Friday, November 8, 2019
पेशानी पर टंगा प्रश्न
पेशानी पर टंगा प्रश्न
सुरेखा को अनियंत्रित हालत में घर में प्रवेश करते देखकर अरुणा ने चौंक कर पूछा,’ क्या हुआ सुरेखा ?’
‘अब क्या और कैसे बताऊँ ?’ कहकर सुरेखा सिर पर हाथ रखकर बैठ गई ।
‘संभालो स्वयं को फिर बताओ हुआ क्या है?’ अरुणा ने उसे पानी का ग्लास पकड़ाते हुए कहा ।
‘जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दोष किसको दूँ ?’
‘पहेलियां ही बुझाती रहोगी या कुछ बताओगी भी ।'
‘नमन लिव इन में रह रहा है !’
‘क्या ? कब से ?’ इस बार चौंकने की बारी अरुणा की थी ।
‘चार पाँच महीने हो गए पर मुझे अभी हफ्ते भर पहले पता चला । न जाने क्या-क्या ख्बाब देखे थे सब मिट्टी में मिला दिये । आज मन बहुत परेशान था अतः तेरे पास चली आई ।'
‘अच्छा किया …जो भी निर्णय करना सोच समझ कर करना । आज की पीढ़ी अपने मन की करती है । वे बालिग हैं, आत्मनिर्भर हैं…झुकना तो हमें ही पड़ेगा ।’
‘तुम ठीक कह रही हो मैं और अजय तो इस संबंध को स्वीकारने को तैयार हूँ पर वे अभी विवाह नहीं करना चाहते । उनका मत है अभी वे पूरी तरह सैटल नहीं हैं ।’
‘तुमने उन्हें ऊँच-नीच नहीं समझाई !!’
‘सब कहकर देख लिया. नमन कहता है कि हम बच्चे नहीं हैं । अपना भला बुरा समझते हैं.’
‘और वह लड़की…क्या नाम है उसका ।’
‘प्रिया का भी यही मानना है । वह भी अभी पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती ।'
‘तुमने उसके माता-पिता से बात की ।’
‘बात की थी । वे भी अपनी बेटी की जिद के सामने विवश हैं ।’
‘सच आज के बच्चों को पालना उन्हें संस्कार देना टेढ़ी खीर है । तेरा तो बेटा है…तेरी बात सुनकर मुझे अपनी बेटी सुवर्णा की चिंता होने लगी है ।’
‘माना मेरा बेटा है पर मैं स्त्री होने के नाते उस बेटी के माता-पिता के दर्द से कैसे अनभिज्ञ रह सकती हूँ जो अपनी बेटी के बिना किसी संबंध के किसी गैर मर्द के साथ रहने का दर्द झेल रहे हैं । इस स्तिथि के लिये कहीं न कहीं मैं भी दोषी हूँ जो अपने पुत्र को स्त्री का सम्मान करना नहीं सिखा पाई । बस अब तो एक ही कामना है कि नमन प्रिया को धोखा न दे । अच्छा अब चलती हूँ ।'
अपनी प्रिय सखी सुरेखा की आँखों में झलक रहे आँसुओं को देखकर अरुणा सोच रही थी कि हमारी पीढ़ी बच्चों के कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है पर पता नहीं कब, कहाँ चूक हो जाती है जो न वे हमें समझ पाते हैं न ही हम उन्हें...यहाँ तक कि शारीरिक सुख की खातिर आज वे सामाजिक और नैतिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाने से भी नहीं चूक रहे हैं । आखिर कहाँ जा रहे हैं हम ? एक प्रश्न टंग गया था उसकी पेशानी पर ...जिसका कोई उत्तर उसके पास नहीं था ।
सुधा आदेश
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment