Tuesday, January 6, 2015

आस अभी बाक़ी है

मैं हुआ जब-जब हम पर हावी टूट गई संवेदनायें सारी कुलीन प्रवृत्तियाँ होने लगी क्षीण होने लगा मन विदीर्ण । श्वेत धवल खरगोशों ने मारी जब कुलांचें खोखला भुनभुना नींव पर स्थापित आस्थाओं के महल ढहने लगे अचानक क्यों ? व्यक्ति ... परिवार को टूटने से बचा नहीं पाया राष्ट्र की एकता के लिये चिंतित होगा क्यों ? अनिश्चित,अनैतिक,अमर्यादित व्यवस्थाओं में फँसकर क्यों और कैसे कहाँ से कहाँ आ गये हम ! टूटा ही है मानव साँस अभी बाक़ी है, बुझती साँसों को मिल जाये जीवन आस अभी बाक़ी है ।

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