जीने का लुफ़्त सीख पाते ।
माना पलों ने बिगाड़ी हैं सैकड़ों ज़िंदगियों
वही पल सँवार भी गया है बिगड़ी ज़िंदगियाँ ।
हर पल तुम्हारा, नियंता तुम निज ज़िंदगी के
फिर आक्रोश क्यों, विरक्ति क्यों ?
ज़रा सोचो, ज़रा समझो, आगे क़दम बढ़ाओ
हर पल को क़ैद कर मुट्ठी में नया इतिहास रचाओ ।
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