नींव का पत्थर बन
शमा सी जली
हर सुबह औ शाम
हर दिन औ रात...
तृप्ति के अहसास ने
ओस बन जहाँ
शीतलता प्रदान की
वहीं सैकड़ों आपदाओं का
संभाले बोझ
सुलगती रही इस आस में...
शायद कोई उसके
त्याग और बलिदान काे सराहेगा...
किंतु उगते सूरज की
अलौकिक छटा से
चौंधिया गये लोग
गर्वों मुक्त हो उठे
भूल गये नींव के पत्थर को
जिसकी ठोस ज़मीं पर
भविष्य की इमारत खड़ी है।
शमा सी जली
हर सुबह औ शाम
हर दिन औ रात...
तृप्ति के अहसास ने
ओस बन जहाँ
शीतलता प्रदान की
वहीं सैकड़ों आपदाओं का
संभाले बोझ
सुलगती रही इस आस में...
शायद कोई उसके
त्याग और बलिदान काे सराहेगा...
किंतु उगते सूरज की
अलौकिक छटा से
चौंधिया गये लोग
गर्वों मुक्त हो उठे
भूल गये नींव के पत्थर को
जिसकी ठोस ज़मीं पर
भविष्य की इमारत खड़ी है।
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