Tuesday, June 16, 2020

सच्चाई





सच्चाई


सच्चाई मंदिरों में शंख बजते रहे , 
बाहर लूटमार होती रही 
 तुम वातानुकूलित कक्ष में  
चैन की बांसुरी बजाते रहे । 

 बीज किसने बोया, 
 पेड़ किसने सींचा फल कौन खायेगा…
 पर्दे के पीछे ही छिपा रहा 
 अकलमंदी पर तुम अपनी मुस्कुराते रहे ।

 ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं 
निर्विवाद सत्य को भूल 
 सफलता पर अपनी तुम 
सदा इतराते रहे । 

 धर्म और जाति की लेकर आड़ 
भाइयों को भाइयों से लड़ा कर 
 कब्रों उनकी खड़ी कर ऊंची अट्टालिकाएं
 सुखद भविष्य के सुनहरे स्वप्न देखते रहे ।

 टूट कर बिखरे जब 
स्वप्न समेटने में जा पहुंचे 
 दीन-हीनों के पास
 बेरुखी से होकर त्रस्त उनकी 
 विवशता पर नीर बारंबार बहाते रहे । 

 सुधा आदेश

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