अजीब सा कलरव
भागादौड़ी की कश्मकश
न जाने कैसी बेचैनियां ।
खो रही हैं बोलियां
नहीं हैं अब गर्मजोशियाँ ।
नन्हों के हाथ में मोबाइल
मां-पिता व्यस्त कर्म चक्रव्यूह में
नहीं रही अब गोदियाँ ।
नहीं रही अब बोलियां
नहीं सुनाता कोई लोरियां ।
एक ही कमरा ,
एक ही पलंग
चैटिंग में मस्त युगल
बढ़ रही हैं दूरियां ।
नहीं रही अब बोलियां
नहीं रही गलबहियाँ ।
समाज से कटे,भटके लोग
नैतिकता का भी भान नहीं
अजब-गजब मजबूरियां ।
नहीं रही अब बोलियां
बढ़ रहीं तन्हाइयां।
@सुधा आदेश
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