Saturday, November 30, 2019

कब तक जलेगी नारी...

कब तक जलेगी नारी...

 एक कोलाहल थमता नहीं 
दूसरा आकर तन-मन को 
 शिथिल कर देता है ..

 संज्ञाशून्य हो जाती है 
चेतना बार-बार 
मन को यही आक्रोश 
 मथने लगता है, 
 आखिर कब तक जलेगी 
 संसार की निर्मात्री नारी , 
कब थमेगी नृशंषता, 
कब तक हमें बेबस चीखें
द्रवित करेगी।

 कब इंसान जानवर से 
इंसान बनेगा , 
कब तक केंडल मार्च 
निकालकर मन को
 सांत्वना देते रहेंगे ? 

 उत्तर है किसी के पास ...!! 
चुप रहकर, 
आँख मूंद कर 
 क्या हम स्वयं 
नृशंषता के 
 भागीदार नहीं बन रहे हैं ?

 एक आवाज नहीं, 
 हजारों आवाज चाहिए 
 अपराधी को कटघरे तक 
 पहुंचाने के लिये... 
मौत के बदले सिर्फ मौत 
 इससे कम कुछ नहीं !! 

 @सुधा आदेश

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