Sunday, February 23, 2020
तलाश जारी है
तलाश जारी है
मानव जीवन एक मृगमरीचिका का है । वस्तुतः संपूर्ण इंसानी जीवन है तलाश पर आधारित है । जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव स्व की तलाश में संलग्न रहता है । आसपास के वातावरण में उपस्थित किरण रश्मि नवजात शिशु के चक्षुओं में कौतुकता , जिज्ञासा उत्पन्न कर उसे निज और अन्य के अस्तित्व को तलाशने के लिए प्रेरित करती हैं । यही तलाश उसके जीवन के अंतिम पल तक चलती रहती है ।
स्कूल जाना प्रारंभ करते ही बच्चा एक दूसरी दुनिया में पहुँच जाता है । जहाँ उसे नये- नये साथी मिलते हैं । अक्षर ज्ञान प्रारंभ होत्र ही उसकी तलाश नई-नई वस्तुओं के साथ नये-नये प्राणियों से होती है । जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है , ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ वह अपना कार्यक्षेत्र तलाशने लगता है । कभी उसके माता-पिता तो कभी सगे संबंधी उसका संबल बनते हैं तो कभी सच्चे मित्र तो कभी उसके सपनों का आकाश देती जीवन संगिनी उसके सहयात्री बनते हैं ।
सब कुछ प्राप्त करने कर लेने पर भी उसकी तलाश समाप्त नहीं होती ...वह भटकने लगता है , कभी निज की तो कभी अपनों की तलाश में , कभी आत्मा की तो कभी परमात्मा की , कभी सृष्टि के अंग -अंग में व्याप्त सौंदर्य की, तो कभी पृथ्वी पर व्याप्त असमानता की । कभी नीला आकाश व्यक्ति के सपनों को आकाश देता है तो कभी धरती की हरीतिमा उसे अपनी मखमली चादर में लपेट कर उसे इतना अभिभूत कर डालती है कि वह अपनी सुध बुध खोकर उसमें डूब जाता है । यायावर बना प्रकृति के रहस्य को तलाशने के लिए यहाँ से वहाँ घूमता रहता है ।
एक समय ऐसा भी आता है जब इंसान यथार्थ के धरातल से टकराकर कभी धन की तलाश में दिन रात एक कर देता है तो कभी छीजते रिश्तो को सहेजने की... कोई सत्य की तलाश में दुनिया भर के ऐशो आराम छोड़कर सत्य की तलाश में जुट जाता है तो कोई शांति की तलाश में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजाघर की शरण लेने लगता है । अगर वहाँ भी शांति नहीं मिलती तो ध्यान केंद्रों में जाकर आत्मिक सुख की तलाश करने लगता है । ऐसा व्यक्ति कभी दुनिया की भीड़ में अपनों को तलाशता है तो कभी अपने अहंकार , ईर्ष्या और संदेह के मन में कुलबुलाते नागफनियों के कारण अपनों को भी बेगाना बनाने से नहीं चूकता । दुख से पीड़ित व्यक्ति तो शांति की तलाश में मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे और गिरजाघर जाते ही हैं पर आश्चर्य तो तब होता है जब साधन संपन्न, सुख , समृद्धि से भरपूर व्यक्ति भी इनके चक्कर लगाकर और पाने की चाह में दान दक्षिणा देकर अपनी मुक्ति का मार्ग तलाशते हैं ।
सच तो यह है संतुष्ट रूपी अमृत के अभाव में व्यक्ति की तलाश कभी समाप्त नहीं होती । कभी अपनी तो कभी अपनों की छोटी-बड़ी हर चाहत को पूरा करने के प्रयास में वह रीतता जाता है । संतोष एवं शांति रूपी कस्तूरी उसके हाथ से छिटकती जाती है । अंततः माया मोह के तिलस्मी जाल को तोड़ने का असफल प्रयास करते हुए शांतिप्रिय अंत की तलाश में जुट जाता है …
खुली आँखें खुला मस्तिष्क,
न भटक इधर-उधर,
निज में निज में तलाश बंदे,
मिलेगा आकाश यहीं
मिलेगी जमीं यही।
सुधा आदेश
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment