अचानक असहिष्णुता पैदा हो गई? जनसमाज तो वही है जो आज से दशकों पूर्व था । एक आदमी अचानक देश में अराजकता कैसे फैला सकता है ? अगर ऐसा हुआ है तो उसमें उस आदमी या दल का नहीं वरन समाज का दोष है । समाज एक दिन में नहीं बनता, उसे बनने में सदियाँ लग जाती है । यह सच है कि हर व्यक्ति अपनी-अपनी विचारधारा अपनाने को स्वतंत्र है पर लेखक का दायित्व आम जन से अलग है । उसे निष्पक्ष रहते हुए समाज के उत्थान तथा भाईचारे के महत्व को ध्यान रखते हुए अपनी लेखनी को बल प्रदान करना चाहिए । लेखक को समाज को जोड़ने का प्रयत्न करना चाहिये न की तोड़ने का । आज मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी समाज को जोड़ने की बजाय अपनी करनी से देश में नफरत भड़काने का कार्य कर रहे हैं । सदियों से हम आपस में ही लड़ते रहे...शायद इसी कारण हमें गुलाम रहना पड़ा । जो देश या देशवासी अपनी मूल जड़ों से नाता तोड़ लेते हैं, अपनी ही संस्कृति पर गर्व करने के बजाय उसका मज़ाक बनाते है वह देश या समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता । शायद अपनी इसी कमजोरी के कारण ही हम पिछड़े रह गए..। हमारे देश को दो दलीय व्यवस्था होनी चाहिये...कांग्रेस ने 60 वर्षो तक इस देश में शासन किया है फिर भी हम पिछड़े है...आखिर क्यों ? किसी दल का विरोध करते हुए यह मत भूलिये कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह नरेंद्र मोदी हो या कोई और , जब तक सबको साथ लेकर नहीं चलेगा,शासन नहीं कर पाएगा । एक को संतुष्ट करने के प्रयास में दूसरे को असंतुष्ट कर सामाजिक भेद-भाव की प्रवृत्ति असहिष्णुता को ही जन्म देगी जो किसी भी देश और समाज के लिए घातक है । सुधा आदेश

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