Thursday, June 18, 2020
उपन्यास अंततः-2
अंततः -2
आज से 30 वर्ष पूर्व की दिसंबर माह की सर्द सुबह थी । मैं और मेरी छोटी बहन श्वेता कॉलेज जाने की तैयारी कर रही थीं तथा माँ पूर्णिमा रसोई घर में नाश्ता बना रही थीं । उसी समय घंटी बजी माँ ने कहा , ' कृष्णा देखना तो कौन आया है ?'
दरवाजा खोला तो आनंदी दादी को खड़ा पाया । आनंदी दादी हमारी दादी की अभिन्न मित्र ही नहीं हमारी पड़ोसन भी थीं जिन्हें हम सब भी दादी ही बुलाया करते थे ।
' प्रणाम दादी ।'
' खुश रहो बेटा, तुम्हारी माँ कहाँ हैं ?'
'दादी, माँ किचन में हैं । माँ दादी आई हैं ।' कहकर मैं अंदर चली गई ।
आनंदी दादी किचन में चली गईं तथा माँ से कहा, ' पूर्णिमा बहू , मेरी ननद शिवानी तथा ननदोई नरेन्द्र का पुत्र शशांक जो अमेरिका में नौकरी कर रहा है , एक महीने के लिए भारत आया हुआ है । मैं उसे बचपन से जानती हूँ । अगर बात बन गई तो राज करेगी तेरी बेटी... सबसे अच्छी बात तो यह है नरेंद्र भी सेवामुक्ति के पश्चात यहीं इंदिरा नगर में आकर बस गया है ।'
' माँ नाश्ता.. ।' वे दोनों बात कर ही रही थीं कि मैंने और श्वेता ने कॉलेज जाने के लिए तैयार होकर किचन में प्रवेश करते हुए कहा ।
' हाँ बेटा, नाश्ता तैयार है ...यह लो ।'कहते हुए माँ ने दोनों को एक-एक पेट पकड़ाई फिर आनंदी दादी की ओर उन्मुख होकर कहा ,' चाची , आप भी नाश्ता करके जाइएगा । मनीष सुबह की सैर के लिए गए हैं । आते ही होंगे उनसे भी बात कर लीजिएगा ।'
' नहीं बहू ,अभी बहुत काम बाकी है । तू तो जानती ही है आज मेरा सोमवार का व्रत है । मंदिर से लौट रही थी तो सोचा कि तुझे बताती जाऊँ । तुझे तो पता ही है तेरे सुदेश चाचा को सुबह 9:00 बजे तक नाश्ता चाहिए । समय के बड़े पाबंद हैं फौज से रिटायर हुए समय बीत गया पर फौजी तेवर आज भी बरकरार हैं और फिर आकांक्षा भी आई हुई है डिलीवरी के लिए । उसकी भी तबीयत ठीक नहीं चल रही है । अच्छा चलती हूँ फिर आऊँगी तब आराम से बातें करेंगे । अब तो भरपेट मिठाई की खानी है । अपनी श्वेता है ही ऐसी जो भी देखेगा देखता ही रह जाएगा ।'
' चाची ...।'
माँ ने बेचैनी से कहते हुए कृष्णा और श्वेता की ओर नजर घुमाई तो पाया वे दोनों उनकी बातों से बेखबर एक दूसरे से बातें करते हुए नाश्ता कर रही हैं । संतोष की सांस लेते हुए वे आनंदी चाची को छोड़ने के लिए बाहर आई तथा धीरे से उनसे कहा..
' चाची, कृष्णा बड़ी है और आप श्वेता की बात कर रही हैं।'
'दुनियादारी सीख बहू , बड़ी नहीं तो छोटी ही सही... विवाह तो करना ही है । वैसे भी ऐसा रिश्ता बार-बार नहीं मिलता । '
'चाची आपने तो कभी दोनों में भेदभाव नहीं किया फिर आज क्यों ?' व्यथित होकर माँ ने कहा ।
' बहू, इंसान को कभी कभी व्यवहारिक बनना पड़ता है । मैंने शशांक की माँ मिताली से पहले कृष्णा के बारे में बात की थी पर वह तैयार नहीं हैं । उन्हें गोरी लड़की चाहिए तब मैंने उनसे श्वेता की बात की तब मिताली ने कहा ठीक है देख लेते हैं । अगर लड़के को लड़की पसंद आ गई तो रिश्ता कर लेंगे । चिंता ना कर बेटी, तेरी कृष्णा है ही इतनी गुणी कि एक दिन उसके गुणों का पारखी भी मिल जाएगा ।' व्यथित स्वर में उन्होंने उत्तर दिया तथा चली गईं ।
' अच्छा ममा हम भी चलते हैं । आज प्रैक्टिकल है , आने में शायद देर हो जाए ।' मैंने अपना बैग उठाकर बाहर जाते हुए कहा।
' ममा, मुझे भी आज आने में देर हो सकती है । कल मेरी सहेलियाँ कालेज के पश्चात ' कभी-कभी ' मूवी देखने का कार्यक्रम बना रही थीं अतः जाना ही पड़ेगा ।' श्वेता ने इठलाते हुए कहा ।
' शीघ्र आने का प्रयत्न करना । समय ठीक नहीं है...।' चलते समय माँ के शब्द हमारे कानों से टकराये ।
सुधा आदेश
क्रमशः
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